< 1 शमूएल 10 >
1 और शमुएल ने ज़ैतून के तेल से भरी एक शीशी निकाली, और वह तेल शाऊल के सिर पर उंडेल दिया. तब उन्होंने शाऊल का चुंबन लेते हुए उनसे कहा, “याहवेह ने अपनी मीरास इस्राएल का अगुआ होने के लिए तुम्हारा अभिषेक किया है!
Then Samuel took a little vial of oil, and poured it on his head. And he kissed him, and said: “Behold, the Lord has anointed you as first ruler over his inheritance. And you shall free his people from the hands of their enemies, who are all around them. And this shall be a sign for you that God has anointed you as ruler:
2 आज जब तुम मुझसे विदा होकर जाओगे, तुम्हें बिन्यामिन प्रदेश की सीमा पर सेलसाह नामक स्थान पर राहेल की कब्र के निकट दो व्यक्ति मिलेंगे. वे तुमसे कहेंगे, ‘तुम जिन गधों की खोज में निकले थे, वे तो मिल चुके हैं. तुम्हारे पिता को अब गधों की नहीं, बल्कि तुम दोनों की चिंता हो रही है. वह कह रहे हैं, “अब मैं अपने पुत्र के लिए क्या करूं?”’
When you will have departed from me this day, you will find two men beside the sepulcher of Rachel, in the parts of Benjamin to the south. And they will say to you: ‘The donkeys have been found, which you had been seeking as you traveled. And your father, forgetting about the donkeys, has been anxious for you, and he says, “What shall I do about my son?”’
3 “तब तुम्हारे आगे बढ़ने पर, जब तुम ताबोर के उस विशाल बांज वृक्ष के निकट पहुंचोगे, तुम्हें वहां तीन व्यक्ति मिलेंगे, जो परमेश्वर की वंदना करने बेथेल जा रहे होंगे. एक तो बकरी के तीन बच्चे ले जा रहा होगा, उनमें से दूसरा तीन रोटियां तथा तीसरा अंगूर के रस की कुप्पी.
And when you will have departed from there, and will have traveled farther, and will have arrived at the oak of Tabor, in that place three men, who are going up to God at Bethel, will find you. One will be bringing three young goats, and another three loaves of bread, and another will be carrying a bottle of wine.
4 वे तुम्हारा अभिवादन करेंगे और तुम्हें दो रोटियां दे देंगे, जिन्हें तुम स्वीकार कर लेना.
And when they will have greeted you, they will give you two loaves. And you shall accept these from their hand.
5 “फिर तुम गीबिया-एलोहीम पहुंचोगे, जहां फिलिस्तीनी सेना का गढ़ है. तुम जैसे ही नगर में प्रवेश करोगे, तुम्हें वहां भविष्यवक्ताओं का एक समूह मिलेगा, जो पर्वत शिखर से उतरकर आ रहा होगा और जिनके हाथों में विभिन्न वाद्य यंत्र होंगे, जो भविष्यवाणी कर रहे होंगे.
After these things, you shall arrive at the hill of God, where the garrison of the Philistines is. And when you will have entered the city there, you will meet a company of prophets, descending from the high place, with a psaltery, and a timbrel, and a pipe, and a harp before them, and they will be prophesying.
6 ठीक उसी समय याहवेह का आत्मा बड़ी सामर्थ्य के साथ तीव्र गति से तुम्हें भर लेगा और तुम स्वयं उनके साथ मिलकर भविष्यवाणी करने लगोगे. यह वह क्षण होगा, जब तुम्हें एक नया व्यक्तित्व प्रदान कर दिया जाएगा.
And the Spirit of the Lord will spring up within you. And you shall prophesy with them, and you shall be changed into another man.
7 जब तुम इन चिन्हों को होते देखो, तुम वही करना शुरू कर देना, जो तुम्हें सही लगेगा, क्योंकि तब स्वयं परमेश्वर तुम्हारे साथ होंगे.
Therefore, when these signs will have happened to you, do whatever your hand will find, for the Lord is with you.
8 “तब तुम मुझसे पहले गिलगाल पहुंच जाना. मैं तुमसे वहीं मिलूंगा, कि वहां अग्निबलि एवं मेल की भेंटें अर्पित करूं. आवश्यक होगा कि तुम सात दिन प्रतीक्षा करो—जब तक मैं वहां पहुंचकर तुम्हें यह न समझाऊं कि तुम्हारा क्या करना सही होगा.”
And you shall descend before me into Gilgal, (for I will descend to you), so that you may offer an oblation, and may immolate victims of peace. For seven days, you shall wait, until I come to you, and reveal to you what you should do.”
9 जैसे ही शाऊल शमुएल से विदा होकर मुड़ा, परमेश्वर ने उनका मन बदल दिया, और ये सभी चिन्ह उस दिन पूर्ण हो गए.
And so, when he had turned his shoulder, so that he might go away from Samuel, God changed him to another heart. And all these signs occurred on that day.
10 जब वे गिबियाह पहुंचे, उनसे भेंटकरने भविष्यवक्ताओं का एक समूह आ रहा था. तब परमेश्वर का आत्मा तीव्र गति से उनके ऊपर उतरा और वह उनके साथ भविष्यवाणी करने लगे.
And they arrived at the above-stated hill, and behold, a group of prophets met him. And the Spirit of the Lord leapt up within him, and he prophesied in their midst.
11 जो लोग शाऊल से पूर्व परिचित थे, उन्हें भविष्यवक्ताओं के साथ भविष्यवाणी करते देख, परस्पर कहने लगे, “क्या हो गया है कीश के पुत्र को? क्या शाऊल भी भविष्यद्वक्ता वृन्द का सदस्य है?”
Then all those who had known him yesterday and the day before, seeing that he was with the prophets, and that he was prophesying, said to one other: “What is this thing that has happened to the son of Kish? Could Saul also be among the prophets?”
12 वहां खड़े एक व्यक्ति ने प्रश्न किया, “और उनके पिता कौन हैं?” तब वहां यह लोकोक्ति हो गई: “क्या शाऊल भी भविष्यवक्ताओं में से एक हैं?”
And one would respond to the other, saying, “And who is their father?” Because of this, it turned into a proverb, “Could Saul also be among the prophets?”
13 जब शाऊल अपनी भविष्यवाणी पूर्ण कर चुके, वह पर्वत शिखर पर चले गए.
Then he ceased to prophesy, and he went to the high place.
14 शाऊल के चाचा ने शाऊल से एवं उनके सेवक से पूछा, “कहां चले गए थे तुम दोनों?” शाऊल ने उत्तर दिया, “गधों को ढूंढने. मगर जब हमें यह लगा कि गधे खो चुके हैं, तो हम शमुएल से भेंटकरने चले गए.”
And the uncle of Saul said to him, and to his servant, “Where did you go?” And they responded: “To seek the donkeys. But when we did not find them, we went to Samuel.”
15 शाऊल के चाचा ने उनसे पूछा, “मुझे बताओ कि शमुएल ने तुमसे क्या-क्या कहा है.”
And his uncle said to him, “Tell me what Samuel said to you.”
16 शाऊल ने अपने चाचा को उत्तर दिया, “शमुएल ने हमें आश्वासन दिया, कि गधे मिल चुके हैं.” शाऊल ने अपने चाचा को राजत्व से संबंधित कुछ भी नहीं बताया.
And Saul said to his uncle, “He told us that the donkeys would be found.” But the word about the kingdom, which Samuel had spoken to him, he did not reveal to him.
17 तब शमुएल ने मिज़पाह में याहवेह के सामने एक सार्वजनिक सभा बुलाई.
And Samuel called the people together, to the Lord at Mizpah.
18 उन्होंने इस्राएल को संबोधित करते हुए कहा, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: ‘मैंने इस्राएल को मिस्र देश से बाहर निकाल लिया, और मैंने ही मिस्रियों तथा उन सभी राज्यों के कष्टों से छुड़ाया है जो तुम्हें सताते रहते थे.’
And he said to the sons of Israel: “Thus says the Lord God of Israel: I led Israel away from Egypt, and I rescued you from the hand of the Egyptians, and from the hand of all the kings who were afflicting you.
19 मगर आज वह दिन है, जब तुमने अपने परमेश्वर को अस्वीकृत कर दिया है, जो तुम्हारी सभी पीड़ाओं और मुसीबतों से तुम्हें बचाते हैं. तुम्हारी ही यह मांग थी, ‘नहीं! हमारे लिए एक राजा नियुक्त कीजिए.’ ठीक है! याहवेह के सामने अपने गोत्रों एवं वंशों के अनुसार अपना अपना स्थान ले लो.”
But today you have rejected your God, who alone saved you from all your evils and tribulations. And you have said: ‘By no means! Instead, appoint a king over us.’ Now therefore, stand in the sight of the Lord, by your tribes and by your families.”
20 तब शमुएल ने इस्राएल के सभी गोत्रों को निकट बुलाया और बिन्यामिन का गोत्र चुना गया.
And Samuel brought near all the tribes of Israel, and the lot fell upon the tribe of Benjamin.
21 तब बिन्यामिन गोत्र के परिवार निकट लाए गए और मत्री का परिवार चुना गया. और अंततः कीश के पुत्र शाऊल को चुना गया. मगर जब उन्हें खोजा गया तो वह कहीं भी दिखाई न दिया.
And he brought near the tribe of Benjamin, with its families, and the lot fell upon the family of Matri. And then it went to Saul, the son of Kish. Therefore, they sought him, but he was not found.
22 तब उन्होंने पुनः याहवेह से इस विषय में पूछताछ की, “क्या शाऊल यहां आ चुके हैं?” याहवेह ने उत्तर दिया, “जाकर देखो, वह भण्डारगृह में सामान के बीच में छिपा हुआ है.”
And after these things, they consulted the Lord as to whether he would soon arrive there. And the Lord responded, “Behold, he is hidden at home.”
23 तब वे दौड़कर गए और उन्हें वहां से ले आए. जब शाऊल उनके मध्य में खड़े हुए, सभी उनके कंधों तक ही पहुंच रहे थे.
And so they ran and brought him there. And he stood in the midst of the people, and he was taller than the entire people, from the shoulders upward.
24 तब जनसभा को संबोधित करते हुए शमुएल ने लोगों से कहा, “क्या उसे देख रहे हो, जिसे याहवेह ने नामित किया है? निःसंदेह सभी लोगों में उसके तुल्य कोई नहीं है!” सारे जनसमूह ने उच्च घोष किया, “राजा को लंबी आयु मिले!”
And Samuel said to all the people: “Certainly, you see the one whom the Lord has chosen, that there is not anyone like him among all the people.” And all the people cried out and said, “Long live the king!”
25 तब शमुएल ने राजा के अधिकारों और कामों से संबंधित नीतियां लोगों के सामने स्पष्ट कर दीं. ये सब उन्होंने एक पुस्तक में लिखकर याहवेह के सामने रख दिया. यह सब होने पर शमुएल ने सब लोगों को उनके घर विदा कर दिया.
Then Samuel spoke to the people the law of the kingdom, and he wrote it in a book, and he stored it in the sight of the Lord. And Samuel dismissed all the people, each one to his own house.
26 शाऊल भी गिबियाह में अपने घर चले गए. कुछ शूरवीर युवक भी उनके साथ गए. ये युवक परमेश्वर द्वारा चुने गए थे.
And then Saul went away to his own house at Gibeah. And a portion of the army, whose hearts had been touched by God, went away with him.
27 मगर कुछ निकम्मे लोग कहने लगे, “यह व्यक्ति कैसे हमारी रक्षा कर सकेगा?” उन्हें शाऊल से घृणा हो गई, यहां तक कि उन्होंने उन्हें कोई भेंट भी नहीं दी. मगर शाऊल ने इस विषय को कोई महत्व नहीं दिया.
Yet the sons of Belial said, “How could this one be able to save us?” And they despised him, and they brought him no presents. But he pretended not to hear them.