< यिर्मयाह 2 >

1 तब मुझे याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ:
I doszło do mnie słowo PANA mówiące:
2 “जाओ, येरूशलेम की प्रजा के कानों में वाणी करो: “यह याहवेह का संदेश है: “‘तुम्हारे विषय में मुझे स्मरण है: जवानी की तुम्हारी निष्ठा, दुल्हिन सा तुम्हारा प्रेम और निर्जन प्रदेश में तुम्हारे द्वारा मेरा अनुसरण, ऐसे देश में, जहां बीज बोया नहीं जाता था.
Idź i wołaj do uszu Jerozolimy tymi słowy: Tak mówi PAN: Wspominam cię, życzliwość twojej młodości [i] miłość twojego narzeczeństwa, gdy chodziłaś za mną na pustyni, w ziemi nieobsiewanej.
3 इस्राएल याहवेह के लिए पवित्र किया हुआ था, याहवेह की पहली उपज; जिस किसी ने इस उपज का उपभोग किया, वे दोषी हो गए; वे संकट से ग्रसित हो गए,’” यह याहवेह की वाणी है.
Izrael [był] świętością dla PANA [i] pierwocinami jego plonu. Wszyscy, którzy go pożerali, ściągali na siebie winę, spadało na nich nieszczęście, mówi PAN.
4 याकोब के वंशजों, याहवेह का संदेश सुनो, इस्राएल के सारे गोत्रों, तुम भी.
Słuchajcie słowa PANA, domu Jakuba, i wszystkie rody domu Izraela!
5 याहवेह का संदेश यह है: “तुम्हारे पूर्वजों ने मुझमें कौन सा अन्याय पाया, कि वे मुझसे दूर हो गए? निकम्मी वस्तुओं के पीछे होकर वे स्वयं निकम्मे बन गए.
Tak mówi PAN: Jaką nieprawość znaleźli we mnie wasi ojcowie, że oddalili się ode mnie, poszli za marnością i stali się próżni?
6 उन्होंने यह प्रश्न ही न किया, ‘कहां हैं याहवेह, जिन्होंने हमें मिस्र देश से मुक्त किया और जो हमें निर्जन प्रदेश में होकर यहां लाया. मरुभूमि तथा गड्ढों की भूमि में से, उस भूमि में से, जहां निर्जल तथा अंधकार व्याप्‍त था, उस भूमि में से जिसके पार कोई नहीं गया था, जिसमें कोई निवास नहीं करता था?’
I nie pytali: Gdzie [jest] PAN, który nas wyprowadził z ziemi Egiptu, który nas prowadził przez pustkowie, przez ziemię pustą i pełną rozpadlin, przez ziemię suszy i cienia śmierci, przez ziemię, po której nikt nie chodził i gdzie żaden człowiek nie mieszkał?
7 मैं तुम्हें उपजाऊ भूमि पर ले आया कि तुम इसकी उपज का सेवन करो और इसकी उत्तम वस्तुओं का उपयोग करो. किंतु तुमने आकर मेरी भूमि को अशुद्ध कर दिया और तुमने मेरे इस निज भाग को घृणास्पद बना दिया.
Ja was wprowadziłem do ziemi obfitej, abyście spożywali jej owoce i dobra, lecz gdy weszliście, splugawiliście moją ziemię i moje dziedzictwo uczyniliście obrzydliwością.
8 पुरोहितों ने यह समझने का प्रयास कभी नहीं किया, ‘याहवेह कहां हैं?’ आचार्य तो मुझे जानते ही न थे; उच्च अधिकारी ने मेरे विरोध में विद्रोह किया. भविष्यवक्ताओं ने बाल के द्वारा भविष्यवाणी की, तथा उस उपक्रम में लग गए जो निरर्थक है.
Kapłani nie pytali: Gdzie [jest] PAN? Ci, którzy zajmowali się prawem, nie poznali mnie. Pasterze odstąpili ode mnie i prorocy prorokowali przez Baala, i chodzili za bezużytecznymi rzeczami.
9 “तब मैं पुनः तुम्हारे समक्ष अपना सहायक प्रस्तुत करूंगा,” यह याहवेह की वाणी है. “मैं तुम्हारी संतान की संतान के समक्ष अपना सहायक प्रस्तुत करूंगा.
Dlatego będę wiódł spór z wami, mówi PAN, i z synami waszych synów będę się spierać.
10 सागर पार कर कित्तिम के तटवर्ती क्षेत्रों में देखो, किसी को केदार देश भेजकर सूक्ष्म अवलोकन करो; और ज्ञात करो कि कभी ऐसा हुआ है:
Przejdźcie bowiem na wyspy Kittim i zobaczcie; poślijcie do Kedaru i rozważcie dokładnie, przypatrzcie się, czy zdarzyło się coś podobnego:
11 क्या किसी राष्ट्र ने अपने देवता परिवर्तित किए हैं? (जबकि देवता कुछ भी नहीं हुआ करते.) किंतु मेरी प्रजा ने अपने गौरव का विनिमय उससे कर लिया है जो सर्वथा निरर्थक है.
Czy [jakiś] naród zmienił [swoich] bogów, choć ci nie [są] bogami? Ale mój lud zamienił swoją chwałę na to, co jest nieużyteczne.
12 आकाश, इस पर अपना भय अभिव्यक्त करो, कांप जाओ और अत्यंत सुनसान हो जाओ,” यह याहवेह की वाणी है.
Zdumiejcie się nad tym, niebiosa, ulęknijcie i bardzo się zatrwóżcie, mówi PAN;
13 “मेरी प्रजा ने दो बुराइयां की हैं: उन्होंने मुझ जीवन्त स्रोत का परित्याग कर दिया है, उन्होंने ऐसे हौद बना लिए हैं, जो टूटे हुए हैं, जो पानी को रोक नहीं सकते.
Bo mój lud popełnił podwójne zło: opuścił mnie, źródło żywych wód, i wykopał sobie cysterny, cysterny popękane, które nie mogą utrzymać wody.
14 क्या इस्राएल दास है, अथवा घर में ही जन्मा सेवक? तब उसका शिकार क्यों किया जा रहा है?
Czy Izrael [jest] sługą lub [niewolnikiem] z urodzenia? Czemu więc stał się łupem?
15 जवान सिंह उस पर दहाड़ते रहे हैं; अत्यंत सशक्त रही है उनकी दहाड़. उन्होंने उसके देश को उजाड़ बना दिया है; उसके नगरों को नष्ट कर दिया है और उसके नगर निर्जन रह गए हैं.
Lwięta ryczą na niego i wydają swój głos, i zamieniają jego ziemię w pustynię; jego miasta są spalone, pozbawione mieszkańców.
16 मैमफिस तथा ताहपनहेस के लोगों ने तुम्हारी उपज की बालें नोच डाली हैं.
Ponadto synowie Nof i Tachpanes starli czubek twojej głowy.
17 क्या यह स्वयं तुम्हारे ही द्वारा लाई हुई स्थिति नहीं है, जब याहवेह तुम्हें लेकर आ रहे थे, तुमने याहवेह अपने परमेश्वर का परित्याग कर दिया?
Czy nie sprawiłeś tego sam sobie, opuszczając PANA, swego Boga, kiedy prowadził cię drogą?
18 किंतु अब तुम मिस्र की ओर क्यों देखते हो? नील नदी के जल पीना तुम्हारा लक्ष्य है? अथवा तुम अश्शूर के मार्ग पर क्या कर रहे हो? क्या तुम्हारा लक्ष्य है, फरात नदी के जल का सेवन करना?
A teraz, po co ci drogi Egiptu – by pić wodę z Nilu? Albo po co ci drogi Asyrii – by pić wodę z [jej] rzeki?
19 तुम्हारी अपनी बुराई ही तुम्हें सुधारेगी; याहवेह के प्रति श्रद्धा से तुम्हारा भटक जाना ही तुम्हें प्रताड़ित करेगा. तब यह समझ लो तथा यह बात पहचान लो याहवेह अपने परमेश्वर का परित्याग करना हानिकर एवं पीड़ादायी है, तुममें मेरे प्रति भय-भाव है ही नहीं,” यह सेनाओं के प्रभु परमेश्वर की वाणी है.
Twoja niegodziwość ukarze cię i twoje odstępstwo cię skarci. Dlatego poznaj i zobacz, że rzeczą złą i gorzką jest to, że opuściłeś PANA, swego Boga, i że nie ma w tobie mojej bojaźni, mówi Pan, BÓG zastępów.
20 “वर्षों पूर्व मैंने तुम्हारा जूआ भंग कर दिया तथा तुम्हारे बंधन तोड़ डाले; किंतु तुमने कह दिया, ‘सेवा मैं नहीं करूंगा!’ क्योंकि, हर एक उच्च पर्वत पर और हर एक हरे वृक्ष के नीचे तुमने वेश्या-सदृश मेरे साथ विश्वासघात किया है.
Dawno bowiem złamałem twoje jarzmo i rozerwałem twoje więzy, i mówiłaś: Nie będę służyła [bożkom]; a przecież tułałaś się na każdym wysokim pagórku i pod każdym zielonym drzewem jak nierządnica!
21 फिर भी मैंने तुम्हें एक उत्कृष्ट द्राक्षलता सदृश, पूर्णतः, विशुद्ध बीज सदृश रोपित किया. तब ऐसा क्या हो गया जो तुम विकृत हो गए और वन्य लता के निकृष्ट अंकुर में, परिवर्तित हो गए?
A ja cię zasadziłem [jako] wyborną winorośl, nasienie zupełnie prawdziwe. Jakże więc zmieniłaś mi się w zwyrodniałe pędy dzikiej winorośli?
22 यद्यपि तुम साबुन के साथ स्वयं को स्वच्छ करते हो तथा भरपूरी से साबुन का प्रयोग करते हो, फिर भी तुम्हारा अधर्म मेरे समक्ष बना हुआ है,” यह प्रभु याहवेह की वाणी है.
Bo choćbyś mocno się obmyła, [i] saletrą, i mydłem, to [jednak] twoja nieprawość pozostanie widoczna przede mną, mówi Pan BÓG.
23 “तुम यह दावा कैसे कर सकते हो, ‘मैं अशुद्ध नहीं हुआ हूं; मैं बाल देवताओं के प्रति निष्ठ नहीं हुआ हूं’? उस घाटी में अपने आचार-व्यवहार को स्मरण करो; यह पहचानो कि तुम क्या कर बैठे हो. तुम तो उस ऊंटनी सदृश हो जो दिशाहीन लक्ष्य की ओर तीव्र गति से दौड़ती हुई उत्तरोत्तर उलझती जा रही है,
Jak możesz mówić: Nie jestem splugawiona, za Baalami nie chodziłam? Spójrz na swą drogę w tej dolinie, zobacz, co uczyniłaś, chyża wielbłądzico wikłająca swoje drogi;
24 तुम वनों में पली-बढ़ी उस वन्य गधी के सदृश हो, जो अपनी लालसा में वायु की गंध लेती रहती है— उत्तेजना के समय में कौन उसे नियंत्रित कर सकता है? वे सब जो उसे खोजते हैं व्यर्थ न हों; उसकी उस समागम ऋतु में वे उसे पा ही लेंगे.
Dzika oślico, przywykła do pustyni, która łapczywie chwytasz powietrze w swej namiętności. Któż powstrzyma jej żądzę? Wszyscy, którzy jej szukają, nie będą się trudzić, znajdą ją w jej miesiącu.
25 तुम्हारे पांव जूते-विहीन न रहें और न तुम्हारा गला प्यास से सूखने पाए. किंतु तुमने कहा, ‘निरर्थक होगा यह प्रयास! नहीं! मैंने अपरिचितों से प्रेम किया है, मैं तो उन्हीं के पास जाऊंगी.’
Uważaj na swoją nogę, aby nie była bosa, i swoje gardło – by nie pragnęło. Lecz ty mówisz: Na próżno; nie uczynię [tego], bo rozkochałam się w obcych i pójdę za nimi.
26 “जैसे चोर चोरी पकड़े जाने पर लज्जित हो जाता है, वैसे ही इस्राएल वंशज लज्जित हुए हैं— वे, उनके राजा, उनके उच्च अधिकारी, उनके पुरोहित और उनके भविष्यद्वक्ता.
Jak złodziej wstydzi się, kiedy go schwytają, tak wstydzi się dom Izraela, jego królowie i książęta, jego kapłani i prorocy;
27 वे वृक्ष से कहते हैं, ‘तुम मेरे पिता हो,’ तथा पत्थर से, ‘तुमने मुझे जन्म दिया है.’ यह इसलिये कि उन्होंने अपनी पीठ मेरी ओर कर दी है अपना मुख नहीं; किंतु अपने संकट के समय, वे कहेंगे, ‘उठिए और हमारी रक्षा कीजिए!’
Którzy mówią do drewna: Ty jesteś moim ojcem, a do kamienia: Ty mnie zrodziłeś. Obrócili się bowiem do mnie plecami, a nie twarzą. Ale w czasie swojej niedoli powiedzą: Powstań i wybaw nas!
28 किंतु वे देवता जो तुमने अपने लिए निर्मित किए हैं, कहां हैं? यदि उनमें तुम्हारी रक्षा करने की क्षमता है तो वे तुम्हारे संकट के समय तैयार हो जाएं! क्योंकि यहूदिया, जितनी संख्या तुम्हारे नगरों की है उतने ही हैं तुम्हारे देवता.
A gdzie są twoi bogowie, których sobie uczyniłaś? Niech powstaną, jeśli cię mogą wybawić w czasie twojej niedoli, bo ile twoich miast, tyle jest twoich bogów, Judo!
29 “तुम मुझसे वाद-विवाद क्यों कर रहे हो? तुम सभी ने मेरे विरुद्ध बलवा किया है,” यह याहवेह की वाणी है.
Czemu chcecie się ze mną spierać? Wy wszyscy odstąpiliście ode mnie, mówi PAN.
30 “व्यर्थ हुई मेरे द्वारा तुम्हारी संतान की ताड़ना; उन्होंने इसे स्वीकार ही नहीं किया. हिंसक सिंह सदृश तुम्हारी ही तलवार तुम्हारे भविष्यवक्ताओं को निगल कर गई.
Na próżno biłem waszych synów, nie przyjęli pouczenia. Wasz własny miecz pożarł waszych proroków, jak niszczący lew.
31 “इस पीढ़ी के लोगो, याहवेह के वचन पर ध्यान दो: “क्या इस्राएल के लिए मैं निर्जन प्रदेश सदृश रहा हूं अथवा गहन अंधकार के क्षेत्र सदृश? क्या कारण है कि मेरी प्रजा यह कहती है, ‘हम ध्यान करने के लिए स्वतंत्र हैं; क्या आवश्यकता है कि हम आपकी शरण में आएं’?
Pokolenie, rozważaj słowa PANA. Czy byłem pustynią dla Izraela albo ziemią ciemności? Czemu mój lud mówi: My panujemy, już nie przyjdziemy do ciebie?
32 क्या कोई नवयुवती अपने आभूषणों की उपेक्षा कर सकती है, अथवा क्या किसी वधू के लिए उसका श्रृंगार महत्वहीन होता है? फिर भी मेरी प्रजा ने मुझे भूलना पसंद कर दिया है, वह भी दीर्घ काल से.
Czy panna zapomina o swoich ozdobach albo oblubienica o swoich klejnotach? Ale mój lud zapomniał o mnie od dni niezliczonych.
33 अपने प्रिय बर्तन तक पहुंचने के लिए तुम कैसी कुशलतापूर्वक युक्ति कर लेते हो! तब तुमने तो बुरी स्त्रियों को भी अपनी युक्तियां सिखा दी हैं.
Czemu przyozdabiasz swoją drogę w poszukiwaniu miłości? Przecież nauczyłaś inne nierządnice swoich złych dróg.
34 तुम्हारे वस्त्र पर तो निर्दोष गरीब का जीवन देनेवाला रक्त पाया गया है, तुम्हें तो पता ही न चला कि वे कब तुम्हारे आवास में घुस आए.
Ponadto na brzegach twoich [szat] znajduje się krew dusz ubogich [i] niewinnych. Nie znalazłem tego z trudnością, lecz widać na wszystkich twoich [brzegach].
35 यह सब होने पर भी तुमने दावा किया, ‘मैं निस्सहाय हूं; निश्चय उनका क्रोध मुझ पर से टल चुका है.’ किंतु यह समझ लो कि मैं तुम्हारा न्याय कर रहा हूं क्योंकि तुमने दावा किया है, ‘मैं निस्सहाय हूं.’
Lecz mówisz: Ponieważ jestem niewinna, na pewno jego gniew odwróci się ode mnie. Oto będę cię sądził za to, że mówisz: Nie zgrzeszyłam.
36 तुम अपनी नीतियां परिवर्तित क्यों करते रहते हो, यह भी स्मरण रखना? तुम जिस प्रकार अश्शूर के समक्ष लज्जित हुए थे उसी प्रकार ही तुम्हें मिस्र के समक्ष भी लज्जित होना पड़ेगा.
Czemu tak ganiasz, zmieniając swoje drogi? Będziesz pohańbiona przez Egipt, jak byłaś pohańbiona przez Asyrię.
37 इस स्थान से भी तुम्हें निराश होना होगा. उस समय तुम्हारे हाथ तुम्हारे सिर पर होंगे, क्योंकि जिन पर तुम्हारा भरोसा था उन्हें याहवेह ने अस्वीकृत कर दिया है; उनके साथ तुम्हारी समृद्धि संभव नहीं है.
I stamtąd wyjdziesz z rękami na głowie, bo PAN odrzucił tych, którym zaufałaś, a nie powiedzie ci się z nimi.

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