< यूहन्ना 6 >

1 इन बातों के बाद मसीह येशु गलील अर्थात् तिबेरियॉस झील के उस पार चले गए.
After these things Jesus went beyond the Sea of Galilee, of Tiberias.
2 उनके द्वारा रोगियों को स्वास्थ्यदान के अद्भुत चिह्नों से प्रभावित एक बड़ी भीड़ उनके साथ हो ली.
And a great multitude followed Him, because they saw the miracles He was doing in behalf of the sick.
3 मसीह येशु पर्वत पर जाकर वहां अपने शिष्यों के साथ बैठ गए.
And Jesus came into the mountain; and was sitting there with His disciples.
4 यहूदियों का फ़सह उत्सव पास था.
And the passover, the feast of the Jews, was nigh.
5 जब मसीह येशु ने बड़ी भीड़ को अपनी ओर आते देखा तो फ़िलिप्पॉस से पूछा, “इन सबको खिलाने के लिए हम भोजन कहां से मोल लेंगे?”
Therefore Jesus lifting up His eyes, and seeing that a great multitude is coming to Him, He says to Philip, Whence can we purchase bread, that these may eat?
6 मसीह येशु ने यह प्रश्न उन्हें परखने के लिए किया था क्योंकि वह जानते थे कि वह क्या करने पर थे.
He spoke this testing him; for He knew what He was about to do.
7 फ़िलिप्पॉस ने उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटियां भी उनके लिए पर्याप्‍त नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल पाए.”
Philip responded to Him, The loaves of two hundred denaria are not sufficient for these, that each one may receive a little.
8 मसीह येशु के शिष्य शिमओन पेतरॉस के भाई आन्द्रेयास ने उन्हें सूचित किया,
And one of His disciples, Andrew, the brother of Peter, says to Him,
9 “यहां एक लड़का है, जिसके पास जौ की पांच रोटियां और दो मछलियां हैं किंतु उनसे इतने लोगों का क्या होगा?”
There is a lad here who has five barley loaves and two fishes: but what are these among so many?
10 मसीह येशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो” और वे सब, जिनमें पुरुषों की ही संख्या पांच हज़ार थी, घनी घास पर बैठ गए.
And Jesus said, Make the people sit down. And there was much grass in the place. However the men sat down in number about five thousand.
11 तब मसीह येशु ने रोटियां लेकर धन्यवाद दिया और उनकी ज़रूरत के अनुसार बांट दीं और उसी प्रकार मछलियां भी.
And Jesus took the bread; and gave thanks, and gave it to the disciples, and the disciples to the people sitting down; and likewise also of the fishes so much as they wished.
12 जब वे सब तृप्‍त हो गए तो मसीह येशु ने अपने शिष्यों को आज्ञा दी, “शेष टुकड़ों को इकट्ठा कर लो कि कुछ भी नाश न हो,”
And when they were filled, He says to His disciples, Gather up the remaining fragments, that nothing may be lost.
13 उन्होंने जौ की उन पांच रोटियों के शेष टुकड़े इकट्ठा किए, जिनसे बारह टोकरे भर गए.
Then they gathered them up, and filled twelve baskets from the live barley loaves, which remained to those having eaten.
14 लोगों ने इस अद्भुत चिह्न को देखकर कहा, “निःसंदेह यह वही भविष्यवक्ता हैं, संसार जिनकी प्रतीक्षा कर रहा है.”
Then the people, seeing the miracle which Jesus did, were saying, that, This is truly the prophet who is coming into the world.
15 जब मसीह येशु को यह मालूम हुआ कि लोग उन्हें ज़बरदस्ती राजा बनाने के उद्देश्य से ले जाना चाहते हैं तो वह फिर से पर्वत पर अकेले चले गए.
And Jesus knowing that they are about to come and take Him, that they may make Him king, departs again into the mountain Himself alone.
16 जब संध्या हुई तो मसीह येशु के शिष्य झील के तट पर उतर गए.
And when it was evening, His disciples went down to the sea;
17 अंधेरा हो चुका था और मसीह येशु अब तक उनके पास नहीं पहुंचे थे. उन्होंने नाव पर सवार होकर गलील झील के दूसरी ओर कफ़रनहूम नगर के लिए प्रस्थान किया.
and embarking in the ship, they were going to the other side of the sea into Capernaum. And it was already dark, and Jesus had not come to them;
18 उसी समय तेज हवा के कारण झील में लहरें बढ़ने लगीं.
and the sea wrought, a great wind blowing.
19 नाव को लगभग पांच किलोमीटर खेने के बाद शिष्यों ने मसीह येशु को जल सतह पर चलते और नाव की ओर आते देखा. यह देखकर वे भयभीत हो गए.
Then having gone about twenty-five or thirty furlongs, they see Jesus walking on the sea, and being near the ship; and were terrified.
20 मसीह येशु ने उनसे कहा, “भयभीत मत हो, मैं हूं.”
And He says to them, I am here; fear not.
21 यह सुन शिष्य मसीह येशु को नाव में चढ़ाने को तैयार हो गए. इसके बाद नाव उस किनारे पर पहुंच गई जहां उन्हें जाना था.
Then they wished to receive Him into the ship, and immediately the ship was at the land to which they were going.
22 अगले दिन झील के उस पार रह गई भीड़ को मालूम हुआ कि वहां केवल एक छोटी नाव थी और मसीह येशु शिष्यों के साथ उसमें नहीं गए थे—केवल शिष्य ही उसमें दूसरे पार गए थे.
On the following day the multitude standing beyond the sea saw that there was no other ship there, except one, and that Jesus did not go along with His disciples into the ship, but His disciples went away alone
23 तब तिबेरियॉस नगर से अन्य नावें उस स्थान पर आईं, जहां प्रभु ने बड़ी भीड़ को भोजन कराया था.
(other ships came from Tiberias near the place where they ate the bread, the Lord having given thanks).
24 जब भीड़ ने देखा कि न तो मसीह येशु वहां हैं और न ही उनके शिष्य, तो वे मसीह येशु को खोजते हुए नावों द्वारा कफ़रनहूम नगर पहुंच गए.
And when the multitude saw that Jesus was not there, nor His disciples, they went into ships, and came into Capernaum, seeking Jesus.
25 झील के इस पार मसीह येशु को पाकर उन्होंने उनसे पूछा, “रब्बी, आप यहां कब पहुंचे?”
And having found Him beyond the sea, they said to Him, Master, when did you come hither?
26 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं: तुम मुझे इसलिये नहीं खोज रहे कि तुमने अद्भुत चिह्न देखे हैं परंतु इसलिये कि तुम रोटियां खाकर तृप्‍त हुए हो.
Jesus responded to them and said, Truly, truly, I say unto you, You seek me not because you saw the miracles, but because you ate of the loaves, and were filled.
27 उस भोजन के लिए मेहनत मत करो, जो नाशमान है परंतु उसके लिए, जो अनंत जीवन तक ठहरता है, जो मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा क्योंकि पिता अर्थात् परमेश्वर ने समर्थन के साथ मात्र उसी को यह अधिकार सौंपा है.” (aiōnios g166)
Labor not for the food that perishes, but the food that abideth unto eternal life, which the Son of man gives to you: for this God the Father hath sealed. (aiōnios g166)
28 इस पर उन्होंने मसीह येशु से पूछा, “हमसे परमेश्वर की इच्छा क्या है?”
Then they said to Him, What must we do, that we may work the works of God?
29 “यह कि तुम परमेश्वर के भेजे हुए पर विश्वास करो,” मसीह येशु ने उत्तर दिया.
Jesus responded and said to them, This is the work of God, that you may believe on Him whom He hath sent.
30 इस पर उन्होंने मसीह येशु से दोबारा पूछा, “आप ऐसा कौन सा अद्भुत चिह्न दिखा सकते हैं कि हम आप में विश्वास करें? क्या है वह काम?
Then they said to Him, Then what miracle do you perform, that we may see, and believe you, what you may do?
31 हमारे पूर्वजों ने बंजर भूमि में मन्‍ना खाया; पवित्र शास्त्र के अनुसार: भोजन के लिए परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग से रोटी दी.”
Our fathers ate manna in the wilderness; as has been written, He gave them bread from heaven to eat.
32 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं: स्वर्ग से वह रोटी तुम्हें मोशेह ने नहीं दी; मेरे पिता ही हैं, जो तुम्हें स्वर्ग से वास्तविक रोटी देते हैं.
Then Jesus said to them, Truly, truly, I say unto you, Moses did not give you the bread from heaven; but my Father gives you the true bread from heaven.
33 क्योंकि परमेश्वर की रोटी वह है, जो स्वर्ग से आती है, और संसार को जीवन प्रदान करती है.”
For the bread of God is the One coming down from heaven, and giving life to the world.
34 यह सुनकर उन्होंने विनती की, “प्रभु, अब से हमें यही रोटी दें.”
Then they said to Him, Lord, evermore give to us this bread.
35 इस पर मसीह येशु ने घोषणा की, “मैं ही हूं वह जीवन की रोटी. जो मेरे पास आएगा, वह भूखा न रहेगा और जो मुझमें विश्वास करेगा, कभी प्यासा न रहेगा.
Then Jesus said to them, I am the bread of life; the one coming unto me can never hunger, and the one believing on me shall never thirst.
36 मैं तुमसे पहले भी कह चुका हूं कि तुम मुझे देखकर भी मुझमें विश्वास नहीं करते.
But I said unto you, That you have seen, and you do not believe.
37 वे सभी, जो पिता ने मुझे दिए हैं, मेरे पास आएंगे और हर एक, जो मेरे पास आता है, मैं उसको कभी भी न छोड़ूंगा.
Everything which the Father giveth unto me shall come to me; and him that cometh unto me I will in no wise cast out.
38 मैं स्वर्ग से अपनी इच्छा पूरी करने नहीं, अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिए आया हूं.
Because I have come down from heaven, not that I may do my own will, but the will of Him that sent me.
39 मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उन्होंने मुझे सौंपा है, उसमें से मैं कुछ भी न खोऊं परंतु अंतिम दिन में उसे फिर से जीवित करूं.
And this is the will of the One having sent me, that everything that the Father has given unto me I shall lose nothing of it, but I shall raise it up in the last day.
40 क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है कि हर एक, जो पुत्र को अपनाकर उसमें विश्वास करे, वह अनंत काल का जीवन प्राप्‍त करे तथा मैं उसे अंतिम दिन में फिर से जीवित करूं.” (aiōnios g166)
For this is the will of my Father, that every one seeing the Son, and believing on Him, may have eternal life; and I will raise him up in the last day. (aiōnios g166)
41 मसीह येशु का यह दावा सुनकर: “स्वर्ग से उतरी रोटी मैं ही हूं,” यहूदी अगुए कुड़कुड़ाने लगे
Then the Jews were murmuring concerning Him, because He said, I am the bread having come down from heaven,
42 और आपस में मंत्रणा करने लगे, “क्या यह योसेफ़ का पुत्र येशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो अब यह कैसे कह रहा है कि यह स्वर्ग से आया है?”
and they continued to say, Is this not Jesus, the son of Joseph, whose father and mother we know? how does He now say; I have come down from heaven?
43 यह जानकर मसीह येशु ने उनसे कहा, “कुड़कुड़ाओ मत,
Jesus responded and said to them, Murmur not with one another.
44 कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक मेरे भेजनेवाले—पिता—उसे अपनी ओर खींच न लें. मैं उसे अंतिम दिन में फिर से जीवित करूंगा.
No one is able to come unto me, unless the Father who sent me may draw him: and I will raise him up in the last day.
45 भविष्यद्वक्ताओं के अभिलेख में यह लिखा हुआ है: वे सब परमेश्वर द्वारा सिखाए हुए होंगे, अतः हर एक, जिसने पिता परमेश्वर को सुना और उनसे सीखा है, मेरे पास आता है.
It is written in the prophets, They shall all be taught of God; every one hearing and learning from the Father, comes to me.
46 किसी ने पिता परमेश्वर को नहीं देखा सिवाय उसके, जो पिता परमेश्वर से है, केवल उसी ने उन्हें देखा है.
No one has seen the Father, except the One who is with God, He hath seen God.
47 मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं: अनंत काल का जीवन उसी का है, जो विश्वास करता है. (aiōnios g166)
Truly, truly, I say unto you, the one believing has eternal life. (aiōnios g166)
48 मैं ही हूं जीवन की रोटी.
I am the bread of life.
49 बंजर भूमि में तुम्हारे पूर्वजों ने मन्‍ना खाया फिर भी उनकी मृत्यु हो गई.
Your fathers ate the manna in the wilderness, and died;
50 मैं ही स्वर्ग से उतरी रोटी हूं कि जो कोई इसे खाए, उसकी मृत्यु न हो.
this is the bread coming down from heaven, that any one may eat of it, and not die.
51 स्वर्ग से उतरी जीवन की रोटी मैं ही हूं. जो कोई यह रोटी खाता है, वह हमेशा जीवित रहेगा. जो रोटी मैं दूंगा, वह संसार के जीवन के लिए भेंट मेरा शरीर है.” (aiōn g165)
I am the living bread, having come down from heaven; if any one may eat of me the bread, he will live forever: and the bread which I will give for the life of the world is my flesh. (aiōn g165)
52 यह सुनकर यहूदी अगुए आपस में विवाद करने लगे, “यह व्यक्ति कैसे हमें अपना शरीर खाने के लिए दे सकता है?”
Then the Jews were contending with one another, saying, How is this One able to give unto us His flesh to eat?
53 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं: जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का शरीर न खाओ और उसका लहू न पियो, तुममें जीवन नहीं.
Then Jesus said unto them, Truly, truly, I say unto you, Unless you may eat the flesh of the Son of man and drink His blood, you have no life in you.
54 अनंत काल का जीवन उसी का है, जो मेरा शरीर खाता और मेरा लहू पीता है; अंतिम दिन मैं उसे फिर से जीवित करूंगा. (aiōnios g166)
The one eating my flesh and drinking my blood has eternal life; and I will raise him up in the last day. (aiōnios g166)
55 मेरा शरीर ही वास्तविक भोजन और मेरा लहू ही वास्तविक पेय है.
For my flesh is the true food, and my blood is the true drink.
56 जो मेरा शरीर खाता और मेरा लहू पीता है, वही है, जो मुझमें बना रहता है और मैं उसमें.
The one eating my flesh and drinking my blood abides in me, and I in him.
57 जैसे जीवन्त पिता परमेश्वर ने मुझे भेजा है और मैं पिता के कारण जीवित हूं, वैसे ही वह भी, जो मुझे ग्रहण करता है, मेरे कारण जीवित रहेगा.
As the living Father sent me, and I live through the Father; truly the one eating me, shall also live through me.
58 यह वह रोटी है, जो स्वर्ग से उतरी हुई है; वैसी नहीं, जो पूर्वजों ने खाई और फिर भी उनकी मृत्यु हो गई; परंतु वह, जो यह रोटी खाता है, हमेशा जीवित रहेगा.” (aiōn g165)
He is the bread having come down from heaven: not as the fathers ate, and died: the one eating this bread shall live forever. (aiōn g165)
59 मसीह येशु ने ये बातें कफ़रनहूम नगर के यहूदी सभागृह में शिक्षा देते हुए बताईं.
And He spoke these things in the synagogue, teaching in Capernaum.
60 यह बातें सुनकर उनके अनेक शिष्यों ने कहा, “बहुत कठोर है यह शिक्षा. कौन इसे स्वीकार कर सकता है?”
Then many of His disciples, hearing, said, This is a hard sermon; who is able to hear it?
61 अपने चेलों की बड़बड़ाहट का अहसास होने पर मसीह येशु ने कहा, “क्या यह तुम्हारे लिए ठोकर का कारण है?
And Jesus knowing in Himself that His disciples are murmuring concerning it, said to them, Does this offend you?
62 तुम तब क्या करोगे जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊपर स्वर्ग में जाते देखोगे, जहां वह पहले था?
If then you may see the Son of man ascending up, where He was formerly?
63 आत्मा ही हैं, जो शरीर को जीवन देती है. केवल शरीर का कुछ महत्व नहीं. जो वचन मैंने तुमसे कहे हैं, वे आत्मा हैं और जीवन भी.
The Spirit is the One who creates life; the flesh profits nothing; the words which I have spoken unto you are spirit and life.
64 फिर भी तुममें कुछ हैं, जो मुझमें विश्वास नहीं करते.” मसीह येशु प्रारंभ से जानते थे कि कौन हैं, जो उनमें विश्वास नहीं करेंगे और कौन है वह, जो उनके साथ धोखा करेगा.
But there are certain ones of you who do not believe. For Jesus knew from the beginning that there are certain ones not believing, and there is one going to betray Him.
65 तब मसीह येशु ने आगे कहा, “इसलिये मैंने तुमसे यह कहा कि कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक पिता उसे मेरे पास न आने दें.”
And He said, Therefore I have said unto you, that no one is able to come unto me, unless it may have been given unto him of the Father.
66 इसके परिणामस्वरूप मसीह येशु के अनेक चेले पीछे हट गए और उनके पीछे चलना छोड़ दिया.
Moreover from this many of His disciples went back, and walked with Him no more.
67 यह देख मसीह येशु ने अपने बारह शिष्यों से अभिमुख हो उनसे पूछा, “कहीं तुम भी तो लौट जाना नहीं चाहते?”
Then Jesus said to the twelve, Do you also wish to go away?
68 शिमओन पेतरॉस ने उत्तर दिया, “प्रभु, हम किसके पास जाएं? अनंत काल के जीवन की बातें तो आप ही के पास हैं. (aiōnios g166)
Simon Peter responded to Him, Lord, to whom shall we go away? thou hast the words of eternal life; (aiōnios g166)
69 हमने विश्वास किया और जान लिया है कि आप ही परमेश्वर के पवित्र जन हैं.”
we have believed and we know that thou art the Holy One of God.
70 मसीह येशु ने उनसे कहा, “क्या स्वयं मैंने तुम बारहों को नहीं चुना? यह होने पर भी तुममें से एक इबलीस है.”
Jesus responded to them, Have I not chosen you twelve, and one of you is devilish?
71 (उनका इशारा कारियोतवासी शिमओन के पुत्र यहूदाह की ओर था क्योंकि उन बारह शिष्यों में से वही मसीह येशु के साथ धोखा करने पर था.)
But He spoke of Judas Iscariot the son of Simon, for he was going to betray Him, being one of the twelve.

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