< יְהוֹשֻעַ 2 >

וַיִּשְׁלַ֣ח יְהוֹשֻׁ֣עַ־בִּן ־נ֠וּן מִֽן־הַשִּׁטִּ֞ים שְׁנַֽיִם־אֲנָשִׁ֤ים מְרַגְּלִים֙ חֶ֣רֶשׁ לֵאמֹ֔ר לְכ֛וּ רְא֥וּ אֶת־הָאָ֖רֶץ וְאֶת־יְרִיח֑וֹ וַיֵּ֨לְכ֜וּ וַ֠יָּבֹאוּ בֵּית־אִשָּׁ֥ה זוֹנָ֛ה וּשְׁמָ֥הּ רָחָ֖ב וַיִּשְׁכְּבוּ־שָֽׁמָּה ׃ 1
तब नून के पुत्र यहोशू ने दो भेदियों को शित्तीम से चुपके से भेज दिया, और उनसे कहा, “जाकर उस देश और यरीहो को देखो।” तुरन्त वे चल दिए, और राहाब नामक किसी वेश्या के घर में जाकर सो गए।
וַיֵּ֣אָמַ֔ר לְמֶ֥לֶךְ יְרִיח֖וֹ לֵאמֹ֑ר הִנֵּ֣ה אֲ֠נָשִׁים בָּ֣אוּ הֵ֧נָּה הַלַּ֛יְלָה מִבְּנֵ֥י יִשְׂרָאֵ֖ל לַחְפֹּ֥ר אֶת־הָאָֽרֶץ׃ 2
तब किसी ने यरीहो के राजा से कहा, “आज की रात कई एक इस्राएली हमारे देश का भेद लेने को यहाँ आए हुए हैं।”
וַיִּשְׁלַח֙ מֶ֣לֶךְ יְרִיח֔וֹ אֶל־רָחָ֖ב לֵאמֹ֑ר ה֠וֹצִיאִי הָאֲנָשִׁ֨ים הַבָּאִ֤ים אֵלַ֙יִךְ֙ אֲשֶׁר־בָּ֣אוּ לְבֵיתֵ֔ךְ כִּ֛י לַחְפֹּ֥ר אֶת־כָּל־הָאָ֖רֶץ בָּֽאוּ׃ 3
तब यरीहो के राजा ने राहाब के पास यह कहला भेजा, “जो पुरुष तेरे यहाँ आए हैं उन्हें बाहर ले आ; क्योंकि वे सारे देश का भेद लेने को आए हैं।”
וַתִּקַּ֧ח הָֽאִשָּׁ֛ה אֶת־שְׁנֵ֥י הָאֲנָשִׁ֖ים וַֽתִּצְפְּנ֑וֹ וַתֹּ֣אמֶר ׀ כֵּ֗ן בָּ֤אוּ אֵלַי֙ הָֽאֲנָשִׁ֔ים וְלֹ֥א יָדַ֖עְתִּי מֵאַ֥יִן הֵֽמָּה׃ 4
उस स्त्री ने दोनों पुरुषों को छिपा रखा; और इस प्रकार कहा, “मेरे पास कई पुरुष आए तो थे, परन्तु मैं नहीं जानती कि वे कहाँ के थे;
וַיְהִ֨י הַשַּׁ֜עַר לִסְגּ֗וֹר בַּחֹ֙שֶׁךְ֙ וְהָאֲנָשִׁ֣ים יָצָ֔אוּ לֹ֣א יָדַ֔עְתִּי אָ֥נָה הָלְכ֖וּ הָֽאֲנָשִׁ֑ים רִדְפ֥וּ מַהֵ֛ר אַחֲרֵיהֶ֖ם כִּ֥י תַשִּׂיגֽוּם׃ 5
और जब अंधेरा हुआ, और फाटक बन्द होने लगा, तब वे निकल गए; मुझे मालूम नहीं कि वे कहाँ गए; तुम फुर्ती करके उनका पीछा करो तो उन्हें जा पकड़ोगे।”
וְהִ֖יא הֶעֱלָ֣תַם הַגָּ֑גָה וַֽתִּטְמְנֵם֙ בְּפִשְׁתֵּ֣י הָעֵ֔ץ הָעֲרֻכ֥וֹת לָ֖הּ עַל־הַגָּֽג ׃ 6
उसने उनको घर की छत पर चढ़ाकर सनई की लकड़ियों के नीचे छिपा दिया था जो उसने छत पर सजा कर रखी थी।
וְהָאֲנָשִׁ֗ים רָדְפ֤וּ אַֽחֲרֵיהֶם֙ דֶּ֣רֶךְ הַיַּרְדֵּ֔ן עַ֖ל הַֽמַּעְבְּר֑וֹת וְהַשַּׁ֣עַר סָגָ֔רוּ אַחֲרֵ֕י כַּאֲשֶׁ֛ר יָצְא֥וּ הָרֹדְפִ֖ים אַחֲרֵיהֶֽם׃ 7
वे पुरुष तो यरदन का मार्ग ले उनकी खोज में घाट तक चले गए; और ज्यों ही उनको खोजनेवाले फाटक से निकले त्यों ही फाटक बन्द किया गया।
וְהֵ֖מָּה טֶ֣רֶם יִשְׁכָּב֑וּן וְהִ֛יא עָלְתָ֥ה עֲלֵיהֶ֖ם עַל־הַגָּֽג׃ 8
ये लेटने न पाए थे कि वह स्त्री छत पर इनके पास जाकर
וַתֹּ֙אמֶר֙ אֶל־הָ֣אֲנָשִׁ֔ים יָדַ֕עְתִּי כִּֽי־נָתַ֧ן יְהוָ֛ה לָכֶ֖ם אֶת־הָאָ֑רֶץ וְכִֽי־נָפְלָ֤ה אֵֽימַתְכֶם֙ עָלֵ֔ינוּ וְכִ֥י נָמֹ֛גוּ כָּל־יֹשְׁבֵ֥י הָאָ֖רֶץ מִפְּנֵיכֶֽם׃ 9
इन पुरुषों से कहने लगी, “मुझे तो निश्चय है कि यहोवा ने तुम लोगों को यह देश दिया है, और तुम्हारा भय हम लोगों के मन में समाया है, और इस देश के सब निवासी तुम्हारे कारण घबरा रहे हैं।
כִּ֣י שָׁמַ֗עְנוּ אֵ֠ת אֲשֶׁר־הוֹבִ֨ישׁ יְהוָ֜ה אֶת־מֵ֤י יַם־סוּף֙ מִפְּנֵיכֶ֔ם בְּצֵאתְכֶ֖ם מִמִּצְרָ֑יִם וַאֲשֶׁ֣ר עֲשִׂיתֶ֡ם לִשְׁנֵי֩ מַלְכֵ֨י הָאֱמֹרִ֜י אֲשֶׁ֨ר בְּעֵ֤בֶר הַיַּרְדֵּן֙ לְסִיחֹ֣ן וּלְע֔וֹג אֲשֶׁ֥ר הֶחֱרַמְתֶּ֖ם אוֹתָֽם׃ 10
१०क्योंकि हमने सुना है कि यहोवा ने तुम्हारे मिस्र से निकलने के समय तुम्हारे सामने लाल समुद्र का जल सूखा दिया। और तुम लोगों ने सीहोन और ओग नामक यरदन पार रहनेवाले एमोरियों के दोनों राजाओं का सत्यानाश कर डाला है।
וַנִּשְׁמַע֙ וַיִּמַּ֣ס לְבָבֵ֔נוּ וְלֹא־קָ֨מָה ע֥וֹד ר֛וּחַ בְּאִ֖ישׁ מִפְּנֵיכֶ֑ם כִּ֚י יְהוָ֣ה אֱלֹֽהֵיכֶ֔ם ה֤וּא אֱלֹהִים֙ בַּשָּׁמַ֣יִם מִמַּ֔עַל וְעַל־הָאָ֖רֶץ מִתָּֽחַת׃ 11
११और यह सुनते ही हमारा मन पिघल गया, और तुम्हारे कारण किसी के जी में जी न रहा; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ऊपर के आकाश का और नीचे की पृथ्वी का परमेश्वर है।
וְעַתָּ֗ה הִשָּֽׁבְעוּ־נָ֥א לִי֙ בַּֽיהוָ֔ה כִּי־עָשִׂ֥יתִי עִמָּכֶ֖ם חָ֑סֶד וַעֲשִׂיתֶ֨ם גַּם־אַתֶּ֜ם עִם־בֵּ֤ית אָבִי֙ חֶ֔סֶד וּנְתַתֶּ֥ם לִ֖י א֥וֹת אֱמֶֽת׃ 12
१२अब मैंने जो तुम पर दया की है, इसलिए मुझसे यहोवा की शपथ खाओ कि तुम भी मेरे पिता के घराने पर दया करोगे, और इसका सच्चा चिन्ह मुझे दो,
וְהַחֲיִתֶ֞ם אֶת־אָבִ֣י וְאֶת־אִמִּ֗י וְאֶת־אַחַי֙ וְאֶת־אחותי וְאֵ֖ת כָּל־אֲשֶׁ֣ר לָהֶ֑ם וְהִצַּלְתֶּ֥ם אֶת־נַפְשֹׁתֵ֖ינוּ מִמָּֽוֶת׃ 13
१३कि तुम मेरे माता-पिता, भाइयों और बहनों को, और जो कुछ उनका है उन सभी को भी जीवित रख छोड़ो, और हम सभी का प्राण मरने से बचाओगे।”
וַיֹּ֧אמְרוּ לָ֣הּ הָאֲנָשִׁ֗ים נַפְשֵׁ֤נוּ תַחְתֵּיכֶם֙ לָמ֔וּת אִ֚ם לֹ֣א תַגִּ֔ידוּ אֶת־דְּבָרֵ֖נוּ זֶ֑ה וְהָיָ֗ה בְּתֵת־יְהוָ֥ה לָ֙נוּ֙ אֶת־הָאָ֔רֶץ וְעָשִׂ֥ינוּ עִמָּ֖ךְ חֶ֥סֶד וֶאֱמֶֽת׃ 14
१४तब उन पुरुषों ने उससे कहा, “यदि तू हमारी यह बात किसी पर प्रगट न करे, तो तुम्हारे प्राण के बदले हमारा प्राण जाए; और जब यहोवा हमको यह देश देगा, तब हम तेरे साथ कृपा और सच्चाई से बर्ताव करेंगे।”
וַתּוֹרִדֵ֥ם בַּחֶ֖בֶל בְּעַ֣ד הַֽחַלּ֑וֹן כִּ֤י בֵיתָהּ֙ בְּקִ֣יר הַֽחוֹמָ֔ה וּבַֽחוֹמָ֖ה הִ֥יא יוֹשָֽׁבֶת׃ 15
१५तब राहाब जिसका घर शहरपनाह पर बना था, और वह वहीं रहती थी, उसने उनको खिड़की से रस्सी के बल उतार के नगर के बाहर कर दिया।
וַתֹּ֤אמֶר לָהֶם֙ הָהָ֣רָה לֵּ֔כוּ פֶּֽן־יִפְגְּע֥וּ בָכֶ֖ם הָרֹדְפִ֑ים וְנַחְבֵּתֶ֨ם שָׁ֜מָּה שְׁלֹ֣שֶׁת יָמִ֗ים עַ֚ד שׁ֣וֹב הָרֹֽדְפִ֔ים וְאַחַ֖ר תֵּלְכ֥וּ לְדַרְכְּכֶֽם׃ 16
१६और उसने उनसे कहा, “पहाड़ को चले जाओ, ऐसा न हो कि खोजनेवाले तुम को पाएँ; इसलिए जब तक तुम्हारे खोजनेवाले लौट न आएँ तब तक, अर्थात् तीन दिन वहीं छिपे रहना, उसके बाद अपना मार्ग लेना।”
וַיֹּאמְר֥וּ אֵלֶ֖יהָ הָאֲנָשִׁ֑ים נְקִיִּ֣ם אֲנַ֔חְנוּ מִשְּׁבֻעָתֵ֥ךְ הַזֶּ֖ה אֲשֶׁ֥ר הִשְׁבַּעְתָּֽנוּ׃ 17
१७उन्होंने उससे कहा, जो शपथ तूने हमको खिलाई है उसके विषय में हम तो निर्दोष रहेंगे।
הִנֵּ֛ה אֲנַ֥חְנוּ בָאִ֖ים בָּאָ֑רֶץ אֶת־תִּקְוַ֡ת חוּט֩ הַשָּׁנִ֨י הַזֶּ֜ה תִּקְשְׁרִ֗י בַּֽחַלּוֹן֙ אֲשֶׁ֣ר הוֹרַדְתֵּ֣נוּ ב֔וֹ וְאֶת־אָבִ֨יךְ וְאֶת־אִמֵּ֜ךְ וְאֶת־אַחַ֗יִךְ וְאֵת֙ כָּל־בֵּ֣ית אָבִ֔יךְ תַּאַסְפִ֥י אֵלַ֖יִךְ הַבָּֽיְתָה׃ 18
१८सुन, जब हम लोग इस देश में आएँगे, तब जिस खिड़की से तूने हमको उतारा है उसमें यही लाल रंग के सूत की डोरी बाँध देना; और अपने माता पिता, भाइयों, वरन् अपने पिता के घराने को इसी घर में अपने पास इकट्ठा कर रखना।
וְהָיָ֡ה כֹּ֣ל אֲשֶׁר־יֵצֵא֩ מִדַּלְתֵ֨י בֵיתֵ֧ךְ ׀ הַח֛וּצָה דָּמ֥וֹ בְרֹאשׁ֖וֹ וַאֲנַ֣חְנוּ נְקִיִּ֑ם וְ֠כֹל אֲשֶׁ֨ר יִֽהְיֶ֤ה אִתָּךְ֙ בַּבַּ֔יִת דָּמ֣וֹ בְרֹאשֵׁ֔נוּ אִם־יָ֖ד תִּֽהְיֶה־בּֽוֹ׃ 19
१९तब जो कोई तेरे घर के द्वार से बाहर निकले, उसके खून का दोष उसी के सिर पड़ेगा, और हम निर्दोष ठहरेंगे: परन्तु यदि तेरे संग घर में रहते हुए किसी पर किसी का हाथ पड़े, तो उसके खून का दोष हमारे सिर पर पड़ेगा।
וְאִם־תַּגִּ֖ידִי אֶת־דְּבָרֵ֣נוּ זֶ֑ה וְהָיִ֣ינוּ נְקִיִּ֔ם מִשְּׁבֻעָתֵ֖ךְ אֲשֶׁ֥ר הִשְׁבַּעְתָּֽנוּ׃ 20
२०फिर यदि तू हमारी यह बात किसी पर प्रगट करे, तो जो शपथ तूने हमको खिलाई है उससे हम स्वतंत्र ठहरेंगे।”
וַתֹּ֙אמֶר֙ כְּדִבְרֵיכֶ֣ם כֶּן־ה֔וּא וַֽתְּשַׁלְּחֵ֖ם וַיֵּלֵ֑כוּ וַתִּקְשֹׁ֛ר אֶת־תִּקְוַ֥ת הַשָּׁנִ֖י בַּחַלּֽוֹן׃ 21
२१उसने कहा, “तुम्हारे वचनों के अनुसार हो।” तब उसने उनको विदा किया, और वे चले गए; और उसने लाल रंग की डोरी को खिड़की में बाँध दिया।
וַיֵּלְכוּ֙ וַיָּבֹ֣אוּ הָהָ֔רָה וַיֵּ֤שְׁבוּ שָׁם֙ שְׁלֹ֣שֶׁת יָמִ֔ים עַד־שָׁ֖בוּ הָרֹדְפִ֑ים וַיְבַקְשׁ֧וּ הָרֹדְפִ֛ים בְּכָל־הַדֶּ֖רֶךְ וְלֹ֥א מָצָֽאוּ׃ 22
२२और वे जाकर पहाड़ तक पहुँचे, और वहाँ खोजनेवालों के लौटने तक, अर्थात् तीन दिन तक रहे; और खोजनेवाले उनको सारे मार्ग में ढूँढ़ते रहे और कहीं न पाया।
וַיָּשֻׁ֜בוּ שְׁנֵ֤י הָֽאֲנָשִׁים֙ וַיֵּרְד֣וּ מֵֽהָהָ֔ר וַיַּעַבְרוּ֙ וַיָּבֹ֔אוּ אֶל־יְהוֹשֻׁ֖עַ בִּן־נ֑וּן וַיְסַ֨פְּרוּ־ל֔וֹ אֵ֥ת כָּל־הַמֹּצְא֖וֹת אוֹתָֽם׃ 23
२३तब वे दोनों पुरुष पहाड़ से उतरे, और पार जाकर नून के पुत्र यहोशू के पास पहुँचकर जो कुछ उन पर बीता था उसका वर्णन किया।
וַיֹּאמְרוּ֙ אֶל־יְהוֹשֻׁ֔עַ כִּֽי־נָתַ֧ן יְהוָ֛ה בְּיָדֵ֖נוּ אֶת־כָּל־הָאָ֑רֶץ וְגַם־נָמֹ֛גוּ כָּל־יֹשְׁבֵ֥י הָאָ֖רֶץ מִפָּנֵֽינוּ׃ ס 24
२४और उन्होंने यहोशू से कहा, “निःसन्देह यहोवा ने वह सारा देश हमारे हाथ में कर दिया है; फिर इसके सिवाय उसके सारे निवासी हमारे कारण घबरा रहे हैं।”

< יְהוֹשֻעַ 2 >