< उत्पत्ति 27 >

1 जब यित्सहाक वृद्ध हो गये थे और उनकी आंखें इतनी कमजोर हो गईं कि वह देख नहीं सकते थे, तब उन्होंने अपने बड़े बेटे एसाव को बुलाया और कहा, “हे मेरे पुत्र.” उन्होंने कहा, “क्या आज्ञा है पिताजी?”
And it cometh to pass that Isaac [is] aged, and his eyes are too dim for seeing, and he calleth Esau his elder son, and saith unto him, 'My son;' and he saith unto him, 'Here [am] I.'
2 यित्सहाक ने कहा, “मैं तो बूढ़ा हो गया हूं और नहीं जानता कि कब मर जाऊंगा.
And he saith, 'Lo, I pray thee, I have become aged, I have not known the day of my death;
3 इसलिये अब तुम अपना हथियार—अपना तरकश और धनुष लो और खुले मैदान में जाओ और मेरे लिये कोई वन पशु शिकार करके ले आओ.
and now, take up, I pray thee, thy instruments, thy quiver, and thy bow, and go out to the field, and hunt for me provision,
4 और मेरी पसंद के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना कि मैं उसे खाऊं और अपने मरने से पहले तुम्हें आशीष दूं.”
and make for me tasteful things, [such] as I have loved, and bring in to me, and I do eat, so that my soul doth bless thee before I die.'
5 जब यित्सहाक अपने पुत्र एसाव से बातें कर रहे थे, तब रेबेकाह उनकी बातों को सुन रही थी. जब एसाव खुले मैदान में शिकार लाने के लिए चला गया,
And Rebekah is hearkening while Isaac is speaking unto Esau his son; and Esau goeth to the field to hunt provision — to bring in;
6 तब रेबेकाह ने अपने पुत्र याकोब से कहा, “देख, मैंने तुम्हारे पिता को तुम्हारे भाई एसाव से यह कहते हुए सुना है,
and Rebekah hath spoken unto Jacob her son, saying, 'Lo, I have heard thy father speaking unto Esau thy brother, saying,
7 ‘शिकार करके मेरे लिये स्वादिष्ट भोजन बनाकर ला कि मैं उसे खाऊं और अपने मरने से पहले याहवेह के सामने तुम्हें आशीष दूं.’
Bring for me provision, and make for me tasteful things, and I do eat, and bless thee before Jehovah before my death.
8 इसलिये, हे मेरे पुत्र, अब ध्यान से मेरी बात सुन और जो मैं कहती हूं उसे कर:
'And now, my son, hearken to my voice, to that which I am commanding thee:
9 जानवरों के झुंड में जाकर दो अच्छे छोटे बकरे ले आ, ताकि मैं तुम्हारे पिता के लिए उनके पसंद के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दूं.
Go, I pray thee, unto the flock, and take for me from thence two good kids of the goats, and I make them tasteful things for thy father, [such] as he hath loved;
10 तब तुम उस भोजन को अपने पिता के पास ले जाना, ताकि वह उसे खाकर अपने मरने से पहले तुम्हें अपनी आशीष दें.”
and thou hast taken in to thy father, and he hath eaten, so that his soul doth bless thee before his death.
11 याकोब ने अपनी माता रेबेकाह से कहा, “पर मेरे भाई के शरीर में पूरे बाल हैं, लेकिन मेरी त्वचा चिकनी है.
And Jacob saith unto Rebekah his mother, 'Lo, Esau my brother [is] a hairy man, and I a smooth man,
12 यदि मेरे पिता मुझे छुएंगे तब क्या होगा? मैं तो धोखा देनेवाला ठहरूंगा और आशीष के बदले अपने ऊपर शाप लाऊंगा.”
it may be my father doth feel me, and I have been in his eyes as a deceiver, and have brought upon me disesteem, and not a blessing;'
13 तब उसकी मां ने कहा, “मेरे पुत्र, तुम्हारा शाप मुझ पर आ जाए. मैं जैसा कहती हूं तू वैसा ही कर; जा और उनको मेरे लिये ले आ.”
and his mother saith to him, 'On me thy disesteem, my son; only hearken to my voice, and go, take for me.'
14 इसलिये याकोब जाकर उनको लाया और अपनी मां को दे दिया, और उसने याकोब के पिता की पसंद के अनुसार स्वादिष्ट भोजन तैयार किया.
And he goeth, and taketh, and bringeth to his mother, and his mother maketh tasteful things, [such] as his father hath loved;
15 तब रेबेकाह ने अपने बड़े बेटे एसाव के सबसे अच्छे कपड़े घर से लाकर अपने छोटे बेटे याकोब को पहना दिए.
and Rebekah taketh the desirable garments of Esau her elder son, which [are] with her in the house, and doth put on Jacob her younger son;
16 उसने बकरी के खालों से उसके चिकने भाग और गले और गले के चिकने भाग को भी ढंक दिया.
and the skins of the kids of the goats she hath put on his hands, and on the smooth of his neck,
17 तब उसने अपनी पकाई स्वादिष्ट मांस को और रोटी लेकर याकोब को दी.
and she giveth the tasteful things, and the bread which she hath made, into the hand of Jacob her son.
18 अपने पिता के पास जाकर याकोब ने कहा, “पिताजी.” यित्सहाक ने उत्तर दिया, “हां बेटा, कौन हो तुम?”
And he cometh in unto his father, and saith, 'My father;' and he saith, 'Here [am] I; who [art] thou, my son?'
19 याकोब ने अपने पिता को उत्तर दिया, “मैं आपका बड़ा बेटा एसाव हूं. मैंने वह सब किया है, जैसा आपने कहा था. कृपया बैठिये और मेरे शिकार से पकाया भोजन कीजिये और मुझे अपनी आशीष दीजिये.”
And Jacob saith unto his father, 'I [am] Esau thy first-born; I have done as thou hast spoken unto me; rise, I pray thee, sit, and eat of my provision, so that thy soul doth bless me.'
20 यित्सहाक ने अपने पुत्र से पूछा, “मेरे पुत्र, यह तुम्हें इतनी जल्दी कैसे मिल गया?” याकोब ने कहा, “याहवेह आपके परमेश्वर ने मुझे सफलता दी.”
And Isaac saith unto his son, 'What [is] this thou hast hasted to find, my son?' and he saith, 'That which Jehovah thy God hath caused to come before me.'
21 तब यित्सहाक ने याकोब से कहा, “हे मेरे पुत्र, मेरे पास आ, ताकि मैं तुम्हें छूकर जान सकूं कि तू सही में मेरा पुत्र एसाव है या नहीं.”
And Isaac saith unto Jacob, 'Come nigh, I pray thee, and I feel thee, my son, whether thou [art] he, my son Esau, or not.'
22 तब याकोब अपने पिता यित्सहाक के पास गया, जिसने उसे छुआ और कहा, “आवाज तो याकोब की है किंतु हाथ एसाव के हाथ जैसे हैं.”
And Jacob cometh nigh unto Isaac his father, and he feeleth him, and saith, 'The voice [is] the voice of Jacob, and the hands hands of Esau.'
23 यित्सहाक ने उसे नहीं पहचाना, क्योंकि उसके हाथ में वैसे ही बाल थे जैसे एसाव के थे. इसलिए यित्सहाक उसे आशीष देने के लिए आगे बढ़ा.
And he hath not discerned him, for his hands have been hairy, as the hands of Esau his brother, and he blesseth him,
24 यित्सहाक ने पूछा, “क्या तू सही में मेरा पुत्र एसाव है?” याकोब ने उत्तर दिया, “मैं हूं.”
and saith, 'Thou art he — my son Esau?' and he saith, 'I [am].'
25 तब यित्सहाक ने कहा, “हे मेरे पुत्र, अपने शिकार से पकाये कुछ भोजन मेरे खाने के लिये ला, ताकि मैं तुम्हें अपनी आशीष दूं.” याकोब अपने पिता के पास खाना लाया और उसने खाया; और वह दाखरस भी लाया और उसने पिया.
And he saith, 'Bring nigh to me, and I do eat of my son's provision, so that my soul doth bless thee;' and he bringeth nigh to him, and he eateth; and he bringeth to him wine, and he drinketh.
26 तब उसके पिता यित्सहाक ने उससे कहा, “हे मेरे पुत्र, यहां आ और मुझे चूम.”
And Isaac his father saith to him, 'Come nigh, I pray thee, and kiss me, my son;'
27 इसलिये याकोब उसके पास गया और उसे चूमा. जब यित्सहाक को उसके कपड़ों से एसाव की गंध आई, इसलिये उसने उसे आशीष देते हुए कहा, “मेरे बेटे की खुशबू याहवेह की आशीष से मैदान में फैल गई है.
and he cometh nigh, and kisseth him, and he smelleth the fragrance of his garments, and blesseth him, and saith, 'See, the fragrance of my son [is] as the fragrance of a field which Jehovah hath blessed;
28 अब परमेश्वर तुम्हें आकाश की ओस, पृथ्वी की अच्छी उपज तथा अन्‍न और नये दाखरस से आशीषित करेंगे.
and God doth give to thee of the dew of heaven, and of the fatness of the earth, and abundance of corn and wine;
29 सभी राष्ट्र तुम्हारी सेवा करेंगे, जाति-जाति के लोग तुम्हारे सामने झुकेंगे, तुम अपने भाइयों के ऊपर शासक होंगे; तुम्हारी मां के पुत्र तुम्हारे सामने झुकेंगे. जो तुम्हें शाप देंगे वे स्वयं शापित होंगे और जो तुम्हें आशीष देंगे वे आशीष पायेंगे.”
peoples serve thee, and nations bow themselves to thee, be thou mighty over thy brethren, and the sons of thy mother bow themselves to thee; those who curse thee [are] cursed, and those who bless thee [are] blessed.'
30 जैसे ही यित्सहाक याकोब को आशीष दे चुके तब उनका भाई एसाव शिकार करके घर आया.
And it cometh to pass, as Isaac hath finished blessing Jacob, and Jacob is only just going out from the presence of Isaac his father, that Esau his brother hath come in from his hunting;
31 उन्होंने जल्दी स्वादिष्ट खाना तैयार किया और अपने पिता से कहा “पिताजी, उठिए और स्वादिष्ट खाना खाकर मुझे अपनी आशीष दीजिए.”
and he also maketh tasteful things, and bringeth to his father, and saith to his father, 'Let my father arise, and eat of his son's provision, so that thy soul doth bless me.'
32 उसके पिता यित्सहाक ने उनसे पूछा, “कौन हो तुम?” उसने कहा, “मैं आपका बेटा हूं, आपका बड़ा बेटा एसाव.”
And Isaac his father saith to him, 'Who [art] thou?' and he saith, 'I [am] thy son, thy first-born, Esau;'
33 यह सुन यित्सहाक कांपते हुए बोले, “तो वह कौन था, जो मेरे लिए भोजन लाया था? और मैंने उसे आशीषित भी किया, अब वह आशीषित ही रहेगा!”
and Isaac trembleth a very great trembling, and saith, 'Who, now, [is] he who hath provided provision, and bringeth in to me, and I eat of all before thou comest in, and I bless him? — yea, blessed is he.'
34 अपने पिता की ये बात सुनकर एसाव फूट-फूटकर रोने लगा और अपने पिता से कहा, “पिताजी, मुझे आशीष दीजिए, मुझे भी!”
When Esau heareth the words of his father, then he crieth a very great and bitter cry, and saith to his father, 'Bless me, me also, O my father;'
35 यित्सहाक ने कहा, “तुम्हारे भाई ने धोखा किया और आशीष ले ली.”
and he saith, 'Thy brother hath come with subtilty, and taketh thy blessing.'
36 एसाव ने कहा, “उसके लिए याकोब नाम सही नहीं है? दो बार उसने मेरे साथ बुरा किया: पहले उसने मेरे बड़े होने का अधिकार ले लिया और अब मेरी आशीष भी छीन ली!” तब एसाव ने अपने पिता से पूछा, “क्या आपने मेरे लिए एक भी आशीष नहीं बचाई?”
And he saith, 'Is it because [one] called his name Jacob that he doth take me by the heel these two times? my birthright he hath taken; and lo, now, he hath taken my blessing;' he saith also, 'Hast thou not kept back a blessing for me?'
37 यित्सहाक ने एसाव से कहा, “मैं तो उसे तुम्हारा स्वामी बना चुका हूं. और सभी संबंधियों को उसका सेवक बनाकर उसे सौंप दिया और उसे अन्‍न एवं नये दाखरस से भरे रहने की आशीष दी हैं. अब मेरे पुत्र, तुम्हारे लिए मैं क्या करूं?”
And Isaac answereth and saith to Esau, 'Lo, a mighty one have I set him over thee, and all his brethren have I given to him for servants, and [with] corn and wine have I sustained him; and for thee now, what shall I do, my son?'
38 एसाव ने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, क्या आपके पास मेरे लिए एक भी आशीष नहीं? और वह रोता हुआ कहने लगा कि पिताजी मुझे भी आशीष दीजिए!”
And Esau saith unto his father, 'One blessing hast thou my father? bless me, me also, O my father;' and Esau lifteth up his voice, and weepeth.
39 तब यित्सहाक ने कहा, “तुम्हारा घर अच्छी उपज वाली भूमि पर हो और उस पर आकाश से ओस गिरे.
And Isaac his father answereth and saith unto him, 'Lo, of the fatness of the earth is thy dwelling, and of the dew of the heavens from above;
40 तुम अपनी तलवार की ताकत से जीवित रहोगे. तुम अपने भाई की सेवा करोगे; किंतु हां, किंतु तुम आज़ादी के लिए लड़ोगे, और तुम अपने ऊपर पड़े उसके प्रतिबन्ध को तोड़ फेंकोगे.”
and by thy sword dost thou live, and thy brother dost thou serve; and it hath come to pass when thou rulest, that thou hast broken his yoke from off thy neck.'
41 एसाव अपने भाई याकोब से नफ़रत करने लगा और मन में ऐसा सोचने लगा, “पिता की मृत्यु शोक के दिन नज़दीक है, उनके बाद मैं याकोब की हत्या कर दूंगा.”
And Esau hateth Jacob, because of the blessing with which his father blessed him, and Esau saith in his heart, 'The days of mourning [for] my father draw near, and I slay Jacob my brother.'
42 जब रेबेकाह को अपने बड़े बेटे की ये बातें बताई गईं तब उसने सेवक भेजकर अपने छोटे पुत्र याकूब को बुलवाकर उससे कहा, “तुम्हारे भाई एसाव के मन में तुम्हारे लिए बहुत नफ़रत हैं. सुनो, तुम्हारा भाई एसाव तुम्हें मारने का षड़्‍यंत्र कर रहा है.
And the words of Esau her elder son are declared to Rebekah, and she sendeth and calleth for Jacob her younger son, and saith unto him, 'Lo, Esau thy brother is comforting himself in regard to thee — to slay thee;
43 इसलिये तुम यहां से भागकर मेरे भाई लाबान के यहां चले जाओ.
and now, my son, hearken to my voice, and rise, flee for thyself unto Laban my brother, to Haran,
44 वहां जाकर कुछ समय रहो, जब तक तुम्हारे भाई का गुस्सा खत्म न हो जाए.
and thou hast dwelt with him some days, till thy brother's fury turn back,
45 जब तुम्हारे भाई का गुस्सा खत्म होगा, और भूल जायेगा कि तुमने उसके साथ क्या किया, तब मैं तुम्हें वहां से बुला लूंगी. मैं एक ही दिन तुम दोनों को क्यों खो दूं?”
till thy brother's anger turn back from thee, and he hath forgotten that which thou hast done to him, and I have sent and taken thee from thence; why am I bereaved even of you both the same day?'
46 एक दिन रेबेकाह ने यित्सहाक से कहा, “हेथ की इन पुत्रियों ने मेरा जीवन दुःखी कर दिया है. यदि याकोब भी हेथ की पुत्रियों में से किसी को, अपनी पत्नी बना लेगा तो मेरे लिए जीना और मुश्किल हो जाएगा?” इसलिये याकोब को उसके मामा के घर भेज दो.
And Rebekah saith unto Isaac, 'I have been disgusted with my life because of the presence of the daughters of Heth; if Jacob take a wife of the daughters of Heth, like these — from the daughters of the land — why do I live?'

< उत्पत्ति 27 >