< लूका 9 >
1 प्रभु येशु ने बारहों शिष्यों को बुलाकर उन्हें दुष्टात्माओं को निकालने तथा रोग दूर करने का सामर्थ्य और अधिकार प्रदान किया
tataḥ paraṁ sa dvādaśaśiṣyānāhūya bhūtān tyājayituṁ rōgān pratikarttuñca tēbhyaḥ śaktimādhipatyañca dadau|
2 तथा उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने तथा रोगियों को स्वस्थ करने के लिए भेज दिया.
aparañca īśvarīyarājyasya susaṁvādaṁ prakāśayitum rōgiṇāmārōgyaṁ karttuñca prēraṇakālē tān jagāda|
3 प्रभु येशु ने उन्हें निर्देश दिए, “यात्रा के लिए अपने साथ कुछ न रखना—न छड़ी, न झोला, न रोटी, न पैसा और न ही कोई बाहरी वस्त्र.
yātrārthaṁ yaṣṭi rvastrapuṭakaṁ bhakṣyaṁ mudrā dvitīyavastram, ēṣāṁ kimapi mā gr̥hlīta|
4 तुम जिस किसी घर में मेहमान होकर रहो, नगर से विदा होने तक उसी घर के मेहमान बने रहना.
yūyañca yannivēśanaṁ praviśatha nagaratyāgaparyyanataṁ tannivēśanē tiṣṭhata|
5 यदि लोग तुम्हें स्वीकार न करें तब उस नगर से बाहर जाते हुए अपने पैरों की धूल झाड़ देना कि यह उनके विरुद्ध गवाही हो.”
tatra yadi kasyacit purasya lōkā yuṣmākamātithyaṁ na kurvvanti tarhi tasmānnagarād gamanakālē tēṣāṁ viruddhaṁ sākṣyārthaṁ yuṣmākaṁ padadhūlīḥ sampātayata|
6 वे चल दिए तथा सुसमाचार का प्रचार करते और रोगियों को स्वस्थ करते हुए सब जगह यात्रा करते रहे.
atha tē prasthāya sarvvatra susaṁvādaṁ pracārayituṁ pīḍitān svasthān karttuñca grāmēṣu bhramituṁ prārēbhirē|
7 जो कुछ हो रहा था उसके विषय में हेरोदेस ने भी सुना और वह अत्यंत घबरा गया क्योंकि कुछ लोग कह रहे थे कि बपतिस्मा देनेवाले योहन मरे हुओं में से दोबारा जीवित हो गए हैं.
ētarhi hērōd rājā yīśōḥ sarvvakarmmaṇāṁ vārttāṁ śrutvā bhr̥śamudvivijē
8 कुछ अन्य कह रहे थे कि एलियाह प्रकट हुए हैं तथा कुछ अन्यों ने दावा किया कि प्राचीन काल के भविष्यद्वक्ताओं में से कोई दोबारा जीवित हो गया है
yataḥ kēcidūcuryōhan śmaśānādudatiṣṭhat| kēcidūcuḥ, ēliyō darśanaṁ dattavān; ēvamanyalōkā ūcuḥ pūrvvīyaḥ kaścid bhaviṣyadvādī samutthitaḥ|
9 किंतु हेरोदेस ने विरोध किया, “योहन का सिर तो स्वयं मैंने उड़वाया था, तब यह कौन है, जिसके विषय में मैं ये सब सुन रहा हूं?” इसलिये हेरोदेस प्रभु येशु से मिलने का प्रयास करने लगा.
kintu hērōduvāca yōhanaḥ śirō'hamachinadam idānīṁ yasyēdr̥kkarmmaṇāṁ vārttāṁ prāpnōmi sa kaḥ? atha sa taṁ draṣṭum aicchat|
10 अपनी यात्रा से लौटकर प्रेरितों ने प्रभु येशु के सामने अपने-अपने कामों का बखान किया. तब प्रभु येशु उन्हें लेकर चुपचाप बैथसैदा नामक नगर चले गए.
anantaraṁ prēritāḥ pratyāgatya yāni yāni karmmāṇi cakrustāni yīśavē kathayāmāsuḥ tataḥ sa tān baitsaidānāmakanagarasya vijanaṁ sthānaṁ nītvā guptaṁ jagāma|
11 किंतु लोगों को इसके विषय में मालूम हो गया और वे वहां पहुंच गए. प्रभु येशु ने सहर्ष उनका स्वागत किया और उन्हें परमेश्वर के राज्य के विषय में शिक्षा दी तथा उन रोगियों को चंगा किया, जिन्हें इसकी ज़रूरत थी.
paścāl lōkāstad viditvā tasya paścād yayuḥ; tataḥ sa tān nayan īśvarīyarājyasya prasaṅgamuktavān, yēṣāṁ cikitsayā prayōjanam āsīt tān svasthān cakāra ca|
12 जब दिन ढलने पर आया तब बारहों प्रेरितों ने प्रभु येशु के पास आकर उन्हें सुझाव दिया, “भीड़ को विदा कर दीजिए कि वे पास के गांवों में जाकर अपने ठहरने और भोजन की व्यवस्था कर सकें क्योंकि यह सुनसान जगह है.”
aparañca divāvasannē sati dvādaśaśiṣyā yīśōrantikam ētya kathayāmāsuḥ, vayamatra prāntarasthānē tiṣṭhāmaḥ, tatō nagarāṇi grāmāṇi gatvā vāsasthānāni prāpya bhakṣyadravyāṇi krētuṁ jananivahaṁ bhavān visr̥jatu|
13 इस पर प्रभु येशु ने उनसे कहा, “तुम्हीं करो इनके भोजन की व्यवस्था!” उन्होंने इसके उत्तर में कहा, “हमारे पास तो केवल पांच रोटियां तथा दो मछलियां ही हैं; हां, यदि हम जाकर इन सबके लिए भोजन मोल ले आएं तो यह संभव है.”
tadā sa uvāca, yūyamēva tān bhējayadhvaṁ; tatastē prōcurasmākaṁ nikaṭē kēvalaṁ pañca pūpā dvau matsyau ca vidyantē, ataēva sthānāntaram itvā nimittamētēṣāṁ bhakṣyadravyēṣu na krītēṣu na bhavati|
14 इस भीड़ में पुरुष ही लगभग पांच हज़ार थे. प्रभु येशु ने शिष्यों को आदेश दिया, “इन्हें लगभग पचास-पचास के झुंड में बैठा दो.”
tatra prāyēṇa pañcasahasrāṇi puruṣā āsan|
15 शिष्यों ने उन सबको भोजन के लिए बैठा दिया.
tadā sa śiṣyān jagāda pañcāśat pañcāśajjanaiḥ paṁktīkr̥tya tānupavēśayata, tasmāt tē tadanusārēṇa sarvvalōkānupavēśayāpāsuḥ|
16 पांचों रोटियां तथा दोनों मछलियां अपने हाथ में लेकर प्रभु येशु ने स्वर्ग की ओर दृष्टि करते हुए उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद किया तथा उन्हें तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गए कि वे लोगों में इनको बांटते जाएं.
tataḥ sa tān pañca pūpān mīnadvayañca gr̥hītvā svargaṁ vilōkyēśvaraguṇān kīrttayāñcakrē bhaṅktā ca lōkēbhyaḥ parivēṣaṇārthaṁ śiṣyēṣu samarpayāmbabhūva|
17 सभी ने भरपेट खाया. शेष रह गए टुकड़े इकट्ठा करने पर बारह टोकरे भर गए.
tataḥ sarvvē bhuktvā tr̥ptiṁ gatā avaśiṣṭānāñca dvādaśa ḍallakān saṁjagr̥huḥ|
18 एक समय, जब प्रभु येशु एकांत में प्रार्थना कर रहे थे तथा उनके शिष्य भी उनके साथ थे, प्रभु येशु ने शिष्यों से प्रश्न किया, “लोग क्या कहते हैं वे मेरे विषय में; कि मैं कौन हूं?”
athaikadā nirjanē śiṣyaiḥ saha prārthanākālē tān papraccha, lōkā māṁ kaṁ vadanti?
19 उन्होंने उत्तर दिया, “कुछ कहते हैं बपतिस्मा देनेवाला योहन; कुछ एलियाह; और कुछ अन्य कहते हैं पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से एक, जो दोबारा जीवित हो गया है.”
tatastē prācuḥ, tvāṁ yōhanmajjakaṁ vadanti; kēcit tvām ēliyaṁ vadanti, pūrvvakālikaḥ kaścid bhaviṣyadvādī śmaśānād udatiṣṭhad ityapi kēcid vadanti|
20 “मैं कौन हूं इस विषय में तुम्हारी धारणा क्या है?” प्रभु येशु ने प्रश्न किया. पेतरॉस ने उत्तर दिया, “परमेश्वर के मसीह.”
tadā sa uvāca, yūyaṁ māṁ kaṁ vadatha? tataḥ pitara uktavān tvam īśvarābhiṣiktaḥ puruṣaḥ|
21 प्रभु येशु ने उन्हें कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि वे यह किसी से न कहें.
tadā sa tān dr̥ḍhamādidēśa, kathāmētāṁ kasmaicidapi mā kathayata|
22 आगे प्रभु येशु ने प्रकट किया, “यह अवश्य है कि मनुष्य के पुत्र अनेक पीड़ाएं सहे, यहूदी प्रधानों, प्रधान पुरोहितों तथा व्यवस्था के शिक्षकों के द्वारा अस्वीकृत किया जाए; उसका वध किया जाए तथा तीसरे दिन उसे दोबारा जीवित किया जाए.”
sa punaruvāca, manuṣyaputrēṇa vahuyātanā bhōktavyāḥ prācīnalōkaiḥ pradhānayājakairadhyāpakaiśca sōvajñāya hantavyaḥ kintu tr̥tīyadivasē śmaśānāt tēnōtthātavyam|
23 तब प्रभु येशु ने उन सबसे कहा, “यदि कोई मेरे पीछे होना चाहे, (शिष्य होना चाहे) वह अपने अहम का त्याग कर प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे चले.
aparaṁ sa sarvvānuvāca, kaścid yadi mama paścād gantuṁ vāñchati tarhi sa svaṁ dāmyatu, dinē dinē kruśaṁ gr̥hītvā ca mama paścādāgacchatu|
24 क्योंकि जो कोई अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहता है, उसे खो देगा किंतु जो कोई मेरे हित में अपने प्राणों को त्यागने के लिए तत्पर है, वह अपने प्राणों को सुरक्षित रखेगा.
yatō yaḥ kaścit svaprāṇān rirakṣiṣati sa tān hārayiṣyati, yaḥ kaścin madarthaṁ prāṇān hārayiṣyati sa tān rakṣiṣyati|
25 क्या लाभ है यदि कोई व्यक्ति सारे संसार पर अधिकार तो प्राप्त कर ले किंतु स्वयं को खो दे या उसका जीवन ले लिया जाए?
kaścid yadi sarvvaṁ jagat prāpnōti kintu svaprāṇān hārayati svayaṁ vinaśyati ca tarhi tasya kō lābhaḥ?
26 क्योंकि जो कोई मुझसे और मेरी शिक्षा से लज्जित होता है, मनुष्य का पुत्र भी, जब वह अपनी, अपने पिता की तथा पवित्र दूतों की महिमा में आएगा, उससे लज्जित होगा.
puna ryaḥ kaścin māṁ mama vākyaṁ vā lajjāspadaṁ jānāti manuṣyaputrō yadā svasya pituśca pavitrāṇāṁ dūtānāñca tējōbhiḥ parivēṣṭita āgamiṣyati tadā sōpi taṁ lajjāspadaṁ jñāsyati|
27 “सच तो यह है कि यहां कुछ हैं, जो मृत्यु तब तक न चखेंगे जब तक वे परमेश्वर का राज्य देख न लें.”
kintu yuṣmānahaṁ yathārthaṁ vadāmi, īśvarīyarājatvaṁ na dr̥ṣṭavā mr̥tyuṁ nāsvādiṣyantē, ētādr̥śāḥ kiyantō lōkā atra sthanē'pi daṇḍāyamānāḥ santi|
28 अपनी इस बात के लगभग आठ दिन बाद प्रभु येशु पेतरॉस, योहन तथा याकोब को साथ लेकर एक ऊंचे पर्वत शिखर पर प्रार्थना करने गए.
ētadākhyānakathanāt paraṁ prāyēṇāṣṭasu dinēṣu gatēṣu sa pitaraṁ yōhanaṁ yākūbañca gr̥hītvā prārthayituṁ parvvatamēkaṁ samārurōha|
29 जब प्रभु येशु प्रार्थना कर रहे थे, उनके मुखमंडल का रूप बदल गया तथा उनके वस्त्र सफ़ेद और उजले हो गए.
atha tasya prārthanakālē tasya mukhākr̥tiranyarūpā jātā, tadīyaṁ vastramujjvalaśuklaṁ jātaṁ|
30 दो व्यक्ति—मोशेह तथा एलियाह—उनके साथ बातें करते दिखाई दिए.
aparañca mūsā ēliyaścōbhau tējasvinau dr̥ṣṭau
31 वे भी स्वर्गीय तेज में थे. उनकी बातों का विषय था प्रभु येशु का जाना, जो येरूशलेम नगर में शीघ्र ही होने पर था.
tau tēna yirūśālampurē yō mr̥tyuḥ sādhiṣyatē tadīyāṁ kathāṁ tēna sārddhaṁ kathayitum ārēbhātē|
32 पेतरॉस तथा उसके साथी अत्यंत नींद में थे किंतु जब वे पूरी तरह जाग गए, उन्होंने प्रभु येशु को उनके स्वर्गीय तेज में उन दो व्यक्तियों के साथ देखा.
tadā pitarādayaḥ svasya saṅginō nidrayākr̥ṣṭā āsan kintu jāgaritvā tasya tējastēna sārddham uttiṣṭhantau janau ca dadr̥śuḥ|
33 जब वे पुरुष प्रभु येशु के पास से जाने लगे पेतरॉस प्रभु येशु से बोले, “प्रभु! हमारे लिए यहां होना कितना अच्छा है! हम यहां तीन मंडप बनाएं: एक आपके लिए, एक मोशेह के लिए तथा एक एलियाह के लिए.” स्वयं उन्हें अपनी इन कही हुई बातों का मतलब नहीं पता था.
atha tayōrubhayō rgamanakālē pitarō yīśuṁ babhāṣē, hē gurō'smākaṁ sthānē'smin sthitiḥ śubhā, tata ēkā tvadarthā, ēkā mūsārthā, ēkā ēliyārthā, iti tisraḥ kuṭyōsmābhi rnirmmīyantāṁ, imāṁ kathāṁ sa na vivicya kathayāmāsa|
34 जब पेतरॉस यह कह ही रहे थे, एक बादल ने उन सबको ढांप लिया. बादल से घिर जाने पर वे भयभीत हो गए.
aparañca tadvākyavadanakālē payōda ēka āgatya tēṣāmupari chāyāṁ cakāra, tatastanmadhyē tayōḥ pravēśāt tē śaśaṅkirē|
35 बादल में से एक आवाज सुनाई दी: “यह मेरा पुत्र है—मेरा चुना हुआ. इसके आदेश का पालन करो.”
tadā tasmāt payōdād iyamākāśīyā vāṇī nirjagāma, mamāyaṁ priyaḥ putra ētasya kathāyāṁ manō nidhatta|
36 आवाज समाप्त होने पर उन्होंने देखा कि प्रभु येशु अकेले हैं. जो कुछ उन्होंने देखा था, उन्होंने उस समय उसका वर्णन किसी से भी न किया. वे इस विषय में मौन बने रहे.
iti śabdē jātē tē yīśumēkākinaṁ dadr̥śuḥ kintu tē tadānīṁ tasya darśanasya vācamēkāmapi nōktvā manaḥsu sthāpayāmāsuḥ|
37 अगले दिन जब वे पर्वत से नीचे आए, एक बड़ी भीड़ वहां इकट्ठा थी.
parē'hani tēṣu tasmācchailād avarūḍhēṣu taṁ sākṣāt karttuṁ bahavō lōkā ājagmuḥ|
38 भीड़ में से एक व्यक्ति ने ऊंचे शब्द में पुकारकर कहा, “गुरुवर! आपसे मेरी विनती है कि आप मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें क्योंकि वह मेरी इकलौती संतान है.
tēṣāṁ madhyād ēkō jana uccairuvāca, hē gurō ahaṁ vinayaṁ karōmi mama putraṁ prati kr̥pādr̥ṣṭiṁ karōtu, mama sa ēvaikaḥ putraḥ|
39 एक दुष्टात्मा अक्सर उस पर प्रबल हो जाता है और वह सहसा चीखने लगता है. दुष्टात्मा उसे भूमि पर पटक देता है और मेरे पुत्र को ऐंठन प्रारंभ हो जाती है और उसके मुख से फेन निकलने लगता है. यह दुष्टात्मा कदाचित ही उसे छोड़कर जाता है—वह उसे नाश करने पर उतारू है.
bhūtēna dhr̥taḥ san saṁ prasabhaṁ cīcchabdaṁ karōti tanmukhāt phēṇā nirgacchanti ca, bhūta itthaṁ vidāryya kliṣṭvā prāyaśastaṁ na tyajati|
40 मैंने आपके शिष्यों से विनती की थी कि वे उसे मेरे पुत्र में से निकाल दें किंतु वे असफल रहे.”
tasmāt taṁ bhūtaṁ tyājayituṁ tava śiṣyasamīpē nyavēdayaṁ kintu tē na śēkuḥ|
41 “अरे ओ अविश्वासी और बिगड़ी हुई पीढ़ी!” प्रभु येशु ने कहा, “मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूंगा, कब तक धीरज रखूंगा? यहां लाओ अपने पुत्र को!”
tadā yīśuravādīt, rē āviśvāsin vipathagāmin vaṁśa katikālān yuṣmābhiḥ saha sthāsyāmyahaṁ yuṣmākam ācaraṇāni ca sahiṣyē? tava putramihānaya|
42 जब वह बालक पास आ ही रहा था, दुष्टात्मा ने उसे भूमि पर पटक दिया, जिससे उसके शरीर में ऐंठन प्रारंभ हो गई किंतु प्रभु येशु ने दुष्टात्मा को डांटा, बालक को स्वस्थ किया और उसे उसके पिता को सौंप दिया.
tatastasminnāgatamātrē bhūtastaṁ bhūmau pātayitvā vidadāra; tadā yīśustamamēdhyaṁ bhūtaṁ tarjayitvā bālakaṁ svasthaṁ kr̥tvā tasya pitari samarpayāmāsa|
43 परमेश्वर का प्रताप देख सभी चकित रह गए. जब सब लोग इस घटना पर अचंभित हो रहे थे प्रभु येशु ने अपने शिष्यों से कहा,
īśvarasya mahāśaktim imāṁ vilōkya sarvvē camaccakruḥ; itthaṁ yīśōḥ sarvvābhiḥ kriyābhiḥ sarvvairlōkairāścaryyē manyamānē sati sa śiṣyān babhāṣē,
44 “जो कुछ मैं कह रहा हूं अत्यंत ध्यानपूर्वक सुनो और याद रखो: मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों पकड़वाया जाने पर है.”
kathēyaṁ yuṣmākaṁ karṇēṣu praviśatu, manuṣyaputrō manuṣyāṇāṁ karēṣu samarpayiṣyatē|
45 किंतु शिष्य इस बात का मतलब समझ न पाए. इस बात का मतलब उनसे छुपाकर रखा गया था. यही कारण था कि वे इसका मतलब समझ न पाए और उन्हें इसके विषय में प्रभु येशु से पूछने का साहस भी न हुआ.
kintu tē tāṁ kathāṁ na bubudhirē, spaṣṭatvābhāvāt tasyā abhiprāyastēṣāṁ bōdhagamyō na babhūva; tasyā āśayaḥ ka ityapi tē bhayāt praṣṭuṁ na śēkuḥ|
46 शिष्यों में इस विषय को लेकर विवाद छिड़ गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है.
tadanantaraṁ tēṣāṁ madhyē kaḥ śrēṣṭhaḥ kathāmētāṁ gr̥hītvā tē mithō vivādaṁ cakruḥ|
47 यह जानते हुए कि शिष्य अपने मन में क्या सोच रहे हैं प्रभु येशु ने एक छोटे बालक को अपने पास खड़ा करके कहा,
tatō yīśustēṣāṁ manōbhiprāyaṁ viditvā bālakamēkaṁ gr̥hītvā svasya nikaṭē sthāpayitvā tān jagāda,
48 “जो कोई मेरे नाम में इस छोटे बालक को ग्रहण करता है, मुझे ग्रहण करता है, तथा जो कोई मुझे ग्रहण करता है, उन्हें ग्रहण करता है जिन्होंने मुझे भेजा है. वह, जो तुम्हारे मध्य छोटा है, वही है जो श्रेष्ठ है.”
yō janō mama nāmnāsya bālāsyātithyaṁ vidadhāti sa mamātithyaṁ vidadhāti, yaśca mamātithyaṁ vidadhāti sa mama prērakasyātithyaṁ vidadhāti, yuṣmākaṁ madhyēyaḥ svaṁ sarvvasmāt kṣudraṁ jānītē sa ēva śrēṣṭhō bhaviṣyati|
49 योहन ने उन्हें सूचना दी, “प्रभु, हमने एक व्यक्ति को आपके नाम में दुष्टात्मा निकालते हुए देखा है. हमने उसे ऐसा करने से रोकने का प्रयत्न किया क्योंकि वह हममें से नहीं है.”
aparañca yōhan vyājahāra hē prabhē tava nāmnā bhūtān tyājayantaṁ mānuṣam ēkaṁ dr̥ṣṭavantō vayaṁ, kintvasmākam apaścād gāmitvāt taṁ nyaṣēdhām| tadānīṁ yīśuruvāca,
50 “मत रोको उसे!” प्रभु येशु ने कहा, “क्योंकि जो तुम्हारा विरोधी नहीं, वह तुम्हारे पक्ष में है.”
taṁ mā niṣēdhata, yatō yō janōsmākaṁ na vipakṣaḥ sa ēvāsmākaṁ sapakṣō bhavati|
51 जब प्रभु येशु के स्वर्ग में उठा लिए जाने का निर्धारित समय पास आया, विचार दृढ़ करके प्रभु येशु ने अपने पांव येरूशलेम नगर की ओर बढ़ा दिए.
anantaraṁ tasyārōhaṇasamaya upasthitē sa sthiracētā yirūśālamaṁ prati yātrāṁ karttuṁ niścityāgrē dūtān prēṣayāmāsa|
52 उन्होंने अपने आगे संदेशवाहक भेज दिए. वे शमरिया प्रदेश के एक गांव में पहुंचे कि प्रभु येशु के आगमन की तैयारी करें
tasmāt tē gatvā tasya prayōjanīyadravyāṇi saṁgrahītuṁ śōmirōṇīyānāṁ grāmaṁ praviviśuḥ|
53 किंतु वहां के निवासियों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया क्योंकि प्रभु येशु येरूशलेम नगर की ओर जा रहे थे.
kintu sa yirūśālamaṁ nagaraṁ yāti tatō hētō rlōkāstasyātithyaṁ na cakruḥ|
54 जब उनके दो शिष्यों—याकोब और योहन ने यह देखा तो उन्होंने प्रभु येशु से प्रश्न किया, “प्रभु, यदि आप आज्ञा दें तो हम प्रार्थना करें कि आकाश से इन्हें नाश करने के लिए आग की बारिश हो जाए.”
ataēva yākūbyōhanau tasya śiṣyau tad dr̥ṣṭvā jagadatuḥ, hē prabhō ēliyō yathā cakāra tathā vayamapi kiṁ gagaṇād āgantum ētān bhasmīkarttuñca vahnimājñāpayāmaḥ? bhavān kimicchati?
55 पीछे मुड़कर प्रभु येशु ने उन्हें डांटा, “तुम नहीं समझ रहे कि तुम यह किस मतलब से कह रहे हो. मनुष्य का पुत्र इन्सानों के विनाश के लिए नहीं परंतु उनके उद्धार के लिए आया है!”
kintu sa mukhaṁ parāvartya tān tarjayitvā gaditavān yuṣmākaṁ manōbhāvaḥ kaḥ, iti yūyaṁ na jānītha|
56 और वे दूसरे नगर की ओर बढ़ गए.
manujasutō manujānāṁ prāṇān nāśayituṁ nāgacchat, kintu rakṣitum āgacchat| paścād itaragrāmaṁ tē yayuḥ|
57 मार्ग में एक व्यक्ति ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए उनसे कहा, “आप जहां कहीं जाएंगे, मैं आपके साथ रहूंगा.”
tadanantaraṁ pathi gamanakālē jana ēkastaṁ babhāṣē, hē prabhō bhavān yatra yāti bhavatā sahāhamapi tatra yāsyāmi|
58 येशु ने उसके उत्तर में कहा, “लोमड़ियों के पास उनकी गुफाएं तथा आकाश के पक्षियों के पास उनके बसेरे होते हैं किंतु मनुष्य के पुत्र के पास तो सिर रखने तक का स्थान नहीं है!”
tadānīṁ yīśustamuvāca, gōmāyūnāṁ garttā āsatē, vihāyasīyavihagānāṁ nīḍāni ca santi, kintu mānavatanayasya śiraḥ sthāpayituṁ sthānaṁ nāsti|
59 एक अन्य व्यक्ति से प्रभु येशु ने कहा, “आओ! मेरे पीछे हो लो.” उस व्यक्ति ने कहा, “प्रभु मुझे पहले अपने पिता की अंत्येष्टि की अनुमति दे दीजिए.”
tataḥ paraṁ sa itarajanaṁ jagāda, tvaṁ mama paścād ēhi; tataḥ sa uvāca, hē prabhō pūrvvaṁ pitaraṁ śmaśānē sthāpayituṁ māmādiśatu|
60 प्रभु येशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मृत गाड़ने दो किंतु तुम जाकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करो.”
tadā yīśuruvāca, mr̥tā mr̥tān śmaśānē sthāpayantu kintu tvaṁ gatvēśvarīyarājyasya kathāṁ pracāraya|
61 एक अन्य व्यक्ति ने प्रभु येशु से कहा, “प्रभु, मैं आपके साथ चलूंगा किंतु पहले मैं अपने परिजनों से विदा ले लूं.”
tatōnyaḥ kathayāmāsa, hē prabhō mayāpi bhavataḥ paścād gaṁsyatē, kintu pūrvvaṁ mama nivēśanasya parijanānām anumatiṁ grahītum ahamādiśyai bhavatā|
62 प्रभु येशु ने इसके उत्तर में कहा, “ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो हल चलाने को तत्पर हो, परंतु उसकी दृष्टि पीछे की ओर लगी हुई हो, परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं.”
tadānīṁ yīśustaṁ prōktavān, yō janō lāṅgalē karamarpayitvā paścāt paśyati sa īśvarīyarājyaṁ nārhati|