< 1 מְלָכִים 7 >

וְאֶת־בֵּיתוֹ֙ בָּנָ֣ה שְׁלֹמֹ֔ה שְׁלֹ֥שׁ עֶשְׂרֵ֖ה שָׁנָ֑ה וַיְכַ֖ל אֶת־כָּל־בֵּיתֽוֹ׃ 1
सुलैमान ने अपना महल भी बनाया, और उसके निर्माण-कार्य में तेरह वर्ष लगे।
וַיִּ֜בֶן אֶת־בֵּ֣ית ׀ יַ֣עַר הַלְּבָנ֗וֹן מֵאָ֨ה אַמָּ֤ה אָרְכּוֹ֙ וַחֲמִשִּׁ֤ים אַמָּה֙ רָחְבּ֔וֹ וּשְׁלֹשִׁ֥ים אַמָּ֖ה קוֹמָת֑וֹ עַ֗ל אַרְבָּעָה֙ טוּרֵי֙ עַמּוּדֵ֣י אֲרָזִ֔ים וּכְרֻת֥וֹת אֲרָזִ֖ים עַל־הָעַמּוּדִֽים׃ 2
उसने लबानोन का वन नामक महल बनाया जिसकी लम्बाई सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और ऊँचाई तीस हाथ की थी; वह तो देवदार के खम्भों की चार पंक्तियों पर बना और खम्भों पर देवदार की कड़ियाँ रखी गई।
וְסָפֻ֣ן בָּאֶ֗רֶז מִמַּ֙עַל֙ עַל־הַצְּלָעֹת֙ אֲשֶׁ֣ר עַל־הָֽעַמּוּדִ֔ים אַרְבָּעִ֖ים וַחֲמִשָּׁ֑ה חֲמִשָּׁ֥ה עָשָׂ֖ר הַטּֽוּר׃ 3
और पैंतालीस खम्भों के ऊपर देवदार की छतवाली कोठरियाँ बनीं अर्थात् एक-एक मंजिल में पन्द्रह कोठरियाँ बनीं।
וּשְׁקֻפִ֖ים שְׁלֹשָׁ֣ה טוּרִ֑ים וּמֶחֱזָ֥ה אֶל־מֶחֱזָ֖ה שָׁלֹ֥שׁ פְּעָמִֽים׃ 4
तीनों मंजिलों में कड़ियाँ धरी गईं, और तीनों में खिड़कियाँ आमने-सामने बनीं।
וְכָל־הַפְּתָחִ֥ים וְהַמְּזוּז֖וֹת רְבֻעִ֣ים שָׁ֑קֶף וּמ֧וּל מֶחֱזָ֛ה אֶל־מֶחֱזָ֖ה שָׁלֹ֥שׁ פְּעָמִֽים׃ 5
और सब द्वार और बाजुओं की कड़ियाँ भी चौकोर थीं, और तीनों मंजिलों में खिड़कियाँ आमने-सामने बनीं।
וְאֵ֨ת אוּלָ֤ם הָֽעַמּוּדִים֙ עָשָׂ֔ה חֲמִשִּׁ֤ים אַמָּה֙ אָרְכּ֔וֹ וּשְׁלֹשִׁ֥ים אַמָּ֖ה רָחְבּ֑וֹ וְאוּלָם֙ עַל־פְּנֵיהֶ֔ם וְעַמֻּדִ֥ים וְעָ֖ב עַל־פְּנֵיהֶֽם׃ 6
उसने एक खम्भेवाला ओसारा भी बनाया जिसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ की थी, और इन खम्भों के सामने एक खम्भेवाला ओसारा और उसके सामने डेवढ़ी बनाई।
וְאוּלָ֤ם הַכִּסֵּא֙ אֲשֶׁ֣ר יִשְׁפָּט־שָׁ֔ם אֻלָ֥ם הַמִּשְׁפָּ֖ט עָשָׂ֑ה וְסָפ֣וּן בָּאֶ֔רֶז מֵהַקַּרְקַ֖ע עַד־הַקַּרְקָֽע׃ 7
फिर उसने न्याय के सिंहासन के लिये भी एक ओसारा बनाया, जो न्याय का ओसारा कहलाया; और उसमें एक फर्श से दूसरे फर्श तक देवदार की तख्ताबंदी थी।
וּבֵיתוֹ֩ אֲשֶׁר־יֵ֨שֶׁב שָׁ֜ם חָצֵ֣ר הָאַחֶ֗רֶת מִבֵּית֙ לָֽאוּלָ֔ם כַּמַּֽעֲשֶׂ֥ה הַזֶּ֖ה הָיָ֑ה וּבַ֜יִת יַעֲשֶׂ֤ה לְבַת־פַּרְעֹה֙ אֲשֶׁ֣ר לָקַ֣ח שְׁלֹמֹ֔ה כָּאוּלָ֖ם הַזֶּֽה׃ 8
उसके रहने का भवन जो उस ओसारे के भीतर के एक और आँगन में बना, वह भी उसी ढंग से बना। फिर उसी ओसारे के समान से सुलैमान ने फ़िरौन की बेटी के लिये जिसको उसने ब्याह लिया था, एक और भवन बनाया।
כָּל־אֵ֜לֶּה אֲבָנִ֤ים יְקָרֹת֙ כְּמִדֹּ֣ת גָּזִ֔ית מְגֹרָר֥וֹת בַּמְּגֵרָ֖ה מִבַּ֣יִת וּמִח֑וּץ וּמִמַּסָּד֙ עַד־הַטְּפָח֔וֹת וּמִח֖וּץ עַד־הֶחָצֵ֥ר הַגְּדוֹלָֽה׃ 9
ये सब घर बाहर भीतर नींव से मुंडेर तक ऐसे अनमोल और गढ़े हुए पत्थरों के बने जो नापकर, और आरों से चीरकर तैयार किए गए थे और बाहर के आँगन से ले बड़े आँगन तक लगाए गए।
וּמְיֻסָּ֕ד אֲבָנִ֥ים יְקָר֖וֹת אֲבָנִ֣ים גְּדֹל֑וֹת אַבְנֵי֙ עֶ֣שֶׂר אַמּ֔וֹת וְאַבְנֵ֖י שְׁמֹנֶ֥ה אַמּֽוֹת׃ 10
१०उसकी नींव बहुमूल्य और बड़े-बड़े अर्थात् दस-दस और आठ-आठ हाथ के पत्थरों की डाली गई थी।
וּמִלְמַ֗עְלָה אֲבָנִ֧ים יְקָר֛וֹת כְּמִדּ֥וֹת גָּזִ֖ית וָאָֽרֶז׃ 11
११और ऊपर भी बहुमूल्य पत्थर थे, जो नाप से गढ़े हुए थे, और देवदार की लकड़ी भी थी।
וְחָצֵ֨ר הַגְּדוֹלָ֜ה סָבִ֗יב שְׁלֹשָׁה֙ טוּרִ֣ים גָּזִ֔ית וְט֖וּר כְּרֻתֹ֣ת אֲרָזִ֑ים וְלַחֲצַ֧ר בֵּית־יְהוָ֛ה הַפְּנִימִ֖ית וּלְאֻלָ֥ם הַבָּֽיִת׃ פ 12
१२बड़े आँगन के चारों ओर के घेरे में गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और देवदार की कड़ियों की एक परत थी, जैसे कि यहोवा के भवन के भीतरवाले आँगन और भवन के ओसारे में लगे थे।
וַיִּשְׁלַח֙ הַמֶּ֣לֶךְ שְׁלֹמֹ֔ה וַיִּקַּ֥ח אֶת־חִירָ֖ם מִצֹּֽר׃ 13
१३फिर राजा सुलैमान ने सोर से हूराम को बुलवा भेजा।
בֶּן־אִשָּׁה֩ אַלְמָנָ֨ה ה֜וּא מִמַּטֵּ֣ה נַפְתָּלִ֗י וְאָבִ֣יו אִישׁ־צֹרִי֮ חֹרֵ֣שׁ נְחֹשֶׁת֒ וַ֠יִּמָּלֵא אֶת־הַחָכְמָ֤ה וְאֶת־הַתְּבוּנָה֙ וְאֶת־הַדַּ֔עַת לַעֲשׂ֥וֹת כָּל־מְלָאכָ֖ה בַּנְּחֹ֑שֶׁת וַיָּבוֹא֙ אֶל־הַמֶּ֣לֶךְ שְׁלֹמֹ֔ה וַיַּ֖עַשׂ אֶת־כָּל־מְלַאכְתּֽוֹ׃ 14
१४वह नप्ताली के गोत्र की किसी विधवा का बेटा था, और उसका पिता एक सोरवासी ठठेरा था, और वह पीतल की सब प्रकार की कारीगरी में पूरी बुद्धि, निपुणता और समझ रखता था। सो वह राजा सुलैमान के पास आकर उसका सब काम करने लगा।
וַיָּ֛צַר אֶת־שְׁנֵ֥י הָעַמּוּדִ֖ים נְחֹ֑שֶׁת שְׁמֹנֶ֨ה עֶשְׂרֵ֜ה אַמָּ֗ה קוֹמַת֙ הָעַמּ֣וּד הָאֶחָ֔ד וְחוּט֙ שְׁתֵּים־עֶשְׂרֵ֣ה אַמָּ֔ה יָסֹ֖ב אֶת־הָעַמּ֥וּד הַשֵּׁנִֽי׃ 15
१५उसने पीतल ढालकर अठारह-अठारह हाथ ऊँचे दो खम्भे बनाए, और एक-एक का घेरा बारह हाथ के सूत का था ये भीतर से खोखले थे, और इसकी धातु की मोटाई चार अंगुल थी।
וּשְׁתֵּ֨י כֹתָרֹ֜ת עָשָׂ֗ה לָתֵ֛ת עַל־רָאשֵׁ֥י הָֽעַמּוּדִ֖ים מֻצַ֣ק נְחֹ֑שֶׁת חָמֵ֣שׁ אַמּ֗וֹת קוֹמַת֙ הַכֹּתֶ֣רֶת הָאֶחָ֔ת וְחָמֵ֣שׁ אַמּ֔וֹת קוֹמַ֖ת הַכֹּתֶ֥רֶת הַשֵּׁנִֽית׃ 16
१६उसने खम्भों के सिरों पर लगाने को पीतल ढालकर दो कँगनी बनाई; एक-एक कँगनी की ऊँचाई, पाँच-पाँच हाथ की थी।
שְׂבָכִ֞ים מַעֲשֵׂ֣ה שְׂבָכָ֗ה גְּדִלִים֙ מַעֲשֵׂ֣ה שַׁרְשְׁר֔וֹת לַכֹּ֣תָרֹ֔ת אֲשֶׁ֖ר עַל־רֹ֣אשׁ הָעַמּוּדִ֑ים שִׁבְעָה֙ לַכֹּתֶ֣רֶת הָאֶחָ֔ת וְשִׁבְעָ֖ה לַכֹּתֶ֥רֶת הַשֵּׁנִֽית׃ 17
१७खम्भों के सिरों पर की कँगनियों के लिये चार खाने की सात-सात जालियाँ, और साँकलों की सात-सात झालरें बनीं।
וַיַּ֖עַשׂ אֶת־הָעַמּוּדִ֑ים וּשְׁנֵי֩ טוּרִ֨ים סָבִ֜יב עַל־הַשְּׂבָכָ֣ה הָאֶחָ֗ת לְכַסּ֤וֹת אֶת־הַכֹּֽתָרֹת֙ אֲשֶׁר֙ עַל־רֹ֣אשׁ הָֽרִמֹּנִ֔ים וְכֵ֣ן עָשָׂ֔ה לַכֹּתֶ֖רֶת הַשֵּׁנִֽית׃ 18
१८उसने खम्भों को भी इस प्रकार बनाया कि खम्भों के सिरों पर की एक-एक कँगनी को ढाँपने के लिये चारों ओर जालियों की एक-एक पाँति पर अनारों की दो पंक्तियाँ हों।
וְכֹֽתָרֹ֗ת אֲשֶׁר֙ עַל־רֹ֣אשׁ הָעַמּוּדִ֔ים מַעֲשֵׂ֖ה שׁוּשַׁ֣ן בָּֽאוּלָ֑ם אַרְבַּ֖ע אַמּֽוֹת׃ 19
१९जो कँगनियाँ ओसारों में खम्भों के सिरों पर बनीं, उनमें चार-चार हाथ ऊँचे सोसन के फूल बने हुए थे।
וְכֹתָרֹ֗ת עַל־שְׁנֵי֙ הָֽעַמּוּדִ֔ים גַּם־מִמַּ֙עַל֙ מִלְּעֻמַּ֣ת הַבֶּ֔טֶן אֲשֶׁ֖ר לְעֵ֣בֶר שבכה וְהָרִמּוֹנִ֤ים מָאתַ֙יִם֙ טֻרִ֣ים סָבִ֔יב עַ֖ל הַכֹּתֶ֥רֶת הַשֵּׁנִֽית׃ 20
२०और एक-एक खम्भे के सिरे पर, उस गोलाई के पास जो जाली से लगी थी, एक और कँगनी बनी, और एक-एक कँगनी पर जो अनार चारों ओर पंक्ति-पंक्ति करके बने थे वह दो सौ थे।
וַיָּ֙קֶם֙ אֶת־הָֽעַמֻּדִ֔ים לְאֻלָ֖ם הַֽהֵיכָ֑ל וַיָּ֜קֶם אֶת־הָעַמּ֣וּד הַיְמָנִ֗י וַיִּקְרָ֤א אֶת־שְׁמוֹ֙ יָכִ֔ין וַיָּ֙קֶם֙ אֶת־הָעַמּ֣וּד הַשְּׂמָאלִ֔י וַיִּקְרָ֥א אֶת־שְׁמ֖וֹ בֹּֽעַז׃ 21
२१उन खम्भों को उसने मन्दिर के ओसारे के पास खड़ा किया, और दाहिनी ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम याकीन रखा; फिर बाईं ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम बोअज रखा।
וְעַ֛ל רֹ֥אשׁ הָעַמּוּדִ֖ים מַעֲשֵׂ֣ה שׁוֹשָׁ֑ן וַתִּתֹּ֖ם מְלֶ֥אכֶת הָעַמּוּדִֽים׃ 22
२२और खम्भों के सिरों पर सोसन के फूल का काम बना था खम्भों का काम इसी रीति पूरा हुआ।
וַיַּ֥עַשׂ אֶת־הַיָּ֖ם מוּצָ֑ק עֶ֣שֶׂר בָּ֠אַמָּה מִשְּׂפָת֨וֹ עַד־שְׂפָת֜וֹ עָגֹ֣ל ׀ סָבִ֗יב וְחָמֵ֤שׁ בָּֽאַמָּה֙ קוֹמָת֔וֹ וקוה שְׁלֹשִׁ֣ים בָּֽאַמָּ֔ה יָסֹ֥ב אֹת֖וֹ סָבִֽיב׃ 23
२३फिर उसने एक ढाला हुआ एक बड़ा हौज बनाया, जो एक छोर से दूसरी छोर तक दस हाथ चौड़ा था, उसका आकार गोल था, और उसकी ऊँचाई पाँच हाथ की थी, और उसके चारों ओर का घेरा तीस हाथ के सूत के बराबर था।
וּפְקָעִים֩ מִתַּ֨חַת לִשְׂפָת֤וֹ ׀ סָבִיב֙ סֹבְבִ֣ים אֹת֔וֹ עֶ֚שֶׂר בָּֽאַמָּ֔ה מַקִּפִ֥ים אֶת־הַיָּ֖ם סָבִ֑יב שְׁנֵ֤י טוּרִים֙ הַפְּקָעִ֔ים יְצֻקִ֖ים בִּיצֻקָתֽוֹ׃ 24
२४और उसके चारों ओर के किनारे के नीचे एक-एक हाथ में दस-दस कलियाँ बनीं, जो हौज को घेरे थीं; जब वह ढाला गया; तब ये कलियाँ भी दो पंक्तियों में ढाली गईं।
עֹמֵ֞ד עַל־שְׁנֵ֧י עָשָׂ֣ר בָּקָ֗ר שְׁלֹשָׁ֣ה פֹנִ֣ים ׀ צָפ֡וֹנָה וּשְׁלֹשָׁה֩ פֹנִ֨ים ׀ יָ֜מָּה וּשְׁלֹשָׁ֣ה ׀ פֹּנִ֣ים נֶ֗גְבָּה וּשְׁלֹשָׁה֙ פֹּנִ֣ים מִזְרָ֔חָה וְהַיָּ֥ם עֲלֵיהֶ֖ם מִלְמָ֑עְלָה וְכָל־אֲחֹֽרֵיהֶ֖ם בָּֽיְתָה׃ 25
२५और वह बारह बने हुए बैलों पर रखा गया जिनमें से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्षिण, और तीन पूर्व की ओर मुँह किए हुए थे; और उन ही के ऊपर हौज था, और उन सभी का पिछला अंग भीतर की ओर था।
וְעָבְי֣וֹ טֶ֔פַח וּשְׂפָת֛וֹ כְּמַעֲשֵׂ֥ה שְׂפַת־כּ֖וֹס פֶּ֣רַח שׁוֹשָׁ֑ן אַלְפַּ֥יִם בַּ֖ת יָכִֽיל׃ פ 26
२६उसकी मोटाई मुट्ठी भर की थी, और उसका किनारा कटोरे के किनारे के समान सोसन के फूलों के जैसा बना था, और उसमें दो हजार बत पानी समाता था।
וַיַּ֧עַשׂ אֶת־הַמְּכֹנ֛וֹת עֶ֖שֶׂר נְחֹ֑שֶׁת אַרְבַּ֣ע בָּאַמָּ֗ה אֹ֚רֶךְ הַמְּכוֹנָ֣ה הָֽאֶחָ֔ת וְאַרְבַּ֤ע בָּֽאַמָּה֙ רָחְבָּ֔הּ וְשָׁלֹ֥שׁ בָּאַמָּ֖ה קוֹמָתָֽהּ׃ 27
२७फिर उसने पीतल के दस ठेले बनाए, एक-एक ठेले की लम्बाई चार हाथ, चौड़ाई भी चार हाथ और ऊँचाई तीन हाथ की थी।
וְזֶ֛ה מַעֲשֵׂ֥ה הַמְּכוֹנָ֖ה מִסְגְּרֹ֣ת לָהֶ֑ם וּמִסְגְּרֹ֖ת בֵּ֥ין הַשְׁלַבִּֽים׃ 28
२८उन पायों की बनावट इस प्रकार थी; उनके पटरियाँ थीं, और पटरियों के बीचों बीच जोड़ भी थे।
וְעַֽל־הַמִּסְגְּר֞וֹת אֲשֶׁ֣ר ׀ בֵּ֣ין הַשְׁלַבִּ֗ים אֲרָי֤וֹת ׀ בָּקָר֙ וּכְרוּבִ֔ים וְעַל־הַשְׁלַבִּ֖ים כֵּ֣ן מִמָּ֑עַל וּמִתַּ֙חַת֙ לַאֲרָי֣וֹת וְלַבָּקָ֔ר לֹי֖וֹת מַעֲשֵׂ֥ה מוֹרָֽד׃ 29
२९और जोड़ों के बीचों बीच की पटरियों पर सिंह, बैल, और करूब बने थे और जोड़ों के ऊपर भी एक-एक और ठेला बना और सिंहों और बैलों के नीचे लटकती हुई झालरें बनी थीं।
וְאַרְבָּעָה֩ אוֹפַנֵּ֨י נְחֹ֜שֶׁת לַמְּכוֹנָ֤ה הָֽאַחַת֙ וְסַרְנֵ֣י נְחֹ֔שֶׁת וְאַרְבָּעָ֥ה פַעֲמֹתָ֖יו כְּתֵפֹ֣ת לָהֶ֑ם מִתַּ֤חַת לַכִּיֹּר֙ הַכְּתֵפֹ֣ת יְצֻק֔וֹת מֵעֵ֥בֶר אִ֖ישׁ לֹיֽוֹת׃ 30
३०एक-एक ठेले के लिये पीतल के चार पहिये और पीतल की धुरियाँ बनीं; और एक-एक के चारों कोनों से लगे हुए आधार भी ढालकर बनाए गए जो हौदी के नीचे तक पहुँचते थे, और एक-एक आधार के पास झालरें बनी हुई थीं।
וּ֠פִיהוּ מִבֵּ֨ית לַכֹּתֶ֤רֶת וָמַ֙עְלָה֙ בָּֽאַמָּ֔ה וּפִ֙יהָ֙ עָגֹ֣ל מַעֲשֵׂה־כֵ֔ן אַמָּ֖ה וַחֲצִ֣י הָֽאַמָּ֑ה וְגַם־עַל־פִּ֙יהָ֙ מִקְלָע֔וֹת וּמִסְגְּרֹתֵיהֶ֥ם מְרֻבָּע֖וֹת לֹ֥א עֲגֻלּֽוֹת׃ 31
३१हौदी का मुँह जो ठेले की कँगनी के भीतर और ऊपर भी था वह एक हाथ ऊँचा था, और ठेले का मुँह जिसकी चौड़ाई डेढ़ हाथ की थी, वह पाये की बनावट के समान गोल बना; और उसके मुँह पर भी कुछ खुदा हुआ काम था और उनकी पटरियाँ गोल नहीं, चौकोर थीं।
וְאַרְבַּ֣עַת הָאֽוֹפַנִּ֗ים לְמִתַּ֙חַת֙ לַֽמִּסְגְּר֔וֹת וִיד֥וֹת הָאֽוֹפַנִּ֖ים בַּמְּכוֹנָ֑ה וְקוֹמַת֙ הָאוֹפַ֣ן הָאֶחָ֔ד אַמָּ֖ה וַחֲצִ֥י הָאַמָּֽה׃ 32
३२और चारों पहिये, पटरियों के नीचे थे, और एक-एक ठेले के पहियों में धुरियाँ भी थीं; और एक-एक पहिये की ऊँचाई डेढ़-डेढ़ हाथ की थी।
וּמַֽעֲשֵׂה֙ הָא֣וֹפַנִּ֔ים כְּמַעֲשֵׂ֖ה אוֹפַ֣ן הַמֶּרְכָּבָ֑ה יְדוֹתָ֣ם וְגַבֵּיהֶ֗ם וְחִשֻּׁקֵיהֶ֛ם וְחִשֻּׁרֵיהֶ֖ם הַכֹּ֥ל מוּצָֽק׃ 33
३३पहियों की बनावट, रथ के पहिये की सी थी, और उनकी धुरियाँ, चक्र, आरे, और नाभें सब ढाली हुई थीं।
וְאַרְבַּ֣ע כְּתֵפ֔וֹת אֶ֚ל אַרְבַּ֣ע פִּנּ֔וֹת הַמְּכֹנָ֖ה הָֽאֶחָ֑ת מִן־הַמְּכֹנָ֖ה כְּתֵפֶֽיהָ׃ 34
३४और एक-एक ठेले के चारों कोनों पर चार आधार थे, और आधार और ठेले दोनों एक ही टुकड़े के बने थे।
וּבְרֹ֣אשׁ הַמְּכוֹנָ֗ה חֲצִ֧י הָאַמָּ֛ה קוֹמָ֖ה עָגֹ֣ל ׀ סָבִ֑יב וְעַ֨ל רֹ֤אשׁ הַמְּכֹנָה֙ יְדֹתֶ֔יהָ וּמִסְגְּרֹתֶ֖יהָ מִמֶּֽנָּה׃ 35
३५और एक-एक ठेले के सिरे पर आधा हाथ ऊँची चारों ओर गोलाई थी, और ठेले के सिरे पर की टेकें और पटरियाँ ठेले से जुड़े हुए एक ही टुकड़े के बने थे।
וַיְפַתַּ֤ח עַל־הַלֻּחֹת֙ יְדֹתֶ֔יהָ וְעַל֙ ומסגרתיה כְּרוּבִ֖ים אֲרָי֣וֹת וְתִמֹרֹ֑ת כְּמַֽעַר־אִ֥ישׁ וְלֹי֖וֹת סָבִֽיב׃ 36
३६और टेकों के पाटों और पटरियों पर जितनी जगह जिस पर थी, उसमें उसने करूब, और सिंह, और खजूर के वृक्ष खोदकर भर दिये, और चारों ओर झालरें भी बनाईं।
כָּזֹ֣את עָשָׂ֔ה אֵ֖ת עֶ֣שֶׂר הַמְּכֹנ֑וֹת מוּצָ֨ק אֶחָ֜ד מִדָּ֥ה אַחַ֛ת קֶ֥צֶב אֶחָ֖ד לְכֻלָּֽהְנָה׃ ס 37
३७इसी प्रकार से उसने दसों ठेलों को बनाया; सभी का एक ही साँचा और एक ही नाप, और एक ही आकार था।
וַיַּ֛עַשׂ עֲשָׂרָ֥ה כִיֹּר֖וֹת נְחֹ֑שֶׁת אַרְבָּעִ֨ים בַּ֜ת יָכִ֣יל ׀ הַכִּיּ֣וֹר הָאֶחָ֗ד אַרְבַּ֤ע בָּֽאַמָּה֙ הַכִּיּ֣וֹר הָאֶחָ֔ד כִּיּ֤וֹר אֶחָד֙ עַל־הַמְּכוֹנָ֣ה הָאַחַ֔ת לְעֶ֖שֶׂר הַמְּכֹנֽוֹת׃ 38
३८उसने पीतल की दस हौदी बनाईं। एक-एक हौदी में चालीस-चालीस बत पानी समाता था; और एक-एक, चार-चार हाथ चौड़ी थी, और दसों ठेलों में से एक-एक पर, एक-एक हौदी थी।
וַיִּתֵּן֙ אֶת־הַמְּכֹנ֔וֹת חָמֵ֞שׁ עַל־כֶּ֤תֶף הַבַּ֙יִת֙ מִיָּמִ֔ין וְחָמֵ֛שׁ עַל־כֶּ֥תֶף הַבַּ֖יִת מִשְּׂמֹאל֑וֹ וְאֶת־הַיָּ֗ם נָתַ֞ן מִכֶּ֨תֶף הַבַּ֧יִת הַיְמָנִ֛ית קֵ֖דְמָה מִמּ֥וּל נֶֽגֶב׃ ס 39
३९उसने पाँच हौदी भवन के दक्षिण की ओर, और पाँच उसकी उत्तर की ओर रख दीं; और हौज को भवन की दाहिनी ओर अर्थात् दक्षिण-पूर्व की ओर रख दिया।
וַיַּ֣עַשׂ חִיר֔וֹם אֶת־הַ֨כִּיֹּר֔וֹת וְאֶת־הַיָּעִ֖ים וְאֶת־הַמִּזְרָק֑וֹת וַיְכַ֣ל חִירָ֗ם לַֽעֲשׂוֹת֙ אֶת־כָּל־הַמְּלָאכָ֔ה אֲשֶׁ֥ר עָשָׂ֛ה לַמֶּ֥לֶךְ שְׁלֹמֹ֖ה בֵּ֥ית יְהוָֽה׃ 40
४०हूराम ने हौदियों, फावड़ियों, और कटोरों को भी बनाया। सो हूराम ने राजा सुलैमान के लिये यहोवा के भवन में जितना काम करना था, वह सब पूरा कर दिया,
עַמֻּדִ֣ים שְׁנַ֔יִם וְגֻלֹּ֧ת הַכֹּתָרֹ֛ת אֲשֶׁר־עַל־רֹ֥אשׁ הָֽעַמֻּדִ֖ים שְׁתָּ֑יִם וְהַשְּׂבָכ֣וֹת שְׁתַּ֔יִם לְכַסּ֗וֹת אֶת־שְׁתֵּי֙ גֻּלֹּ֣ת הַכֹּֽתָרֹ֔ת אֲשֶׁ֖ר עַל־רֹ֥אשׁ הָעַמּוּדִֽים׃ 41
४१अर्थात् दो खम्भे, और उन कँगनियों की गोलाइयाँ जो दोनों खम्भों के सिरे पर थीं, और दोनों खम्भों के सिरों पर की गोलाइयों के ढाँपने को दो-दो जालियाँ, और दोनों जालियों के लिए चार-चार सौ अनार,
וְאֶת־הָרִמֹּנִ֛ים אַרְבַּ֥ע מֵא֖וֹת לִשְׁתֵּ֣י הַשְּׂבָכ֑וֹת שְׁנֵֽי־טוּרִ֤ים רִמֹּנִים֙ לַשְּׂבָכָ֣ה הָֽאֶחָ֔ת לְכַסּ֗וֹת אֶת־שְׁתֵּי֙ גֻּלֹּ֣ת הַכֹּֽתָרֹ֔ת אֲשֶׁ֖ר עַל־פְּנֵ֥י הָעַמּוּדִֽים׃ 42
४२अर्थात् खम्भों के सिरों पर जो गोलाइयाँ थीं, उनके ढाँपने के लिये अर्थात् एक-एक जाली के लिये अनारों की दो-दो पंक्तियाँ;
וְאֶת־הַמְּכֹנ֖וֹת עָ֑שֶׂר וְאֶת־הַכִּיֹּרֹ֥ת עֲשָׂרָ֖ה עַל־הַמְּכֹנֽוֹת׃ 43
४३दस ठेले और इन पर की दस हौदियाँ,
וְאֶת־הַיָּ֖ם הָאֶחָ֑ד וְאֶת־הַבָּקָ֥ר שְׁנֵים־עָשָׂ֖ר תַּ֥חַת הַיָּֽם׃ 44
४४एक हौज और उसके नीचे के बारह बैल, और हँडे, फावड़ियां,
וְאֶת־הַסִּיר֨וֹת וְאֶת־הַיָּעִ֜ים וְאֶת־הַמִּזְרָק֗וֹת וְאֵת֙ כָּל־הַכֵּלִ֣ים האהל אֲשֶׁ֨ר עָשָׂ֥ה חִירָ֛ם לַמֶּ֥לֶךְ שְׁלֹמֹ֖ה בֵּ֣ית יְהוָ֑ה נְחֹ֖שֶׁת מְמֹרָֽט׃ 45
४५और कटोरे बने। ये सब पात्र जिन्हें हूराम ने यहोवा के भवन के निमित्त राजा सुलैमान के लिये बनाया, वह झलकाये हुए पीतल के बने।
בְּכִכַּ֤ר הַיַּרְדֵּן֙ יְצָקָ֣ם הַמֶּ֔לֶךְ בְּמַעֲבֵ֖ה הָאֲדָמָ֑ה בֵּ֥ין סֻכּ֖וֹת וּבֵ֥ין צָרְתָֽן׃ 46
४६राजा ने उनको यरदन की तराई में अर्थात् सुक्कोत और सारतान के मध्य की चिकनी मिट्टीवाली भूमि में ढाला।
וַיַּנַּ֤ח שְׁלֹמֹה֙ אֶת־כָּל־הַכֵּלִ֔ים מֵרֹ֖ב מְאֹ֣ד מְאֹ֑ד לֹ֥א נֶחְקַ֖ר מִשְׁקַ֥ל הַנְּחֹֽשֶׁת׃ 47
४७और सुलैमान ने बहुत अधिक होने के कारण सब पात्रों को बिना तौले छोड़ दिया, अतः पीतल के तौल का वज़न मालूम न हो सका।
וַיַּ֣עַשׂ שְׁלֹמֹ֔ה אֵ֚ת כָּל־הַכֵּלִ֔ים אֲשֶׁ֖ר בֵּ֣ית יְהוָ֑ה אֵ֚ת מִזְבַּ֣ח הַזָּהָ֔ב וְאֶת־הַשֻּׁלְחָ֗ן אֲשֶׁ֥ר עָלָ֛יו לֶ֥חֶם הַפָּנִ֖ים זָהָֽב׃ 48
४८यहोवा के भवन के जितने पात्र थे सुलैमान ने सब बनाए, अर्थात् सोने की वेदी, और सोने की वह मेज जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती थी,
וְאֶת־הַ֠מְּנֹרוֹת חָמֵ֨שׁ מִיָּמִ֜ין וְחָמֵ֧שׁ מִשְּׂמֹ֛אול לִפְנֵ֥י הַדְּבִ֖יר זָהָ֣ב סָג֑וּר וְהַפֶּ֧רַח וְהַנֵּרֹ֛ת וְהַמֶּלְקַחַ֖יִם זָהָֽב׃ 49
४९और शुद्ध सोने की दीवटें जो भीतरी कोठरी के आगे पाँच तो दक्षिण की ओर, और पाँच उत्तर की ओर रखी गईं; और सोने के फूल,
וְ֠הַסִּפּוֹת וְהַֽמְזַמְּר֧וֹת וְהַמִּזְרָק֛וֹת וְהַכַּפּ֥וֹת וְהַמַּחְתּ֖וֹת זָהָ֣ב סָג֑וּר וְהַפֹּת֡וֹת לְדַלְתוֹת֩ הַבַּ֨יִת הַפְּנִימִ֜י לְקֹ֣דֶשׁ הַקֳּדָשִׁ֗ים לְדַלְתֵ֥י הַבַּ֛יִת לַהֵיכָ֖ל זָהָֽב׃ פ 50
५०दीपक और चिमटे, और शुद्ध सोने के तसले, कैंचियाँ, कटोरे, धूपदान, और करछे और भीतरवाला भवन जो परमपवित्र स्थान कहलाता है, और भवन जो मन्दिर कहलाता है, दोनों के किवाड़ों के लिये सोने के कब्जे बने।
וַתִּשְׁלַם֙ כָּל־הַמְּלָאכָ֔ה אֲשֶׁ֥ר עָשָׂ֛ה הַמֶּ֥לֶךְ שְׁלֹמֹ֖ה בֵּ֣ית יְהוָ֑ה וַיָּבֵ֨א שְׁלֹמֹ֜ה אֶת־קָדְשֵׁ֣י ׀ דָּוִ֣ד אָבִ֗יו אֶת־הַכֶּ֤סֶף וְאֶת־הַזָּהָב֙ וְאֶת־הַכֵּלִ֔ים נָתַ֕ן בְּאֹצְר֖וֹת בֵּ֥ית יְהוָֽה׃ פ 51
५१इस प्रकार जो-जो काम राजा सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिये किया, वह सब पूरा हुआ। तब सुलैमान ने अपने पिता दाऊद के पवित्र किए हुए सोने चाँदी और पात्रों को भीतर पहुँचाकर यहोवा के भवन के भण्डारों में रख दिया।

< 1 מְלָכִים 7 >