< यिर्मयाह 9 >

1 अच्छा होता कि मेरा सिर जल का सोता तथा मेरे नेत्र आंसुओं से भरे जाते कि मैं घात किए गए अपने प्रिय लोगों के लिए रात-दिन विलाप करता रहता!
Oh that my head were waters, and mine eyes a fountain of tears, that I might weep day and night for the slain of the daughter of my people!
2 अच्छा होता कि मैं मरुभूमि में यात्रियों का आश्रय-स्थल होता, कि मैं अपने लोगों को परित्याग कर उनसे दूर जा सकता; उन सभी ने व्यभिचार किया है, वे सभी विश्‍वासघातियों की सभा हैं.
Oh that I had in the wilderness a lodging-place of wayfaring men; that I might leave my people, and go from them! for they are all adulterers, an assembly of treacherous men.
3 “वे अपनी जीभ का प्रयोग अपने धनुष सदृश करते हैं; देश में सत्य नहीं असत्य व्याप्‍त हो चुका है. वे एक संकट से दूसरे संकट में प्रवेश करते जाते हैं; वे मेरे अस्तित्व ही की उपेक्षा करते हैं,” यह याहवेह की वाणी है.
And they bend their tongue, [as it were] their bow, for falsehood; and they are grown strong in the land, but not for truth: for they proceed from evil to evil, and they know not me, saith Jehovah.
4 “उपयुक्त होगा कि हर एक अपने पड़ोसी से सावधान रहे; कोई अपने भाई-बन्धु पर भरोसा न करे. क्योंकि हर एक भाई का व्यवहार धूर्ततापूर्ण होता है, तथा हर एक पड़ोसी अपभाषण करता फिरता है.
Take ye heed every one of his neighbor, and trust ye not in any brother; for every brother will utterly supplant, and every neighbor will go about with slanders.
5 हर एक अपने पड़ोसी से छल कर रहा है, और सत्य उसके भाषण में है ही नहीं. अपनी जीभ को उन्होंने झूठी भाषा में प्रशिक्षित कर दिया है; अंत होने के बिंदु तक वे अधर्म करते जाते हैं.
And they will deceive every one his neighbor, and will not speak the truth: they have taught their tongue to speak lies; they weary themselves to commit iniquity.
6 तुम्हारा आवास धोखे के मध्य स्थापित है; धोखा ही वह कारण है, जिसके द्वारा वे मेरे अस्तित्व की उपेक्षा करते हैं,” यह याहवेह की वाणी है.
Thy habitation is in the midst of deceit; through deceit they refuse to know me, saith Jehovah.
7 इसलिये सेनाओं के याहवेह की चेतावनी यह है: “यह देख लेना, कि मैं उन्हें आग में शुद्ध करूंगा तथा उन्हें परखूंगा, क्योंकि अपने प्रिय लोगों के कारण मेरे समक्ष इसके सिवा और कौन सा विकल्प शेष रह जाता है?
Therefore thus saith Jehovah of hosts, Behold, I will melt them, and try them; for how [else] should I do, because of the daughter of my people?
8 उनकी जीभ घातक बाण है; जिसका वचन फंसाने ही का होता है. अपने मुख से तो वह अपने पड़ोसी को कल्याण का आश्वासन देता है, किंतु मन ही मन वह उसके लिए घात लगाने की युक्ति करता रहता है.
Their tongue is a deadly arrow; it speaketh deceit: one speaketh peaceably to his neighbor with his mouth, but in his heart he layeth wait for him.
9 क्या उपयुक्त नहीं कि मैं उन्हें इन कृत्यों के लिए दंड दूं?” यह याहवेह की वाणी है. “क्या मैं इस प्रकार के राष्ट्र से स्वयं बदला न लूं?”
Shall I not visit them for these things? saith Jehovah; shall not my soul be avenged on such a nation as this?
10 पर्वतों के लिए मैं विलाप करूंगा और चराइयों एवं निर्जन क्षेत्रों के लिए मैं शोक के गीत गाऊंगा. क्योंकि अब वे सब उजाड़ पड़े है कोई भी उनके मध्य से चला फिरा नहीं करता, वहां पशुओं के रम्भाने का स्वर सुना ही नहीं जाता. आकाश के पक्षी एवं पशु भाग चुके हैं, वे वहां हैं ही नहीं.
For the mountains will I take up a weeping and wailing, and for the pastures of the wilderness a lamentation, because they are burned up, so that none passeth through; neither can men hear the voice of the cattle; both the birds of the heavens and the beasts are fled, they are gone.
11 “येरूशलेम को मैं खंडहरों का ढेर, और सियारों का बसेरा बना छोड़ूंगा; यहूदिया प्रदेश के नगरों को मैं उजाड़ बना दूंगा वहां एक भी निवासी न रहेगा.”
And I will make Jerusalem heaps, a dwelling-place of jackals; and I will make the cities of Judah a desolation, without inhabitant.
12 कौन है वह बुद्धिमान व्यक्ति जो इसे समझ सकेगा? तथा कौन है वह जिससे याहवेह ने बात की कि वह उसकी व्याख्या कर सके? सारा देश उजाड़ कैसे हो गया? कैसे मरुभूमि सदृश निर्जन हो गई, कि कोई भी वहां से चला फिरा नहीं करता?
Who is the wise man, that may understand this? and [who is] he to whom the mouth of Jehovah hath spoken, that he may declare it? wherefore is the land perished and burned up like a wilderness, so that none passeth through?
13 याहवेह ने उत्तर दिया, “इसलिये कि उन्होंने मेरे विधान की अवहेलना की है, जो स्वयं मैंने उनके लिए नियत किया तथा उन्होंने न तो मेरे आदेशों का पालन किया और न ही उसके अनुरूप आचरण ही किया.
And Jehovah saith, Because they have forsaken my law which I set before them, and have not obeyed my voice, neither walked therein,
14 बल्कि, वे अपने हठीले हृदय की समझ के अनुरूप आचरण करते रहे; वे अपने पूर्वजों की शिक्षा पर बाल देवताओं का अनुसरण करते रहें.”
but have walked after the stubbornness of their own heart, and after the Baalim, which their fathers taught them;
15 इसलिये सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर ने निश्चय किया: “यह देख लेना, मैं उन्हें पेय के लिए कड़वा नागदौन तथा विष से भरा जल दूंगा.
therefore thus saith Jehovah of hosts, the God of Israel, Behold, I will feed them, even this people, with wormwood, and give them water of gall to drink.
16 मैं उन्हें ऐसे राष्ट्रों के मध्य बिखरा दूंगा जिन्हें न तो उन्होंने और न उनके पूर्वजों ने जाना है, मैं उनके पीछे उस समय तक तलवार तैयार रखूंगा, जब तक उनका पूर्ण अंत न हो जाए.”
I will scatter them also among the nations, whom neither they nor their fathers have known; and I will send the sword after them, till I have consumed them.
17 यह सेनाओं के याहवेह का आदेश है: “विचार करके उन स्त्रियों को बुला लो, जिनका व्यवसाय ही है विलाप करना, कि वे यहां आ जाएं; उन स्त्रियों को, जो विलाप करने में निपुण हैं,
Thus saith Jehovah of hosts, Consider ye, and call for the mourning women, that they may come; and send for the skilful women, that they may come:
18 कि वे यहां तुरंत आएं तथा हमारे लिए विलाप करें कि हमारे नेत्रों से आंसू उमड़ने लगे, कि हमारी पलकों से आंसू बहने लगे.
and let them make haste, and take up a wailing for us, that our eyes may run down with tears, and our eyelids gush out with waters.
19 क्योंकि ज़ियोन से यह विलाप सुनाई दे रहा है: ‘कैसे हो गया है हमारा विनाश! हम पर घोर लज्जा आ पड़ी है! क्योंकि हमने अपने देश को छोड़ दिया है क्योंकि उन्होंने हमारे आवासों को ढाह दिया है.’”
For a voice of wailing is heard out of Zion, How are we ruined! we are greatly confounded, because we have forsaken the land, because they have cast down our dwellings.
20 स्त्रियों, अब तुम याहवेह का संदेश सुनो; तुम्हारे कान उनके मुख के वचन सुनें. अपनी पुत्रियों को विलाप करना सिखा दो; तथा हर एक अपने-अपने पड़ोसी को शोक गीत सिखाए.
Yet hear the word of Jehovah, O ye women, and let your ear receive the word of his mouth; and teach your daughters wailing, and every one her neighbor lamentation.
21 क्योंकि मृत्यु का प्रवेश हमारी खिड़कियों से हुआ है यह हमारे महलों में प्रविष्ट हो चुका है; कि गलियों में बालक नष्ट किए जा सकें तथा नगर चौकों में से जवान.
For death is come up into our windows, it is entered into our palaces; to cut off the children from without, [and] the young men from the streets.
22 यह वाणी करो, “याहवेह की ओर से यह संदेश है: “‘मनुष्यों के शव खुले मैदान में विष्ठा सदृश पड़े हुए दिखाई देंगे, तथा फसल काटनेवाले द्वारा छोड़ी गई पूली सदृश, किंतु कोई भी इन्हें एकत्र नहीं करेगा.’”
Speak, Thus saith Jehovah, The dead bodies of men shall fall as dung upon the open field, and as the handful after the harvestman; and none shall gather [them].
23 याहवेह की ओर से यह आदेश है: “न तो बुद्धिमान अपनी बुद्धि का अहंकार करे न शक्तिवान अपने पौरुष का न धनाढ्य अपनी धन संपदा का,
Thus saith Jehovah, Let not the wise man glory in his wisdom, neither let the mighty man glory in his might, let not the rich man glory in his riches;
24 जो गर्व करे इस बात पर गर्व करे: कि उसे मेरे संबंध में यह समझ एवं ज्ञान है, कि मैं याहवेह हूं जो पृथ्वी पर निर्जर प्रेम, न्याय एवं धार्मिकता को प्रयोग करता हूं, क्योंकि ये ही मेरे आनंद का विषय है,” यह याहवेह की वाणी है.
but let him that glorieth glory in this, that he hath understanding, and knoweth me, that I am Jehovah who exerciseth lovingkindness, justice, and righteousness, in the earth: for in these things I delight, saith Jehovah.
25 “यह ध्यान रहे कि ऐसे दिन आ रहे हैं,” याहवेह यह वाणी दे रहे हैं, “जब मैं उन सभी को दंड दूंगा, जो ख़तनित होने पर भी अख़तनित ही हैं—
Behold, the days come, saith Jehovah, that I will punish all them that are circumcised in [their] uncircumcision:
26 मिस्र, यहूदिया, एदोम, अम्मोन वंशज, मोआब तथा वे सभी, जिनका निवास मरुभूमि में है, जो अपनी कनपटी के केश क़तर डालते हैं. ये सभी जनता अख़तनित हैं, तथा इस्राएल के सारे वंशज वस्तुतः हृदय में अख़तनित ही हैं.”
Egypt, and Judah, and Edom, and the children of Ammon, and Moab, and all that have the corners [of their hair] cut off, that dwell in the wilderness; for all the nations are uncircumcised, and all the house of Israel are uncircumcised in heart.

< यिर्मयाह 9 >