< उत्पत्ति 18 >
1 याहवेह ने ममरे के बांज वृक्षों के पास अब्राहाम को दर्शन दिया, तब अब्राहाम दिन की कड़ी धूप में अपने तंबू के द्वार पर बैठे हुए थे.
Éternel se révéla à lui dans les plaines de Mamré, tandis qu’il était assis à l’entrée de sa tente, pendant la chaleur du jour.
2 अब्राहाम ने आंखें ऊपर उठाकर देखा कि उनके सामने तीन व्यक्ति खड़े हैं. जब उन्होंने इन व्यक्तियों को देखा, तब वे उनसे मिलने के लिये तंबू के द्वार से दौड़कर उनके पास गए, और झुककर उनको प्रणाम किया.
Comme il levait les yeux et regardait, il vit trois personnages debout prés de lui. En les voyant, il courut à eux du seuil de la tente et se prosterna contre terre.
3 अब्राहाम ने उनसे कहा, “मेरे स्वामी, यदि मुझ पर आपकी कृपादृष्टि हो, तो अपने सेवक के यहां रुके बिना न जाएं.
Et il dit: "Seigneur, si j’ai trouvé grâce à tes yeux, ne passe pas ainsi devant ton serviteur!
4 आप इस पेड़ के नीचे बैठिये, मैं पानी लेकर आता हूं, ताकि आप अपने पांव धो सकें.”
Qu’on aille quérir un peu d’eau; lavez vos pieds et reposez-vous sous cet arbre.
5 मैं आपके लिए भोजन तैयार करता हूं, ताकि आप खाकर तरो ताजा हो सकें और फिर अपनी आगे की यात्रा में जाएं—क्योंकि आप अपने सेवक के यहां आए हैं. उन्होंने अब्राहाम से कहा, “वैसा ही करो, जैसा कि तुमने कहा है.”
Je vais apporter une tranche de pain, vous réparerez vos forces, puis vous poursuivrez votre chemin, puisque aussi bien vous avez passé près de votre serviteur." Ils répondirent: "Fais ainsi que tu as dit".
6 अब्राहाम जल्दी तंबू में साराह के पास गए और कहा, “तुरंत, तीन माप मैदा गूंधकर कुछ रोटियां बनाओ.”
Abraham rentra en hâte dans sa tente, vers Sara et dit: "Vite, prends trois mesures de farine de pur froment, pétris-la et fais-en des gâteaux."
7 अब्राहाम दौड़कर अपने गाय-बैल के झुंड के पास गए और एक कोमल अच्छा बछड़ा छांट कर अपने सेवक को दिया और उससे कहा, जल्दी से खाना तैयार करो.
Puis, Abraham courut au troupeau, choisit un veau tendre et gras et le donna au serviteur, qui se hâta de l’accommoder.
8 फिर अब्राहाम ने दही, दूध तथा बछड़ा जो तैयार करवाया था, उनको खिलाया. जब वे तीनों भोजन कर रहे थे, अब्राहाम पेड़ की छाया में उनके पास खड़े रहे.
Il prit de la crème et du lait, puis le veau qu’on avait préparé et le leur servit: il se tenait devant eux, sous l’arbre, tandis qu’ils mangeaient.
9 उन्होंने अब्राहाम से पूछा, “तुम्हारी पत्नी साराह कहां है?” अब्राहाम ने कहा, “वह तंबू में है.”
Ils lui dirent: "Où est Sara, ta femme?" Il répondit: "Elle est dans la tente."
10 इस पर उनमें से एक ने कहा, “अगले वर्ष, इसी वसन्त ऋतु समय में, मैं निश्चय वापस आऊंगा, तब तुम्हारी पत्नी साराह पुत्रवती होगी.” अब्राहाम की पीठ तंबू की ओर थी, और तंबू के द्वार पर साराह यह बात सुन रही थी.
L’Un d’eux reprit: "Certes, je reviendrai à toi à pareille époque et voici, un fils sera né à Sara, ton épouse." Or, Sara l’entendait à l’entrée de la tente qui se trouvait derrière lui.
11 अब्राहाम तथा साराह बहुत बूढ़े थे, और साराह बच्चा पैदा करने की उम्र को पार कर चुकी थी.
Abraham et Sara étaient vieux, avancés dans la vie; le tribut périodique des femmes avait cessé pour Sara.
12 इसलिये साराह मन ही मन हंसते हुए सोचने लगी, “मैं कमजोर हो चुकी और मेरे स्वामी बहुत बूढ़े है, अब क्या यह खुशी हमारे जीवन में आयेगी?”
Sara rit en elle-même disant: "Flétrie par l’âge, ce bonheur me serait réservé! Et mon époux est un vieillard!"
13 तब याहवेह ने अब्राहाम से प्रश्न किया, “साराह यह कहकर क्यों हंस रही है कि क्या मैं वास्तव में एक बच्चे को जन्म दूंगी, जबकि मैं तो एक बूढ़ी हूं?
Le Seigneur dit à Abraham: "Pourquoi Sara a-t-elle ri, disant: ‘Eh quoi! en vérité, j’enfanterais, âgée que je suis!’
14 क्या याहवेह के लिए कोई काम कठिन है? मैं अगले साल इसी निर्धारित समय तुमसे मिलने आऊंगा, तब साराह पुत्रवती होगी.”
Est-il rien d’impossible au Seigneur? Au temps fixé, à pareille époque, je te visiterai et Sara sera mère".
15 तब साराह डर गयी, और यह कहकर झूठ बोलने लगी, “मैं नहीं हंसी थी.” तब परमेश्वर के दूत ने कहा, “तुम ज़रूर हंसी थी.”
Sara protesta, en disant: "Je n’ai point ri"; car elle avait peur. II répondit "Non pas, tu as ri."
16 इसके बाद वे व्यक्ति जाने के लिए उठे और सोदोम की ओर देखने लगे, अब्राहाम उनको विदा करने के लिए उनके साथ साथ चल रहे थे.
Les hommes se levèrent et fixèrent leurs regards dans la direction de Sodome; Abraham les accompagna pour les reconduire.
17 तब याहवेह ने सोचा, “जो काम मैं करनेवाला हूं, क्या मैं अब्राहाम से छिपा रखूं?
Or, l’Éternel avait dit: "Tairai-je à Abraham ce que je veux faire?"
18 अब्राहाम से तो निश्चय एक बड़ी और सामर्थी जाति होगी तथा उससे ही पृथ्वी की सारी जातियां आशीष पाएंगी
Abraham ne doit-il pas devenir une nation grande et puissante et une cause de bonheur pour toutes les nations de la terre?
19 क्योंकि मैंने उन्हें इसलिये चुना कि वे अपने बच्चों एवं घर के लोगों को सही और न्याय की बात सिखायें और वे याहवेह के मार्ग में स्थिर रहें, ताकि याहवेह अब्राहाम से किए गए वायदे को पूरा करें.”
Si je l’ai distingué, c’est pour qu’il prescrive à ses fils et à sa maison après lui d’observer la voie de l’Éternel, en pratiquant la vertu et la justice; afin que l’Éternel accomplisse sur Abraham ce qu’il a déclaré à son égard."
20 तब याहवेह ने बताया, “सोदोम तथा अमोराह की चिल्लाहट बढ़ गई है, उनका पाप बहुत बढ़ गया है
L’Éternel dit: "Comme le décri de Sodome et de Gommorrhe est grand; comme leur perversité est excessive,
21 इसलिये मैं वहां जाकर देखूंगा कि उनके काम उस चिल्लाहट के मुताबिक बुरे हैं या नहीं. यदि नहीं, तो मैं समझ लूंगा.”
je veux y descendre; je veux voir si, comme la plainte en est venue jusqu’à moi, ils se sont livrés aux derniers excès; si cela n’est pas, j’aviserai."
22 फिर उनमें से दो व्यक्ति वहां से मुड़कर सोदोम की ओर चले गए, जबकि अब्राहाम याहवेह के सामने रुके रहे.
Les hommes quittèrent ce lieu et s’acheminèrent vers Sodome; Abraham était encore en présence du Seigneur.
23 अब्राहाम ने याहवेह से कहा: “क्या आप सचमुच बुरे लोगों के साथ धर्मियों को भी नाश करेंगे?
Abraham s’avança et dit: "Anéantirais-tu, d’un même coup, l’innocent avec le coupable?
24 यदि उस नगर में पचास धर्मी हों, तो क्या आप उस नगर को नाश करेंगे? क्या उन पचास धर्मियों के कारण बाकी सब लोग बच नहीं सकते?
Peut-être y a-t-il cinquante justes dans cette ville: les feras-tu périr aussi et ne pardonneras-tu pas à la contrée en faveur des cinquante justes qui s’y trouvent?
25 इस प्रकार का काम करना आपसे दूर रहे—दुष्ट के साथ धर्मी को मार डालना, दुष्ट और धर्मी के साथ एक जैसा व्यवहार करना. ऐसा करना आपसे दूर रहे! क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?”
Loin de toi d’agir ainsi, de frapper l’innocent avec le coupable, les traitant tous deux de même façon! Loin de toi! Celui qui juge toute la terre serait-il un juge inique?"
26 याहवेह ने कहा, “यदि मुझे सोदोम शहर में पचास धर्मी व्यक्ति मिल जाएं, तो मैं उनके कारण पूरे शहर को छोड़ दूंगा.”
Le Seigneur répondit: "Si je trouve à Sodome au sein de la ville, cinquante justes, je pardonnerai à toute la contrée à cause d’eux"
27 अब्राहाम ने फिर कहा: “हालाकि मैं केवल मिट्टी और राख हूं, फिर भी मैंने प्रभु से बात करने की हिम्मत की है,
Abraham reprit en disant: "De grâce! j’ai entrepris de parler à mon souverain, moi poussière et cendre!
28 यदि वहां पचास में से पांच धर्मी कम हो जायें, तो क्या आप पांच धर्मी कम होने के कारण पूरे नगर का नाश करेंगे?” याहवेह ने उत्तर दिया, “यदि मुझे वहां पैंतालीस भी मिल जाएं, तो मैं उस नगर को नाश नहीं करूंगा.”
Peut-être à ces cinquante justes, en manquera-t-il cinq: détruirais-tu, pour cinq, une ville entière?" Il répondit: "Je ne sévirai point, si j’en trouve quarante-cinq"
29 एक बार फिर अब्राहाम ने याहवेह से कहा, “यदि वहां चालीस ही धर्मी पाए जाएं तो?” याहवेह ने उत्तर दिया, “उन चालीस के कारण भी मैं नाश न करूंगा.”
Il insista encore, en lui disant: "Peut-être s’y en trouvera-t-il quarante?" II répondit: "Je m’abstiendrai à cause de ces quarante."
30 तब अब्राहाम ने कहा, “प्रभु, आप मुझ पर नाराज न होएं, पर मुझे बोलने दें. यदि वहां तीस ही धर्मी पाए जाएं तो?” याहवेह ने उत्तर दिया, “यदि मुझे वहां तीस भी मिल जाएं, तो मैं नाश न करूंगा.”
Il dit: "De grâce, que mon Souverain ne s’irrite point de mes paroles! Peut-être s’en trouvera-t-il trente?" II répondit: "Je m’abstiendrai, si j’en trouve trente"
31 अब्राहाम ने कहा, “प्रभु, मैंने आपसे बात करने की हिम्मत तो कर ही ली है; यह भी हो सकता है कि वहां बीस ही पाए जाएं तो?” याहवेह ने उत्तर दिया, “मैं उन बीस के कारण उस नगर को नाश न करूंगा.”
II reprit: "De grâce, puisque j’ai osé parler à mon Souverain, peut-être s’en trouvera-t-il vingt?" II répondit: "Je renoncerai à détruire, en faveur de ces vingt." II dit:
32 फिर अब्राहाम ने कहा, “हे प्रभु, आप क्रोधित न हों, आखिरी बार आपसे विनती करता हूं. यदि वहां दस ही पाए जाएं तो?” याहवेह ने उत्तर दिया, “मैं उन दस के कारण उस नगर को नाश न करूंगा.”
"De grâce, que mon Souverain ne s’irrite pas, je ne parlerai plus que cette fois. Peut-être s’en trouvera-t-il dix?" II répondit: "Je renoncerai à détruire, en faveur de ces dix."
33 जब याहवेह अब्राहाम से बात कर चुके, तो वे वहां से चले गये, और अब्राहाम अपने घर वापस चला गया.
Le Seigneur disparut, lorsqu’il eut achevé de parler à Abraham; et Abraham retourna à sa demeure.