< מִיכָה 6 >
שִׁמְעוּ־נָ֕א אֵ֥ת אֲשֶׁר־יְהוָ֖ה אֹמֵ֑ר ק֚וּם רִ֣יב אֶת־הֶהָרִ֔ים וְתִשְׁמַ֥עְנָה הַגְּבָע֖וֹת קוֹלֶֽךָ׃ | 1 |
अब ख़ुदावन्द का फ़रमान सुन: उठ, पहाड़ों के सामने मुबाहसा कर, और सब टीले तेरी आवाज़ सुनें।
שִׁמְע֤וּ הָרִים֙ אֶת־רִ֣יב יְהוָ֔ה וְהָאֵתָנִ֖ים מֹ֣סְדֵי אָ֑רֶץ כִּ֣י רִ֤יב לַֽיהוָה֙ עִם־עַמּ֔וֹ וְעִם־יִשְׂרָאֵ֖ל יִתְוַכָּֽח׃ | 2 |
ऐ पहाड़ों, और ऐ ज़मीन की मज़बूत बुनियादों, ख़ुदावन्द का दा'वा सुनो, क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों पर दा'वा करता है, और वह इस्राईल पर हुज्जत साबित करेगा।
עַמִּ֛י מֶה־עָשִׂ֥יתִי לְךָ֖ וּמָ֣ה הֶלְאֵתִ֑יךָ עֲנֵ֥ה בִּֽי׃ | 3 |
ऐ मेरे लोगों मैंने तुम से क्या किया है और तुमको किस बात में आज़ुर्दा किया है मुझ पर साबित करो।
כִּ֤י הֶעֱלִתִ֙יךָ֙ מֵאֶ֣רֶץ מִצְרַ֔יִם וּמִבֵּ֥ית עֲבָדִ֖ים פְּדִיתִ֑יךָ וָאֶשְׁלַ֣ח לְפָנֶ֔יךָ אֶת־מֹשֶׁ֖ה אַהֲרֹ֥ן וּמִרְיָֽם׃ | 4 |
क्यूँकि मैं तुम को मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, और ग़ुलामी के घर से फ़िदिया देकर छुड़ा लाया; और तुम्हारे आगे मूसा और हारून और मरियम को भेजा।
עַמִּ֗י זְכָר־נָא֙ מַה־יָּעַ֗ץ בָּלָק֙ מֶ֣לֶךְ מוֹאָ֔ב וּמֶה־עָנָ֥ה אֹת֖וֹ בִּלְעָ֣ם בֶּן־בְּע֑וֹר מִן־הַשִּׁטִּים֙ עַד־הַגִּלְגָּ֔ל לְמַ֕עַן דַּ֖עַת צִדְק֥וֹת יְהוָֽה׃ | 5 |
ऐ मेरे लोगों, याद करो कि शाह — ए — मोआब बलक़ ने क्या मश्वरत की, और बल'आम — बिन — ब'ऊर ने उसे क्या जवाब दिया; और शित्तीम से जिलजाल तक क्या — क्या हुआ, ताकि ख़ुदावन्द की सदाक़त से वाकिफ़ हो जाओ।
בַּמָּה֙ אֲקַדֵּ֣ם יְהוָ֔ה אִכַּ֖ף לֵאלֹהֵ֣י מָר֑וֹם הַאֲקַדְּמֶ֣נּוּ בְעוֹל֔וֹת בַּעֲגָלִ֖ים בְּנֵ֥י שָׁנָֽה׃ | 6 |
मैं क्या लेकर ख़ुदावन्द के सामने आऊँ, और ख़ुदा ताला को क्यूँकर सिज्दा करूँ? क्या सोख़्तनी क़ुर्बानियों और यकसाला बछड़ों को लेकर उसके सामने आऊँ?
הֲיִרְצֶ֤ה יְהוָה֙ בְּאַלְפֵ֣י אֵילִ֔ים בְּרִֽבְב֖וֹת נַֽחֲלֵי־שָׁ֑מֶן הַאֶתֵּ֤ן בְּכוֹרִי֙ פִּשְׁעִ֔י פְּרִ֥י בִטְנִ֖י חַטַּ֥את נַפְשִֽׁי׃ | 7 |
क्या ख़ुदावन्द हज़ारों मेंढों से या तेल की दस हज़ार नहरों से ख़ुश होगा? क्या मैं अपने पहलौठे को अपने गुनाह के बदले में, और अपनी औलाद को अपनी जान की ख़ता के बदले में दे दूँ?
הִגִּ֥יד לְךָ֛ אָדָ֖ם מַה־טּ֑וֹב וּמָֽה־יְהוָ֞ה דּוֹרֵ֣שׁ מִמְּךָ֗ כִּ֣י אִם־עֲשׂ֤וֹת מִשְׁפָּט֙ וְאַ֣הֲבַת חֶ֔סֶד וְהַצְנֵ֥עַ לֶ֖כֶת עִם־אֱלֹהֶֽיךָ׃ פ | 8 |
ऐ इंसान, उसने तुझ पर नेकी ज़ाहिर कर दी है; ख़ुदावन्द तुझ से इसके सिवा क्या चाहता है कि तू इन्साफ़ करे और रहमदिली को 'अज़ीज़ रख्खे, और अपने ख़ुदा के सामने फ़रोतनी से चले?
ק֤וֹל יְהוָה֙ לָעִ֣יר יִקְרָ֔א וְתוּשִׁיָּ֖ה יִרְאֶ֣ה שְׁמֶ֑ךָ שִׁמְע֥וּ מַטֶּ֖ה וּמִ֥י יְעָדָֽהּ׃ | 9 |
ख़ुदावन्द की आवाज़ शहर को पुकारती है और 'अक़्लमंद उसके नाम का लिहाज़ रखता है: 'असा और उसके मुक़र्रर करने वाले की सुनो।
ע֗וֹד הַאִשׁ֙ בֵּ֣ית רָשָׁ֔ע אֹצְר֖וֹת רֶ֑שַׁע וְאֵיפַ֥ת רָז֖וֹן זְעוּמָֽה׃ | 10 |
क्या शरीर के घर में अब तक नाजायज़ नफ़े' के ख़ज़ाने और नाक़िस — ओ — नफ़रती पैमाने नहीं हैं।
הַאֶזְכֶּ֖ה בְּמֹ֣אזְנֵי רֶ֑שַׁע וּבְכִ֖יס אַבְנֵ֥י מִרְמָֽה׃ | 11 |
क्या वह दग़ा की तराज़ू और झूटे तौल बाट का थैला रखता हुआ, बेगुनाह ठहरेगा।
אֲשֶׁ֤ר עֲשִׁירֶ֙יהָ֙ מָלְא֣וּ חָמָ֔ס וְיֹשְׁבֶ֖יהָ דִּבְּרוּ־שָׁ֑קֶר וּלְשׁוֹנָ֖ם רְמִיָּ֥ה בְּפִיהֶֽם׃ | 12 |
क्यूँकि वहाँ के दौलतमंद ज़ुल्म से भरे हैं; और उसके बाशिन्दे झूट बोलते हैं, बल्कि उनके मुँह में दग़ाबाज़ ज़बान है।
וְגַם־אֲנִ֖י הֶחֱלֵ֣יתִי הַכּוֹתֶ֑ךָ הַשְׁמֵ֖ם עַל־חַטֹּאתֶֽךָ׃ | 13 |
इसलिए मैं तुझे मुहलिक ज़ख़्म लगाऊँगा, और तेरे गुनाहों की वजह से तुझ को वीरान कर डालूँगा।
אַתָּ֤ה תֹאכַל֙ וְלֹ֣א תִשְׂבָּ֔ע וְיֶשְׁחֲךָ֖ בְּקִרְבֶּ֑ךָ וְתַסֵּג֙ וְלֹ֣א תַפְלִ֔יט וַאֲשֶׁ֥ר תְּפַלֵּ֖ט לַחֶ֥רֶב אֶתֵּֽן׃ | 14 |
तू खाएगा लेकिन आसूदा न होगा, क्यूँकि तेरा पेट ख़ाली रहेगा; तू छिपाएगा लेकिन बचा न सकेगा, और जो कुछ कि तू बचाएगा मैं उसे तलवार के हवाले करूँगा।
אַתָּ֥ה תִזְרַ֖ע וְלֹ֣א תִקְצ֑וֹר אַתָּ֤ה תִדְרֹֽךְ־זַ֙יִת֙ וְלֹא־תָס֣וּךְ שֶׁ֔מֶן וְתִיר֖וֹשׁ וְלֹ֥א תִשְׁתֶּה־יָּֽיִן׃ | 15 |
तू बोएगा, लेकिन फ़सल न काटेगा; ज़ैतून को रौदेंगा, लेकिन तेल मलने न पाएगा; तू अंगूर को कुचलेगा, लेकिन मय न पिएगा।
וְיִשְׁתַּמֵּ֞ר חֻקּ֣וֹת עָמְרִ֗י וְכֹל֙ מַעֲשֵׂ֣ה בֵית־אַחְאָ֔ב וַתֵּלְכ֖וּ בְּמֹֽעֲצוֹתָ֑ם לְמַעַן֩ תִּתִּ֨י אֹתְךָ֜ לְשַׁמָּ֗ה וְיֹשְׁבֶ֙יהָ֙ לִשְׁרֵקָ֔ה וְחֶרְפַּ֥ת עַמִּ֖י תִּשָּֽׂאוּ׃ פ | 16 |
क्यूँकि उमरी के क़वानीन और अख़ीअब के ख़ान्दान के आ'माल की पैरवी होती है, और तुम उनकी मश्वरत पर चलते हो, ताकि मैं तुम को वीरान करूँ, और उसके रहने वालों को सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँ; इसलिए तुम मेरे लोगों की रुस्वाई उठाओगे।