< יִרְמְיָהוּ 2 >
וַיְהִ֥י דְבַר־יְהוָ֖ה אֵלַ֥י לֵאמֹֽר׃ | 1 |
तब मुझे याहवेह का यह संदेश प्राप्त हुआ:
הָלֹ֡ךְ וְקָֽרָאתָ֩ בְאָזְנֵ֨י יְרוּשָׁלִַ֜ם לֵאמֹ֗ר כֹּ֚ה אָמַ֣ר יְהוָ֔ה זָכַ֤רְתִּי לָךְ֙ חֶ֣סֶד נְעוּרַ֔יִךְ אַהֲבַ֖ת כְּלוּלֹתָ֑יִךְ לֶכְתֵּ֤ךְ אַחֲרַי֙ בַּמִּדְבָּ֔ר בְּאֶ֖רֶץ לֹ֥א זְרוּעָֽה׃ | 2 |
“जाओ, येरूशलेम की प्रजा के कानों में वाणी करो: “यह याहवेह का संदेश है: “‘तुम्हारे विषय में मुझे स्मरण है: जवानी की तुम्हारी निष्ठा, दुल्हिन सा तुम्हारा प्रेम और निर्जन प्रदेश में तुम्हारे द्वारा मेरा अनुसरण, ऐसे देश में, जहां बीज बोया नहीं जाता था.
קֹ֤דֶשׁ יִשְׂרָאֵל֙ לַיהוָ֔ה רֵאשִׁ֖ית תְּבוּאָתֹ֑ה כָּל־אֹכְלָ֣יו יֶאְשָׁ֔מוּ רָעָ֛ה תָּבֹ֥א אֲלֵיהֶ֖ם נְאֻם־יְהוָֽה׃ פ | 3 |
इस्राएल याहवेह के लिए पवित्र किया हुआ था, याहवेह की पहली उपज; जिस किसी ने इस उपज का उपभोग किया, वे दोषी हो गए; वे संकट से ग्रसित हो गए,’” यह याहवेह की वाणी है.
שִׁמְע֥וּ דְבַר־יְהוָ֖ה בֵּ֣ית יַעֲקֹ֑ב וְכָֽל־מִשְׁפְּח֖וֹת בֵּ֥ית יִשְׂרָאֵֽל׃ | 4 |
याकोब के वंशजों, याहवेह का संदेश सुनो, इस्राएल के सारे गोत्रों, तुम भी.
כֹּ֣ה ׀ אָמַ֣ר יְהוָ֗ה מַה־מָּצְא֨וּ אֲבוֹתֵיכֶ֥ם בִּי֙ עָ֔וֶל כִּ֥י רָחֲק֖וּ מֵעָלָ֑י וַיֵּֽלְכ֛וּ אַחֲרֵ֥י הַהֶ֖בֶל וַיֶּהְבָּֽלוּ׃ | 5 |
याहवेह का संदेश यह है: “तुम्हारे पूर्वजों ने मुझमें कौन सा अन्याय पाया, कि वे मुझसे दूर हो गए? निकम्मी वस्तुओं के पीछे होकर वे स्वयं निकम्मे बन गए.
וְלֹ֣א אָמְר֔וּ אַיֵּ֣ה יְהוָ֔ה הַמַּעֲלֶ֥ה אֹתָ֖נוּ מֵאֶ֣רֶץ מִצְרָ֑יִם הַמּוֹלִ֨יךְ אֹתָ֜נוּ בַּמִּדְבָּ֗ר בְּאֶ֨רֶץ עֲרָבָ֤ה וְשׁוּחָה֙ בְּאֶ֙רֶץ֙ צִיָּ֣ה וְצַלְמָ֔וֶת בְּאֶ֗רֶץ לֹֽא־עָ֤בַר בָּהּ֙ אִ֔ישׁ וְלֹֽא־יָשַׁ֥ב אָדָ֖ם שָֽׁם׃ | 6 |
उन्होंने यह प्रश्न ही न किया, ‘कहां हैं याहवेह, जिन्होंने हमें मिस्र देश से मुक्त किया और जो हमें निर्जन प्रदेश में होकर यहां लाया. मरुभूमि तथा गड्ढों की भूमि में से, उस भूमि में से, जहां निर्जल तथा अंधकार व्याप्त था, उस भूमि में से जिसके पार कोई नहीं गया था, जिसमें कोई निवास नहीं करता था?’
וָאָבִ֤יא אֶתְכֶם֙ אֶל־אֶ֣רֶץ הַכַּרְמֶ֔ל לֶאֱכֹ֥ל פִּרְיָ֖הּ וְטוּבָ֑הּ וַתָּבֹ֙אוּ֙ וַתְּטַמְּא֣וּ אֶת־אַרְצִ֔י וְנַחֲלָתִ֥י שַׂמְתֶּ֖ם לְתוֹעֵבָֽה׃ | 7 |
मैं तुम्हें उपजाऊ भूमि पर ले आया कि तुम इसकी उपज का सेवन करो और इसकी उत्तम वस्तुओं का उपयोग करो. किंतु तुमने आकर मेरी भूमि को अशुद्ध कर दिया और तुमने मेरे इस निज भाग को घृणास्पद बना दिया.
הַכֹּהֲנִ֗ים לֹ֤א אָֽמְרוּ֙ אַיֵּ֣ה יְהוָ֔ה וְתֹפְשֵׂ֤י הַתּוֹרָה֙ לֹ֣א יְדָע֔וּנִי וְהָרֹעִ֖ים פָּ֣שְׁעוּ בִ֑י וְהַנְּבִיאִים֙ נִבְּא֣וּ בַבַּ֔עַל וְאַחֲרֵ֥י לֹֽא־יוֹעִ֖לוּ הָלָֽכוּ׃ | 8 |
पुरोहितों ने यह समझने का प्रयास कभी नहीं किया, ‘याहवेह कहां हैं?’ आचार्य तो मुझे जानते ही न थे; उच्च अधिकारी ने मेरे विरोध में विद्रोह किया. भविष्यवक्ताओं ने बाल के द्वारा भविष्यवाणी की, तथा उस उपक्रम में लग गए जो निरर्थक है.
לָכֵ֗ן עֹ֛ד אָרִ֥יב אִתְּכֶ֖ם נְאֻם־יְהוָ֑ה וְאֶת־בְּנֵ֥י בְנֵיכֶ֖ם אָרִֽיב׃ | 9 |
“तब मैं पुनः तुम्हारे समक्ष अपना सहायक प्रस्तुत करूंगा,” यह याहवेह की वाणी है. “मैं तुम्हारी संतान की संतान के समक्ष अपना सहायक प्रस्तुत करूंगा.
כִּ֣י עִבְר֞וּ אִיֵּ֤י כִתִּיִּים֙ וּרְא֔וּ וְקֵדָ֛ר שִׁלְח֥וּ וְהִֽתְבּוֹנְנ֖וּ מְאֹ֑ד וּרְא֕וּ הֵ֥ן הָיְתָ֖ה כָּזֹֽאת׃ | 10 |
सागर पार कर कित्तिम के तटवर्ती क्षेत्रों में देखो, किसी को केदार देश भेजकर सूक्ष्म अवलोकन करो; और ज्ञात करो कि कभी ऐसा हुआ है:
הַהֵימִ֥יר גּוֹי֙ אֱלֹהִ֔ים וְהֵ֖מָּה לֹ֣א אֱלֹהִ֑ים וְעַמִּ֛י הֵמִ֥יר כְּבוֹד֖וֹ בְּל֥וֹא יוֹעִֽיל׃ | 11 |
क्या किसी राष्ट्र ने अपने देवता परिवर्तित किए हैं? (जबकि देवता कुछ भी नहीं हुआ करते.) किंतु मेरी प्रजा ने अपने गौरव का विनिमय उससे कर लिया है जो सर्वथा निरर्थक है.
שֹׁ֥מּוּ שָׁמַ֖יִם עַל־זֹ֑את וְשַׂעֲר֛וּ חָרְב֥וּ מְאֹ֖ד נְאֻם־יְהוָֽה׃ | 12 |
आकाश, इस पर अपना भय अभिव्यक्त करो, कांप जाओ और अत्यंत सुनसान हो जाओ,” यह याहवेह की वाणी है.
כִּֽי־שְׁתַּ֥יִם רָע֖וֹת עָשָׂ֣ה עַמִּ֑י אֹתִ֨י עָזְב֜וּ מְק֣וֹר ׀ מַ֣יִם חַיִּ֗ים לַחְצֹ֤ב לָהֶם֙ בֹּאר֔וֹת בֹּארֹת֙ נִשְׁבָּרִ֔ים אֲשֶׁ֥ר לֹא־יָכִ֖לוּ הַמָּֽיִם׃ | 13 |
“मेरी प्रजा ने दो बुराइयां की हैं: उन्होंने मुझ जीवन्त स्रोत का परित्याग कर दिया है, उन्होंने ऐसे हौद बना लिए हैं, जो टूटे हुए हैं, जो पानी को रोक नहीं सकते.
הַעֶ֙בֶד֙ יִשְׂרָאֵ֔ל אִם־יְלִ֥יד בַּ֖יִת ה֑וּא מַדּ֖וּעַ הָיָ֥ה לָבַֽז׃ | 14 |
क्या इस्राएल दास है, अथवा घर में ही जन्मा सेवक? तब उसका शिकार क्यों किया जा रहा है?
עָלָיו֙ יִשְׁאֲג֣וּ כְפִרִ֔ים נָתְנ֖וּ קוֹלָ֑ם וַיָּשִׁ֤יתוּ אַרְצוֹ֙ לְשַׁמָּ֔ה עָרָ֥יו נצתה מִבְּלִ֥י יֹשֵֽׁב׃ | 15 |
जवान सिंह उस पर दहाड़ते रहे हैं; अत्यंत सशक्त रही है उनकी दहाड़. उन्होंने उसके देश को उजाड़ बना दिया है; उसके नगरों को नष्ट कर दिया है और उसके नगर निर्जन रह गए हैं.
גַּם־בְּנֵי־נֹ֖ף ותחפנס יִרְע֖וּךְ קָדְקֹֽד׃ | 16 |
मैमफिस तथा ताहपनहेस के लोगों ने तुम्हारी उपज की बालें नोच डाली हैं.
הֲלוֹא־זֹ֖את תַּעֲשֶׂה־לָּ֑ךְ עָזְבֵךְ֙ אֶת־יְהוָ֣ה אֱלֹהַ֔יִךְ בְּעֵ֖ת מוֹלִיכֵ֥ךְ בַּדָּֽרֶךְ׃ | 17 |
क्या यह स्वयं तुम्हारे ही द्वारा लाई हुई स्थिति नहीं है, जब याहवेह तुम्हें लेकर आ रहे थे, तुमने याहवेह अपने परमेश्वर का परित्याग कर दिया?
וְעַתָּ֗ה מַה־לָּךְ֙ לְדֶ֣רֶךְ מִצְרַ֔יִם לִשְׁתּ֖וֹת מֵ֣י שִׁח֑וֹר וּמַה־לָּךְ֙ לְדֶ֣רֶךְ אַשּׁ֔וּר לִשְׁתּ֖וֹת מֵ֥י נָהָֽר׃ | 18 |
किंतु अब तुम मिस्र की ओर क्यों देखते हो? नील नदी के जल पीना तुम्हारा लक्ष्य है? अथवा तुम अश्शूर के मार्ग पर क्या कर रहे हो? क्या तुम्हारा लक्ष्य है, फरात नदी के जल का सेवन करना?
תְּיַסְּרֵ֣ךְ רָעָתֵ֗ךְ וּמְשֻֽׁבוֹתַ֙יִךְ֙ תּוֹכִחֻ֔ךְ וּדְעִ֤י וּרְאִי֙ כִּי־רַ֣ע וָמָ֔ר עָזְבֵ֖ךְ אֶת־יְהוָ֣ה אֱלֹהָ֑יִךְ וְלֹ֤א פַחְדָּתִי֙ אֵלַ֔יִךְ נְאֻם־אֲדֹנָ֥י יְהוִ֖ה צְבָאֽוֹת׃ | 19 |
तुम्हारी अपनी बुराई ही तुम्हें सुधारेगी; याहवेह के प्रति श्रद्धा से तुम्हारा भटक जाना ही तुम्हें प्रताड़ित करेगा. तब यह समझ लो तथा यह बात पहचान लो याहवेह अपने परमेश्वर का परित्याग करना हानिकर एवं पीड़ादायी है, तुममें मेरे प्रति भय-भाव है ही नहीं,” यह सेनाओं के प्रभु परमेश्वर की वाणी है.
כִּ֣י מֵעוֹלָ֞ם שָׁבַ֣רְתִּי עֻלֵּ֗ךְ נִתַּ֙קְתִּי֙ מוֹסְרֹתַ֔יִךְ וַתֹּאמְרִ֖י לֹ֣א אעבד כִּ֣י עַֽל־כָּל־גִּבְעָ֞ה גְּבֹהָ֗ה וְתַ֙חַת֙ כָּל־עֵ֣ץ רַעֲנָ֔ן אַ֖תְּ צֹעָ֥ה זֹנָֽה׃ | 20 |
“वर्षों पूर्व मैंने तुम्हारा जूआ भंग कर दिया तथा तुम्हारे बंधन तोड़ डाले; किंतु तुमने कह दिया, ‘सेवा मैं नहीं करूंगा!’ क्योंकि, हर एक उच्च पर्वत पर और हर एक हरे वृक्ष के नीचे तुमने वेश्या-सदृश मेरे साथ विश्वासघात किया है.
וְאָֽנֹכִי֙ נְטַעְתִּ֣יךְ שֹׂרֵ֔ק כֻּלֹּ֖ה זֶ֣רַע אֱמֶ֑ת וְאֵיךְ֙ נֶהְפַּ֣כְתְּ לִ֔י סוּרֵ֖י הַגֶּ֥פֶן נָכְרִיָּֽה׃ | 21 |
फिर भी मैंने तुम्हें एक उत्कृष्ट द्राक्षलता सदृश, पूर्णतः, विशुद्ध बीज सदृश रोपित किया. तब ऐसा क्या हो गया जो तुम विकृत हो गए और वन्य लता के निकृष्ट अंकुर में, परिवर्तित हो गए?
כִּ֤י אִם־תְּכַבְּסִי֙ בַּנֶּ֔תֶר וְתַרְבִּי־לָ֖ךְ בֹּרִ֑ית נִכְתָּ֤ם עֲוֺנֵךְ֙ לְפָנַ֔י נְאֻ֖ם אֲדֹנָ֥י יְהוִֽה׃ | 22 |
यद्यपि तुम साबुन के साथ स्वयं को स्वच्छ करते हो तथा भरपूरी से साबुन का प्रयोग करते हो, फिर भी तुम्हारा अधर्म मेरे समक्ष बना हुआ है,” यह प्रभु याहवेह की वाणी है.
אֵ֣יךְ תֹּאמְרִ֞י לֹ֣א נִטְמֵ֗אתִי אַחֲרֵ֤י הַבְּעָלִים֙ לֹ֣א הָלַ֔כְתִּי רְאִ֤י דַרְכֵּךְ֙ בַּגַּ֔יְא דְּעִ֖י מֶ֣ה עָשִׂ֑ית בִּכְרָ֥ה קַלָּ֖ה מְשָׂרֶ֥כֶת דְּרָכֶֽיהָ׃ | 23 |
“तुम यह दावा कैसे कर सकते हो, ‘मैं अशुद्ध नहीं हुआ हूं; मैं बाल देवताओं के प्रति निष्ठ नहीं हुआ हूं’? उस घाटी में अपने आचार-व्यवहार को स्मरण करो; यह पहचानो कि तुम क्या कर बैठे हो. तुम तो उस ऊंटनी सदृश हो जो दिशाहीन लक्ष्य की ओर तीव्र गति से दौड़ती हुई उत्तरोत्तर उलझती जा रही है,
פֶּ֣רֶה ׀ לִמֻּ֣ד מִדְבָּ֗ר בְּאַוַּ֤ת נפשו שָׁאֲפָ֣ה ר֔וּחַ תַּאֲנָתָ֖הּ מִ֣י יְשִׁיבֶ֑נָּה כָּל־מְבַקְשֶׁ֙יהָ֙ לֹ֣א יִיעָ֔פוּ בְּחָדְשָׁ֖הּ יִמְצָאֽוּנְהָ׃ | 24 |
तुम वनों में पली-बढ़ी उस वन्य गधी के सदृश हो, जो अपनी लालसा में वायु की गंध लेती रहती है— उत्तेजना के समय में कौन उसे नियंत्रित कर सकता है? वे सब जो उसे खोजते हैं व्यर्थ न हों; उसकी उस समागम ऋतु में वे उसे पा ही लेंगे.
מִנְעִ֤י רַגְלֵךְ֙ מִיָּחֵ֔ף וגורנך מִצִּמְאָ֑ה וַתֹּאמְרִ֣י נוֹאָ֔שׁ ל֕וֹא כִּֽי־אָהַ֥בְתִּי זָרִ֖ים וְאַחֲרֵיהֶ֥ם אֵלֵֽךְ׃ | 25 |
तुम्हारे पांव जूते-विहीन न रहें और न तुम्हारा गला प्यास से सूखने पाए. किंतु तुमने कहा, ‘निरर्थक होगा यह प्रयास! नहीं! मैंने अपरिचितों से प्रेम किया है, मैं तो उन्हीं के पास जाऊंगी.’
כְּבֹ֤שֶׁת גַּנָּב֙ כִּ֣י יִמָּצֵ֔א כֵּ֥ן הֹבִ֖ישׁוּ בֵּ֣ית יִשְׂרָאֵ֑ל הֵ֤מָּה מַלְכֵיהֶם֙ שָֽׂרֵיהֶ֔ם וְכֹהֲנֵיהֶ֖ם וּנְבִיאֵיהֶֽם׃ | 26 |
“जैसे चोर चोरी पकड़े जाने पर लज्जित हो जाता है, वैसे ही इस्राएल वंशज लज्जित हुए हैं— वे, उनके राजा, उनके उच्च अधिकारी, उनके पुरोहित और उनके भविष्यद्वक्ता.
אֹמְרִ֨ים לָעֵ֜ץ אָ֣בִי אַ֗תָּה וְלָאֶ֙בֶן֙ אַ֣תְּ ילדתני כִּֽי־פָנ֥וּ אֵלַ֛י עֹ֖רֶף וְלֹ֣א פָנִ֑ים וּבְעֵ֤ת רָֽעָתָם֙ יֹֽאמְר֔וּ ק֖וּמָה וְהוֹשִׁיעֵֽנוּ׃ | 27 |
वे वृक्ष से कहते हैं, ‘तुम मेरे पिता हो,’ तथा पत्थर से, ‘तुमने मुझे जन्म दिया है.’ यह इसलिये कि उन्होंने अपनी पीठ मेरी ओर कर दी है अपना मुख नहीं; किंतु अपने संकट के समय, वे कहेंगे, ‘उठिए और हमारी रक्षा कीजिए!’
וְאַיֵּ֤ה אֱלֹהֶ֙יךָ֙ אֲשֶׁ֣ר עָשִׂ֣יתָ לָּ֔ךְ יָק֕וּמוּ אִם־יוֹשִׁיע֖וּךָ בְּעֵ֣ת רָעָתֶ֑ךָ כִּ֚י מִסְפַּ֣ר עָרֶ֔יךָ הָי֥וּ אֱלֹהֶ֖יךָ יְהוּדָֽה׃ ס | 28 |
किंतु वे देवता जो तुमने अपने लिए निर्मित किए हैं, कहां हैं? यदि उनमें तुम्हारी रक्षा करने की क्षमता है तो वे तुम्हारे संकट के समय तैयार हो जाएं! क्योंकि यहूदिया, जितनी संख्या तुम्हारे नगरों की है उतने ही हैं तुम्हारे देवता.
לָ֥מָּה תָרִ֖יבוּ אֵלָ֑י כֻּלְּכֶ֛ם פְּשַׁעְתֶּ֥ם בִּ֖י נְאֻם־יְהוָֽה ׃ | 29 |
“तुम मुझसे वाद-विवाद क्यों कर रहे हो? तुम सभी ने मेरे विरुद्ध बलवा किया है,” यह याहवेह की वाणी है.
לַשָּׁוְא֙ הִכֵּ֣יתִי אֶת־בְּנֵיכֶ֔ם מוּסָ֖ר לֹ֣א לָקָ֑חוּ אָכְלָ֧ה חַרְבְּכֶ֛ם נְבִֽיאֵיכֶ֖ם כְּאַרְיֵ֥ה מַשְׁחִֽית׃ | 30 |
“व्यर्थ हुई मेरे द्वारा तुम्हारी संतान की ताड़ना; उन्होंने इसे स्वीकार ही नहीं किया. हिंसक सिंह सदृश तुम्हारी ही तलवार तुम्हारे भविष्यवक्ताओं को निगल कर गई.
הַדּ֗וֹר אַתֶּם֙ רְא֣וּ דְבַר־יְהוָ֔ה הֲמִדְבָּ֤ר הָיִ֙יתִי֙ לְיִשְׂרָאֵ֔ל אִ֛ם אֶ֥רֶץ מַאְפֵּ֖לְיָ֑ה מַדּ֜וּעַ אָמְר֤וּ עַמִּי֙ רַ֔דְנוּ לֽוֹא־נָב֥וֹא ע֖וֹד אֵלֶֽיךָ׃ | 31 |
“इस पीढ़ी के लोगो, याहवेह के वचन पर ध्यान दो: “क्या इस्राएल के लिए मैं निर्जन प्रदेश सदृश रहा हूं अथवा गहन अंधकार के क्षेत्र सदृश? क्या कारण है कि मेरी प्रजा यह कहती है, ‘हम ध्यान करने के लिए स्वतंत्र हैं; क्या आवश्यकता है कि हम आपकी शरण में आएं’?
הֲתִשְׁכַּ֤ח בְּתוּלָה֙ עֶדְיָ֔הּ כַּלָּ֖ה קִשֻּׁרֶ֑יהָ וְעַמִּ֣י שְׁכֵח֔וּנִי יָמִ֖ים אֵ֥ין מִסְפָּֽר׃ | 32 |
क्या कोई नवयुवती अपने आभूषणों की उपेक्षा कर सकती है, अथवा क्या किसी वधू के लिए उसका श्रृंगार महत्वहीन होता है? फिर भी मेरी प्रजा ने मुझे भूलना पसंद कर दिया है, वह भी दीर्घ काल से.
מַה־תֵּיטִ֥בִי דַּרְכֵּ֖ךְ לְבַקֵּ֣שׁ אַהֲבָ֑ה לָכֵן֙ גַּ֣ם אֶת־הָרָע֔וֹת למדתי אֶת־דְּרָכָֽיִךְ׃ | 33 |
अपने प्रिय बर्तन तक पहुंचने के लिए तुम कैसी कुशलतापूर्वक युक्ति कर लेते हो! तब तुमने तो बुरी स्त्रियों को भी अपनी युक्तियां सिखा दी हैं.
גַּ֤ם בִּכְנָפַ֙יִךְ֙ נִמְצְא֔וּ דַּ֛ם נַפְשׁ֥וֹת אֶבְיוֹנִ֖ים נְקִיִּ֑ים לֹֽא־בַמַּחְתֶּ֥רֶת מְצָאתִ֖ים כִּ֥י עַל־כָּל־אֵֽלֶּה׃ | 34 |
तुम्हारे वस्त्र पर तो निर्दोष गरीब का जीवन देनेवाला रक्त पाया गया है, तुम्हें तो पता ही न चला कि वे कब तुम्हारे आवास में घुस आए.
וַתֹּֽאמְרִי֙ כִּ֣י נִקֵּ֔יתִי אַ֛ךְ שָׁ֥ב אַפּ֖וֹ מִמֶּ֑נִּי הִנְנִי֙ נִשְׁפָּ֣ט אוֹתָ֔ךְ עַל־אָמְרֵ֖ךְ לֹ֥א חָטָֽאתִי׃ | 35 |
यह सब होने पर भी तुमने दावा किया, ‘मैं निस्सहाय हूं; निश्चय उनका क्रोध मुझ पर से टल चुका है.’ किंतु यह समझ लो कि मैं तुम्हारा न्याय कर रहा हूं क्योंकि तुमने दावा किया है, ‘मैं निस्सहाय हूं.’
מַה־תֵּזְלִ֥י מְאֹ֖ד לְשַׁנּ֣וֹת אֶת־דַּרְכֵּ֑ךְ גַּ֤ם מִמִּצְרַ֙יִם֙ תֵּב֔וֹשִׁי כַּאֲשֶׁר־בֹּ֖שְׁתְּ מֵאַשּֽׁוּר׃ | 36 |
तुम अपनी नीतियां परिवर्तित क्यों करते रहते हो, यह भी स्मरण रखना? तुम जिस प्रकार अश्शूर के समक्ष लज्जित हुए थे उसी प्रकार ही तुम्हें मिस्र के समक्ष भी लज्जित होना पड़ेगा.
גַּ֣ם מֵאֵ֥ת זֶה֙ תֵּֽצְאִ֔י וְיָדַ֖יִךְ עַל־רֹאשֵׁ֑ךְ כִּֽי־מָאַ֤ס יְהֹוָה֙ בְּמִבְטַחַ֔יִךְ וְלֹ֥א תַצְלִ֖יחִי לָהֶֽם׃ | 37 |
इस स्थान से भी तुम्हें निराश होना होगा. उस समय तुम्हारे हाथ तुम्हारे सिर पर होंगे, क्योंकि जिन पर तुम्हारा भरोसा था उन्हें याहवेह ने अस्वीकृत कर दिया है; उनके साथ तुम्हारी समृद्धि संभव नहीं है.