< यहेजकेल 44 >
1 तब वह व्यक्ति मुझे पवित्र स्थान के बाहरी द्वार पर वापस ले आया, जिसका मुंह पूर्व की ओर था, और वह बंद था.
Then [in the vision] the man brought me back to the outer entryway to the temple [area], the one on the east side, but the outer entrance was shut.
2 याहवेह ने मुझसे कहा, “यह द्वार बंद रहे. यह खोला न जाय; कोई भी इसमें से प्रवेश न करे. यह बंद रहे क्योंकि याहवेह इस्राएल के परमेश्वर इस द्वार से प्रवेश किए हैं.
Yahweh said to me, “This entrance must remain shut. It must not be opened [by anyone]; no one will be permitted to enter it. It must remain shut because [I], Yahweh, the God of Israel, have [caused it to be sacred by] entering through it.
3 स्वयं राजकुमार ही द्वार के भीतर याहवेह के सामने भोजन करने के लिए बैठे. वह द्वार के मंडप के रास्ते भीतर आये और उसी रास्ते से बाहर जाये.”
Only the king [of Israel] will be permitted to sit inside this entryway to eat food in the presence of Yahweh. But he will must enter and leave [the temple area] through the entry room of this entryway.”
4 तब वह व्यक्ति मुझे मंदिर के सामने उत्तरी द्वार के रास्ते पर ले आया. तब मैंने याहवेह के मंदिर को याहवेह के महिमा से भरते देखा, और मैं मुंह के बल गिरा.
Then the man brought me through the north entryway to the front of the temple. I looked and saw that the glory of Yahweh filled his temple, and I prostrated myself on the ground.
5 याहवेह ने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, ध्यान से देखो, पास जाकर सुनो और याहवेह के मंदिर के बारे में, जो विधि और नियम मैं तुम्हें बताता हूं, उन सब बातों पर ध्यान दो. मंदिर के प्रवेश और पवित्र स्थान के सब निकास द्वारों पर ध्यान दो.
Yahweh said to me, “You human, look carefully, and listen carefully to everything that I tell you about all the regulations concerning the temple. Note carefully the temple entrance and all the exits.
6 इस्राएल के विद्रोही लोगों से कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: हे इस्राएल के लोगों! बहुत हो गये तुम्हारे घृणित काम.
Say this to the rebellious Israeli people: ‘This is what [I], Yahweh the Lord, say: You Israeli people, I will no longer endure the detestable things that you do!
7 दूसरे सब घृणित कार्यों के अलावा, जब तुम भोजन, चर्बी और खून चढ़ाये, तब तुम मेरे पवित्र स्थान में मन और शरीर से खतना-रहित विदेशियों को ले आये और इस प्रकार तुमने मेरे मंदिर को अपवित्र किया और मेरी वाचा को तोड़ा.
In addition to all the other detestable things that you do, you brought into my temple foreign men who had not been circumcised and who were godless [IDM]. By doing that, you caused my temple to be an unacceptable place to worship me, while you offered food and fat and blood, and you disobeyed my agreement with you.
8 मेरे पवित्र चीज़ों के बारे में स्वयं अपना काम करने के बदले, तुमने दूसरों को मेरे पवित्र स्थान की ज़िम्मेदारी दे दी.
Instead of doing what I commanded you to do in regard to my holy things, you appointed foreigners to be in charge of my temple.
9 परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मन और शरीर से खतना-रहित कोई भी विदेशी मेरे पवित्र स्थान पर प्रवेश करने न पाए, इस्राएलियों के बीच रहनेवाले विदेशी भी नहीं.
But this is what [I], Yahweh, have said: No foreigners, no men who are not circumcised, no godless people are permitted to enter my temple, not even foreigners who live among you [Israelis permanently].
10 “‘वे लेवी, जो मुझसे उस समय दूर हो गए, जब इस्राएल के लोग पथभ्रष्ट हो गये थे और जो मुझसे भटक कर अपने मूर्तियों के पीछे चल रहे थे, अवश्य है कि वे अपने पापों का फल भोगें.
[Most of] the descendants of Levi abandoned me along with [most of] the Israeli people, and started to worship idols. They must be punished for their sin.
11 वे मेरे पवित्र स्थान में सेवा कर सकते हैं; वे मंदिर के द्वारों की ज़िम्मेदारी लें और इसमें सेवा करें; वे लोगों के लिए होमबलिदान और चढ़ावा के पशुओं का वध करें, और लोगों के सामने खड़े होकर उनकी सेवा करें.
They are [still] permitted to work in my temple and to be in charge of the entrances of the temple, and they are permitted to slaughter the animals that will be completely burned on the altar, and [to burn other] sacrifices for the people, and they will [be able to] help the people.
12 पर क्योंकि उन्होंने अपने मूर्तियों के सामने उनकी सेवा की और इस्राएल के लोगों को पाप में गिराया, इसलिये मैंने हाथ उठाकर शपथ खाई है कि वे अपने पापों का फल अवश्य भोगें, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.
But because they helped the people to worship idols and caused [many of] the Israeli people [MTY] to sin [by worshiping idols], I have lifted up my arm and solemnly declared that they must be punished for their sin.
13 वे पुरोहित के रूप में मेरी सेवा करने मेरे पास न आएं या मेरे किसी पवित्र चीज़ के पास न आएं या परम पवित्र बलिदानों के पास न आएं; वे अवश्य ही अपने घृणित कामों के लिये लज्जित हों.
They must not come near me to serve as priests. They must not come near any sacred things or the holy offerings. They must be ashamed of the shameful things that they did.
14 और मैं उन्हें मंदिर के सुरक्षा के लिये ठहराऊंगा, ताकि मंदिर का सब काम किया जा सके.
But I will still put them in charge of the work in the temple and allow them to do all the work that needs to be done there.
15 “‘परंतु लेवीय पुरोहित, जो सादोक के वंशज हैं और जो इस्राएलियों के मुझसे दूर हो जाने के समय मेरे पवित्र स्थान की सुरक्षा किए थे, वे मेरी सेवा करने के लिये मेरे पास आएं; वे चर्बी और खून का बलिदान चढ़ाने के लिये मेरे सामने आएं, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.
But [most of] the priests who are descendants of Levi and from the clan of Zadok worked in my temple when the [other] Israelis abandoned me. [So they] are permitted to come near to me to work for me. They will stand in my presence to offer [sacrifices of animals’] fat and blood.
16 सिर्फ वे ही मेरे पवित्र स्थान में प्रवेश करें; सिर्फ वे ही मेरे सामने सेवा करने के लिये मेरी मेज़ के पास आएं और पहरेदार के रूप में मेरी सेवा करें.
They [are the only ones who] are permitted to enter my temple. They are [the only ones who are] permitted to come near my altar to serve me and do what I tell them to do.
17 “‘जब वे भीतरी आंगन के द्वार से प्रवेश करें, तब वे सन के कपड़े पहने; यह ज़रूरी है कि वे किसी भी प्रकार का ऊनी कपड़ा न पहने, जब वे भीतरी आंगन के द्वार पर सेवा कर रहे हों या मंदिर के भीतर सेवा कर रहे हों.
When they enter [one of] the entrances into the inner courtyard, they must wear linen clothes. They must not wear any clothes [made] of wool while they do their work at the entrances of the inner courtyard or inside [the temple].
18 वे अपने सिर पर सन के कपड़े की पगड़ी पहने और उनके कमर पर सन के कपड़े की चड्डी हों. वे ऐसी कोई भी चीज़ न पहने, जिससे उन्हें पसीना आए.
They must have linen turbans [wrapped] around their heads and wrap linen undergarments around their waists. They must not wear anything that would cause them to perspire.
19 जब वे बाहरी आंगन में जाएं, जहां लोग हैं, तब वे उन कपड़ों को उतार दें, जिन्हें पहनकर वे सेवा कर रहे थे और वे उन कपड़ों को पवित्र कमरों में छोड़ दें, और दूसरा कपड़ा पहन लें, ताकि उनके कपड़ों के छूने के द्वारा लोग पवित्र न ठहरें.
Before they go out into the outer courtyard where [other] people are, they must take off the clothes that they have been wearing and leave them in the sacred rooms, and they must put on other clothes, in order that the other people are not punished because of [their touching] the sacred clothes.
20 “‘वे अपने सिर के बालों का मुंडन न करें और न ही उनके बाल लंबे हों, परंतु वे अपने सिर के बाल कटवाए.
The priests must not shave their heads or allow their hair to become long; but they must regularly trim [the edges of] their hair.
21 कोई भी पुरोहित दाखमधु न पिए, जब वह भीतरी आंगन में जाए.
Priests must not drink wine before they enter the inner courtyard.
22 वे किसी विधवा या तलाकशुदा स्त्री से विवाह न करें; वे सिर्फ इस्राएल वंश की कुंवारी कन्या या पुरोहित की विधवा से विवाह करें.
[Also], priests must not marry widows [of men who were not priests] or women who have been divorced. [Priests are permitted to marry only] Israeli [MTY] virgins or widows of [other] priests.
23 वे मेरे लोगों को सिखाएं कि पवित्र और सामान्य में क्या भिन्नता है और उन्हें दिखाएं कि अशुद्ध और शुद्ध के बीच कैसे भेद किया जाए.
Priests must teach the people the difference between things that are holy/sacred and things that are not, and they must teach them the difference between things that are acceptable to me and things that are not.
24 “‘किसी झगड़े में, पुरोहित न्यायाधीश का काम करें और झगड़े का निर्णय मेरे अध्यादेशों के अनुसार करें. मेरे ठहराये गए सब त्योहारों पर, वे मेरे कानून और नियमों का पालन करें, और वे मेरे विश्राम दिनों को पवित्र माने.
When there are disputes [between people], the priests are the ones who must be the judges and decide according to my laws what must be done. They must obey all my laws and decrees concerning the sacred festivals, and they must keep my Sabbath days (holy/set apart).
25 “‘कोई पुरोहित किसी व्यक्ति की लाश के पास जाकर अपने आपको अशुद्ध न करे; फिर भी, यदि मृत व्यक्ति उसकी माता या पिता, बेटा या बेटी, भाई या अविवाहित बहन हो, तब वह अपने आपको अशुद्ध कर सकता है.
A priest is permitted to go near the corpse of his father or his mother or his son or his daughter or his brother or his unmarried sister; but he is still defiled by doing that. But a priest must not defile himself by going near a corpse of anyone else.
26 जब वह शुद्ध हो जाए, तब वह सात दिन तक इंतजार करे.
But [even] if a priest touches the corpse [of a close relative, he must perform the rituals to become acceptable to serve me again]. After he performs those rituals, he must wait seven days.
27 जिस दिन वह पवित्र स्थान के भीतरी आंगन में पवित्र स्थान में सेवा के लिये जाए, तब वह अपने लिये एक पाप बलिदान चढ़ाए, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.
Then, on the day that he enters the inner courtyard [again] to serve me in the temple, he must give an offering to remove his guilt for his sin. [That is what I], Yahweh the Lord, declare.
28 “‘पुरोहितों का सिर्फ एक उत्तराधिकार है, और वह मैं हूं. तुम उन्हें इस्राएल में कोई भी चीज़ उनके अधिकार में नहीं दोगे, उनकी संपत्ति मैं हूं.
The priests are not permitted to own any property. They will have only what I [provide for them].
29 वे अन्नबलि, पाप बलिदान और दोष बलिदान को खाएंगे, और इस्राएल में हर वह चीज़, जो याहवेह को चढ़ाई जाती है, उनके लिये होगी.
They will eat the offerings [other people make] from grain, offerings to remove people’s guilt for having sinned, and offerings made when people fail to give to Yahweh the things that they are required to give. Everything [else] in Israel that is completely dedicated to [me], Yahweh, will belong to the priests.
30 पहली उपज की सबसे अच्छी चीज़ें और तुम्हारी सब विशेष भेटें पुरोहितों की होंगी. अपने गूंधे आटे से बना भोजन का पहला भाग उन्हें देना, ताकि तुम्हारे घर-परिवार पर आशीष हो.
The best fruits of the first part of each harvest and all the [other] special gifts that are given to me will belong to the priests. You must give them the first part of your finely-ground flour, in order that I will bless [the people who live in] [MTY] your houses.
31 पुरोहित ऐसे किसी पक्षी या पशु का मांस न खाएं, जो मरा पाया गया हो और न ही वे किसी ऐसे पशु या पक्षी का मांस खाएं, जो किसी जंगली जानवर के द्वारा फाड़ डाला गया हो.
Priests must not eat the flesh of any bird or animal that was found dead or that has been killed by wild animals.’”