< मत्ती 7 >
1 “किसी पर भी दोष न लगाओ, तो लोग तुम पर भी दोष नहीं लगाएंगे
“Do not judge, so that you will not be judged.
2 क्योंकि जैसे तुम किसी पर दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा तथा माप के लिए तुम जिस बर्तन का प्रयोग करते हो वही तुम्हारे लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
For with the judgment you pronounce you will be judged, and with the measure you use it will be measured to you.
3 “तुम भला अपने भाई की आंख के कण की ओर उंगली क्यों उठाते हो जबकि तुम स्वयं अपनी आंख में पड़े लट्ठे की ओर ध्यान नहीं देते?
Why do yoʋ see the speck in yoʋr brother's eye, but do not consider the beam in yoʋr own eye?
4 या तुम भला यह कैसे कह सकते हो ‘ज़रा ठहरो, मैं तुम्हारी आंख से वह कण निकाल देता हूं,’ जबकि तुम्हारी अपनी आंख में तो लट्ठा पड़ा हुआ है?
Or how will yoʋ say to yoʋr brother, ‘Let me take the speck out of yoʋr eye,’ when there is a beam in yoʋr own eye?
5 अरे पाखंडी! पहले तो स्वयं अपनी आंख में से उस लट्ठे को तो निकाल! तभी तू स्पष्ट रूप से देख सकेगा और अपने भाई की आंख में से उस कण को निकाल सकेगा.
Hypocrite! First take the beam out of yoʋr own eye, and then yoʋ will see clearly to take the speck out of yoʋr brother's eye.
6 “वे वस्तुएं, जो पवित्र हैं, कुत्तों को न दो और न सूअरों के सामने अपने मोती फेंको, कहीं वे उन्हें अपने पैरों से रौंदें, मुड़कर तुम्हें फाड़ें और टुकड़े-टुकड़े कर दें.
“Do not give what is holy to dogs, and do not throw your pearls before pigs, lest they trample them with their feet, and then turn and tear you to pieces.
7 “विनती करो, तो तुम्हें दिया जाएगा; खोजो, तो तुम पाओगे; द्वार खटखटाओ, तो वह तुम्हारे लिए खोल दिया जाएगा
“Ask, and it will be given to you; seek, and you will find; knock, and the door will be opened for you.
8 क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, उसकी विनती पूरी की जाती है, जो खोजता है, वह प्राप्त करता है और वह, जो द्वार खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.
For everyone who asks receives; and he who seeks finds; and for him who knocks, the door will be opened.
9 “तुममें ऐसा कौन है कि जब उसका पुत्र उससे रोटी की मांग करता है तो उसे पत्थर देता है
Or what man is there among you, who, if his son asks him for bread, will give him a stone;
10 या मछली की मांग करने पर सांप?
and if he asks for a fish, will give him a serpent?
11 जब तुम दुष्ट होने पर भी अपनी संतान को उत्तम वस्तुएं प्रदान करना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, कहीं अधिक बढ़कर वह प्रदान न करेंगे, जो उत्तम है?
If you then, being evil, know how to give good gifts to your children, how much more will your Father in heaven give good things to those who ask him!
12 इसलिये हर एक परिस्थिति में लोगों से तुम्हारा व्यवहार ठीक वैसा ही हो जैसे व्यवहार की आशा तुम उनसे अपने लिए करते हो क्योंकि व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा भी यही है.
“Therefore whatever you wish that others would do to you, do the same also to them, for this is the Law and the Prophets.
13 “संकरे द्वार में से प्रवेश करो क्योंकि विशाल है वह द्वार और चौड़ा है वह मार्ग, जो विनाश तक ले जाता है और अनेक हैं, जो इसमें से प्रवेश करते हैं.
“Enter through the narrow gate, for wide is the gate, and broad is the way that leads to destruction, and there are many who enter through it.
14 क्योंकि सकेत है वह द्वार तथा कठिन है वह मार्ग, जो जीवन तक ले जाता है और थोड़े ही हैं, जो इसे प्राप्त करते हैं.
How narrow is the gate, and restricted the way that leads to life, and there are few who find it!
15 “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के वेश में तुम्हारे बीच आ जाते हैं, किंतु वास्तव में वे भूखे भेड़िये होते हैं.
“Beware of false prophets, who come to you in sheep's clothing but inwardly are ravenous wolves.
16 उनके स्वभाव से तुम उन्हें पहचान जाओगे. न तो कंटीली झाड़ियों में से अंगूर और न ही गोखरु से अंजीर इकट्ठे किए जाते हैं.
By their fruits you will know them. Do people gather grapes from thorns, or figs from thistles?
17 वस्तुतः हर एक उत्तम पेड़ उत्तम फल ही फलता है और बुरा पेड़ बुरा फल.
In the same way, every good tree produces good fruit, but a bad tree produces bad fruit.
18 यह संभव ही नहीं कि उत्तम पेड़ बुरा फल दे और बुरा पेड़ उत्तम फल.
A good tree cannot produce bad fruit, neither can a bad tree produce good fruit.
19 जो पेड़ उत्तम फल नहीं देता, उसे काटकर आग में झोंक दिया जाता है.
Every tree that does not produce good fruit is cut down and thrown into the fire.
20 इसलिये उनके स्वभाव से तुम उन्हें पहचान लोगे.
Therefore by their fruits you will know them.
21 “मुझे, ‘प्रभु, प्रभु,’ संबोधित करता हुआ हर एक व्यक्ति स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं पाएगा परंतु प्रवेश केवल वह पाएगा, जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करता है.
“Not everyone who says to me, ‘Lord, Lord,’ will enter the kingdom of heaven, but only he who does the will of my Father in heaven.
22 उस अवसर पर अनेक मुझसे प्रश्न करेंगे, ‘प्रभु, क्या हमने आपके नाम में भविष्यवाणी न की, क्या हमने आपके ही नाम में दुष्टात्माओं को न निकाला और क्या हमने आपके नाम में अनेक आश्चर्यकर्म न किए?’
Many will say to me on that day, ‘Lord, Lord, did we not prophesy in yoʋr name, and in yoʋr name cast out demons, and in yoʋr name do many miracles?’
23 मैं उनसे स्पष्ट कहूंगा, ‘मैं तो तुम्हें जानता भी नहीं. दुष्टो! चले जाओ मेरे सामने से!’
Then I will declare to them, ‘I never knew you; depart from me, you who practice lawlessness.’
24 “इसलिये हर एक की तुलना, जो मेरी इन शिक्षाओं को सुनकर उनका पालन करता है, उस बुद्धिमान व्यक्ति से की जा सकती है, जिसने अपने भवन का निर्माण चट्टान पर किया.
“Everyone then who hears these words of mine and does them I will compare to a wise man who built his house on the rock.
25 आंधी उठी, वर्षा हुई, बाढ़ आई और उस भवन पर थपेड़े पड़े, फिर भी वह भवन स्थिर खड़ा रहा क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर थी.
The rain fell, the floods came, and the winds blew and beat on that house, but it did not fall, for it was founded on the rock.
26 इसके विपरीत हर एक जो, मेरी इन शिक्षाओं को सुनता तो है किंतु उनका पालन नहीं करता, वह उस निर्बुद्धि के समान होगा जिसने अपने भवन का निर्माण रेत पर किया.
But everyone who hears these words of mine and does not do them will be compared to a foolish man who built his house on the sand.
27 आंधी उठी, वर्षा हुई, बाढ़ आई, उस भवन पर थपेड़े पड़े और वह धराशायी हो गया—भयावह था उसका विनाश!”
The rain fell, the floods came, and the winds blew and beat against that house, and it fell, and great was its fall.”
28 जब येशु ने यह शिक्षाएं दीं, भीड़ आश्चर्यचकित रह गई
When Jesus finished saying these things, the crowds were astonished at his teaching,
29 क्योंकि येशु की शिक्षा-शैली अधिकारपूर्ण थी, न कि शास्त्रियों के समान.
because he was teaching them as one who had authority, and not as the scribes.