< मत्ती 5 >

1 इकट्ठा हो रही भीड़ को देख येशु पर्वत पर चले गए और जब वह बैठ गए तो उनके शिष्य उनके पास आए.
وَإِذْ رَأَى جُمُوعَ النَّاسِ، صَعِدَ إِلَى الْجَبَلِ. وَمَا إِنْ جَلَسَ، حَتَّى اقْتَرَبَ إِلَيْهِ تَلامِيذُهُ.١
2 येशु ने उन्हें शिक्षा देना प्रारंभ किया. उन्होंने कहा,
فَتَكَلَّمَ وَأَخَذَ يُعَلِّمُهُمْ. فَقَالَ:٢
3 “धन्य हैं वे, जो दीन आत्मा के हैं, क्योंकि स्वर्ग-राज्य उन्हीं का है.
«طُوبَى لِلْمَسَاكِينِ بِالرُّوحِ، فَإِنَّ لَهُمْ مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ.٣
4 धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं. क्योंकि उन्हें शांति दी जाएगी.
طُوبَى لِلْحَزَانَى، فَإِنَّهُمْ يَتَعَزَّوْنَ.٤
5 धन्य हैं वे, जो नम्र हैं क्योंकि पृथ्वी उन्हीं की होगी.
طُوبَى لِلْوُدَعَاءِ، فَإِنَّهُمْ سَيَرِثُونَ الأَرْضَ.٥
6 धन्य हैं वे, जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि उन्हें तृप्‍त किया जाएगा.
طُوبَى لِلْجِيَاعِ وَالْعِطَاشِ إِلَى الْبِرِّ، فَإِنَّهُمْ سَيُشْبَعُونَ.٦
7 धन्य हैं वे, जो कृपालु हैं, क्योंकि उन पर कृपा की जाएगी.
طُوبَى لِلرُّحَمَاءِ، فَإِنَّهُمْ سَيُرْحَمُونَ.٧
8 धन्य हैं वे, जिनके हृदय शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे.
طُوبَى للأَنْقِيَاءِ الْقَلْبِ، فَإِنَّهُمْ سَيَرَوْنَ اللهَ.٨
9 धन्य हैं वे, जो शांति कराने वाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर की संतान कहलाएंगे.
طُوبَى لِصَانِعِي السَّلامِ، فَإِنَّهُمْ سَيُدْعَوْنَ أَبْنَاءَ اللهِ.٩
10 धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए गए हैं, क्योंकि स्वर्ग-राज्य उन्हीं का है.
طُوبَى لِلْمُضْطَهَدِينَ مِنْ أَجْلِ الْحَقِّ، فَإِنَّ لَهُمْ مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ.١٠
11 “धन्य हो तुम, जब लोग तुम्हारी निंदा करें और सताएं तथा तुम्हारे विषय में मेरे कारण सब प्रकार के बुरे विचार फैलाते हैं.
طُوبَى لَكُمْ مَتَى أَهَانَكُمُ النَّاسُ وَاضْطَهَدُوكُمْ، وَقَالُوا عَلَيْكُمْ مِنْ أَجْلِي كُلَّ سُوءٍ كَاذِبِينَ.١١
12 हर्षोल्लास में आनंद मनाओ क्योंकि तुम्हारा प्रतिफल स्वर्ग में है. उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को भी इसी रीति से सताया था, जो तुमसे पहले आए हैं.
اِفْرَحُوا وَتَهَلَّلُوا، فَإِنَّ مُكَافَأَتَكُمْ فِي السَّمَاوَاتِ عَظِيمَةٌ. فَإِنَّهُمْ هكَذَا اضْطَهَدُوا الأَنْبِيَاءَ مِنْ قَبْلِكُمْ!١٢
13 “तुम पृथ्वी के नमक हो, किंतु यदि नमक नमकीन न रहे तो उसके खारेपन को दोबारा कैसे लौटाया जा सकेगा? तब तो वह किसी भी उपयोग का नहीं सिवाय इसके कि उसे बाहर फेंक दिया जाए और लोग उसे रौंदते हुए निकल जाएं.
أَنْتُمْ مِلْحُ الأَرْضِ. فَإِذَا فَسَدَ الْمِلْحُ، فَمَاذَا يُعِيدُ إِلَيْهِ مُلُوحَتَهُ؟ إِنَّهُ لَا يَعُودُ يَصْلُحُ لِشَيْءٍ إِلّا لأَنْ يُطْرَحَ خَارِجاً لِتَدُوسَهُ النَّاسُ!١٣
14 “तुम संसार के लिए ज्योति हो. पहाड़ी पर स्थित नगर को छिपाया नहीं जा सकता.
أَنْتُمْ نُورُ الْعَالَمِ. لَا يُمْكِنُ أَنْ تُخْفَى مَدِينَةٌ مَبْنِيَّةٌ عَلَى جَبَلٍ؛١٤
15 कोई भी जलते हुए दीप को किसी बर्तन से ढांक कर नहीं रखता; उसे उसके निर्धारित स्थान पर रखा जाता है कि वह उस घर में उपस्थित लोगों को प्रकाश दे.
وَلا يُضِيءُ النَّاسُ مِصْبَاحاً ثُمَّ يَضَعُونَهُ تَحْتَ مِكْيَالٍ، بَلْ يَضَعُونَهُ فِي مَكَانٍ مُرْتَفِعٍ لِيُضِيءَ لِجَمِيعِ مَنْ فِي الْبَيْتِ.١٥
16 लोगों के सामने अपना प्रकाश इस रीति से प्रकाशित होने दो कि वे तुम्हारे भले कामों को देख सकें तथा तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, महिमा करें.
هكَذَا، فَلْيُضِئْ نُورُكُمْ أَمَامَ النَّاسِ، لِيَرَوْا أَعْمَالَكُمُ الْحَسَنَةَ وَيُمَجِّدُوا أَبَاكُمُ الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ.١٦
17 “अपने मन से यह विचार निकाल दो कि मेरे आने का उद्देश्य व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं के लेखों को व्यर्थ साबित करना है—उन्हें पूरा करना ही मेरा उद्देश्य है.
لَا تَظُنُّوا أَنِّي جِئْتُ لأُلْغِيَ الشَّرِيعَةَ أَوِ الأَنْبِيَاءَ. مَا جِئْتُ لأُلْغِيَ، بَلْ لأُكَمِّلَ.١٧
18 मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूं: जब तक आकाश और पृथ्वी अस्तित्व में हैं, पवित्र शास्त्र का एक भी बिंदु या मात्रा गुम न होगी, जब तक सब कुछ नष्ट न हो जाए.
فَالْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِلَى أَنْ تَزُولَ الأَرْضُ وَالسَّمَاءُ، لَنْ يَزُولَ حَرْفٌ وَاحِدٌ أَوْ نُقْطَةٌ وَاحِدَةٌ مِنَ الشَّرِيعَةِ، حَتَّى يَتِمَّ كُلُّ شَيْءٍ.١٨
19 इसलिये जो कोई इनमें से छोटी सी छोटी आज्ञा को तोड़ता तथा अन्यों को यही करने की शिक्षा देता है, स्वर्ग-राज्य में सबसे छोटा घोषित किया जाएगा. इसके विपरीत, जो कोई इन आदेशों का पालन करता और इनकी शिक्षा देता है, स्वर्ग-राज्य में विशिष्ट घोषित किया जाएगा.
فَأَيُّ مَنْ خَالَفَ وَاحِدَةً مِنْ هَذِهِ الْوَصَايَا الصُّغْرَى، وَعَلَّمَ النَّاسَ أَنْ يَفْعَلُوا فِعْلَهُ، يُدْعَى الأَصْغَرَ فِي مَلَكُوتِ السَّمَاوَاتِ. وَأَمَّا مَنْ عَمِلَ بِها وَعَلَّمَهَا، فَيُدْعَى عَظِيماً فِي مَلَكُوتِ السَّمَاوَاتِ.١٩
20 मैं तुम्हें इस सच्चाई से भी परिचित करा दूं: यदि परमेश्वर के प्रति तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो तो तुम किसी भी रीति से स्वर्ग-राज्य में प्रवेश न कर सकोगे.
فَإِنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنْ لَمْ يَزِدْ صَلاحُكُمْ عَلَى صَلاحِ الْكَتَبَةِ والْفَرِّيسِيِّينَ، فَلَنْ تَدْخُلُوا مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ أَبَداً.٢٠
21 “यह तो तुम सुन ही चुके हो कि पूर्वजों को यह आज्ञा दी गई थी, ‘हत्या मत करो और जो कोई हत्या करता है, वह न्यायालय के प्रति उत्तरदायी होगा’;
سَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ لِلأَقْدَمِينَ: لَا تَقْتُلْ! وَمَنْ قَتَلَ يَسْتَحِقُّ الْمُحَاكَمَةَ.٢١
22 किंतु मेरा तुमसे कहना है कि हर एक, जो अपने भाई-बहन से गुस्सा करता है, वह न्यायालय के सामने दोषी होगा और जो कोई अपने भाई से कहे, ‘अरे निकम्मे!’ वह सर्वोच्च न्यायालय के प्रति अपराध का दोषी होगा तथा वह, जो कहे, ‘अरे मूर्ख!’ वह तो नरक की आग के योग्य दोषी होगा. (Geenna g1067)
أَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: كُلُّ مَنْ يَغْضَبُ عَلَى أَخِيهِ، يَسْتَحِقُّ الْمُحَاكَمَةَ؛ وَمَنْ يَقُولُ لأَخِيهِ: يَا تَافِهُ! يَسْتَحِقُّ الْمُثُولَ أَمَامَ الْمَجْلِسِ الأَعْلَى؛ وَمَنْ يَقُولُ: يَا أَحْمَقُ! يَسْتَحِقُّ نَارَ جَهَنَّمَ! (Geenna g1067)٢٢
23 “इसलिये, यदि तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ाने जा रहे हो और वहां तुम्हें यह याद आए कि तुम्हारे भाई के मन में तुम्हारे प्रति विरोध है,
فَإِذَا جِئْتَ بِتَقْدِمَتِكَ إِلَى الْمَذْبَحِ، وَهُنَاكَ تَذَكَّرْتَ أَنَّ لأَخِيكَ شَيْئاً عَلَيْكَ،٢٣
24 अपनी भेंट वेदी के पास ही छोड़ दो और जाकर सबसे पहले अपने भाई से मेल-मिलाप करो और तब लौटकर अपनी भेंट चढ़ाओ.
فَاتْرُكْ تَقْدِمَتَكَ أَمَامَ الْمَذْبَحِ، وَاذْهَبْ أَوَّلاً وَصَالِحْ أَخَاكَ، ثُمَّ ارْجِعْ وَقَدِّمْ تَقْدِمَتَكَ.٢٤
25 “न्यायालय जाते हुए मार्ग में ही अपने दुश्मन से मित्रता का संबंध फिर से बना लो कि तुम्हारा दुश्मन तुम्हें न्यायाधीश के हाथ में न सौंपे और न्यायाधीश अधिकारी के और अधिकारी तुम्हें बंदीगृह में डाल दें.
سَارِعْ إِلَى اسْتِرْضَاءِ خَصْمِكَ وَأَنْتَ مَعَهُ فِي الطَّرِيقِ إِلَى الْمَحْكَمَةِ، قَبْلَ أَنْ يُسَلِّمَكَ الْخَصْمُ إِلَى الْقَاضِي، فَيُسَلِّمَكَ الْقَاضِي إِلَى الشُّرَطِيِّ، فَيُلْقِيَكَ فِي السِّجْنِ.٢٥
26 मैं तुम्हें इस सच से परिचित कराना चाहता हूं कि जब तक तुम एक-एक पैसा लौटा न दो बंदीगृह से छूट न पाओगे.
وَالْحَقَّ أَقُولُ لَكَ إِنَّكَ لَنْ تَخْرُجَ مِنَ السِّجْنِ حَتَّى تُوْفِيَ الْفَلْسَ الأَخِيرَ!٢٦
27 “यह तो तुम सुन ही चुके हो कि यह कहा गया था: ‘व्यभिचार मत करो.’
وَسَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ: لَا تَزْنِ!٢٧
28 किंतु मेरा तुमसे कहना है कि हर एक, जो किसी स्त्री को कामुक दृष्टि से मात्र देख लेता है, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका.
أَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: كُلُّ مَنْ يَنْظُرُ إِلَى امْرَأَةٍ بِقَصْدِ أَنْ يَشْتَهِيَهَا، فَقَدْ زَنَى بِها فِي قَلْبِهِ!٢٨
29 यदि तुम्हारी दायीं आंख तुम्हारे लड़खड़ाने का कारण बनती है तो उसे निकाल फेंको. तुम्हारे सारे शरीर को नर्क में झोंक दिया जाए इससे तो उत्तम यह है कि तुम्हारे शरीर का एक ही अंग नाश हो. (Geenna g1067)
فَإِنْ كَانَتْ عَيْنُكَ الْيُمْنَى فَخّاً لَكَ، فَاقْلَعْهَا وَارْمِهَا عَنْكَ، فَخَيْرٌ لَكَ أَنْ تَفْقِدَ عُضْواً مِنْ أَعْضَائِكَ وَلا يُطْرَحَ جَسَدُكَ كُلُّهُ فِي جَهَنَّمَ! (Geenna g1067)٢٩
30 यदि तुम्हारा दायां हाथ तुम्हें विनाश के गड्ढे में गिराने के लिए उत्तरदायी है तो उसे काटकर फेंक दो. तुम्हारे सारे शरीर को नरक में झोंक दिया जाए इससे तो उत्तम यह है कि तुम्हारे शरीर का एक ही अंग नाश हो. (Geenna g1067)
وَإِنْ كَانَتْ يَدُكَ الْيُمْنَى فَخّاً لَكَ، فَاقْطَعْهَا وَارْمِهَا عَنْكَ، فَخَيْرٌ لَكَ أَنْ تَفْقِدَ عُضْواً مِنْ أَعْضَائِكَ وَلا يُطْرَحَ جَسَدُكَ كُلُّهُ فِي جَهَنَّمَ! (Geenna g1067)٣٠
31 “यह कहा गया था: ‘कोई भी, जो अपनी पत्नी से तलाक चाहे, वह उसे अलग होने का प्रमाण-पत्र दे.’
وَقِيلَ أَيْضاً: مَنْ طَلَّقَ زَوْجَتَهُ، فَلْيُعْطِهَا وَثِيقَةَ طَلاقٍ.٣١
32 किंतु मेरा तुमसे कहना है कि हर एक, जो वैवाहिक व्यभिचार के अलावा किसी अन्य कारण से अपनी पत्नी से तलाक लेता है, वह अपनी पत्नी को व्यभिचार की ओर ढकेलता है और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करता है, व्यभिचार करता है.
أَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: كُلُّ مَنْ طَلَّقَ زَوْجَتَهُ لِغَيْرِ عِلَّةِ الزِّنَى، فَهُوَ يَجْعَلُهَا تَرْتَكِبُ الزِّنَى. وَمَنْ تَزَوَّجَ بِمُطَلَّقَةٍ، فَهُوَ يَرْتَكِبُ الزِّنَى.٣٢
33 “तुम्हें मालूम होगा कि पूर्वजों से कहा गया था: ‘झूठी शपथ मत लो परंतु प्रभु से की गई शपथ को पूरा करो.’
وَسَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ لِلأَقْدَمِينَ: لَا تُخَالِفْ قَسَمَكَ، بَلْ أَوْفِ لِلرَّبِّ مَا نَذَرْتَهُ لَهُ.٣٣
34 किंतु मेरा तुमसे कहना है कि शपथ ही न लो; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है,
أَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: لَا تَحْلِفُوا أَبَداً، لَا بِالسَّمَاءِ لأَنَّهَا عَرْشُ اللهِ،٣٤
35 न पृथ्वी की, क्योंकि वह उनके चरणों की चौकी है, न येरूशलेम की, क्योंकि वह राजाधिराज का नगर है
وَلا بِالأَرْضِ لأَنَّهَا مَوْطِئُ قَدَمَيْهِ، وَلا بِأُورُشَلِيمَ لأَنَّهَا مَدِينَةُ الْمَلِكِ الأَعْظَمِ.٣٥
36 और न ही अपने सिर की, क्योंकि तुम एक भी बाल न तो काला करने में समर्थ हो और न ही सफ़ेद करने में;
وَلا تَحْلِفْ بِرَأْسِكَ لأَنَّكَ لَا تَقْدِرُ أَنْ تَجْعَلَ شَعْرَةً وَاحِدَةً فِيهَا بَيْضَاءَ أَوْ سَوْدَاءَ.٣٦
37 परंतु तुम्हारी बातो में ‘हां’ का मतलब हां और ‘न’ का न हो—जो कुछ इनके अतिरिक्त है, वह उस दुष्ट द्वारा प्रेरित है.
لِيَكُنْ كَلامُكُمْ: نَعَمْ، إِنْ كَانَ نَعَمْ؛ أَوْ: لا، إِنْ كَانَ لا. وَمَا زَادَ عَلَى ذَلِكَ فَهُوَ مِنَ الشِّرِّيرِ.٣٧
38 “तुम्हें यह तो मालूम है कि यह कहा गया था: ‘आंख के लिए आंख तथा दांत के लिए दांत.’
وَسَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ: عَيْنٌ بِعَيْنٍ وَسِنٌّ بِسِنٍّ.٣٨
39 किंतु मेरा तुमसे कहना है कि बुरे व्यक्ति का सामना ही न करो. इसके विपरीत, जो कोई तुम्हारे दायें गाल पर थप्पड़ मारे, दूसरा गाल भी उसकी ओर कर दो.
أَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: لَا تُقَاوِمُوا الشَّرَّ بِمِثْلِهِ، بَلْ مَنْ لَطَمَكَ عَلَى خَدِّكَ الأَيْمَنِ، فَأَدِرْ لَهُ الْخَدَّ الآخَرَ؛٣٩
40 यदि कोई तुम्हें न्यायालय में घसीटकर तुम्हारा कुर्ता लेना चाहे तो उसे अपनी चादर भी दे दो.
وَمَنْ أَرَادَ مُحَاكَمَتَكَ لِيَأْخُذَ ثَوْبَكَ، فَاتْرُكْ لَهُ رِدَاءَكَ أَيْضاً؛٤٠
41 जो कोई तुम्हें एक किलोमीटर चलने के लिए मजबूर करे उसके साथ दो किलोमीटर चले जाओ.
وَمَنْ سَخَّرَكَ أَنْ تَسِيرَ مِيلاً، فَسِرْ مَعَهُ مِيلَيْنِ.٤١
42 उसे, जो तुमसे कुछ मांगे, दे दो और जो तुमसे उधार लेना चाहे, उससे अपना मुख न छिपाओ.
مَنْ طَلَبَ مِنْكَ شَيْئاً، فَأَعْطِهِ. وَمَنْ جَاءَ يَقْتَرِضُ مِنْكَ، فَلا تَرُدَّهُ خَائِباً!٤٢
43 “तुम्हें यह तो मालूम है कि यह कहा गया था: ‘अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने शत्रु से घृणा.’
وَسَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ: تُحِبُّ قَرِيبَكَ وَتُبْغِضُ عَدُوَّكَ.٤٣
44 किंतु मेरा तुमसे कहना है कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना;
أَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: أَحِبُّوا أَعْدَاءَكُمْ، وَبَارِكُوا لاعِنِيكُمْ، وَأَحْسِنُوا مُعَامَلَةَ الَّذِينَ يُبْغِضُونَكُمْ، وَصَلُّوا لأَجْلِ الَّذِينَ يُسِيئُونَ إِلَيْكُمْ وَيَضْطَهِدُونَكُمْ،٤٤
45 कि तुम अपने स्वर्गीय पिता की संतान हो जाओ, क्योंकि वे बुरे और भले दोनों पर ही सूर्योदय करते हैं. इसी प्रकार वे धर्मी तथा अधर्मी, दोनों पर ही वर्षा होने देते हैं.
فَتَكُونُوا أَبْنَاءَ أَبِيكُمُ الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ: فَإِنَّهُ يُشْرِقُ بِشَمْسِهِ عَلَى الأَشْرَارِ وَالصَّالِحِينَ، وَيُمْطِرُ عَلَى الأَبْرَارِ وَغَيْرِ الأَبْرَارِ.٤٥
46 यदि तुम प्रेम मात्र उन्हीं से करते हो, जो तुमसे प्रेम करते हैं तो तुम किस प्रतिफल के अधिकारी हो? क्या चुंगी लेनेवाले भी यही नहीं करते?
فَإِنْ أَحْبَبْتُمُ الَّذِينَ يُحِبُّونَكُمْ، فَأَيَّةُ مُكَافَأَةٍ لَكُمْ؟ أَمَا يَفْعَلُ ذَلِكَ حَتَّى جُبَاةُ الضَّرَائِبِ؟٤٦
47 यदि तुम मात्र अपने बंधुओं का ही नमस्कार करते हो तो तुम अन्यों से अतिरिक्त ऐसा कौन सा सराहनीय काम कर रहे हो? क्या गैर-यहूदी भी ऐसा ही नहीं करते?
وَإِنْ رَحَّبْتُمْ بِإِخْوَانِكُمْ فَقَطْ، فَأَيَّ شَيْءٍ فَائِقٍ لِلْعَادَةِ تَفْعَلُونَ؟ أَمَا يَفْعَلُ ذَلِكَ حَتَّى الْوَثَنِيُّونَ؟٤٧
48 इसलिये ज़रूरी है कि तुम सिद्ध बनो, जैसे तुम्हारे स्वर्गीय पिता सिद्ध हैं.
فَكُونُوا أَنْتُمْ كَامِلِينَ، كَمَا أَنَّ أَبَاكُمُ السَّمَاوِيَّ هُوَ كَامِلٌ!٤٨

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