< 2 इतिहास 6 >

1 तब शलोमोन ने यह कहा: “याहवेह ने यह प्रकट किया है कि वह घने बादल में रहना सही समझते हैं.
তখন শলোমন বললেন, “সদাপ্রভু বলেছেন যে তিনি ঘন মেঘের মাঝে বসবাস করবেন;
2 आपके लिए मैंने एक ऐसा भव्य भवन बनवाया है कि आप उसमें हमेशा रहें.”
আমি তোমার জন্য এক দর্শনীয় মন্দির তৈরি করেছি, সেটি এমন এক স্থান, যেখানে তুমি চিরকাল বসবাস করবে।”
3 यह कहकर राजा ने सारी इस्राएली प्रजा की ओर होकर उनको आशीर्वाद दिया, इस अवसर पर सारी इस्राएली सभा खड़ी हुई थी.
ইস্রায়েলের সমগ্র জনসমাজ যখন সেখানে দাঁড়িয়েছিল, রাজামশাই তখন তাদের দিকে মুখ ফিরিয়ে তাদের আশীর্বাদ করলেন।
4 राजा ने यह कहा: “धन्य हैं याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर! उन्होंने मेरे पिता दावीद से अपने मुख से कहे गए इस वचन को अपने हाथों से पूरा कर दिया है
পরে তিনি বললেন: “ইস্রায়েলের ঈশ্বর সেই সদাপ্রভুর গৌরব হোক, যিনি নিজের হাতে তাঁর সেই প্রতিজ্ঞাটি পূরণ করেছেন, যেটি তিনি নিজের মুখে আমার বাবা দাউদের কাছে করলেন। কারণ তিনি বললেন,
5 ‘जिस दिन मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र देश से बाहर लाया हूं, उसी दिन से मैंने इस्राएल के सभी गोत्रों में से ऐसे किसी भी नगर को नहीं चुना, जहां एक ऐसा भवन बनाया जाए जहां मेरी महिमा का वास हो; वैसे ही मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का प्रधान होने के लिए किसी व्यक्ति को भी नहीं चुना;
‘যেদিন আমি আমার প্রজাদের মিশর দেশ থেকে বের করে এনেছিলাম, সেদিন থেকে না একটি মন্দির নির্মাণ করার জন্য আমি ইস্রায়েলে কোনও বংশের একটি নগর মনোনীত করেছি, যেন সেখানে আমার নাম বজায় থাকে, না আমি আমার প্রজা ইস্রায়েলের উপর শাসনকর্তারূপে কাউকে মনোনীত করেছি।
6 हां, मैंने येरूशलेम को चुना कि वहां मेरी महिमा ठहरे और मैंने दावीद को चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का राजा हो.’
কিন্তু আমার নাম বজায় রাখার জন্য এখন আমি জেরুশালেমকে মনোনীত করেছি এবং আমার প্রজা ইস্রায়েলকে শাসন করার জন্য আমি দাউদকে মনোনীত করেছি।’
7 “मेरे पिता दावीद की इच्छा थी कि वह याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की महिमा के लिए भवन बनवाएं.
“ইস্রায়েলের ঈশ্বর সদাপ্রভুর নামে একটি মন্দির নির্মাণ করার বাসনা আমার বাবা দাউদের অন্তরে ছিল।
8 किंतु याहवेह ने मेरे पिता दावीद से कहा, ‘तुम्हारे मन में मेरे लिए भवन के निर्माण का आना एक उत्तम विचार है,
কিন্তু সদাপ্রভু আমার বাবা দাউদকে বললেন, ‘আমার নামে একটি মন্দির নির্মাণ করার কথা ভেবে তুমি ভালোই করেছ।
9 फिर भी, इस भवन को तुम नहीं, बल्कि वह पुत्र, जो तुमसे पैदा होगा, मेरी महिमा के लिए भवन बनाएगा.’
তবে, তুমি সেই মন্দির নির্মাণ করবে না, কিন্তু তোমার সেই ছেলে, যে তোমারই রক্তমাংস—সেই আমার নামে একটি মন্দির নির্মাণ করবে।’
10 “आज याहवेह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है. क्योंकि अब, जैसी याहवेह ने प्रतिज्ञा की थी, मैं दावीद मेरे पिता का उत्तराधिकारी बनकर इस्राएल के राज सिंहासन पर बैठा हूं, और मैंने याहवेह इस्राएल के परमेश्वर की महिमा के लिए इस भवन को बनवाया है.
“সদাপ্রভু তাঁর করা প্রতিজ্ঞাটি পূরণ করেছেন: আমি আমার বাবা দাউদের স্থলাভিষিক্ত হয়েছি এবং সদাপ্রভুর প্রতিজ্ঞানুসারে এখন আমি ইস্রায়েলের সিংহাসনে বসেছি, এবং ইস্রায়েলের ঈশ্বর সদাপ্রভুর নামের উদ্দেশে আমি মন্দিরটি নির্মাণ করেছি।
11 मैंने इस भवन में वह संदूक स्थापित कर दिया है, जिसमें याहवेह की वह वाचा है, जो उन्होंने इस्राएल के वंश से स्थापित की थी.”
সেখানে আমি সেই সিন্দুকটি রেখেছি, যেটির মধ্যে সদাপ্রভুর সেই নিয়মটি রাখা আছে, যা তিনি ইস্রায়েলী জনতার জন্য স্থাপন করলেন।”
12 इसके बाद शलोमोन सारी इस्राएल की सभा के देखते हाथों को फैलाकर याहवेह की वेदी के सामने खड़े हो गए.
পরে শলোমন ইস্রায়েলের সমগ্র জনসমাজের সামনে সদাপ্রভুর উপস্থিতিতে উঠে দাঁড়িয়েছিলেন এবং তাঁর দু-হাত মেলে ধরেছিলেন।
13 शलोमोन ने सवा दो मीटर लंबा, सवा दो मीटर चौड़ा और एक मीटर पैंतीस सेंटीमीटर ऊंचा कांसे का एक मंच बनाया था, जिसे उन्होंने आंगन के बीच में स्थापित कर रखा था. वह इसी पर जा खड़े हुए, उन्होंने इस्राएल की सारी प्रजा के सामने इस पर घुटने टेक अपने हाथ स्वर्ग की दिशा में फैला दिए.
ইত্যবসরে তিনি আবার 2.3 মিটার লম্বা, 2.3 মিটার চওড়া ও 1.4 মিটার উঁচু ব্রোঞ্জের একটি মঞ্চ তৈরি করলেন, এবং সেটি বাইরের দিকের উঠোনের মাঝখানে নিয়ে গিয়ে রেখেছিলেন। সেই মঞ্চে দাঁড়িয়ে তিনি ইস্রায়েলের সমগ্র জনসমাজের সামনে নতজানু হলেন এবং স্বর্গের দিকে দু-হাত প্রসারিত করে দিলেন।
14 तब शलोमोन ने विनती की: “याहवेह इस्राएल के परमेश्वर, आपके तुल्य परमेश्वर न तो कोई ऊपर स्वर्ग में है और न यहां नीचे धरती पर, जो अपने उन सेवकों पर अपना अपार प्रेम दिखाते हुए अपनी वाचा को पूर्ण करता है, जिनका जीवन आपके प्रति पूरी तरह समर्पित है.
তিনি বললেন: “হে ইস্রায়েলের ঈশ্বর সদাপ্রভু, স্বর্গে বা মর্ত্যে তোমার মতো এমন কোনও ঈশ্বর আর কেউ নেই—তুমি তোমার সেই দাসদের কাছে করা তোমার প্রেমের নিয়ম রক্ষা করে থাকো, যারা সর্বান্তঃকরণে তোমার পথে চলে।
15 आपने अपने सेवक, मेरे पिता दावीद को जो वचन दिया था, उसे पूरा किया है. वस्तुतः आज आपने अपने शब्द को सच्चाई में बदल दिया है. आपके सेवक दावीद से की गई अपनी वह प्रतिज्ञा पूरी करें, जो आपने उनसे इन शब्दों में की थी.
আমার বাবা, তথা তোমার দাস দাউদের কাছে করা প্রতিজ্ঞাটি তুমি পূরণ করেছ; নিজের মুখেই তুমি সেই প্রতিজ্ঞাটি করলে এবং নিজের হাতেই তুমি তা রক্ষাও করেছ—যেমনটি কি না আজ দেখা যাচ্ছে।
16 “तब अब इस्राएल के परमेश्वर, याहवेह, आपके सेवक मेरे पिता दावीद के लिए अपनी यह प्रतिज्ञा पूरी कीजिए. ‘मेरे सामने इस्राएल के सिंहासन पर तुम्हारे उत्तराधिकारी की कोई कमी न होगी, सिर्फ यदि तुम्हारे पुत्र सावधानीपूर्वक मेरे सामने अपने आचरण के विषय में सच्चे रहें—ठीक जिस प्रकार तुम्हारा आचरण मेरे सामने सच्चा रहा है.’
“এখন হে ইস্রায়েলের ঈশ্বর সদাপ্রভু, তোমার দাস ও আমার বাবা দাউদের কাছে তোমার করা সেই প্রতিজ্ঞাটি পূরণ করো, যে প্রতিজ্ঞায় তুমি বললে, ‘শুধু যদি তোমার বংশধরেরা আমার নিয়মানুসারে আমার সামনে চলার জন্য একটু সতর্ক হয়ে তোমার মতো সবকিছু করে, তবে আমার সামনে ইস্রায়েলের সিংহাসনে বসার জন্য তোমার কোনও উত্তরাধিকারীর অভাব হবে না।’
17 इसलिये अब, याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो जाए, जो आपने अपने सेवक दावीद से की है.
আর এখন, হে ইস্রায়েলের ঈশ্বর সদাপ্রভু, তোমার দাস দাউদের কাছে করা তোমার প্রতিজ্ঞার সেই কথাটি যেন সত্যি হয়।
18 “मगर क्या यह संभव है कि परमेश्वर पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच निवास करें? देखिए, आकाश और ऊंचे स्वर्ग तक आपको अपने में समा नहीं सकते; तो फिर यह भवन क्या है, जिसको मैंने बनवाया है?
“কিন্তু ঈশ্বর কি সত্যিই পৃথিবীতে মানুষের সাথে বসবাস করবেন? আকাশমণ্ডল, এমনকি স্বর্গের স্বর্গও তাঁকে ধারণ করতে পারে না। তবে আমার নির্মাণ করা এই মন্দিরই বা কেমন করে তোমাকে ধারণ করবে!
19 फिर भी अपने सेवक की विनती और प्रार्थना का ध्यान रखिए. याहवेह, मेरे परमेश्वर, इस दोहाई को, इस गिड़गिड़ाहट को सुन लीजिए जो आज आपका सेवक आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है.
তবুও হে আমার ঈশ্বর সদাপ্রভু, তোমার দাসের প্রার্থনায় ও দয়া লাভের জন্য তার করা এই অনুরোধের প্রতি মনোযোগ দাও। তোমার উপস্থিতিতে তোমার এই দাস যে ক্রন্দন ও প্রার্থনা করছে, তা তুমি শোনো।
20 कि यह भवन दिन-रात हमेशा आपकी दृष्टि में बना रहे, उस स्थान पर, जिसके बारे में आपने कहा था कि आप वहां अपनी महिमा की स्थापना करेंगे, कि आप उस प्रार्थना पर ध्यान दें, जो आपका सेवक इसकी ओर फिरकर करेगा.
দিনরাত এই মন্দিরের প্রতি, এই যে স্থানটির বিষয়ে তুমি বলেছ যে তুমি সেখানে তোমার নাম বজায় রাখবে, তোমার চোখদুটি যেন খোলা থাকে। এই স্থানটির দিকে তাকিয়ে করা তোমার দাসের প্রার্থনা যেন তুমি শুনতে পাও।
21 अपने सेवक और अपनी प्रजा इस्राएल की विनतियों को सुन लीजिए जब वे इस स्थान की ओर मुंह कर आपसे करते हैं, और स्वर्ग, अपने घर से इसे सुनें और जब आप यह सुनें, आप उन्हें क्षमा प्रदान करें.
তোমার এই দাস ও তোমার প্রজা ইস্রায়েল যখন এই স্থানটির দিকে তাকিয়ে প্রার্থনা করবে তখন তুমি তাদের মিনতি শুনো। স্বর্গ থেকে, তোমার সেই বাসস্থান থেকে তুমি তা শুনো; এবং শুনে তাদের ক্ষমাও কোরো।
22 “यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी के विरुद्ध पाप करता है, और उसे शपथ लेने के लिए विवश किया जाता है और वह आकर इस भवन में आपकी वेदी के सामने शपथ लेता है,
“যখন কেউ তার প্রতিবেশীর প্রতি কোনও অন্যায় করবে ও তাকে শপথ করতে বলা হবে এবং সে এই মন্দিরে রাখা তোমার এই যজ্ঞবেদির সামনে এসে শপথ করবে,
23 तब आप स्वर्ग से सुनें, और अपने सेवकों का न्याय करें, दुराचारी का दंड उसके दुराचार को उसी पर प्रभावी करने के द्वारा दें और सदाचारी को उसके सदाचार का प्रतिफल देने के द्वारा.
তখন তুমি স্বর্গ থেকে তা শুনে সেইমতোই কাজ কোরো। তোমার দাসদের বিচার কোরো, দোষীকে শাস্তি দিয়ো ও তার কৃতকর্মের ফল তার মাথায় চাপিয়ে দিয়ো, এবং নিরপরাধের পক্ষসমর্থন করে, তার নিষ্কলুষতা অনুসারে তার প্রতি আচরণ কোরো।
24 “यदि आपकी प्रजा इस्राएल शत्रुओं द्वारा इसलिये हार जाए, कि उन्होंने आपके विरुद्ध पाप किया है और तब वे लौटकर आपकी ओर फिरते हैं, आपके प्रति दोबारा सच्चे होकर इस भवन में आपके सामने आकर विनती और प्रार्थना करते हैं,
“তোমার প্রজা ইস্রায়েল যখন তোমার বিরুদ্ধে পাপ করার কারণে শত্রুর কাছে পরাজিত হবে ও যখন তারা আবার তোমার কাছে ফিরে এসে তোমার নামের প্রশংসা করবে, এবং এই মন্দিরে তোমার সামনে এসে প্রার্থনা ও মিনতি উৎসর্গ করবে,
25 तब स्वर्ग से यह सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा कर दीजिए और उन्हें उस देश में लौटा ले आइए, जो आपने उन्हें और उनके पूर्वजों को दिया है.
তখন তুমি স্বর্গ থেকে তা শুনো ও তোমার প্রজা ইস্রায়েলের পাপ ক্ষমা কোরো এবং তুমি তাদের ও তাদের পূর্বপুরুষদের যে দেশ দিয়েছিলে, সেই দেশে তাদের ফিরিয়ে এনো।
26 “जब आप बारिश इसलिये रोक दें कि आपकी प्रजा ने आपके विरुद्ध पाप किया है और फिर, जब वे इस स्थान की ओर फिरकर प्रार्थना करें और आपके प्रति सच्चे हो, जब आप उन्हें सताएं, और वे पाप से फिर जाएं;
“তোমার প্রজারা তোমার বিরুদ্ধে পাপ করার কারণে যখন আকাশের দ্বার রুদ্ধ হয়ে যাবে ও বৃষ্টি হবে না, আর যখন তারা এই স্থানটির দিকে তাকিয়ে প্রার্থনা করবে ও তোমার নামের প্রশংসা করবে এবং তুমি যেহেতু তাদের কষ্ট দিয়েছ, তাই তারা তাদের পাপপথ থেকে ফিরে আসবে,
27 तब स्वर्ग में अपने सेवकों और अपनी प्रजा इस्राएल की दोहाई सुनकर उनका पाप क्षमा कर दें. वस्तुतः आप उन्हें उन अच्छे मार्ग पर चलने की शिक्षा दें. फिर अपनी भूमि पर बारिश भेजें—उस भूमि पर जिसे आपने उत्तराधिकार के रूप में अपनी प्रजा को प्रदान किया है.
তখন স্বর্গ থেকে তুমি তা শুনো ও তোমার দাসদের, তোমার প্রজা ইস্রায়েলের পাপ ক্ষমা কোরো। সঠিক জীবনযাপনের পথ তুমি তাদের শিক্ষা দিয়ো, এবং যে দেশটি তুমি তোমার প্রজাদের এক উত্তরাধিকাররূপে দিয়েছ, সেই দেশে তুমি বৃষ্টি পাঠিয়ো।
28 “यदि देश में अकाल आता है, यदि यहां महामारी फैली हुई हो, यदि यहां उपज में गेरुआ अथवा फफूंदी लगे, यदि यहां टिड्डियों अथवा टिड्डों का हमला हो जाए, यदि उनके शत्रु उन्हें उन्हीं के देश में उन्हीं के नगरों में घेर लें, यहां कोई भी महामारी या रोग का हमला हो,
“যখন দেশে দুর্ভিক্ষ বা মহামারি দেখা দেবে, অথবা ফসল ক্ষেতে মড়ক লাগবে বা ছাতারোগ লাগবে, পঙ্গপাল বা ফড়িং হানা দেবে, অথবা শত্রুরা তাদের যে কোনো নগরে তাদের যখন অবরুদ্ধ করে রাখবে, যখন এরকম কোনও বিপত্তি বা রোগজ্বালার প্রকোপ পড়বে,
29 किसी व्यक्ति या आपकी प्रजा इस्राएल के द्वारा उनके दुःख और पीड़ा की स्थिति में इस भवन की ओर हाथ फैलाकर कैसी भी प्रार्थना या विनती की जाए,
এবং তোমার প্রজা ইস্রায়েলের মধ্যে কেউ যদি তখন প্রার্থনা বা মিনতি করে—তাদের যন্ত্রণা ও ব্যথার বিষয়ে সচেতন হয়, ও এই মন্দিরের দিকে তাদের হাতগুলি প্রসারিত করে—
30 आप अपने घर, स्वर्ग से इसे सुनिए और क्षमा दीजिए और हर एक को, जिसके मन को आप भली-भांति जानते हैं, क्योंकि सिर्फ आपके ही सामने मानव का मन उघाड़ा रहता है, उसके आचरण के अनुसार प्रतिफल दीजिए,
তবে তখন তুমি স্বর্গ থেকে, তোমার বাসস্থান থেকে তা শুনো। তাদের ক্ষমা কোরো, ও প্রত্যেকের সাথে তাদের কৃতকর্মানুসারে আচরণ কোরো, যেহেতু তুমি তো তাদের অন্তর জানো (কারণ একমাত্র তুমিই মানুষের হৃদয়ের খবর রাখো),
31 कि वे आपके प्रति इस देश में रहते हुए जो आपने उनके पूर्वजों को प्रदान किया है, आजीवन श्रद्धा बनाए रखें, और अपने जीवन भर आपकी नीतियों का पालन करते रहें.
যেন তারা তোমাকে ভয় করে ও যে দেশটি তুমি আমাদের পূর্বপুরুষদের দিয়েছিলে, সেই দেশে বেঁচে থাকাকালীন তারা যেন সবসময় তোমার প্রতি বাধ্যতা দেখিয়ে চলে।
32 “इसी प्रकार जब कोई परदेशी, जो आपकी प्रजा इस्राएल में से नहीं है, आपकी महिमा आपके महाकार्य और आपकी महाशक्ति के विषय में सुनकर वे यहां ज़रूर आएंगे; तब, जब वह विदेशी यहां आकर इस भवन की ओर होकर प्रार्थना करे,
“যে তোমার প্রজা ইস্রায়েলের অন্তর্ভুক্ত নয়, এমন কোনও বিদেশি তোমার মহানামের এবং তোমার পরাক্রমী হাতের ও তোমার প্রসারিত বাহুর কথা শুনে যখন দূরদেশ থেকে আসবে—তারা যখন এসে এই মন্দিরের দিকে তাকিয়ে প্রার্থনা করবে,
33 तब अपने आवास स्वर्ग में सुनकर उन सभी विनतियों को पूरा करें, जिसकी याचना उस परदेशी ने की है, कि पृथ्वी के सभी मनुष्यों को आपकी महिमा का ज्ञान हो जाए, उनमें आपके प्रति भय जाग जाए—जैसा आपकी प्रजा इस्राएल में है और उन्हें यह अहसास हो जाए कि यह आपकी महिमा में मेरे द्वारा बनाया गया भवन है.
তখন তুমি স্বর্গ থেকে, তোমার সেই বাসস্থান থেকে তা শুনো। সেই বিদেশি তোমার কাছে যা চাইবে, তা তাকে দিয়ো, যেন পৃথিবীর সব মানুষজন তোমার নাম জানতে পারে ও তোমাকে ভয় করে, ঠিক যেভাবে তোমার নিজস্ব প্রজা ইস্রায়েল করে এসেছে, এবং তারা যেন এও জানতে পারে যে এই যে ভবনটি আমি তৈরি করেছি, তা তোমার নাম বহন করে চলেছে।
34 “जब आपकी प्रजा उनके शत्रुओं से युद्ध के लिए आपके द्वारा भेजी जाए-आप उन्हें चाहे कहीं भी भेजें-वे आपके ही द्वारा चुने इस नगर और इस भवन की ओर, जिसको मैंने बनवाया है, मुख करके प्रार्थना करें,
“তোমার প্রজাদের তুমি যে কোনো স্থানে পাঠাও না কেন, তারা যখন তাদের শত্রুদের বিরুদ্ধে যুদ্ধে যাবে, এবং যখন তারা তোমার মনোনীত এই নগরটির ও তোমার নামে আমি এই যে মন্দিরটি নির্মাণ করেছি, সেটির দিকে তাকিয়ে তোমার কাছে প্রার্থনা করবে,
35 तब स्वर्ग में उनकी प्रार्थना और अनुरोध सुनकर उनके पक्ष में निर्णय करें.
তখন তুমি স্বর্গ থেকে তাদের প্রার্থনা ও মিনতি শুনো, এবং তাদের পক্ষসমর্থন কোরো।
36 “जब वे आपके विरुद्ध पाप करें-वास्तव में तो कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं जिसने पाप किया ही न हो और आप उन पर क्रोधित हो जाएं और उन्हें किसी शत्रु के अधीन कर दें, कि शत्रु उन्हें बंदी बनाकर किसी दूर या पास के देश में ले जाए;
“তারা যখন তোমার বিরুদ্ধে পাপ করবে—কারণ এমন কেউ নেই, যে পাপ করে না—এবং তুমি তাদের প্রতি ক্রুদ্ধ হবে ও তাদের সেই শত্রুদের হাতে সঁপে দেবে, যারা তাদের দূর বা নিকটবর্তী কোনও দেশে বন্দি করে নিয়ে যাবে;
37 फिर भी यदि वे उस बंदिता के देश में चेत कर पश्चाताप करें, और अपने बंधुआई के देश में यह कहते हुए दोहाई दें, ‘हमने पाप किया है, हमने कुटिलता और दुष्टता भरे काम किए हैं’;
এবং সেই দেশে বন্দি জীবন কাটাতে কাটাতে যদি তাদের মন পরিবর্তন হয়, ও তারা অনুতাপ করে ও তাদের সেই বন্দিদশার দেশে থাকতে থাকতেই যদি তারা তোমাকে অনুরোধ জানিয়ে বলে, ‘আমরা পাপ করেছি, আমরা অন্যায় করেছি ও দুষ্টতামূলক আচরণ করেছি’;
38 यदि वे बंधुआई के उस देश में, जहां उन्हें ले जाया गया है, सच्चे हृदय और संपूर्ण प्राणों से इस देश की ओर, जिसे आपने उनके पूर्वजों को दिया है, उस नगर की ओर जिसे आपने चुना है और इस भवन की ओर, जिसको मैंने आपके लिए बनवाया है, मुंह करके प्रार्थना करें;
আর যদি তারা যেখানে তাদের নিয়ে যাওয়া হবে, সেই বন্দিদশার দেশে থেকেই মনপ্রাণ ঢেলে দিয়ে তোমার কাছে ফিরে আসে, ও তুমি তাদের পূর্বপুরুষদের যে দেশটি দিয়েছ, সেই দেশের দিকে তাকিয়ে, ও যে নগরটিকে তুমি মনোনীত করেছ, সেটির দিকে তাকিয়ে, এবং তোমার নামে আমি যে মন্দিরটি নির্মাণ করেছি, সেটির দিকে তাকিয়ে প্রার্থনা করে;
39 तब अपने घर स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और विनती सुनिए और वही होने दीजिए, जो सही है और अपनी प्रजा को, जिसने आपके विरुद्ध पाप किया है, क्षमा कर दीजिए.
তবে স্বর্গ থেকে, তোমার বাসস্থান থেকে তুমি তাদের করা প্রার্থনা ও মিনতি শুনো, এবং তাদের পক্ষসমর্থন কোরো। তোমার সেই প্রজাদের ক্ষমাও কোরো, যারা তোমার বিরুদ্ধে পাপ করেছে।
40 “अब, मेरे परमेश्वर, मेरी विनती है कि इस स्थान में की गई प्रार्थना के प्रति आपकी आंखें खुली और आपके कान सचेत बने रहें.
“এখন, হে আমার ঈশ্বর, এই স্থানে যে প্রার্থনাটি উৎসর্গ করা হচ্ছে, তার প্রতি যেন তোমার চোখ খোলা থাকে ও তোমার কান সজাগ থাকে।
41 “इसलिये अब, याहवेह परमेश्वर, खुद आप और आपकी शक्ति संदूक,
“হে ঈশ্বর সদাপ্রভু, এখন ওঠো ও তোমার বিশ্রামস্থানে এসো,
42 याहवेह परमेश्वर अपने अभिषिक्त की प्रार्थना अनसुनी न कीजिए.
হে ঈশ্বর সদাপ্রভু, তোমার অভিষিক্ত জনকে অগ্রাহ্য কোরো না।

< 2 इतिहास 6 >