< लूका 14 >
1 एक अवसर पर जब प्रभु येशु शब्बाथ पर फ़रीसियों के नायकों में से एक के घर भोजन करने गए, वे सभी उन्हें उत्सुकतापूर्वक देख रहे थे.
ⲁ̅ⲁⲥϣⲱⲡⲉ ⲇⲉ ϩⲙ̅ⲡⲧⲣⲉϥⲃⲱⲕ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲡⲏⲓ̈ ⲛ̅ⲟⲩⲁⲣⲭⲱⲛ ⲙ̅ⲫⲁⲣⲓⲥⲥⲁⲓⲟⲥ ⲙ̅ⲡⲥⲁⲃⲃⲁⲧⲟⲛ ⲉⲩⲙ̅ⲟⲉⲓⲕ ⲛ̅ⲧⲟⲟⲩ ⲇⲉ ⲛⲉⲩⲡⲁⲣⲁⲧⲏⲣⲓ ⲉⲣⲟϥ.
2 वहां जलोदर रोग से पीड़ित एक व्यक्ति था.
ⲃ̅ⲛⲉⲩⲛⲟⲩⲣⲱⲙⲉ ⲇⲉ ⲛ̅ϩⲩⲇⲣⲱⲡⲓⲕⲟⲥ ϩⲁⲧⲉϥϩⲏ.
3 प्रभु येशु ने फ़रीसियों और वकीलों से प्रश्न किया, “शब्बाथ पर किसी को स्वस्थ करना व्यवस्था के अनुसार है या नहीं?”
ⲅ̅ⲁⲓ̅ⲥ̅ ⲟⲩⲱϣⲃ̅ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲛ̅ⲛⲟⲙⲓⲕⲟⲥ ⲛⲙ̅ⲛⲉⲫⲁⲣⲓⲥⲥⲁⲓⲟⲥ ⲉϥϫⲱ ⲙⲙⲟⲥ ϫⲉ ⲉⲝⲉⲥⲧⲓ ⲉⲣ̅ⲡⲁϩⲣⲉ ϩⲙ̅ⲡⲥⲁⲃⲃⲁⲧⲟⲛ ϫⲉⲛⲟⲩⲕ ⲉⲝⲉⲥⲧⲓ.
4 किंतु वे मौन रहे. इसलिये प्रभु येशु ने उस रोगी पर हाथ रख उसे स्वस्थ कर दिया तथा उसे विदा किया.
ⲇ̅ⲛ̅ⲧⲟⲟⲩ ⲇⲉ ⲁⲩⲕⲁⲣⲱⲟⲩ ⲁϥⲁⲙⲁϩⲧⲉ ⲇⲉ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲁϥⲧⲁⲗϭⲟϥ ⲁϥⲕⲁⲁϥ ⲉⲃⲟⲗ.
5 तब प्रभु येशु ने उनसे प्रश्न किया, “यह बताओ, यदि तुममें से किसी का पुत्र या बैल शब्बाथ पर कुएं में गिर जाए तो क्या तुम उसे तुरंत ही बाहर न निकालोगे?”
ⲉ̅ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲁⲩ ϫⲉ ⲛⲓⲙ ⲛ̅ϩⲏⲧʾⲧⲏⲟⲩⲧⲛ ⲡⲉⲧⲉⲣⲉⲡⲉϥϣⲏⲣⲉ ⲏ ⲡⲉϥⲙⲁⲥⲉ ⲛⲁϩⲉ ⲉⲩϣⲱⲧⲉ ⲉⲛϥ̅ⲛⲁⲛⲧϥ̅ ⲁⲛ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲛ̅ⲧⲉⲩⲛⲟⲩ ⲙ̅ⲡⲉϩⲟⲟⲩ ⲙ̅ⲡʾⲥⲁⲃⲃⲁⲧⲟⲛ
6 उनके पास इस प्रश्न का कोई उत्तर न था.
ⲋ̅ⲁⲩⲱ ⲙ̅ⲡⲟⲩϭⲙ̅ϭⲟⲙ ⲉⲟⲩⲟϣⲃⲉϥ ⲛ̅ⲛⲁϩⲣⲛ̅ⲛⲁⲉⲓ·
7 जब प्रभु येशु ने यह देखा कि आमंत्रित व्यक्ति अपने लिए किस प्रकार प्रधान आसन चुन लेते हैं, प्रभु येशु ने उन्हें यह विचार दिया:
ⲍ̅ⲁϥϫⲱ ⲇⲉ ⲛⲟⲩⲡⲁⲣⲁⲃⲟⲗⲏ ⲛ̅ⲛⲁϩⲣⲛ̅ⲛⲉⲧʾⲧⲁϩⲙ̅ ⲉϥⲛⲁⲩ ⲉⲑⲉ ⲉⲧⲟⲩⲥⲱⲧⲡ̅ ⲛⲁⲩ ⲛⲙ̅ⲙⲁ ⲛ̅ⲛⲟϫⲟⲩ ⲛ̅ⲧⲡⲉ ⲉϥϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ⲛⲁⲩ
8 “जब भी कोई तुम्हें विवाह के उत्सव में आमंत्रित करे, तुम अपने लिए आदरयोग्य आसन न चुनना. यह संभव है कि उसने तुमसे अधिक किसी आदरयोग्य व्यक्ति को भी आमंत्रित किया हो.
ⲏ̅ϫⲉ. ϩⲟⲧⲁⲛ ⲉⲣϣⲁⲛⲟⲩⲁ ⲧⲁϩⲙⲉⲕ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲛⲟϫⲕ̅ ⲛ̅ⲧⲡⲉ ⲙⲏⲡⲟⲧⲉ ⲁϥⲧⲁϩⲙ̅ⲟⲩⲁ ⲉϥⲧⲁⲓ̈ⲏⲩ ⲉⲣⲟⲕ
9 तब वह व्यक्ति, जिसने तुम्हें और उसे दोनों ही को आमंत्रित किया है, आकर तुमसे कहे ‘तुम यह आसन इन्हें दे दो,’ तब लज्जित हो तुम्हें वह आसन छोड़कर सबसे पीछे के आसन पर बैठना पड़े.
ⲑ̅ⲛϥ̅ⲉ͡ⲓ ⲛ̅ϭⲓⲡⲉⲛⲧⲁϥⲧⲁϩⲙⲉⲕ ⲛⲙ̅ⲙⲁϥ ⲛϥ̅ⲙⲟⲩⲧⲉ ⲉⲣⲟⲕ ⲛϥ̅ϫⲟⲟⲥ ⲛⲁⲕ ϫⲉ ⲕⲁⲡⲙⲁ ⲙ̅ⲡⲁⲓ̈. ⲧⲟⲧⲉ ⲕⲛⲁⲁⲣⲭⲓ ϩⲛ̅ⲟⲩϣⲓⲡⲉ ⲉϫⲓ ⲙ̅ⲡⲙⲁ ⲛ̅ϩⲁⲉ.
10 किंतु जब तुम्हें कहीं आमंत्रित किया जाए, जाकर सबसे साधारण आसन पर बैठ जाओ जिससे कि जब जिसने तुम्हें आमंत्रित किया है तुम्हारे पास आए तो यह कहे, ‘मेरे मित्र, उठो और उस ऊंचे आसन पर बैठो.’ इस पर अन्य सभी आमंत्रित अतिथियों के सामने तुम आदरयोग्य साबित होगे.
ⲓ̅ⲁⲗⲗⲁ ⲉⲩϣⲁⲛⲧⲁϩⲙⲉⲕ ⲃⲱⲕ ⲛⲅ̅ⲛⲟϫⲕ̅ ⲙ̅ⲡⲙⲁ ⲛ̅ϩⲁⲉ. ϫⲉⲕⲁⲥ ⲉⲣϣⲁⲛⲡⲉⲛⲧⲁϥⲧⲁϩⲙⲉⲕ ⲉ͡ⲓ ⲛϥ̅ϫⲟⲟⲥ ⲛⲁⲕ ϫⲉ ⲡⲉϣⲃⲏⲣ ⲟ̅ⲗⲉⲕ ⲉϩⲣⲁⲓ ⲉⲡϫⲓⲥⲉ. ⲧⲟⲧⲉ ⲟⲩⲛⲟⲩⲉⲟⲟⲩ ⲛⲁϣⲱⲡⲉ ⲛⲁⲕ ⲙ̅ⲡⲉⲙⲧⲟ ⲉⲃⲟⲗ ⲛ̅ⲛⲉⲧⲛⲏϫ ⲛⲙ̅ⲙⲁⲕ ⲧⲏⲣⲟⲩ.
11 हर एक, जो स्वयं को बड़ा बनाता है, छोटा बना दिया जाएगा तथा जो स्वयं को छोटा बना देता है, बड़ा किया जाएगा.”
ⲓ̅ⲁ̅ϫⲉ ⲟⲩⲟⲛ ⲛⲓⲙ ⲉⲧϫⲓⲥⲉ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲥⲉⲛⲁⲑⲃ̅ⲃⲓⲟϥ. ⲁⲩⲱ ⲡⲉⲧʾⲑⲃ̅ⲃⲓⲟ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲥⲉⲛⲁϫⲁⲥⲧϥ̅.
12 तब फिर प्रभु येशु ने अपने न्योता देनेवाले से कहा, “जब तुम दिन या रात के भोजन पर किसी को आमंत्रित करो तो अपने मित्रों, भाई-बंधुओं, परिजनों या धनवान पड़ोसियों को आमंत्रित मत करो; ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें आमंत्रित करें और तुम्हें बदला मिल जाए.
ⲓ̅ⲃ̅ⲡⲉϫⲁϥ ⲟⲛ ⲙ̅ⲡⲉⲛⲧⲁϥⲧⲁϩⲙⲉϥ. ϫⲉ ⲉⲕϣⲁⲛⲣ̅ⲟⲩⲁⲣⲓⲥⲧⲟⲛ ⲏ ⲟⲩⲇⲉⲓⲡⲛⲟⲛ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲙⲟⲩⲧⲉ ⲉⲛⲉⲕϣⲃⲉⲉⲣ ⲟⲩⲇⲉ ⲛⲉⲕⲥⲛⲏⲟⲩ. ⲟⲩⲇⲉ ⲛⲉⲕⲥⲩⲅⲅⲉⲛⲏⲥ ⲟⲩⲇⲉ ⲣ̅ⲣⲙ̅ⲙⲁⲟ̅ ⲉⲧϩⲓⲧⲟⲩⲱⲕ. ⲙⲏⲡⲟⲧⲉ ϩⲱⲟⲩ ⲛ̅ⲥⲉⲧⲁϩⲙⲉⲕ ⲛⲧⲉⲟⲩⲧⲟⲩⲓ̈ⲟ̅ ϣⲱⲡⲉ ⲛⲁⲕ.
13 किंतु जब तुम भोज का आयोजन करो तो निर्धनों, अपंगों, लंगड़ों तथा अंधों को आमंत्रित करो.
ⲓ̅ⲅ̅ⲁⲗⲗⲁ ⲉⲕϣⲁⲛⲣ̅ⲟⲩϣⲟⲡⲥ̅. ⲧⲉϩⲙ̅ⲛ̅ϩⲏⲕⲉ ⲛⲙ̅ⲛⲉⲧⲙⲟⲕϩ̅. ⲛⲙ̅ⲛ̅ϭⲁⲗⲉ. ⲛⲙ̅ⲛ̅ⲃⲃⲗ̅ⲗⲉ.
14 तब तुम परमेश्वर की कृपा के भागी बनोगे. वे लोग तुम्हारा बदला नहीं चुका सकते. बदला तुम्हें धर्मियों के दोबारा जी उठने (पुनरुत्थान) के अवसर पर प्राप्त होगा.”
ⲓ̅ⲇ̅ⲁⲩⲱ ⲕⲛⲁϣⲱⲡⲉ ⲙ̅ⲙⲁⲕⲁⲣⲓⲟⲥ ϫⲉ ⲙ̅ⲙⲛ̅ⲧⲁⲩ ⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲉⲧⲱⲱⲃⲉ ⲛⲁⲕ. ⲥⲉⲛⲁⲧⲟⲟⲃⲟⲩ ⲅⲁⲣ ⲛⲁⲕ ϩⲛ̅ⲧⲁⲛⲁⲥⲧⲁⲥⲓⲥ ⲛⲛ̅ⲇⲓⲕⲁⲓⲟⲥ.
15 यह सुन वहां आमंत्रित लोगों में से एक ने प्रभु येशु से कहा, “धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य के भोज में सम्मिलित होगा.”
ⲓ̅ⲉ̅ⲟⲩⲁ ⲇⲉ ⲉϥⲛⲏϫ ⲛⲙ̅ⲙⲁϥ ⲁϥⲥⲱⲧⲙ̅ ⲉⲛⲁⲓ̈ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲁϥ ϫⲉ. ⲛⲁⲓ̈ⲁⲧϥ̅ ⲙ̅ⲡⲉⲧⲛⲁⲟⲩⲱⲙ ⲛ̅ⲟⲩⲟⲓ̈ⲕ ϩⲛ̅ⲧⲙⲛ̅ⲧⲉⲣⲟ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ.
16 यह सुन प्रभु येशु ने कहा, “किसी व्यक्ति ने एक बड़ा भोज का आयोजन किया और अनेकों को आमंत्रित किया.
ⲓ̅ⲋ̅ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲇⲉ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲁϥ ϫⲉ. ⲟⲩⲣⲱⲙⲉ ⲡⲉ ⲛⲧⲁϥⲣ̅ⲟⲩⲛⲟϭ ⲛ̅ⲇⲓⲡⲛⲟⲛ ⲁⲩⲱ ⲁϥⲧⲉϩⲙ̅ⲟⲩⲙⲏⲏϣⲉ.
17 भोज तैयार होने पर उसने अपने सेवकों को इस सूचना के साथ आमंत्रितों के पास भेजा, ‘आ जाइए, सब कुछ तैयार है.’
ⲓ̅ⲍ̅ⲁϥϫⲟⲟⲩ ⲇⲉ ⲙⲡⲉϥϩⲙϩⲁⲗ ⲙ̅ⲡⲛⲁⲩ ⲙ̅ⲡⲇⲉⲓⲡⲛⲟⲛ ⲉϫⲟⲟⲥ ⲛ̅ⲛⲉⲧⲧⲁϩⲙ̅ ϫⲉ ⲁⲙⲏⲓ̈ⲧⲛ̅ ϫⲉ ⲁⲛⲕⲁ ⲛⲓⲙ ⲥⲟⲃⲧⲉ.
18 “किंतु वे सभी बहाने बनाने लगे. एक ने कहा, ‘मैंने भूमि मोल ली है और आवश्यक है कि मैं जाकर उसका निरीक्षण करूं. कृपया मुझे क्षमा करें.’
ⲓ̅ⲏ̅ⲁⲩⲁⲣⲭⲓ ⲇⲉ ϩⲓⲟⲩⲥⲟⲡ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲉⲡⲁⲣⲁⲓⲧⲓ. ⲡⲉϫⲉⲡϣⲟⲣⲡ̅ ⲛⲁϥ ϫⲉ ⲁⲓ̈ϣⲉⲡⲟⲩⲥⲱϣⲉ ϯⲛⲁϫⲡⲓⲃⲱⲕ ⲉⲃⲟⲗ ⲉⲛⲁⲩ ⲉⲣⲟⲥ ϯⲥⲟⲡⲥ̅ ⲙ̅ⲙⲟⲕ ⲕⲁⲁⲧʾ ⲛ̅ⲧⲟⲟⲧⲕ̅ ϩⲱⲥⲉⲓ̈ⲡⲁⲣⲁⲓⲧⲓ.
19 “दूसरे ने कहा, ‘मैंने अभी-अभी पांच जोड़े बैल मोल लिए हैं और मैं उन्हें परखने के लिए बस निकल ही रहा हूं. कृपया मुझे क्षमा करें.’
ⲓ̅ⲑ̅ⲡⲉϫⲉⲡⲕⲉⲩⲁ ⲇⲉ ⲛⲁϥ ϫⲉ ⲁⲓ̈ϣⲉⲡϯⲟⲩ ⲛ̅ⲥⲟⲓ̈ϣ ⲛ̅ⲉϩⲉ ϯⲛⲁⲃⲱⲕ ⲧⲁϫⲟⲛⲧⲟⲩ ϯⲥⲟⲡⲥ̅ ⲙ̅ⲙⲟⲕ ⲕⲁⲁⲧʾ ⲛ̅ⲧⲟⲟⲧⲕ̅ ϩⲱⲥⲉⲓ̈ⲡⲁⲣⲁⲓⲧⲓ.
20 “एक और अन्य ने कहा, ‘अभी, इसी समय मेरा विवाह हुआ है इसलिये मेरा आना संभव नहीं.’
ⲕ̅ⲡⲉϫⲉⲡⲕⲉⲟⲩⲁ ⲇⲉ ϫⲉ. ⲁⲓ̈ϩⲙⲟⲟⲥ ⲛⲙ̅ⲟⲩⲥϩⲓⲙⲉ ⲉⲧⲃⲉϫⲉⲙ̅ⲙⲛϣ̅ϭⲟⲙ ⲙ̅ⲙⲟⲓ̈ ⲉⲉ͡ⲓ.
21 “सेवक ने लौटकर अपने स्वामी को यह सूचना दे दी. अत्यंत गुस्से में घर के स्वामी ने सेवक को आज्ञा दी, ‘तुरंत नगर की गलियों-चौराहों में जाओ और निर्धनों, अपंगों, लंगड़ों और अंधों को ले आओ.’
ⲕ̅ⲁ̅ⲁⲡϩⲙ̅ϩⲁⲗ ⲇⲉ ⲉ͡ⲓ ⲁϥϫⲱ ⲛ̅ⲛⲁⲓ ⲉⲡⲉϥϫⲟⲉⲓⲥ. ⲧⲟⲧⲉ ⲁⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲛⲟⲩϭⲥ̅ ⲡⲉϫⲁϥ ⲙ̅ⲡⲉϥϩⲙ̅ϩⲁⲗ ϫⲉ ⲃⲱⲕ ⲉⲃⲟⲗ ϭⲉⲡⲏ ⲉⲛⲉⲡⲗⲁⲧⲓⲁ ⲛⲙ̅ⲛ̅ϩⲓⲣ ⲛⲙ̅ⲙ̅ⲡⲟⲗⲓⲥ ⲛ̅ⲕⲛ̅ⲛ̅ϩⲏⲕⲉ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲛⲙ̅ⲛⲉⲧⲙⲟⲕϩ̅ ⲛⲙ̅ⲛ̅ⲃⲗ̅ⲗⲉ. ⲛⲙ̅ⲛ̅ϭⲁⲗⲉ. ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲡⲉⲓ̈ⲙⲁ.
22 “सेवक ने लौटकर सूचना दी, ‘स्वामी, आपके आदेशानुसार काम पूरा हो चुका है किंतु अब भी कुछ जगह भरने बाकी है.’
ⲕ̅ⲃ̅ⲡⲉϫⲉⲡϩⲙ̅ϩⲁⲗ ⲇⲉ ϫⲉ. ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲁⲡⲉⲛⲧⲁⲕϫⲟⲟϥ ϣⲱⲡⲉ ⲁⲩⲱ ⲟⲛ ⲟⲩⲙ̅ⲙⲁ.
23 “तब घर के स्वामी ने उसे आज्ञा दी, ‘अब नगर के बाहर के मार्गों से लोगों को यहां आने के लिए विवश करो कि मेरा भवन भर जाए.
ⲕ̅ⲅ̅ⲡⲉϫⲉⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲙ̅ⲡϩⲙ̅ϩⲁⲗ ϫⲉ ⲃⲱⲕ ⲉⲃⲟⲗ ⲉⲛⲉϩⲓⲟⲟⲩⲉ ⲛⲙ̅ⲙⲁ ⲙ̅ⲙⲟⲟϣⲉ ⲛⲅ̅ⲁⲛⲁⲅⲕⲁⲍⲉ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ⲉⲉ͡ⲓ ⲉϩⲟⲩⲛ ϫⲉ ⲉⲣⲉⲡⲁⲏⲓ̈ ⲙⲟⲩϩ
24 यह निश्चित है कि वे, जिन्हें पहले आमंत्रित किया गया था, उनमें से एक भी मेरे भोज को चख न सकेगा.’”
ⲕ̅ⲇ̅ϯϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ⲛⲏⲧⲛ̅ ϫⲉ ⲙ̅ⲙⲛ̅ⲗⲁⲁⲩ ⲛ̅ⲛⲉⲧʾⲧⲁϩⲙ̅ ⲛⲁϫⲓϯⲡⲉ ⲙ̅ⲡⲁⲇⲉⲓⲡⲛⲟⲛ·
25 एक बड़ी भीड़ प्रभु येशु के साथ साथ चल रही थी. प्रभु येशु ने मुड़कर उनसे कहा,
ⲕ̅ⲉ̅ⲛⲉⲩⲙⲟⲟϣⲉ ⲇⲉ ⲛⲙ̅ⲙⲁϥ ⲡⲉ ⲛ̅ϭⲓϩⲉⲛⲙⲏⲏϣⲉ ⲉⲛⲁϣⲱⲟⲩ. ⲁϥⲕⲟⲧϥ̅ ⲇⲉ ⲡⲉϫⲁϥ ⲛⲁⲩ
26 “यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, संतान तथा भाई बहनों को, यहां तक कि स्वयं अपने जीवन को, मुझसे अधिक महत्व देता है, मेरा चेला नहीं हो सकता.
ⲕ̅ⲋ̅ϫⲉ. ⲡⲉⲧⲛⲏⲟⲩ ϣⲁⲣⲟⲓ̈ ⲉⲛϥ̅ⲙⲟⲥⲧⲉ ⲁⲛ ⲙ̅ⲡⲉϥⲓ̈ⲱⲧʾ. ⲛⲙ̅ⲧⲉϥⲙⲁⲁⲩ. ⲛⲙ̅ⲧⲉϥⲥϩⲓⲙⲉ. ⲛⲙ̅ⲛⲉϥϣⲏⲣⲉ. ⲛⲙ̅ⲛⲉϥⲥⲛⲏⲟⲩ. ⲛⲙ̅ⲛⲉϥⲥⲱⲛⲉ. ⲉⲧⲓ ⲇⲉ ⲧⲉϥⲕⲉⲯⲩⲭⲏ ⲙ̅ⲙⲛ̅ϣϭⲟⲙ ⲉⲧⲣⲉϥⲣ̅ⲙⲁⲑⲏⲧⲏⲥ ⲛⲁⲓ̈
27 वह, जो अपना क्रूस स्वयं उठाए हुए मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा चेला हो ही नहीं सकता.
ⲕ̅ⲍ̅ⲁⲩⲱ ⲡⲉⲧⲉⲛϥ̅ⲛⲁϥⲓ ⲁⲛ ⲙ̅ⲡⲉϥⲥxⲟⲥ ⲙ̅ⲙⲏⲛⲉ ⲛϥ̅ⲟⲩⲁϩϥ̅ ⲛ̅ⲥⲱⲓ̈ ⲙ̅ⲙⲛ̅ϣϭⲟⲙ ⲉⲧⲣⲉϥϣⲱⲡⲉ ⲛⲁⲓ̈ ⲙ̅ⲙⲁⲑⲏⲧⲏⲥ.
28 “तुममें ऐसा कौन है, जो भवन निर्माण करना चाहे और पहले बैठकर खर्च का अनुमान न करे कि उसके पास निर्माण काम पूरा करने के लिए पर्याप्त राशि है भी या नहीं?
ⲕ̅ⲏ̅ⲛⲓⲙ ⲅⲁⲣ ⲙ̅ⲙⲱⲧⲛ̅ ⲉϥⲟⲩⲉϣⲕⲉⲧʾⲟⲩⲡⲩⲣⲅⲟⲥ ⲙⲏ ⲛϥ̅ⲛⲁϩⲙⲟⲟⲥ ⲁⲛ ⲛ̅ϣⲟⲣⲡ̅ ⲛϥ̅ϥⲓⲡⲱⲡ ⲛ̅ⲧⲉϥⲧⲁⲡⲁⲛⲏ ϫⲉ ⲟⲩⲛⲧⲁϥ ⲉϫⲟⲕϥ̅ ⲉⲃⲟⲗ
29 अन्यथा यदि वह नींव डाल ले और काम पूरा न कर पाए तो देखनेवालों के ठट्ठों का कारण बन जाएगा:
ⲕ̅ⲑ̅ϫⲉⲕⲁⲥ ⲉⲛⲛⲉϥⲥⲙⲛ̅ⲥⲛⲧⲉ ⲛϥ̅ⲧⲙ̅ϭⲙ̅ϭⲟⲙ ⲉϫⲟⲕϥ̅ ⲉⲃⲟⲗ ⲛ̅ⲧⲉⲟⲩⲟⲛ ⲛⲓⲙ ⲉⲧⲛⲁⲩ ⲉⲣⲟϥ ⲥⲱⲃⲉ ⲛ̅ⲥⲱϥ
30 ‘देखो, देखो! इसने काम प्रारंभ तो कर दिया किंतु अब समाप्त नहीं कर पा रहा!’
ⲗ̅ⲉⲩϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ϫⲉ ⲁⲡⲉⲓ̈ⲣⲱⲙⲉ ⲁⲣⲭⲓ ⲛ̅ⲕⲱⲧʾ ⲙ̅ⲡϥⲉϣϭⲙ̅ϭⲟⲙ ⲉϫⲟⲕϥ̅ ⲉⲃⲟⲗ.
31 “या ऐसा कौन राजा होगा, जो दूसरे पर आक्रमण करने के पहले यह विचार न करेगा कि वह अपने दस हज़ार सैनिकों के साथ अपने विरुद्ध बीस हज़ार की सेना से टक्कर लेने में समर्थ है भी या नहीं?
ⲗ̅ⲁ̅ⲏ ⲛⲓⲙ ⲛⲣ̅ⲣⲟ ⲉϥⲛⲁⲃⲱⲕ ⲉⲙⲓϣⲉ ⲛⲙ̅ⲕⲉⲣ̅ⲣⲟ ⲙⲏ ⲛϥ̅ⲛⲁϩⲙⲟⲟⲥ ⲁⲛ ⲛ̅ϣⲟⲣⲡ̅ ⲛϥ̅ϫⲓϣⲟϫⲛⲉ ϫⲉ ⲟⲩⲛϭⲟⲙ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲉⲧⲱⲙⲧ̅ʾ ϩⲛⲟⲩⲧⲃ͡ⲁ ⲉⲡⲉⲧⲛⲏⲟⲩ ⲉϫⲱϥ ⲛⲙ̅ⲧⲃⲁ ⲥⲛⲁⲩ.
32 यदि नहीं, तो जब शत्रु की सेना दूर ही है, वह अपने दूतों को भेजकर उसके सामने शांति का प्रस्ताव रखेगा.
ⲗ̅ⲃ̅ⲉϣⲱⲡⲉ ⲙ̅ⲙⲟⲛ ⲉⲧⲓ ⲉϥⲙ̅ⲡⲟⲩⲉ ϥⲛⲁϫⲟⲟⲩ ⲛ̅ϩⲉⲛϥⲁⲓ̈ϣⲓⲛⲉ ⲉϥⲥⲟⲡⲥ̅ ϫⲉ ⲁⲣⲓⲉ͡ⲓⲣⲏⲛⲏ.
33 इसी प्रकार तुममें से कोई भी मेरा चेला नहीं हो सकता यदि वह अपना सब कुछ त्याग न कर दे.
ⲗ̅ⲅ̅ⲧⲁⲓ̈ ϭⲉ ⲧⲉ ⲑⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲟⲛ ⲛⲓⲙ ⲉⲃⲟⲗ ⲛ̅ϩⲏⲧʾⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲉⲛϥ̅ⲛⲁⲁⲡⲟⲧⲁⲥⲥⲉ ⲁⲛ ⲛ̅ⲛⲉϥϩⲩⲡⲁⲣⲭⲟⲛⲧⲁ ⲧⲏⲣⲟⲩ. ⲙ̅ⲙⲛ̅ϣϭⲟⲙ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲉⲧⲣⲉϥϣⲱⲡⲉ ⲛⲁⲓ̈ ⲙ̅ⲙⲁⲑⲏⲧⲏⲥ.
34 “नमक उत्तम है किंतु यदि नमक ही स्वादहीन हो जाए तो किस वस्तु से उसका स्वाद लौटाया जा सकेगा?
ⲗ̅ⲇ̅ⲛⲁⲛⲟⲩⲡⲉϩⲙⲟⲩ ⲇⲉ ⲉⲣϣⲁⲛⲡⲕⲉϩⲙⲟⲩ ⲇⲉ ⲃⲁⲁⲃⲉ ⲉⲩⲛⲁⲙⲟⲗϩϥ̅ ⲛⲟⲩ.
35 तब वह न तो भूमि के लिए किसी उपयोग का रह जाता है और न खाद के रूप में किसी उपयोग का. उसे फेंक दिया जाता है. “जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले.”
ⲗ̅ⲉ̅ⲙⲉϥⲣ̅ϣⲁⲩ ⲉⲡⲕⲁϩ ⲟⲩⲧⲉ ⲉⲧⲕⲟⲡⲣⲓⲁ ⲉϣⲁⲩⲛⲟϫϥ̅ ⲉⲃⲟⲗ. ⲡⲉⲧⲉⲟⲩⲛⲙⲁⲁϫⲉ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲉⲥⲱⲧⲙ̅ ⲙⲁⲣⲉϥⲥⲱⲧⲙ̅·