< प्रेरितों के काम 25 >

1 कार्यभार संभालने के तीन दिन बाद फ़ेस्तुस कयसरिया नगर से येरूशलेम गया.
ⲁ̅ⲫⲏⲥⲧⲟⲥ ⲇⲉ ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉϥⲉⲓ ⲉⲧⲉⲡⲁⲣⲭⲓⲁ ⲙⲛ̅ⲛ̅ⲥⲁϣⲟⲙⲛ̅ⲧ ⲛ̅ϩⲟⲟⲩ. ⲁϥⲃⲱⲕ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲉⲑⲓ̅ⲏ̅ⲙ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲛ̅ⲧⲕⲁⲓⲥⲁⲣⲓⲁ.
2 वहां उसके सामने प्रधान पुरोहितों और यहूदी अगुओं ने पौलॉस के विरुद्ध मुकद्दमा प्रस्तुत किया. उन्होंने फ़ेस्तुस से विनती की
ⲃ̅ⲛⲓⲁⲣⲭⲓⲉⲣⲉⲩⲥ ⲇⲉ ⲁⲩⲱ ⲛ̅ⲛⲟϭ ⲛ̅ⲛ̅ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈ ⲁⲩⲥⲙ̅ⲙⲉ ⲉⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ⲛⲁϥ.
3 कि वह विशेष कृपादृष्टि कर पौलॉस को येरूशलेम भेज दें. वास्तव में उनकी योजना मार्ग में घात लगाकर पौलॉस की हत्या करने की थी.
ⲅ̅ⲁⲩⲱ ⲁⲩⲥⲉⲡⲥⲱⲡϥ̅. ⲉⲩⲁⲓⲧⲓ ⲛ̅ⲟⲩϩⲙⲟⲧ ⲛ̅ⲧⲟⲟⲧϥ̅. ϫⲉⲕⲁⲥ ⲉϥⲉⲧⲛ̅ⲛⲟⲟⲩ ⲛ̅ⲥⲱϥ ⲉⲑⲓ̅ⲗ̅ⲏ̅ⲙ. ⲉⲩⲉⲓⲣⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲕⲣⲟϥ ⲉⲣⲟϥ ⲉⲙⲟⲟⲩⲧϥ ϩⲓⲧⲉϩⲓⲏ.
4 फ़ेस्तुस ने इसके उत्तर में कहा, “पौलॉस तो कयसरिया में बंदी है और मैं स्वयं शीघ्र वहां जा रहा हूं.
ⲇ̅ⲫⲏⲥⲧⲟⲥ ϭⲉ ⲁϥⲟⲩⲱϣⲃ̅ ϫⲉ ⲥⲉϩⲁⲣⲉϩ ⲉⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ϩⲛ̅ⲧⲕⲁⲓⲥⲁⲣⲓⲁ. ⲁⲛⲟⲕ ⲇⲉ ϩⲛ̅ⲟⲩϭⲉⲡⲏ ϯⲛⲁⲃⲱⲕ ⲉⲙⲁⲩ.
5 इसलिये आप में से कुछ प्रधान व्यक्ति मेरे साथ वहां चलें. यदि पौलॉस को वास्तव में दोषी पाया गया तो उस पर मुकद्दमा चलाया जाएगा.”
ⲉ̅ⲛⲉⲧⲉⲟⲩⲛϭⲟⲙ ⲇⲉ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ⲛ̅ϩⲏⲧⲧⲏⲩⲧⲛ̅. ⲙⲁⲣⲟⲩⲉⲓ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲛ̅ⲥⲉⲕⲁⲧⲏⲅⲟⲣⲓ. ⲉϣϫⲉⲟⲩⲛϩⲱⲃ ⲉϥϩⲟⲟⲩ ϩⲙ̅ⲡⲉⲓ̈ⲣⲱⲙⲉ.
6 आठ-दस दिन ठहरने के बाद फ़ेस्तुस कयसरिया लौट गया और अगले दिन पौलॉस को न्यायालय में लाने की आज्ञा दी.
ⲋ̅ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉϥⲣ̅ⲁϣⲙⲟⲩⲛ ⲇⲉ ⲏ̅ ⲙⲏⲧ ⲛ̅ϩⲟⲟⲩ ⲙ̅ⲙⲁⲩ. ⲁϥⲉⲓ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲉⲕⲁⲓⲥⲁⲣⲓⲁ. ⲁⲩⲱ ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉϥϩⲙⲟⲟⲥ ⲙ̅ⲡⲉϥⲣⲁⲥⲧⲉ ⲉⲡⲃⲏⲙⲁ ⲁϥⲟⲩⲉϩⲥⲁϩⲛⲉ ⲉⲉⲓⲛⲉ ⲙ̅ⲡⲁⲩⲗⲟⲥ.
7 पौलॉस के वहां आने पर येरूशलेम से आए यहूदियों ने उन्हें घेर लिया और उन पर अनेक गंभीर आरोपों की बौछार शुरू कर दी, जिन्हें वे स्वयं साबित न कर पाए.
ⲍ̅ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉϥⲉⲓ ⲇⲉ ⲁⲩⲁϩⲉⲣⲁⲧⲟⲩ ⲉⲣⲟϥ ⲛ̅ϭⲓⲛ̅ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈ ⲛ̅ⲧⲁⲩⲉⲓ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲛ̅ⲑⲓ̅ⲗ̅ⲏ̅ⲙ. ⲉⲩϫⲱ ⲛ̅ϩ̅ⲉⲛⲛⲟϭ ⲛ̅ⲁⲓⲧⲓ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲣⲟϥ. ⲁⲩⲱ ⲉⲩϩⲟⲣϣ̅. ⲛⲁⲓ̈ ⲉⲙⲡⲟⲩϣϭⲙ̅ϭⲟⲙ ⲉⲧⲁϩⲟⲟⲩ ⲉⲣⲁⲧⲟⲩ
8 अपने बचाव में पौलॉस ने कहा, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के विरुद्ध किसी भी प्रकार का अपराध किया है और न ही मंदिर या कयसर के विरुद्ध.”
ⲏ̅ⲉⲣⲉⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ⲟⲩⲱϣⲃ̅ ⲉϩⲏⲧⲟⲩ ϫⲉ ⲙ̅ⲡⲓⲣ̅ⲗⲁⲁⲩ ⲛ̅ⲛⲟⲃⲉ ⲉⲡⲛⲟⲙⲟⲥ ⲛ̅ⲛ̅ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈. ⲟⲩⲇⲉ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲡⲉⲣⲡⲉ. ⲟⲩⲇⲉ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲡⲣ̅ⲣⲟ.
9 फिर भी यहूदियों को प्रसन्‍न करने के उद्देश्य से फ़ेस्तुस ने पौलॉस से प्रश्न किया, “क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे इन आरोपों की सुनवाई मेरे सामने येरूशलेम में हो?”
ⲑ̅ⲫⲏⲥⲧⲟⲥ ϭⲉ ⲉϥⲟⲩⲱϣ ⲉϯ ⲛⲟⲩⲭⲁⲣⲓⲥ ⲛ̅ⲛ̅ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈. ⲁϥⲟⲩⲱϣⲃ̅ ⲡⲉϫⲁϥ ⲙ̅ⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ϫⲉ ⲉⲛⲉⲕⲟⲩⲱϣ ⲉⲉⲓ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲉⲑⲓ̅ⲗ̅ⲏ̅ⲙ ⲉϫⲓϩⲁⲡ ⲛⲙ̅ⲙⲁⲩ ϩⲓⲱⲧ ⲉⲧⲃⲉⲛⲁⲓ̈.
10 इस पर पौलॉस ने उत्तर दिया, “मैं कयसर के न्यायालय में खड़ा हूं. ठीक यही है कि मेरी सुनवाई यहीं हो. मैंने यहूदियों के विरुद्ध कोई अपराध नहीं किया है; यह तो आपको भी भली-भांति मालूम है.
ⲓ̅ⲡⲉϫⲉⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ϫⲉ ⲉⲓ̈ⲁϩⲉⲣⲁⲧ ϩⲓⲡⲃⲏⲙⲁ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲟ ⲡⲁⲓ̈ ⲡⲉ ⲡⲙⲁ ⲉϯⲛⲁϫⲓϩⲁⲡ ϩⲓⲱⲱϥ. ⲛ̅ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈ ⲅⲁⲣ ⲙ̅ⲡⲓϫⲓⲧⲟⲩ ⲛ̅ϭⲟⲛⲥ̅ ⲗⲁⲁⲩ. ⲛ̅ⲑⲉ ϩⲱⲱⲕ ⲟⲛ ⲉⲕⲥⲟⲟⲩⲛ ⲛ̅ϩⲟⲩⲟ
11 यदि मैं अपराधी ही हूं और यदि मैंने मृत्यु दंड के योग्य कोई अपराध किया ही है, तो मुझे मृत्यु दंड स्वीकार है. किंतु यदि इन यहूदियों द्वारा मुझ पर लगाए आरोप सच नहीं हैं तो किसी को यह अधिकार नहीं कि वह मुझे इनके हाथों में सौंपे. यहां मैं अपनी सुनवाई की याचिका कयसर के न्यायालय में भेज रहा हूं.”
ⲓ̅ⲁ̅ⲉⲛⲉⲛⲧⲁⲓ̈ⲉⲓⲣⲉ ⲅⲁⲣ ⲛ̅ⲟⲩϫⲓⲛϭⲟⲛⲥ̅. ⲏ̅ ⲟⲩϩⲱⲃ ⲉϥⲙ̅ⲡϣⲁ ⲙ̅ⲡⲙⲟⲩ. ⲛⲉⲓ̈ⲛⲁⲡⲁⲣⲁⲓⲧⲓ ⲁⲛ ⲙ̅ⲡⲙⲟⲩ. ⲉϣϫⲉⲙ̅ⲡⲓⲣ̅ⲗⲁⲁⲩ ⲇⲉ ⲛ̅ⲛⲉⲧⲉⲣⲉⲛⲁⲓ̈ ⲕⲁⲧⲏⲅⲟⲣⲓ ⲙ̅ⲙⲟⲓ̈ ⲉⲧⲃⲏⲏⲧⲟⲩ. ⲙ̅ⲙⲛ̅ϭⲟⲙ ⲛ̅ⲗⲁⲁⲩ ⲉⲭⲁⲣⲓⲍⲉ ⲙ̅ⲙⲟⲓ̈ ⲛⲁⲩ ϯⲉⲡⲓⲕⲁⲗⲉⲓ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲟ.
12 अपनी महासभा से विचार-विमर्श के बाद फ़ेस्तुस ने घोषणा की, “ठीक है. तुमने कयसर से सुनवाई की विनती की है तो तुम्हें कयसर के पास ही भेजा जाएगा.”
ⲓ̅ⲃ̅ⲧⲟⲧⲉ ⲫⲏⲥⲧⲟⲥ ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉϥϣⲁϫⲉ ⲙⲛ̅ⲡⲉϥⲣⲉϥϫⲓϣⲟϫⲛⲉ ⲁϥⲟⲩⲱϣⲃ̅ ϫⲉ ⲁⲕⲉⲡⲓⲕⲁⲗⲉⲓ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲟ. ⲉⲕⲉⲃⲱⲕ ⲉⲣⲁⲧϥ̅ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲟ.
13 कुछ समय बाद राजा अग्रिप्पा तथा बेरनिके फ़ेस्तुस से भेंट करने कयसरिया नगर आए.
ⲓ̅ⲅ̅ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉϩⲉⲛϩⲟⲟⲩ ⲇⲉ ⲟⲩⲉⲓⲛⲉ. ⲁⲅⲣⲓⲡⲡⲁⲥ ⲡⲣ̅ⲣⲟ ⲁⲩⲱ ⲃⲉⲣⲉⲛⲓⲕⲏ. ⲁⲩⲉⲓ ⲉⲕⲁⲓⲥⲁⲣⲓⲁ ⲉⲁⲥⲡⲁⲍⲉ ⲙ̅ⲫⲏⲥⲧⲟⲥ.
14 वे वहां बहुत समय तक ठहरे. फ़ेस्तुस ने राजा को पौलॉस के विषय में इस प्रकार बताया: “फ़ेलिक्स एक बंदी को यहां छोड़ गया है.
ⲓ̅ⲇ̅ⲁⲩⲱ ⲛ̅ⲧⲉⲣⲟⲩⲣ̅ϩⲁϩ ⲛ̅ϩⲟⲟⲩ ⲙ̅ⲙⲁⲩ. ⲫⲏⲥⲧⲟⲥ ⲁϥⲧⲁⲙⲉⲡⲣ̅ⲣⲟ ⲉⲫⲱⲃ ⲙ̅ⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ⲉϥϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ϫⲉ ⲟⲩⲣⲱⲙⲉ ⲡⲉ ⲛ̅ⲧⲁⲫⲏⲗⲓⲝ ⲕⲁⲁϥ ⲉϥⲙⲏⲣ.
15 जब मैं येरूशलेम गया हुआ था; वहां प्रधान पुरोहितों तथा यहूदी प्राचीनों ने उस पर आरोप लगाए थे. उन्होंने उसे मृत्यु दंड दिए जाने की मांग की.
ⲓ̅ⲉ̅ⲡⲁⲓ̈ ⲛ̅ⲧⲉⲣⲓⲃⲱⲕ ⲉϩⲣⲁⲓ̈-ⲉⲑⲓ̅ⲗ̅ⲏ̅ⲙ. ⲁⲩⲥⲙ̅ⲙⲉ ⲉⲣⲟϥ ⲛⲁⲓ̈ ⲛ̅ϭⲓⲛⲁⲣⲭⲓⲉⲣⲉⲩⲥ ⲁⲩⲱ ⲛⲉⲡⲣⲉⲥⲃⲩⲧⲉⲣⲟⲥ ⲛ̅ⲛ̅ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈. ⲉⲩⲁⲓⲧⲓ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲉⲙⲟⲟⲩⲧϥ̅.
16 “मैंने उनके सामने रोमी शासन की नीति स्पष्ट करते हुए उनसे कहा कि इस नीति के अंतर्गत दोषी और दोष लगानेवालों के आमने-सामने सवाल जवाब किए बिना तथा दोषी को अपनी सफ़ाई पेश करने का अवसर दिए बिना दंड के लिए सौंप देना सही नहीं है.
ⲓ̅ⲋ̅ⲁⲓ̈ⲟⲩⲱϣⲃ̅ ⲇⲉ ⲛⲁⲩ ϫⲉ ⲙ̅ⲡⲥⲱⲛⲧ̅ ⲁⲛ ⲡⲉ ⲛ̅ⲛⲉϩⲣⲱⲙⲁⲓⲟⲥ ⲉϯ ⲛⲟⲩⲣⲱⲙⲉ ⲉⲩⲕⲁⲧⲏⲅⲟⲣⲓ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲉⲧⲁⲕⲟϥ. ⲙ̅ⲡⲁⲧⲉⲛ̅ⲕⲁⲧⲏⲅⲟⲣⲟⲥ ⲉⲓ ⲙ̅ⲡⲉϥⲙⲧⲟ ⲉⲃⲟⲗ. ⲉⲧⲣⲉϥϭⲛ̅ⲑⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲱϣⲃ̅ ⲟⲩⲃⲉⲧⲕⲁⲧⲏⲅⲟⲣⲓⲁ.
17 इसलिये उनके यहां इकट्ठा होते ही मैंने बिना देर किए दूसरे ही दिन इस व्यक्ति को न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने की आज्ञा दी.
ⲓ̅ⲍ̅ⲛ̅ⲧⲉⲣⲟⲩⲉⲓ ϭⲉ ⲉⲡⲉⲓ̈ⲙⲁ ⲙ̅ⲡⲓⲛⲉϫⲡϩⲱⲃ ⲁⲓ̈ϩⲙⲟⲟⲥ ⲙ̅ⲡⲉϥⲣⲁⲥⲧⲉ ⲉⲡⲃⲏⲙⲁ. ⲁⲓ̈ⲟⲩⲉϩⲥⲁϩⲛⲉ ⲉⲉⲓⲛⲉ ⲙ̅ⲡⲣⲱⲙⲉ.
18 जब आरोपी खड़े हुए, उन्होंने उस पर सवाल जवाब शुरू कर दिए किंतु मेरे अनुमान के विपरीत, ये आरोप उन अपराधों के नहीं थे जिनकी मुझे आशा थी
ⲓ̅ⲏ̅ⲛ̅ⲧⲉⲣⲟⲩⲁϩⲉ ⲇⲉ ⲉⲣⲁⲧⲟⲩ ⲉⲣⲟϥ ⲛ̅ϭⲓⲛ̅ⲕⲁⲧⲏⲅⲟⲣⲟⲥ. ⲙ̅ⲡⲟⲩⲧⲁϩⲉⲗⲁⲁⲩ ⲉⲣⲁⲧϥ̅ ⲛ̅ϩⲱⲃ ⲉϥϩⲟⲟⲩ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲣⲟϥ. ⲛ̅ⲑⲉ ⲁⲛⲟⲕ ⲉⲓ̈ⲉⲓⲙⲉ ⲉⲣⲟⲥ.
19 ये उनके पारस्परिक मतभेद थे, जिनका संबंध मात्र उनके विश्वास से तथा येशु नामक किसी मृत व्यक्ति से था, जो इस बंदी पौलॉस के अनुसार जीवित है.
ⲓ̅ⲑ̅ⲁⲗⲗⲁ ϩⲉⲛⲍⲏⲧⲏⲙⲁ ⲛⲉ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲉⲩϣⲙ̅ϣⲉ ⲛⲉⲧⲉⲩⲛ̅ⲧⲁⲩⲥⲉ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲣⲟϥ. ⲁⲩⲱ ⲉⲧⲃⲉⲟⲩⲁ ϫⲉ ⲓ̅ⲥ̅ ⲉⲁϥⲙⲟⲩ ⲉⲣⲉⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ϫⲉ ϥⲟⲛϩ̅.
20 मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस प्रकार के विषय का पता कैसे किया जाए. इसलिये मैंने यह जानना चाहा, क्या वह येरूशलेम में मुकद्दमा चलाए जाने के लिए राज़ी है.
ⲕ̅ⲉⲓ̈ⲁⲡⲟⲣⲣⲓ ⲇⲉ ⲁⲛⲟⲕ ⲉⲧⲃⲉⲫⲁⲡ ⲛ̅ⲛⲉⲓ̈ϣⲁϫⲉ. ⲁⲓ̈ϫⲛⲟⲩϥ ϫⲉ ⲉⲛⲉⲕⲟⲩⲱϣ ⲃⲱⲕ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲉⲑⲓ̅ⲗ̅ⲏ̅ⲙ ⲉϫⲓϩⲁⲡ ⲛⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲉⲧⲃⲉⲛⲁⲓ̈.
21 किंतु पौलॉस की इस विनती पर कि सम्राट के निर्णय तक उसे कारावास में रखा जाए, मैंने उसे कयसर के पास भेजे जाने तक बंदी बनाए रखने की आज्ञा दी है.”
ⲕ̅ⲁ̅ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ⲇⲉ ⲉⲡⲓⲕⲁⲗⲉⲓ ⲉϩⲁⲣⲉϩ ⲉⲣⲟϥ ⲉⲫⲁⲡ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲟ. ⲁⲓ̈ⲟⲩⲉϩⲥⲁϩⲛⲉ ⲉϩⲁⲣⲉϩ ⲉⲣⲟϥ ϣⲁⲛϯϫⲟⲟⲩϥ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲟ.
22 राजा अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, “मैं स्वयं उसका बचाव सुनना चाहूंगा.” फ़ेस्तुस ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, “ठीक है, कल ही सुन लीजिए.”
ⲕ̅ⲃ̅ⲁⲅⲣⲓⲡⲡⲁⲥ ⲇⲉ ⲡⲉϫⲁϥ ⲙ̅ⲫⲏⲥⲧⲟⲥ ϫⲉ ⲛⲉⲓ̈ⲟⲩⲱϣ ϩⲱ ⲉⲥⲱⲧⲙ̅ ⲉⲡⲉⲓ̈ⲣⲱⲙⲉ. ⲡⲉϫⲁϥ ϫⲉ ⲣⲁⲥⲧⲉ ⲉⲕⲉⲥⲱⲧⲙ̅ ⲉⲣⲟϥ.
23 अगले दिन जब राजा अग्रिप्पा और बेरनिके ने औपचारिक धूमधाम के साथ सभागार में प्रवेश किया, उनके साथ सेनापति और गणमान्य नागरिक भी थे. फ़ेस्तुस की आज्ञा पर पौलॉस को वहां लाया गया.
ⲕ̅ⲅ̅ⲙ̅ⲡⲉϥⲣⲁⲥⲧⲉ ⲁϥⲉⲓ ⲛ̅ϭⲓⲁⲅⲣⲓⲡⲡⲁⲥ ⲁⲩⲱ ⲃⲉⲣⲉⲛⲓⲕⲏ ⲙⲛ̅ⲟⲩⲛⲟϭ ⲙ̅ⲫⲁⲛⲧⲁⲥⲓⲁ. ⲁⲩⲃⲱⲕ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲡⲙⲁ ⲛ̅ϯϩⲁⲡ ⲙⲛ̅ϩⲉⲛⲭⲓⲗⲓⲁⲣⲭⲟⲥ ⲙⲛ̅ϩⲉⲛⲣⲱⲙⲉ ⲛ̅ⲣⲙ̅ⲙⲁⲟ ⲛ̅ⲧⲡⲟⲗⲓⲥ. ⲁⲩⲱ ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉⲫⲏⲥⲧⲟⲥ ⲟⲩⲉϩⲥⲁϩⲛⲉ ⲁⲩⲉⲓⲛⲉ ⲙ̅ⲡⲁⲩⲗⲟⲥ.
24 फ़ेस्तुस ने कहना शुरू किया, “महाराज अग्रिप्पा तथा उपस्थित सज्जनो! इस व्यक्ति को देखिए, जिसके विषय में सारे यहूदी समाज ने येरूशलेम और यहां कयसरिया में मेरे न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की है. ये लोग चिल्ला-चिल्लाकर यह कह रहे हैं कि अब उसे एक क्षण भी जीवित रहने का अधिकार नहीं है.
ⲕ̅ⲇ̅ⲡⲉϫⲁϥ ⲛ̅ϭⲓⲫⲏⲥⲧⲟⲥ ϫⲉ ⲁⲅⲣⲓⲡⲡⲁⲥ ⲡⲣ̅ⲣⲟ ⲁⲩⲱ ⲛ̅ⲣⲱⲙⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲉⲧⲙ̅ⲡⲉⲓ̈ⲙⲁ. ⲧⲉⲧⲛ̅ⲛⲁⲩ ⲉⲡⲉⲓ̈ⲣⲱⲙⲉ ⲛ̅ⲧⲁⲡⲙⲏⲏϣⲉ ⲧⲏⲣϥ̅ ⲛ̅ⲛ̅ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈ ⲥⲙ̅ⲙⲉ ⲛⲁⲓ̈ ⲉⲧⲃⲏⲏⲧϥ̅ ϩⲛ̅ⲑⲓ̅ⲗ̅ⲏ̅ⲙ. ⲁⲩⲱ ϩⲙ̅ⲡⲉⲓ̈ⲙⲁ. ⲉⲩⲁϣⲕⲁⲕ ⲉⲃⲟⲗ ϫⲉ ⲛ̅ϣϣⲉ ⲁⲛ ⲉⲣⲟϥ ⲉⲱⲛϩ̅ ϫⲓⲛⲧⲉⲛⲟⲩ.
25 किंतु अपनी जांच में मैंने इसमें ऐसा कुछ भी नहीं पाया जिसके लिए उसे मृत्यु दंड दिया जाए और अब, जब उसने स्वयं सम्राट के न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की है, मैंने उसे रोम भेज देने का निश्चय किया है.
ⲕ̅ⲉ̅ⲁⲛⲟⲕ ⲇⲉ ⲁⲓ̈ϩⲉ ⲉⲣⲟϥ ⲉϣϫⲉⲙ̅ⲡϥ̅ⲣ̅ⲗⲁⲁⲩ ⲛ̅ϩⲱⲃ ⲉϥⲙ̅ⲡϣⲁ ⲙ̅ⲡⲙⲟⲩ. ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲇⲉ ⲛ̅ⲧⲉⲣⲉϥⲉⲡⲓⲕⲁⲗⲉⲓ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲟ ⲁⲓ̈ⲕⲣⲓⲛⲉ ⲉϫⲟⲟⲩϥ.
26 फिर भी, उसके विषय में मेरे पास कुछ भी तय नहीं है जिसे लिखकर महाराजाधिराज की सेवा में प्रस्तुत किया जाए. यही कारण है कि मैंने उसे आप सबके सामने प्रस्तुत किया है—विशेष रूप से महाराज अग्रिप्पा आपके सामने, जिससे कि सारी जांच पूरी होने पर मुझे लिखने के लिए कुछ सबूत मिल जाएं, जो सम्राट की सेवा में प्रस्तुत किए जा सकें.
ⲕ̅ⲋ̅ⲉⲙⲛ̅ϯⲟⲩϩⲱⲃ ⲇⲉ ⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲉϥⲟⲣϫ̅ ⲉⲥϩⲁⲓ̈ ⲙ̅ⲡⲣ̅ⲣⲟ ⲉⲧⲃⲏⲏⲧϥ̅. ⲉⲧⲃⲉⲡⲁⲓ̈ ⲁⲓ̈ⲛⲧ̅ϥ̅ ⲉⲃⲟⲗ ⲉⲣⲁⲧⲧⲏⲩⲧⲛ̅. ⲛ̅ϩⲟⲩⲟ ⲇⲉ ⲉⲣⲁⲧⲕ̅ ⲡⲣ̅ⲣⲟ ⲁⲅⲣⲓⲡⲡⲁ. ϫⲉⲕⲁⲥ ⲉⲧⲉⲧⲛⲉⲁⲛⲁⲕⲣⲓⲛⲉ ⲙ̅ⲙⲟϥ. ⲧⲁϭⲙ̅ⲡⲉϯⲛⲁⲥⲁϩϥ̅.
27 क्योंकि मेरे लिए यह गलत है कि किसी भी दोषी को उसके आरोपों के वर्णन के बिना आगे भेजा जाए.”
ⲕ̅ⲍ̅ⲛ̅ⲟⲩϩⲱⲃ ⲅⲁⲣ ⲁⲛ ⲡⲉ ⲉϣϣⲉ ⲛ̅ⲛⲁϩⲣⲁⲓ̈. ⲉϫⲉⲩⲟⲩⲁ ⲉϥⲙⲏⲣ ⲙ̅ⲡⲓⲥⲉϩⲛⲉϥⲕⲉⲁⲓⲧⲓⲁ.

< प्रेरितों के काम 25 >