< यूहन्ना 10 >
1 “मैं तुम फ़रीसियों पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं. वह, जो भेड़शाला में द्वार से प्रवेश नहीं करता परंतु बाड़ा फांद कर घुसता है, चोर और लुटेरा है,
“Truly, truly, I say to you, he who does not enter the sheepfold by the gate but climbs in by another way is a thief and a robber.
2 परंतु जो द्वार से प्रवेश करता है, वह भेड़ों का चरवाहा है.
But he who enters by the gate is the shepherd of the sheep.
3 उसके लिए द्वारपाल द्वार खोल देता है, भेड़ें उसकी आवाज सुनती हैं. वह अपनी भेड़ों को नाम लेकर बुलाता और उन्हें बाहर ले जाता है.
The gatekeeper opens the gate for him, and the sheep hear his voice. He calls his own sheep by name and leads them out.
4 अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल लेने के बाद वह उनके आगे-आगे चलता है और भेड़ें उसके पीछे-पीछे क्योंकि वे उसकी आवाज पहचानती हैं.
When he has brought out his own sheep, he goes ahead of them, and the sheep follow him because they recognize his voice.
5 वे किसी अनजान के पीछे कभी नहीं चलेंगी परंतु उससे भागेंगी क्योंकि वे उस अनजान की आवाज नहीं पहचानतीं.”
They will certainly not follow a stranger, but will flee from him because they do not recognize the voice of strangers.”
6 मसीह येशु के इस दृष्टांत का मतलब सुननेवाले फ़रीसी नहीं समझे कि वह उनसे कहना क्या चाह रहे थे.
Jesus spoke to them with this figure of speech, but they did not understand what he was saying to them.
7 इसलिये मसीह येशु ने दोबारा कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं: भेड़ों का द्वार मैं ही हूं.
So Jesus said to them again, “Truly, truly, I say to you, I am the gate for the sheep.
8 वे सभी, जो मुझसे पहले आए, चोर और लुटेरे थे. भेड़ों ने उनकी नहीं सुनी.
All who came before are thieves and robbers, but the sheep did not listen to them.
9 द्वार मैं ही हूं. यदि कोई मुझसे होकर प्रवेश करता है तो उद्धार प्राप्त करेगा. वह भीतर बाहर आया जाया करेगा और चारा पाएगा.
I am the gate; if anyone enters through me, he will be saved and will come in and go out and find pasture.
10 चोर किसी अन्य उद्देश्य से नहीं, मात्र चुराने, हत्या करने और नाश करने आता है; मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं और बहुतायत का जीवन पाएं.
The thief comes only to steal, kill, and destroy. I have come that they may have life, and have it abundantly.
11 “मैं ही हूं अच्छा चरवाहा. अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण दे देता है.
I am the good shepherd; the good shepherd lays down his life for the sheep.
12 मज़दूर, जो न तो चरवाहा है और न भेड़ों का स्वामी, भेड़िये को आते देख भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है. भेड़िया उन्हें पकड़ता है और वे तितर-बितर हो जाती हैं.
But the hired hand is not the shepherd and does not own the sheep. So when he sees the wolf coming, he leaves the sheep and flees, and the wolf snatches the sheep and scatters them.
13 इसलिये कि वह मज़दूर है, उसे भेड़ों की कोई चिंता नहीं है.
The hired hand flees, for he is a hired hand and does not care about the sheep.
14 “मैं ही हूं अच्छा चरवाहा. मैं अपनों को जानता हूं और मेरे अपने मुझे;
I am the good shepherd. I know my sheep and my sheep know me,
15 ठीक जिस प्रकार पिता परमेश्वर मुझे जानते हैं, और मैं उन्हें. भेड़ों के लिए मैं अपने प्राण भेंट कर देता हूं.
even as the Father knows me and I know the Father. I lay down my life for the sheep.
16 मेरी और भी भेड़ें हैं, जो अब तक इस भेड़शाला में नहीं हैं. मुझे उन्हें भी लाना है. वे मेरी आवाज सुनेंगी; तब एक ही झुंड और एक ही चरवाहा होगा.
I have other sheep that are not of this fold. I must bring them also, and they will hear my voice. And there will be one flock, one shepherd.
17 पिता मुझसे प्रेम इसलिये करते हैं कि मैं अपने प्राण भेंट कर देता हूं—कि उन्हें दोबारा प्राप्त करूं.
This is why the Father loves me, because I lay down my life so that I may take it up again.
18 कोई भी मुझसे मेरे प्राण छीन नहीं रहा—मैं अपने प्राण अपनी इच्छा से भेंट कर रहा हूं. मुझे अपने प्राण भेंट करने और उसे दोबारा प्राप्त करने का अधिकार है, जो मुझे अपने पिता की ओर से प्राप्त हुआ है.”
No one takes it from me, but I lay it down of my own accord. I have authority to lay it down, and I have authority to take it up again. I received this commandment from my Father.”
19 मसीह येशु के इस वक्तव्य के कारण यहूदियों में दोबारा मतभेद उत्पन्न हो गया.
At these words there was again a division among the Jews.
20 उनमें से कुछ ने कहा, “यह दुष्टात्मा से पीड़ित है या निपट सिरफिरा. क्यों सुनते हो तुम उसकी?”
Many of them were saying, “He has a demon and is out of his mind; why do you listen to him?”
21 कुछ अन्य लोगों ने कहा, “ये वचन दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति के नहीं हो सकते; क्या कोई दुष्टात्मा अंधों को आंखों की रोशनी दे सकता है?”
Others were saying, “These are not the words of a man possessed by a demon. Can a demon open the eyes of the blind?”
22 शीत ऋतु थी और येरूशलेम में समर्पण पर्व मनाया जा रहा था.
Now it was the Feast of the Dedication in Jerusalem. It was winter,
23 मसीह येशु मंदिर परिसर में शलोमोन के द्वारा बनाए हुए मंडप में टहल रहे थे.
and Jesus was walking in the temple courts, in Solomon's Portico.
24 यहूदी अगुओं ने उन्हें घेर लिया और जानना चाहा, “तुम हमें कब तक दुविधा में डाले रहोगे? यदि तुम ही मसीह हो तो हमें स्पष्ट बता दो.”
So the Jews gathered around him and said to him, “How long are yoʋ going to keep us in suspense? If yoʋ are the Christ, tell us plainly.”
25 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “मैंने तो आपको बता दिया है, किंतु आप ही विश्वास नहीं करते. सभी काम, जो मैं अपने पिता के नाम में करता हूं, वे ही मेरे गवाह हैं.
Jesus answered them, “I did tell you, but you do not believe. The works that I do in my Father's name testify about me,
26 आप विश्वास नहीं करते क्योंकि आप मेरी भेड़ें नहीं हैं.
but you do not believe because you are not among my sheep, just as I told you.
27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज सुनती हैं. मैं उन्हें जानता हूं और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं.
My sheep hear my voice; I know them, and they follow me.
28 मैं उन्हें अनंत काल का जीवन देता हूं. वे कभी नाश न होंगी और कोई भी उन्हें मेरे हाथ से छीन नहीं सकता. (aiōn , aiōnios )
I give them eternal life, and they will certainly never perish, and no one will snatch them out of my hand. (aiōn , aiōnios )
29 मेरे पिता, जिन्होंने उन्हें मुझे सौंपा है, सबसे बड़ा हैं और कोई भी इन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता.
My Father, who has given them to me, is greater than all, and no one is able to snatch them out of my Father's hand.
30 मैं और पिता एक तत्व हैं.”
I and the Father are one.”
31 तब यहूदियों ने दोबारा उनका पथराव करने के लिए पत्थर उठा लिए.
Then the Jews picked up stones again to stone him.
32 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “मैंने अपने पिता की ओर से तुम्हारे सामने अनेक भले काम किए. उनमें से किस काम के लिए तुम मेरा पथराव करना चाहते हो?”
In response Jesus said to them, “I have shown you many good works from my Father; for which of these works are you going to stone me?”
33 यहूदियों ने उत्तर दिया, “भले काम के कारण नहीं, परंतु परमेश्वर-निंदा के कारण: तुम मनुष्य होते हुए स्वयं को परमेश्वर घोषित करते हो!”
The Jews answered him, “We are not going to stone yoʋ for a good work, but for blasphemy, and because yoʋ, being a man, make yoʋrself out to be God.”
34 मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या तुम्हारे व्यवस्था में यह नहीं लिखा: मैंने कहा कि तुम ईश्वर हो?
Jesus answered them, “Is it not written in your law, ‘I said, you are gods’?
35 जिन्हें परमेश्वर का संदेश दिया गया था, उन्हें ईश्वर कहकर संबोधित किया गया—और पवित्र शास्त्र का लेख टल नहीं सकता,
If he called them ‘gods,’ to whom the word of God came (and the Scripture cannot be broken),
36 तो जिसे पिता ने विशेष उद्देश्य पूरा करने के लिए अलग कर संसार में भेज दिया है, उसके विषय में आप यह घोषणा कर रहे हैं: ‘तुम परमेश्वर की निंदा कर रहे हो!’ क्या मात्र इसलिये कि मैंने यह दावा किया है, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूं’?
do you say of him whom the Father consecrated and sent into the world, ‘Yoʋ are blaspheming,’ because I said, ‘I am the Son of God’?
37 मत करो मुझमें विश्वास यदि मैं अपने पिता के काम नहीं कर रहा.
If I do not do the works of my Father, do not believe me.
38 परंतु यदि मैं ये काम कर ही रहा हूं, तो भले ही तुम मुझमें विश्वास न करो, इन कामों में तो विश्वास करो कि तुम जान जाओ और समझ लो कि पिता परमेश्वर मुझमें हैं और मैं पिता परमेश्वर में.”
But if I do them, even if you do not believe me, believe the works, so that you may know and believe that the Father is in me and I in him.”
39 इस पर उन्होंने दोबारा मसीह येशु को बंदी बनाने का प्रयास किया, किंतु वह उनके हाथ से बचकर निकल गए.
Again they sought to arrest him, but he eluded their grasp.
40 इसके बाद मसीह येशु यरदन नदी के पार दोबारा उस स्थान को चले गए, जहां पहले योहन बपतिस्मा देते थे और वह वहीं ठहरे रहे.
Then Jesus went away again to the other side of the Jordan, to the place where John had been baptizing at first, and he stayed there.
41 वहां अनेक लोग उनके पास आने लगे. वे कह रहे थे, “यद्यपि योहन ने कोई अद्भुत चिह्न नहीं दिखाया, फिर भी जो कुछ उन्होंने इनके विषय में कहा था, वह सब सच है.”
Many came to him and were saying, “John did no sign, but everything that John said about this man was true.”
42 वहां अनेक लोगों ने मसीह येशु में विश्वास किया.
And many of the people there believed in him.