< यशायाह 40 >
1 तुम्हारा परमेश्वर यह कहता है, कि मेरी प्रजा को शांति दो, शांति दो!
2 येरूशलेम से शांति की बात करो, उनसे कहो कि अब उनकी कठिन सेवा खत्म हो चुकी है, क्योंकि उनके अधर्म का मूल्य दे चुका है, उसने याहवेह ही के हाथों से अपने सारे पापों के लिए दो गुणा दंड पा लिया है.
3 एक आवाज, जो पुकार-पुकारने वाले की, कह रही है, “याहवेह के लिए जंगल में मार्ग को तैयार करो; हमारे परमेश्वर के लिए उस मरुस्थल में एक राजमार्ग सीधा कर दो.
4 हर एक तराई भर दो, तथा हर एक पर्वत तथा पहाड़ी को गिरा दो; असमतल भूमि को चौरस मैदान बना दो, तथा ऊंचा नीचा है वह चौड़ा किया जाए.
5 तब याहवेह का प्रताप प्रकट होगा, तथा सब जीवित प्राणी इसे एक साथ देख सकेंगे. क्योंकि यह याहवेह के मुंह से निकला हुआ वचन है.”
6 फिर बोलनेवाले कि आवाज सुनाई दी कि प्रचार करो. मैंने कहा, “मैं क्या प्रचार करूं?” “सभी मनुष्य घास समान हैं, उनकी सुंदरता मैदान के फूल समान है.
7 घास मुरझा जाती है तथा फूल सूख जाता है, जब याहवेह की श्वास चलती है. तब घास सूख जाती है.
8 घास मुरझा जाती है तथा फूल सूख जाता है, किंतु हमारे परमेश्वर का वचन स्थिर रहेगा.”
9 किसी ऊंचे पर्वत पर चले जाओ, हे ज़ियोन, तुम तो शुभ संदेश सुनाते हो. अत्यंत ऊंचे स्वर में घोषणा करो, हे येरूशलेम, तुम जो शुभ संदेश सुनाते हो, बिना डरे हुए ऊंचे शब्द से कहो; यहूदिया के नगरों को बताओ, “देखो ये हैं हमारे परमेश्वर!”
10 तुम देखोगे कि प्रभु याहवेह बड़ी सामर्थ्य के साथ आएंगे, वह अपने भुजबल से शासन करेंगे. वह अपने साथ मजदूरी लाए हैं, उनका प्रतिफल उनके आगे-आगे चलता है.
11 वह चरवाहे के समान अपने झुंड की देखभाल करेंगे: वह मेमनों को अपनी बाहों में ले लेंगे वह उन्हें अपनी गोद में उठा लेंगे और बाहों में लेकर चलेंगे; उनके साथ उनके चरवाहे भी होंगे.
12 कौन है जिसने अपनी हथेली से महासागर को नापा है, किसने बित्ते से आकाश को नापा है? किसने पृथ्वी की धूल को माप कर उसकी गिनती की है, तथा पर्वतों को कांटे से तथा पहाड़ियों को तौल से मापा है?
13 किसने याहवेह के आत्मा को मार्ग बताया है, अथवा याहवेह का सहायक होकर उन्हें ज्ञान सिखाया है?
14 किससे उसने सलाह ली, तथा किसने उन्हें समझ दी? किसने उन्हें न्याय की शिक्षा दी तथा उन्हें ज्ञान सिखाया, किसने उन्हें बुद्धि का मार्ग बताया?
15 यह जान लो, कि देश पानी की एक बूंद और पलड़ों की धूल के समान है; वह द्वीपों को धूल के कण समान उड़ा देते हैं.
16 न तो लबानोन ईंधन के लिए पर्याप्त है, और न ही होमबलि के लिए पशु है.
17 उनके समक्ष पूरा देश उनके सामने कुछ नहीं है; उनके सामने वे शून्य समान हैं.
18 तब? किससे तुम परमेश्वर की तुलना करोगे? या किस छवि से उनकी तुलना की जा सकेगी?
19 जैसे मूर्ति को शिल्पकार रूप देता है, स्वर्णकार उस पर सोने की परत चढ़ा देता है तथा चांदी से उसके लिए कड़ियां गढ़ता है.
20 कंगाल इतनी भेंट नहीं दे सकता इसलिये वह अच्छा पेड़ चुने, जो न सड़े; फिर एक योग्य शिल्पकार को ढूंढ़कर मूरत खुदवाकर स्थिर करता है ताकि यह हिल न सके.
21 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने सुना नहीं? क्या शुरू में ही तुम्हें नहीं बताया गया था? क्या पृथ्वी की नींव रखे जाने के समय से ही तुम यह समझ न सके थे?
22 यह वह हैं जो पृथ्वी के घेरे के ऊपर आकाश में विराजमान हैं. पृथ्वी के निवासी तो टिड्डी के समान हैं, वह आकाश को मख़मल के वस्त्र के समान फैला देते हैं.
23 यह वही हैं, जो बड़े-बड़े हाकिमों को तुच्छ मानते हैं और पृथ्वी के अधिकारियों को शून्य बना देते हैं.
24 कुछ ही देर पहले उन्हें बोया गया, जड़ पकड़ते ही हवा चलती और वे सूख जाति है, और आंधी उन्हें भूसी के समान उड़ा ले जाती है.
25 “अब तुम किससे मेरी तुलना करोगे? कि मैं उसके तुल्य हो जाऊं?” यह पवित्र परमेश्वर का वचन है.
26 अपनी आंख ऊपर उठाकर देखो: किसने यह सब रचा है? वे अनगिनत तारे जो आकाश में दिखते हैं जिनका नाम लेकर बुलाया जाता है. और उनके सामर्थ्य तथा उनके अधिकार की शक्ति के कारण, उनमें से एक भी बिना आए नहीं रहता.
27 हे याकोब, तू क्यों कहता है? हे इस्राएल, तू क्यों बोलता है, “मेरा मार्ग याहवेह से छिपा है; और मेरा परमेश्वर मेरे न्याय की चिंता नहीं करता”?
28 क्या तुम नहीं जानते? तुमने नहीं सुना? याहवेह सनातन परमेश्वर है, पृथ्वी का सृजनहार, वह न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अपरंपार है.
29 वह थके हुओं को बल देता है, शक्तिहीनों को सामर्थ्य देता है.
30 यह संभव है कि जवान तो थकते, और मूर्छित हो जाते हैं और लड़खड़ा जाते हैं;
31 परंतु जो याहवेह पर भरोसा रखते हैं वे नया बल पाते जाएंगे. वे उकाबों की नाई उड़ेंगे; वे दौड़ेंगे, किंतु श्रमित न होंगे, चलेंगे, किंतु थकित न होंगे.