< उत्पत्ति 2 >
1 इस प्रकार परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी के लिए सब कुछ बनाकर अपना काम पूरा किया.
Thus the heavens and the earth were finished, and all the host of them.
2 सातवें दिन परमेश्वर ने अपना सब काम पूरा कर लिया था; जो उन्होंने शुरू किया था; अपने सभी कामों को पूरा करके सातवें दिन उन्होंने विश्राम किया.
And on the seventh day God ended his work which he had made; and he rested on the seventh day from all his work which he had made.
3 परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी तथा उसे पवित्र ठहराया, क्योंकि यह वह दिन था, जब उन्होंने अपनी रचना, जिसकी उन्होंने सृष्टि की थी, पूरी करके विश्राम किया.
And God blessed the seventh day, and sanctified it: because that in it he had rested from all his work which God created and made.
4 यही वर्णन है कि जिस प्रकार याहवेह परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को बनाया.
These are the generations of the heavens and of the earth when they were created, in the day that Yhwh God made the earth and the heavens,
5 उस समय तक पृथ्वी में कोई हरियाली और कोई पौधा नहीं उगा था, क्योंकि तब तक याहवेह परमेश्वर ने पृथ्वी पर बारिश नहीं भेजी थी. और न खेती करने के लिए कोई मनुष्य था.
And every plant of the field before it was in the earth, and every herb of the field before it grew: for Yhwh God had not caused it to rain upon the earth, and there was not a man to till the ground.
6 भूमि से कोहरा उठता था जिससे सारी भूमि सींच जाती थी.
But there went up a mist from the earth, and watered the whole face of the ground.
7 फिर याहवेह परमेश्वर ने मिट्टी से मनुष्य को बनाया तथा उसके नाक में जीवन की सांस फूंक दिया. इस प्रकार मनुष्य जीवित प्राणी हो गया.
And Yhwh God formed man of the dust of the ground, and breathed into his nostrils the breath of life; and man became a living soul.
8 याहवेह परमेश्वर ने पूर्व दिशा में एदेन नामक स्थान में एक बगीचा बनाया और उस बगीचे में मनुष्य को रखा.
And Yhwh God planted a garden eastward in Eden; and there he put the man whom he had formed.
9 याहवेह परमेश्वर ने सुंदर पेड़ और जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए और बगीचे के बीच में जीवन का पेड़ और भले या बुरे के ज्ञान के पेड़ भी लगाया.
And out of the ground made Yhwh God to grow every tree that is pleasant to the sight, and good for food; the tree of life also in the midst of the garden, and the tree of knowledge of good and evil.
10 एदेन से एक नदी बहती थी जो बगीचे को सींचा करती थी और वहां से नदी चार भागों में बंट गई.
And a river went out of Eden to water the garden; and from thence it was parted, and became into four heads.
11 पहली नदी का नाम पीशोन; जो बहती हुई हाविलाह देश में मिल गई, जहां सोना मिलता है.
The name of the first is Pison: that is it which compasseth the whole land of Havilah, where there is gold;
12 (उस देश में अच्छा सोना है. मोती एवं सुलेमानी पत्थर भी वहां पाए जाते हैं.)
And the gold of that land is good: there is bdellium and the onyx stone.
13 दूसरी नदी का नाम गीहोन है. यह नदी कूश देश में जाकर मिलती है.
And the name of the second river is Gihon: the same is it that compasseth the whole land of Cush.
14 तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है; यह अश्शूर के पूर्व में बहती है. चौथी नदी का नाम फरात है.
And the name of the third river is Hiddekel: that is it which goeth toward the east of Assyria. And the fourth river is Euphrates.
15 याहवेह परमेश्वर ने आदम को एदेन बगीचे में इस उद्देश्य से रखा कि वह उसमें खेती करे और उसकी रक्षा करे.
And Yhwh God took the man, and put him into the garden of Eden to dress it and to keep it.
16 याहवेह परमेश्वर ने मनुष्य से यह कहा, “तुम बगीचे के किसी भी पेड़ के फल खा सकते हो;
And Yhwh God commanded the man, saying, Of every tree of the garden thou mayest freely eat:
17 लेकिन भले या बुरे के ज्ञान का जो पेड़ है उसका फल तुम कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तुम इसमें से खाओगे, निश्चय तुम मर जाओगे.”
But of the tree of the knowledge of good and evil, thou shalt not eat of it: for in the day that thou eatest thereof thou shalt surely die.
18 इसके बाद याहवेह परमेश्वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं है. मैं उसके लिए एक सुयोग्य साथी बनाऊंगा.”
And Yhwh God said, It is not good that the man should be alone; I will make him an help meet for him.
19 याहवेह परमेश्वर ने पृथ्वी में पशुओं तथा पक्षियों को बनाया और उन सभी को मनुष्य के पास ले आए, ताकि वह उनका नाम रखे; आदम ने जो भी नाम रखा, वही उस प्राणी का नाम हो गया.
And out of the ground Yhwh God formed every beast of the field, and every fowl of the air; and brought them unto Adam to see what he would call them: and whatsoever Adam called every living creature, that was the name thereof.
20 आदम ने सब जंतुओं का नाम रख दिया. किंतु आदम के लिए कोई साथी नहीं था, जो उसके साथ रह सके.
And Adam gave names to all cattle, and to the fowl of the air, and to every beast of the field; but for Adam there was not found an help meet for him.
21 इसलिये याहवेह परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाला; जब वह सो गया, याहवेह परमेश्वर ने उसकी एक पसली निकाली और उस जगह को मांस से भर दिया.
And Yhwh God caused a deep sleep to fall upon Adam, and he slept: and he took one of his ribs, and closed up the flesh instead thereof;
22 फिर याहवेह परमेश्वर ने उस पसली से एक स्त्री बना दी और उसे आदम के पास ले गए.
And the rib, which Yhwh God had taken from man, made he a woman, and brought her unto the man.
23 आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है; उसे ‘नारी’ नाम दिया जायेगा, क्योंकि यह ‘नर’ से निकाली गई थी.”
And Adam said, This is now bone of my bones, and flesh of my flesh: she shall be called Woman, because she was taken out of Man.
24 इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा तथा वे दोनों एक देह होंगे.
Therefore shall a man leave his father and his mother, and shall cleave unto his wife: and they shall be one flesh.
25 आदम एवं उसकी पत्नी नग्न तो थे पर लजाते न थे.
And they were both naked, the man and his wife, and were not ashamed.