< יְחֶזְקֵאל 40 >
בְּעֶשְׂרִ֣ים וְחָמֵ֣שׁ שָׁנָ֣ה לְ֠גָלוּתֵנוּ בְּרֹ֨אשׁ הַשָּׁנָ֜ה בֶּעָשׂ֣וֹר לַחֹ֗דֶשׁ בְּאַרְבַּ֤ע עֶשְׂרֵה֙ שָׁנָ֔ה אַחַ֕ר אֲשֶׁ֥ר הֻכְּתָ֖ה הָעִ֑יר בְּעֶ֣צֶם ׀ הַיּ֣וֹם הַזֶּ֗ה הָיְתָ֤ה עָלַי֙ יַד־יְהוָ֔ה וַיָּבֵ֥א אֹתִ֖י שָֽׁמָּה׃ | 1 |
१हमारी बँधुआई के पच्चीसवें वर्ष अर्थात् यरूशलेम नगर के ले लिए जाने के बाद चौदहवें वर्ष के पहले महीने के दसवें दिन को, यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई, और उसने मुझे वहाँ पहुँचाया।
בְּמַרְא֣וֹת אֱלֹהִ֔ים הֱבִיאַ֖נִי אֶל־אֶ֣רֶץ יִשְׂרָאֵ֑ל וַיְנִיחֵ֗נִי אֶל־הַ֤ר גָּבֹ֙הַּ֙ מְאֹ֔ד וְעָלָ֥יו כְּמִבְנֵה־עִ֖יר מִנֶּֽגֶב׃ | 2 |
२अपने दर्शनों में परमेश्वर ने मुझे इस्राएल के देश में पहुँचाया और वहाँ एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर खड़ा किया, जिस पर दक्षिण ओर मानो किसी नगर का आकार था।
וַיָּבֵ֨יא אוֹתִ֜י שָׁ֗מָּה וְהִנֵּה־אִישׁ֙ מַרְאֵ֙הוּ֙ כְּמַרְאֵ֣ה נְחֹ֔שֶׁת וּפְתִיל־פִּשְׁתִּ֥ים בְּיָד֖וֹ וּקְנֵ֣ה הַמִּדָּ֑ה וְה֥וּא עֹמֵ֖ד בַּשָּֽׁעַר׃ | 3 |
३जब वह मुझे वहाँ ले गया, तो मैंने क्या देखा कि पीतल का रूप धरे हुए और हाथ में सन का फीता और मापने का बाँस लिए हुए एक पुरुष फाटक में खड़ा है।
וַיְדַבֵּ֨ר אֵלַ֜י הָאִ֗ישׁ בֶּן־אָדָ֡ם רְאֵ֣ה בְעֵינֶיךָ֩ וּבְאָזְנֶ֨יךָ שְּׁמָ֜ע וְשִׂ֣ים לִבְּךָ֗ לְכֹ֤ל אֲשֶׁר־אֲנִי֙ מַרְאֶ֣ה אוֹתָ֔ךְ כִּ֛י לְמַ֥עַן הַרְאוֹתְכָ֖ה הֻבָ֣אתָה הֵ֑נָּה הַגֵּ֛ד אֶת־כָּל־אֲשֶׁר־אַתָּ֥ה רֹאֶ֖ה לְבֵ֥ית יִשְׂרָאֵֽל׃ | 4 |
४उस पुरुष ने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के सन्तान, अपनी आँखों से देख, और अपने कानों से सुन; और जो कुछ मैं तुझे दिखाऊँगा उस सब पर ध्यान दे, क्योंकि तू इसलिए यहाँ पहुँचाया गया है कि मैं तुझे ये बातें दिखाऊँ; और जो कुछ तू देखे वह इस्राएल के घराने को बताए।”
וְהִנֵּ֥ה חוֹמָ֛ה מִח֥וּץ לַבַּ֖יִת סָבִ֣יב ׀ סָבִ֑יב וּבְיַ֨ד הָאִ֜ישׁ קְנֵ֣ה הַמִּדָּ֗ה שֵׁשׁ־אַמּ֤וֹת בָּֽאַמָּה֙ וָטֹ֔פַח וַיָּ֜מָד אֶת־רֹ֤חַב הַבִּנְיָן֙ קָנֶ֣ה אֶחָ֔ד וְקוֹמָ֖ה קָנֶ֥ה אֶחָֽד׃ | 5 |
५और देखो, भवन के बाहर चारों ओर एक दीवार थी, और उस पुरुष के हाथ में मापने का बाँस था, जिसकी लम्बाई ऐसे छः हाथ की थी जो साधारण हाथों से चार अंगुल भर अधिक है; अतः उसने दीवार की मोटाई मापकर बाँस भर की पाई, फिर उसकी ऊँचाई भी मापकर बाँस भर की पाई।
וַיָּב֗וֹא אֶל־שַׁ֙עַר֙ אֲשֶׁ֤ר פָּנָיו֙ דֶּ֣רֶךְ הַקָּדִ֔ימָה וַיַּ֖עַל במעלותו וַיָּ֣מָד ׀ אֶת־סַ֣ף הַשַּׁ֗עַר קָנֶ֤ה אֶחָד֙ רֹ֔חַב וְאֵת֙ סַ֣ף אֶחָ֔ד קָנֶ֥ה אֶחָ֖ד רֹֽחַב׃ | 6 |
६तब वह उस फाटक के पास आया जिसका मुँह पूर्व की ओर था, और उसकी सीढ़ी पर चढ़कर फाटक की दोनों डेवढ़ियों की चौड़ाई मापकर एक-एक बाँस भर की पाई।
וְהַתָּ֗א קָנֶ֨ה אֶחָ֥ד אֹ֙רֶךְ֙ וְקָנֶ֤ה אֶחָד֙ רֹ֔חַב וּבֵ֥ין הַתָּאִ֖ים חָמֵ֣שׁ אַמּ֑וֹת וְסַ֣ף הַ֠שַּׁעַר מֵאֵ֨צֶל אוּלָ֥ם הַשַּׁ֛עַר מֵֽהַבַּ֖יִת קָנֶ֥ה אֶחָֽד׃ | 7 |
७पहरेवाली कोठरियाँ बाँस भर लम्बी और बाँस भर चौड़ी थीं; और दो-दो कोठरियों का अन्तर पाँच हाथ का था; और फाटक की डेवढ़ी जो फाटक के ओसारे के पास भवन की ओर थी, वह भी बाँस भर की थी।
וַיָּ֜מָד אֶת־אֻלָ֥ם הַשַּׁ֛עַר מֵהַבַּ֖יִת קָנֶ֥ה אֶחָֽד׃ | 8 |
८तब उसने फाटक का वह ओसारा जो भवन के सामने था, मापकर बाँस भर का पाया।
וַיָּ֜מָד אֶת־אֻלָ֤ם הַשַּׁ֙עַר֙ שְׁמֹנֶ֣ה אַמּ֔וֹת ואילו שְׁתַּ֣יִם אַמּ֑וֹת וְאֻלָ֥ם הַשַּׁ֖עַר מֵהַבָּֽיִת׃ | 9 |
९उसने फाटक का ओसारा मापकर आठ हाथ का पाया, और उसके खम्भे दो-दो हाथ के पाए, और फाटक का ओसारा भवन के सामने था।
וְתָאֵ֨י הַשַּׁ֜עַר דֶּ֣רֶךְ הַקָּדִ֗ים שְׁלֹשָׁ֤ה מִפֹּה֙ וּשְׁלֹשָׁ֣ה מִפֹּ֔ה מִדָּ֥ה אַחַ֖ת לִשְׁלָשְׁתָּ֑ם וּמִדָּ֥ה אַחַ֛ת לָאֵילִ֖ם מִפֹּ֥ה וּמִפּֽוֹ׃ | 10 |
१०पूर्वी फाटक के दोनों ओर तीन-तीन पहरेवाली कोठरियाँ थीं जो सब एक ही माप की थीं, और दोनों ओर के खम्भे भी एक ही माप के थे।
וַיָּ֛מָד אֶת־רֹ֥חַב פֶּֽתַח־הַשַּׁ֖עַר עֶ֣שֶׂר אַמּ֑וֹת אֹ֣רֶךְ הַשַּׁ֔עַר שְׁל֥וֹשׁ עֶשְׂרֵ֖ה אַמּֽוֹת׃ | 11 |
११फिर उसने फाटक के द्वार की चौड़ाई मापकर दस हाथ की पाई; और फाटक की लम्बाई मापकर तेरह हाथ की पाई।
וּגְב֞וּל לִפְנֵ֤י הַתָּאוֹת֙ אַמָּ֣ה אֶחָ֔ת וְאַמָּה־אַחַ֥ת גְּב֖וּל מִפֹּ֑ה וְהַתָּ֕א שֵׁשׁ־אַמּ֣וֹת מִפּ֔וֹ וְשֵׁ֥שׁ אַמּ֖וֹת מִפּֽוֹ׃ | 12 |
१२दोनों ओर की पहरेवाली कोठरियों के आगे हाथ भर का स्थान था और दोनों ओर कोठरियाँ छः छः हाथ की थीं।
וַיָּ֣מָד אֶת־הַשַּׁ֗עַר מִגַּ֤ג הַתָּא֙ לְגַגּ֔וֹ רֹ֕חַב עֶשְׂרִ֥ים וְחָמֵ֖שׁ אַמּ֑וֹת פֶּ֖תַח נֶ֥גֶד פָּֽתַח׃ | 13 |
१३फिर उसने फाटक को एक ओर की पहरेवाली कोठरी की छत से लेकर दूसरी ओर की पहरेवाली कोठरी की छत तक मापकर पच्चीस हाथ की दूरी पाई, और द्वार आमने-सामने थे।
וַיַּ֥עַשׂ אֶת־אֵילִ֖ים שִׁשִּׁ֣ים אַמָּ֑ה וְאֶל־אֵיל֙ הֶֽחָצֵ֔ר הַשַּׁ֖עַר סָבִ֥יב ׀ סָבִֽיב׃ | 14 |
१४फिर उसने साठ हाथ के खम्भे मापे, और आँगन, फाटक के आस-पास, खम्भों तक था।
וְעַ֗ל פְּנֵי֙ הַשַּׁ֣עַר היאתון עַל־לִפְנֵ֕י אֻלָ֥ם הַשַּׁ֖עַר הַפְּנִימִ֑י חֲמִשִּׁ֖ים אַמָּֽה׃ | 15 |
१५फाटक के बाहरी द्वार के आगे से लेकर उसके भीतरी ओसारे के आगे तक पचास हाथ का अन्तर था।
וְחַלֹּנ֣וֹת אֲטֻמ֣וֹת אֶֽל־הַתָּאִ֡ים וְאֶל֩ אֵלֵיהֵ֨מָה לִפְנִ֤ימָה לַשַּׁ֙עַר֙ סָבִ֣יב ׀ סָבִ֔יב וְכֵ֖ן לָאֵֽלַמּ֑וֹת וְחַלּוֹנ֞וֹת סָבִ֤יב ׀ סָבִיב֙ לִפְנִ֔ימָה וְאֶל־אַ֖יִל תִּמֹרִֽים׃ | 16 |
१६पहरेवाली कोठरियों में, और फाटक के भीतर चारों ओर कोठरियों के बीच के खम्भे के बीच-बीच में झिलमिलीदार खिड़कियाँ थी, और खम्भों के ओसारे में भी वैसी ही थी; और फाटक के भीतर के चारों ओर खिड़कियाँ थीं; और हर एक खम्भे पर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे।
וַיְבִיאֵ֗נִי אֶל־הֶֽחָצֵר֙ הַחִ֣יצוֹנָ֔ה וְהִנֵּ֤ה לְשָׁכוֹת֙ וְרִֽצְפָ֔ה עָשׂ֥וּי לֶחָצֵ֖ר סָבִ֣יב ׀ סָבִ֑יב שְׁלֹשִׁ֥ים לְשָׁכ֖וֹת אֶל־הָרִֽצְפָֽה׃ | 17 |
१७तब वह मुझे बाहरी आँगन में ले गया; और उस आँगन के चारों ओर कोठरियाँ थीं; और एक फर्श बना हुआ था; जिस पर तीस कोठरियाँ बनी थीं।
וְהָרִֽצְפָה֙ אֶל־כֶּ֣תֶף הַשְּׁעָרִ֔ים לְעֻמַּ֖ת אֹ֣רֶךְ הַשְּׁעָרִ֑ים הָרִֽצְפָ֖ה הַתַּחְתּוֹנָֽה׃ | 18 |
१८यह फर्श अर्थात् निचला फर्श फाटकों से लगा हुआ था और उनकी लम्बाई के अनुसार था।
וַיָּ֣מָד רֹ֡חַב מִלִּפְנֵי֩ הַשַּׁ֨עַר הַתַּחְתּ֜וֹנָה לִפְנֵ֨י הֶחָצֵ֧ר הַפְּנִימִ֛י מִח֖וּץ מֵאָ֣ה אַמָּ֑ה הַקָּדִ֖ים וְהַצָּפֽוֹן׃ | 19 |
१९फिर उसने निचले फाटक के आगे से लेकर भीतरी आँगन के बाहर के आगे तक मापकर सौ हाथ पाए; वह पूर्व और उत्तर दोनों ओर ऐसा ही था।
וְהַשַּׁ֗עַר אֲשֶׁ֤ר פָּנָיו֙ דֶּ֣רֶךְ הַצָּפ֔וֹן לֶחָצֵ֖ר הַחִֽיצוֹנָ֑ה מָדַ֥ד אָרְכּ֖וֹ וְרָחְבּֽוֹ׃ | 20 |
२०तब बाहरी आँगन के उत्तरमुखी फाटक की लम्बाई और चौड़ाई उसने मापी।
ותאו שְׁלוֹשָׁ֤ה מִפּוֹ֙ וּשְׁלֹשָׁ֣ה מִפּ֔וֹ ואילו ואלמו הָיָ֔ה כְּמִדַּ֖ת הַשַּׁ֣עַר הָרִאשׁ֑וֹן חֲמִשִּׁ֤ים אַמָּה֙ אָרְכּ֔וֹ וְרֹ֕חַב חָמֵ֥שׁ וְעֶשְׂרִ֖ים בָּאַמָּֽה׃ | 21 |
२१उसके दोनों ओर तीन-तीन पहरेवाली कोठरियाँ थीं, और इसके भी खम्भों के ओसारे की माप पहले फाटक के अनुसार थी; इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
וחלונו ואלמו ותמרו כְּמִדַּ֣ת הַשַּׁ֔עַר אֲשֶׁ֥ר פָּנָ֖יו דֶּ֣רֶךְ הַקָּדִ֑ים וּבְמַעֲל֥וֹת שֶׁ֙בַע֙ יַֽעֲלוּ־ב֔וֹ ואילמו לִפְנֵיהֶֽם׃ | 22 |
२२इसकी भी खिड़कियों और खम्भों के ओसारे और खजूरों की माप पूर्वमुखी फाटक की सी थी; और इस पर चढ़ने को सात सीढ़ियाँ थीं; और उनके सामने इसका ओसारा था।
וְשַׁ֙עַר֙ לֶחָצֵ֣ר הַפְּנִימִ֔י נֶ֣גֶד הַשַּׁ֔עַר לַצָּפ֖וֹן וְלַקָּדִ֑ים וַיָּ֧מָד מִשַּׁ֛עַר אֶל־שַׁ֖עַר מֵאָ֥ה אַמָּֽה׃ | 23 |
२३भीतरी आँगन की उत्तर और पूर्व की ओर दूसरे फाटकों के सामने फाटक थे और उसने फाटकों की दूरी मापकर सौ हाथ की पाई।
וַיּוֹלִכֵ֙נִי֙ דֶּ֣רֶךְ הַדָּר֔וֹם וְהִנֵּה־שַׁ֖עַר דֶּ֣רֶךְ הַדָּר֑וֹם וּמָדַ֤ד אילו ואילמו כַּמִּדּ֖וֹת הָאֵֽלֶּה׃ | 24 |
२४फिर वह मुझे दक्षिण की ओर ले गया, और दक्षिण ओर एक फाटक था; और उसने इसके खम्भे और खम्भों का ओसारा मापकर इनकी वैसी ही माप पाई।
וְחַלּוֹנִ֨ים ל֤וֹ ולאילמו סָבִ֣יב ׀ סָבִ֔יב כְּהַחֲלֹּנ֖וֹת הָאֵ֑לֶּה חֲמִשִּׁ֤ים אַמָּה֙ אֹ֔רֶךְ וְרֹ֕חַב חָמֵ֥שׁ וְעֶשְׂרִ֖ים אַמָּֽה׃ | 25 |
२५उन खिड़कियों के समान इसके और इसके खम्भों के ओसारों के चारों ओर भी खिड़कियाँ थीं; इसकी भी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
וּמַעֲל֤וֹת שִׁבְעָה֙ עלותו ואלמו לִפְנֵיהֶ֑ם וְתִמֹרִ֣ים ל֗וֹ אֶחָ֥ד מִפּ֛וֹ וְאֶחָ֥ד מִפּ֖וֹ אֶל־אילו׃ | 26 |
२६इसमें भी चढ़ने के लिये सात सीढ़ियाँ थीं और उनके सामने खम्भों का ओसारा था; और उसके दोनों ओर के खम्भों पर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे।
וְשַׁ֛עַר לֶחָצֵ֥ר הַפְּנִימִ֖י דֶּ֣רֶךְ הַדָּר֑וֹם וַיָּ֨מָד מִשַּׁ֧עַר אֶל־הַשַּׁ֛עַר דֶּ֥רֶךְ הַדָּר֖וֹם מֵאָ֥ה אַמּֽוֹת׃ | 27 |
२७दक्षिण की ओर भी भीतरी आँगन का एक फाटक था, और उसने दक्षिण ओर के दोनों फाटकों की दूरी मापकर सौ हाथ की पाई।
וַיְבִיאֵ֛נִי אֶל־חָצֵ֥ר הַפְּנִימִ֖י בְּשַׁ֣עַר הַדָּר֑וֹם וַיָּ֙מָד֙ אֶת־הַשַּׁ֣עַר הַדָּר֔וֹם כַּמִּדּ֖וֹת הָאֵֽלֶּה׃ | 28 |
२८तब वह दक्षिणी फाटक से होकर मुझे भीतरी आँगन में ले गया, और उसने दक्षिणी फाटक को मापकर वैसा ही पाया।
ותאו ואילו ואלמו כַּמִּדּ֣וֹת הָאֵ֔לֶּה וְחַלּוֹנ֥וֹת ל֛וֹ ולאלמו סָבִ֣יב ׀ סָבִ֑יב חֲמִשִּׁ֤ים אַמָּה֙ אֹ֔רֶךְ וְרֹ֕חַב עֶשְׂרִ֥ים וְחָמֵ֖שׁ אַמּֽוֹת׃ | 29 |
२९अर्थात् इसकी भी पहरेवाली कोठरियाँ, और खम्भे, और खम्भों का ओसारा, सब वैसे ही थे; और इसके और इसके खम्भों के ओसारे के भी चारों ओर भी खिड़कियाँ थीं; और इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
וְאֵֽלַמּ֖וֹת סָבִ֣יב ׀ סָבִ֑יב אֹ֗רֶךְ חָמֵ֤שׁ וְעֶשְׂרִים֙ אַמָּ֔ה וְרֹ֖חַב חָמֵ֥שׁ אַמּֽוֹת׃ | 30 |
३०इसके चारों ओर के खम्भों का ओसारा भी पच्चीस हाथ लम्बा, और पचास हाथ चौड़ा था।
וְאֵלַמָּ֗ו אֶל־חָצֵר֙ הַחִ֣צוֹנָ֔ה וְתִמֹרִ֖ים אֶל־אילו וּמַעֲל֥וֹת שְׁמוֹנֶ֖ה מעלו׃ | 31 |
३१इसका खम्भों का ओसारा बाहरी आँगन की ओर था, और इसके खम्भों पर भी खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, और इस पर चढ़ने को आठ सीढ़ियाँ थीं।
וַיְבִיאֵ֛נִי אֶל־הֶחָצֵ֥ר הַפְּנִימִ֖י דֶּ֣רֶךְ הַקָּדִ֑ים וַיָּ֣מָד אֶת־הַשַּׁ֔עַר כַּמִּדּ֖וֹת הָאֵֽלֶּה׃ | 32 |
३२फिर वह पुरुष मुझे पूर्व की ओर भीतरी आँगन में ले गया, और उस ओर के फाटक को मापकर वैसा ही पाया।
ותאו ואלו ואלמו כַּמִּדּ֣וֹת הָאֵ֔לֶּה וְחַלּוֹנ֥וֹת ל֛וֹ ולאלמו סָבִ֣יב ׀ סָבִ֑יב אֹ֚רֶךְ חֲמִשִּׁ֣ים אַמָּ֔ה וְרֹ֕חַב חָמֵ֥שׁ וְעֶשְׂרִ֖ים אַמָּֽה׃ | 33 |
३३इसकी भी पहरेवाली कोठरियाँ और खम्भे और खम्भों का ओसारा, सब वैसे ही थे; और इसके और इसके खम्भों के ओसारे के चारों ओर भी खिड़कियाँ थीं; इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
ואלמו לֶֽחָצֵר֙ הַחִ֣יצוֹנָ֔ה וְתִמֹרִ֥ים אֶל־אלו מִפּ֣וֹ וּמִפּ֑וֹ וּשְׁמֹנֶ֥ה מַעֲל֖וֹת מעלו׃ | 34 |
३४इसका ओसारा भी बाहरी आँगन की ओर था, और उसके दोनों ओर के खम्भों पर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे; और इस पर भी चढ़ने को आठ सीढ़ियाँ थीं।
וַיְבִיאֵ֖נִי אֶל־שַׁ֣עַר הַצָּפ֑וֹן וּמָדַ֖ד כַּמִּדּ֥וֹת הָאֵֽלֶּה׃ | 35 |
३५फिर उस पुरुष ने मुझे उत्तरी फाटक के पास ले जाकर उसे मापा, और उसकी भी माप वैसी ही पाई।
תאו אלו ואלמו וְחַלּוֹנ֥וֹת ל֖וֹ סָבִ֣יב ׀ סָבִ֑יב אֹ֚רֶךְ חֲמִשִּׁ֣ים אַמָּ֔ה וְרֹ֕חַב חָמֵ֥שׁ וְעֶשְׂרִ֖ים אַמָּֽה׃ | 36 |
३६उसके भी पहरेवाली कोठरियाँ और खम्भे और उनका ओसारा था; और उसके भी चारों ओर खिड़कियाँ थीं; उसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
ואילו לֶֽחָצֵר֙ הַחִ֣יצוֹנָ֔ה וְתִמֹרִ֥ים אֶל־אילו מִפּ֣וֹ וּמִפּ֑וֹ וּשְׁמֹנֶ֥ה מַעֲל֖וֹת מעלו׃ | 37 |
३७उसके खम्भे बाहरी आँगन की ओर थे, और उन पर भी दोनों ओर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे; और उसमें चढ़ने को आठ सीढ़ियाँ थीं।
וְלִשְׁכָּ֣ה וּפִתְחָ֔הּ בְּאֵילִ֖ים הַשְּׁעָרִ֑ים שָׁ֖ם יָדִ֥יחוּ אֶת־הָעֹלָֽה׃ | 38 |
३८फिर फाटकों के पास के खम्भों के निकट द्वार समेत कोठरी थी, जहाँ होमबलि धोया जाता था।
וּבְאֻלָ֣ם הַשַּׁ֗עַר שְׁנַ֤יִם שֻׁלְחָנוֹת֙ מִפּ֔וֹ וּשְׁנַ֥יִם שֻׁלְחָנ֖וֹת מִפֹּ֑ה לִשְׁח֤וֹט אֲלֵיהֶם֙ הָעוֹלָ֔ה וְהַחַטָּ֖את וְהָאָשָֽׁם׃ | 39 |
३९होमबलि, पापबलि, और दोषबलि के पशुओं के वध करने के लिये फाटक के ओसारे के पास उसके दोनों ओर दो-दो मेजें थीं।
וְאֶל־הַכָּתֵ֣ף מִח֗וּצָה לָעוֹלֶה֙ לְפֶ֙תַח֙ הַשַּׁ֣עַר הַצָּפ֔וֹנָה שְׁנַ֖יִם שֻׁלְחָנ֑וֹת וְאֶל־הַכָּתֵ֣ף הָאַחֶ֗רֶת אֲשֶׁר֙ לְאֻלָ֣ם הַשַּׁ֔עַר שְׁנַ֖יִם שֻׁלְחָנֽוֹת׃ | 40 |
४०फाटक की एक बाहरी ओर पर अर्थात् उत्तरी फाटक के द्वार की चढ़ाई पर दो मेजें थीं; और उसकी दूसरी बाहरी ओर पर भी, जो फाटक के ओसारे के पास थी, दो मेजें थीं।
אַרְבָּעָ֨ה שֻׁלְחָנ֜וֹת מִפֹּ֗ה וְאַרְבָּעָ֧ה שֻׁלְחָנ֛וֹת מִפֹּ֖ה לְכֶ֣תֶף הַשָּׁ֑עַר שְׁמוֹנָ֥ה שֻׁלְחָנ֖וֹת אֲלֵיהֶ֥ם יִשְׁחָֽטוּ׃ | 41 |
४१फाटक के दोनों ओर चार-चार मेजें थीं, सब मिलकर आठ मेजें थीं, जो बलिपशु वध करने के लिये थीं।
וְאַרְבָּעָה֩ שֻׁלְחָנ֨וֹת לָעוֹלָ֜ה אַבְנֵ֣י גָזִ֗ית אֹרֶךְ֩ אַמָּ֨ה אַחַ֤ת וָחֵ֙צִי֙ וְרֹ֨חַב אַמָּ֤ה אַחַת֙ וָחֵ֔צִי וְגֹ֖בַהּ אַמָּ֣ה אֶחָ֑ת אֲלֵיהֶ֗ם וְיַנִּ֤יחוּ אֶת־הַכֵּלִים֙ אֲשֶׁ֨ר יִשְׁחֲט֧וּ אֶת־הָעוֹלָ֛ה בָּ֖ם וְהַזָּֽבַח׃ | 42 |
४२फिर होमबलि के लिये तराशे हुए पत्थर की चार मेजें थीं, जो डेढ़ हाथ लम्बी, डेढ़ हाथ चौड़ी, और हाथ भर ऊँची थीं; उन पर होमबलि और मेलबलि के पशुओं को वध करने के हथियार रखे जाते थे।
וְהַֽשְׁפַתַּ֗יִם טֹ֧פַח אֶחָ֛ד מוּכָנִ֥ים בַּבַּ֖יִת סָבִ֣יב ׀ סָבִ֑יב וְאֶל־הַשֻּׁלְחָנ֖וֹת בְּשַׂ֥ר הַקָּרְבָֽן׃ | 43 |
४३भीतर चारों ओर चार अंगुल भर की आंकड़ियाँ लगी थीं, और मेजों पर चढ़ावे का माँस रखा हुआ था।
וּמִחוּצָה֩ לַשַּׁ֨עַר הַפְּנִימִ֜י לִֽשְׁכ֣וֹת שָׁרִ֗ים בֶּחָצֵ֤ר הַפְּנִימִי֙ אֲשֶׁ֗ר אֶל־כֶּ֙תֶף֙ שַׁ֣עַר הַצָּפ֔וֹן וּפְנֵיהֶ֖ם דֶּ֣רֶךְ הַדָּר֑וֹם אֶחָ֗ד אֶל־כֶּ֙תֶף֙ שַׁ֣עַר הַקָּדִ֔ים פְּנֵ֖י דֶּ֥רֶךְ הַצָּפֹֽן׃ | 44 |
४४भीतरी आँगन के उत्तरी फाटक के बाहर गानेवालों की कोठरियाँ थीं जिनके द्वार दक्षिण ओर थे; और पूर्वी फाटक की ओर एक कोठरी थी, जिसका द्वार उत्तर ओर था।
וַיְדַבֵּ֖ר אֵלָ֑י זֹ֣ה הַלִּשְׁכָּ֗ה אֲשֶׁ֤ר פָּנֶ֙יהָ֙ דֶּ֣רֶךְ הַדָּר֔וֹם לַכֹּ֣הֲנִ֔ים שֹׁמְרֵ֖י מִשְׁמֶ֥רֶת הַבָּֽיִת׃ | 45 |
४५उसने मुझसे कहा, “यह कोठरी, जिसका द्वार दक्षिण की ओर है, उन याजकों के लिये है जो भवन की चौकसी करते हैं,
וְהַלִּשְׁכָּ֗ה אֲשֶׁ֤ר פָּנֶ֙יהָ֙ דֶּ֣רֶךְ הַצָּפ֔וֹן לַכֹּ֣הֲנִ֔ים שֹׁמְרֵ֖י מִשְׁמֶ֣רֶת הַמִּזְבֵּ֑חַ הֵ֣מָּה בְנֵֽי־צָד֗וֹק הַקְּרֵבִ֧ים מִבְּנֵֽי־לֵוִ֛י אֶל־יְהוָ֖ה לְשָׁרְתֽוֹ׃ | 46 |
४६और जिस कोठरी का द्वार उत्तर की ओर है, वह उन याजकों के लिये है जो वेदी की चौकसी करते हैं; ये सादोक की सन्तान हैं; और लेवियों में से यहोवा की सेवा टहल करने को केवल ये ही उसके समीप जाते हैं।”
וַיָּ֨מָד אֶת־הֶחָצֵ֜ר אֹ֣רֶךְ ׀ מֵאָ֣ה אַמָּ֗ה וְרֹ֛חַב מֵאָ֥ה אַמָּ֖ה מְרֻבָּ֑עַת וְהַמִּזְבֵּ֖חַ לִפְנֵ֥י הַבָּֽיִת׃ | 47 |
४७फिर उसने आँगन को मापकर उसे चौकोर अर्थात् सौ हाथ लम्बा और सौ हाथ चौड़ा पाया; और भवन के सामने वेदी थी।
וַיְבִאֵנִי֮ אֶל־אֻלָ֣ם הַבַּיִת֒ וַיָּ֙מָד֙ אֵ֣ל אֻלָ֔ם חָמֵ֤שׁ אַמּוֹת֙ מִפֹּ֔ה וְחָמֵ֥שׁ אַמּ֖וֹת מִפֹּ֑ה וְרֹ֣חַב הַשַּׁ֔עַר שָׁלֹ֤שׁ אַמּוֹת֙ מִפּ֔וֹ וְשָׁלֹ֥שׁ אַמּ֖וֹת מִפּֽוֹ׃ | 48 |
४८फिर वह मुझे भवन के ओसारे में ले गया, और ओसारे के दोनों ओर के खम्भों को मापकर पाँच-पाँच हाथ का पाया; और दोनों ओर फाटक की चौड़ाई तीन-तीन हाथ की थी।
אֹ֣רֶךְ הָאֻלָ֞ם עֶשְׂרִ֣ים אַמָּ֗ה וְרֹ֙חַב֙ עַשְׁתֵּ֣י עֶשְׂרֵ֣ה אַמָּ֔ה וּבַֽמַּעֲל֔וֹת אֲשֶׁ֥ר יַעֲל֖וּ אֵלָ֑יו וְעַמֻּדִים֙ אֶל־הָ֣אֵילִ֔ים אֶחָ֥ד מִפֹּ֖ה וְאֶחָ֥ד מִפֹּֽה׃ | 49 |
४९ओसारे की लम्बाई बीस हाथ और चौड़ाई ग्यारह हाथ की थी; और उस पर चढ़ने को सीढ़ियाँ थीं; और दोनों ओर के खम्भों के पास लाटें थीं।