< मत्ती 15 >
1 तब येरूशलेम से कुछ फ़रीसी और शास्त्री येशु के पास आकर कहने लगे,
Eno mararah Phirasi nyia Hootthe nyootte loong Jerusalem nawa ih Jisu suh thok cheng ra rum taha,
2 “आपके शिष्य पूर्वजों की परंपराओं का उल्लंघन क्यों करते हैं? वे भोजन के पहले हाथ नहीं धोया करते.”
“An liphante loong ah ih sengte sengwah ih kotahe banlam ah mamah lakap et rumha? Neng ih phaksat suh neng lak lati mamet rumha!”
3 येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “अपनी परंपराओं की पूर्ति में आप स्वयं परमेश्वर के आदेशों को क्यों तोड़ते हैं?
Jisu ih ngaakbaat rumta, “Eno bah sen ih Rangte Jengdang ah lakap thang ih sen ih nyootsoot han ah mamet phanhan?
4 परमेश्वर की आज्ञा है, ‘अपने माता-पिता का सम्मान करो’ और वह, जो माता या पिता के प्रति बुरे शब्द बोले, उसे मृत्यु दंड दिया जाए.
Tumeah Rangte ih liita, ‘Sen nuh sen wah ah soongraang et an,’ eno ‘Sen nuh sen wah ah etam mok et an, erah tek haat etjih.’
5 किंतु तुम कहते हो, ‘जो कोई अपने माता-पिता से कहता है, “आपको मुझसे जो कुछ प्राप्त होना था, वह सब अब परमेश्वर को भेंट किया जा चुका है,”
Eno sen ih amet nyoot han mina di nuh awah chosok theng tumjih bah uh eje taat angta, ang abah uh amet liihan ‘Arah Rangte suh kot theng eah,’
6 उसे माता-पिता का सम्मान करना आवश्यक नहीं.’ ऐसा करने के द्वारा अपनी ही परंपराओं को पूरा करने की फिराक में तुम परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ते हो.
nuh awah abah lathaam soongraangke bah uh ese ang ah eah. Emamah ih sen ih nyoot han ah phan suh, Rangte Jengdang ah phaaki han.
7 अरे पाखंडियों! भविष्यवक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी तुम्हारे विषय में ठीक ही है:
Lonoite sen loong! Sen tiit ah Isaia ih mamah ju et punbaat kota!
8 “ये लोग मात्र अपने होंठों से मेरा सम्मान करते हैं, किंतु उनके हृदय मुझसे बहुत दूर हैं.
Rangte ih liiha, ‘Arah miloong ah ih ngah neng tui nawa ih ba soom rumhang, amiimi neng tenthun abah, nga jiin nawa haloh ni dook.
9 व्यर्थ में वे मेरी वंदना करते हैं. उनकी शिक्षा सिर्फ मनुष्यों द्वारा बनाए हुए नियम हैं.”
Nga rangsoom ah neng suh thaangmuh angla, tumeah neng ih mina banlam ah, nga hootthe likhiik ih nyootsoot rumha!’”
10 तब येशु ने भीड़ को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “सुनो और समझो:
Eno Jisu ih miloong ah heh reeni poon ano baat rumta, “Boichaat an no samjat an!
11 वह, जो मनुष्य के मुख में प्रवेश करता है, मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, परंतु उसे अशुद्ध वह करता है, जो उसके मुख से निकलता है.”
Mina ah tui ni phaksah hi rah ih tanyaan siitka; erah nang ih bah mong nawa dong ra hala rah ih ba nyaansiit ha.”
12 तब येशु के शिष्यों ने उनके पास आ उनसे प्रश्न किया, “क्या आप जानते हैं कि आपके इस वचन से फ़रीसी अपमानित हो रहे हैं?”
Eno heliphante loong ah thokrum ano baat rumta, “An jengkhaap asuh Pharisi loong thichoh rumhala ah ejat nih et hu?
13 येशु ने उनसे उत्तर में कहा, “ऐसा हर एक पौधा, जिसे मेरे पिता ने नहीं रोपा है, उखाड़ दिया जाएगा.
Jisu ih ngaakbaatta, “Rangmong nawa seng Wah ih lakiika bangphook loong abah ephiihaat et ah.”
14 उनसे दूर ही रहो. वे तो अंधे मार्गदर्शक हैं. यदि अंधा ही अंधे का मार्गदर्शन करेगा, तो दोनों ही गड्ढे में गिरेंगे!”
“Erah loong asuh nak sootsaam an! Neng ah edook loong dungni edook phansiitte loong; eno edook ih edook ah siit abah wanyi nyi beng nah dat ah.”
15 पेतरॉस ने येशु से विनती की, “प्रभु हमें इसका अर्थ समझाइए.”
Pitar ih baatta, “Erah jengtu rah seng suh huk jangbaat he.”
16 येशु ने कहा, “क्या तुम अब तक समझ नहीं पाए?
Jisu ih baat rumta, “Sen ih amadi uh mihoh loong nang ih maang boh jatkan.
17 क्या तुम्हें यह समझ नहीं आया कि जो कुछ मुख में प्रवेश करता है, वह पेट में जाकर शरीर से बाहर निकल जाता है?
Tajaatjaat ni samjat kan? Tumjih bah uh sen tui ni sak han phaksat ah mong ni wangla eno sak nawa ewe ngaakkaat ela.
18 किंतु जो कुछ मुख से निकलता है, उसका स्रोत होता है मनुष्य का हृदय. वही सब है जो मनुष्य को अशुद्ध करता है,
Eno tui ni tumjaat dong hala erah tenthun nawa ra hala, eno banlam di erah ih sen ah nyaansiit halan.
19 क्योंकि हृदय से ही बुरे विचार, हत्या, व्यभिचार, वेश्यागामी, चोरियां, झूठी गवाही तथा निंदा उपजा करती हैं.
Tumeah sen tenthun nawa ih ba ethih tenthun ah thok hala, erah tenthun ah ih mih tek haat thuk mui halan, mih sanuh sawah damdoh roomjup thuk halan, nyia jaat hoh ethih reeraang ah re thuk halan; mih put, eleek tiit baat, nyia mihoh tiit thetbaat thuk halan.
20 ये ही मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, किंतु हाथ धोए बिना भोजन करने से कोई व्यक्ति अशुद्ध नहीं होता.”
Erah loong ah ih sen ah nyaansaan thuk halan. Enoothong sen suh lakti muh ih nak phaksat an ih baat halan rah ih bah—mina tanyaan siit ran.”
21 तब येशु वहां से निकलकर सोर और सीदोन प्रदेश में एकांतवास करने लगे.
Jisu erah hah dowa dokkhoom ano Tairi nyia Sidoon samnuthung juungkhuung ko ih wangta.
22 वहां एक कनानवासी स्त्री आई और पुकार-पुकारकर कहने लगी, “प्रभु! मुझ पर दया कीजिए. दावीद की संतान! मेरी पुत्री में एक क्रूर दुष्टात्मा समाया हुआ है और वह बहुत पीड़ित है.”
Erah ni tongte Kanan hate minuh heh jiinni thok haano riinghuungta, “Dewid Sah!” “Ngah minchan weehang, Chuupha! Nga sah minusah laathih ih amadi rapne ih chamthuk ha.”
23 किंतु येशु ने उसकी ओर लेश मात्र भी ध्यान नहीं दिया. शिष्य आकर उनसे विनती करने लगे, “प्रभु! उसे विदा कर दीजिए. वह चिल्लाती हुई हमारे पीछे लगी है.”
Eno Jisu ah khaapsiit uh tatoon jengta. Heliphante loong ah heh jiinni wang rum ano heh lasih joh wang rumta, “Erah nuh ah haloh nah phanhaat uh! Heh seng lilih ih roongkhoom haano phaanjaang cheektiila!”
24 येशु ने उत्तर दिया, “मुझे मात्र इस्राएल वंश के खोई हुई भेड़ों के पास ही भेजा गया है.”
Eno Jisu ih ngaakbaat rumta, “Ngah Ijirel noksong dowa emat ela saapsah loong raang ih luulu kaat thuk tahang.”
25 किंतु उस स्त्री ने येशु के पास आ झुकते हुए उनसे विनती की, “प्रभु! मेरी सहायता कीजिए!”
Erah di minuh ah wang haano Jisu lasih jota, “Chuupha, ngah chosok weehang!” heh ih liita.
26 येशु ने उसे उत्तर दिया, “बालकों को परोसा भोजन उनसे लेकर कुत्तों को देना सही नहीं!”
Jisu ih ngaakbaatta, “Noodek phaksat ah nge ano hui loong suh haat kot ah tapunka.”
27 उस स्त्री ने उत्तर दिया, “सच है, प्रभु, किंतु यह भी तो सच है कि स्वामी की मेज़ से गिर जाते टुकड़ों से कुत्ते अपना पेट भर लेते हैं.”
“Erah amiimi, Chuupha,” minuh rah ih ngaakbaatta, “ang abah uh hui loong ih uh neng changte teebun nawa phaksat thaaja arah toonsat kah ih rum ah.”
28 येशु कह उठे, “सराहनीय है तुम्हारा विश्वास! वैसा ही हो, जैसा तुम चाहती हो.” उसी क्षण उसकी पुत्री स्वस्थ हो गई.
Eno Jisu ih ngaakbaatta, “Minuh an tuungmaang ah elong boh ah! An ih tumjaat jam hu erah an raangtaan ih elang eah.” Eno erah pootpoot di heh sah khoisat ah laan de ruh eta.
29 वहां से येशु गलील झील के तट से होते हुए पर्वत पर चले गए और वहां बैठ गए.
Jisu erah dowa dokkhoom ano Galili juungsitum ko ih wang ano kongchoong ni tong wangta.
30 एक बड़ी भीड़ उनके पास आ गयी. जिनमें लंगड़े, अपंग, अंधे, गूंगे और अन्य रोगी थे. लोगों ने इन्हें येशु के चरणों में लिटा दिया और येशु ने उन्हें स्वस्थ कर दिया.
Miloong hantek heh jiinni thok wang rumta eno, edook, ekoong, engong ebaang, hiimuung nyia hephan dowa khoisatte loong ah Jisu jiinni thoksiit rum taha; eno khoisatte thoontang deesiit rumta.
31 गूंगों को बोलते, अपंगों को स्वस्थ होते, लंगड़ों को चलते तथा अंधों को देखते देख भीड़ चकित हो इस्राएल के परमेश्वर का गुणगान करने लगी.
Miloong ah rapne ih paatja rumta egong loong ah dongjeng, hiimuung loong ah de, ekoong ah khoom, eno edook loong ah ih dong tup; ih rum kano ah, erah thoidi Ijirel Rangte rang ah phoongpha rumta.
32 येशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाकर कहा, “मुझे इन लोगों से सहानुभूति है क्योंकि ये मेरे साथ तीन दिन से हैं और इनके पास अब खाने को कुछ नहीं है. मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता—कहीं ये मार्ग में ही मूर्च्छित न हो जाएं.”
Jisu ih heliphante loong ah poon ano baat rumta, “Arah miloong raang ih rapne ih thetthun hang, tumeah neng nga damdi sa jom dowa ih dook roongtong rumhala, eno amadi phaksat theng uh amuh. Neng suh phaksat lakoh thang ih daap haat suh tanookkang, tumeah neng nok nah wang rum adoh lam nah neng leh thaap rum ah.”
33 शिष्यों ने कहा, “इस निर्जन स्थान में इस बड़ी भीड़ की तृप्ति के लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा?”
Heliphante loong ih cheng rumta, “Phisaang hah arah dowa aathan miloong asuh jen khom kot theng ma nawa ma chojam ih?”
34 येशु ने उनसे प्रश्न किया, “कितनी रोटियां हैं तुम्हारे पास?” “सात, और कुछ छोटी मछलियां,” उन्होंने उत्तर दिया.
Jisu ih cheng rumta, “Sen jiinni baanlo mathan je ah?” Neng ih ngaakbaatta, “Baanlo sinet, nyia “ehin hin sah nyah amasah ba je ah.”
35 येशु ने भीड़ को भूमि पर बैठ जाने का निर्देश दिया
Eno Jisu ih miloong ah hah adi pheengtong thuk rumta.
36 और स्वयं उन्होंने सातों रोटियां और मछलियां लेकर उनके लिए परमेश्वर के प्रति आभार प्रकट करने के बाद उन्हें तोड़ा और शिष्यों को देते गए तथा शिष्य भीड़ को.
Eno heh ih baanlo sinet nyia nyah ah toonpi ano, Rangte suh lakookmi liita, eno chepphiit ano heliphante loong suh kota; eno heliphante loong ih miloong asuh phe kokaat rumta.
37 सभी ने खाया और तृप्त हुए और शिष्यों ने तोड़ी गई रोटियों के शेष टुकड़ों को इकट्ठा कर सात बड़े टोकरे भर लिए.
Neng ih neng wok laanphoot ruh ih phaksah rumta. Edak eta phaksat loong ah heliphante loong ih hong sinet et lomtoon rumta.
38 वहां जितनों ने भोजन किया था उनमें स्त्रियों और बालकों के अतिरिक्त पुरुषों ही की संख्या कोई चार हज़ार थी.
Phaksatte ah haajaat baji miwah angta, minuh nyi noodek loong larookweh thang di ah.
39 भीड़ को विदा कर येशु नाव में सवार होकर मगादान क्षेत्र में आए.
Eno Jisu ih miloong ah jen daap haat rum ano, Magadan juungkhuung ko ih kaat suh khoonkhuung ni duungtong kata.