< यहेजकेल 20 >

1 सातवें वर्ष के पांचवें महीने के दसवें दिन, इस्राएल के कुछ अगुए याहवेह की इच्छा जानने के लिये आये और वे मेरे सामने बैठ गये.
Im siebten Jahre, am zehnten Tage des fünften Monats, kamen einige von den Ältesten Israels, um den HERRN zu befragen, und sie ließen sich vor mir nieder.
2 तब याहवेह का वचन मेरे पास आया:
Da erging das Wort des HERRN an mich folgendermaßen:
3 “हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के अगुओं से बात करो और उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: क्या तुम मेरी इच्छा जानने आए हो? मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, मैं तुम्हें अपनी इच्छा नहीं बताऊंगा, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.’
»Menschensohn, sprich zu den Ältesten Israels und sage zu ihnen: ›So hat Gott der HERR gesprochen: Mich zu befragen seid ihr gekommen? So wahr ich lebe: ich lasse mich von euch nicht befragen!‹ – so lautet der Ausspruch Gottes des HERRN.
4 “क्या तुम उनका न्याय करोगे? हे मनुष्य के पुत्र, क्या तुम उनका न्याय करोगे? तब उनके पूर्वजों के द्वारा किए घृणित कार्य उन्हें बताओ
Willst du ihnen nicht vielmehr das Urteil sprechen? Willst du mit ihnen nicht ins Gericht gehen, Menschensohn? Halte ihnen die Greueltaten ihrer Väter vor!«
5 और उनसे कहो: ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: जिस दिन मैंने इस्राएल को चुन लिया, मैंने अपना हाथ उठाकर याकोब के वंशजों से शपथ खाई और अपने आपको मिस्र देश में उन पर प्रकट किया. हाथ उठाकर मैंने उनसे कहा, “मैं याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.”
»Sage zu ihnen: ›So hat Gott der HERR gesprochen: An dem Tage, als ich Israel erwählte, erhob ich meine Hand für die Angehörigen des Hauses Jakob zum Schwur und gab mich ihnen im Lande Ägypten zu erkennen; ich erhob meine Hand für sie zum Schwur und sprach: Ich bin der HERR, euer Gott!
6 उस दिन मैंने उनसे शपथ खाई कि मैं उन्हें मिस्र देश से निकालकर एक ऐसे देश में ले आऊंगा, जिसे मैंने उनके लिये खोजा था, एक ऐसा देश जिसमें दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और जो सब देशों से सुंदर है.
An demselben Tage erhob ich meine Hand und schwur ihnen, daß ich sie aus dem Lande Ägypten in ein Land führen würde, das ich für sie ausersehen hätte, das von Milch und Honig überfließe und die Krone unter allen Ländern sei.
7 और मैंने उनसे कहा, “तुममें से हर एक उन निकम्मे मूर्तियों को निकाल फेंको, जिन पर तुम्हारी दृष्टि लगी रहती है, और मिस्र की मूर्तियों से अपने आपको अशुद्ध मत करो. मैं याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.”
Dabei gebot ich ihnen: Ein jeder von euch werfe die Scheusale weg, auf die er bisher seine Augen gerichtet hat, und verunreinigt euch nicht an den ägyptischen Götzen! Ich, der HERR, bin euer Gott!
8 “‘परंतु उन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया और मेरी बातें नहीं सुनी; उन्होंने उन निकम्मी मूर्तियों को नहीं फेंका, जिन पर उनकी दृष्टि लगी हुई थी, और न ही उन्होंने मिस्र की मूर्तियों का परित्याग किया. इसलिये मैंने कहा कि मैं उन पर अपना कोप उंडेलूंगा और मिस्र देश में उनके विरुद्ध अपना क्रोध दिखाऊंगा.
Aber sie waren widerspenstig gegen mich und wollten nicht auf mich hören; keiner von ihnen warf die Scheusale weg, auf die er bisher seine Augen gerichtet hatte, und die ägyptischen Götzen ließen sie nicht fahren. Da gedachte ich meinen Grimm über sie auszugießen, meinen ganzen Zorn mitten im Lande Ägypten an ihnen auszulassen;
9 पर अपने नाम के निमित्त मैं उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया. मैंने ऐसा इसलिये किया ताकि मेरा नाम उन जातियों के दृष्टि में अपवित्र न ठहरे, जिनके बीच वे रहते थे और जिनके देखते में मैंने अपने आपको इस्राएलियों पर प्रकट किया था.
aber ich nahm Rücksicht auf meinen Namen, damit dieser nicht entehrt würde vor den Augen der Heidenvölker, unter denen sie wohnten und vor deren Augen ich mich ihnen geoffenbart hatte, um sie aus dem Lande Ägypten wegzuführen.‹«
10 इसलिये मैं उन्हें मिस्र देश से निकालकर निर्जन प्रदेश में ले आया.
»›So führte ich sie denn aus dem Lande Ägypten weg und brachte sie in die Wüste.
11 मैंने उन्हें अपने नियम दिये और उन्हें अपना कानून बताया, जिनका यदि कोई व्यक्ति पालन करता है, तो वह जीवित रहेगा.
Da gab ich ihnen meine Satzungen und lehrte sie meine Gebote kennen, durch deren Beobachtung der Mensch das Leben hat.
12 मैंने उनके लिये अपने शब्बाथ भी ठहराए, जो मेरे और उनके बीच एक चिन्ह हो, ताकि वे जानें कि मैं याहवेह ने उन्हें पवित्र बनाया है.
Auch meine Sabbate gab ich ihnen, die ein Zeichen (des Bundes) zwischen mir und ihnen sein sollten, damit sie zur Erkenntnis kämen, daß ich, der HERR, es bin, der sie heiligt.
13 “‘तो भी इस्राएल के लोगों ने निर्जन प्रदेश में मेरे विरुद्ध विद्रोह किया. वे मेरे नियमों पर नहीं चले और मेरे कानूनों को अस्वीकार किया—जिनका यदि कोई व्यक्ति पालन करता है, तो वह जीवित रहेगा—और उन्होंने पूरी तरह से मेरे विश्राम दिन को अपवित्र किया. इसलिये मैंने कहा कि मैं उन पर अपना कोप उंडेलूंगा और निर्जन प्रदेश में उन्हें नाश कर दूंगा.
Aber das Haus Israel war auch in der Wüste widerspenstig gegen mich: sie wandelten nicht nach meinen Satzungen und mißachteten meine Gebote, durch deren Beobachtung doch der Mensch das Leben hat; auch meine Sabbate hielten sie durchaus nicht heilig. Da gedachte ich meinen Grimm in der Wüste über sie auszugießen, um sie ganz auszurotten;
14 पर अपने नाम के निमित्त मैंने वह किया जिससे मेरा नाम उन जनताओं की दृष्टि में अपवित्र न ठहरे, जिनके देखते मैं उन्हें निकाल लाया था.
aber ich nahm Rücksicht auf meinen Namen, damit er nicht entehrt würde vor den Augen der Heidenvölker, vor deren Augen ich sie weggeführt hatte.
15 अपना हाथ उठाकर निर्जन प्रदेश में, मैंने शपथ भी खाई कि मैं उन्हें उस देश में नहीं लाऊंगा, जिसे मैंने उन्हें दिया था—एक ऐसा देश जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, जो सब देशों से सुंदर है—
Doch erhob ich meine Hand in der Wüste und schwur ihnen, daß ich sie nicht in das verheißene Land bringen würde, ein Land, das von Milch und Honig überfließe und die Krone unter allen Ländern sei,
16 इसका कारण यह था कि उन्होंने मेरे कानूनों को अस्वीकार किया और मेरे नियमों पर नहीं चले और मेरे विश्राम दिन को अपवित्र किया. क्योंकि उनका मन उनकी मूर्तियों पर लगा हुआ था.
weil sie meine Gebote mißachtet und nicht nach meinen Satzungen gewandelt und meine Sabbate entheiligt hätten; denn ihr Herz war immer nur hinter ihren Götzen her.
17 तौभी मैंने उन पर दया की और उन्हें नाश नहीं किया या निर्जन प्रदेश में उनका अंत नहीं किया.
Dennoch blickte mein Auge mitleidsvoll auf sie, so daß ich sie nicht vernichtete und sie in der Wüste nicht völlig ausrottete.‹«
18 निर्जन प्रदेश में मैंने उनके बच्चों से कहा, “अपने माता-पिता के विधियों पर या उनके कानूनों पर मत चलो या उनके मूर्तियों से अपने आपको अशुद्ध मत करो.
»›Da gebot ich ihren Söhnen in der Wüste: Wandelt nicht nach den Gewohnheiten eurer Väter und beobachtet nicht die von ihnen geübten Bräuche und verunreinigt euch nicht an ihren Götzen!
19 मैं याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं; मेरे नियमों पर चलो और ध्यानपूर्वक मेरे कानूनों का पालन करो.
Ich, der HERR, bin euer Gott: wandelt nach meinen Satzungen, beobachtet meine Gebote und handelt nach ihnen!
20 मेरे विश्राम दिनों को पवित्र मानो, कि वे मेरे और तुम्हारे बीच एक चिन्ह ठहरें. तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.”
Haltet auch meine Sabbate heilig, damit sie ein Zeichen (des Bundes) zwischen mir und euch seien und damit man erkenne, daß ich der HERR, euer Gott, bin.
21 “‘परंतु उनके बच्चों ने भी मेरे विरुद्ध विद्रोह किया: वे मेरे नियमों पर नहीं चले, उन्होंने मेरे कानूनों का पालन करने में सावधानी नहीं बरती, जिनके बारे में मैंने कहा था, “वह व्यक्ति जो उनका पालन करेगा, वह जीवित रहेगा,” और उन्होंने मेरे विश्राम दिनों को अपवित्र किया. इसलिये मैंने कहा मैं उन पर अपना कोप उंडेलूंगा और निर्जन प्रदेश में उनको अपना क्रोध दिखाऊंगा.
Aber auch die Söhne waren widerspenstig gegen mich: sie wandelten nicht nach meinen Satzungen und befolgten meine Gebote nicht, daß sie nach ihnen gehandelt hätten, obgleich doch der Mensch durch ihre Beobachtung das Leben hat; auch meine Sabbate entheiligten sie. Da gedachte ich meinen Grimm über sie auszugießen und meinen Zorn in der Wüste an ihnen völlig auszuwirken;
22 परंतु मैंने अपना हाथ रोके रखा, और अपने नाम के निमित्त मैंने वह किया, जिससे मेरा नाम उन जनताओं के दृष्टि में अपवित्र न ठहरे, जिनके देखते में, मैं उन्हें निकाल लाया था.
aber ich zog meine Hand wieder zurück und nahm Rücksicht auf meinen Namen, damit er nicht entehrt würde vor den Augen der Heidenvölker, vor deren Augen ich sie ausgeführt hatte.
23 निर्जन प्रदेश में, मैंने अपना हाथ उठाकर उनसे शपथ भी खाई कि मैं उन्हें जाति-जाति के लोगों के बीच छितरा दूंगा और विभिन्‍न देशों में तितर-बितर कर दूंगा,
Doch erhob ich meine Hand in der Wüste und schwur ihnen, daß ich sie unter die Heidenvölker zerstreuen und sie in die Länder versprengen würde,
24 क्योंकि उन्होंने मेरे कानूनों का पालन नहीं किया और मेरे नियमों को अस्वीकार किया और मेरे विश्राम दिनों को अपवित्र किया, और उनकी आंखें उनके माता-पिता के मूर्तियों पर लगी रहीं.
weil sie nicht nach meinen Geboten lebten, meine Satzungen mißachteten, meine Sabbate nicht heilig hielten und weil ihre Augen auf die Götzen ihrer Väter gerichtet seien.
25 इसलिये मैंने उन्हें दूसरे विधि विधान दिये जो अच्छे नहीं थे और उन्हें ऐसे कानून दिये जिसके द्वारा वे जीवित नहीं रह सकते थे;
So gab denn auch ich ihnen Satzungen, die nicht zum Guten waren, und Gebote, durch die sie nicht das Leben haben konnten;
26 मैंने उन्हें उनके ही उपहारों के द्वारा अशुद्ध किया—हर पहलौठा का बलिदान किया जाना—जिससे वे अत्यंत भयभीत हों और वे जानें कि मैं याहवेह हूं.’
ich machte sie durch ihre Opfergaben unrein, dadurch daß sie jegliche Erstgeburt als Opfer verbrannten: ich wollte ihnen eben Entsetzen einflößen, damit sie erkennen möchten, daß ich der HERR bin.‹«
27 “इसलिये, हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के लोगों से बात करो और उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: इस पर भी तुम्हारे पूर्वजों ने मुझसे विश्वासघात करके मेरी निंदा की.
»Darum, Menschensohn, rede zum Hause Israel und sage zu ihnen: ›So hat Gott der HERR gesprochen: Auch noch dadurch haben eure Väter mich beschimpft, daß sie mir die Treue gebrochen haben.
28 जब मैं उन्हें उस देश में ले आया, जिसे मैंने उन्हें देने की शपथ खाई थी तो वे किसी ऊंची पहाड़ी या किसी पत्तीवाले पेड़ को देखकर, वहां अपना बलिदान और भेंट चढ़ाने लगे, और अपना सुगंधित धूप जलाकर पेय बलिदान देने लगे, जिससे मेरा क्रोध भड़का.
Nachdem ich sie nämlich in das Land gebracht hatte, dessen Verleihung ich ihnen zugeschworen hatte, da schlachteten sie, wo immer sie einen hohen Hügel und einen dichtbelaubten Baum erblickt hatten, daselbst ihre Opfertiere, brachten dort ihre Gaben zu meiner Kränkung dar, ließen daselbst ihre lieblichen Weihrauchdüfte aufsteigen und gossen dort ihre Trankopfer aus.
29 तब मैंने उनसे कहा: यह ऊंचा स्थान क्या है जो तुम वहां जाते हो?’
[Da fragte ich sie: Was ist das für eine Höhe, auf die ihr euch da begebt? Daher ist der Name ›Höhe‹ geblieben bis auf den heutigen Tag.]‹«
30 “इसलिये इस्राएलियों से कहो: ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: क्या तुम लोग अपने पूर्वजों की तरह अपने आपको अशुद्ध करोगे और उनकी निकम्मी मूर्तियों के पीछे भागोगे?
»Darum sage zum Hause Israel: ›So hat Gott der HERR gesprochen: Wie? Nach der Weise eurer Väter wollt auch ihr euch verunreinigen und mit ihren Scheusalen ebenfalls Buhlerei treiben?
31 जब तुम अपनी भेटें चढ़ाते हो—अपने बच्चों का आग में बलिदान करते हो—तो ऐसा करने के द्वारा तुम आज तक अपने आपको अपनी सब मूर्तियों के द्वारा अशुद्ध करते आ रहे हो. तो हे इस्राएलियो, क्या मैं तुमको मुझसे पूछताछ करने दूंगा? मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, मैं तुमको मुझसे पूछताछ करने नहीं दूंगा, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.
Ja, dadurch, daß ihr eure Gaben darbringt, daß ihr eure Kinder als Opfer verbrennt, verunreinigt ihr euch an all euren Götzen bis auf den heutigen Tag; und da sollte ich mich von euch befragen lassen, Haus Israel? So wahr ich lebe!‹ – so lautet der Ausspruch Gottes des HERRN –: ›ich will mich von euch nicht befragen lassen!‹«
32 “‘तुम कहते हो, “हम उन जाति-जाति और संसार के लोगों के समान होना चाहते हैं, जो लकड़ी और पत्थर की सेवा करते हैं.” पर तुम्हारे मन में जो है, वह कभी पूरा न होगा.
»›Und das, was euch in den Sinn gekommen ist, darf nimmermehr zur Ausführung gelangen, daß ihr sagt: Wir wollen es machen wie die Heiden, wie die Völker in den anderen Ländern, indem wir Holz und Stein anbeten!
33 मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है, मैं शक्तिशाली हाथ और बढ़ाए हुए भुजा और भड़के हुए कोप से तुम्हारे ऊपर शासन करूंगा.
So wahr ich lebe!‹ – so lautet der Ausspruch Gottes des HERRN –: ›Mit starker Hand und hocherhobenem Arm und so, daß ich meinem Ingrimm freien Lauf lasse, will ich mich als König über euch erweisen!
34 मैं तुम्हें उन जाति-जाति के लोगों और देशों से लाकर इकट्ठा करूंगा, जहां तुम बिखरे हुए हो—मैं तुम्हें शक्तिशाली हाथ और बढ़ाए हुए भुजा और भड़के हुए कोप से इकट्ठा करूंगा.
Ich will euch aus den Heidenvölkern herausführen und euch aus den Ländern sammeln, in die ihr zerstreut worden seid, mit starker Hand und hocherhobenem Arm und so, daß ich meinem Ingrimm freien Lauf lasse,
35 मैं तुम्हें जनताओं के निर्जन प्रदेश में ले आऊंगा और वहां, आमने-सामने मैं तुम्हारा न्याय करूंगा.
und will euch in die Wüste inmitten der Völker bringen und dort ins Gericht mit euch gehen von Angesicht zu Angesicht!
36 जैसा कि मैंने मिस्र देश के निर्जन प्रदेश में तुम्हारे पूर्वजों का न्याय किया था, वैसा ही मैं तुम्हारा न्याय करूंगा, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.
Wie ich einst in der Wüste des Landes Ägypten mit euren Vätern ins Gericht gegangen bin, ebenso will ich auch über euch Gericht halten!‹ – so lautet der Ausspruch Gottes des HERRN.
37 जब तुम मेरी लाठी के अधीन चलोगे, तो मेरा ध्यान तुम पर रहेगा, और मैं तुम्हें वाचा के बंधन में लाऊंगा.
›Da will ich euch unter meinem Stabe an mir vorübergehen lassen und euch zur Erfüllung der Bundespflichten zwingen,
38 मैं तुम्हें उनमें से हटाकर शुद्ध करूंगा, जो मेरे विरुद्ध विद्रोह और अपराध करते हैं. यद्यपि मैं उन्हें उस देश से निकालकर लाऊंगा, जहां वे रह रहे हैं, तौभी वे इस्राएल देश में प्रवेश न कर पाएंगे. तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह हूं.
und ich will die Ungehorsamen und die von mir Abgefallenen aus euch aussondern: aus dem Lande, in dem sie als Fremdlinge gelebt haben, will ich sie herausführen; aber auf Israels Boden soll keiner von ihnen zurückkehren, damit ihr erkennt, daß ich der HERR bin!‹«
39 “‘हे इस्राएल के लोगों, जहां तक तुम्हारा संबंध है, परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: तुममें से हर एक जन जाए और अपनी-अपनी मूर्तियों की सेवा करे! परंतु बाद में तुम निश्चित रूप से मेरी सुनोगे और फिर मेरे पवित्र नाम को अपने उपहारों और मूर्तियों से अशुद्ध नहीं करोगे.
»Was euch aber betrifft, ihr vom Hause Israel, so hat Gott der HERR folgendermaßen gesprochen: ›Geht nur hin und dient ein jeder seinen Götzen! Später aber werdet ihr sicherlich auf mich hören und meinen heiligen Namen nicht länger durch eure Opfergaben und durch eure Götzen entweihen,
40 क्योंकि परम प्रधान याहवेह की घोषणा है, मेरे पवित्र पर्वत, इस्राएल के ऊंचे पर्वत पर, वहां देश में, इस्राएल के सारे लोग मेरी सेवा करेंगे, और वहां मैं उन्हें स्वीकार करूंगा. तब वहां मैं तुम्हारी भेंट और उत्तम उपहारों को तुम्हारे सब पवित्र बलिदानों सहित ग्रहण करूंगा.
sondern auf meinem heiligen Berge, auf Israels Bergeshöhe‹ – so lautet der Ausspruch Gottes des HERRN –, ›dort wird mir das ganze Haus Israel dienen, alle, die sich im Lande befinden; dort will ich euch gnädig annehmen und dort eure Hebeopfer und eure Erstlingsgaben mir darbringen lassen, alles, was ihr an Weihegaben opfert.
41 मैं तुम्हें एक सुगंधित धूप के रूप में ग्रहण करूंगा जब मैं तुम्हें जनताओं के बीच से निकाल लाऊंगा और उन देशों से तुम्हें इकट्ठा करूंगा, जहां तुम तितर-बितर हो गये हो, और मैं जाति-जाति के लोगों के दृष्टि में तुम्हारे द्वारा पवित्र ठहराया जाऊंगा.
Beim lieblichen Opferduft will ich euch gnädig annehmen, wenn ich euch aus den Heidenvölkern herausführe und euch aus den Ländern sammle, in die ihr zerstreut worden seid, und ich will mich an euch vor den Augen der Heidenvölker als den Heiligen erweisen.
42 तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह हूं, जब मैं तुम्हें इस्राएल देश में ले आऊंगा, वह देश जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देने की हाथ उठाकर शपथ खाई थी.
Da werdet ihr dann erkennen, daß ich der HERR bin, wenn ich euch in das Land Israel zurückführe, in das Land, dessen Verleihung ich euren Vätern einst durch einen Schwur zugesagt habe.
43 वहां तुम अपने चालचलन और उन सब कामों को याद करोगे, जिनके द्वारा तुमने अपने आपको अशुद्ध किया है, और अपने द्वारा किए गए सब बुरे कामों के कारण, तुम अपने आपसे घृणा करोगे.
Dort werdet ihr dann an euren Wandel und all eure Taten zurückdenken, durch die ihr euch verunreinigt habt, und werdet einen Abscheu vor euch selbst empfinden wegen all des Bösen, das ihr begangen habt.
44 हे इस्राएल के लोगों, जब मैं तुम्हारे बुरे कार्यों और तुम्हारे भ्रष्‍ट आचरण के अनुसार नहीं, परंतु अपने नाम के निमित्त तुमसे व्यवहार करूंगा, तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह हूं, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.’”
Dann werdet ihr auch erkennen, daß ich der HERR bin, wenn ich so mit euch verfahre um meines Namens willen und nicht nach eurem bösen Wandel und nach euren verwerflichen Taten, Haus Israel!‹ – so lautet der Ausspruch Gottes des HERRN.«
45 याहवेह का वचन मेरे पास आया:
Weiter erging das Wort des HERRN an mich folgendermaßen:
46 “हे मनुष्य के पुत्र, अपना चेहरा दक्षिण की ओर करो; दक्षिण के विरुद्ध प्रचार करो और दक्षिण देश के बंजर भूमि के विरुद्ध भविष्यवाणी करो.
»Menschensohn, richte deine Blicke nach Süden zu, predige gegen Mittag hin und weissage gegen den Wald, der im Gefilde des Südlandes liegt,
47 दक्षिण के बंजर भूमि से कहो: ‘याहवेह के वचन को सुनो. परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मैं तुम पर आग लगाने ही वाला हूं, और यह तुम्हारे हरे और सूखे सब पेड़ों को जलाकर नष्ट कर देगी. धधकती ज्वाला नहीं बुझेगी, और दक्षिण से लेकर उत्तर तक हर चेहरा इससे झुलस जाएगा.
und sprich zu dem Walde im Südland: ›Höre das Wort des HERRN! So hat Gott der HERR gesprochen: Siehe, ich will ein Feuer in dir anzünden, das soll alle saftreichen und alle dürren Bäume in dir verzehren; die lodernde Flamme soll nicht erlöschen, und alle Gesichter vom Südland bis zum Norden sollen durch sie versengt werden!
48 हर एक जन देखेगा कि मैं याहवेह ने ही यह आग लगायी है; यह नहीं बुझेगी.’”
Dann wird alles Fleisch einsehen, daß ich, der HERR, sie angezündet habe, indem sie nicht erlischt.‹«
49 तब मैंने कहा, “हे परम प्रधान याहवेह, वे लोग मेरे विषय में कह रहे हैं, ‘क्या वह मात्र दृष्टांत नहीं कह रहे हैं?’”
Da entgegnete ich: »Ach, HERR, mein Gott! Die Leute sagen von mir: ›Trägt der nicht immer Rätselreden vor?‹«

< यहेजकेल 20 >