< मत्ती 14 >
1 उसी समय हेरोदेस ने, जो देश के एक चौथाई भाग का राजा था, येशु के विषय में सुना.
At that time Herod the Tetrarch heard of the fame of Jesus,
2 उसने अपने सेवकों से कहा, “यह बपतिस्मा देनेवाला योहन है—मरे हुओं में से जी उठा! यही कारण है कि आश्चर्यकर्म करने का सामर्थ्य इसमें मौजूद है.”
And said to his servants, This is John the Baptist; he hath risen from the dead; and therefore mighty works do show forth themselves in him.
3 उनकी हत्या का कारण थी हेरोदेस के भाई फ़िलिप्पॉस की पत्नी हेरोदिअस. हेरोदेस ने बपतिस्मा देनेवाले योहन को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था
For Herod had laid hold on John, and bound him, and put [him] in prison for the sake of Herodias, his brother Philip's wife.
4 क्योंकि बपतिस्मा देनेवाले योहन उसे यह चेतावनी देते रहते थे, “तुम्हारा हेरोदिअस को अपने पास रखना उचित नहीं है.”
For John had said to him, It is not lawful for thee to have her.
5 हेरोदेस योहन को समाप्त ही कर देना चाहता था किंतु उसे लोगों का भय था क्योंकि लोग उन्हें भविष्यवक्ता मानते थे.
And when he would have put him to death, he feared the multitude, because they counted him as a prophet.
6 हेरोदेस के जन्मदिवस समारोह के अवसर पर हेरोदिअस की पुत्री के नृत्य-प्रदर्शन से हेरोदेस इतना प्रसन्न हुआ कि
But when Herod's birth-day was kept, the daughter of Herodias danced before them, and pleased Herod.
7 उसने उस किशोरी से शपथ खाकर वचन दिया कि वह जो चाहे मांग सकती है.
Upon which he promised with an oath to give her whatever she would ask.
8 अपनी माता के संकेत पर उसने कहा, “मुझे एक थाल में, यहीं, बपतिस्मा देनेवाले योहन का सिर चाहिए.”
And she, being before instructed by her mother, said, Give me here the head of John the Baptist in a dish.
9 यद्यपि इस पर हेरोदेस दुःखित अवश्य हुआ किंतु अपनी शपथ और उपस्थित अतिथियों के कारण उसने इसकी पूर्ति की आज्ञा दे दी.
And the king was sorry: nevertheless for the sake of the oath, and of them who sat with him at table, he commanded [it] to be given [her].
10 उसने किसी को कारागार में भेजकर योहन का सिर कटवा दिया,
And he sent, and beheaded John in the prison.
11 उसे एक थाल में लाकर उस किशोरी को दे दिया गया और उसने उसे ले जाकर अपनी माता को दे दिया.
And his head was brought in a dish, and given to the damsel: and she brought [it] to her mother.
12 योहन के शिष्य आए, उनके शव को ले गए, उनका अंतिम संस्कार कर दिया तथा येशु को इसके विषय में सूचित किया.
And his disciples came, and took up the body, and buried it, and went and told Jesus.
13 इस समाचार को सुन येशु नाव पर सवार होकर वहां से एकांत में चले गए. जब लोगों को यह मालूम हुआ, वे नगरों से निकलकर पैदल ही उनके पीछे चल दिए.
When Jesus heard [of it], he departed thence in a boat, into a desert place apart: and when the people had heard [of it], they followed him on foot out of the cities.
14 तट पर पहुंचने पर येशु ने इस बड़ी भीड़ को देखा और उनका हृदय करुणा से भर गया. उन्होंने उनमें, जो रोगी थे उनको स्वस्थ किया.
And Jesus went forth, and saw a great multitude, and was moved with compassion towards them, and he healed their sick.
15 संध्याकाल उनके शिष्य उनके पास आकर कहने लगे, “यह निर्जन स्थान है और दिन ढल रहा है इसलिये भीड़ को विदा कर दीजिए कि गांवों में जाकर लोग अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.”
And when it was evening, his disciples came to him, saying, This is a desert place, and the time is now past; send the multitude away, that they may go into the villages, and buy themselves victuals.
16 किंतु येशु ने उनसे कहा, “उन्हें विदा करने की कोई ज़रूरत नहीं है—तुम उनके लिए भोजन की व्यवस्था करो!”
But Jesus said to them, They need not depart; give ye them to eat.
17 उन्होंने येशु को बताया कि यहां उनके पास सिर्फ़ पांच रोटियां और दो मछलियां हैं.
And they say to him, We have here but five loaves, and two fishes.
18 येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “उन्हें यहां मेरे पास ले आओ.”
He said, Bring them hither to me.
19 लोगों को घास पर बैठने की आज्ञा देते हुए येशु ने पांचों रोटियां और दो मछलियां अपने हाथों में लेकर स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर भोजन के लिए धन्यवाद देने के बाद रोटियां तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देना प्रारंभ किया और शिष्यों ने भीड़ को.
And he commanded the multitude to sit down on the grass, and took the five loaves, and the two fishes, and looking up to heaven, he blessed, and broke, and gave the loaves to [his] disciples, and the disciples to the multitude.
20 सभी ने भरपेट खाया. शेष रह गए टुकड़े इकट्ठा करने पर बारह टोकरे भर गए.
And they all ate, and were satisfied: and they took up of the fragments that remained twelve baskets full.
21 वहां जितनों ने भोजन किया था उनमें स्त्रियों और बालकों को छोड़कर पुरुषों की संख्या ही कोई पांच हज़ार थी.
And they that had eaten were about five thousand men, besides women and children.
22 इसके बाद येशु ने शिष्यों को तुरंत ही नाव में सवार होने के लिए इस उद्देश्य से विवश किया कि शिष्य उनके पूर्व ही दूसरी ओर पहुंच जाएं, जबकि वह स्वयं भीड़ को विदा करने लगे.
And immediately Jesus constrained his disciples to get into a boat, and to go before him to the other side, while he sent the multitudes away.
23 भीड़ को विदा करने के बाद वह अकेले पर्वत पर चले गए कि वहां जाकर वह एकांत में प्रार्थना करें. यह रात का समय था और वह वहां अकेले थे.
And when he had sent the multitudes away, he ascended a mountain apart to pray: and when the evening was come, he was there alone.
24 विपरीत दिशा में हवा तथा लहरों के थपेड़े खाकर नाव तट से बहुत दूर निकल चुकी थी.
But the boat was now in the midst of the sea, tossed with waves: for the wind was contrary.
25 रात के अंतिम प्रहर में येशु जल सतह पर चलते हुए उनकी ओर आए.
And in the fourth watch of the night Jesus went to them, walking on the sea.
26 उन्हें जल सतह पर चलते देख शिष्य घबराकर कहने लगे, “दुष्टात्मा है यह!” और वे भयभीत हो चिल्लाने लगे.
And when the disciples saw him walking on the sea, they were troubled, saying, It is a spirit; and they cried out for fear.
27 इस पर येशु ने उनसे कहा, “डरो मत. साहस रखो! मैं हूं!”
But immediately Jesus spoke to them, saying, Be of good cheer; it is I; be not afraid.
28 पेतरॉस ने उनसे कहा, “प्रभु! यदि आप ही हैं तो मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं जल पर चलते हुए आपके पास आ जाऊं.”
And Peter answered him and said, Lord, if it is thou, bid me come to thee on the water.
29 “आओ!” येशु ने आज्ञा दी. पेतरॉस नाव से उतरकर जल पर चलते हुए येशु की ओर बढ़ने लगे
And he said, Come. And when Peter had come down out of the boat, he walked on the water, to go to Jesus.
30 किंतु जब उनका ध्यान हवा की गति की ओर गया तो वह भयभीत हो गए और जल में डूबने लगे. वह चिल्लाए, “प्रभु! मुझे बचाइए!”
But when he saw the wind boisterous, he was afraid; and beginning to sink, he cried, saying, Lord, save me.
31 येशु ने तुरंत हाथ बढ़ाकर उन्हें थाम लिया और कहा, “अरे, अल्प विश्वासी! तुमने संदेह क्यों किया?”
And immediately Jesus stretched forth [his] hand, and caught him, and said to him, O thou of little faith, Why didst thou doubt?
32 तब वे दोनों नाव में चढ़ गए और वायु थम गई.
And when they had come into the boat, the wind ceased.
33 नाव में सवार शिष्यों ने यह कहते हुए येशु की वंदना की, “सचमुच आप ही परमेश्वर-पुत्र हैं.”
Then they that were in the boat came and worshiped him, saying, In truth thou art the son of God.
34 झील पार कर वे गन्नेसरत प्रदेश में आ गए.
And when they had gone over, they came into the land of Gennesaret.
35 वहां के निवासियों ने उन्हें पहचान लिया और आस-पास के स्थानों में संदेश भेज दिया. लोग बीमार व्यक्तियों को उनके पास लाने लगे.
And when the men of that place had knowledge of him, they sent out into all the surrounding country, and brought to him all that were diseased;
36 वे येशु से विनती करने लगे, कि वह उन्हें मात्र अपने वस्त्र का छोर ही छू लेने दें. अनेकों ने उनका वस्त्र छुआ और स्वस्थ हो गए.
And besought him that they might only touch the hem of his garment: and as many as touched were restored to health.