< 2 कुरिन्थियों 9 >
1 वास्तव में यह आवश्यक ही नहीं कि मैं पवित्र लोगों में अपनी सेवकाई के विषय में तुम्हें कुछ लिखूं
पवित्रलोकानाम् उपकारार्थकसेवामधि युष्मान् प्रति मम लिखनं निष्प्रयोजनं।
2 क्योंकि सहायता के लिए तुम्हारी तैयारी से मैं भली-भांति परिचित हूं. मकेदोनियावासियों के सामने मैं इसका गर्व भी करता रहा हूं कि आखाया प्रदेश की कलीसिया पिछले एक वर्ष से इसके लिए तैयार है और उनमें से अधिकांश को तुम्हारे उत्साह से प्रेरणा प्राप्त हुई.
यत आखायादेशस्था लोका गतवर्षम् आरभ्य तत्कार्य्य उद्यताः सन्तीति वाक्येनाहं माकिदनीयलोकानां समीपे युष्माकं याम् इच्छुकतामधि श्लाघे ताम् अवगतोऽस्मि युष्माकं तस्माद् उत्साहाच्चापरेषां बहूनाम् उद्योगो जातः।
3 मैंने कुछ साथी विश्वासियों को तुम्हारे पास इसलिये भेजा है कि तुम्हारे विषय में मेरा गर्व करना खोखला न ठहरे, परंतु वे स्वयं तुम्हें सेवा के लिए तैयार पाएं—ठीक जैसा मैं उनसे कहता रहा हूं.
किञ्चैतस्मिन् युष्मान् अध्यस्माकं श्लाघा यद् अतथ्या न भवेत् यूयञ्च मम वाक्यानुसाराद् यद् उद्यतास्तिष्ठेत तदर्थमेव ते भ्रातरो मया प्रेषिताः।
4 ऐसा न हो कि जब कोई मकेदोनियावासी मेरे साथ आए और तुम्हें दान देने के लिए तैयार न पाए तो हमें तुम्हारे प्रति ऐसे आश्वस्त होने के कारण लज्जित होना पड़े—तुम्हारी अपनी लज्जा तो एक अलग विषय होगा.
यस्मात् मया सार्द्धं कैश्चित् माकिदनीयभ्रातृभिरागत्य यूयमनुद्यता इति यदि दृश्यते तर्हि तस्माद् दृढविश्वासाद् युष्माकं लज्जा जनिष्यत इत्यस्माभि र्न वक्तव्यं किन्त्वस्माकमेव लज्जा जनिष्यते।
5 इसलिये मैंने यह आवश्यक समझा कि मैं साथी विश्वासियों से यह विनती करूं कि वे पहले ही तुम्हारे पास चले जाएं तथा उस प्रतिज्ञा की गई भेंट का प्रबंध कर लें, जो तुमने उदारता के भाव में दी है, न कि कंजूसी के भाव में.
अतः प्राक् प्रतिज्ञातं युष्माकं दानं यत् सञ्चितं भवेत् तच्च यद् ग्राहकतायाः फलम् अभूत्वा दानशीलताया एव फलं भवेत् तदर्थं ममाग्रे गमनाय तत्सञ्चयनाय च तान् भ्रातृन् आदेष्टुमहं प्रयोजनम् अमन्ये।
6 याद रहे: वह, जो थोड़ा बोता है, थोड़ा ही काटेगा तथा वह, जो बहुत बोता है, बहुत काटेगा.
अपरमपि व्याहरामि केनचित् क्षुद्रभावेन बीजेषूप्तेषु स्वल्पानि शस्यानि कर्त्तिष्यन्ते, किञ्च केनचिद् बहुदभवेन बीजेषूप्तेषु बहूनि शस्यानि कर्त्तिष्यन्ते।
7 इसलिये जिसने अपने मन में जितना भी देने का निश्चय किया है, उतना ही दे—बिना इच्छा के या विवशता में नहीं क्योंकि परमेश्वर को प्रिय वह है, जो आनंद से देता है.
एकैकेन स्वमनसि यथा निश्चीयते तथैव दीयतां केनापि कातरेण भीतेन वा न दीयतां यत ईश्वरो हृष्टमानसे दातरि प्रीयते।
8 परमेश्वर समर्थ हैं कि वह तुम्हें बहुत अधिक अनुग्रह प्रदान करें कि तुम्हें सब कुछ पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता रहे और हर भले काम के लिए तुम्हारे पास अधिकता में हो,
अपरम् ईश्वरो युष्मान् प्रति सर्व्वविधं बहुप्रदं प्रसादं प्रकाशयितुम् अर्हति तेन यूयं सर्व्वविषये यथेष्टं प्राप्य सर्व्वेण सत्कर्म्मणा बहुफलवन्तो भविष्यथ।
9 जैसा कि पवित्र शास्त्र का लेख है: उन्होंने कंगालों को उदारतापूर्वक दान दिया; उनकी सच्चाई और धार्मिकता युगानुयुग बनी रहती है. (aiōn )
एतस्मिन् लिखितमास्ते, यथा, व्ययते स जनो रायं दुर्गतेभ्यो ददाति च। नित्यस्थायी च तद्धर्म्मः (aiōn )
10 वह परमेश्वर, जो किसान के लिए बीज का तथा भोजन के लिए आहार का इंतजाम करते हैं, वही बोने के लिए तुम्हारे लिए बीज का इंतजाम तथा विकास करेंगे तथा तुम्हारी धार्मिकता की उपज में उन्नति करेंगे.
बीजं भेजनीयम् अन्नञ्च वप्त्रे येन विश्राण्यते स युष्मभ्यम् अपि बीजं विश्राण्य बहुलीकरिष्यति युष्माकं धर्म्मफलानि वर्द्धयिष्यति च।
11 अपनी अपूर्व उदारता के लिए तुम प्रत्येक पक्ष में धनी किए जाओगे. हमारे माध्यम से तुम्हारी यह उदारता परमेश्वर के प्रति धन्यवाद का विषय हो रही है.
तेन सर्व्वविषये सधनीभूतै र्युष्माभिः सर्व्वविषये दानशीलतायां प्रकाशितायाम् अस्माभिरीश्वरस्य धन्यवादः साधयिष्यते।
12 यह सेवकाई न केवल पवित्र लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने का ही साधन है परंतु परमेश्वर के प्रति उमड़ता हुआ धन्यवाद का भाव भी है.
एतयोपकारसेवया पवित्रलोकानाम् अर्थाभावस्य प्रतीकारो जायत इति केवलं नहि किन्त्वीश्चरस्य धन्यवादोऽपि बाहुल्येनोत्पाद्यते।
13 तुम्हारी इस सेवकाई को प्रमाण मानते हुए वे परमेश्वर की महिमा करेंगे क्योंकि तुमने मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार को आज्ञा मानते हुए ग्रहण किया और तुम सभी के प्रति उदार मन के हो.
यत एतस्माद् उपकारकरणाद् युष्माकं परीक्षितत्वं बुद्ध्वा बहुभिः ख्रीष्टसुसंवादाङ्गीकरणे युष्माकम् आज्ञाग्राहित्वात् तद्भागित्वे च तान् अपरांश्च प्रति युष्माकं दातृत्वाद् ईश्वरस्य धन्यवादः कारिष्यते,
14 तुम पर परमेश्वर के अत्यधिक अनुग्रह को देख वे तुम्हारे लिए बड़ी लगन से प्रार्थना करेंगे.
युष्मदर्थं प्रार्थनां कृत्वा च युष्मास्वीश्वरस्य गरिष्ठानुग्रहाद् युष्मासु तैः प्रेम कारिष्यते।
15 परमेश्वर को उनके अवर्णनीय वरदान के लिए आभार!
अपरम् ईश्वरस्यानिर्व्वचनीयदानात् स धन्यो भूयात्।