< लूका 9 >
1 प्रभु येशु ने बारहों शिष्यों को बुलाकर उन्हें दुष्टात्माओं को निकालने तथा रोग दूर करने का सामर्थ्य और अधिकार प्रदान किया
Er rief die Zwölf zusammen und verlieh ihnen Kraft und Vollmacht über alle Dämonen und die Gewalt, Krankheiten zu heilen.
2 तथा उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने तथा रोगियों को स्वस्थ करने के लिए भेज दिया.
Dann sandte er sie aus, das Reich Gottes zu verkünden und Kranke zu heilen.
3 प्रभु येशु ने उन्हें निर्देश दिए, “यात्रा के लिए अपने साथ कुछ न रखना—न छड़ी, न झोला, न रोटी, न पैसा और न ही कोई बाहरी वस्त्र.
Er sprach zu ihnen: "Nehmt nichts mit auf den Weg, nicht Stab, noch Bettelsack, noch Brot, noch Geld; auch sollt ihr nicht zwei Röcke haben.
4 तुम जिस किसी घर में मेहमान होकर रहो, नगर से विदा होने तक उसी घर के मेहमान बने रहना.
Wo immer ihr ein Haus betretet, da bleibt und zieht von hier dann wieder weiter.
5 यदि लोग तुम्हें स्वीकार न करें तब उस नगर से बाहर जाते हुए अपने पैरों की धूल झाड़ देना कि यह उनके विरुद्ध गवाही हो.”
Wo man euch aber nicht aufnimmt, da verlaßt die Stadt und schüttelt selbst den Staub von euren Füßen zum Zeugnis wider sie."
6 वे चल दिए तथा सुसमाचार का प्रचार करते और रोगियों को स्वस्थ करते हुए सब जगह यात्रा करते रहे.
So machten sie sich auf den Weg und zogen von Ort zu Ort; sie verkündigten das Evangelium und heilten überall.
7 जो कुछ हो रहा था उसके विषय में हेरोदेस ने भी सुना और वह अत्यंत घबरा गया क्योंकि कुछ लोग कह रहे थे कि बपतिस्मा देनेवाले योहन मरे हुओं में से दोबारा जीवित हो गए हैं.
Von all den Dingen drang die Kunde auch zum Vierfürsten Herodes, und er geriet in Unruhe; denn einige sagten: "Johannes ist von den Toten auferstanden";
8 कुछ अन्य कह रहे थे कि एलियाह प्रकट हुए हैं तथा कुछ अन्यों ने दावा किया कि प्राचीन काल के भविष्यद्वक्ताओं में से कोई दोबारा जीवित हो गया है
andere: "Elias ist erschienen"; wieder andere: "Einer von den alten Propheten ist auferstanden."
9 किंतु हेरोदेस ने विरोध किया, “योहन का सिर तो स्वयं मैंने उड़वाया था, तब यह कौन है, जिसके विषय में मैं ये सब सुन रहा हूं?” इसलिये हेरोदेस प्रभु येशु से मिलने का प्रयास करने लगा.
Herodes aber sagte: "Johannes habe ich doch enthaupten lassen; wer mag nur der sein, von dem ich solche Dinge höre?" Und er wünschte, ihn zu sehen.
10 अपनी यात्रा से लौटकर प्रेरितों ने प्रभु येशु के सामने अपने-अपने कामों का बखान किया. तब प्रभु येशु उन्हें लेकर चुपचाप बैथसैदा नामक नगर चले गए.
Nun kehrten die Apostel wiederum zurück, und sie erzählten ihm, was sie alles vollbracht hatten. Da zog er sich mit ihnen allein in eine Stadt zurück, die Bethsaida heißt.
11 किंतु लोगों को इसके विषय में मालूम हो गया और वे वहां पहुंच गए. प्रभु येशु ने सहर्ष उनका स्वागत किया और उन्हें परमेश्वर के राज्य के विषय में शिक्षा दी तथा उन रोगियों को चंगा किया, जिन्हें इसकी ज़रूरत थी.
Die Scharen merkten es und kamen hinterher. Und er nahm sie freundlich auf; er redete zu ihnen vom Reiche Gottes und heilte alle, die Heilung nötig hatten.
12 जब दिन ढलने पर आया तब बारहों प्रेरितों ने प्रभु येशु के पास आकर उन्हें सुझाव दिया, “भीड़ को विदा कर दीजिए कि वे पास के गांवों में जाकर अपने ठहरने और भोजन की व्यवस्था कर सकें क्योंकि यह सुनसान जगह है.”
Der Tag ging schon zur Neige. Die Zwölf traten zu ihm hin und sagten: "Entlaß die Scharen, sie mögen in die Dörfer und die Flecken hier im Umkreis gehen, Obdach und Nahrung suchen; denn hier sind wir in der Steppe."
13 इस पर प्रभु येशु ने उनसे कहा, “तुम्हीं करो इनके भोजन की व्यवस्था!” उन्होंने इसके उत्तर में कहा, “हमारे पास तो केवल पांच रोटियां तथा दो मछलियां ही हैं; हां, यदि हम जाकर इन सबके लिए भोजन मोल ले आएं तो यह संभव है.”
Er aber sprach zu ihnen: "Gebt ihr ihnen doch zu essen!" Sie erwiderten jedoch: "Wir haben nur fünf Brote und zwei Fische; wir müßten denn hingehen und für diese ganze Menge Speise kaufen."
14 इस भीड़ में पुरुष ही लगभग पांच हज़ार थे. प्रभु येशु ने शिष्यों को आदेश दिया, “इन्हें लगभग पचास-पचास के झुंड में बैठा दो.”
Es waren nämlich an fünftausend Männer. Da sagte er zu seinen Jüngern: "Laßt sie in Gruppen zu je fünfzig lagern."
15 शिष्यों ने उन सबको भोजन के लिए बैठा दिया.
Sie taten es und ließen alle sich lagern.
16 पांचों रोटियां तथा दोनों मछलियां अपने हाथ में लेकर प्रभु येशु ने स्वर्ग की ओर दृष्टि करते हुए उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद किया तथा उन्हें तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गए कि वे लोगों में इनको बांटते जाएं.
Dann nahm er die fünf Brote und die zwei Fische, sah zum Himmel auf, segnete sie, brach sie und gab sie seinen Jüngern, sie sollten sie dem Volke vorlegen.
17 सभी ने भरपेट खाया. शेष रह गए टुकड़े इकट्ठा करने पर बारह टोकरे भर गए.
Und alle aßen und wurden satt; ja, man hob noch zwölf Körbe von den Brocken auf, die übriggeblieben waren.
18 एक समय, जब प्रभु येशु एकांत में प्रार्थना कर रहे थे तथा उनके शिष्य भी उनके साथ थे, प्रभु येशु ने शिष्यों से प्रश्न किया, “लोग क्या कहते हैं वे मेरे विषय में; कि मैं कौन हूं?”
Als er einmal einsam betete und nur die Jünger um ihn waren, da fragte er sie: "Für wen halten mich die Leute?"
19 उन्होंने उत्तर दिया, “कुछ कहते हैं बपतिस्मा देनेवाला योहन; कुछ एलियाह; और कुछ अन्य कहते हैं पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से एक, जो दोबारा जीवित हो गया है.”
Sie gaben ihm zur Antwort: "Für Johannes den Täufer, andere für Elias; noch andere sagen, einer der alten Propheten sei wieder auferstanden."
20 “मैं कौन हूं इस विषय में तुम्हारी धारणा क्या है?” प्रभु येशु ने प्रश्न किया. पेतरॉस ने उत्तर दिया, “परमेश्वर के मसीह.”
Da fragte er sie weiter: "Ihr aber, für wen haltet ihr mich?" Und Petrus gab zur Antwort: "Für den Gesalbten Gottes."
21 प्रभु येशु ने उन्हें कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि वे यह किसी से न कहें.
Darauf verbot er ihnen streng, dies irgend jemand zu sagen.
22 आगे प्रभु येशु ने प्रकट किया, “यह अवश्य है कि मनुष्य के पुत्र अनेक पीड़ाएं सहे, यहूदी प्रधानों, प्रधान पुरोहितों तथा व्यवस्था के शिक्षकों के द्वारा अस्वीकृत किया जाए; उसका वध किया जाए तथा तीसरे दिन उसे दोबारा जीवित किया जाए.”
"Der Menschensohn", sprach er, "muß vieles leiden, er muß von den Ältesten, den Oberpriestern und den Schriftgelehrten verworfen und getötet werden und am dritten Tage auferstehen."
23 तब प्रभु येशु ने उन सबसे कहा, “यदि कोई मेरे पीछे होना चाहे, (शिष्य होना चाहे) वह अपने अहम का त्याग कर प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे चले.
Zu allen aber sagte er: "Wer mir nachfolgen will, der verleugne sich selbst, jeden Tag nehme er sein Kreuz auf sich und folge mir.
24 क्योंकि जो कोई अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहता है, उसे खो देगा किंतु जो कोई मेरे हित में अपने प्राणों को त्यागने के लिए तत्पर है, वह अपने प्राणों को सुरक्षित रखेगा.
Denn wer sein Leben sich erhalten will, der wird es verlieren; und wer sein Leben mir zulieb verliert, der wird es erhalten.
25 क्या लाभ है यदि कोई व्यक्ति सारे संसार पर अधिकार तो प्राप्त कर ले किंतु स्वयं को खो दे या उसका जीवन ले लिया जाए?
Was nützte es dem Menschen, wenn er die ganze Welt gewänne, sich selbst jedoch verlöre oder zugrunde ginge?
26 क्योंकि जो कोई मुझसे और मेरी शिक्षा से लज्जित होता है, मनुष्य का पुत्र भी, जब वह अपनी, अपने पिता की तथा पवित्र दूतों की महिमा में आएगा, उससे लज्जित होगा.
Denn wer sich meiner und meiner Worte schämt, dessen wird auch der Menschensohn sich schämen, wenn er in seiner Herrlichkeit und der des Vaters und der heiligen Engel kommt.
27 “सच तो यह है कि यहां कुछ हैं, जो मृत्यु तब तक न चखेंगे जब तक वे परमेश्वर का राज्य देख न लें.”
Ich sage euch in Wahrheit: Es stehen solche hier, die den Tod nicht kosten werden, bis sie das Reich Gottes gesehen haben."
28 अपनी इस बात के लगभग आठ दिन बाद प्रभु येशु पेतरॉस, योहन तथा याकोब को साथ लेकर एक ऊंचे पर्वत शिखर पर प्रार्थना करने गए.
Acht Tage ungefähr nach diesen Reden nahm er Petrus, Jakobus und Johannes mit sich und stieg auf den Berg, um zu beten.
29 जब प्रभु येशु प्रार्थना कर रहे थे, उनके मुखमंडल का रूप बदल गया तथा उनके वस्त्र सफ़ेद और उजले हो गए.
Während er betete, veränderte sich der Ausdruck seines Angesichtes, und sein Gewand ward glänzend weiß.
30 दो व्यक्ति—मोशेह तथा एलियाह—उनके साथ बातें करते दिखाई दिए.
Und siehe, zwei Männer redeten mit ihm, Moses und Elias.
31 वे भी स्वर्गीय तेज में थे. उनकी बातों का विषय था प्रभु येशु का जाना, जो येरूशलेम नगर में शीघ्र ही होने पर था.
Sie erschienen in Herrlichkeit und sprachen über seinen Tod, wie er sich in Jerusalem erfüllen sollte.
32 पेतरॉस तथा उसके साथी अत्यंत नींद में थे किंतु जब वे पूरी तरह जाग गए, उन्होंने प्रभु येशु को उनके स्वर्गीय तेज में उन दो व्यक्तियों के साथ देखा.
Petrus ward mit den Gefährten vom Schlafe übermannt. Beim Erwachen sahen sie ihn in seiner Herrlichkeit und die zwei Männer, die bei ihm waren.
33 जब वे पुरुष प्रभु येशु के पास से जाने लगे पेतरॉस प्रभु येशु से बोले, “प्रभु! हमारे लिए यहां होना कितना अच्छा है! हम यहां तीन मंडप बनाएं: एक आपके लिए, एक मोशेह के लिए तथा एक एलियाह के लिए.” स्वयं उन्हें अपनी इन कही हुई बातों का मतलब नहीं पता था.
Als diese sich entfernen wollten, sprach Petrus zu Jesus: "Wie schön ist es, Meister, daß wir hier sind! Wir möchten gern drei Hütten bauen: Dir eine, dem Moses eine und dem Elias eine." Er wußte jedoch nicht, was er sagte.
34 जब पेतरॉस यह कह ही रहे थे, एक बादल ने उन सबको ढांप लिया. बादल से घिर जाने पर वे भयभीत हो गए.
Noch sprach er so, als eine Wolke kam und sie in Dunkel hüllte. Sie fürchteten sich sehr, als jene in die Wolke gingen.
35 बादल में से एक आवाज सुनाई दी: “यह मेरा पुत्र है—मेरा चुना हुआ. इसके आदेश का पालन करो.”
Und aus der Wolke erscholl eine Stimme: "Das ist mein erwählter Sohn, auf diesen sollt ihr hören."
36 आवाज समाप्त होने पर उन्होंने देखा कि प्रभु येशु अकेले हैं. जो कुछ उन्होंने देखा था, उन्होंने उस समय उसका वर्णन किसी से भी न किया. वे इस विषय में मौन बने रहे.
Während die Stimme erscholl, war Jesus ganz allein. Sie schwiegen und erzählten in jenen Tagen niemandem, was sie gesehen hatten.
37 अगले दिन जब वे पर्वत से नीचे आए, एक बड़ी भीड़ वहां इकट्ठा थी.
Des anderen Tags stiegen sie vom Berg hinab, und eine große Menge Volkes kam ihnen entgegen.
38 भीड़ में से एक व्यक्ति ने ऊंचे शब्द में पुकारकर कहा, “गुरुवर! आपसे मेरी विनती है कि आप मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें क्योंकि वह मेरी इकलौती संतान है.
Und siehe, aus der Menge rief ein Mann: "Meister, ich bitte dich, nimm dich meines Sohnes an, es ist mein einziger.
39 एक दुष्टात्मा अक्सर उस पर प्रबल हो जाता है और वह सहसा चीखने लगता है. दुष्टात्मा उसे भूमि पर पटक देता है और मेरे पुत्र को ऐंठन प्रारंभ हो जाती है और उसके मुख से फेन निकलने लगता है. यह दुष्टात्मा कदाचित ही उसे छोड़कर जाता है—वह उसे नाश करने पर उतारू है.
Siehe, ein Geist packt ihn, und alsdann schreit er sogleich auf; er zerrt ihn hin und her, wobei er schäumt. Nur schwer läßt er von ihm ab; er reibt ihn noch ganz auf.
40 मैंने आपके शिष्यों से विनती की थी कि वे उसे मेरे पुत्र में से निकाल दें किंतु वे असफल रहे.”
Ich hatte deine Jünger gebeten, sie möchten ihn austreiben, doch sie haben es nicht vermocht."
41 “अरे ओ अविश्वासी और बिगड़ी हुई पीढ़ी!” प्रभु येशु ने कहा, “मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूंगा, कब तक धीरज रखूंगा? यहां लाओ अपने पुत्र को!”
Und Jesus sprach: "O du ungläubiges, verkehrtes Geschlecht! Wie lang noch muß ich bei euch sein und euch ertragen? Bring deinen Sohn hierher!"
42 जब वह बालक पास आ ही रहा था, दुष्टात्मा ने उसे भूमि पर पटक दिया, जिससे उसके शरीर में ऐंठन प्रारंभ हो गई किंतु प्रभु येशु ने दुष्टात्मा को डांटा, बालक को स्वस्थ किया और उसे उसके पिता को सौंप दिया.
Noch während er herbeikam, riß und zerrte ihn der Dämon hin und her, und Jesus drohte dem unreinen Geist und heilte so den Knaben und gab ihn seinem Vater wieder.
43 परमेश्वर का प्रताप देख सभी चकित रह गए. जब सब लोग इस घटना पर अचंभित हो रहे थे प्रभु येशु ने अपने शिष्यों से कहा,
Da staunte alles über die große Macht Gottes. Während alle über alle seine Taten voll Erstaunen waren, sprach er zu seinen Jüngern:
44 “जो कुछ मैं कह रहा हूं अत्यंत ध्यानपूर्वक सुनो और याद रखो: मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों पकड़वाया जाने पर है.”
"Behaltet diese Worte tief im Gedächtnis: Der Menschensohn wird in die Hände der Menschen überliefert werden."
45 किंतु शिष्य इस बात का मतलब समझ न पाए. इस बात का मतलब उनसे छुपाकर रखा गया था. यही कारण था कि वे इसका मतलब समझ न पाए और उन्हें इसके विषय में प्रभु येशु से पूछने का साहस भी न हुआ.
Sie konnten aber dieses Wort nicht verstehen; es blieb ihnen verborgen, und sie sollten es nicht erfassen. Sie scheuten sich jedoch, ihn danach zu fragen.
46 शिष्यों में इस विषय को लेकर विवाद छिड़ गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है.
Einst kam es bei ihnen zur Erörterung, wer unter ihnen wohl der Größte sei.
47 यह जानते हुए कि शिष्य अपने मन में क्या सोच रहे हैं प्रभु येशु ने एक छोटे बालक को अपने पास खड़ा करके कहा,
Da nahm Jesus, der die Gedanken ihres Herzens wohl erkannte, ein Kind und stellte dieses neben sich
48 “जो कोई मेरे नाम में इस छोटे बालक को ग्रहण करता है, मुझे ग्रहण करता है, तथा जो कोई मुझे ग्रहण करता है, उन्हें ग्रहण करता है जिन्होंने मुझे भेजा है. वह, जो तुम्हारे मध्य छोटा है, वही है जो श्रेष्ठ है.”
und sprach zu ihnen: "Wer dieses Kind in meinem Namen aufnimmt, nimmt mich auf. Und wer mich aufnimmt, nimmt den auf, der mich gesandt hat. Wer so der Kleinste von euch allen ist, nur der ist groß."
49 योहन ने उन्हें सूचना दी, “प्रभु, हमने एक व्यक्ति को आपके नाम में दुष्टात्मा निकालते हुए देखा है. हमने उसे ऐसा करने से रोकने का प्रयत्न किया क्योंकि वह हममें से नहीं है.”
Da sagte Johannes: "Meister, wir sahen einen, der in deinem Namen Dämonen austrieb; wir suchten ihn zu hindern, weil er dir nicht mit uns nachfolgt."
50 “मत रोको उसे!” प्रभु येशु ने कहा, “क्योंकि जो तुम्हारा विरोधी नहीं, वह तुम्हारे पक्ष में है.”
Doch Jesus sprach zu ihm: "Hindert ihn nicht; denn wer nicht gegen euch ist, der ist für euch."
51 जब प्रभु येशु के स्वर्ग में उठा लिए जाने का निर्धारित समय पास आया, विचार दृढ़ करके प्रभु येशु ने अपने पांव येरूशलेम नगर की ओर बढ़ा दिए.
So kamen die Tage seines Hingangs heran. Da schlug er unverwandten Blicks die Richtung nach Jerusalem ein
52 उन्होंने अपने आगे संदेशवाहक भेज दिए. वे शमरिया प्रदेश के एक गांव में पहुंचे कि प्रभु येशु के आगमन की तैयारी करें
und sandte Boten vor sich her. Diese machten sich auf den Weg und kamen in ein Dorf der Samariter, um eine Unterkunft für ihn zu suchen.
53 किंतु वहां के निवासियों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया क्योंकि प्रभु येशु येरूशलेम नगर की ओर जा रहे थे.
Allein, man nahm ihn nicht auf, weil sein Reiseziel Jerusalem war.
54 जब उनके दो शिष्यों—याकोब और योहन ने यह देखा तो उन्होंने प्रभु येशु से प्रश्न किया, “प्रभु, यदि आप आज्ञा दें तो हम प्रार्थना करें कि आकाश से इन्हें नाश करने के लिए आग की बारिश हो जाए.”
Als dies Jakobus und Johannes, seine Jünger, hörten, sagten sie: "Herr, sollen wir nicht Feuer vom Himmel rufen, daß es sie verzehre?"
55 पीछे मुड़कर प्रभु येशु ने उन्हें डांटा, “तुम नहीं समझ रहे कि तुम यह किस मतलब से कह रहे हो. मनुष्य का पुत्र इन्सानों के विनाश के लिए नहीं परंतु उनके उद्धार के लिए आया है!”
Da wandte er sich um und verwies es ihnen und sprach: "Ihr wisset nicht, wes Geistes Kinder ihr seid. Der Menschensohn ist nicht gekommen, Menschen zu verderben, sondern zu retten."
56 और वे दूसरे नगर की ओर बढ़ गए.
Sie gingen dann in eine andere Ortschaft.
57 मार्ग में एक व्यक्ति ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए उनसे कहा, “आप जहां कहीं जाएंगे, मैं आपके साथ रहूंगा.”
Und unterwegs sprach zu ihm irgendeiner: "Herr, ich will dir folgen, wohin du gehst."
58 येशु ने उसके उत्तर में कहा, “लोमड़ियों के पास उनकी गुफाएं तथा आकाश के पक्षियों के पास उनके बसेरे होते हैं किंतु मनुष्य के पुत्र के पास तो सिर रखने तक का स्थान नहीं है!”
Doch Jesus sprach zu ihm: "Die Füchse haben Höhlen, die Vögel des Himmels Nester, der Menschensohn jedoch hat keine Stätte, wohin er sein Haupt legen könnte."
59 एक अन्य व्यक्ति से प्रभु येशु ने कहा, “आओ! मेरे पीछे हो लो.” उस व्यक्ति ने कहा, “प्रभु मुझे पहले अपने पिता की अंत्येष्टि की अनुमति दे दीजिए.”
Zu einem anderen sprach er: "Folge mir!" Doch der erwiderte: "Herr, laß zuvor mich nochmals gehen, damit ich meinen Vater begrabe."
60 प्रभु येशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मृत गाड़ने दो किंतु तुम जाकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करो.”
Er aber sprach zu ihm: "Laß die Toten ihre Toten begraben. Du aber gehe hin, verkündige das Reich Gottes."
61 एक अन्य व्यक्ति ने प्रभु येशु से कहा, “प्रभु, मैं आपके साथ चलूंगा किंतु पहले मैं अपने परिजनों से विदा ले लूं.”
Ein anderer sprach: "Ich will dir folgen, Herr; doch laß zuerst mich zu Hause Abschied nehmen."
62 प्रभु येशु ने इसके उत्तर में कहा, “ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो हल चलाने को तत्पर हो, परंतु उसकी दृष्टि पीछे की ओर लगी हुई हो, परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं.”
Doch Jesus sprach zu ihm: "Für das Reich Gottes ist niemand brauchbar, der die Hand an den Pflug anlegt und wieder rückwärts schaut."