< 2 कुरिन्थियों 3 >

1 क्या हमने दोबारा अपनी आत्मप्रशंसा करनी शुरू कर दी? या कुछ अन्य व्यक्तियों के समान हमें भी तुमसे या तुम्हारे लिए सिफारिश के पत्रों की ज़रूरत है?
Are we beginning to commend ourselves again? Do we need, as some do, letters of recommendation to you or letters of recommendation from you?
2 हमारे पत्र तो तुम स्वयं हो—हमारे हृदयों पर लिखे हुए—जो सबके द्वारा पहचाने तथा पढ़े जा सकते हो.
You are our letter, written on our hearts, known and read by all.
3 यह साफ़ ही है कि मसीह का पत्र तुम हो—हमारी सेवकाई का परिणाम—जिसे स्याही से नहीं परंतु जीवित परमेश्वर के आत्मा से पत्थर की पटिया पर नहीं परंतु मनुष्य के हृदय की पटिया पर लिखा गया है.
You show that you are a letter from Christ, delivered by us, written not with ink, but with the Spirit of the living God, not on stone tablets, but on tablets of human hearts.
4 हमें मसीह के द्वारा परमेश्वर में ऐसा ही विश्वास है.
Such is the confidence that we have in God through Christ.
5 स्थिति यह नहीं कि हम यह दावा करें कि हम अपने आप में कुछ कर सकने के योग्य हैं—परमेश्वर हमारी योग्यता का स्रोत हैं,
Not that we are competent in and of ourselves to claim that anything comes from us, but our competence comes from God.
6 जिन्होंने हमें नई वाचा का काम करने योग्य सेवक बनाया. यह वाचा लिखी हुई व्यवस्था की नहीं परंतु आत्मा की है. लिखी हुई व्यवस्था मृत्यु को जन्म देती है मगर आत्मा जीवन देती है.
He has made us competent to be ministers of a new covenant, not of the letter, but of the Spirit. For the letter kills, but the Spirit gives life.
7 यदि पत्थर की पटिया पर खोदे गए अक्षरों में अंकित मृत्यु की वाचा इतनी तेजोमय थी कि इस्राएल के वंशज मोशेह के मुख पर अपनी दृष्टि स्थिर रख पाने में असमर्थ थे—यद्यपि यह तेज धीरे धीरे कम होता जा रहा था.
Now if the ministry of death, which was engraved in letters on stone, came with glory, so that the sons of Israel could not gaze at the face of Moses because of its glory (a glory that was fading away),
8 तो फिर आत्मा की वाचा और कितनी अधिक तेजोमय न होगी?
will not the ministry of the Spirit be even more glorious?
9 यदि दंड-आज्ञा की वाचा का प्रताप ऐसा है तो धार्मिकता की वाचा का प्रताप और कितना अधिक बढ़कर न होगा?
For if the ministry of condemnation was glorious, the ministry of righteousness abounds in glory even more.
10 सच तो यह है कि इस वर्तमान प्रताप के सामने वह पहले का प्रताप, प्रताप रह ही नहीं गया.
For what was once glorious now has no glory in comparison with the glory that surpasses it.
11 यदि उसका तेज ऐसा था, जो लगातार कम हो रहा था, तो उसका तेज, जो हमेशा स्थिर है, और कितना अधिक बढ़कर न होगा!
And if what was fading away came with glory, what remains will be even more glorious.
12 इसी आशा के कारण हमारी बातें बिना डर की है.
Therefore, since we have such a hope, we act with great boldness.
13 हम मोशेह के समान भी नहीं, जो अपना मुख इसलिये ढका रखते थे कि इस्राएल के लोग उस धीरे धीरे कम होते हुए तेज को न देख पाएं.
We are not like Moses, who would put a veil over his face so that the sons of Israel would not gaze at the end of what was fading away.
14 वास्तव में इस्राएल के लोगों के मन मंद हो गए थे. पुराना नियम देने के अवसर पर आज भी वही पर्दा पड़ा रहता है क्योंकि यह पर्दा सिर्फ मसीह में हटाया जाता है.
But their minds were hardened, for to this day the same veil remains unlifted when the old covenant is read. Only in Christ is this veil taken away.
15 हां, आज भी जब कभी मोशेह का ग्रंथ पढ़ा जाता है, उनके हृदय पर पर्दा पड़ा रहता है.
But to this day, when Moses is read, a veil lies over their hearts.
16 यह पर्दा उस समय हटता है, जब कोई व्यक्ति प्रभु की ओर मन फिराता है.
But whenever someone turns to the Lord, the veil is taken away.
17 यही प्रभु वह आत्मा हैं तथा जहां कहीं प्रभु का आत्मा मौजूद हैं, वहां स्वतंत्रता है
Now the Lord is the Spirit, and where the Spirit of the Lord is, there is freedom.
18 और हम, जो खुले मुख से प्रभु की महिमा निहारते हैं, धीरे धीरे बढ़ती हुई महिमा के साथ उनके स्वरूप में बदलते जा रहे हैं. यह महिमा प्रभु से, जो आत्मा हैं, बाहर निकलती है.
And we all, with unveiled faces reflecting the glory of the Lord, are being transformed into the same image from one degree of glory to another; this comes from the Lord, who is the Spirit.

< 2 कुरिन्थियों 3 >