< यशायाह 29 >

1 हाय तुम पर, अरीएल, अरीएल, वह नगर जिसे दावीद ने अपने रहने के लिए बनाए थे! अपने वर्षों को और अधिक बढ़ा लो और खुशी मना लो.
Wehe Ariel, [Gotteslöwe, d. h. Heldenstadt; oder Gottesherd [Hes. 43,15. 16]; vergl. Kap. 31,9] Ariel, Stadt, wo David lagerte! Füget Jahr zu Jahr, laßt die Feste kreisen!
2 मैं तुम पर विपत्ति लाऊंगा; और अरीएल नगर विलाप और शोक का नगर हो जाएगा, यह मेरे लिए अरीएल समान होगा.
Und ich werde Ariel bedrängen, und es wird Seufzen und Stöhnen geben. Und sie wird mir sein wie ein Ariel.
3 मैं तुम्हारे चारों ओर दीवार लगाऊंगा, और तुम्हें घेर लूंगा और मैं तुम्हारे विरुद्ध गढ़ खड़े करूंगा.
Und ich werde dich im Kreise umlagern, und dich mit Heeresaufstellung einschließen, und Belagerungswerke wider dich aufrichten.
4 तब तुम्हारा पतन पूरा हो जाएगा; अधोलोक से तुम्हारे स्वर सुनाई देंगे. धूल में से तुम्हारी फुसफुसाहट सुनाई देगी; एक प्रेत के समान तुम्हारे शब्द पृथ्वी से सुनाई देंगे.
Und erniedrigt wirst du aus der Erde reden, und deine Sprache wird dumpf aus dem Staube ertönen; und deine Stimme wird wie die eines Geistes [Eig. eines durch Totenbeschwörung Heraufbeschworenen. And. üb.: eines Totenbeschwörers] aus der Erde hervorkommen, und deine Sprache wird aus dem Staube flüstern. -
5 किंतु तुम्हारे शत्रुओं का बड़ा झुंड धूल के छोटे कण के समान और क्रूर लोगों का बड़ा झुंड उस भूसी के समान हो जाएगा. जो उड़ जाता है,
Aber wie feiner Staub wird die Menge deiner Feinde sein, und wie dahinfahrende Spreu die Menge der Gewaltigen; und in einem Augenblick, plötzlich, wird es geschehen.
6 सेनाओं के याहवेह की ओर से बादल गर्जन, भूकंप, आंधी और भस्म करनेवाली आग आएगी.
Von seiten Jehovas der Heerscharen wird sie heimgesucht werden [d. h. Jehova wird sich der Stadt wieder annehmen] mit Donner und mit Erdbeben und großem Getöse, -Sturmwind und Gewitter und eine Flamme verzehrenden Feuers.
7 पूरे देश जिसने अरीएल से लड़ाई की यद्यपि वे सभी, जिन्होंने इस नगर अथवा इसके गढ़ों के विरुद्ध आक्रमण किया तथा उसे कष्ट दिया है, वे रात में देखे गए स्वप्न, तथा दर्शन के समान हो जाएंगे—
Und wie ein nächtliches Traumgesicht wird die Menge all der Nationen sein, welche Krieg führen wider Ariel, und alle, welche sie und ihre Festung bestürmen und sie bedrängen.
8 यह ऐसा होगा जैसे एक भूखा व्यक्ति स्वप्न देखता है कि वह भोजन कर रहा है, किंतु जब वह नींद से जागता है तब वह पाता है कि उसकी भूख मिटी नहीं; उसी प्रकार जब एक प्यासा व्यक्ति स्वप्न देखता है कि वह पानी पी रहा है, किंतु जब वह नींद से जागता है वह पाता है कि उसका गला सूखा है और उसकी प्यास बुझी नहीं हुई है. उसी प्रकार उन सब देशों के साथ होगा जो ज़ियोन पर्वत पर हमला करते हैं.
Und es wird geschehen, gleichwie der Hungrige träumt, und siehe, er ißt-und er wacht auf, und seine Seele ist leer; und gleichwie der Durstige träumt, und siehe, er trinkt-und er wacht auf, und siehe, er ist matt und seine Seele lechzt: also wird die Menge all der Nationen sein, welche Krieg führen wider den Berg Zion.
9 रुक जाओ और इंतजार करो, अपने आपको अंधा बना लो; वे मतवाले तो होते हैं किंतु दाखरस से नहीं, वे लड़खड़ाते तो हैं किंतु दाखमधु से नहीं.
Stutzet und staunet! verblendet euch und erblindet! Sie sind trunken, doch nicht von Wein; sie schwanken, doch nicht von starkem Getränk.
10 क्योंकि याहवेह ने तुम्हारे ऊपर एक भारी नींद की आत्मा को डाला है: उन्होंने भविष्यवक्ताओं को अंधा कर दिया है; और तुम्हारे सिर को ढंक दिया है.
Denn Jehova hat einen Geist tiefen Schlafes über euch ausgegossen und hat eure Augen verschlossen; die Propheten und eure Häupter, die Seher, hat er verhüllt.
11 मैं तुम्हें बता रहा हूं कि ये बातें घटेंगी. किंतु तुम मुझे नहीं समझ रहे. मेरे शब्द उस पुस्तक के समान है, जो बंद हैं और जिस पर एक मुहर लगी है. तुम उस पुस्तक को एक ऐसे व्यक्ति को दो जो पढ़ सकता हो, तो वह व्यक्ति कहेगा, “मैं पुस्तक को पढ़ नहीं सकता क्योंकि इस पर एक मुहर लगी है, और मैं इसे खोल नहीं सकता.”
Und jedes Gesicht [Eig. das Gesicht von allem] ist euch geworden wie die Worte einer versiegelten Schrift, die man einem gibt, der lesen kann, indem man sagt: Lies doch dieses! er aber sagt: Ich kann nicht, denn es ist versiegelt;
12 अथवा तुम उस पुस्तक को किसी भी ऐसे व्यक्ति को दो, जो पढ़ नहीं सकता, और उस व्यक्ति से कहो कि वह उस पुस्तक को पढ़ें. तब वह व्यक्ति कहेगा, “मैं इस किताब को नहीं पढ़ सकता, क्योंकि मैं अनपढ़ हूं!”
und man gibt die Schrift einem, der nicht lesen kann, indem man sagt: Lies doch dieses! er aber sagt: Ich kann nicht lesen.
13 तब प्रभु ने कहा: “ये लोग अपने शब्दों से तो मेरे पास आते हैं और अपने होंठों से मेरा सम्मान करते हैं, किंतु इन्होंने अपने दिल को मुझसे दूर रखा है. और वे औरों के दबाव से मेरा भय मानते हैं.
Und der Herr hat gesprochen: Weil dieses Volk mit seinem Munde sich naht und mit seinen Lippen mich ehrt, und sein Herz fern von mir hält, und ihre Furcht vor mir angelerntes Menschengebot ist:
14 इसलिये, मैं फिर से इन लोगों के बीच अद्भुत काम करूंगा अद्भुत पर अद्भुत काम; इससे ज्ञानियों का ज्ञान नाश हो जाएगा; तथा समझदारों की समझ शून्य.”
Darum, siehe, will ich fortan wunderbar mit diesem Volke handeln, wunderbar und wundersam; und die Weisheit seiner Weisen wird zunichte werden, und der Verstand seiner Verständigen sich verbergen.
15 हाय है उन पर जो याहवेह से अपनी बात को छिपाते हैं, और जो अपना काम अंधेरे में करते हैं और सोचते हैं, “कि हमें कौन देखता है? या कौन जानता है हमें?”
Wehe denen, welche ihre Pläne tief verbergen vor Jehova, und deren Werke im Finstern geschehen, und die da sprechen: Wer sieht uns, und wer kennt uns?
16 तुम सब बातों को उलटा-पुलटा कर देते हो, क्या कुम्हार को मिट्टी के समान समझा जाए! या कोई वस्तु अपने बनानेवाले से कहे, कि तुमने मुझे नहीं बनाया और “तुम्हें तो समझ नहीं”?
O über eure Verkehrtheit! Soll denn der Töpfer dem Tone gleichgeachtet werden? daß das Werk von seinem Meister spreche: Er hat mich nicht gemacht! und das Gebilde von seinem Bildner spreche: Er versteht es nicht!
17 क्या कुछ ही समय में लबानोन को फलदायी भूमि में नहीं बदला जा सकता और फलदायी भूमि को मरुभूमि में नहीं बदला जा सकता है?
Ist es nicht noch um ein gar Kleines, daß der Libanon sich in ein Fruchtgefilde verwandeln und das Fruchtgefilde dem Walde gleichgeachtet werden wird?
18 उस दिन बहरे उस पुस्तक की बात को सुनेंगे, और अंधे जिन्हें दिखता नहीं, वे देखेंगे.
Und an jenem Tage werden die Tauben die Worte des Buches [Eig. Schriftworte, d. h. geschriebene Worte] hören, und aus Dunkel und Finsternis hervor werden die Augen der Blinden sehen.
19 नम्र लोगों की खुशी याहवेह में बढ़ती चली जाएगी; और मनुष्यों के दरिद्र इस्राएल के पवित्र परमेश्वर में आनंदित होंगे.
Und die Sanftmütigen werden ihre Freude in Jehova mehren, und die Armen unter den Menschen werden frohlocken in dem Heiligen Israels.
20 क्योंकि दुष्ट और ठट्ठा करनेवाले व्यक्ति नहीं रहेंगे, और वे सभी काट दिये जाएंगे जिनको बुराई के लिए एक नजर हैं.
Denn der Gewalttätige hat ein Ende, und der Spötter verschwindet; und ausgerottet werden alle, die auf Unheil bedacht sind,
21 वे व्यक्ति जो शब्दों में फंसाते हैं, और फंसाने के लिए जाल बिछाते हैं और साधारण बातों के द्वारा धोखा देते हैं.
die einen Menschen schuldig erklären um eines Wortes willen und dem Schlingen legen, welcher im Tore Recht spricht, [O. gerecht entscheidet] und um nichts den Gerechten aus seinem Recht verdrängen.
22 इसलिये याहवेह, अब्राहाम का छूडाने वाला, याकोब को कहते हैं: “याकोब को अब और लज्जित न होना पड़ेगा.
Darum, so spricht Jehova, der Abraham erlöst hat, zum Hause Jakob: Nunmehr wird Jakob nicht beschämt werden, und nunmehr wird sein Angesicht nicht erblassen.
23 जब याकोब की संतान परमेश्वर के काम को देखेंगे, जो परमेश्वर उनके बीच में करेगा; तब वे मेरा नाम पवित्र रखेंगे; और वे इस्राएल के पवित्र परमेश्वर का भय मानेंगे.
Denn wenn er, wenn [Eig. nämlich] seine Kinder das Werk meiner Hände in seiner Mitte sehen werden, so werden sie meinen Namen heiligen; und sie werden den Heiligen Jakobs heiligen und vor dem Gott Israels beben.
24 उस समय मूर्ख बुद्धि पायेंगे और जो कुड़कुड़ाते हैं; वे शिक्षा ग्रहण करेंगे.”
Und die verirrten Geistes sind, werden Verständnis erlangen, und Murrende werden Lehre annehmen.

< यशायाह 29 >