< व्यवस्था विवरण 9 >
1 सुनो, इस्राएल: आज तुम यरदन नदी को पार करोगे, कि तुम वहां, उन जनताओं को बाहर करो, जो गिनती में तुमसे विशाल और तुमसे अधिक शक्तिशाली हैं. उनके नगर फैले हुए और गढ़ गगन को चूमते हैं.
Audi, Israël: tu transgredieris hodie Jordanem, ut possideas nationes maximas et fortiores te, civitates ingentes, et ad cælum usque muratas,
2 वे डीलडौल में तुमसे अधिक ऊंचे और वे अनाकों की संतान हैं, तुम इन्हें जानते हो, तुम इनके विषय में सुनते रहे हो: “कौन ठहर सकता है अनाक के पुत्रों के सामने?”
populum magnum atque sublimem, filios Enacim, quos ipse vidisti et audisti, quibus nullus potest ex adverso resistere.
3 इसलिये आज यह समझ लो, कि यह याहवेह तुम्हारे परमेश्वर ही हैं, जो भस्म करनेवाली आग का रूप धारण कर तुम्हारे आगे-आगे नदी पार कर रहे हैं. वही तुम्हारे सामने उन्हें दबा देंगे, कि वे नाश हो जाएं, कि तुम उन्हें शीघ्र ही वहां से खदेड़ कर नाश कर दो; ठीक जैसा आदेश तुम्हें याहवेह द्वारा दिया गया है.
Scies ergo hodie quod Dominus Deus tuus ipse transibit ante te, ignis devorans atque consumens, qui conterat eos, et deleat atque disperdat ante faciem tuam velociter, sicut locutus est tibi:
4 जब याहवेह तुम्हारे परमेश्वर उन्हें तुम्हारे सामने से खदेड़ देंगे, तब अपने मन में यह विचार तक आने न देगा: “यह तो मेरी धार्मिकता ही थी, जिसके कारण याहवेह ने मुझे इस देश पर अधिकार करने की क्षमता दी है.” सच तो यह है कि इन जनताओं की दुष्टता के कारण याहवेह उन्हें तुम्हारे सामने से उनकी मातृभूमि से दूर करते जा रहे हैं.
ne dicas in corde tuo, cum deleverit eos Dominus Deus tuus in conspectu tuo: Propter justitiam meam introduxit me Dominus ut terram hanc possiderem, cum propter impietates suas istæ deletæ sint nationes.
5 तुम्हें उन राष्ट्रों पर अधिकार इसलिये मिल नहीं पा रहा, कि तुम धर्मी हो या तुम्हारा मन सीधा है; बल्कि इसलिये कि याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर उन्हें तुम्हारे सामने से इसलिये निकाल रहे हैं, कि ये राष्ट्र दुष्ट राष्ट्र हैं, कि याहवेह उस प्रतिज्ञा को पूरा करें, जो उन्होंने शपथ के साथ तुम्हारे पूर्वज अब्राहाम, यित्सहाक और याकोब के साथ की थी.
Neque enim propter justitias tuas, et æquitatem cordis tui ingredieris, ut possideas terras earum: sed quia illæ egerunt impie, introëunte te deletæ sunt: et ut compleret verbum suum Dominus, quod sub juramento pollicitus est patribus tuis, Abraham, Isaac, et Jacob.
6 इसलिये यह अच्छी तरह से समझ लो कि याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर तुम्हारे अधिकार के लिए यह उत्तम देश इसलिये नहीं दे रहे कि तुम भले लोग हो, वास्तव में तुम तो हठी जाति हो.
Scito ergo quod non propter justitias tuas Dominus Deus tuus dederit tibi terram hanc optimam in possessionem, cum durissimæ cervicis sis populus.
7 यह सच कभी न भुलाना कि निर्जन प्रदेश में तुम किस तरह से याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर को मिस्र देश से निकाल लाने के दिन से लेकर इस स्थान तक पहुंचने तक क्रोधित करते रहे हो. तुम याहवेह के विरुद्ध विद्रोही बने रहे हो.
Memento, et ne obliviscaris, quomodo ad iracundiam provocaveris Dominum Deum tuum in solitudine. Ex eo die, quo egressus es ex Ægypto usque ad locum istum, semper adversum Dominum contendisti.
8 यहां तक की, होरेब पर्वत के निकट भी तुमने याहवेह को ऐसा उकसा दिया था, कि अपने गुस्से में वे तुम्हें मिटा ही देते.
Nam et in Horeb provocasti eum, et iratus delere te voluit,
9 जब मैं उस पर्वत पर गया हुआ था, जहां चालीस दिन और चालीस रात ठहरा रहा था, कि वे पत्थर की पट्टियां पाऊं; वे वाचा की पट्टियां, जिन पर याहवेह ने वह वाचा गढ़ दी थी, जो उन्होंने तुम्हारे साथ बांधी थी; तब मैंने न तो वहां भोजन ही किया और न जल पिया.
quando ascendi in montem, ut acciperem tabulas lapideas, tabulas pacti quod pepigit vobiscum Dominus: et perseveravi in monte quadraginta diebus ac noctibus, panem non comedens, et aquam non bibens.
10 याहवेह ने वहां मुझे परमेश्वर की उंगली से लिखी पत्थर की दो पट्टियां सौंपीं. उन पर वह पूरी बातें गढ़ीं थीं, जो तुम्हारे वहां इकट्ठा होने पर पर्वत पर आग के बीच से याहवेह ने दिया था.
Deditque mihi Dominus duas tabulas lapideas scriptas digito Dei, et continentes omnia verba quæ vobis locutus est in monte de medio ignis, quando concio populi congregata est.
11 चालीस दिनों और चालीस रातों के पूरा होने पर याहवेह ने मुझे दो पत्थर की पट्टियां सौंप दीं, वे वाचा की पट्टियां.
Cumque transissent quadraginta dies, et totidem noctes, dedit mihi Dominus duas tabulas lapideas, tabulas fœderis,
12 तब याहवेह ने मुझे आदेश दिया, “अब बिना देर यहां से कूच करो, क्योंकि तुम्हारे इन लोगों ने, जिन्हें तुम मिस्र देश से निकालकर लाए हो, खुद को अशुद्ध कर लिया है. कितनी जल्दी वे उस मार्ग से हट गए हैं, जो मेरे द्वारा बताया गया था. उन्होंने तो अपने लिए एक मूर्ति ढाल ली है.”
dixitque mihi: Surge, et descende hinc cito: quia populus tuus, quem eduxisti de Ægypto, deseruerunt velociter viam, quam demonstrasti eis, feceruntque sibi conflatile.
13 याहवेह ने मुझ पर प्रकट किया, “मैं इनको पहचान गया हूं. इसमें कोई शक नहीं कि ये हठीले लोग हैं!
Rursumque ait Dominus ad me: Cerno quod populus iste duræ cervicis sit:
14 अब मुझे मत रोको, कि मैं इन्हें नाश करके पृथ्वी पर से उनकी याद ही मिटा डालूं. तब मैं तुमसे एक ऐसे राष्ट्र का उद्भव करूंगा, जो इनसे अधिक शक्तिशाली और गिनती में विशाल भी होगा.”
dimitte me ut conteram eum, et deleam nomen ejus de sub cælo, et constituam te super gentem, quæ hac major et fortior sit.
15 और मैं मुड़कर पर्वत से नीचे उतर आए. मैं अपने हाथों में वे दो वाचा की पट्टियां लिए हुए था.
Cumque de monte ardente descenderem, et duas tabulas fœderis utraque tenerem manu,
16 तब मैंने दृष्टि की तो पाया कि वास्तव में तुमने याहवेह अपने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया था! तुमने अपने लिए बछड़े की एक मूर्ति ढाल रखी थी. तुम बड़े ही शीघ्र उस मार्ग से भटक चुके थे, जो तुम्हारे लिए याहवेह द्वारा बताया गया था.
vidissemque vos peccasse Domino Deo vestro, et fecisse vobis vitulum conflatilem, ac deseruisse velociter viam ejus, quam vobis ostenderat:
17 मैंने तुम्हारे देखते-देखते उन पत्थर की पट्टियों को फेंककर उन्हें चूर-चूर कर डाला.
projeci tabulas de manibus meis, confregique eas in conspectu vestro.
18 उन पहले के चालीस दिनों और चालीस रातों के समान मैं याहवेह के सामने पड़ा रहा; मैंने न तो भोजन किया, न जल का पान; क्योंकि तुमने वह भीषण पाप कर डाला था, जो याहवेह की दृष्टि में बुरा था. इससे तुमने याहवेह का कोप भड़का डाला था.
Et procidi ante Dominum sicut prius, quadraginta diebus et noctibus panem non comedens, et aquam non bibens, propter omnia peccata vestra quæ gessistis contra Dominum, et eum ad iracundiam provocastis:
19 मैं याहवेह के असंतोष और भीषण कोप की कल्पना से ही भयभीत हो गया था, जो अब तुम्हारे सर्वनाश के लिए आने पर था; मगर इस अवसर पर भी याहवेह ने मेरी विनती पर ध्यान दिया.
timui enim indignationem et iram illius, qua adversum vos concitatus, delere vos voluit. Et exaudivit me Dominus etiam hac vice.
20 अहरोन पर तो याहवेह इतने क्रुद्ध थे, कि वह उसे नाश कर देने पर उतारू हो गए; तब मैंने उसी अवसर पर अहरोन के लिए विनती की.
Adversum Aaron quoque vehementer iratus, voluit eum conterere, et pro illo similiter deprecatus sum.
21 तुम्हारे द्वारा बनाई उस पाप की मूरत, उस बछड़े को लेकर मैंने उसे आग में जला दिया, उसे कुचल-कुचल कर इतना पीस डाला, कि वह धूल समान बारीक़ हो गया. मैंने यह धूल उस नदी में बहा दी, जो उस पर्वत से निकल रही थी.
Peccatum autem vestrum quod feceratis, id est, vitulum, arripiens, igne combussi, et in frusta comminuens, omninoque in pulverem redigens, projeci in torrentem, qui de monte descendit.
22 तुम लोगों ने याहवेह के कोप को दोबारा ताबेराह, मस्साह और किबरोथ-हत्ताआवह में भड़काया.
In incendio quoque, et in tentatione, et in Sepulchris concupiscentiæ provocastis Dominum:
23 जब कादेश-बरनेअ में याहवेह ने तुम्हें इस आदेश के साथ भेजा था, “जाओ उस देश पर अधिकार कर लो, जो मैं तुम्हें दे चुका हूं.” तब तुमने याहवेह, अपने परमेश्वर के आदेश के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. तुमने न तो उनमें विश्वास किया और न उनके आदेश पर ध्यान दिया.
et quando misit vos de Cadesbarne, dicens: Ascendite, et possidete terram, quam dedi vobis, et contempsistis imperium Domini Dei vestri, et non credidistis ei, neque vocem ejus audire voluistis:
24 मैंने तो तुम्हें जिस दिन से देखा और पहचाना है, याहवेह के प्रति विद्रोह ही देखा है.
sed semper fuistis rebelles a die qua nosse vos cœpi.
25 तब मैं चालीस दिन और चालीस रात याहवेह के सामने ही पड़ा रहा, क्योंकि याहवेह अपनी यह इच्छा बता चुके थे, कि वह तुम्हें नाश कर देंगे.
Et jacui coram Domino quadraginta diebus ac noctibus, quibus eum suppliciter deprecabar, ne deleret vos ut fuerat comminatus:
26 मैंने याहवेह से प्रार्थना की, “प्रभु याहवेह, अपनी ही प्रजा को नाश न कीजिए, ये तो आपकी ही मीरास हैं, जिन्हें आप ही ने अपनी महानता के द्वारा छुड़ाया है, जिन्हें आपने अपनी समर्थ भुजा के द्वारा मिस्र देश से निकाला है.
et orans dixi: Domine Deus, ne disperdas populum tuum, et hæreditatem tuam, quam redemisti in magnitudine tua, quos eduxisti de Ægypto in manu forti.
27 अपने सेवक अब्राहाम, यित्सहाक और याकोब को याद कीजिए; इस प्रजा के हठ, पाप और दुष्टता की अनदेखी कर दीजिए.
Recordare servorum tuorum Abraham, Isaac, et Jacob: ne aspicias duritiam populi hujus, et impietatem atque peccatum:
28 नहीं तो, जिस देश से आपने हमें निकाला है, वे आपका मज़ाक इस प्रकार करेंगे ‘याहवेह इन्हें उस प्रतिज्ञा के देश में ले जाने में असमर्थ हो गया था और उसे लोगों से घृणा हो गई थी, इसलिये उसने निर्जन प्रदेश में ही उनका नाश कर दिया.’
ne forte dicant habitatores terræ, de qua eduxisti nos: Non poterat Dominus introducere eos in terram, quam pollicitus est eis, et oderat illos: idcirco eduxit, ut interficeret eos in solitudine:
29 फिर भी, वे हैं तो आपकी ही प्रजा; हां, आपकी मीरास, जिन्हें आपने अपने अद्भुत सामर्थ्य और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा निकाला.”
qui sunt populus tuus et hæreditas tua, quos eduxisti in fortitudine tua magna, et in brachio tuo extento.