< मरकुस 6 >

1 मसीह येशु वहां से अपने गृहनगर आए. उनके शिष्य उनके साथ थे.
ଅନନ୍ତରଂ ସ ତତ୍ସ୍ଥାନାତ୍ ପ୍ରସ୍ଥାଯ ସ୍ୱପ୍ରଦେଶମାଗତଃ ଶିଷ୍ୟାଶ୍ଚ ତତ୍ପଶ୍ଚାଦ୍ ଗତାଃ|
2 शब्बाथ पर वे यहूदी सभागृह में शिक्षा देने लगे. उनको सुन उनमें से अनेक चकित हो कहने लगे. “कहां से प्राप्‍त हुआ इसे यह सब? कहां से प्राप्‍त हुआ है इसे यह बुद्धि कौशल और हाथों से यह अद्भुत काम करने की क्षमता?
ଅଥ ୱିଶ୍ରାମୱାରେ ସତି ସ ଭଜନଗୃହେ ଉପଦେଷ୍ଟୁମାରବ୍ଧୱାନ୍ ତତୋଽନେକେ ଲୋକାସ୍ତତ୍କଥାଂ ଶ୍ରୁତ୍ୱା ୱିସ୍ମିତ୍ୟ ଜଗଦୁଃ, ଅସ୍ୟ ମନୁଜସ୍ୟ ଈଦୃଶୀ ଆଶ୍ଚର୍ୟ୍ୟକ୍ରିଯା କସ୍ମାଜ୍ ଜାତା? ତଥା ସ୍ୱକରାଭ୍ୟାମ୍ ଇତ୍ଥମଦ୍ଭୁତଂ କର୍ମ୍ମ କର୍ତ୍ତାମ୍ ଏତସ୍ମୈ କଥଂ ଜ୍ଞାନଂ ଦତ୍ତମ୍?
3 क्या यह वही बढ़ई नहीं? क्या यह मरियम का पुत्र तथा याकोब, योसेस, यहूदाह तथा शिमओन का भाई नहीं? क्या उसी की बहनें हमारे मध्य नहीं हैं?” इस पर उन्होंने मसीह येशु को अस्वीकार कर दिया.
କିମଯଂ ମରିଯମଃ ପୁତ୍ରସ୍ତଜ୍ଞା ନୋ? କିମଯଂ ଯାକୂବ୍-ଯୋସି-ଯିହୁଦା-ଶିମୋନାଂ ଭ୍ରାତା ନୋ? ଅସ୍ୟ ଭଗିନ୍ୟଃ କିମିହାସ୍ମାଭିଃ ସହ ନୋ? ଇତ୍ଥଂ ତେ ତଦର୍ଥେ ପ୍ରତ୍ୟୂହଂ ଗତାଃ|
4 मसीह येशु ने उनसे कहा, “भविष्यवक्ता हर जगह सम्मानित होता है सिवाय अपने स्वयं के नगर में, अपने संबंधियों तथा परिवार के मध्य.”
ତଦା ଯୀଶୁସ୍ତେଭ୍ୟୋଽକଥଯତ୍ ସ୍ୱଦେଶଂ ସ୍ୱକୁଟୁମ୍ବାନ୍ ସ୍ୱପରିଜନାଂଶ୍ଚ ୱିନା କୁତ୍ରାପି ଭୱିଷ୍ୟଦ୍ୱାଦୀ ଅସତ୍କୃତୋ ନ ଭୱତି|
5 कुछ रोगियों पर हाथ रख उन्हें स्वस्थ करने के अतिरिक्त मसीह येशु वहां कोई अन्य अद्भुत काम न कर सके.
ଅପରଞ୍ଚ ତେଷାମପ୍ରତ୍ୟଯାତ୍ ସ ୱିସ୍ମିତଃ କିଯତାଂ ରୋଗିଣାଂ ୱପୁଃଷୁ ହସ୍ତମ୍ ଅର୍ପଯିତ୍ୱା କେୱଲଂ ତେଷାମାରୋଗ୍ୟକରଣାଦ୍ ଅନ୍ୟତ୍ କିମପି ଚିତ୍ରକାର୍ୟ୍ୟଂ କର୍ତ୍ତାଂ ନ ଶକ୍ତଃ|
6 मसीह येशु को उनके अविश्वास पर बहुत ही आश्चर्य हुआ. मसीह येशु नगर-नगर जाकर शिक्षा देते रहे.
ଅଥ ସ ଚତୁର୍ଦିକ୍ସ୍ଥ ଗ୍ରାମାନ୍ ଭ୍ରମିତ୍ୱା ଉପଦିଷ୍ଟୱାନ୍
7 उन्होंने उन बारहों को बुलाया और उन्हें दुष्टात्माओं पर अधिकार देते हुए उन्हें दो-दो करके भेज दिया.
ଦ୍ୱାଦଶଶିଷ୍ୟାନ୍ ଆହୂଯ ଅମେଧ୍ୟଭୂତାନ୍ ୱଶୀକର୍ତ୍ତାଂ ଶକ୍ତିଂ ଦତ୍ତ୍ୱା ତେଷାଂ ଦ୍ୱୌ ଦ୍ୱୌ ଜନୋ ପ୍ରେଷିତୱାନ୍|
8 मसीह येशु ने उन्हें आदेश दिए, “इस यात्रा में छड़ी के अतिरिक्त अपने साथ कुछ न ले जाना—न भोजन, न झोली और न पैसा.
ପୁନରିତ୍ୟାଦିଶଦ୍ ଯୂଯମ୍ ଏକୈକାଂ ଯଷ୍ଟିଂ ୱିନା ୱସ୍ତ୍ରସଂପୁଟଃ ପୂପଃ କଟିବନ୍ଧେ ତାମ୍ରଖଣ୍ଡଞ୍ଚ ଏଷାଂ କିମପି ମା ଗ୍ରହ୍ଲୀତ,
9 हां, चप्पल तो पहन सकते हो किंतु अतिरिक्त बाहरी वस्त्र नहीं.”
ମାର୍ଗଯାତ୍ରାଯୈ ପାଦେଷୂପାନହୌ ଦତ୍ତ୍ୱା ଦ୍ୱେ ଉତ୍ତରୀଯେ ମା ପରିଧଦ୍ୱ୍ୱଂ|
10 आगे उन्होंने कहा, “जिस घर में भी तुम ठहरो उस नगर से विदा होने तक वहीं रहना.
ଅପରମପ୍ୟୁକ୍ତଂ ତେନ ଯୂଯଂ ଯସ୍ୟାଂ ପୁର୍ୟ୍ୟାଂ ଯସ୍ୟ ନିୱେଶନଂ ପ୍ରୱେକ୍ଷ୍ୟଥ ତାଂ ପୁରୀଂ ଯାୱନ୍ନ ତ୍ୟକ୍ଷ୍ୟଥ ତାୱତ୍ ତନ୍ନିୱେଶନେ ସ୍ଥାସ୍ୟଥ|
11 जहां कहीं तुम्हें स्वीकार न किया जाए या तुम्हारा प्रवचन न सुना जाए, वह स्थान छोड़ते हुए अपने पैरों की धूल वहीं झाड़ देना कि यह उनके विरुद्ध प्रमाण हो.”
ତତ୍ର ଯଦି କେପି ଯୁଷ୍ମାକମାତିଥ୍ୟଂ ନ ୱିଦଧତି ଯୁଷ୍ମାକଂ କଥାଶ୍ଚ ନ ଶୃଣ୍ୱନ୍ତି ତର୍ହି ତତ୍ସ୍ଥାନାତ୍ ପ୍ରସ୍ଥାନସମଯେ ତେଷାଂ ୱିରୁଦ୍ଧଂ ସାକ୍ଷ୍ୟଂ ଦାତୁଂ ସ୍ୱପାଦାନାସ୍ଫାଲ୍ୟ ରଜଃ ସମ୍ପାତଯତ; ଅହଂ ଯୁଷ୍ମାନ୍ ଯଥାର୍ଥଂ ୱଚ୍ମି ୱିଚାରଦିନେ ତନ୍ନଗରସ୍ୟାୱସ୍ଥାତଃ ସିଦୋମାମୋରଯୋ ର୍ନଗରଯୋରୱସ୍ଥା ସହ୍ୟତରା ଭୱିଷ୍ୟତି|
12 शिष्यों ने प्रस्थान किया. वे यह प्रचार करने लगे कि पश्चाताप सभी के लिए ज़रूरी है.
ଅଥ ତେ ଗତ୍ୱା ଲୋକାନାଂ ମନଃପରାୱର୍ତ୍ତନୀଃ କଥା ପ୍ରଚାରିତୱନ୍ତଃ|
13 उन्होंने अनेक दुष्टात्माएं निकाली तथा अनेक रोगियों को तेल मलकर उन्हें स्वस्थ किया.
ଏୱମନେକାନ୍ ଭୂତାଂଶ୍ଚ ତ୍ୟାଜିତୱନ୍ତସ୍ତଥା ତୈଲେନ ମର୍ଦ୍ଦଯିତ୍ୱା ବହୂନ୍ ଜନାନରୋଗାନକାର୍ଷୁଃ|
14 राजा हेरोदेस तक इसका समाचार पहुंच गया क्योंकि मसीह येशु की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी थी. कुछ तो यहां तक कह रहे थे, “बपतिस्मा देनेवाले योहन मरे हुओं में से जीवित हो गए हैं. यही कारण है कि मसीह येशु में यह अद्भुत सामर्थ्य प्रकट है.”
ଇତ୍ଥଂ ତସ୍ୟ ସୁଖ୍ୟାତିଶ୍ଚତୁର୍ଦିଶୋ ୱ୍ୟାପ୍ତା ତଦା ହେରୋଦ୍ ରାଜା ତନ୍ନିଶମ୍ୟ କଥିତୱାନ୍, ଯୋହନ୍ ମଜ୍ଜକଃ ଶ୍ମଶାନାଦ୍ ଉତ୍ଥିତ ଅତୋହେତୋସ୍ତେନ ସର୍ୱ୍ୱା ଏତା ଅଦ୍ଭୁତକ୍ରିଯାଃ ପ୍ରକାଶନ୍ତେ|
15 कुछ कह रहे थे, “वह एलियाह हैं.” कुछ यह भी कहते सुने गए, “वह एक भविष्यवक्ता हैं—अतीत में हुए भविष्यद्वक्ताओं के समान.”
ଅନ୍ୟେଽକଥଯନ୍ ଅଯମ୍ ଏଲିଯଃ, କେପି କଥିତୱନ୍ତ ଏଷ ଭୱିଷ୍ୟଦ୍ୱାଦୀ ଯଦ୍ୱା ଭୱିଷ୍ୟଦ୍ୱାଦିନାଂ ସଦୃଶ ଏକୋଯମ୍|
16 यह सब सुनकर हेरोदेस कहता रहा, “योहन, जिसका मैंने वध करवाया था, जीवित हो गया है.”
କିନ୍ତୁ ହେରୋଦ୍ ଇତ୍ୟାକର୍ଣ୍ୟ ଭାଷିତୱାନ୍ ଯସ୍ୟାହଂ ଶିରଶ୍ଛିନ୍ନୱାନ୍ ସ ଏୱ ଯୋହନଯଂ ସ ଶ୍ମଶାନାଦୁଦତିଷ୍ଠତ୍|
17 स्वयं हेरोदेस ने योहन को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था क्योंकि उसने अपने भाई फ़िलिप्पॉस की पत्नी हेरोदिअस से विवाह कर लिया था.
ପୂର୍ୱ୍ୱଂ ସ୍ୱଭ୍ରାତୁଃ ଫିଲିପସ୍ୟ ପତ୍ନ୍ୟା ଉଦ୍ୱାହଂ କୃତୱନ୍ତଂ ହେରୋଦଂ ଯୋହନୱାଦୀତ୍ ସ୍ୱଭାତୃୱଧୂ ର୍ନ ୱିୱାହ୍ୟା|
18 योहन हेरोदेस को याद दिलाते रहते थे, “तुम्हारे लिए अपने भाई की पत्नी को रख लेना व्यवस्था के अनुसार नहीं है.” इसलिये
ଅତଃ କାରଣାତ୍ ହେରୋଦ୍ ଲୋକଂ ପ୍ରହିତ୍ୟ ଯୋହନଂ ଧୃତ୍ୱା ବନ୍ଧନାଲଯେ ବଦ୍ଧୱାନ୍|
19 हेरोदियास के मन में योहन के लिए शत्रुभाव पनप रहा था. वह उनका वध करवाना चाहती थी किंतु उससे कुछ नहीं हो पा रहा था.
ହେରୋଦିଯା ତସ୍ମୈ ଯୋହନେ ପ୍ରକୁପ୍ୟ ତଂ ହନ୍ତୁମ୍ ଐଚ୍ଛତ୍ କିନ୍ତୁ ନ ଶକ୍ତା,
20 हेरोदेस योहन से डरता था क्योंकि वह जानता था कि योहन एक धर्मी और पवित्र व्यक्ति हैं. हेरोदेस ने योहन को सुरक्षित रखा था. योहन के प्रवचन सुनकर वह घबराता तो था फिर भी उसे उनके प्रवचन सुनना बहुत प्रिय था.
ଯସ୍ମାଦ୍ ହେରୋଦ୍ ତଂ ଧାର୍ମ୍ମିକଂ ସତ୍ପୁରୁଷଞ୍ଚ ଜ୍ଞାତ୍ୱା ସମ୍ମନ୍ୟ ରକ୍ଷିତୱାନ୍; ତତ୍କଥାଂ ଶ୍ରୁତ୍ୱା ତଦନୁସାରେଣ ବହୂନି କର୍ମ୍ମାଣି କୃତୱାନ୍ ହୃଷ୍ଟମନାସ୍ତଦୁପଦେଶଂ ଶ୍ରୁତୱାଂଶ୍ଚ|
21 आखिरकार हेरोदिअस को वह मौका प्राप्‍त हो ही गया: अपने जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हेरोदेस ने अपने सभी उच्च अधिकारियों, सेनापतियों और गलील प्रदेश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भोज पर आमंत्रित किया.
କିନ୍ତୁ ହେରୋଦ୍ ଯଦା ସ୍ୱଜନ୍ମଦିନେ ପ୍ରଧାନଲୋକେଭ୍ୟଃ ସେନାନୀଭ୍ୟଶ୍ଚ ଗାଲୀଲ୍ପ୍ରଦେଶୀଯଶ୍ରେଷ୍ଠଲୋକେଭ୍ୟଶ୍ଚ ରାତ୍ରୌ ଭୋଜ୍ୟମେକଂ କୃତୱାନ୍
22 इस अवसर पर हेरोदिअस की पुत्री ने वहां अपने नृत्य के द्वारा हेरोदेस और अतिथियों को मोह लिया. राजा ने पुत्री से कहा. “मुझसे चाहे जो मांग लो, मैं दूंगा.”
ତସ୍ମିନ୍ ଶୁଭଦିନେ ହେରୋଦିଯାଯାଃ କନ୍ୟା ସମେତ୍ୟ ତେଷାଂ ସମକ୍ଷଂ ସଂନୃତ୍ୟ ହେରୋଦସ୍ତେନ ସହୋପୱିଷ୍ଟାନାଞ୍ଚ ତୋଷମଜୀଜନତ୍ ତତା ନୃପଃ କନ୍ୟାମାହ ସ୍ମ ମତ୍ତୋ ଯଦ୍ ଯାଚସେ ତଦେୱ ତୁଭ୍ୟଂ ଦାସ୍ୟେ|
23 राजा ने शपथ खाते हुए कहा, “तुम जो कुछ मांगोगी, मैं तुम्हें दूंगा—चाहे वह मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो.”
ଶପଥଂ କୃତ୍ୱାକଥଯତ୍ ଚେଦ୍ ରାଜ୍ୟାର୍ଦ୍ଧମପି ଯାଚସେ ତଦପି ତୁଭ୍ୟଂ ଦାସ୍ୟେ|
24 अपनी मां के पास जाकर उसने पूछा, “क्या मांगूं?” “बपतिस्मा देनेवाले योहन का सिर,” उसने कहा.
ତତଃ ସା ବହି ର୍ଗତ୍ୱା ସ୍ୱମାତରଂ ପପ୍ରଚ୍ଛ କିମହଂ ଯାଚିଷ୍ୟେ? ତଦା ସାକଥଯତ୍ ଯୋହନୋ ମଜ୍ଜକସ୍ୟ ଶିରଃ|
25 पुत्री ने तुरंत जाकर राजा से कहा, “मैं चाहती हूं कि आप मुझे इसी समय एक थाल में बपतिस्मा देनेवाले योहन का सिर लाकर दें.”
ଅଥ ତୂର୍ଣଂ ଭୂପସମୀପମ୍ ଏତ୍ୟ ଯାଚମାନାୱଦତ୍ କ୍ଷଣେସ୍ମିନ୍ ଯୋହନୋ ମଜ୍ଜକସ୍ୟ ଶିରଃ ପାତ୍ରେ ନିଧାଯ ଦେହି, ଏତଦ୍ ଯାଚେଽହଂ|
26 हालांकि राजा को इससे गहरा दुःख तो हुआ किंतु आमंत्रित अतिथियों के सामने ली गई अपनी शपथ के कारण वह अस्वीकार न कर सका.
ତସ୍ମାତ୍ ଭୂପୋଽତିଦୁଃଖିତଃ, ତଥାପି ସ୍ୱଶପଥସ୍ୟ ସହଭୋଜିନାଞ୍ଚାନୁରୋଧାତ୍ ତଦନଙ୍ଗୀକର୍ତ୍ତୁଂ ନ ଶକ୍ତଃ|
27 तत्काल राजा ने एक जल्लाद को बुलवाया और योहन का सिर ले आने की आज्ञा दी. वह गया, कारागार में योहन का वध किया
ତତ୍କ୍ଷଣଂ ରାଜା ଘାତକଂ ପ୍ରେଷ୍ୟ ତସ୍ୟ ଶିର ଆନେତୁମାଦିଷ୍ଟୱାନ୍|
28 और उनका सिर एक बर्तन में रखकर पुत्री को सौंप दिया और उसने जाकर अपनी माता को सौंप दिया.
ତତଃ ସ କାରାଗାରଂ ଗତ୍ୱା ତଚ୍ଛିରଶ୍ଛିତ୍ୱା ପାତ୍ରେ ନିଧାଯାନୀଯ ତସ୍ୟୈ କନ୍ୟାଯୈ ଦତ୍ତୱାନ୍ କନ୍ୟା ଚ ସ୍ୱମାତ୍ରେ ଦଦୌ|
29 जब योहन के शिष्यों को इसका समाचार प्राप्‍त हुआ, वे आए और योहन के शव को ले जाकर एक कब्र में रख दिया.
ଅନନତରଂ ଯୋହନଃ ଶିଷ୍ୟାସ୍ତଦ୍ୱାର୍ତ୍ତାଂ ପ୍ରାପ୍ୟାଗତ୍ୟ ତସ୍ୟ କୁଣପଂ ଶ୍ମଶାନେଽସ୍ଥାପଯନ୍|
30 प्रेरित लौटकर मसीह येशु के पास आए और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों और दी गई शिक्षा का विवरण दिया.
ଅଥ ପ୍ରେଷିତା ଯୀଶୋଃ ସନ୍ନିଧୌ ମିଲିତା ଯଦ୍ ଯଚ୍ ଚକ୍ରୁଃ ଶିକ୍ଷଯାମାସୁଶ୍ଚ ତତ୍ସର୍ୱ୍ୱୱାର୍ତ୍ତାସ୍ତସ୍ମୈ କଥିତୱନ୍ତଃ|
31 मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ, कुछ समय के लिए कहीं एकांत में चलें और विश्राम करें,” क्योंकि अनेक लोग आ जा रहे थे और उन्हें भोजन तक का अवसर प्राप्‍त न हो सका था.
ସ ତାନୁୱାଚ ଯୂଯଂ ୱିଜନସ୍ଥାନଂ ଗତ୍ୱା ୱିଶ୍ରାମ୍ୟତ ଯତସ୍ତତ୍ସନ୍ନିଧୌ ବହୁଲୋକାନାଂ ସମାଗମାତ୍ ତେ ଭୋକ୍ତୁଂ ନାୱକାଶଂ ପ୍ରାପ୍ତାଃ|
32 वे चुपचाप नाव पर सवार हो एक सुनसान जगह पर चले गए.
ତତସ୍ତେ ନାୱା ୱିଜନସ୍ଥାନଂ ଗୁପ୍ତଂ ଗଗ୍ମୁଃ|
33 लोगों ने उन्हें वहां जाते हुए देख लिया. अनेकों ने यह भी पहचान लिया कि वे कौन थे. आस-पास के नगरों से अनेक लोग दौड़ते हुए उनसे पहले ही उस स्थान पर जा पहुंचे.
ତତୋ ଲୋକନିୱହସ୍ତେଷାଂ ସ୍ଥାନାନ୍ତରଯାନଂ ଦଦର୍ଶ, ଅନେକେ ତଂ ପରିଚିତ୍ୟ ନାନାପୁରେଭ୍ୟଃ ପଦୈର୍ୱ୍ରଜିତ୍ୱା ଜୱେନ ତୈଷାମଗ୍ରେ ଯୀଶୋଃ ସମୀପ ଉପତସ୍ଥୁଃ|
34 जब मसीह येशु तट पर पहुंचे, उन्होंने वहां एक बड़ी भीड़ को इकट्ठा देखा. उसे देख वह दुःखी हो उठे क्योंकि उन्हें भीड़ बिना चरवाहे की भेड़ों के समान लगी. वहां मसीह येशु उन्हें अनेक विषयों पर शिक्षा देने लगे.
ତଦା ଯୀଶୁ ର୍ନାୱୋ ବହିର୍ଗତ୍ୟ ଲୋକାରଣ୍ୟାନୀଂ ଦୃଷ୍ଟ୍ୱା ତେଷୁ କରୁଣାଂ କୃତୱାନ୍ ଯତସ୍ତେଽରକ୍ଷକମେଷା ଇୱାସନ୍ ତଦା ସ ତାନ ନାନାପ୍ରସଙ୍ଗାନ୍ ଉପଦିଷ୍ଟୱାନ୍|
35 दिन ढल रहा था. शिष्यों ने मसीह येशु के पास आकर उनसे कहा, “यह सुनसान जगह है और दिन ढला जा रहा है.
ଅଥ ଦିୱାନ୍ତେ ସତି ଶିଷ୍ୟା ଏତ୍ୟ ଯୀଶୁମୂଚିରେ, ଇଦଂ ୱିଜନସ୍ଥାନଂ ଦିନଞ୍ଚାୱସନ୍ନଂ|
36 अब आप इन्हें विदा कर दीजिए कि ये पास के गांवों में जाकर अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.”
ଲୋକାନାଂ କିମପି ଖାଦ୍ୟଂ ନାସ୍ତି, ଅତଶ୍ଚତୁର୍ଦିକ୍ଷୁ ଗ୍ରାମାନ୍ ଗନ୍ତୁଂ ଭୋଜ୍ୟଦ୍ରୱ୍ୟାଣି କ୍ରେତୁଞ୍ଚ ଭୱାନ୍ ତାନ୍ ୱିସୃଜତୁ|
37 किंतु मसीह येशु ने उन्हीं से कहा, “तुम ही दो इन्हें भोजन!” शिष्यों ने इसके उत्तर में कहा, “इतनों के भोजन में कम से कम दो सौ दीनार लगेंगे. क्या आप चाहते हैं कि हम जाकर इनके लिए इतने का भोजन ले आएं?”
ତଦା ସ ତାନୁୱାଚ ଯୂଯମେୱ ତାନ୍ ଭୋଜଯତ; ତତସ୍ତେ ଜଗଦୁ ର୍ୱଯଂ ଗତ୍ୱା ଦ୍ୱିଶତସଂଖ୍ୟକୈ ର୍ମୁଦ୍ରାପାଦୈଃ ପୂପାନ୍ କ୍ରୀତ୍ୱା କିଂ ତାନ୍ ଭୋଜଯିଷ୍ୟାମଃ?
38 मसीह येशु ने उनसे पूछा, “कितनी रोटियां हैं यहां? जाओ, पता लगाओ!” उन्होंने पता लगाकर उत्तर दिया, “पांच—और इनके अलावा दो मछलियां भी.”
ତଦା ସ ତାନ୍ ପୃଷ୍ଠୱାନ୍ ଯୁଷ୍ମାକଂ ସନ୍ନିଧୌ କତି ପୂପା ଆସତେ? ଗତ୍ୱା ପଶ୍ୟତ; ତତସ୍ତେ ଦୃଷ୍ଟ୍ୱା ତମୱଦନ୍ ପଞ୍ଚ ପୂପା ଦ୍ୱୌ ମତ୍ସ୍ୟୌ ଚ ସନ୍ତି|
39 मसीह येशु ने सभी लोगों को झुंड़ों में हरी घास पर बैठ जाने की आज्ञा दी.
ତଦା ସ ଲୋକାନ୍ ଶସ୍ପୋପରି ପଂକ୍ତିଭିରୁପୱେଶଯିତୁମ୍ ଆଦିଷ୍ଟୱାନ୍,
40 वे सभी सौ-सौ और पचास-पचास के झुंडों में बैठ गए.
ତତସ୍ତେ ଶତଂ ଶତଂ ଜନାଃ ପଞ୍ଚାଶତ୍ ପଞ୍ଚାଶଜ୍ଜନାଶ୍ଚ ପଂକ୍ତିଭି ର୍ଭୁୱି ସମୁପୱିୱିଶୁଃ|
41 मसीह येशु ने वे पांच रोटियां और दो मछलियां लेकर स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर उनके लिए धन्यवाद प्रकट किया. तब वह रोटियां तोड़ते और शिष्यों को देते गए कि वे उन्हें भीड़ में बांटते जाएं. इसके साथ उन्होंने वे दो मछलियां भी उनमें बांट दीं.
ଅଥ ସ ତାନ୍ ପଞ୍ଚପୂପାନ୍ ମତ୍ସ୍ୟଦ୍ୱଯଞ୍ଚ ଧୃତ୍ୱା ସ୍ୱର୍ଗଂ ପଶ୍ୟନ୍ ଈଶ୍ୱରଗୁଣାନ୍ ଅନ୍ୱକୀର୍ତ୍ତଯତ୍ ତାନ୍ ପୂପାନ୍ ଭଂକ୍ତ୍ୱା ଲୋକେଭ୍ୟଃ ପରିୱେଷଯିତୁଂ ଶିଷ୍ୟେଭ୍ୟୋ ଦତ୍ତୱାନ୍ ଦ୍ୱା ମତ୍ସ୍ୟୌ ଚ ୱିଭଜ୍ୟ ସର୍ୱ୍ୱେଭ୍ୟୋ ଦତ୍ତୱାନ୍|
42 सभी ने भरपेट खाया.
ତତଃ ସର୍ୱ୍ୱେ ଭୁକ୍ତ୍ୱାତୃପ୍ୟନ୍|
43 शिष्यों ने शेष रह गए रोटियों तथा मछलियों के टुकड़े इकट्ठा किए तो बारह टोकरे भर गए.
ଅନନ୍ତରଂ ଶିଷ୍ୟା ଅୱଶିଷ୍ଟୈଃ ପୂପୈ ର୍ମତ୍ସ୍ୟୈଶ୍ଚ ପୂର୍ଣାନ୍ ଦ୍ୱଦଶ ଡଲ୍ଲକାନ୍ ଜଗୃହୁଃ|
44 जिन्होंने भोजन किया था, उनमें पुरुष ही पांच हज़ार थे.
ତେ ଭୋକ୍ତାରଃ ପ୍ରାଯଃ ପଞ୍ଚ ସହସ୍ରାଣି ପୁରୁଷା ଆସନ୍|
45 तुरंत ही मसीह येशु ने शिष्यों को जबरन नाव पर बैठा उन्हें अपने से पहले दूसरे किनारे पर स्थित नगर बैथसैदा पहुंचने के लिए विदा किया—वह स्वयं भीड़ को विदा कर रहे थे.
ଅଥ ସ ଲୋକାନ୍ ୱିସୃଜନ୍ନେୱ ନାୱମାରୋଢୁଂ ସ୍ୱସ୍ମାଦଗ୍ରେ ପାରେ ବୈତ୍ସୈଦାପୁରଂ ଯାତୁଞ୍ଚ ଶ୍ଷ୍ୟିନ୍ ୱାଢମାଦିଷ୍ଟୱାନ୍|
46 उन्हें विदा करने के बाद वह प्रार्थना के लिए पर्वत पर चले गए.
ତଦା ସ ସର୍ୱ୍ୱାନ୍ ୱିସୃଜ୍ୟ ପ୍ରାର୍ଥଯିତୁଂ ପର୍ୱ୍ୱତଂ ଗତଃ|
47 रात हो चुकी थी. नाव झील के मध्य में थी. मसीह येशु किनारे पर अकेले थे.
ତତଃ ସନ୍ଧ୍ୟାଯାଂ ସତ୍ୟାଂ ନୌଃ ସିନ୍ଧୁମଧ୍ୟ ଉପସ୍ଥିତା କିନ୍ତୁ ସ ଏକାକୀ ସ୍ଥଲେ ସ୍ଥିତଃ|
48 मसीह येशु देख रहे थे कि हवा उल्टी दिशा में चलने के कारण शिष्यों को नाव खेने में कठिन प्रयास करना पड़ रहा था. रात के चौथे प्रहर मसीह येशु झील की सतह पर चलते हुए उनके पास जा पहुंचे और ऐसा अहसास हुआ कि वह उनसे आगे निकलना चाह रहे थे.
ଅଥ ସମ୍ମୁଖୱାତୱହନାତ୍ ଶିଷ୍ୟା ନାୱଂ ୱାହଯିତ୍ୱା ପରିଶ୍ରାନ୍ତା ଇତି ଜ୍ଞାତ୍ୱା ସ ନିଶାଚତୁର୍ଥଯାମେ ସିନ୍ଧୂପରି ପଦ୍ଭ୍ୟାଂ ୱ୍ରଜନ୍ ତେଷାଂ ସମୀପମେତ୍ୟ ତେଷାମଗ୍ରେ ଯାତୁମ୍ ଉଦ୍ୟତଃ|
49 उन्हें जल सतह पर चलता देख शिष्य समझे कि कोई दुष्टात्मा है और वे चिल्ला उठे
କିନ୍ତୁ ଶିଷ୍ୟାଃ ସିନ୍ଧୂପରି ତଂ ୱ୍ରଜନ୍ତଂ ଦୃଷ୍ଟ୍ୱା ଭୂତମନୁମାଯ ରୁରୁୱୁଃ,
50 क्योंकि उन्हें देख वे भयभीत हो गए थे. इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं हूं! मत डरो! साहस मत छोड़ो!”
ଯତଃ ସର୍ୱ୍ୱେ ତଂ ଦୃଷ୍ଟ୍ୱା ୱ୍ୟାକୁଲିତାଃ| ଅତଏୱ ଯୀଶୁସ୍ତତ୍କ୍ଷଣଂ ତୈଃ ସହାଲପ୍ୟ କଥିତୱାନ୍, ସୁସ୍ଥିରା ଭୂତ, ଅଯମହଂ ମା ଭୈଷ୍ଟ|
51 यह कहते हुए वह उनकी नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. शिष्य इससे अत्यंत चकित रह गए.
ଅଥ ନୌକାମାରୁହ୍ୟ ତସ୍ମିନ୍ ତେଷାଂ ସନ୍ନିଧିଂ ଗତେ ୱାତୋ ନିୱୃତ୍ତଃ; ତସ୍ମାତ୍ତେ ମନଃସୁ ୱିସ୍ମିତା ଆଶ୍ଚର୍ୟ୍ୟଂ ମେନିରେ|
52 रोटियों की घटना अब तक उनकी समझ से परे थी. उनके हृदय निर्बुद्धि जैसे हो गए थे.
ଯତସ୍ତେ ମନସାଂ କାଠିନ୍ୟାତ୍ ତତ୍ ପୂପୀଯମ୍ ଆଶ୍ଚର୍ୟ୍ୟଂ କର୍ମ୍ମ ନ ୱିୱିକ୍ତୱନ୍ତଃ|
53 झील पार कर वे गन्‍नेसरत प्रदेश में पहुंच गए. उन्होंने नाव वहीं लगा दी.
ଅଥ ତେ ପାରଂ ଗତ୍ୱା ଗିନେଷରତ୍ପ୍ରଦେଶମେତ୍ୟ ତଟ ଉପସ୍ଥିତାଃ|
54 मसीह येशु के नाव से उतरते ही लोगों ने उन्हें पहचान लिया.
ତେଷୁ ନୌକାତୋ ବହିର୍ଗତେଷୁ ତତ୍ପ୍ରଦେଶୀଯା ଲୋକାସ୍ତଂ ପରିଚିତ୍ୟ
55 जहां कहीं भी मसीह येशु होते थे, लोग दौड़-दौड़ कर बिछौनों पर रोगियों को वहां ले आते थे.
ଚତୁର୍ଦିକ୍ଷୁ ଧାୱନ୍ତୋ ଯତ୍ର ଯତ୍ର ରୋଗିଣୋ ନରା ଆସନ୍ ତାନ୍ ସର୍ୱ୍ୱାନ ଖଟ୍ୱୋପରି ନିଧାଯ ଯତ୍ର କୁତ୍ରଚିତ୍ ତଦ୍ୱାର୍ତ୍ତାଂ ପ୍ରାପୁଃ ତତ୍ ସ୍ଥାନମ୍ ଆନେତୁମ୍ ଆରେଭିରେ|
56 मसीह येशु जिस किसी नगर, गांव या बाहरी क्षेत्र में प्रवेश करते थे, लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थलों में लिटा कर उनसे विनती करते थे कि उन्हें उनके वस्त्र के छोर का स्पर्श मात्र ही कर लेने दें. जो कोई उनके वस्त्र का स्पर्श कर लेता था, स्वस्थ हो जाता था.
ତଥା ଯତ୍ର ଯତ୍ର ଗ୍ରାମେ ଯତ୍ର ଯତ୍ର ପୁରେ ଯତ୍ର ଯତ୍ର ପଲ୍ଲ୍ୟାଞ୍ଚ ତେନ ପ୍ରୱେଶଃ କୃତସ୍ତଦ୍ୱର୍ତ୍ମମଧ୍ୟେ ଲୋକାଃ ପୀଡିତାନ୍ ସ୍ଥାପଯିତ୍ୱା ତସ୍ୟ ଚେଲଗ୍ରନ୍ଥିମାତ୍ରଂ ସ୍ପ୍ରଷ୍ଟୁମ୍ ତେଷାମର୍ଥେ ତଦନୁଜ୍ଞାଂ ପ୍ରାର୍ଥଯନ୍ତଃ ଯାୱନ୍ତୋ ଲୋକାଃ ପସ୍ପୃଶୁସ୍ତାୱନ୍ତ ଏୱ ଗଦାନ୍ମୁକ୍ତାଃ|

< मरकुस 6 >