< 1 शमूएल 25 >

1 शमुएल की मृत्यु हो गई. सारा इस्राएलियों ने एकत्र होकर उनके लिए विलाप किया; उन्हें उनके गृहनगर रामाह में गाड़ दिया. इसके बाद दावीद पारान के निर्जन प्रदेश में जाकर रहने लगे.
וַיָּ֣מָת שְׁמוּאֵ֔ל וַיִּקָּבְצ֤וּ כָל־יִשְׂרָאֵל֙ וַיִּסְפְּדוּ־ל֔וֹ וַיִּקְבְּרֻ֥הוּ בְּבֵית֖וֹ בָּרָמָ֑ה וַיָּ֣קָם דָּוִ֔ד וַיֵּ֖רֶד אֶל־מִדְבַּ֥ר פָּארָֽן׃ ס
2 कालेब के कुल का एक व्यक्ति था, वह माओन नगर का निवासी था. कर्मेल नगर के निकट वह एक भूखण्ड का स्वामी था. वह बहुत ही धनी व्यक्ति था. उसके तीन हज़ार भेड़ें, तथा एक हज़ार बकरियां थी.
וְאִ֨ישׁ בְּמָע֜וֹן וּמַעֲשֵׂ֣הוּ בַכַּרְמֶ֗ל וְהָאִישׁ֙ גָּד֣וֹל מְאֹ֔ד וְל֛וֹ צֹ֥אן שְׁלֹֽשֶׁת־אֲלָפִ֖ים וְאֶ֣לֶף עִזִּ֑ים וַיְהִ֛י בִּגְזֹ֥ז אֶת־צֹאנ֖וֹ בַּכַּרְמֶֽל׃
3 उसका नाम नाबाल था और उसकी अबीगइल नामक पत्नी थी, जो बहुत ही रूपवती एवं विदुषी थी. मगर वह स्वयं बहुत ही नीच, क्रूर तथा क्रुद्ध प्रकृति का था.
וְשֵׁ֤ם הָאִישׁ֙ נָבָ֔ל וְשֵׁ֥ם אִשְׁתּ֖וֹ אֲבִגָ֑יִל וְהָאִשָּׁ֤ה טֽוֹבַת־שֶׂ֙כֶל֙ וִ֣יפַת תֹּ֔אַר וְהָאִ֥ישׁ קָשֶׁ֛ה וְרַ֥ע מַעֲלָלִ֖ים וְה֥וּא כָלִבִּֽי׃
4 इस समय दावीद निर्जन प्रदेश में थे, और उन्हें मालूम हुआ कि नाबाल भेड़ों का ऊन क़तर रहा है.
וַיִּשְׁמַ֥ע דָּוִ֖ד בַּמִּדְבָּ֑ר כִּֽי־גֹזֵ֥ז נָבָ֖ל אֶת־צֹאנֽוֹ׃
5 तब दावीद ने वहां दस नवयुवक भेज दिए और उन्हें यह आदेश दिया, “नाबाल से भेंटकरने कर्मेल नगर चले जाओ और उसे मेरी ओर से शुभकामनाएं तथा अभिवंदन प्रस्तुत करना.
וַיִּשְׁלַ֥ח דָּוִ֖ד עֲשָׂרָ֣ה נְעָרִ֑ים וַיֹּ֨אמֶר דָּוִ֜ד לַנְּעָרִ֗ים עֲל֤וּ כַרְמֶ֙לָה֙ וּבָאתֶ֣ם אֶל־נָבָ֔ל וּשְׁאֶלְתֶּם־ל֥וֹ בִשְׁמִ֖י לְשָׁלֽוֹם׃
6 तब तुम उससे कहना: ‘आप पर तथा आपके परिवार पर शांति स्थिर रहें! आप चिरायु हों! आपकी सारी संपत्ति पर समृद्धि बनी रहे!
וַאֲמַרְתֶּ֥ם כֹּ֖ה לֶחָ֑י וְאַתָּ֤ה שָׁלוֹם֙ וּבֵיתְךָ֣ שָׁל֔וֹם וְכֹ֥ל אֲשֶׁר־לְךָ֖ שָׁלֽוֹם׃
7 “‘मुझे यह समाचार प्राप्‍त हुआ है कि आपकी भेड़ों का ऊन क़तरा जा रहा है. जब आपके चरवाहे हमारे साथ थे, सारे समय जब वे कर्मेल में थे, हमने न तो उन्हें अपमानित किया, न उन्हें कोई हानि पहुंचाई है.
וְעַתָּ֣ה שָׁמַ֔עְתִּי כִּ֥י גֹזְזִ֖ים לָ֑ךְ עַתָּ֗ה הָרֹעִ֤ים אֲשֶׁר־לְךָ֙ הָי֣וּ עִמָּ֔נוּ לֹ֣א הֶכְלַמְנ֗וּם וְלֹֽא־נִפְקַ֤ד לָהֶם֙ מְא֔וּמָה כָּל־יְמֵ֖י הֱיוֹתָ֥ם בַּכַּרְמֶֽל׃
8 आप स्वयं अपने सेवकों से इस विषय में पूछ सकते हैं. आपकी कृपा हम पर बनी रहे. हम आपकी सेवा में उत्सव के मौके पर आए हैं. कृपया अपने सेवकों को, तथा अपने पुत्र समान सेवक दावीद को, जो कुछ आपको सही लगे, दे दीजिए.’”
שְׁאַ֨ל אֶת־נְעָרֶ֜יךָ וְיַגִּ֣ידוּ לָ֗ךְ וְיִמְצְא֨וּ הַנְּעָרִ֥ים חֵן֙ בְּעֵינֶ֔יךָ כִּֽי־עַל־י֥וֹם ט֖וֹב בָּ֑נוּ תְּנָה־נָּ֗א אֵת֩ אֲשֶׁ֨ר תִּמְצָ֤א יָֽדְךָ֙ לַעֲבָדֶ֔יךָ וּלְבִנְךָ֖ לְדָוִֽד׃
9 दावीद के नवयुवक साथी वहां गए, और दावीद की ओर से नाबाल को यह संदेश दे दिया, और वे नाबाल के प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करने लगे.
וַיָּבֹ֙אוּ֙ נַעֲרֵ֣י דָוִ֔ד וַיְדַבְּר֧וּ אֶל־נָבָ֛ל כְּכָל־הַדְּבָרִ֥ים הָאֵ֖לֶּה בְּשֵׁ֣ם דָּוִ֑ד וַיָּנֽוּחוּ׃
10 “कौन है यह दावीद?” नाबाल ने दावीद के साथियों को उत्तर दिया, “और कौन है यह यिशै का पुत्र? कैसा समय आ गया है, जो सारे दास अपने स्वामियों को छोड़-छोड़कर भाग रहे हैं.
וַיַּ֨עַן נָבָ֜ל אֶת־עַבְדֵ֤י דָוִד֙ וַיֹּ֔אמֶר מִ֥י דָוִ֖ד וּמִ֣י בֶן־יִשָׁ֑י הַיּוֹם֙ רַבּ֣וּ עֲבָדִ֔ים הַמִּתְפָּ֣רְצִ֔ים אִ֖ישׁ מִפְּנֵ֥י אֲדֹנָֽיו׃
11 अब क्या मेरे लिए यही शेष रह गया है कि मैं अपने सेवकों के हिस्से का भोजन लेकर इन लोगों को दे दूं? मुझे तो यही समझ नहीं आ रहा कि ये लोग कौन हैं, और कहां से आए हैं?”
וְלָקַחְתִּ֤י אֶת־לַחְמִי֙ וְאֶת־מֵימַ֔י וְאֵת֙ טִבְחָתִ֔י אֲשֶׁ֥ר טָבַ֖חְתִּי לְגֹֽזְזָ֑י וְנָֽתַתִּי֙ לַֽאֲנָשִׁ֔ים אֲשֶׁר֙ לֹ֣א יָדַ֔עְתִּי אֵ֥י מִזֶּ֖ה הֵֽמָּה׃
12 तब दावीद के साथी लौट गए. लौटकर उन्होंने दावीद को यह सब सुना दिया.
וַיַּהַפְכ֥וּ נַעֲרֵֽי־דָוִ֖ד לְדַרְכָּ֑ם וַיָּשֻׁ֙בוּ֙ וַיָּבֹ֔אוּ וַיַּגִּ֣דוּ ל֔וֹ כְּכֹ֖ל הַדְּבָרִ֥ים הָאֵֽלֶּה׃
13 दावीद ने अपने साथियों को आदेश दिया, “हर एक व्यक्ति अपनी तलवार उठा ले!” तब सबने अपनी तलवार धारण कर ली. दावीद ने भी अपनी तलवार धारण कर ली. ये सब लगभग चार सौ व्यक्ति थे, जो इस अभियान में दावीद के साथ थे, शेष लगभग दो सौ उनके विभिन्‍न उपकरणों तथा आवश्यक सामग्री की रक्षा के लिए ठहर गए.
וַיֹּאמֶר֩ דָּוִ֨ד לַאֲנָשָׁ֜יו חִגְר֣וּ ׀ אִ֣ישׁ אֶת־חַרְבּ֗וֹ וַֽיַּחְגְּרוּ֙ אִ֣ישׁ אֶת־חַרְבּ֔וֹ וַיַּחְגֹּ֥ר גַּם־דָּוִ֖ד אֶת־חַרְבּ֑וֹ וַֽיַּעֲל֣וּ ׀ אַחֲרֵ֣י דָוִ֗ד כְּאַרְבַּ֤ע מֵאוֹת֙ אִ֔ישׁ וּמָאתַ֖יִם יָשְׁב֥וּ עַל־הַכֵּלִֽים׃
14 इसी बीच नाबाल के एक सेवक ने नाबाल की पत्नी अबीगइल को संपूर्ण घटना का वृत्तांत सुना दिया, “दावीद ने हमारे स्वामी के पास मरुभूमि से अपने प्रतिनिधि भेजे थे, कि वे उन्हें अपनी शुभकामनाएं प्रस्तुत करें, मगर स्वामी ने उन्हें घोर अपमान करके लौटा दिया है.
וְלַאֲבִיגַ֙יִל֙ אֵ֣שֶׁת נָבָ֔ל הִגִּ֧יד נַֽעַר־אֶחָ֛ד מֵהַנְּעָרִ֖ים לֵאמֹ֑ר הִנֵּ֣ה שָׁלַח֩ דָּוִ֨ד מַלְאָכִ֧ים ׀ מֵֽהַמִּדְבָּ֛ר לְבָרֵ֥ךְ אֶת־אֲדֹנֵ֖ינוּ וַיָּ֥עַט בָּהֶֽם׃
15 ये सभी व्यक्ति हमारे साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण रीति से व्यवहार करते रहे थे. उन्होंने न कभी हमारा अपमान किया, न कभी हमारी कोई हानि ही की. जब हम मैदानों में भेड़ें चराया करते थे हमारी कोई भी भेड़ नहीं खोई. हम सदैव साथ साथ रहे.
וְהָ֣אֲנָשִׁ֔ים טֹבִ֥ים לָ֖נוּ מְאֹ֑ד וְלֹ֤א הָכְלַ֙מְנוּ֙ וְלֹֽא־פָקַ֣דְנוּ מְא֔וּמָה כָּל־יְמֵי֙ הִתְהַלַּ֣כְנוּ אִתָּ֔ם בִּֽהְיוֹתֵ֖נוּ בַּשָּׂדֶֽה׃
16 दिन और रात संपूर्ण समय वे मानो हमारे लिए सुरक्षा की दीवार बने रहते थे, जब हम उनके साथ मिलकर भेड़ें चराया करते थे.
חוֹמָה֙ הָי֣וּ עָלֵ֔ינוּ גַּם־לַ֖יְלָה גַּם־יוֹמָ֑ם כָּל־יְמֵ֛י הֱיוֹתֵ֥נוּ עִמָּ֖ם רֹעִ֥ים הַצֹּֽאן׃
17 अब आप स्थिति की गंभीरता को पहचान लीजिए और विचार कीजिए, कि अब आपका क्या करना सही होगा, क्योंकि अब हमारे स्वामी और उनके संपूर्ण परिवार के लिए बुरा योजित हो चुका है. वह ऐसा दुष्ट व्यक्ति हैं, कि कोई उन्हें सुझाव भी नहीं दे सकता.”
וְעַתָּ֗ה דְּעִ֤י וּרְאִי֙ מַֽה־תַּעֲשִׂ֔י כִּֽי־כָלְתָ֧ה הָרָעָ֛ה אֶל־אֲדֹנֵ֖ינוּ וְעַ֣ל כָּל־בֵּית֑וֹ וְהוּא֙ בֶּן־בְּלִיַּ֔עַל מִדַּבֵּ֖ר אֵלָֽיו׃
18 यह सुनते ही अबीगइल ने तत्काल दो सौ रोटियां, दो छागलें द्राक्षारस, पांच भेड़ें, जो पकाई जा चुकी थी, पांच माप भुना हुआ अन्‍न, किशमिश के सौ पिंड तथा दो सौ पिंड अंजीरों को लेकर गधों पर लाद दिया.
וַתְּמַהֵ֣ר אֲבִיגַ֡יִל וַתִּקַּח֩ מָאתַ֨יִם לֶ֜חֶם וּשְׁנַ֣יִם נִבְלֵי־יַ֗יִן וְחָמֵ֨שׁ צֹ֤אן עֲשׂוּיֹת֙ וְחָמֵ֤שׁ סְאִים֙ קָלִ֔י וּמֵאָ֥ה צִמֻּקִ֖ים וּמָאתַ֣יִם דְּבֵלִ֑ים וַתָּ֖שֶׂם עַל־הַחֲמֹרִֽים׃
19 “उसने अपने सेवकों को आदेश दिया, मेरे आगे-आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे आऊंगी.” मगर स्वयं उसने इसकी सूचना अपने पति नाबाल को नहीं दी.
וַתֹּ֤אמֶר לִנְעָרֶ֙יהָ֙ עִבְר֣וּ לְפָנַ֔י הִנְנִ֖י אַחֲרֵיכֶ֣ם בָּאָ֑ה וּלְאִישָׁ֥הּ נָבָ֖ל לֹ֥א הִגִּֽידָה׃
20 जब वह अपने गधे पर बैठी हुई पर्वत के उस गुप्‍त मार्ग पर थी, उसने देखा कि दावीद तथा उनके साथी उसी की ओर बढ़े चले आ रहे थे, और वे आमने-सामने आ गए.
וְהָיָ֞ה הִ֣יא ׀ רֹכֶ֣בֶת עַֽל־הַחֲמ֗וֹר וְיֹרֶ֙דֶת֙ בְּסֵ֣תֶר הָהָ֔ר וְהִנֵּ֤ה דָוִד֙ וַאֲנָשָׁ֔יו יֹרְדִ֖ים לִקְרָאתָ֑הּ וַתִּפְגֹּ֖שׁ אֹתָֽם׃
21 इस समय दावीद विचार कर ही रहे थे, “निर्जन प्रदेश में हमने व्यर्थ ही इस व्यक्ति की संपत्ति की ऐसी रक्षा की, कि उसकी कुछ भी हानि नहीं हुई, मगर उसने इस उपकार का प्रतिफल हमें इस बुराई से दिया है.
וְדָוִ֣ד אָמַ֗ר אַךְ֩ לַשֶּׁ֨קֶר שָׁמַ֜רְתִּי אֶֽת־כָּל־אֲשֶׁ֤ר לָזֶה֙ בַּמִּדְבָּ֔ר וְלֹא־נִפְקַ֥ד מִכָּל־אֲשֶׁר־ל֖וֹ מְא֑וּמָה וַיָּֽשֶׁב־לִ֥י רָעָ֖ה תַּ֥חַת טוֹבָֽה׃
22 यदि प्रातःकाल तक उसके संबंधियों में से एक भी नर जीवित छोड़ दूं, तो परमेश्वर दावीद के शत्रुओं से ऐसा ही, एवं इससे भी बढ़कर करें!”
כֹּה־יַעֲשֶׂ֧ה אֱלֹהִ֛ים לְאֹיְבֵ֥י דָוִ֖ד וְכֹ֣ה יֹסִ֑יף אִם־אַשְׁאִ֧יר מִכָּל־אֲשֶׁר־ל֛וֹ עַד־הַבֹּ֖קֶר מַשְׁתִּ֥ין בְּקִֽיר׃
23 दावीद को पहचानते ही अबीगइल तत्काल अपने गधे से उतर पड़ीं, उनके सामने मुख के बल गिर दंडवत हुई.
וַתֵּ֤רֶא אֲבִיגַ֙יִל֙ אֶת־דָּוִ֔ד וַתְּמַהֵ֕ר וַתֵּ֖רֶד מֵעַ֣ל הַחֲמ֑וֹר וַתִּפֹּ֞ל לְאַפֵּ֤י דָוִד֙ עַל־פָּנֶ֔יהָ וַתִּשְׁתַּ֖חוּ אָֽרֶץ׃
24 तब उन्होंने दावीद के चरणों पर गिरकर उनसे कहा, “दोष सिर्फ मेरा ही है, मेरे स्वामी, अपनी सेविका को बोलने की अनुमति दें, तथा आप मेरा पक्ष सुन लें.
וַתִּפֹּל֙ עַל־רַגְלָ֔יו וַתֹּ֕אמֶר בִּי־אֲנִ֥י אֲדֹנִ֖י הֶֽעָוֹ֑ן וּֽתְדַבֶּר־נָ֤א אֲמָֽתְךָ֙ בְּאָזְנֶ֔יךָ וּשְׁמַ֕ע אֵ֖ת דִּבְרֵ֥י אֲמָתֶֽךָ׃
25 मेरे स्वामी, कृपया आप इस निकम्मे व्यक्ति नाबाल के कड़वे वचनों पर ध्यान न दें. उसकी प्रकृति ठीक उसके नाम के ही अनुरूप है. उसका नाम है नाबाल और मूर्खता उसमें सचमुच व्याप्‍त है. खेद है कि उस समय मैं वहां न थी, जब आपके साथी वहां आए हुए थे.
אַל־נָ֣א יָשִׂ֣ים אֲדֹנִ֣י ׀ אֶת־לִבּ֡וֹ אֶל־אִישׁ֩ הַבְּלִיַּ֨עַל הַזֶּ֜ה עַל־נָבָ֗ל כִּ֤י כִשְׁמוֹ֙ כֶּן־ה֔וּא נָבָ֣ל שְׁמ֔וֹ וּנְבָלָ֖ה עִמּ֑וֹ וַֽאֲנִי֙ אֲמָ֣תְךָ֔ לֹ֥א רָאִ֛יתִי אֶת־נַעֲרֵ֥י אֲדֹנִ֖י אֲשֶׁ֥ר שָׁלָֽחְתָּ׃
26 और अब मेरे स्वामी, याहवेह की शपथ, आप चिरायु हों, क्योंकि याहवेह ने ही आपको रक्तपात के दोष से बचा लिया है, और आपको यह काम अपने हाथों से करने से रोक दिया है. अब मेरी कामना है कि आपके शत्रुओं की, जो आपकी हानि करने पर उतारू हैं, उनकी स्थिति वैसी ही हो, जैसी नाबाल की.
וְעַתָּ֣ה אֲדֹנִ֗י חַי־יְהוָ֤ה וְחֵֽי־נַפְשְׁךָ֙ אֲשֶׁ֨ר מְנָעֲךָ֤ יְהוָה֙ מִבּ֣וֹא בְדָמִ֔ים וְהוֹשֵׁ֥עַ יָדְךָ֖ לָ֑ךְ וְעַתָּ֗ה יִֽהְי֤וּ כְנָבָל֙ אֹיְבֶ֔יךָ וְהַֽמְבַקְשִׁ֥ים אֶל־אֲדֹנִ֖י רָעָֽה׃
27 अब आपकी सेविका द्वारा लाई गई इस भेंट को हे स्वामी, आप स्वीकार करें कि इन्हें अपने साथियों में बाट दें.
וְעַתָּה֙ הַבְּרָכָ֣ה הַזֹּ֔את אֲשֶׁר־הֵבִ֥יא שִׁפְחָתְךָ֖ לַֽאדֹנִ֑י וְנִתְּנָה֙ לַנְּעָרִ֔ים הַמִּֽתְהַלְּכִ֖ים בְּרַגְלֵ֥י אֲדֹנִֽי׃
28 “कृपया अपनी सेविका की इस भूल को क्षमा कर दें. याहवेह आपके परिवार को प्रतिष्ठित करेंगे, क्योंकि मेरे स्वामी याहवेह के प्रतिनिधि होकर युद्ध कर रहे हैं. अपने संपूर्ण जीवन में अपने किसी का बुरा नहीं चाहा है.
שָׂ֥א נָ֖א לְפֶ֣שַׁע אֲמָתֶ֑ךָ כִּ֣י עָשֹֽׂה־יַעֲשֶׂה֩ יְהוָ֨ה לַֽאדֹנִ֜י בַּ֣יִת נֶאֱמָ֗ן כִּי־מִלְחֲמ֤וֹת יְהוָה֙ אֲדֹנִ֣י נִלְחָ֔ם וְרָעָ֛ה לֹא־תִמָּצֵ֥א בְךָ֖ מִיָּמֶֽיךָ׃
29 यदि कोई आपके प्राण लेने के उद्देश्य से आपका पीछा करना शुरू कर दे, तब मेरे स्वामी का जीवन याहवेह, आपके परमेश्वर की सुरक्षा में जीवितों की झोली में संचित कर लिया जाएगा, मगर आपके शत्रुओं के जीवन को इस प्रकार दूर प्रक्षेपित कर देंगे, जैसे गोफन के द्वारा पत्थर फेंक दिया जाता है.
וַיָּ֤קָם אָדָם֙ לִרְדָפְךָ֔ וּלְבַקֵּ֖שׁ אֶת־נַפְשֶׁ֑ךָ וְֽהָיְתָה֩ נֶ֨פֶשׁ אֲדֹנִ֜י צְרוּרָ֣ה ׀ בִּצְר֣וֹר הַחַיִּ֗ים אֵ֚ת יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ וְאֵ֨ת נֶ֤פֶשׁ אֹיְבֶ֙יךָ֙ יְקַלְּעֶ֔נָּה בְּת֖וֹךְ כַּ֥ף הַקָּֽלַע׃
30 याहवेह मेरे स्वामी के लिए वह सब करेंगे, जिसकी उन्होंने आपसे प्रतिज्ञा की है. वह आपको इस्राएल के शासक बनाएंगे,
וְהָיָ֗ה כִּֽי־יַעֲשֶׂ֤ה יְהוָה֙ לַֽאדֹנִ֔י כְּכֹ֛ל אֲשֶׁר־דִּבֶּ֥ר אֶת־הַטּוֹבָ֖ה עָלֶ֑יךָ וְצִוְּךָ֥ לְנָגִ֖יד עַל־יִשְׂרָאֵֽל׃
31 अब आपकी अंतरात्मा निर्दोष के लहू बहाने के दोष से न भरेगी, और न आपको इस विषय में कोई खेद होगा कि आपने स्वयं बदला ले लिया. मेरे स्वामी, जब याहवेह आपको उन्‍नत करें, कृपया अपनी सेविका को अवश्य याद रखियेगा.”
וְלֹ֣א תִהְיֶ֣ה זֹ֣את ׀ לְךָ֡ לְפוּקָה֩ וּלְמִכְשׁ֨וֹל לֵ֜ב לַאדֹנִ֗י וְלִשְׁפָּךְ־דָּם֙ חִנָּ֔ם וּלְהוֹשִׁ֥יעַ אֲדֹנִ֖י ל֑וֹ וְהֵיטִ֤ב יְהוָה֙ לַֽאדֹנִ֔י וְזָכַרְתָּ֖ אֶת־אֲמָתֶֽךָ׃ ס
32 अबीगइल से ये उद्गार सुनकर दावीद ने उन्हें संबोधित कर कहा, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की स्तुति हो, जिन्होंने आपको मुझसे भेंटकरने भेज दिया है.
וַיֹּ֥אמֶר דָּוִ֖ד לַאֲבִיגַ֑ל בָּר֤וּךְ יְהוָה֙ אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל אֲשֶׁ֧ר שְׁלָחֵ֛ךְ הַיּ֥וֹם הַזֶּ֖ה לִקְרָאתִֽי׃
33 सराहनीय है आपका उत्तम अनुमान! आज मुझे रक्तपात से रोक देने के कारण आप स्वयं सराहना की पात्र हैं. आपने मुझे आज स्वयं बदला लेने की भूल से भी बचा लिया है.
וּבָר֥וּךְ טַעְמֵ֖ךְ וּבְרוּכָ֣ה אָ֑תְּ אֲשֶׁ֨ר כְּלִתִ֜נִי הַיּ֤וֹם הַזֶּה֙ מִבּ֣וֹא בְדָמִ֔ים וְהֹשֵׁ֥עַ יָדִ֖י לִֽי׃
34 याहवेह, इस्राएल के जीवन्त परमेश्वर की शपथ, जिन्होंने मुझे आपका बुरा करने से रोक दिया है, यदि आप आज इतने शीघ्र मुझसे भेंटकरने न आयी होती, सबेरे, दिन का प्रकाश होते-होते, नाबाल परिवार का एक भी नर जीवित न रहता.”
וְאוּלָ֗ם חַי־יְהוָה֙ אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל אֲשֶׁ֣ר מְנָעַ֔נִי מֵהָרַ֖ע אֹתָ֑ךְ כִּ֣י ׀ לוּלֵ֣י מִהַ֗רְתְּ וַתָּבֹאת֙ לִקְרָאתִ֔י כִּ֣י אִם־נוֹתַ֧ר לְנָבָ֛ל עַד־א֥וֹר הַבֹּ֖קֶר מַשְׁתִּ֥ין בְּקִֽיר׃
35 तब दावीद ने उसके हाथ से उसके द्वारा लाई गई भेंटें स्वीकार की और उसे इस आश्वासन के साथ विदा किया, “शांति से अपने घर लौट जाओ, मैंने तुम्हारी बात मान ली और तुम्हारी विनती स्वीकार कर लिया.”
וַיִּקַּ֤ח דָּוִד֙ מִיָּדָ֔הּ אֵ֥ת אֲשֶׁר־הֵבִ֖יאָה ל֑וֹ וְלָ֣הּ אָמַ֗ר עֲלִ֤י לְשָׁלוֹם֙ לְבֵיתֵ֔ךְ רְאִי֙ שָׁמַ֣עְתִּי בְקוֹלֵ֔ךְ וָאֶשָּׂ֖א פָּנָֽיִךְ׃
36 जब अबीगइल घर पहुंची, नाबाल ने अपने आवास पर एक भव्य भोज आयोजित किया हुआ था. ऐसा भोज, मानो वह राजा हो. उस समय वह बहुत ही उत्तेजित था तथा बहुत ही नशे में था. तब अबीगइल ने सुबह तक कोई बात न की.
וַתָּבֹ֣א אֲבִיגַ֣יִל ׀ אֶל־נָבָ֡ל וְהִנֵּה־לוֹ֩ מִשְׁתֶּ֨ה בְּבֵית֜וֹ כְּמִשְׁתֵּ֣ה הַמֶּ֗לֶךְ וְלֵ֤ב נָבָל֙ ט֣וֹב עָלָ֔יו וְה֥וּא שִׁכֹּ֖ר עַד־מְאֹ֑ד וְלֹֽא־הִגִּ֣ידָה לּ֗וֹ דָּבָ֥ר קָטֹ֛ן וְגָד֖וֹל עַד־א֥וֹר הַבֹּֽקֶר׃
37 सुबह, जब नाबाल से शराब का नशा उतर चुका था, उसकी पत्नी ने उसे इस विषय से संबंधित सारा विवरण सुना दिया. यह सुनते ही नाबाल को पक्षाघात हो गया, और वह सुन्‍न रह गया.
וַיְהִ֣י בַבֹּ֗קֶר בְּצֵ֤את הַיַּ֙יִן֙ מִנָּבָ֔ל וַתַּגֶּד־ל֣וֹ אִשְׁתּ֔וֹ אֶת־הַדְּבָרִ֖ים הָאֵ֑לֶּה וַיָּ֤מָת לִבּוֹ֙ בְּקִרְבּ֔וֹ וְה֖וּא הָיָ֥ה לְאָֽבֶן׃
38 लगभग दस दिन बाद याहवेह ने नाबाल पर ऐसा प्रहार किया कि उसकी मृत्यु हो गई.
וַיְהִ֖י כַּעֲשֶׂ֣רֶת הַיָּמִ֑ים וַיִּגֹּ֧ף יְהוָ֛ה אֶת־נָבָ֖ל וַיָּמֹֽת׃
39 जब दावीद ने नाबाल की मृत्यु का समाचार सुना, वह कह उठे, “धन्य हैं याहवेह, जिन्होंने नाबाल द्वारा किए गए मेरे अपमान का बदला ले लिया है. याहवेह अपने सेवक को बुरा करने से रोके रहे तथा नाबाल को उसके दुराचार का प्रतिफल दे दिया.” दावीद ने संदेशवाहकों द्वारा अबीगइल के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा.
וַיִּשְׁמַ֣ע דָּוִד֮ כִּ֣י מֵ֣ת נָבָל֒ וַיֹּ֡אמֶר בָּר֣וּךְ יְהוָ֡ה אֲשֶׁ֣ר רָב֩ אֶת־רִ֨יב חֶרְפָּתִ֜י מִיַּ֣ד נָבָ֗ל וְאֶת־עַבְדּוֹ֙ חָשַׂ֣ךְ מֵֽרָעָ֔ה וְאֵת֙ רָעַ֣ת נָבָ֔ל הֵשִׁ֥יב יְהוָ֖ה בְּרֹאשׁ֑וֹ וַיִּשְׁלַ֤ח דָּוִד֙ וַיְדַבֵּ֣ר בַּאֲבִיגַ֔יִל לְקַחְתָּ֥הּ ל֖וֹ לְאִשָּֽׁה׃
40 दावीद के संदेशवाहकों ने कर्मेल नगर जाकर अबीगइल को कहा: “हमें दावीद ने आपके पास भेजा है कि हम आपको अपने साथ उनके पास ले जाएं, कि वे आपसे विवाह कर सकें.”
וַיָּבֹ֜אוּ עַבְדֵ֥י דָוִ֛ד אֶל־אֲבִיגַ֖יִל הַכַּרְמֶ֑לָה וַיְדַבְּר֤וּ אֵלֶ֙יהָ֙ לֵאמֹ֔ר דָּוִד֙ שְׁלָחָ֣נוּ אֵלַ֔יִךְ לְקַחְתֵּ֥ךְ ל֖וֹ לְאִשָּֽׁה׃
41 वह तत्काल उठी, भूमि पर दंडवत होकर उनसे कहा, “आपकी सेविका मेरे स्वामी के सेवकों के चरण धोने के लिए तत्पर दासी हूं.”
וַתָּ֕קָם וַתִּשְׁתַּ֥חוּ אַפַּ֖יִם אָ֑רְצָה וַתֹּ֗אמֶר הִנֵּ֤ה אֲמָֽתְךָ֙ לְשִׁפְחָ֔ה לִרְחֹ֕ץ רַגְלֵ֖י עַבְדֵ֥י אֲדֹנִֽי׃
42 अबीगइल विलंब न करते उठकर तैयार हो गई. वह अपने गधे पर बैठी और दावीद के संदेशवाहकों के साथ चली गई. उसके साथ उसकी पांच सेविकाएं थी. वहां वह दावीद की पत्नी हो गई.
וַתְּמַהֵ֞ר וַתָּ֣קָם אֲבִיגַ֗יִל וַתִּרְכַּב֙ עַֽל־הַחֲמ֔וֹר וְחָמֵשׁ֙ נַעֲרֹתֶ֔יהָ הַהֹלְכ֖וֹת לְרַגְלָ֑הּ וַתֵּ֗לֶךְ אַֽחֲרֵי֙ מַלְאֲכֵ֣י דָוִ֔ד וַתְּהִי־ל֖וֹ לְאִשָּֽׁה׃
43 दावीद ने येज़्रील नगरवासी अहीनोअम से भी विवाह किया. ये दोनों ही उनकी पत्नी बन गईं.
וְאֶת־אֲחִינֹ֛עַם לָקַ֥ח דָּוִ֖ד מִֽיִּזְרְעֶ֑אל וַתִּהְיֶ֛יןָ גַּֽם־שְׁתֵּיהֶ֥ן ל֖וֹ לְנָשִֽׁים׃ ס
44 इस समय तक शाऊल ने अपनी बेटी मीखल, जो वस्तुतः दावीद की पत्नी थी, लायीश के पुत्र पालतिएल को, जो गल्लीम नगर का वासी था, सौंप दी थी.
וְשָׁא֗וּל נָתַ֛ן אֶת־מִיכַ֥ל בִּתּ֖וֹ אֵ֣שֶׁת דָּוִ֑ד לְפַלְטִ֥י בֶן־לַ֖יִשׁ אֲשֶׁ֥ר מִגַּלִּֽים׃

< 1 शमूएल 25 >