< उत्पत्ति 31 >

1 याकोब के कानों में यह समाचार पड़ा कि लाबान के पुत्र बड़बड़ा रहे थे, “याकोब ने तो वह सब हड़प लिया है, जो हमारे पिता का था और अब वह हमारे पिता ही की संपत्ति के आधार पर समृद्ध बना बैठा है.”
וַיִּשְׁמַ֗ע אֶת־דִּבְרֵ֤י בְנֵֽי־לָבָן֙ לֵאמֹ֔ר לָקַ֣ח יַעֲקֹ֔ב אֵ֖ת כָּל־אֲשֶׁ֣ר לְאָבִ֑ינוּ וּמֵאֲשֶׁ֣ר לְאָבִ֔ינוּ עָשָׂ֕ה אֵ֥ת כָּל־הַכָּבֹ֖ד הַזֶּֽה׃
2 यहां याकोब ने पाया कि लाबान की अभिवृत्ति उनके प्रति अब पहले जैसी नहीं रह गई थी.
וַיַּ֥רְא יַעֲקֹ֖ב אֶת־פְּנֵ֣י לָבָ֑ן וְהִנֵּ֥ה אֵינֶ֛נּוּ עִמּ֖וֹ כִּתְמ֥וֹל שִׁלְשֽׁוֹם׃
3 इस स्थिति के प्रकाश में याहवेह ने याकोब को आदेश दिया, “अपने पिता एवं अपने संबंधियों के देश को लौट जाओ. मैं इसमें तुम्हारे पक्ष में हूं.”
וַיֹּ֤אמֶר יְהוָה֙ אֶֽל־יַעֲקֹ֔ב שׁ֛וּב אֶל־אֶ֥רֶץ אֲבוֹתֶ֖יךָ וּלְמוֹלַדְתֶּ֑ךָ וְאֶֽהְיֶ֖ה עִמָּֽךְ׃
4 इसलिये याकोब ने राहेल तथा लियाह को वहीं बुला लिया, जहां वे भेड़-बकरियों के साथ थे.
וַיִּשְׁלַ֣ח יַעֲקֹ֔ב וַיִּקְרָ֖א לְרָחֵ֣ל וּלְלֵאָ֑ה הַשָּׂדֶ֖ה אֶל־צֹאנֽוֹ׃
5 उन्होंने उनसे कहा, “मैं तुम्हारे पिता की अभिवृत्ति स्पष्ट देख रहा हूं; अब यह मेरे प्रति पहले जैसी सौहार्दपूर्ण नहीं रह गई; किंतु मेरे पिता के परमेश्वर मेरे साथ रहे हैं.
וַיֹּ֣אמֶר לָהֶ֗ן רֹאֶ֤ה אָנֹכִי֙ אֶת־פְּנֵ֣י אֲבִיכֶ֔ן כִּֽי־אֵינֶ֥נּוּ אֵלַ֖י כִּתְמֹ֣ל שִׁלְשֹׁ֑ם וֵֽאלֹהֵ֣י אָבִ֔י הָיָ֖ה עִמָּדִֽי׃
6 तुम दोनों को ही यह उत्तम रीति से ज्ञात है कि मैंने यथाशक्ति तुम्हारे पिता की सेवा की है.
וְאַתֵּ֖נָה יְדַעְתֶּ֑ן כִּ֚י בְּכָל־כֹּחִ֔י עָבַ֖דְתִּי אֶת־אֲבִיכֶֽן׃
7 इतना होने पर भी तुम्हारे पिता ने मेरे साथ छल किया और दस अवसरों पर मेरे पारिश्रमिक में परिवर्तन किए हैं; फिर भी परमेश्वर ने उन्हें मेरी कोई हानि न करने दी.
וַאֲבִיכֶן֙ הֵ֣תֶל בִּ֔י וְהֶחֱלִ֥ף אֶת־מַשְׂכֻּרְתִּ֖י עֲשֶׂ֣רֶת מֹנִ֑ים וְלֹֽא־נְתָנ֣וֹ אֱלֹהִ֔ים לְהָרַ֖ע עִמָּדִֽי׃
8 यदि उन्होंने कहा, ‘चित्तीयुक्त पशु तुम्हारे पारिश्रमिक होंगे,’ तो सभी भेड़ चित्तीयुक्त मेमने ही पैदा करने लगे; यदि उन्होंने कहा, ‘अच्छा, धारीयुक्त पशु तुम्हारा पारिश्रमिक होंगे,’ तो भेड़ धारीयुक्त मेमने उत्पन्‍न करने लगे.
אִם־כֹּ֣ה יֹאמַ֗ר נְקֻדִּים֙ יִהְיֶ֣ה שְׂכָרֶ֔ךָ וְיָלְד֥וּ כָל־הַצֹּ֖אן נְקֻדִּ֑ים וְאִם־כֹּ֣ה יֹאמַ֗ר עֲקֻדִּים֙ יִהְיֶ֣ה שְׂכָרֶ֔ךָ וְיָלְד֥וּ כָל־הַצֹּ֖אן עֲקֻדִּֽים׃
9 यह तो परमेश्वर का ही कृत्य था, जो उन्होंने तुम्हारे पिता के ये पशु मुझे दे दिए हैं.
וַיַּצֵּ֧ל אֱלֹהִ֛ים אֶת־מִקְנֵ֥ה אֲבִיכֶ֖ם וַיִּתֶּן־לִֽי׃
10 “तब पशुओं के समागम के अवसर पर मैंने एक स्वप्न देखा कि वे बकरे, जो संभोग कर रहे थे, वे धारीयुक्त, चित्तीयुक्त एवं धब्बे युक्त थे.
וַיְהִ֗י בְּעֵת֙ יַחֵ֣ם הַצֹּ֔אן וָאֶשָּׂ֥א עֵינַ֛י וָאֵ֖רֶא בַּחֲל֑וֹם וְהִנֵּ֤ה הָֽעַתֻּדִים֙ הָעֹלִ֣ים עַל־הַצֹּ֔אן עֲקֻדִּ֥ים נְקֻדִּ֖ים וּבְרֻדִּֽים׃
11 परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझसे कहा, ‘याकोब,’ मैंने कहा, ‘क्या आज्ञा है, प्रभु?’
וַיֹּ֨אמֶר אֵלַ֜י מַלְאַ֧ךְ הָאֱלֹהִ֛ים בַּחֲל֖וֹם יַֽעֲקֹ֑ב וָאֹמַ֖ר הִנֵּֽנִי׃
12 और उसने कहा, ‘याकोब, देखो-देखो, जितने भी बकरे इस समय संभोग कर रहे हैं, वे धारीयुक्त हैं, चित्तीयुक्त हैं तथा धब्बे युक्त हैं; क्योंकि मैंने वह सब देख लिया है, जो लाबान तुम्हारे साथ करता रहा है.
וַיֹּ֗אמֶר שָׂא־נָ֨א עֵינֶ֤יךָ וּרְאֵה֙ כָּל־הָֽעַתֻּדִים֙ הָעֹלִ֣ים עַל־הַצֹּ֔אן עֲקֻדִּ֥ים נְקֻדִּ֖ים וּבְרֻדִּ֑ים כִּ֣י רָאִ֔יתִי אֵ֛ת כָּל־אֲשֶׁ֥ר לָבָ֖ן עֹ֥שֶׂה לָּֽךְ׃
13 मैं बेथेल का परमेश्वर हूं, जहां तुमने उस शिलाखण्ड का अभ्यंजन किया था, जहां तुमने मेरे समक्ष संकल्प लिया था; अब उठो. छोड़ दो इस स्थान को और अपने जन्मस्थान को लौट जाओ.’”
אָנֹכִ֤י הָאֵל֙ בֵּֽית־אֵ֔ל אֲשֶׁ֨ר מָשַׁ֤חְתָּ שָּׁם֙ מַצֵּבָ֔ה אֲשֶׁ֨ר נָדַ֥רְתָּ לִּ֛י שָׁ֖ם נֶ֑דֶר עַתָּ֗ה ק֥וּם צֵא֙ מִן־הָאָ֣רֶץ הַזֹּ֔את וְשׁ֖וּב אֶל־אֶ֥רֶץ מוֹלַדְתֶּֽךָ׃
14 राहेल तथा लियाह ने उनसे कहा, “क्या अब भी हमारे पिता की संपत्ति में हमारा कोई अंश अथवा उत्तराधिकार शेष रह गया है?
וַתַּ֤עַן רָחֵל֙ וְלֵאָ֔ה וַתֹּאמַ֖רְנָה ל֑וֹ הַע֥וֹד לָ֛נוּ חֵ֥לֶק וְנַחֲלָ֖ה בְּבֵ֥ית אָבִֽינוּ׃
15 क्या अब हम उनके आंकलन में विदेशी नहीं हो गई हैं? उन्होंने हमें बेच दिया है, तथा हमारे अंश की धनराशि भी हड़प ली है.
הֲל֧וֹא נָכְרִיּ֛וֹת נֶחְשַׁ֥בְנוּ ל֖וֹ כִּ֣י מְכָרָ֑נוּ וַיֹּ֥אכַל גַּם־אָכ֖וֹל אֶת־כַּסְפֵּֽנוּ׃
16 निःसंदेह अब तो, जो संपत्ति परमेश्वर ने हमारे पिता से छीन ली है, हमारी तथा हमारी संतान की हो चुकी है. तो आप वही कीजिए, जिसका निर्देश आपको परमेश्वर दे चुके हैं.”
כִּ֣י כָל־הָעֹ֗שֶׁר אֲשֶׁ֨ר הִצִּ֤יל אֱלֹהִים֙ מֵֽאָבִ֔ינוּ לָ֥נוּ ה֖וּא וּלְבָנֵ֑ינוּ וְעַתָּ֗ה כֹּל֩ אֲשֶׁ֨ר אָמַ֧ר אֱלֹהִ֛ים אֵלֶ֖יךָ עֲשֵֽׂה׃
17 तब याकोब ने अपने बालकों एवं पत्नियों को ऊंटों पर बैठा दिया,
וַיָּ֖קָם יַעֲקֹ֑ב וַיִּשָּׂ֛א אֶת־בָּנָ֥יו וְאֶת־נָשָׁ֖יו עַל־הַגְּמַלִּֽים׃
18 याकोब ने अपने समस्त पशुओं को, अपनी समस्त संपत्ति को, जो उनके वहां रहते हुए संकलित होती गई थी तथा वह पशु धन, जो पद्दन-अराम में उनके प्रवासकाल में संकलित होता चला गया था, इन सबको लेकर अपने पिता यित्सहाक के आवास कनान की ओर प्रस्थान किया.
וַיִּנְהַ֣ג אֶת־כָּל־מִקְנֵ֗הוּ וְאֶת־כָּל־רְכֻשׁוֹ֙ אֲשֶׁ֣ר רָכָ֔שׁ מִקְנֵה֙ קִנְיָנ֔וֹ אֲשֶׁ֥ר רָכַ֖שׁ בְּפַדַּ֣ן אֲרָ֑ם לָב֛וֹא אֶל־יִצְחָ֥ק אָבִ֖יו אַ֥רְצָה כְּנָֽעַן׃
19 जब लाबान ऊन कतरने के लिए बाहर गया हुआ था, राहेल ने अपने पिता के गृहदेवता—प्रतिमाओं की चोरी कर ली.
וְלָבָ֣ן הָלַ֔ךְ לִגְזֹ֖ז אֶת־צֹאנ֑וֹ וַתִּגְנֹ֣ב רָחֵ֔ל אֶת־הַתְּרָפִ֖ים אֲשֶׁ֥ר לְאָבִֽיהָ׃
20 तब याकोब ने भी अरामी लाबान के साथ प्रवंचना की; याकोब ने लाबान को सूचित ही नहीं किया कि वे पलायन कर रहे थे.
וַיִּגְנֹ֣ב יַעֲקֹ֔ב אֶת־לֵ֥ב לָבָ֖ן הָאֲרַמִּ֑י עַל־בְּלִי֙ הִגִּ֣יד ל֔וֹ כִּ֥י בֹרֵ֖חַ הֽוּא׃
21 इसलिये याकोब अपनी समस्त संपत्ति को लेकर पलायन कर गए. उन्होंने फरात नदी पार की और पर्वतीय प्रदेश गिलआद की दिशा में आगे बढ़ गए.
וַיִּבְרַ֥ח הוּא֙ וְכָל־אֲשֶׁר־ל֔וֹ וַיָּ֖קָם וַיַּעֲבֹ֣ר אֶת־הַנָּהָ֑ר וַיָּ֥שֶׂם אֶת־פָּנָ֖יו הַ֥ר הַגִּלְעָֽד׃
22 तीसरे दिन जब लाबान को यह सूचना दी गई कि याकोब पलायन कर चुके हैं,
וַיֻּגַּ֥ד לְלָבָ֖ן בַּיּ֣וֹם הַשְּׁלִישִׁ֑י כִּ֥י בָרַ֖ח יַעֲקֹֽב׃
23 तब लाबान ने अपने संबंधियों को साथ लेकर याकोब का पीछा किया. सात दिन पीछा करने के बाद वे गिलआद के पर्वतीय प्रदेश में उनके निकट पहुंच गए.
וַיִּקַּ֤ח אֶת־אֶחָיו֙ עִמּ֔וֹ וַיִּרְדֹּ֣ף אַחֲרָ֔יו דֶּ֖רֶךְ שִׁבְעַ֣ת יָמִ֑ים וַיַּדְבֵּ֥ק אֹת֖וֹ בְּהַ֥ר הַגִּלְעָֽד׃
24 परमेश्वर ने अरामी लाबान पर रात्रि में स्वप्न में प्रकट होकर उसे चेतावनी दी, “सावधान रहना कि तुम याकोब से कुछ प्रिय-अप्रिय न कह बैठो.”
וַיָּבֹ֧א אֱלֹהִ֛ים אֶל־לָבָ֥ן הָאֲרַמִּ֖י בַּחֲלֹ֣ם הַלָּ֑יְלָה וַיֹּ֣אמֶר ל֗וֹ הִשָּׁ֧מֶר לְךָ֛ פֶּן־תְּדַבֵּ֥ר עִֽם־יַעֲקֹ֖ב מִטּ֥וֹב עַד־רָֽע׃
25 लाबान याकोब तक जा पहुंचा. याकोब के शिविर पर्वतीय क्षेत्र में थे तथा लाबान ने भी अपने शिविर अपने संबंधियों सदृश गिलआद के पर्वतीय क्षेत्र में खड़े किए हुए थे.
וַיַּשֵּׂ֥ג לָבָ֖ן אֶֽת־יַעֲקֹ֑ב וְיַעֲקֹ֗ב תָּקַ֤ע אֶֽת־אָהֳלוֹ֙ בָּהָ֔ר וְלָבָ֛ן תָּקַ֥ע אֶת־אֶחָ֖יו בְּהַ֥ר הַגִּלְעָֽד׃
26 लाबान ने याकोब से कहा, “यह क्या कर रहे हो तुम? यह तो मेरे साथ छल है! तुम तो मेरी पुत्रियों को ऐसे लिए जा रहे हो, जैसे युद्धबन्दियों को तलवार के आतंक में ले जाया जाता है.
וַיֹּ֤אמֶר לָבָן֙ לְיַעֲקֹ֔ב מֶ֣ה עָשִׂ֔יתָ וַתִּגְנֹ֖ב אֶת־לְבָבִ֑י וַתְּנַהֵג֙ אֶת־בְּנֹתַ֔י כִּשְׁבֻי֖וֹת חָֽרֶב׃
27 क्या आवश्यकता थी ऐसे छिपकर भागने की, मुझसे छल करने की? यदि तुमने मुझे इसकी सूचना दी होती, तो मैं तुम्हें डफ तथा किन्‍नोर की संगत पर गीतों के साथ सहर्ष विदा करता!
לָ֤מָּה נַחְבֵּ֙אתָ֙ לִבְרֹ֔חַ וַתִּגְנֹ֖ב אֹתִ֑י וְלֹא־הִגַּ֣דְתָּ לִּ֔י וָֽאֲשַׁלֵּחֲךָ֛ בְּשִׂמְחָ֥ה וּבְשִׁרִ֖ים בְּתֹ֥ף וּבְכִנּֽוֹר׃
28 तुमने तो मुझे सुअवसर ही न दिया कि मैं अपने पुत्र-पुत्रियों को चुंबन के साथ विदा कर सकता. तुम्हारा यह कृत्य मूर्खतापूर्ण है.
וְלֹ֣א נְטַשְׁתַּ֔נִי לְנַשֵּׁ֥ק לְבָנַ֖י וְלִבְנֹתָ֑י עַתָּ֖ה הִסְכַּ֥לְתָּֽ עֲשֽׂוֹ׃
29 मुझे यह अधिकार है कि तुम्हें इसके लिए प्रताड़ित करूं; किंतु तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने कल रात्रि मुझ पर प्रकट होकर मुझे आदेश दिया है कि मैं तुमसे कुछ भी प्रिय-अप्रिय न कहूं.
יֶשׁ־לְאֵ֣ל יָדִ֔י לַעֲשׂ֥וֹת עִמָּכֶ֖ם רָ֑ע וֵֽאלֹהֵ֨י אֲבִיכֶ֜ם אֶ֣מֶשׁ ׀ אָמַ֧ר אֵלַ֣י לֵאמֹ֗ר הִשָּׁ֧מֶר לְךָ֛ מִדַּבֵּ֥ר עִֽם־יַעֲקֹ֖ב מִטּ֥וֹב עַד־רָֽע׃
30 ठीक है, तुम्हें अपने पिता के निकट रहने की इच्छा है, मान लिया; किंतु क्या आवश्यकता थी तुम्हें मेरे गृह-देवताओं की चोरी करने की?”
וְעַתָּה֙ הָלֹ֣ךְ הָלַ֔כְתָּ כִּֽי־נִכְסֹ֥ף נִכְסַ֖פְתָּה לְבֵ֣ית אָבִ֑יךָ לָ֥מָּה גָנַ֖בְתָּ אֶת־אֱלֹהָֽי׃
31 तब याकोब ने लाबान को उत्तर दिया, “मेरे इस प्रकार आने का कारण थी मेरी यह आशंका, कि आप मुझसे अपनी पुत्रियां बलात छीन लेते.
וַיַּ֥עַן יַעֲקֹ֖ב וַיֹּ֣אמֶר לְלָבָ֑ן כִּ֣י יָרֵ֔אתִי כִּ֣י אָמַ֔רְתִּי פֶּן־תִּגְזֹ֥ל אֶת־בְּנוֹתֶ֖יךָ מֵעִמִּֽי׃
32 किंतु आपको जिस किसी के पास से वे गृहदेवता प्राप्‍त होंगे, उसे जीवित न छोड़ा जाएगा. आपके ही संबंधियों की उपस्थिति में आप हमारी संपत्ति में से जो कुछ आपका है, ले लीजिए.” याकोब को इस तथ्य का कोई संज्ञान न था कि राहेल ने उन गृह-देवताओं की मूर्तियों को चुराई हैं.
עִ֠ם אֲשֶׁ֨ר תִּמְצָ֣א אֶת־אֱלֹהֶיךָ֮ לֹ֣א יִֽחְיֶה֒ נֶ֣גֶד אַחֵ֧ינוּ הַֽכֶּר־לְךָ֛ מָ֥ה עִמָּדִ֖י וְקַֽח־לָ֑ךְ וְלֹֽא־יָדַ֣ע יַעֲקֹ֔ב כִּ֥י רָחֵ֖ל גְּנָבָֽתַם׃
33 इसलिये लाबान याकोब के शिविर के भीतर गया, उसके बाद लियाह के शिविर में, और उसके बाद परिचारिकाओं के शिविर में. किंतु वह देवता उसे वहां प्राप्‍त न हुआ. तब वह लियाह के शिविर से निकलकर राहेल के शिविर में गया.
וַיָּבֹ֨א לָבָ֜ן בְּאֹ֥הֶל יַעֲקֹ֣ב ׀ וּבְאֹ֣הֶל לֵאָ֗ה וּבְאֹ֛הֶל שְׁתֵּ֥י הָאֲמָהֹ֖ת וְלֹ֣א מָצָ֑א וַיֵּצֵא֙ מֵאֹ֣הֶל לֵאָ֔ה וַיָּבֹ֖א בְּאֹ֥הֶל רָחֵֽל׃
34 राहेल ने ही वे गृहदेवता छिपाए हुए थे, जिन्हें उसने ऊंट की काठी में रखा हुआ था. वह स्वयं उन पर बैठ गई थी. लाबान ने समस्त शिविर में खोज कर ली थी, किंतु उसे कुछ प्राप्‍त न हुआ था.
וְרָחֵ֞ל לָקְחָ֣ה אֶת־הַתְּרָפִ֗ים וַתְּשִׂמֵ֛ם בְּכַ֥ר הַגָּמָ֖ל וַתֵּ֣שֶׁב עֲלֵיהֶ֑ם וַיְמַשֵּׁ֥שׁ לָבָ֛ן אֶת־כָּל־הָאֹ֖הֶל וְלֹ֥א מָצָֽא׃
35 उसने अपने पिता से आग्रह किया, “पिताजी, आप क्रुद्ध न हों. मैं आपके समक्ष खड़ी होने के असमर्थ हूं; क्योंकि इस समय मैं रजस्वला हूं.” तब लाबान के खोजने पर भी उसे वे गृह-देवताओं की मूर्तियां नहीं मिलीं.
וַתֹּ֣אמֶר אֶל־אָבִ֗יהָ אַל־יִ֙חַר֙ בְּעֵינֵ֣י אֲדֹנִ֔י כִּ֣י ל֤וֹא אוּכַל֙ לָק֣וּם מִפָּנֶ֔יךָ כִּי־דֶ֥רֶךְ נָשִׁ֖ים לִ֑י וַיְחַפֵּ֕שׂ וְלֹ֥א מָצָ֖א אֶת־הַתְּרָפִֽים׃
36 तब याकोब का क्रोध उद्दीप्‍त हो उठा. वह लाबान से तर्क-वितर्क करने लगे, “क्या अपराध है मेरा?” क्या पाप किया है मैंने, जो आप इस प्रकार मेरा पीछा करते हुए आ रहे हैं?
וַיִּ֥חַר לְיַעֲקֹ֖ב וַיָּ֣רֶב בְּלָבָ֑ן וַיַּ֤עַן יַעֲקֹב֙ וַיֹּ֣אמֶר לְלָבָ֔ן מַה־פִּשְׁעִי֙ מַ֣ה חַטָּאתִ֔י כִּ֥י דָלַ֖קְתָּ אַחֲרָֽי׃
37 आपने मेरी समस्त वस्तुओं में उन देवताओं की खोज कर ली है, किंतु आपको कोई भी अपनी वस्तु प्राप्‍त हुई है? आपके तथा मेरे संबंधियों के समक्ष यह स्पष्ट हो जाए, कि वे हम दोनों के मध्य अपना निर्णय दे सकें.
כִּֽי־מִשַּׁ֣שְׁתָּ אֶת־כָּל־כֵּלַ֗י מַה־מָּצָ֙אתָ֙ מִכֹּ֣ל כְּלֵי־בֵיתֶ֔ךָ שִׂ֣ים כֹּ֔ה נֶ֥גֶד אַחַ֖י וְאַחֶ֑יךָ וְיוֹכִ֖יחוּ בֵּ֥ין שְׁנֵֽינוּ׃
38 “इन बीस वर्षों तक मैं आपके साथ रहा हूं. आपकी भेड़ों एवं बकरियों में कभी गर्भपात नहीं हुआ. अपने भोजन के लिए मैंने कभी आपके पशुवृन्द में से मेढ़े नहीं उठाए.
זֶה֩ עֶשְׂרִ֨ים שָׁנָ֤ה אָנֹכִי֙ עִמָּ֔ךְ רְחֵלֶ֥יךָ וְעִזֶּ֖יךָ לֹ֣א שִׁכֵּ֑לוּ וְאֵילֵ֥י צֹאנְךָ֖ לֹ֥א אָכָֽלְתִּי׃
39 जब कभी किसी वन्य पशु ने हमारे पशु को फाड़ा, मैंने उसे कभी आपके वृन्द में सम्मिलित नहीं किया; इसे मैंने अपनी ही हानि में सम्मिलित किया था. चाहे कोई पशु दिन में चोरी हुआ अथवा रात्रि में, आपने मुझसे भुगतान की मांग की.
טְרֵפָה֙ לֹא־הֵבֵ֣אתִי אֵלֶ֔יךָ אָנֹכִ֣י אֲחַטֶּ֔נָּה מִיָּדִ֖י תְּבַקְשֶׁ֑נָּה גְּנֻֽבְתִ֣י י֔וֹם וּגְנֻֽבְתִ֖י לָֽיְלָה׃
40 मेरी स्थिति तो ऐसी रही कि दिन में मुझ पर ऊष्मा का प्रहार होता रहा तथा रात्रि में ठंड का. मेरे नेत्रों से निद्रा दूर ही दूर रही.
הָיִ֧יתִי בַיּ֛וֹם אֲכָלַ֥נִי חֹ֖רֶב וְקֶ֣רַח בַּלָּ֑יְלָה וַתִּדַּ֥ד שְׁנָתִ֖י מֵֽעֵינָֽי׃
41 इन बीस वर्षों में मैं आपके परिवार में रहा हूं; चौदह वर्ष आपकी पुत्रियों के लिए तथा छः वर्ष आपके भेड़-बकरियों के लिए. इन वर्षों में आपने दस बार मेरा पारिश्रमिक परिवर्तित किया है.
זֶה־לִּ֞י עֶשְׂרִ֣ים שָׁנָה֮ בְּבֵיתֶךָ֒ עֲבַדְתִּ֜יךָ אַרְבַּֽע־עֶשְׂרֵ֤ה שָׁנָה֙ בִּשְׁתֵּ֣י בְנֹתֶ֔יךָ וְשֵׁ֥שׁ שָׁנִ֖ים בְּצֹאנֶ֑ךָ וַתַּחֲלֵ֥ף אֶת־מַשְׂכֻּרְתִּ֖י עֲשֶׂ֥רֶת מֹנִֽים׃
42 यदि मेरे पिता के परमेश्वर, अब्राहाम तथा यित्सहाक के परमेश्वर का भय मेरे साथ न होता, तो आपने तो मुझे रिक्त हस्त ही विदा कर दिया होता. परमेश्वर ने मेरे कष्ट एवं मेरे हाथों के परिश्रम को देखा है, और उसका प्रतिफल उन्होंने मुझे कल रात में प्रदान कर दिया है.”
לוּלֵ֡י אֱלֹהֵ֣י אָבִי֩ אֱלֹהֵ֨י אַבְרָהָ֜ם וּפַ֤חַד יִצְחָק֙ הָ֣יָה לִ֔י כִּ֥י עַתָּ֖ה רֵיקָ֣ם שִׁלַּחְתָּ֑נִי אֶת־עָנְיִ֞י וְאֶת־יְגִ֧יַע כַּפַּ֛י רָאָ֥ה אֱלֹהִ֖ים וַיּ֥וֹכַח אָֽמֶשׁ׃
43 यह सब सुनकर लाबान ने याकोब को उत्तर दिया, “ये स्त्रियां मेरी पुत्रियां हैं, ये बालक मेरे बालक हैं, ये भेड़-बकरियां भी मेरी ही हैं, तथा जो कुछ तुम्हें दिखाई दे रहा है, वह मेरा ही है; किंतु अब मैं अपनी पुत्रियों एवं इन बालकों का क्या करूं, जो इनकी सन्तति हैं?
וַיַּ֨עַן לָבָ֜ן וַיֹּ֣אמֶר אֶֽל־יַעֲקֹ֗ב הַבָּנ֨וֹת בְּנֹתַ֜י וְהַבָּנִ֤ים בָּנַי֙ וְהַצֹּ֣אן צֹאנִ֔י וְכֹ֛ל אֲשֶׁר־אַתָּ֥ה רֹאֶ֖ה לִי־ה֑וּא וְלִבְנֹתַ֞י מָֽה־אֶֽעֱשֶׂ֤ה לָאֵ֙לֶּה֙ הַיּ֔וֹם א֥וֹ לִבְנֵיהֶ֖ן אֲשֶׁ֥ר יָלָֽדוּ׃
44 इसलिये आओ, हम परस्पर यह वाचा स्थापित कर लें, तुम और मैं, और यही हमारे मध्य साक्ष्य हो जाए.”
וְעַתָּ֗ה לְכָ֛ה נִכְרְתָ֥ה בְרִ֖ית אֲנִ֣י וָאָ֑תָּה וְהָיָ֥ה לְעֵ֖ד בֵּינִ֥י וּבֵינֶֽךָ׃
45 इसलिये याकोब ने एक शिलाखण्ड को स्तंभ स्वरूप खड़ा किया.
וַיִּקַּ֥ח יַעֲקֹ֖ב אָ֑בֶן וַיְרִימֶ֖הָ מַצֵּבָֽה׃
46 याकोब ने अपने संबंधियों से कहा, “पत्थर एकत्र करो.” इसलिये उन्होंने पत्थर एकत्र कर एक ढेर बना दिया तथा उस ढेर के निकट बैठ उन्होंने भोजन किया.
וַיֹּ֨אמֶר יַעֲקֹ֤ב לְאֶחָיו֙ לִקְט֣וּ אֲבָנִ֔ים וַיִּקְח֥וּ אֲבָנִ֖ים וַיַּֽעֲשׂוּ־גָ֑ל וַיֹּ֥אכְלוּ שָׁ֖ם עַל־הַגָּֽל׃
47 लाबान ने तो इसे नाम दिया येगर-सहदूथा किंतु याकोब ने इसे गलएद कहकर पुकारा.
וַיִּקְרָא־ל֣וֹ לָבָ֔ן יְגַ֖ר שָׂהֲדוּתָ֑א וְיַֽעֲקֹ֔ב קָ֥רָא ל֖וֹ גַּלְעֵֽד׃
48 लाबान ने कहा, “पत्थरों का यह ढेर आज मेरे तथा तुम्हारे मध्य एक साक्ष्य है.” इसलिये इसे गलएद तथा मिज़पाह नाम दिया गया,
וַיֹּ֣אמֶר לָבָ֔ן הַגַּ֨ל הַזֶּ֥ה עֵ֛ד בֵּינִ֥י וּבֵינְךָ֖ הַיּ֑וֹם עַל־כֵּ֥ן קָרָֽא־שְׁמ֖וֹ גַּלְעֵֽד׃
49 क्योंकि उनका कथन था, “जब हम एक दूसरे की दृष्टि से दूर हों, याहवेह ही तुम्हारे तथा मेरे मध्य चौकसी बनाए रखें.
וְהַמִּצְפָּה֙ אֲשֶׁ֣ר אָמַ֔ר יִ֥צֶף יְהוָ֖ה בֵּינִ֣י וּבֵינֶ֑ךָ כִּ֥י נִסָּתֵ֖ר אִ֥ישׁ מֵרֵעֵֽהוּ׃
50 यदि तुम मेरी पुत्रियों के साथ दुर्व्यवहार करो अथवा मेरी पुत्रियों के अतिरिक्त पत्नियां ले आओ, यद्यपि कोई मनुष्य यह देख न सकेगा, किंतु स्मरण रहे, तुम्हारे तथा मेरे मध्य परमेश्वर साक्ष्य हैं.”
אִם־תְּעַנֶּ֣ה אֶת־בְּנֹתַ֗י וְאִם־תִּקַּ֤ח נָשִׁים֙ עַל־בְּנֹתַ֔י אֵ֥ין אִ֖ישׁ עִמָּ֑נוּ רְאֵ֕ה אֱלֹהִ֥ים עֵ֖ד בֵּינִ֥י וּבֵינֶֽךָ׃
51 लाबान ने याकोब से कहा, “इस ढेर को तथा इस स्तंभ को देखो, जो मैंने तुम्हारे तथा मेरे मध्य में स्थापित किया है.
וַיֹּ֥אמֶר לָבָ֖ן לְיַעֲקֹ֑ב הִנֵּ֣ה ׀ הַגַּ֣ל הַזֶּ֗ה וְהִנֵּה֙ הַמַצֵּבָ֔ה אֲשֶׁ֥ר יָרִ֖יתִי בֵּינִ֥י וּבֵינֶֽךָ׃
52 यह स्तंभ तथा पत्थरों का ढेर साक्ष्य है, कि मैं इसके निकट से होकर तुम्हारी हानि करने के लक्ष्य से आगे नहीं बढ़ूंगा, वैसे ही तुम भी इस ढेर तथा इस स्तंभ के निकट से होकर मेरी हानि के उद्देश्य से आगे नहीं बढ़ोगे.
עֵ֚ד הַגַּ֣ל הַזֶּ֔ה וְעֵדָ֖ה הַמַּצֵּבָ֑ה אִם־אָ֗נִי לֹֽא־אֶֽעֱבֹ֤ר אֵלֶ֙יךָ֙ אֶת־הַגַּ֣ל הַזֶּ֔ה וְאִם־אַ֠תָּה לֹא־תַעֲבֹ֨ר אֵלַ֜י אֶת־הַגַּ֥ל הַזֶּ֛ה וְאֶת־הַמַּצֵּבָ֥ה הַזֹּ֖את לְרָעָֽה׃
53 इसके लिए अब्राहाम के परमेश्वर, नाहोर के परमेश्वर तथा उनके पिता के परमेश्वर हमारा न्याय करें.” इसलिये याकोब ने अपने पिता यित्सहाक के प्रति भय-भाव में शपथ ली.
אֱלֹהֵ֨י אַבְרָהָ֜ם וֵֽאלֹהֵ֤י נָחוֹר֙ יִשְׁפְּט֣וּ בֵינֵ֔ינוּ אֱלֹהֵ֖י אֲבִיהֶ֑ם וַיִּשָּׁבַ֣ע יַעֲקֹ֔ב בְּפַ֖חַד אָבִ֥יו יִצְחָֽק׃
54 फिर याकोब ने उस पर्वत पर ही बलि अर्पित की तथा अपने संबंधियों को भोज के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने भोजन किया तथा पर्वत पर ही रात्रि व्यतीत की.
וַיִּזְבַּ֨ח יַעֲקֹ֥ב זֶ֙בַח֙ בָּהָ֔ר וַיִּקְרָ֥א לְאֶחָ֖יו לֶאֱכָל־לָ֑חֶם וַיֹּ֣אכְלוּ לֶ֔חֶם וַיָּלִ֖ינוּ בָּהָֽר׃
55 बड़े तड़के लाबान उठा, अपने पुत्र-पुत्रियों का चुंबन लिया तथा उन्हें आशीर्वाद दिया. फिर लाबान स्वदेश लौट गया.
וַיַּשְׁכֵּ֨ם לָבָ֜ן בַּבֹּ֗קֶר וַיְנַשֵּׁ֧ק לְבָנָ֛יו וְלִבְנוֹתָ֖יו וַיְבָ֣רֶךְ אֶתְהֶ֑ם וַיֵּ֛לֶךְ וַיָּ֥שָׁב לָבָ֖ן לִמְקֹמֽוֹ׃

< उत्पत्ति 31 >