< उत्पत्ति 37 >
1 याकोब कनान देश में रहते थे. वहीं तो उनके पिता परदेशी होकर रहे थे.
And Jacob dwells in the land of his father’s sojournings—in the land of Canaan.
2 यह है याकोब के परिवार का इतिहास. याकोब के वंश में योसेफ़ जब सत्रह वर्ष के थे वह अपने भाइयों के साथ भेड़-बकरियों को चराते थे, उनके पिता की पत्नियों बिलहाह तथा ज़िलपाह के पुत्र भी उनके साथ ही थे. योसेफ़ अपने पिता को अपने भाइयों की गलत आदतों के बारे में बताया करते थे.
These [are] the generations of Jacob: Joseph, a son of seventeen years, has been enjoying himself with his brothers among the flock (and he [is] a youth), with the sons of Bilhah, and with the sons of Zilpah, his father’s wives, and Joseph brings in an account of their evil to their father.
3 इस्राएल अपने सभी बच्चों से ज्यादा योसेफ़ को प्यार करते थे; क्योंकि वह उनके बुढ़ापे की संतान थी. याकोब ने योसेफ़ के लिए रंग बिरंगा वस्त्र बनवाया था.
And Israel has loved Joseph more than any of his sons, for he [is] a son of his old age, and has made for him a long coat;
4 योसेफ़ के भाइयों ने देखा कि उनके पिता उनसे ज्यादा योसेफ़ को प्यार करते हैं; इसलिये वे योसेफ़ से नफ़रत करने लगे.
and his brothers see that their father has loved him more than any of his brothers, and they hate him, and have not been able to speak [to] him peaceably.
5 योसेफ़ ने एक स्वप्न देखा था, जिसे उसने अपने भाइयों को बताया. योसेफ़ के भाई योसेफ़ से ज्यादा नफ़रत करने लगे.
And Joseph dreams a dream, and declares to his brothers, and they add still more to hate him.
6 योसेफ़ ने अपने भाइयों से कहा, “कृपया मेरा स्वप्न सुनिए.
And he says to them, “Please hear this dream which I have dreamed:
7 हम सब खेत में पूला बांध रहे थे. मैंने देखा कि मेरा पूला उठकर सीधा खड़ा हो गया. और आपके पूले मेरे पूले के आस-पास एकत्र हो गये और मेरे पूले को प्रणाम करने लगे.”
that, behold, we are binding bundles in the midst of the field, and behold, my bundle has arisen, and has also stood up, and behold, your bundles are all around, and they bow themselves to my bundle.”
8 यह सुन उनके भाई कह उठे, “तो क्या तुम हम पर अधिकार करने का विचार कर रहे हो? क्या तुम सच में हम पर अधिकार कर लोगे?” इसके बाद वे योसेफ़ से और ज्यादा नफ़रत करने लगे.
And his brothers say to him, “Do you certainly reign over us? Do you certainly rule over us?” And they add still more to hate him, for his dreams, and for his words.
9 फिर योसेफ़ ने दूसरा सपना देखा. योसेफ़ ने कहा, “मैंने दूसरा सपना देखा है; मैंने सूरज, चांद और ग्यारह नक्षत्रों को मुझे प्रणाम करते देखा.”
And he dreams yet another dream, and recounts it to his brothers, and says, “Behold, I have dreamed a dream again, and behold, the sun and the moon, and eleven stars, are bowing themselves to me.”
10 यह स्वप्न योसेफ़ ने अपने पिता एवं भाइयों को बताया, जिसे सुन उनके पिता ने उसे डांटते हुए कहा, “यह कैसा स्वप्न देखते हो तुम! क्या यह वास्तव में संभव है कि मैं, तुम्हारी माता एवं तुम्हारे भाई तुम्हारे पास आएंगे और तुम्हें प्रणाम करेंगे?”
And he recounts to his father, and to his brothers; and his father pushes against him, and says to him, “What [is] this dream which you have dreamed? Do we certainly come, I, and your mother, and your brothers—to bow ourselves to you, to the earth?”
11 योसेफ़ के भाई उससे लगातार ईर्ष्या करते रहे. किंतु योसेफ़ के पिता ने इन सभी बातों को अपने मन में रखा.
And his brothers are zealous against him, and his father has watched the matter.
12 योसेफ़ के भाई अपने पिता की भेड़-बकरियों को चराने के लिए शेकेम गए थे.
And his brothers go to feed the flock of their father in Shechem,
13 इस्राएल ने योसेफ़ से कहा, “तुम्हारे भाई शेकेम में भेड़-बकरी चरा रहे हैं न? मैं तुम्हें उनके पास भेजना चाहता हूं.” योसेफ़ ने कहा, “मैं चला जाता हूं.”
and Israel says to Joseph, “Are your brothers not feeding in Shechem? Come, and I send you to them”; and he says to him, “Here I [am]”;
14 याकोब ने योसेफ़ से कहा, “तुम जाओ और अपने भाइयों का हाल पता करके आओ और मुझे बताओ.” योसेफ़ को याकोब ने हेब्रोन घाटी से रवाना किया. और योसेफ़ शेकेम पहुंचे,
and he says to him, “Now go see the peace of your brothers, and the peace of the flock, and bring me back word”; and he sends him from the Valley of Hebron, and he comes to Shechem.
15 जब योसेफ़ एक मैदान में इधर-उधर देख रहे थे, तब एक व्यक्ति उन्हें मिला, जिसने उससे पूछा, “क्या ढूंढ़ रहे हो तुम?”
And a man finds him, and behold, he is wandering in the field, and the man asks him, saying, “What do you seek?”
16 योसेफ़ ने कहा, “मैं अपने भाइयों को ढूंढ़ रहा हूं. क्या आप कृपा कर मुझे बताएंगे वे अपनी भेड़-बकरियां कहां चरा रहे हैं?”
And he says, “I am seeking my brothers, please declare to me where they are feeding.”
17 उस व्यक्ति ने कहा, “वे तो यहां से जा चुके हैं, क्योंकि मैंने उन्हें यह कहते सुना था, ‘चलो, अब दोथान जायें.’” इसलिये योसेफ़ अपने भाइयों को ढूंढ़ते दोथान पहुंचे.
And the man says, “They have journeyed from this, for I have heard some saying, Let us go to Dothan,” and Joseph goes after his brothers, and finds them in Dothan.
18 जब भाइयों ने दूर से योसेफ़ को आते देखा, उसके नज़दीक आने के पहले ही उन्होंने उसको मार डालने का विचार किया.
And they see him from afar, even before he draws near to them, and they conspire against him to put him to death.
19 उन्होंने कहा, “यह लो, आ गया स्वप्न देखनेवाला!
And they say to one another, “Behold, this man of the dreams comes;
20 चलो, उसकी हत्या कर यहां किसी गड्ढे में फेंक दें, और हम कह देंगे, कि उसे किसी जंगली जानवर ने खा लिया; फिर हम देखते हैं उसके स्वप्न का क्या होता है.”
and now, come, and we slay him, and cast him into one of the pits, and have said, An evil beast has devoured him; and we see what his dreams are.”
21 किंतु रियूबेन योसेफ़ को बचाना चाहता था. इसलिये रियूबेन ने कहा “हम योसेफ़ को जान से नहीं मारेंगे;
And Reuben hears, and delivers him out of their hand, and says, “Let us not strike the life”;
22 बल्कि हम उसे बंजर भूमि के किसी गड्ढे में डाल देते हैं,” रियूबेन ने ऐसा इसलिये कहा कि वह योसेफ़ को बचाकर पिता को सौंप देना चाहता था.
and Reuben says to them, “Shed no blood; cast him into this pit which [is] in the wilderness, and do not put forth a hand on him,” in order to deliver him out of their hand, to bring him back to his father.
23 जैसे ही योसेफ़ अपने भाइयों के पास आये, उन्होंने योसेफ़ का रंग बिरंगा वस्त्र, जो वह पहने हुए थे उतार दिया,
And it comes to pass, when Joseph has come to his brothers, that they strip Joseph of his coat, the long coat which [is] on him,
24 और योसेफ़ को एक सूखे गड्ढे में डाल दिया, गड्ढा खाली था; उसमें पानी नहीं था.
and take him and cast him into the pit, and the pit [is] empty, there is no water in it.
25 यह करके वे भोजन करने बैठे. तभी उन्होंने देखा कि गिलआद की ओर से इशमाएलियों का एक समूह आ रहा था. उनके ऊंटों पर सुगंध गोंद, बलसान तथा गन्धरस लदे हुए थे. यह सब वे मिस्र ले जा रहे थे.
And they sit down to eat bread, and they lift up their eyes, and look, and behold, a caravan of Ishmaelites coming from Gilead, and their camels carrying spices, and balm, and myrrh, going to take [them] down to Egypt.
26 यहूदाह ने अपने भाइयों से कहा, “अपने भाई की हत्या कर उसे छुपाने से हमें कुछ नहीं मिलेगा.
And Judah says to his brothers, “What gain when we slay our brother, and have concealed his blood?
27 हम इसे इन इशमाएलियों को बेच दें. हम इसकी हत्या न करें; अंततः वह हमारा भाई ही है, हमारा अपना खून.” भाइयों को यह बात ठीक लगी.
Come, and we sell him to the Ishmaelites, and our hands are not on him, for he [is] our brother—our flesh”; and his brothers listen.
28 उसी समय कुछ मिदियानी व्यापारी वहां से निकले, तब उन्होंने उनकी सहायता से योसेफ़ को गड्ढे से ऊपर खींच निकाला और उसे इशमाएलियों को बीस चांदी के सिक्कों में बेच दिया.
And Midianite merchantmen pass by and they draw out and bring up Joseph out of the pit, and sell Joseph to the Ishmaelites for twenty pieces of silver, and they bring Joseph into Egypt.
29 जब रियूबेन उस गड्ढे पर लौटा, तब उसने देखा कि योसेफ़ वहां नहीं हैं. यह देख उसने अपने वस्त्र फाड़ लिए.
And Reuben returns to the pit, and behold, Joseph is not in the pit, and he tears his garments,
30 उसने अपने भाइयों के पास जाकर पूछा, “वह तो वहां नहीं हैं! मुझे समझ नहीं आ रहा, अब मैं क्या करूं?”
and he returns to his brothers and says, “The boy is not, and I—to where am I going?”
31 भाइयों ने एक बकरी को मारा और उसके खून में योसेफ़ के सुंदर अंगरखे को डुबो दिया
And they take the coat of Joseph, and slaughter a kid of the goats, and dip the coat in the blood,
32 और उस वस्त्र को अपने पिता के पास ले जाकर कहा, “हमें यह वस्त्र मिला; क्या यह आपके पुत्र का वस्त्र तो नहीं?”
and send the long coat, and they bring [it] to their father, and say, “We have found this; please discern whether it [is] your son’s coat or not.”
33 याकोब ने वस्त्र देखकर कहा, “यह मेरे पुत्र का ही वस्त्र है. किसी जंगली पशु ने उसे खा लिया है.”
And he discerns it and says, “My son’s coat! An evil beast has devoured him; torn—Joseph is torn!”
34 तब याकोब ने अपने वस्त्र फाड़े, टाट पहन लिए और कई दिनों तक अपने बेटे के लिए रोते रहे.
And Jacob tears his raiment, and puts sackcloth on his loins, and becomes a mourner for his son many days,
35 सबने याकोब को दिलासा देने की कोशिश की, पर याकोब का दुःख कम न हुआ, और वे योसेफ़ के लिए रोते ही रहे. याकोब ने कहा, “मैं मरने के दिन तक (शीयोल तक) अपने पुत्र योसेफ़ के शोक में डूबा रहूंगा.” (Sheol )
and all his sons and all his daughters rise to comfort him, and he refuses to comfort himself, and says, “For I go down to my son mourning, to Sheol,” and his father weeps for him. (Sheol )
36 वहां, मिदियानियों ने मिस्र पहुंचकर योसेफ़ को पोतिफर को बेच दिया, जो फ़रोह का एक अधिकारी, अंगरक्षकों का प्रधान था.
And the Midianites have sold him to Egypt, to Potiphar, a eunuch of Pharaoh, head of the executioners.