< דָּנִיֵּאל 2 >
וּבִשְׁנַ֣ת שְׁתַּ֗יִם לְמַלְכוּת֙ נְבֻֽכַדְנֶצַּ֔ר חָלַ֥ם נְבֻֽכַדְנֶצַּ֖ר חֲלֹמ֑וֹת וַתִּתְפָּ֣עֶם רוּח֔וֹ וּשְׁנָת֖וֹ נִהְיְתָ֥ה עָלָֽיו׃ | 1 |
१अपने राज्य के दूसरे वर्ष में नबूकदनेस्सर ने ऐसा स्वप्न देखा जिससे उसका मन बहुत ही व्याकुल हो गया और वह सो न सका।
וַיֹּ֣אמֶר הַ֠מֶּלֶךְ לִקְרֹ֨א לַֽחַרְטֻמִּ֜ים וְלָֽאַשָּׁפִ֗ים וְלַֽמְכַשְּׁפִים֙ וְלַכַּשְׂדִּ֔ים לְהַגִּ֥יד לַמֶּ֖לֶךְ חֲלֹמֹתָ֑יו וַיָּבֹ֕אוּ וַיַּֽעַמְד֖וּ לִפְנֵ֥י הַמֶּֽלֶךְ׃ | 2 |
२तब राजा ने आज्ञा दी, कि ज्योतिषी, तांत्रिक, टोन्हे और कसदी बुलाए जाएँ कि वे राजा को उसका स्वप्न बताएँ; इसलिए वे आए और राजा के सामने हाजिर हुए।
וַיֹּ֧אמֶר לָהֶ֛ם הַמֶּ֖לֶךְ חֲל֣וֹם חָלָ֑מְתִּי וַתִּפָּ֣עֶם רוּחִ֔י לָדַ֖עַת אֶֽת־הַחֲלֽוֹם׃ | 3 |
३तब राजा ने उनसे कहा, “मैंने एक स्वप्न देखा है, और मेरा मन व्याकुल है कि स्वप्न को कैसे समझूँ।”
וַֽיְדַבְּר֧וּ הַכַּשְׂדִּ֛ים לַמֶּ֖לֶךְ אֲרָמִ֑ית מַלְכָּא֙ לְעָלְמִ֣ין חֱיִ֔י אֱמַ֥ר חֶלְמָ֛א לעבדיך וּפִשְׁרָ֥א נְחַוֵּֽא׃ | 4 |
४तब कसदियों ने, राजा से अरामी भाषा में कहा, “हे राजा, तू चिरंजीवी रहे! अपने दासों को स्वप्न बता, और हम उसका अर्थ बताएँगे।”
עָנֵ֤ה מַלְכָּא֙ וְאָמַ֣ר לכשדיא מִלְּתָ֖א מִנִּ֣י אַזְדָּ֑א הֵ֣ן לָ֤א תְהֽוֹדְעוּנַּ֙נִי֙ חֶלְמָ֣א וּפִשְׁרֵ֔הּ הַדָּמִין֙ תִּתְעַבְד֔וּן וּבָתֵּיכ֖וֹן נְוָלִ֥י יִתְּשָׂמֽוּן׃ | 5 |
५राजा ने कसदियों को उत्तर दिया, “मैं यह आज्ञा दे चुका हूँ कि यदि तुम अर्थ समेत स्वप्न को न बताओगे तो तुम टुकड़े-टुकड़े किए जाओगे, और तुम्हारे घर फुँकवा दिए जाएँगे।
וְהֵ֨ן חֶלְמָ֤א וּפִשְׁרֵהּ֙ תְּֽהַחֲוֺ֔ן מַתְּנָ֤ן וּנְבִזְבָּה֙ וִיקָ֣ר שַׂגִּ֔יא תְּקַבְּל֖וּן מִן־קֳדָמָ֑י לָהֵ֕ן חֶלְמָ֥א וּפִשְׁרֵ֖הּ הַחֲוֺֽנִי׃ | 6 |
६और यदि तुम अर्थ समेत स्वप्न को बता दो तो मुझसे भाँति-भाँति के दान और भारी प्रतिष्ठा पाओगे। इसलिए तुम मुझे अर्थ समेत स्वप्न बताओ।”
עֲנ֥וֹ תִנְיָנ֖וּת וְאָמְרִ֑ין מַלְכָּ֕א חֶלְמָ֛א יֵאמַ֥ר לְעַבְד֖וֹהִי וּפִשְׁרָ֥ה נְהַחֲוֵֽה׃ | 7 |
७उन्होंने दूसरी बार कहा, “हे राजा स्वप्न तेरे दासों को बताया जाए, और हम उसका अर्थ समझा देंगे।”
עָנֵ֤ה מַלְכָּא֙ וְאָמַ֔ר מִן־יַצִּיב֙ יָדַ֣ע אֲנָ֔ה דִּ֥י עִדָּנָ֖א אַנְתּ֣וּן זָבְנִ֑ין כָּל־קֳבֵל֙ דִּ֣י חֲזֵית֔וֹן דִּ֥י אַזְדָּ֖א מִנִּ֥י מִלְּתָֽא׃ | 8 |
८राजा ने उत्तर दिया, “मैं निश्चय जानता हूँ कि तुम यह देखकर, कि राजा के मुँह से आज्ञा निकल चुकी है, समय बढ़ाना चाहते हो।
דִּ֣י הֵן־חֶלְמָא֩ לָ֨א תְהֽוֹדְעֻנַּ֜נִי חֲדָה־הִ֣יא דָֽתְכ֗וֹן וּמִלָּ֨ה כִדְבָ֤ה וּשְׁחִיתָה֙ הזמנתון לְמֵאמַ֣ר קָֽדָמַ֔י עַ֛ד דִּ֥י עִדָּנָ֖א יִשְׁתַּנֵּ֑א לָהֵ֗ן חֶלְמָא֙ אֱמַ֣רוּ לִ֔י וְֽאִנְדַּ֕ע דִּ֥י פִשְׁרֵ֖הּ תְּהַחֲוֻנַּֽנִי׃ | 9 |
९इसलिए यदि तुम मुझे स्वप्न न बताओ तो तुम्हारे लिये एक ही आज्ञा है। क्योंकि तुम ने गोष्ठी की होगी कि जब तक समय न बदले, तब तक हम राजा के सामने झूठी और गपशप की बातें कहा करेंगे। इसलिए तुम मुझे स्वप्न बताओ, तब मैं जानूँगा कि तुम उसका अर्थ भी समझा सकते हो।”
עֲנ֨וֹ כשדיא קֳדָם־מַלְכָּא֙ וְאָ֣מְרִ֔ין לָֽא־אִיתַ֤י אֲנָשׁ֙ עַל־יַבֶּשְׁתָּ֔א דִּ֚י מִלַּ֣ת מַלְכָּ֔א יוּכַ֖ל לְהַחֲוָיָ֑ה כָּל־קֳבֵ֗ל דִּ֚י כָּל־מֶ֙לֶךְ֙ רַ֣ב וְשַׁלִּ֔יט מִלָּ֤ה כִדְנָה֙ לָ֣א שְׁאֵ֔ל לְכָל־חַרְטֹּ֖ם וְאָשַׁ֥ף וְכַשְׂדָּֽי׃ | 10 |
१०कसदियों ने राजा से कहा, “पृथ्वी भर में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो राजा के मन की बात बता सके; और न कोई ऐसा राजा, या प्रधान, या हाकिम कभी हुआ है जिसने किसी ज्योतिषी या तांत्रिक, या कसदी से ऐसी बात पूछी हो।
וּמִלְּתָ֨א דִֽי־מַלְכָּ֤ה שָׁאֵל֙ יַקִּירָ֔ה וְאָחֳרָן֙ לָ֣א אִיתַ֔י דִּ֥י יְחַוִּנַּ֖הּ קֳדָ֣ם מַלְכָּ֑א לָהֵ֣ן אֱלָהִ֔ין דִּ֚י מְדָ֣רְה֔וֹן עִם־בִּשְׂרָ֖א לָ֥א אִיתֽוֹהִי׃ | 11 |
११जो बात राजा पूछता है, वह अनोखी है, और देवताओं को छोड़कर जिनका निवास मनुष्यों के संग नहीं है, और कोई दूसरा नहीं, जो राजा को यह बता सके।”
כָּל־קֳבֵ֣ל דְּנָ֔ה מַלְכָּ֕א בְּנַ֖ס וּקְצַ֣ף שַׂגִּ֑יא וַאֲמַר֙ לְה֣וֹבָדָ֔ה לְכֹ֖ל חַכִּימֵ֥י בָבֶֽל׃ | 12 |
१२इस पर राजा ने झुँझलाकर, और बहुत ही क्रोधित होकर, बाबेल के सब पंडितों के नाश करने की आज्ञा दे दी।
וְדָתָ֣א נֶפְקַ֔ת וְחַכִּֽימַיָּ֖א מִֽתְקַטְּלִ֑ין וּבְע֛וֹ דָּנִיֵּ֥אל וְחַבְר֖וֹהִי לְהִתְקְטָלָֽה׃ פ | 13 |
१३अतः यह आज्ञा निकली, और पंडित लोगों का घात होने पर था; और लोग दानिय्येल और उसके संगियों को ढूँढ़ रहे थे कि वे भी घात किए जाएँ।
בֵּאדַ֣יִן דָּנִיֵּ֗אל הֲתִיב֙ עֵטָ֣א וּטְעֵ֔ם לְאַרְי֕וֹךְ רַב־טַבָּחַיָּ֖א דִּ֣י מַלְכָּ֑א דִּ֚י נְפַ֣ק לְקַטָּלָ֔ה לְחַכִּימֵ֖י בָּבֶֽל׃ | 14 |
१४तब दानिय्येल ने, अंगरक्षकों के प्रधान अर्योक से, जो बाबेल के पंडितों को घात करने के लिये निकला था, सोच विचार कर और बुद्धिमानी के साथ कहा;
עָנֵ֣ה וְאָמַ֗ר לְאַרְיוֹךְ֙ שַׁלִּיטָ֣א דִֽי־מַלְכָּ֔א עַל־מָ֥ה דָתָ֛א מְהַחְצְפָ֖ה מִן־קֳדָ֣ם מַלְכָּ֑א אֱדַ֣יִן מִלְּתָ֔א הוֹדַ֥ע אַרְי֖וֹךְ לְדָנִיֵּֽאל׃ | 15 |
१५और राजा के हाकिम अर्योक से पूछने लगा, “यह आज्ञा राजा की ओर से ऐसी उतावली के साथ क्यों निकली?” तब अर्योक ने दानिय्येल को इसका भेद बता दिया।
וְדָ֣נִיֵּ֔אל עַ֖ל וּבְעָ֣ה מִן־מַלְכָּ֑א דִּ֚י זְמָ֣ן יִנְתֵּן־לֵ֔הּ וּפִשְׁרָ֖א לְהַֽחֲוָיָ֥ה לְמַלְכָּֽא׃ פ | 16 |
१६और दानिय्येल ने भीतर जाकर राजा से विनती की, कि उसके लिये कोई समय ठहराया जाए, तो वह महाराज को स्वप्न का अर्थ बता देगा।
אֱדַ֥יִן דָּֽנִיֵּ֖אל לְבַיְתֵ֣הּ אֲזַ֑ל וְ֠לַחֲנַנְיָה מִֽישָׁאֵ֧ל וַעֲזַרְיָ֛ה חַבְר֖וֹהִי מִלְּתָ֥א הוֹדַֽע׃ | 17 |
१७तब दानिय्येल ने अपने घर जाकर, अपने संगी हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह को यह हाल बताकर कहा:
וְרַחֲמִ֗ין לְמִבְעֵא֙ מִן־קֳדָם֙ אֱלָ֣הּ שְׁמַיָּ֔א עַל־רָזָ֖ה דְּנָ֑ה דִּ֣י לָ֤א יְהֹֽבְדוּן֙ דָּנִיֵּ֣אל וְחַבְר֔וֹהִי עִם־שְׁאָ֖ר חַכִּימֵ֥י בָבֶֽל׃ | 18 |
१८इस भेद के विषय में स्वर्ग के परमेश्वर की दया के लिये यह कहकर प्रार्थना करो, कि बाबेल के और सब पंडितों के संग दानिय्येल और उसके संगी भी नाश न किए जाएँ।
אֱדַ֗יִן לְדָנִיֵּ֛אל בְּחֶזְוָ֥א דִֽי־לֵילְיָ֖א רָזָ֣ה גֲלִ֑י אֱדַ֙יִן֙ דָּֽנִיֵּ֔אל בָּרִ֖ךְ לֶאֱלָ֥הּ שְׁמַיָּֽא׃ | 19 |
१९तब वह भेद दानिय्येल को रात के समय दर्शन के द्वारा प्रगट किया गया। तब दानिय्येल ने स्वर्ग के परमेश्वर का यह कहकर धन्यवाद किया,
עָנֵ֤ה דָֽנִיֵּאל֙ וְאָמַ֔ר לֶהֱוֵ֨א שְׁמֵ֤הּ דִּֽי־אֱלָהָא֙ מְבָרַ֔ךְ מִן־עָלְמָ֖א וְעַ֣ד־עָלְמָ֑א דִּ֧י חָכְמְתָ֛א וּגְבוּרְתָ֖א דִּ֥י לֵֽהּ־הִֽיא׃ | 20 |
२०“परमेश्वर का नाम युगानुयुग धन्य है; क्योंकि बुद्धि और पराक्रम उसी के हैं।
וְ֠הוּא מְהַשְׁנֵ֤א עִדָּנַיָּא֙ וְזִמְנַיָּ֔א מְהַעְדֵּ֥ה מַלְכִ֖ין וּמְהָקֵ֣ים מַלְכִ֑ין יָהֵ֤ב חָכְמְתָא֙ לְחַכִּימִ֔ין וּמַנְדְּעָ֖א לְיָדְעֵ֥י בִינָֽה׃ | 21 |
२१समयों और ऋतुओं को वही पलटता है; राजाओं का अस्त और उदय भी वही करता है; बुद्धिमानों को बुद्धि और समझवालों को समझ भी वही देता है;
ה֛וּא גָּלֵ֥א עַמִּיקָתָ֖א וּמְסַתְּרָתָ֑א יָדַע֙ מָ֣ה בַחֲשׁוֹכָ֔א ונהירא עִמֵּ֥הּ שְׁרֵֽא׃ | 22 |
२२वही गूढ़ और गुप्त बातों को प्रगट करता है; वह जानता है कि अंधियारे में क्या है, और उसके संग सदा प्रकाश बना रहता है।
לָ֣ךְ ׀ אֱלָ֣הּ אֲבָהָתִ֗י מְהוֹדֵ֤א וּמְשַׁבַּח֙ אֲנָ֔ה דִּ֧י חָכְמְתָ֛א וּגְבוּרְתָ֖א יְהַ֣בְתְּ לִ֑י וּכְעַ֤ן הֽוֹדַעְתַּ֙נִי֙ דִּֽי־בְעֵ֣ינָא מִנָּ֔ךְ דִּֽי־מִלַּ֥ת מַלְכָּ֖א הוֹדַעְתֶּֽנָא׃ | 23 |
२३हे मेरे पूर्वजों के परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद और स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने मुझे बुद्धि और शक्ति दी है, और जिस भेद का खुलना हम लोगों ने तुझ से माँगा था, उसे तूने मुझ पर प्रगट किया है, तूने हमको राजा की बात बताई है।”
כָּל־קֳבֵ֣ל דְּנָ֗ה דָּֽנִיֵּאל֙ עַ֣ל עַל־אַרְי֔וֹךְ דִּ֚י מַנִּ֣י מַלְכָּ֔א לְהוֹבָדָ֖ה לְחַכִּימֵ֣י בָבֶ֑ל אֲזַ֣ל ׀ וְכֵ֣ן אֲמַר־לֵ֗הּ לְחַכִּימֵ֤י בָבֶל֙ אַל־תְּהוֹבֵ֔ד הַעֵ֙לְנִי֙ קֳדָ֣ם מַלְכָּ֔א וּפִשְׁרָ֖א לְמַלְכָּ֥א אֲחַוֵּֽא׃ ס | 24 |
२४तब दानिय्येल ने अर्योक के पास, जिसे राजा ने बाबेल के पंडितों के नाश करने के लिये ठहराया था, भीतर जाकर कहा, “बाबेल के पंडितों का नाश न कर, मुझे राजा के सम्मुख भीतर ले चल, मैं अर्थ बताऊँगा।”
אֱדַ֤יִן אַרְיוֹךְ֙ בְּהִתְבְּהָלָ֔ה הַנְעֵ֥ל לְדָנִיֵּ֖אל קֳדָ֣ם מַלְכָּ֑א וְכֵ֣ן אֲמַר־לֵ֗הּ דִּֽי־הַשְׁכַּ֤חַת גְּבַר֙ מִן־בְּנֵ֤י גָֽלוּתָא֙ דִּ֣י יְה֔וּד דִּ֥י פִשְׁרָ֖א לְמַלְכָּ֥א יְהוֹדַֽע׃ | 25 |
२५तब अर्योक ने दानिय्येल को राजा के सम्मुख शीघ्र भीतर ले जाकर उससे कहा, “यहूदी बंधुओं में से एक पुरुष मुझ को मिला है, जो राजा को स्वप्न का अर्थ बताएगा।”
עָנֵ֤ה מַלְכָּא֙ וְאָמַ֣ר לְדָנִיֵּ֔אל דִּ֥י שְׁמֵ֖הּ בֵּלְטְשַׁאצַּ֑ר האיתיך כָּהֵ֗ל לְהוֹדָעֻתַ֛נִי חֶלְמָ֥א דִֽי־חֲזֵ֖ית וּפִשְׁרֵֽהּ׃ | 26 |
२६राजा ने दानिय्येल से, जिसका नाम बेलतशस्सर भी था, पूछा, “क्या तुझ में इतनी शक्ति है कि जो स्वप्न मैंने देखा है, उसे अर्थ समेत मुझे बताए?”
עָנֵ֧ה דָנִיֵּ֛אל קֳדָ֥ם מַלְכָּ֖א וְאָמַ֑ר רָזָה֙ דִּֽי־מַלְכָּ֣א שָׁאֵ֔ל לָ֧א חַכִּימִ֣ין אָֽשְׁפִ֗ין חַרְטֻמִּין֙ גָּזְרִ֔ין יָכְלִ֖ין לְהַֽחֲוָיָ֥ה לְמַלְכָּֽא׃ | 27 |
२७दानिय्येल ने राजा को उत्तर दिया, “जो भेद राजा पूछता है, वह न तो पंडित, न तांत्रिक, न ज्योतिषी, न दूसरे भावी बतानेवाले राजा को बता सकते हैं,
בְּרַ֡ם אִיתַ֞י אֱלָ֤הּ בִּשְׁמַיָּא֙ גָּלֵ֣א רָזִ֔ין וְהוֹדַ֗ע לְמַלְכָּא֙ נְבֽוּכַדְנֶצַּ֔ר מָ֛ה דִּ֥י לֶהֱוֵ֖א בְּאַחֲרִ֣ית יוֹמַיָּ֑א חֶלְמָ֨ךְ וְחֶזְוֵ֥י רֵאשָׁ֛ךְ עַֽל־מִשְׁכְּבָ֖ךְ דְּנָ֥ה הֽוּא׃ פ | 28 |
२८परन्तु भेदों का प्रगट करनेवाला परमेश्वर स्वर्ग में है; और उसी ने नबूकदनेस्सर राजा को जताया है कि अन्त के दिनों में क्या-क्या होनेवाला है। तेरा स्वप्न और जो कुछ तूने पलंग पर पड़े हुए देखा, वह यह है:
אַ֣נְתְּה מַלְכָּ֗א רַעְיוֹנָךְ֙ עַל־מִשְׁכְּבָ֣ךְ סְלִ֔קוּ מָ֛ה דִּ֥י לֶהֱוֵ֖א אַחֲרֵ֣י דְנָ֑ה וְגָלֵ֧א רָזַיָּ֛א הוֹדְעָ֖ךְ מָה־דִ֥י לֶהֱוֵֽא׃ | 29 |
२९हे राजा, जब तुझको पलंग पर यह विचार आया कि भविष्य में क्या-क्या होनेवाला है, तब भेदों को खोलनेवाले ने तुझको बताया, कि क्या-क्या होनेवाला है।
וַאֲנָ֗ה לָ֤א בְחָכְמָה֙ דִּֽי־אִיתַ֥י בִּי֙ מִן־כָּל־חַיַּיָּ֔א רָזָ֥א דְנָ֖ה גֱּלִ֣י לִ֑י לָהֵ֗ן עַל־דִּבְרַת֙ דִּ֤י פִשְׁרָא֙ לְמַלְכָּ֣א יְהוֹדְע֔וּן וְרַעְיוֹנֵ֥י לִבְבָ֖ךְ תִּנְדַּֽע׃ | 30 |
३०मुझ पर यह भेद इस कारण नहीं खोला गया कि मैं अन्य सब प्राणियों से अधिक बुद्धिमान हूँ, परन्तु केवल इसी कारण खोला गया है कि स्वप्न का अर्थ राजा को बताया जाए, और तू अपने मन के विचार समझ सके।
אַ֣נְתְּה מַלְכָּ֗א חָזֵ֤ה הֲוַ֙יְתָ֙ וַאֲל֨וּ צְלֵ֥ם חַד֙ שַׂגִּ֔יא צַלְמָ֨א דִּכֵּ֥ן רַ֛ב וְזִיוֵ֥הּ יַתִּ֖יר קָאֵ֣ם לְקָבְלָ֑ךְ וְרֵוֵ֖הּ דְּחִֽיל׃ | 31 |
३१“हे राजा, जब तू देख रहा था, तब एक बड़ी मूर्ति देख पड़ी, और वह मूर्ति जो तेरे सामने खड़ी थी, वह लम्बी-चौड़ी थी; उसकी चमक अनुपम थी, और उसका रूप भयंकर था।
ה֣וּא צַלְמָ֗א רֵאשֵׁהּ֙ דִּֽי־דְהַ֣ב טָ֔ב חֲד֥וֹהִי וּדְרָע֖וֹהִי דִּ֣י כְסַ֑ף מְע֥וֹהִי וְיַרְכָתֵ֖הּ דִּ֥י נְחָֽשׁ׃ | 32 |
३२उस मूर्ति का सिर तो शुद्ध सोने का था, उसकी छाती और भुजाएँ चाँदी की, उसका पेट और जाँघें पीतल की,
שָׁק֖וֹהִי דִּ֣י פַרְזֶ֑ל רַגְל֕וֹהִי מנהון דִּ֣י פַרְזֶ֔ל ומנהון דִּ֥י חֲסַֽף׃ | 33 |
३३उसकी टाँगें लोहे की और उसके पाँव कुछ तो लोहे के और कुछ मिट्टी के थे।
חָזֵ֣ה הֲוַ֗יְתָ עַ֠ד דִּ֣י הִתְגְּזֶ֤רֶת אֶ֙בֶן֙ דִּי־לָ֣א בִידַ֔יִן וּמְחָ֤ת לְצַלְמָא֙ עַל־רַגְל֔וֹהִי דִּ֥י פַרְזְלָ֖א וְחַסְפָּ֑א וְהַדֵּ֖קֶת הִמּֽוֹן׃ | 34 |
३४फिर देखते-देखते, तूने क्या देखा, कि एक पत्थर ने, बिना किसी के खोदे, आप ही आप उखड़कर उस मूर्ति के पाँवों पर लगकर जो लोहे और मिट्टी के थे, उनको चूर चूरकर डाला।
בֵּאדַ֣יִן דָּ֣קוּ כַחֲדָ֡ה פַּרְזְלָא֩ חַסְפָּ֨א נְחָשָׁ֜א כַּסְפָּ֣א וְדַהֲבָ֗א וַהֲווֹ֙ כְּע֣וּר מִן־אִדְּרֵי־קַ֔יִט וּנְשָׂ֤א הִמּוֹן֙ רוּחָ֔א וְכָל־אֲתַ֖ר לָא־הִשְׁתֲּכַ֣ח לְה֑וֹן וְאַבְנָ֣א ׀ דִּֽי־מְחָ֣ת לְצַלְמָ֗א הֲוָ֛ת לְט֥וּר רַ֖ב וּמְלָ֥ת כָּל־אַרְעָֽא׃ | 35 |
३५तब लोहा, मिट्टी, पीतल, चाँदी और सोना भी सब चूर-चूर हो गए, और धूपकाल में खलिहानों के भूसे के समान हवा से ऐसे उड़ गए कि उनका कहीं पता न रहा; और वह पत्थर जो मूर्ति पर लगा था, वह बड़ा पहाड़ बनकर सारी पृथ्वी में फैल गया।
דְּנָ֣ה חֶלְמָ֔א וּפִשְׁרֵ֖הּ נֵאמַ֥ר קֳדָם־מַלְכָּֽא׃ | 36 |
३६“यह स्वप्न है; और अब हम उसका अर्थ राजा को समझा देते हैं।
אַ֣נְתְּה מַלְכָּ֔א מֶ֖לֶךְ מַלְכַיָּ֑א דִּ֚י אֱלָ֣הּ שְׁמַיָּ֔א מַלְכוּתָ֥א חִסְנָ֛א וְתָקְפָּ֥א וִֽיקָרָ֖א יְהַב־לָֽךְ׃ | 37 |
३७हे राजा, तू तो महाराजाधिराज है, क्योंकि स्वर्ग के परमेश्वर ने तुझको राज्य, सामर्थ्य, शक्ति और महिमा दी है,
וּבְכָל־דִּ֣י דארין בְּֽנֵי־אֲ֠נָשָׁא חֵיוַ֨ת בָּרָ֤א וְעוֹף־שְׁמַיָּא֙ יְהַ֣ב בִּידָ֔ךְ וְהַשְׁלְטָ֖ךְ בְּכָלְּה֑וֹן אַנְתְּה־ה֔וּא רֵאשָׁ֖ה דִּ֥י דַהֲבָֽא׃ | 38 |
३८और जहाँ कहीं मनुष्य पाए जाते हैं, वहाँ उसने उन सभी को, और मैदान के जीव-जन्तु, और आकाश के पक्षी भी तेरे वश में कर दिए हैं; और तुझको उन सब का अधिकारी ठहराया है। यह सोने का सिर तू ही है।
וּבָתְרָ֗ךְ תְּק֛וּם מַלְכ֥וּ אָחֳרִ֖י אֲרַ֣עא מִנָּ֑ךְ וּמַלְכ֨וּ תליתיא אָחֳרִי֙ דִּ֣י נְחָשָׁ֔א דִּ֥י תִשְׁלַ֖ט בְּכָל־אַרְעָֽא׃ | 39 |
३९तेरे बाद एक राज्य और उदय होगा जो तुझ से छोटा होगा; फिर एक और तीसरा पीतल का सा राज्य होगा जिसमें सारी पृथ्वी आ जाएगी।
וּמַלְכוּ֙ רביעיה תֶּהֱוֵ֥א תַקִּיפָ֖ה כְּפַרְזְלָ֑א כָּל־קֳבֵ֗ל דִּ֤י פַרְזְלָא֙ מְהַדֵּ֤ק וְחָשֵׁל֙ כֹּ֔לָּא וּֽכְפַרְזְלָ֛א דִּֽי־מְרָעַ֥ע כָּל־אִלֵּ֖ין תַּדִּ֥ק וְתֵרֹֽעַ׃ | 40 |
४०और चौथा राज्य लोहे के तुल्य मजबूत होगा; लोहे से तो सब वस्तुएँ चूर-चूर हो जाती और पिस जाती हैं; इसलिए जिस भाँति लोहे से वे सब कुचली जाती हैं, उसी भाँति, उस चौथे राज्य से सब कुछ चूर-चूर होकर पिस जाएगा।
וְדִֽי־חֲזַ֜יְתָה רַגְלַיָּ֣א וְאֶצְבְּעָתָ֗א מנהון חֲסַ֤ף דִּֽי־פֶחָר֙ ומנהון פַּרְזֶ֔ל מַלְכ֤וּ פְלִיגָה֙ תֶּהֱוֵ֔ה וּמִן־נִצְבְּתָ֥א דִ֥י פַרְזְלָ֖א לֶֽהֱוֵא־בַ֑הּ כָּל־קֳבֵל֙ דִּ֣י חֲזַ֔יְתָה פַּ֨רְזְלָ֔א מְעָרַ֖ב בַּחֲסַ֥ף טִינָֽא׃ | 41 |
४१और तूने जो मूर्ति के पाँवों और उनकी उँगलियों को देखा, जो कुछ कुम्हार की मिट्टी की और कुछ लोहे की थीं, इससे वह चौथा राज्य बटा हुआ होगा; तो भी उसमें लोहे का सा कड़ापन रहेगा, जैसे कि तूने कुम्हार की मिट्टी के संग लोहा भी मिला हुआ देखा था।
וְאֶצְבְּעָת֙ רַגְלַיָּ֔א מנהון פַּרְזֶ֖ל ומנהון חֲסַ֑ף מִן־קְצָ֤ת מַלְכוּתָא֙ תֶּהֱוֵ֣ה תַקִּיפָ֔ה וּמִנַּ֖הּ תֶּהֱוֵ֥ה תְבִירָֽה׃ | 42 |
४२और जैसे पाँवों की उँगलियाँ कुछ तो लोहे की और कुछ मिट्टी की थीं, इसका अर्थ यह है, कि वह राज्य कुछ तो दृढ़ और कुछ निर्बल होगा।
די חֲזַ֗יְתָ פַּרְזְלָא֙ מְעָרַב֙ בַּחֲסַ֣ף טִינָ֔א מִתְעָרְבִ֤ין לֶהֱוֺן֙ בִּזְרַ֣ע אֲנָשָׁ֔א וְלָֽא־לֶהֱוֺ֥ן דָּבְקִ֖ין דְּנָ֣ה עִם־דְּנָ֑ה הֵֽא־כְדִ֣י פַרְזְלָ֔א לָ֥א מִתְעָרַ֖ב עִם־חַסְפָּֽא׃ | 43 |
४३और तूने जो लोहे को कुम्हार की मिट्टी के संग मिला हुआ देखा, इसका अर्थ यह है, कि उस राज्य के लोग एक दूसरे मनुष्यों से मिले-जुले तो रहेंगे, परन्तु जैसे लोहा मिट्टी के साथ मेल नहीं खाता, वैसे ही वे भी एक न बने रहेंगे।
וּֽבְיוֹמֵיה֞וֹן דִּ֧י מַלְכַיָּ֣א אִנּ֗וּן יְקִים֩ אֱלָ֨הּ שְׁמַיָּ֤א מַלְכוּ֙ דִּ֤י לְעָלְמִין֙ לָ֣א תִתְחַבַּ֔ל וּמַ֨לְכוּתָ֔ה לְעַ֥ם אָחֳרָ֖ן לָ֣א תִשְׁתְּבִ֑ק תַּדִּ֤ק וְתָסֵיף֙ כָּל־אִלֵּ֣ין מַלְכְוָתָ֔א וְהִ֖יא תְּק֥וּם לְעָלְמַיָּֽא׃ | 44 |
४४और उन राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन् वह उन सब राज्यों को चूर-चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा;
כָּל־קֳבֵ֣ל דִּֽי־חֲזַ֡יְתָ דִּ֣י מִטּוּרָא֩ אִתְגְּזֶ֨רֶת אֶ֜בֶן דִּי־לָ֣א בִידַ֗יִן וְ֠הַדֶּקֶת פַּרְזְלָ֨א נְחָשָׁ֤א חַסְפָּא֙ כַּסְפָּ֣א וְדַהֲבָ֔א אֱלָ֥הּ רַב֙ הוֹדַ֣ע לְמַלְכָּ֔א מָ֛ה דִּ֥י לֶהֱוֵ֖א אַחֲרֵ֣י דְנָ֑ה וְיַצִּ֥יב חֶלְמָ֖א וּמְהֵימַ֥ן פִּשְׁרֵֽהּ׃ פ | 45 |
४५जैसा तूने देखा कि एक पत्थर किसी के हाथ के बिन खोदे पहाड़ में से उखड़ा, और उसने लोहे, पीतल, मिट्टी, चाँदी, और सोने को चूर-चूर किया, इसी रीति महान परमेश्वर ने राजा को जताया है कि इसके बाद क्या-क्या होनेवाला है। न स्वप्न में और न उसके अर्थ में कुछ सन्देह है।”
בֵּ֠אדַיִן מַלְכָּ֤א נְבֽוּכַדְנֶצַּר֙ נְפַ֣ל עַל־אַנְפּ֔וֹהִי וּלְדָנִיֵּ֖אל סְגִ֑ד וּמִנְחָה֙ וְנִ֣יחֹחִ֔ין אֲמַ֖ר לְנַסָּ֥כָה לֵֽהּ׃ | 46 |
४६इतना सुनकर नबूकदनेस्सर राजा ने मुँह के बल गिरकर दानिय्येल को दण्डवत् किया, और आज्ञा दी कि उसको भेंट चढ़ाओ, और उसके सामने सुगन्ध वस्तु जलाओ।
עָנֵה֩ מַלְכָּ֨א לְדָנִיֵּ֜אל וְאָמַ֗ר מִן־קְשֹׁט֙ דִּ֣י אֱלָהֲכ֗וֹן ה֣וּא אֱלָ֧הּ אֱלָהִ֛ין וּמָרֵ֥א מַלְכִ֖ין וְגָלֵ֣ה רָזִ֑ין דִּ֣י יְכֵ֔לְתָּ לְמִגְלֵ֖א רָזָ֥ה דְנָֽה׃ | 47 |
४७फिर राजा ने दानिय्येल से कहा, “सच तो यह है कि तुम लोगों का परमेश्वर, सब ईश्वरों का परमेश्वर, राजाओं का राजा और भेदों का खोलनेवाला है, इसलिए तू यह भेद प्रगट कर पाया।”
אֱדַ֨יִן מַלְכָּ֜א לְדָנִיֵּ֣אל רַבִּ֗י וּמַתְּנָ֨ן רַבְרְבָ֤ן שַׂגִּיאָן֙ יְהַב־לֵ֔הּ וְהַ֨שְׁלְטֵ֔הּ עַ֖ל כָּל־מְדִינַ֣ת בָּבֶ֑ל וְרַב־סִגְנִ֔ין עַ֖ל כָּל־חַכִּימֵ֥י בָבֶֽל׃ | 48 |
४८तब राजा ने दानिय्येल का पद बड़ा किया, और उसको बहुत से बड़े-बड़े दान दिए; और यह आज्ञा दी कि वह बाबेल के सारे प्रान्त पर हाकिम और बाबेल के सब पंडितों पर मुख्य प्रधान बने।
וְדָנִיֵּאל֙ בְּעָ֣א מִן־מַלְכָּ֔א וּמַנִּ֗י עַ֤ל עֲבִֽידְתָּא֙ דִּ֚י מְדִינַ֣ת בָּבֶ֔ל לְשַׁדְרַ֥ךְ מֵישַׁ֖ךְ וַעֲבֵ֣ד נְג֑וֹ וְדָנִיֵּ֖אל בִּתְרַ֥ע מַלְכָּֽא׃ פ | 49 |
४९तब दानिय्येल के विनती करने से राजा ने शद्रक, मेशक, और अबेदनगो को बाबेल के प्रान्त के कार्य के ऊपर नियुक्त कर दिया; परन्तु दानिय्येल आप ही राजा के दरबार में रहा करता था।