< उत्पत्ति 39 >
1 जब योसेफ़ को मिस्र ले गये, तब फ़रोह के अंगरक्षकों के प्रधान मिस्री पोतिफर ने उसे उन इशमाएलियों से मोल ले लिया जो उसे वहां लाए थे.
Joseph was brought down to Egypt. Potiphar, an officer of Pharaoh’s, the captain of the guard, an Egyptian, bought him from the hand of the Ishmaelites that had brought him down there.
2 योसेफ़ पर याहवेह की कृपा थी, इसलिये वह सफल व्यक्ति बन गये. वह मिस्री स्वामी के घर में रहते थे.
The LORD was with Joseph, and he was a prosperous man. He was in the house of his master the Egyptian.
3 योसेफ़ के स्वामी ने यह समझ लिया था कि योसेफ़ पर याहवेह की कृपा है, वह जो भी काम करते हैं, याहवेह उस काम को सफल कर देते थे.
His master saw that the LORD was with him, and that the LORD made all that he did prosper in his hand.
4 इस कारण योसेफ़ उनके कृपापात्र बन उनकी सेवा में लग गये. पोतिफर ने उन्हें अब अपने पूरे घर का तथा संपत्ति का अधिकारी बना दिया था.
Joseph found favor in his sight. He ministered to him, and Potiphar made him overseer over his house, and all that he had he put into his hand.
5 और जब से योसेफ़ को संपत्ति का अधिकारी बनाया याहवेह ने योसेफ़ के कारण उस मिस्री घर को बहुत आशीष दी. याहवेह की आशीष पोतिफर के घर में और उसके खेतों में थी.
From the time that he made him overseer in his house, and over all that he had, the LORD blessed the Egyptian’s house for Joseph’s sake. The LORD’s blessing was on all that he had, in the house and in the field.
6 इसलिये पोतिफर ने अपनी पूरी संपत्ति योसेफ़ को सौंप दी. पोतिफर अपने भोजन के अलावा किसी भी चीज़ पर ध्यान नहीं देता था. योसेफ़ सुंदर व रूपवान युवक थे,
He left all that he had in Joseph’s hand. He didn’t concern himself with anything, except for the food which he ate. Joseph was well-built and handsome.
7 और कुछ समय बाद पोतिफर की पत्नी योसेफ़ के प्रति गलत सोच रखने लगी और उससे कहा, “मुझसे समागम करो!”
After these things, his master’s wife set her eyes on Joseph; and she said, “Lie with me.”
8 किंतु योसेफ़ ने मना किया और अपनी स्वामिनी से कहा, “यह समझने की कोशिश कीजिए कि इस घर में मेरे स्वामी किसी भी विषय की चिंता नहीं करते, उन्होंने तो अपनी पूरी संपत्ति ही मेरे पास छोड़ दी है.
But he refused, and said to his master’s wife, “Behold, my master doesn’t know what is with me in the house, and he has put all that he has into my hand.
9 इस घर में कोई भी मुझसे बड़ा नहीं है. मेरे स्वामी ने मुझे आपके अलावा किसी भी वस्तु से अलग नहीं रखा है, क्योंकि आप उनकी पत्नी हैं. इसलिये यह कैसे संभव है कि मैं ऐसी दुष्टता कर परमेश्वर के विरुद्ध पाप करूं?”
No one is greater in this house than I am, and he has not kept back anything from me but you, because you are his wife. How then can I do this great wickedness, and sin against God?”
10 वह दिन-प्रतिदिन योसेफ़ से समागम के लिए आग्रह करती रही, योसेफ़ न तो समागम के लिए तत्पर हुए और न ही उसके पास रहने के लिए तैयार हुए.
As she spoke to Joseph day by day, he didn’t listen to her, to lie by her, or to be with her.
11 एक दिन जब घर में कोई भी सेवक नहीं था और योसेफ़ घर में अपने काम करने गये.
About this time, he went into the house to do his work, and there were none of the men of the house inside.
12 पोतिफर की पत्नी ने योसेफ़ के वस्त्र पकड़ लिए और उनसे आग्रह करने लगी, “मुझसे संभोग करो!” योसेफ़ अपना वस्त्र उसी के हाथ में छोड़कर भागकर बाहर आ गये.
She caught him by his garment, saying, “Lie with me!” He left his garment in her hand, and ran outside.
13 जब उस स्त्री ने देखा कि योसेफ़ अपना वस्त्र उसके हाथों में छोड़कर बाहर भाग गए,
When she saw that he had left his garment in her hand, and had run outside,
14 उसने सब सेवकों को बुलाया और कहा, “यह देखो, मेरे पति ने इस इब्री को हमारी देखभाल के लिए रखा है लेकिन वह मुझे दूषित करने मेरे पास आया तब मैं चिल्ला पड़ी.
she called to the men of her house, and spoke to them, saying, “Behold, he has brought a Hebrew in to us to mock us. He came in to me to lie with me, and I cried with a loud voice.
15 जैसे ही उसने मेरी चिल्लाहट सुनी, वह अपना वस्त्र मेरे साथ छोड़कर बाहर भाग गया.”
When he heard that I lifted up my voice and cried, he left his garment by me, and ran outside.”
16 योसेफ़ का वह वस्त्र अपने पति के लौटने तक अपने पास रखा.
She laid up his garment by her, until his master came home.
17 पति के आने पर उसने बताया: “आप जिस इब्री दास को यहां लाए हैं, वह मेरा अपमान करने यहां आया था.
She spoke to him according to these words, saying, “The Hebrew servant, whom you have brought to us, came in to me to mock me,
18 जैसे ही मैं चिल्लाई, वह अपना वस्त्र छोड़कर बाहर भाग गया.”
and as I lifted up my voice and cried, he left his garment by me, and ran outside.”
19 जब योसेफ़ के स्वामी ने अपनी पत्नी की यह बात सुनी, ‘आपके सेवक ने मुझसे ऐसा व्यवहार किया’ तब उसे बहुत गुस्सा आया.
When his master heard the words of his wife, which she spoke to him, saying, “This is what your servant did to me,” his wrath was kindled.
20 योसेफ़ के स्वामी ने उसे कारागार में डाल दिया, यह वही स्थान था जहां राजा के अपराधी रखे जाते थे. योसेफ़ इसी कारागार में थे,
Joseph’s master took him, and put him into the prison, the place where the king’s prisoners were bound, and he was there in custody.
21 किंतु योसेफ़ पर याहवेह की कृपा थी और इसलिये कारागार के अधिकारी योसेफ़ का पूरा ध्यान रखते थे.
But the LORD was with Joseph, and showed kindness to him, and gave him favor in the sight of the keeper of the prison.
22 कारागार के अधिकारी ने योसेफ़ को कारागार की पूरी जवाबदारी सौंप दी; कारागार में जो कुछ होता था योसेफ़ के कहने से ही होता था.
The keeper of the prison committed to Joseph’s hand all the prisoners who were in the prison. Whatever they did there, he was responsible for it.
23 कारागार के अधिकारी जानते थे कि योसेफ़ पर याहवेह की कृपा है और योसेफ़ जो कुछ करते थे, याहवेह उस काम को सफल करते थे.
The keeper of the prison didn’t look after anything that was under his hand, because the LORD was with him; and that which he did, the LORD made it prosper.