< भजन संहिता 11 >

1 संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना मैंने याहवेह में आश्रय लिया है, फिर तुम मुझसे यह क्यों कह रहे हो: “पंछी के समान अपने पर्वत को उड़ जा.
לַמְנַצֵּ֗חַ לְדָ֫וִ֥ד בַּֽיהוָ֨ה ׀ חָסִ֗יתִי אֵ֭יךְ תֹּאמְר֣וּ לְנַפְשִׁ֑י נ֝֗וּדִי הַרְכֶ֥ם צִפּֽוֹר׃
2 सावधान! दुष्ट ने अपना धनुष साध लिया है; और उसने धनुष पर बाण भी चढ़ा लिया है, कि अंधकार में सीधे लोगों की हत्या कर दे.
כִּ֤י הִנֵּ֪ה הָרְשָׁעִ֡ים יִדְרְכ֬וּן קֶ֗שֶׁת כּוֹנְנ֣וּ חִצָּ֣ם עַל־יֶ֑תֶר לִיר֥וֹת בְּמוֹ־אֹ֝֗פֶל לְיִשְׁרֵי־לֵֽב׃
3 यदि आधार ही नष्ट हो जाए, तो धर्मी के पास कौन सा विकल्प शेष रह जाता है?”
כִּ֣י הַ֭שָּׁתוֹת יֵֽהָרֵס֑וּן צַ֝דִּ֗יק מַה־פָּעָֽל׃
4 याहवेह अपने पवित्र मंदिर में हैं; उनका सिंहासन स्वर्ग में बसा है. उनकी दृष्टि सर्वत्र मनुष्यों को देखती है; उनकी सूक्ष्मदृष्टि हर एक को परखती रहती है.
יְהוָ֤ה ׀ בְּֽהֵ֘יכַ֤ל קָדְשׁ֗וֹ יְהוָה֮ בַּשָּׁמַ֪יִם כִּ֫סְא֥וֹ עֵינָ֥יו יֶחֱז֑וּ עַפְעַפָּ֥יו יִ֝בְחֲנ֗וּ בְּנֵ֣י אָדָֽם׃
5 याहवेह की दृष्टि धर्मी एवं दुष्ट दोनों को परखती है, याहवेह के आत्मा हिंसा प्रिय पुरुषों से घृणा करते हैं.
יְהוָה֮ צַדִּ֪יק יִ֫בְחָ֥ן וְ֭רָשָׁע וְאֹהֵ֣ב חָמָ֑ס שָֽׂנְאָ֥ה נַפְשֽׁוֹ׃
6 दुष्टों पर वह फन्दों की वृष्टि करेंगे, उनके प्याले में उनका अंश होगा अग्नि; गंधक तथा प्रचंड हवा.
יַמְטֵ֥ר עַל־רְשָׁעִ֗ים פַּ֫חִ֥ים אֵ֣שׁ וְ֭גָפְרִית וְר֥וּחַ זִלְעָפ֗וֹת מְנָ֣ת כּוֹסָֽם׃
7 याहवेह युक्त हैं, धर्मी ही उन्हें प्रिय हैं; धर्मी जन उनका मुंह देखने पाएंगे.
כִּֽי־צַדִּ֣יק יְ֭הוָה צְדָק֣וֹת אָהֵ֑ב יָ֝שָׁ֗ר יֶחֱז֥וּ פָנֵֽימוֹ׃

< भजन संहिता 11 >