< 2 राजा 4 >

1 भविष्यद्वक्ता मंडल के भविष्यवक्ताओं में से एक की पत्नी ने एलीशा की दोहाई दी, “आपके सेवक, मेरे पति की मृत्यु हो चुकी है. आपको मालूम ही है कि आपके सेवक के मन में याहवेह के लिए कितना भय था. अब हालत यह है कि जिसका वह कर्ज़दार था वह मेरे दोनों पुत्रों को अपने दास बनाने के लिए आ खड़ा हुआ है.”
ভাববাদী সম্প্রদায়ের মধ্যে একজন লোকের স্ত্রী ইলীশায়ের কাছে এসে কেঁদে বলল, “আপনার দাস—আমার স্বামী মারা গিয়েছে, আর আপনি তো জানেন যে সে সদাপ্রভুকে গভীর শ্রদ্ধা করত। কিন্তু এখন তার পাওনাদার এসে আমার দুটি সন্তানকে তার ক্রীতদাস করে নিয়ে যেতে চাইছে।”
2 एलीशा ने उससे पूछा, “मैं तुम्हारे लिए क्या करूं? बताओ क्या-क्या बाकी रह गया है तुम्हारे घर में?” उस स्त्री ने उत्तर दिया, “आपकी सेविका के घर में अब तेल का एक पात्र के अलावा कुछ भी बचा नहीं रह गया है.”
ইলীশায় তাকে উত্তর দিলেন, “আমি কীভাবে তোমাকে সাহায্য করব? আমায় বলো, তোমার ঘরে কী আছে?” “আপনার এই দাসীর কাছে বলতে গেলে কিছুই নেই,” সে বলল, “শুধু ছোটো একটি বয়ামে কিছুটা জলপাই তেল আছে।”
3 एलीशा ने उससे कहा, “जाओ और अपने सभी पड़ोसियों से खाली बर्तन मांग लाओ और ध्यान रहे कि ये बर्तन गिनती में कम न हों.
ইলীশায় বললেন, “আশেপাশে গিয়ে তোমার প্রতিবেশীদের কাছ থেকে কয়েকটি খালি বয়াম চেয়ে আনো। শুধু অল্প কয়েকটি বয়াম চাইলেই হবে না।
4 तब उन्हें ले तुम अपने पुत्रों के साथ कमरे में चली जाना और दरवाजा बंद कर लेना. तब इन सभी बर्तनों में तेल उण्डेलना शुरू करना. जो जो बर्तन भर जाएं उन्हें अलग रखते जाना.”
পরে ঘরের ভিতরে গিয়ে তুমি ও তোমার ছেলেরা দরজা বন্ধ করে দেবে। সবকটি বয়ামে তেল ঢালতে থেকো, এবং একটি করে বয়াম ভর্তি হবে, আর তুমিও এক এক করে সেগুলি এক পাশে সরিয়ে রাখবে।”
5 तब वह वहां से चली गई. अपने पुत्रों के साथ कमरे में जाकर उसने दरवाजा बंद कर लिया. वह बर्तनों में तेल उंडेलती गई और पुत्र उसके सामने खाली बर्तन लाते गए.
সে তাঁর কাছ থেকে চলে গেল এবং ছেলেদের নিয়ে ঘরের দরজা বন্ধ করে দিয়েছিল। তারা তার কাছে বেশ কয়েকটি বয়াম নিয়ে এসেছিল এবং সে সেগুলিতে তেল ঢেলে যাচ্ছিল।
6 जब सारे बर्तन भर चुके, उसने अपने पुत्र से कहा, “और बर्तन ले आओ!” पुत्र ने इसके उत्तर में कहा, “अब कोई बर्तन नहीं है.” तब तेल की धार थम गई.
সবকটি বয়াম ভর্তি হয়ে যাওয়ার পর, সে তার এক ছেলেকে বলল, “আরও বয়াম নিয়ে এসো।” কিন্তু সে উত্তর দিয়েছিল, “আর কোনও বয়াম অবশিষ্ট নেই।” তখনই তেলের স্রোত বন্ধ হয়ে গেল।
7 उसने परमेश्वर के जन को इस बात की ख़बर दे दी. और परमेश्वर के जन ने उस स्त्री को आदेश दिया, “जाओ, यह तेल बेचकर अपना कर्ज़ भर दो.” जो बाकी रह जाए, उससे तुम और तुम्हारे पुत्र गुज़ारा करें.
সে ঈশ্বরের লোককে গিয়ে সব কথা বলল, এবং তিনি বললেন, “যাও, তেল বিক্রি করে তোমার দেনা শোধ করো। আর যতটুকু তেল থেকে যাবে, তা দিয়ে তুমি ও তোমার ছেলেরা খেয়ে-পরে বেঁচে থাকবে।”
8 एक दिन एलीशा शूनेम नाम के स्थान पर गए. वहां एक धनी स्त्री रहती थी. उसने एलीशा को विनती करके भोजन पर बुलाया. इसके बाद जब कभी एलीशा वहां से जाते थे, वहीं रुक कर भोजन कर लेते थे.
একদিন ইলীশায় শূনেমে গেলেন। সেখানে বেশ সম্পন্ন এমন এক মহিলা ছিলেন, যিনি তাঁকে ভোজনপান করে যাওয়ার জন্য বারবার অনুরোধ জানিয়েছিলেন। তাই যখনই তিনি সেখানে আসতেন, ভোজনপান করার জন্য তিনি কিছুক্ষণ সময় থেকে যেতেন।
9 उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “सुनिए, अब तो मैं यह समझ गई हूं कि यह व्यक्ति, जो हमेशा इसी मार्ग से जाया करते हैं, परमेश्वर के पवित्र जन हैं.
সেই মহিলা তাঁর স্বামীকে বললেন, “আমি জানি, যিনি প্রায়ই আমাদের এখানে আসেন, তিনি ঈশ্বরের একজন পবিত্র লোক।
10 हम छत पर दीवारें उठाकर एक छोटा कमरा बना लें, उनके लिए वहां एक बिछौना, एक मेज़ एक कुर्सी और एक दीपक रख दें, कि जब कभी वह यहां आएं, वहां ठहर सकें.”
আমরা তাঁর জন্য ছাদের উপর একটি ছোটো ঘর বানিয়ে দিই এবং সেখানে একটি খাট, একটি টেবিল, একটি চেয়ার ও একটি লম্ফ রেখে দিই। তবে যখনই তিনি আমাদের কাছে আসবেন, তিনি সেখানে থাকতে পারবেন।”
11 एक दिन एलीशा वहां आए और उन्होंने उस कमरे में जाकर आराम किया.
একদিন ইলীশায় সেখানে এসে তাঁর সেই ঘরে গিয়ে শুয়ে পড়েছিলেন।
12 उन्होंने अपने सेवक गेहज़ी से कहा, “शूनामी स्त्री को बुला लाओ.” वह आकर उनके सामने खड़ी हो गई.
তিনি তাঁর দাস গেহসিকে বললেন, “শূনেমীয়াকে ডেকে আনো।” তাই সে তাঁকে ডেকেছিল, ও তিনি এসে ইলীশায়ের সামনে দাঁড়িয়েছিলেন।
13 एलीशा ने गेहज़ी को आदेश दिया, “उससे कहो, ‘देखिए, आपने हम दोनों का ध्यान रखने के लिए यह सब कष्ट किया है; आपके लिए क्या किया जा सकता है? क्या आप चाहती हैं कि किसी विषय में राजा के सामने आपकी कोई बात रखी जाए, या सेनापति से कोई विनती की जाए?’” उस स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं तो अपनों ही के बीच में रह रही हूं!”
ইলীশায় গেহসিকে বললেন, “তাঁকে বলো, ‘তুমি আমাদের জন্য খুব অসুবিধা ভোগ করছ। এখন বলো, তোমার জন্য কী করতে হবে? তোমার হয়ে কি আমরা রাজার বা সৈন্যদলের সেনাপতির সাথে কথা বলব?’” শূনেমীয়া উত্তর দিলেন, “নিজের লোকজনের মধ্যে তো আমার একটি ঘর আছে।”
14 तब उन्होंने पूछा, “तब इस स्त्री के लिए क्या किया जा सकता है?” गेहज़ी ने उत्तर दिया, “उसके कोई पुत्र नहीं है, और उसके पति ढलती उम्र के व्यक्ति हैं.”
“তাঁর জন্য কী করা যেতে পারে?” ইলীশায় জিজ্ঞাসা করলেন। গেহসি বললেন, “তাঁর কোনও ছেলে নেই, আর তাঁর স্বামীও বৃদ্ধ।”
15 एलीशा ने कहा, “उसे यहां बुलाओ.” जब वह स्त्री आकर द्वार पर खड़ी हो गई,
তখন ইলীশায় বললেন, “তাঁকে ডাকো।” অতএব গেহসি তাঁকে ডেকেছিলেন, ও তিনি দরজার কাছে এসে দাঁড়িয়েছিলেন।
16 एलीशा ने उससे कहा, “अगले साल इसी मौसम में लगभग इसी समय तुम्हारी गोद में एक पुत्र होगा.” वह स्त्री कहने लगी, “नहीं, मेरे स्वामी! परमेश्वर के जन, अपनी सेविका को झूठी आशा न दीजिए.”
“পরের বছর মোটামুটি এসময়,” ইলীশায় বললেন, “তুমি ছেলে কোলে নিয়ে থাকবে।” “না, প্রভু না!” তিনি প্রতিবাদ করে উঠেছিলেন। “হে ঈশ্বরের লোক, আপনার দাসীকে বিভ্রান্তিকর খবর দেবেন না!”
17 उस स्त्री ने गर्भधारण किया और अगले साल उसी समय वसन्त के मौसम में उसने एक पुत्र को जन्म दिया—ठीक जैसा एलीशा ने उससे कहा था.
কিন্তু মহিলাটি অন্তঃসত্ত্বা হলেন, এবং ইলীশায়ের বলা কথানুসারে, পরের বছর মোটামুটি সেই একই সময়ে তিনি এক পুত্রসন্তানের জন্ম দিলেন।
18 बड़ा होता हुआ वह बालक, एक दिन कटनी कर रहे मजदूरों के बीच अपने पिता के पास चला गया.
শিশুটি বড়ো হয়ে উঠেছিল, এবং একদিন তার বাবা যখন সেই লোকজনের সাথে ক্ষেতে গেলেন, যারা ফসল কাটতে এসেছিল, তখন সেও তাঁর কাছে গেল।
19 अचानक उसने अपने पिता से कहा, “अरे, मेरा सिर! मेरा सिर!” पिता ने अपने सेवक को आदेश दिया, “इसे इसकी माता के पास ले जाओ.”
সে তার বাবাকে বলল, “আমার মাথা! আমার মাথা!” তার বাবা একজন দাসকে বললেন, “ওকে ওর মায়ের কাছে নিয়ে যাও।”
20 सेवक ने उस बालक को उठाया और उसकी माता के पास ले गया. वह बालक दोपहर तक अपनी माता की गोद में ही बैठा रहा और वहीं उसकी मृत्यु हो गई.
সেই দাস তাকে কোলে তুলে নিয়ে তার মায়ের কাছে পৌঁছে দেওয়ার পর, ছেলেটি দুপুর পর্যন্ত মায়ের কোলে বসেছিল ও পরে সে মারা গেল।
21 उस स्त्री ने बालक को ऊपर ले जाकर उस परमेश्वर के जन के बिछौने पर लिटा दिया और दरवाजा बंद करके चली गई.
সেই মহিলাটি উপরে গিয়ে ছেলেটিকে ঈশ্বরের লোকের বিছানায় শুইয়ে দিলেন, পরে দরজা বন্ধ করে বের হয়ে গেলেন।
22 तब उसने अपने पति को यह संदेश भेजा, “मेरे पास अपना एक सेवक और गधा भेज दीजिए कि मैं जल्दी ही परमेश्वर के जन से भेंटकर लौट आऊं.”
তিনি তাঁর স্বামীকে ডেকে বললেন, “দয়া করে তোমার দাসদের মধ্যে একজনকে ও একটি গাধা আমার কাছে পাঠিয়ে দাও, যেন আমি তাড়াতাড়ি ঈশ্বরের লোকের কাছে গিয়ে ফিরে আসতে পারি।”
23 पति ने प्रश्न किया, “तुम आज ही क्यों जाना चाह रही हो? आज न तो नया चांद है, और न ही शब्बाथ.” उसका उत्तर था, “सब कुछ कुशल ही होगा.”
“আজ তাঁর কাছে যাবে কেন?” তিনি জিজ্ঞাসা করলেন। “আজ তো অমাবস্যা নয়, বা সাব্বাথবারও নয়।” “সে ঠিক আছে,” তিনি উত্তর দিলেন।
24 तब उसने गधे को तैयार किया और अपने सेवक को आदेश दिया, “गधे को तेज हांको! मेरे लिए रफ़्तार धीमी न होने पाए, जब तक मैं इसके लिए आदेश न दूं.”
তিনি গাধায় জিন চাপিয়ে তাঁর দাসকে বললেন, “টেনে নিয়ে চলো; আমি না বলা পর্যন্ত গতি কম কোরো না।”
25 वह चल पड़ी और कर्मेल पर्वत पर परमेश्वर के जन के घर तक पहुंच गई. जब परमेश्वर के जन ने उसे अपनी ओर आते देखा, उन्होंने अपने सेवक गेहज़ी से कहा, “वह देखो! शूनामी स्त्री!
এইভাবে তিনি বের হয়ে কর্মিল পাহাড়ে ঈশ্বরের লোকের কাছে পৌঁছে গেলেন। দূর থেকে তাঁকে দেখতে পেয়ে ঈশ্বরের লোক তাঁর দাস গেহসিকে বললেন, “দেখো! সেই শূনেমীয়া আসছে!
26 तुरंत उससे मिलने के लिए दौड़ो और उससे पूछो, ‘क्या आप सकुशल हैं? क्या आपके पति सकुशल हैं? क्या आपका पुत्र सकुशल है?’” उसने उसे उत्तर दिया, “सभी कुछ सकुशल है.”
দৌড়ে গিয়ে তাঁর সাথে দেখা করো ও তাঁকে জিজ্ঞাসা করো, ‘তুমি ঠিক আছ? তোমার স্বামী ঠিক আছে? তোমার ছেলে ঠিক আছে?’” “সব ঠিক আছে,” তিনি বললেন।
27 तब, जैसे ही वह पर्वत पर परमेश्वर के जन के पास पहुंची, उसने एलीशा के पैर पकड़ लिए. जब गेहज़ी उसे हटाने वहां पहुंचा, परमेश्वर के जन ने उससे कहा, “ऐसा कुछ न करो, क्योंकि इसका मन भारी दर्द से भरा हुआ है. इसके बारे में मुझे याहवेह ने कोई सूचना नहीं दी है, इसे गुप्‍त ही रखा है.”
পর্বতে ঈশ্বরের লোকের কাছে পৌঁছে তিনি তাঁর পা জড়িয়ে ধরেছিলেন। গেহসি তাঁকে ঠেলে সরিয়ে দেওয়ার জন্য এগিয়ে এসেছিল, কিন্তু ঈশ্বরের লোক বললেন, “ওকে একা থাকতে দাও! ও মর্মান্তিক যন্ত্রণাভোগ করছে, কিন্তু সদাপ্রভু তা আমার কাছে লুকিয়ে রেখেছেন এবং কেন তাও আমাকে বলেননি।”
28 तब उस स्त्री ने कहना शुरू किया, “क्या अपने स्वामी से पुत्र की विनती मैंने की थी? क्या मैंने न कहा था, ‘मुझे झूठी आशा न दीजिए?’”
“হে আমার প্রভু, আমি কি আপনার কাছে ছেলে চেয়েছিলাম?” তিনি বললেন। “কি আপনাকে বলিনি, ‘আমার আশা জাগিয়ে তুলবেন না?’”
29 एलीशा ने गेहज़ी को आदेश दिया, “कमर कस लो और अपने साथ मेरी लाठी ले लो और चल पड़ो! मार्ग में अगर कोई मिले तो उससे हाल-चाल जानने के लिए न रुकना. यदि तुम्हें कोई नमस्कार करे तो उसका उत्तर न देना. जाकर मेरी लाठी उस बालक के मुंह पर रख देना.”
ইলীশায় গেহসিকে বললেন, “তোমার আলখাল্লাটি কোমরবন্ধ দিয়ে বেঁধে নাও, হাতে আমার ছড়িটি তুলে নাও ও দৌড়াতে থাকো। যে কোনো লোকের সাথেই দেখা হোক না কেন, তাকে শুভেচ্ছা জানিও না, এবং যদি কেউ তোমাকে শুভেচ্ছা জানায়, তবে তুমি তার কোনও উত্তর দিয়ো না। ছেলেটির মুখের উপর আমার ছড়িটি রেখে দিয়ো।”
30 तब बालक की माता ने एलीशा से कहा, “जीवित याहवेह की शपथ और आपकी शपथ, मैं आपके बिना न लौटूंगी!” तब एलीशा उठे और उस स्त्री के साथ चल दिए.
কিন্তু শিশুটির মা বললেন, “জীবন্ত সদাপ্রভুর দিব্যি ও আপনারও প্রাণের দিব্যি, আমি আপনাকে ছাড়ব না।” তাই ইলীশায় উঠে সেই মহিলাটিকে অনুসরণ করলেন।
31 गेहज़ी ने आगे-आगे जाकर बालक के मुंह पर लाठी टिका दी, मगर वहां न तो कोई आवाज सुनाई दिया गया और न ही उसमें जीवन का कोई लक्षण दिखाई दिया. तब गेहज़ी ने लौटकर एलीशा को ख़बर दी, “बालक तो जागा ही नहीं!”
গেহসি তাদের আগে এগিয়ে গিয়ে ছেলেটির মুখের উপর ছড়িটি রেখে দিয়েছিল, কিন্তু কোনও সাড়াশব্দ পাওয়া যায়নি। তাই গেহসি ইলীশায়ের সাথে দেখা করার জন্য ফিরে গিয়ে তাঁকে বলল, “ছেলেটি জাগেনি।”
32 जब एलीशा ने घर में प्रवेश किया, वह मरा हुआ बालक उनके ही बिछौने पर ही लिटाया हुआ था.
ইলীশায় যখন সেই বাড়িতে পৌঁছেছিলেন, ছেলেটি তাঁরই খাটে মরে পড়েছিল।
33 तब एलीशा कमरे के भीतर चले गए और दरवाजा बंद कर लिया, वे दोनों बाहर ही थे. एलीशा ने याहवेह से प्रार्थना की.
তিনি ভিতরে ঢুকে, তাদের দুজনকে বাইরে রেখে দরজা বন্ধ করে দিলেন এবং সদাপ্রভুর কাছে প্রার্থনা করলেন।
34 तब वह जाकर बालक के ऊपर लेट गए. उन्होंने अपना मुख बालक के मुख पर रखा, उनकी आंखें बालक की आंखों पर थी और उनके हाथ बालक के हाथों पर. जब वह उस बालक पर लेट गए, तब बालक के शरीर में गर्मी आने लगी.
পরে তিনি বিছানায় উঠে ছেলেটির মুখের উপর মুখ, চোখের উপর চোখ, হাতের উপর হাত রেখে শুয়ে পড়েছিলেন। ছেলেটির উপর তিনি যখন নিজেকে বিছিয়ে দিলেন, তখন ছেলেটির শরীর গরম হয়ে গেল।
35 फिर वह नीचे उतरे और घर के भीतर ही टहलते रहे. तब वह दोबारा बिछौने पर चढ़ गए और बालक पर लेट गए. इससे उस बालक को सात बार छींक आई और उसने आंखें खोल दीं.
ইলীশায় ফিরে এসে ঘরের মধ্যেই আগে পিছে একটু পায়চারি করে আবার বিছানায় উঠে ছেলেটির উপর নিজেকে বিছিয়ে দিলেন। ছেলেটি সাতবার হাঁচি দিয়ে নিজের চোখ খুলেছিল।
36 एलीशा ने गेहज़ी को पुकारा और आदेश दिया, “शूनामी स्त्री को बुलाओ.” तब गेहज़ी ने उसे पुकारा. जब वह भीतर आई, उन्होंने उस स्त्री से कहा, “उठा लो अपने पुत्र को.”
ইলীশায় গেহসিকে ডেকে বললেন, “শূনেমীয়াকে ডেকে আনো।” সে তা করল। মহিলাটি সেখানে আসার পর ইলীশায় বললেন, “এই নাও তোমার ছেলে।”
37 वह आई और भूमि की ओर झुककर एलीशा के पैरों पर गिर पड़ी. इसके बाद उसने अपने पुत्र को गोद में उठाया और वहां से चली गई.
তিনি ভিতরে এসে ইলীশায়ের পায়ে পড়ে মাটিতে মাথা ঠেকিয়ে তাঁকে প্রণাম করলেন। পরে তিনি তাঁর ছেলেকে নিয়ে বাইরে বেরিয়ে গেলেন।
38 एलीशा दोबारा गिलगाल नगर को लौट गए. इस समय देश में अकाल फैला था. भविष्यद्वक्ता मंडल इस समय उनके सामने बैठा हुआ था. एलीशा ने अपने सेवक को आदेश दिया, “एक बड़े बर्तन में भविष्यद्वक्ता मंडल के लिए भोजन तैयार करो!”
ইলীশায় গিল্‌গলে ফিরে গেলেন এবং তখন সেই এলাকায় দুর্ভিক্ষ চলছিল। ভাববাদী সম্প্রদায়ের লোকেরা যখন তাঁর সাথে দেখা করতে গেলেন, তিনি তাঁর দাসকে বললেন, “উনুনে বড়ো হাঁড়িটি চাপিয়ে এই ভাববাদীদের জন্য একটু তরকারি রান্না করো।”
39 एक भविष्यद्वक्ता ने बाहर जाकर खेतों में से कुछ साग-पात इकट्ठा किया. वहीं उसे एक जंगली लता भी दिखाई दी, जिससे उसने बड़ी संख्या में जंगली फल इकट्ठा कर लिए. उसने इन्हें काटकर पकाने के बर्तन में डाल दिया. उसे यह मालूम न था कि ये फल क्या थे.
তাদের মধ্যে একজন শাক সংগ্রহ করার জন্য ক্ষেতে গেলেন এবং সেখানে বুনো শশার লতা দেখতে পেয়ে কাপড়ে ভরে যত শসা আনা যায়, ততগুলিই তুলে নিয়েছিলেন। ফিরে আসার পর তিনি সেগুলি কেটে তরকারির হাঁড়িতে ঢুকিয়ে দিলেন, যদিও কেউই জানত না সেগুলি ঠিক কী।
40 जब परोसने के लिए भोजन निकाला गया और जैसे ही उन्होंने भोजन खाना शुरू किया, वे चिल्ला उठे, “परमेश्वर के जन, इस हांड़ी में मौत है!” वे भोजन न कर सके.
লোকজনের পাতে তরকারি ঢেলে দেওয়া হল, কিন্তু যেই তারা খেতে শুরু করলেন, তারা চিৎকার করে কেঁদে উঠেছিলেন, “হে ঈশ্বরের লোক, হাঁড়িতে মৃত্যু আছে!” আর তারা সেই তরকারি খেতে পারেননি।
41 एलीशा ने आदेश दिया, “थोड़ा आटा ले आओ.” उन्होंने उस आटे को उस बर्तन में डाला और कहा, “अब इसे इन्हें परोस दो, कि वे इसे खा सके.” बर्तन का भोजन खाने योग्य हो चुका था.
ইলীশায় বললেন, “আমার কাছে কিছুটা ময়দা নিয়ে এসো।” তিনি হাঁড়িতে ময়দা রেখে বললেন, “এবার লোকদের কাছে খাবার পরিবেশন করো।” হাঁড়িতে ক্ষতিকারক আর কিছুই ছিল না।
42 बाल-शालीशाह नामक स्थान से एक व्यक्ति ने आकर परमेश्वर के जन को उपज के प्रथम फल से बनाई गई बीस जौ की रोटियां और बोरे में कुछ बालें लाकर भेंट में दीं. एलीशा ने आदेश दिया, “यह सब भविष्यद्वक्ता मंडल के भविष्यवक्ताओं में बांट दिया जाए कि वे भोजन कर लें.”
বায়াল-শালিশা থেকে একজন লোক ঈশ্বরের লোকের কাছে থলিতে করে নবান্নরূপী যবের কুড়িটি সেঁকা রুটি, এবং নবান্নের কিছু ফসল-দানা নিয়ে এসেছিল। “লোকদের এগুলি খেতে দাও,” ইলীশায় বললেন।
43 सेवक ने प्रश्न किया, “यह भोजन सौ व्यक्तियों के सामने कैसे रखा जाए?” एलीशा ने अपना आदेश दोहराया, “यह भोजन भविष्यद्वक्ता मंडल के भविष्यवक्ताओं को परोस दो, कि वे इसे खा सकें, क्योंकि यह याहवेह का संदेश है, ‘उनके खा चुकने के बाद भी कुछ भोजन बाकी रह जाएगा.’”
“একশো জন লোকের সামনে আমি কীভাবে এটি পরিবেশন করব?” তাঁর দাস জিজ্ঞাসা করলেন। কিন্তু ইলীশায় উত্তর দিলেন, “এগুলিই লোকদের খেতে দাও। কারণ সদাপ্রভু একথাই বলেন: ‘তারা খাবে ও আরও কিছু বেঁচেও যাবে।’”
44 तब सेवक ने भोजन परोस दिया. वे खाकर तृप्‍त हुए और कुछ भोजन बाकी भी रह गया; जैसा याहवेह ने कहा था.
তখন সে তাদের সামনে সেগুলি পরিবেশন করল, এবং সদাপ্রভুর কথানুসারে, তারা খাওয়ার পরেও আরও কিছু খাবার বেঁচে গেল।

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