< בְּרֵאשִׁית 42 >
וַיַּ֣רְא יַעֲקֹ֔ב כִּ֥י יֶשׁ־שֶׁ֖בֶר בְּמִצְרָ֑יִם וַיֹּ֤אמֶר יַעֲקֹב֙ לְבָנָ֔יו לָ֖מָּה תִּתְרָאֽוּ׃ | 1 |
जब याकोब को यह पता चला कि मिस्र देश में अन्न मिल रहा है, तो उन्होंने अपने बेटों से कहा, “क्यों एक दूसरे का मुख ताक रहे हो?
וַיֹּ֕אמֶר הִנֵּ֣ה שָׁמַ֔עְתִּי כִּ֥י יֶשׁ־שֶׁ֖בֶר בְּמִצְרָ֑יִם רְדוּ־שָׁ֙מָּה֙ וְשִׁבְרוּ־לָ֣נוּ מִשָּׁ֔ם וְנִחְיֶ֖ה וְלֹ֥א נָמֽוּת׃ | 2 |
मिस्र देश में अन्न मिल रहा है. जाओ और वहां से अन्न खरीद कर लाओ, कि हम जीवित रह सकें.”
וַיֵּרְד֥וּ אֲחֵֽי־יוֹסֵ֖ף עֲשָׂרָ֑ה לִשְׁבֹּ֥ר בָּ֖ר מִמִּצְרָֽיִם׃ | 3 |
तब योसेफ़ के दस भाई अन्न खरीदने मिस्र देश आये.
וְאֶת־בִּנְיָמִין֙ אֲחִ֣י יוֹסֵ֔ף לֹא־שָׁלַ֥ח יַעֲקֹ֖ב אֶת־אֶחָ֑יו כִּ֣י אָמַ֔ר פֶּן־יִקְרָאֶ֖נּוּ אָסֽוֹן׃ | 4 |
किंतु याकोब ने योसेफ़ के भाई बिन्यामिन को नहीं भेजा क्योंकि उन्हें यह डर था कि कहीं उस पर कोई कष्ट न आ पड़े.
וַיָּבֹ֙אוּ֙ בְּנֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל לִשְׁבֹּ֖ר בְּת֣וֹךְ הַבָּאִ֑ים כִּֽי־הָיָ֥ה הָרָעָ֖ב בְּאֶ֥רֶץ כְּנָֽעַן׃ | 5 |
इसलिये इस्राएल के पुत्र अन्न खरीदने मिस्र पहुंचे, क्योंकि कनान देश में भी अकाल था.
וְיוֹסֵ֗ף ה֚וּא הַשַּׁלִּ֣יט עַל־הָאָ֔רֶץ ה֥וּא הַמַּשְׁבִּ֖יר לְכָל־עַ֣ם הָאָ֑רֶץ וַיָּבֹ֙אוּ֙ אֲחֵ֣י יוֹסֵ֔ף וַיִּשְׁתַּֽחֲווּ־ל֥וֹ אַפַּ֖יִם אָֽרְצָה׃ | 6 |
योसेफ़ मिस्र देश के प्रशासक थे. वही पूरे राष्ट्र को अन्न बेचते थे. योसेफ़ के भाई वहां पहुंचे और उनको प्रणाम किया और उनका मुह ज़मीन की ओर था.
וַיַּ֥רְא יוֹסֵ֛ף אֶת־אֶחָ֖יו וַיַּכִּרֵ֑ם וַיִּתְנַכֵּ֨ר אֲלֵיהֶ֜ם וַיְדַבֵּ֧ר אִתָּ֣ם קָשׁ֗וֹת וַיֹּ֤אמֶר אֲלֵהֶם֙ מֵאַ֣יִן בָּאתֶ֔ם וַיֹּ֣אמְר֔וּ מֵאֶ֥רֶץ כְּנַ֖עַן לִשְׁבָּר־אֹֽכֶל׃ | 7 |
योसेफ़ अपने भाइयों को देखते ही पहचान गए; लेकिन अनजान बनकर वह अपने भाइयों से कठोरता से बात कर रहे थे. योसेफ़ ने उनसे पूछा, “तुम लोग कहां से आए हो?” उन्होंने कहा, “कनान देश से, अन्न खरीदने के लिए आए हैं.”
וַיַּכֵּ֥ר יוֹסֵ֖ף אֶת־אֶחָ֑יו וְהֵ֖ם לֹ֥א הִכִּרֻֽהוּ׃ | 8 |
योसेफ़ ने तो अपने भाइयों को पहचान लिया था, किंतु भाइयों ने उन्हें नहीं पहचाना था.
וַיִּזְכֹּ֣ר יוֹסֵ֔ף אֵ֚ת הַחֲלֹמ֔וֹת אֲשֶׁ֥ר חָלַ֖ם לָהֶ֑ם וַיֹּ֤אמֶר אֲלֵהֶם֙ מְרַגְּלִ֣ים אַתֶּ֔ם לִרְא֛וֹת אֶת־עֶרְוַ֥ת הָאָ֖רֶץ בָּאתֶֽם׃ | 9 |
तब योसेफ़ को अपने स्वप्न याद आये, जो उन्होंने उनके विषय में देखे थे. उन्होंने अपने भाइयों से कहा, “तुम लोग भेदिए हो और तुम यहां हमारे देश की दुर्दशा देखने आए हो.”
וַיֹּאמְר֥וּ אֵלָ֖יו לֹ֣א אֲדֹנִ֑י וַעֲבָדֶ֥יךָ בָּ֖אוּ לִשְׁבָּר־אֹֽכֶל׃ | 10 |
उन्होंने कहा, “नहीं, अधिपति महोदय, आपके ये सेवक अन्न खरीदने यहां आए हैं.
כֻּלָּ֕נוּ בְּנֵ֥י אִישׁ־אֶחָ֖ד נָ֑חְנוּ כֵּנִ֣ים אֲנַ֔חְנוּ לֹא־הָי֥וּ עֲבָדֶ֖יךָ מְרַגְּלִֽים׃ | 11 |
हम सभी एक ही पिता की संतान हैं. हम, सीधे और सच्चे लोग हैं, कोई जासूस नहीं.”
וַיֹּ֖אמֶר אֲלֵהֶ֑ם לֹ֕א כִּֽי־עֶרְוַ֥ת הָאָ֖רֶץ בָּאתֶ֥ם לִרְאֽוֹת׃ | 12 |
योसेफ़ ने फिर भी उनसे कहा, “मैं नहीं मान सकता. तुम लोग अवश्य हमारे देश की दुर्दशा देखने आए हो!”
וַיֹּאמְר֗וּ שְׁנֵ֣ים עָשָׂר֩ עֲבָדֶ֨יךָ אַחִ֧ים ׀ אֲנַ֛חְנוּ בְּנֵ֥י אִישׁ־אֶחָ֖ד בְּאֶ֣רֶץ כְּנָ֑עַן וְהִנֵּ֨ה הַקָּטֹ֤ן אֶת־אָבִ֙ינוּ֙ הַיּ֔וֹם וְהָאֶחָ֖ד אֵינֶֽנּוּ׃ | 13 |
किंतु वे बार-बार कहते रहे, “आपके ये सेवक बारह भाई हैं, जो एक ही पिता की संतान हैं, हम कनान के रहनेवाले हैं. हमारा छोटा भाई हमारे पिता के साथ ही है. हमारा एक भाई अब जीवित नहीं है.”
וַיֹּ֥אמֶר אֲלֵהֶ֖ם יוֹסֵ֑ף ה֗וּא אֲשֶׁ֨ר דִּבַּ֧רְתִּי אֲלֵכֶ֛ם לֵאמֹ֖ר מְרַגְּלִ֥ים אַתֶּֽם׃ | 14 |
योसेफ़ ने उनसे कहा, “कुछ भी हो, मैं जानता हूं कि तुम लोग जासूस ही हो!
בְּזֹ֖את תִּבָּחֵ֑נוּ חֵ֤י פַרְעֹה֙ אִם־תֵּצְא֣וּ מִזֶּ֔ה כִּ֧י אִם־בְּב֛וֹא אֲחִיכֶ֥ם הַקָּטֹ֖ן הֵֽנָּה׃ | 15 |
अब तुम्हें जांचने का एक ही तरीका हैं: फ़रोह के जीवन की शपथ, तुम्हारे छोटे भाई को यहां आना होगा.
שִׁלְח֨וּ מִכֶּ֣ם אֶחָד֮ וְיִקַּ֣ח אֶת־אֲחִיכֶם֒ וְאַתֶּם֙ הֵאָ֣סְר֔וּ וְיִבָּֽחֲנוּ֙ דִּבְרֵיכֶ֔ם הַֽאֱמֶ֖ת אִתְּכֶ֑ם וְאִם־לֹ֕א חֵ֣י פַרְעֹ֔ה כִּ֥י מְרַגְּלִ֖ים אַתֶּֽם׃ | 16 |
तुममें से कोई जाकर अपने भाई को यहां लेकर आओ; फ़रोह की शपथ, तब तक तुम सभी बंदी बनकर यहीं रहोगे, और तुमने कितना सच कहा है वह पता चल जायेगा.”
וַיֶּאֱסֹ֥ף אֹתָ֛ם אֶל־מִשְׁמָ֖ר שְׁלֹ֥שֶׁת יָמִֽים׃ | 17 |
तब योसेफ़ ने उन्हें तीन दिन के लिए बंदीगृह में डाल दिया.
וַיֹּ֨אמֶר אֲלֵהֶ֤ם יוֹסֵף֙ בַּיּ֣וֹם הַשְּׁלִישִׁ֔י זֹ֥את עֲשׂ֖וּ וִֽחְי֑וּ אֶת־הָאֱלֹהִ֖ים אֲנִ֥י יָרֵֽא׃ | 18 |
तीसरे दिन योसेफ़ ने उनसे कहा, “यदि जीवित रहना चाहते हो, तो तुम्हें यह करना होगा; क्योंकि मुझमें परमेश्वर का भय है:
אִם־כֵּנִ֣ים אַתֶּ֔ם אֲחִיכֶ֣ם אֶחָ֔ד יֵאָסֵ֖ר בְּבֵ֣ית מִשְׁמַרְכֶ֑ם וְאַתֶּם֙ לְכ֣וּ הָבִ֔יאוּ שֶׁ֖בֶר רַעֲב֥וֹן בָּתֵּיכֶֽם׃ | 19 |
यदि तुम सच्चे हो, तो तुममें से एक भाई कारागार में रहे और बाकी तुम लोग वापस घर जाओ और अपने परिवार को अकाल से बचाने के लिए अन्न ले जाओ.
וְאֶת־אֲחִיכֶ֤ם הַקָּטֹן֙ תָּבִ֣יאוּ אֵלַ֔י וְיֵאָמְנ֥וּ דִבְרֵיכֶ֖ם וְלֹ֣א תָמ֑וּתוּ וַיַּעֲשׂוּ־כֵֽן׃ | 20 |
और अपने छोटे भाई को यहां लेकर आना, ताकि वह तुम्हारे शब्दों को साबित कर सके और तुम्हारी मृत्यु न हो!” उन्होंने इस बात को माना.
וַיֹּאמְר֞וּ אִ֣ישׁ אֶל־אָחִ֗יו אֲבָל֮ אֲשֵׁמִ֣ים ׀ אֲנַחְנוּ֮ עַל־אָחִינוּ֒ אֲשֶׁ֨ר רָאִ֜ינוּ צָרַ֥ת נַפְשׁ֛וֹ בְּהִתְחַֽנְנ֥וֹ אֵלֵ֖ינוּ וְלֹ֣א שָׁמָ֑עְנוּ עַל־כֵּן֙ בָּ֣אָה אֵלֵ֔ינוּ הַצָּרָ֖ה הַזֹּֽאת׃ | 21 |
तब वे आपस में बात करने लगे, “हम अपने भाई के प्रति दोषी हैं, क्योंकि जब वह हमसे लगातार दया मांगी, और उसके प्राणों की वेदना दिख रही थी, किंतु हमने ही अपना मन कठोर बना लिया था. यही कारण कि आज हम पर यह कष्ट आ पड़ा है.”
וַיַּעַן֩ רְאוּבֵ֨ן אֹתָ֜ם לֵאמֹ֗ר הֲלוֹא֩ אָמַ֨רְתִּי אֲלֵיכֶ֧ם ׀ לֵאמֹ֛ר אַל־תֶּחֶטְא֥וּ בַיֶּ֖לֶד וְלֹ֣א שְׁמַעְתֶּ֑ם וְגַם־דָּמ֖וֹ הִנֵּ֥ה נִדְרָֽשׁ׃ | 22 |
रियूबेन ने कहा, “क्या मैं नहीं कह रहा था, लड़के के विरुद्ध कोई अपराध मत करो? तुमने मेरी बात न सुनी. अब समय आ गया है; उसकी हत्या का बदला पाने का.”
וְהֵם֙ לֹ֣א יָֽדְע֔וּ כִּ֥י שֹׁמֵ֖עַ יוֹסֵ֑ף כִּ֥י הַמֵּלִ֖יץ בֵּינֹתָֽם׃ | 23 |
उन्हें मालूम नहीं पड़ा कि योसेफ़ उनकी बात को समझ रहे थे.
וַיִּסֹּ֥ב מֵֽעֲלֵיהֶ֖ם וַיֵּ֑בְךְּ וַיָּ֤שָׁב אֲלֵהֶם֙ וַיְדַבֵּ֣ר אֲלֵהֶ֔ם וַיִּקַּ֤ח מֵֽאִתָּם֙ אֶת־שִׁמְע֔וֹן וַיֶּאֱסֹ֥ר אֹת֖וֹ לְעֵינֵיהֶֽם׃ | 24 |
योसेफ़ उनके सामने से अलग जाकर रोने लगे; फिर वापस आकर उन्होंने उन्हीं के सामने शिमओन को पकड़ा और बांध दिया.
וַיְצַ֣ו יוֹסֵ֗ף וַיְמַלְא֣וּ אֶת־כְּלֵיהֶם֮ בָּר֒ וּלְהָשִׁ֤יב כַּסְפֵּיהֶם֙ אִ֣ישׁ אֶל־שַׂקּ֔וֹ וְלָתֵ֥ת לָהֶ֛ם צֵדָ֖ה לַדָּ֑רֶךְ וַיַּ֥עַשׂ לָהֶ֖ם כֵּֽן׃ | 25 |
फिर योसेफ़ ने आदेश दिया कि उनके बोरों को अन्न से भर दिया जाए और जो दाम दिया है, वह भी उसी के बोरे में रख दिया जाए. और योसेफ़ ने कहा कि उनकी यात्रा के लिए आवश्यक सामान भी उन्हें दे दिया जाए.
וַיִּשְׂא֥וּ אֶת־שִׁבְרָ֖ם עַל־חֲמֹרֵיהֶ֑ם וַיֵּלְכ֖וּ מִשָּֽׁם׃ | 26 |
तब भाइयों ने अपने-अपने गधों पर अन्न के बोरे रखे और वहां से चल पड़े.
וַיִּפְתַּ֨ח הָאֶחָ֜ד אֶת־שַׂקּ֗וֹ לָתֵ֥ת מִסְפּ֛וֹא לַחֲמֹר֖וֹ בַּמָּל֑וֹן וַיַּרְא֙ אֶת־כַּסְפּ֔וֹ וְהִנֵּה־ה֖וּא בְּפִ֥י אַמְתַּחְתּֽוֹ׃ | 27 |
जब रास्ते में गधे को चारा देने के उद्देश्य से उनमें से एक ने बोरा खोला, तो उसे वही रुपया दिखा जिसे उसने उन्हें दिया था.
וַיֹּ֤אמֶר אֶל־אֶחָיו֙ הוּשַׁ֣ב כַּסְפִּ֔י וְגַ֖ם הִנֵּ֣ה בְאַמְתַּחְתִּ֑י וַיֵּצֵ֣א לִבָּ֗ם וַיֶּֽחֶרְד֞וּ אִ֤ישׁ אֶל־אָחִיו֙ לֵאמֹ֔ר מַה־זֹּ֛את עָשָׂ֥ה אֱלֹהִ֖ים לָֽנוּ׃ | 28 |
यह उसने अपने भाइयों को बताया, “मैंने जो रुपया दिया था वह मेरे बोरे में मिला है.” वे सभी आश्चर्य करने लगे. और कांपने लगे तथा एक दूसरे की ओर देखते हुए कहने लगे, “परमेश्वर ने हमारे साथ यह क्या कर दिया है?”
וַיָּבֹ֛אוּ אֶל־יַעֲקֹ֥ב אֲבִיהֶ֖ם אַ֣רְצָה כְּנָ֑עַן וַיַּגִּ֣ידוּ ל֔וֹ אֵ֛ת כָּל־הַקֹּרֹ֥ת אֹתָ֖ם לֵאמֹֽר׃ | 29 |
जब वे कनान देश में अपने पिता याकोब के पास पहुंचे, तब उन्होंने अपने पिता को पूरी घटना बताई.
דִּ֠בֶּר הָאִ֨ישׁ אֲדֹנֵ֥י הָאָ֛רֶץ אִתָּ֖נוּ קָשׁ֑וֹת וַיִּתֵּ֣ן אֹתָ֔נוּ כִּֽמְרַגְּלִ֖ים אֶת־הָאָֽרֶץ׃ | 30 |
और कहा, “उस देश का अधिपति हमसे कठोर होकर बात कर रहा था. उसने हमें अपने देश का जासूस समझा.
וַנֹּ֥אמֶר אֵלָ֖יו כֵּנִ֣ים אֲנָ֑חְנוּ לֹ֥א הָיִ֖ינוּ מְרַגְּלִֽים׃ | 31 |
हमने उन्हें समझाया, ‘हम सच्चे लोग हैं; जासूस नहीं.
שְׁנֵים־עָשָׂ֥ר אֲנַ֛חְנוּ אַחִ֖ים בְּנֵ֣י אָבִ֑ינוּ הָאֶחָ֣ד אֵינֶ֔נּוּ וְהַקָּטֹ֥ן הַיּ֛וֹם אֶת־אָבִ֖ינוּ בְּאֶ֥רֶץ כְּנָֽעַן׃ | 32 |
और बताया कि हम बारह भाई हैं, एक ही पिता की संतान. एक भाई अब जीवित नहीं रहा, तथा हमारा छोटा भाई पिता के साथ कनान देश में ही है.’
וַיֹּ֣אמֶר אֵלֵ֗ינוּ הָאִישׁ֙ אֲדֹנֵ֣י הָאָ֔רֶץ בְּזֹ֣את אֵדַ֔ע כִּ֥י כֵנִ֖ים אַתֶּ֑ם אֲחִיכֶ֤ם הָֽאֶחָד֙ הַנִּ֣יחוּ אִתִּ֔י וְאֶת־רַעֲב֥וֹן בָּתֵּיכֶ֖ם קְח֥וּ וָלֵֽכוּ׃ | 33 |
“उस देश के अधिपति ने हमसे कहा, ‘तुम्हारी सच्चाई तब प्रकट होगी जब तुम अपने भाइयों में से एक को मेरे पास छोड़कर जाओगे; और अब अकाल में अपने परिवारों के लिए अन्न लेकर जाओ.
וְ֠הָבִיאוּ אֶת־אֲחִיכֶ֣ם הַקָּטֹן֮ אֵלַי֒ וְאֵֽדְעָ֗ה כִּ֣י לֹ֤א מְרַגְּלִים֙ אַתֶּ֔ם כִּ֥י כֵנִ֖ים אַתֶּ֑ם אֶת־אֲחִיכֶם֙ אֶתֵּ֣ן לָכֶ֔ם וְאֶת־הָאָ֖רֶץ תִּסְחָֽרוּ׃ | 34 |
जब तुम अपने छोटे भाई को मेरे पास लाओगे, तब मालूम पड़ेगा कि तुम जासूस नहीं हो, फिर मैं तुम्हारे भाई को छोड़ दूंगा और तुम इस देश में व्यापार कर सकोगे.’”
וַיְהִ֗י הֵ֚ם מְרִיקִ֣ים שַׂקֵּיהֶ֔ם וְהִנֵּה־אִ֥ישׁ צְרוֹר־כַּסְפּ֖וֹ בְּשַׂקּ֑וֹ וַיִּרְא֞וּ אֶת־צְרֹר֧וֹת כַּסְפֵּיהֶ֛ם הֵ֥מָּה וַאֲבִיהֶ֖ם וַיִּירָֽאוּ׃ | 35 |
जब वे अपने-अपने बोरे खाली कर रहे थे, उन सभी ने देखा कि सबके बोरों में उनके रुपये की थैलियां रखी हुई है! जब उन्होंने तथा उनके पिता ने रुपये की थैली देखी, तब वे डर गए.
וַיֹּ֤אמֶר אֲלֵהֶם֙ יַעֲקֹ֣ב אֲבִיהֶ֔ם אֹתִ֖י שִׁכַּלְתֶּ֑ם יוֹסֵ֤ף אֵינֶ֙נּוּ֙ וְשִׁמְע֣וֹן אֵינֶ֔נּוּ וְאֶת־בִּנְיָמִ֣ן תִּקָּ֔חוּ עָלַ֖י הָי֥וּ כֻלָּֽנָה׃ | 36 |
उनके पिता याकोब ने उनसे कहा, “तुम लोगों ने तो मुझसे मेरी संतान ही छीन ली है. योसेफ़ नहीं रहा और अब तुम लोग बिन्यामिन को ले जा रहे हो. यह सब मेरे विरुद्ध ही हो रहा है!”
וַיֹּ֤אמֶר רְאוּבֵן֙ אֶל־אָבִ֣יו לֵאמֹ֔ר אֶת־שְׁנֵ֤י בָנַי֙ תָּמִ֔ית אִם־לֹ֥א אֲבִיאֶ֖נּוּ אֵלֶ֑יךָ תְּנָ֤ה אֹתוֹ֙ עַל־יָדִ֔י וַאֲנִ֖י אֲשִׁיבֶ֥נּוּ אֵלֶֽיךָ׃ | 37 |
रियूबेन ने अपने पिता को यह आश्वासन दिया, “अगर मैं बिन्यामिन को यहां वापस न लाऊं, तो आप मेरे दोनों पुत्रों की हत्या कर देना. आप बिन्यामिन को मेरे हाथों में सौंप दीजिए, मैं उसे वापस लाऊंगा.”
וַיֹּ֕אמֶר לֹֽא־יֵרֵ֥ד בְּנִ֖י עִמָּכֶ֑ם כִּֽי־אָחִ֨יו מֵ֜ת וְה֧וּא לְבַדּ֣וֹ נִשְׁאָ֗ר וּקְרָאָ֤הוּ אָסוֹן֙ בַּדֶּ֙רֶךְ֙ אֲשֶׁ֣ר תֵּֽלְכוּ־בָ֔הּ וְהוֹרַדְתֶּ֧ם אֶת־שֵׂיבָתִ֛י בְּיָג֖וֹן שְׁאֽוֹלָה׃ (Sheol ) | 38 |
किंतु याकोब कहते रहे, “मेरा पुत्र तुम्हारे साथ न जाएगा; क्योंकि उसके भाई की मृत्यु हो ही चुकी है, इसलिये वह अकेला ही रह गया है. यदि इस यात्रा में उसके साथ कुछ अनर्थ हुआ तो तुम इस बुढ़ापे में मुझे घोर वेदना के साथ कब्र में नीचे उतारोगे.” (Sheol )