< אִיּוֹב 8 >
וַ֭יַּעַן בִּלְדַּ֥ד הַשּׁוּחִ֗י וַיֹאמַֽר׃ | 1 |
तब शूही बिलदद ने कहना प्रारंभ किया:
עַד־אָ֥ן תְּמַלֶּל־אֵ֑לֶּה וְר֥וּחַ כַּ֝בִּיר אִמְרֵי־פִֽיךָ׃ | 2 |
“और कितना दोहराओगे इस विषय को? अब तो तुम्हारे शब्द तेज हवा जैसी हो चुके हैं.
הַ֭אֵל יְעַוֵּ֣ת מִשְׁפָּ֑ט וְאִם־שַׁ֝דַּ֗י יְעַוֵּֽת־צֶֽדֶק׃ | 3 |
क्या परमेश्वर द्वारा अन्याय संभव है? क्या सर्वशक्तिमान न्याय को पथभ्रष्ट करेगा?
אִם־בָּנֶ֥יךָ חָֽטְאוּ־ל֑וֹ וַֽ֝יְשַׁלְּחֵ֗ם בְּיַד־פִּשְׁעָֽם׃ | 4 |
यदि तुम्हारे पुत्रों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है, तब तो परमेश्वर ने उन्हें उनके अपराधों के अधीन कर दिया है.
אִם־אַ֭תָּה תְּשַׁחֵ֣ר אֶל־אֵ֑ל וְאֶל־שַׁ֝דַּ֗י תִּתְחַנָּֽן׃ | 5 |
यदि तुम परमेश्वर को आग्रहपूर्वक अर्थना करें, सर्वशक्तिमान से कृपा की याचना करें,
אִם־זַ֥ךְ וְיָשָׁ֗ר אָ֥תָּה כִּי־עַ֭תָּה יָעִ֣יר עָלֶ֑יךָ וְ֝שִׁלַּ֗ם נְוַ֣ת צִדְקֶֽךָ׃ | 6 |
यदि तुम पापरहित तथा ईमानदार हो, यह निश्चित है कि परमेश्वर तुम्हारे पक्ष में सक्रिय हो जाएंगे और तुम्हारी युक्तता की स्थिति को पुनःस्थापित कर देंगे.
וְהָיָ֣ה רֵאשִׁיתְךָ֣ מִצְעָ֑ר וְ֝אַחֲרִיתְךָ֗ יִשְׂגֶּ֥ה מְאֹֽד׃ | 7 |
यद्यपि तुम्हारा प्रारंभ नम्र जान पड़ेगा, फिर भी तुम्हारा भविष्य अत्यंत महान होगा.
כִּֽי־שְׁאַל־נָ֭א לְדֹ֣ר רִישׁ֑וֹן וְ֝כוֹנֵ֗ן לְחֵ֣קֶר אֲבוֹתָֽם׃ | 8 |
“कृपा करो और पूर्व पीढ़ियों से मालूम करो, उन विषयों पर विचार करो,
כִּֽי־תְמ֣וֹל אֲ֭נַחְנוּ וְלֹ֣א נֵדָ֑ע כִּ֤י צֵ֖ל יָמֵ֣ינוּ עֲלֵי־אָֽרֶץ׃ | 9 |
क्योंकि हम तो कल की पीढ़ी हैं और हमें इसका कोई ज्ञान नहीं है, क्योंकि पृथ्वी पर हमारा जीवन छाया-समान होता है.
הֲלֹא־הֵ֣ם י֭וֹרוּךָ יֹ֣אמְרוּ לָ֑ךְ וּ֝מִלִּבָּ֗ם יוֹצִ֥אוּ מִלִּֽים׃ | 10 |
क्या वे तुम्हें शिक्षा देते हुए प्रकट न करेंगे, तथा अपने मन के विचार व्यक्त न करेंगे?
הֲיִֽגְאֶה־גֹּ֭מֶא בְּלֹ֣א בִצָּ֑ה יִשְׂגֶּה־אָ֥חוּ בְלִי־מָֽיִם׃ | 11 |
क्या दलदल में कभी सरकंडा उग सकता है? क्या जल बिन झाड़ियां जीवित रह सकती हैं?
עֹדֶ֣נּוּ בְ֭אִבּוֹ לֹ֣א יִקָּטֵ֑ף וְלִפְנֵ֖י כָל־חָצִ֣יר יִיבָֽשׁ׃ | 12 |
वह हरा ही होता है तथा इसे काटा नहीं जाता, फिर भी यह अन्य पौधों की अपेक्षा पहले ही सूख जाता है.
כֵּ֗ן אָ֭רְחוֹת כָּל־שֹׁ֣כְחֵי אֵ֑ל וְתִקְוַ֖ת חָנֵ֣ף תֹּאבֵֽד׃ | 13 |
उनकी चालचलन भी ऐसी होती है, जो परमेश्वर को भूल जाते हैं; श्रद्धाहीन मनुष्यों की आशा नष्ट हो जाती है.
אֲשֶׁר־יָק֥וֹט כִּסְל֑וֹ וּבֵ֥ית עַ֝כָּבִ֗ישׁ מִבְטַחֽוֹ׃ | 14 |
उसका आत्मविश्वास दुर्बल होता है तथा उसका विश्वास मकड़ी के जाल समान पल भर का होता है.
יִשָּׁעֵ֣ן עַל־בֵּ֭יתוֹ וְלֹ֣א יַעֲמֹ֑ד יַחֲזִ֥יק בּ֝֗וֹ וְלֹ֣א יָקֽוּם׃ | 15 |
उसने अपने घर के आश्रय पर भरोसा किया, किंतु वह स्थिर न रह सका है; उसने हर संभव प्रयास तो किए, किंतु इसमें टिकने की क्षमता ही न थी.
רָטֹ֣ב ה֭וּא לִפְנֵי־שָׁ֑מֶשׁ וְעַ֥ל גַּ֝נָּת֗וֹ יֹֽנַקְתּ֥וֹ תֵצֵֽא׃ | 16 |
वह सूर्य प्रकाश में समृद्ध हो जाता है, उसकी जड़ें उद्यान में फैलती जाती हैं.
עַל־גַּ֭ל שָֽׁרָשָׁ֣יו יְסֻבָּ֑כוּ בֵּ֖ית אֲבָנִ֣ים יֶחֱזֶֽה׃ | 17 |
उसकी जड़ें पत्थरों को चारों ओर से जकड़ लेती हैं, वह पत्थरों से निर्मित भवन को पकड़े रखता है.
אִם־יְבַלְּעֶ֥נּוּ מִמְּקוֹמ֑וֹ וְכִ֥חֶשׁ בּ֝֗וֹ לֹ֣א רְאִיתִֽיךָ׃ | 18 |
यदि उसे उसके स्थान से उखाड़ दिया जाए, तब उससे यह कहा जाएगा: ‘तुम्हें मैंने कभी देखा नहीं!’
הֶן־ה֭וּא מְשׂ֣וֹשׂ דַּרְכּ֑וֹ וּ֝מֵעָפָ֗ר אַחֵ֥ר יִצְמָֽחוּ׃ | 19 |
अय्योब, ध्यान दो! यही है परमेश्वर की नीतियों का आनंद; इसी धूल से दूसरे उपजेंगे.
הֶן־אֵ֭ל לֹ֣א יִמְאַס־תָּ֑ם וְלֹֽא־יַ֝חֲזִ֗יק בְּיַד־מְרֵעִֽים׃ | 20 |
“मालूम है कि परमेश्वर सत्यनिष्ठ व्यक्ति को उपेक्षित नहीं छोड़ देते, और न वह दुष्कर्मियों का समर्थन करते हैं.
עַד־יְמַלֵּ֣ה שְׂח֣וֹק פִּ֑יךָ וּשְׂפָתֶ֥יךָ תְרוּעָֽה׃ | 21 |
अब भी वह तुम्हारे जीवन को हास्य से पूर्ण कर देंगे, तुम उच्च स्वर में हर्षोल्लास करोगे.
שֹׂנְאֶ֥יךָ יִלְבְּשׁוּ־בֹ֑שֶׁת וְאֹ֖הֶל רְשָׁעִ֣ים אֵינֶֽנּוּ׃ פ | 22 |
जिन्हें तुमसे घृणा है, लज्जा उनका परिधान होगी तथा दुर्वृत्तों का घर अस्तित्व में न रहेगा.”