< 2 शमूएल 12 >
1 फिर याहवेह ने नाथान को दावीद के पास भेजा. नाथान ने आकर दावीद से कहा, “किसी नगर में दो व्यक्ति थे, एक धनी और दूसरा निर्धन.
Misit ergo Dominus Nathan ad David: qui cum venisset ad eum, dixit ei: Duo viri erant in civitate una, unus dives, et alter pauper.
2 धनी व्यक्ति अनेक पशुओं और भेड़ों का स्वामी था,
Dives habebat oves, et boves plurimos valde.
3 मगर निर्धन के पास सिर्फ एक ही छोटी भेड़ थी, जिसे उसने मोल लिया था, और वह उसका पालन पोषण कर रहा था. यह भेड़ उसके बालकों के साथ ही बड़ी हो रही थी. वह उसी व्यक्ति के साथ भोजन करती थी, उसी के प्याले से पीती थी और उसके साथ बिछौने में सोया करती थी. वह उसके लिए उसकी पुत्री समान थी.
Pauper autem nihil habebat omnino, praeter ovem unam parvulam, quam emerat et nutrierat, et quae creverat apud eum cum filiis eius simul, de pane illius comedens, et de calice eius bibens, et in sinu illius dormiens: eratque illi sicut filia.
4 “उस धनी के पास एक यात्री आया हुआ था. उस धनिक ने उस यात्री के सत्कार के लिए अपनी भेड़ों में से कोई भेड़ न ली, बल्कि उस निर्धन की भेड़ लेकर उस यात्री के लिए भोजन तैयार कर लिया.”
Cum autem peregrinus quidam venisset ad divitem, parcens ille sumere de ovibus et de bobus suis, ut exhiberet convivium peregrino illi, qui venerat ad se, tulit ovem viri pauperis, et praeparavit cibos homini qui venerat ad se.
5 यह सुनते ही उस धनी व्यक्ति के प्रति दावीद का क्रोध भड़क उठा. उन्होंने नाथान से कहा, “जीवित याहवेह की शपथ, जिस व्यक्ति ने यह किया है, मृत्यु दंड के योग्य है!
Iratus autem indignatione David adversus hominem illum nimis, dixit ad Nathan: Vivit Dominus, quoniam filius mortis est vir qui fecit hoc.
6 इसलिये कि उसने ऐसा किया है, इसलिये कि वह ऐसा निर्दयी है, उसे उस भेड़ की चौगुनी भरपाई करनी होगी.”
Ovem reddet in quadruplum, eo quod fecerit verbum istud, et non pepercerit.
7 नाथान ने दावीद को उत्तर दिया, “आप हैं वह व्यक्ति! याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का वचन यह है: ‘इस्राएल पर मैंने तुम्हें राजा बनाया; शाऊल के वारों से मैंने तुम्हारी रक्षा की.
Dixit autem Nathan ad David: Tu es ille vir. Haec dicit Dominus Deus Israel: Ego unxi te in regem super Israel, et ego erui te de manu Saul,
8 तुम्हारे स्वामी का घर मैंने ही तुम्हें दे दिया है, मैंने ही तुम्हारे स्वामी की पत्नियां तुम्हारे अधिकार में कर दी हैं, और तुम्हें इस्राएल और यहूदिया के वंश का अधिकारी बना दिया है. यदि यह सब तुम्हारे विचार से बहुत कम था, मैं तुम्हें इतना ही और दे देता.
et dedi tibi domum domini tui, et uxores domini tui in sinu tuo, dedique tibi domum Israel et Iuda: et si parva sunt ista, adiiciam tibi multo maiora.
9 तुमने याहवेह के वचन को क्यों तुच्छ समझा कि तुमने वही किया, जो उनकी दृष्टि में गलत है? तुमने हित्ती उरियाह पर तलवार चलाई, और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है. तुमने उरियाह को अम्मोनियों की तलवार से घात किया है.
Quare ergo contempsisti verbum Domini ut faceres malum in conspectu meo? Uriam Hethaeum percussisti gladio, et uxorem illius accepisti in uxorem tibi, et interfecisti eum gladio filiorum Ammon.
10 अब तलवार तुम्हारे परिवार का पीछा कभी न छोड़ेगी. तुमने मुझसे घृणा की है, और हित्ती उरियाह की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है.’ याहवेह का यह कथन है:
Quam ob rem non recedet gladius de domo tua usque in sempiternum, eo quod despexeris me, et tuleris uxorem Uriae Hethaei, ut esset uxor tua.
11 “यह देखना, कि मैं तुम्हारे ही परिवार में से तुम्हारे विरुद्ध बुराई उत्पन्न करूंगा. मैं तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारी पत्नियों को लेकर तुम्हारे साथी को दे दूंगा कि वह तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारी पत्नियों से दिन के प्रकाश में कुकर्म करे.
Itaque haec dicit Dominus: Ecce, ego suscitabo super te malum de domo tua, et tollam uxores tuas in oculis tuis, et dabo proximo tuo, et dormiet cum uxoribus tuis in oculis Solis huius.
12 तुमने तो यह गुप्त में किया, मगर मैं यह पूरे इस्राएल के सामने करूंगा और वह भी सूर्य प्रकाश में.”
Tu enim fecisti abscondite: ego autem faciam verbum istud in conspectu omnis Israel, et in conspectu Solis.
13 दावीद ने नाथान से कहा, “मैंने याहवेह के विरुद्ध पाप किया है.” नाथान ने दावीद से कहा, “तुम्हारा पाप याहवेह ने दूर कर दिया है. तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी.
Et dixit David ad Nathan: Peccavi Domino. Dixitque Nathan ad David: Dominus quoque transtulit peccatum tuum: non morieris.
14 फिर भी इस काम के द्वारा तुमने याहवेह का तिरस्कार किया है, उस पुत्र की, जिसका जन्म होने पर है, मृत्यु हो जाएगी.”
Verumtamen, quoniam blasphemare fecisti inimicos Domini, propter verbum hoc, filius, qui natus est tibi, morte morietur.
15 इसके बाद नाथान अपने घर चले गए, उरियाह की पत्नी से दावीद का जो शिशु पैदा हुआ, याहवेह ने उस पर वार किया और शिशु गंभीर रूप से रोगी हो गया.
Et reversus est Nathan in domum suam. Percussit quoque Dominus parvulum, quem pepererat uxor Uriae David, et desperatus est.
16 दावीद ने अपने शिशु के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की. इस समय दावीद ने न कुछ खाया न पिया और वह जाकर सारी रात भूमि पर ही पड़े रहे.
Deprecatusque est David Dominum pro parvulo: et ieiunavit David ieiunio, et ingressus seorsum, iacuit super terram.
17 घर के सारे पुरनिए उनके निकट इस प्रतीक्षा में ठहरे रहे कि कब उन्हें भूमि पर से उठाएं, मगर दावीद ने उठना अस्वीकार किया. उन्होंने उनके साथ भोजन भी न किया.
Venerunt autem seniores domus eius, cogentes eum ut surgeret de terra: qui noluit, nec comedit cum eis cibum.
18 सातवें दिन शिशु की मृत्यु हो गई. दावीद को इसकी सूचना देने में सेवक झिझक रहे थे कि शिशु की मृत्यु हो चुकी थी. उनका कहना था, “देखो, जब शिशु जीवित था और हम उन्हें मना रहे थे, उन्होंने हमारी न सुनी. तब भला हम उन्हें कैसे बताएं कि शिशु की मृत्यु हो गई? कहीं वह अपनी ही कोई हानि न कर लें.”
Accidit autem die septima ut moreretur infans: timueruntque servi David nunciare ei quod mortuus esset parvulus. dixerunt enim: Ecce cum parvulus adhuc viveret, loquebamur ad eum, et non audiebat vocem nostram: quanto magis si dixerimus: Mortuus est puer, se affliget?
19 जब दावीद ने ध्यान दिया कि सेवक परस्पर दबे स्वर में बातचीत कर रहे थे, दावीद समझ गए कि शिशु की मृत्यु हो चुकी. दावीद ने सेवकों से प्रश्न किया, “क्या शिशु की मृत्यु हो गई?” “जी हां,” उन्होंने उत्तर दिया.
Cum ergo David audisset servos suos mussitantes, intellexit quod mortuus esset infantulus: dixitque ad servos suos: Num mortuus est puer? Qui responderunt ei: Mortuus est.
20 तब दावीद भूमि से उठे, स्नान कर तेल लगाया और अपने वस्त्र बदले. इसके बाद याहवेह के भवन में जाकर उन्होंने उनकी वंदना की और अपने घर चले गए. उन्होंने भोजन मांगा, सेवकों ने उनके साम्हने भोजन परोस दिया और राजा ने वह खाया.
Surrexit ergo David de terra: et lotus unctusque est: cumque mutasset vestem, ingressus est domum Domini: et adoravit, et venit in domum suam, petivitque ut ponerent ei panem, et comedit.
21 इस पर सेवकों ने दावीद से पूछा, “हमें समझ नहीं आया आपने यह क्या किया? जब शिशु जीवित था आप भूखे रहे और रोते रहे, मगर जब शिशु की मृत्यु हो गई, आपने उठकर भोजन किया!”
Dixerunt autem ei servi sui: Quis est sermo, quem fecisti? propter infantem, cum adhuc viveret, ieiunasti et flebas: mortuo autem puero, surrexisti, et comedisti panem.
22 दावीद ने उत्तर दिया, “जब तक शिशु जीवित था, मैं उपवास करते हुए रोता रहा, ‘क्योंकि मैं विचार कर रहा था, किसे पता याहवेह मुझ पर कृपा करें और शिशु जीवित रह जाए.’
Qui ait: Propter infantem, dum adhuc viveret, ieiunavi et flevi: dicebam enim: Quis scit si forte donet eum mihi Dominus, et vivat infans?
23 मगर अब, जब शिशु की मृत्यु हो चुकी है, क्या अर्थ है मेरे उपवास का? क्या इससे मैं उसे लौटा ला सकता हूं? मैं उससे जा मिलूंगा, लौटकर वह मेरे पास न आएगा.”
Nunc autem quia mortuus est, quare ieiuno? Numquid potero revocare eum amplius? ego vadam magis ad eum: ille vero non revertetur ad me.
24 दावीद अपनी पत्नी बैथशेबा को सांत्वना देते रहे. वह उसके निकट रहे और उसमें संबंध बना. उन्हें एक पुत्र पैदा हुआ, जिसे दावीद ने शलोमोन नाम दिया. वह याहवेह का प्रिय हुआ;
Et consolatus est David Bethsabee uxorem suam, ingressusque ad eam, dormivit cum ea: quae genuit filium, et vocavit nomen eius Salomon, et Dominus dilexit eum.
25 भविष्यद्वक्ता नाथान के द्वारा याहवेह ने एक संदेश भेजा. तब याहवेह की आज्ञा पर उन्होंने उसे येदीदियाह नाम दिया.
Misitque in manu Nathan prophetae, et vocavit nomen eius, Amabilis Domino, eo quod diligeret eum Dominus.
26 योआब ने अम्मोनियों के रब्बाह नगर से युद्ध छेड़ दिया और इस राजधानी को अपने अधीन कर लिया.
Igitur pugnabat Ioab contra Rabbath filiorum Ammon, et expugnabat urbem regiam.
27 तब योआब ने दूतों द्वारा दावीद को यह संदेश भेजा, “मैंने रब्बाह नगर से युद्ध किया है, और मैंने जल नगर पर अधिकार भी कर लिया है.
Misitque Ioab nuncios ad David, dicens: Dimicavi adversum Rabbath, et capienda est Urbs aquarum.
28 अब आप बाकी सैनिकों को इकट्ठा कर नगर की घेराबंदी कर लीजिए और इसे अपने अधिकार में कर लीजिए. ऐसा न हो कि मैं इस पर अधिकार कर लूं और यह मेरी संपत्ति के रूप में प्रख्यात हो जाए.”
Nunc igitur congrega reliquam partem populi, et obside civitatem, et cape eam: ne, cum a me vastata fuerit urbs, nomini meo ascribatur victoria.
29 तब दावीद ने सैनिक इकट्ठा किए और रब्बाह नगर पर हमला किया और उसे अपने अधिकार में कर लिया.
Congregavit itaque David omnem populum, et profectus est adversum Rabbath: cumque dimicasset, cepit eam.
30 तत्पश्चात उन्होंने उनके राजा के सिर से उसका मुकुट ले लिया. इस स्वर्ण मुकुट का वजन एक तालन्त था. एक अमूल्य रत्न भी इसमें जड़ित था. यह मुकुट दावीद के सिर पर रखा गया. दावीद इस नगर से अत्यंत भारी मात्रा में लूटी हुई सामग्री अपने साथ ले गए.
Et tulit diadema regis eorum de capite eius, pondo auri talentum, habens gemmas pretiosissimas, et impositum est super caput David. Sed et praedam civitatis asportavit multam valde:
31 इस नगर से दावीद-नगर निवासी भी अपने साथ ले गए, जिन्हें उन्होंने श्रमिक बनाकर उन्हें आरी, कुदाली, कुल्हाड़ी से संबंधित कार्यों में लगा दिया और उन्हें ईंट निर्माण की भट्ठियों में भी संलग्न कर दिया. यही उन्होंने अम्मोनियों के सारे नगरों के साथ किया. इसके बाद दावीद और सारे सैनिक येरूशलेम लौट गए.
populum quoque eius adducens serravit, et circumegit super eos ferrata carpenta: divisitque cultris, et traduxit in typo laterum: sic fecit universis civitatibus filiorum Ammon: et reversus est David, et omnis exercitus in Ierusalem.