< תהילים 119 >

אַשְׁרֵי תְמִֽימֵי־דָרֶךְ הַֽהֹלְכִים בְּתוֹרַת יְהוָֽה׃ 1
आलेफ मुबारक हैं वह जो कामिल रफ़्तार है, जो ख़ुदा की शरी'अत पर 'अमल करते हैं!
אַשְׁרֵי נֹצְרֵי עֵדֹתָיו בְּכָל־לֵב יִדְרְשֽׁוּהוּ׃ 2
मुबारक हैं वह जो उसकी शहादतों को मानते हैं, और पूरे दिल से उसके तालिब हैं!
אַף לֹֽא־פָעֲלוּ עַוְלָה בִּדְרָכָיו הָלָֽכוּ׃ 3
उन से नारास्ती नहीं होती, वह उसकी राहों पर चलते हैं।
אַתָּה צִוִּיתָה פִקֻּדֶיךָ לִשְׁמֹר מְאֹֽד׃ 4
तूने अपने क़वानीन दिए हैं, ताकि हम दिल लगा कर उनकी मानें।
אַחֲלַי יִכֹּנוּ דְרָכָי לִשְׁמֹר חֻקֶּֽיךָ׃ 5
काश कि तेरे क़ानून मानने के लिए, मेरी चाल चलन दुरुस्त हो जाएँ!
אָז לֹא־אֵבוֹשׁ בְּהַבִּיטִי אֶל־כָּל־מִצְוֺתֶֽיךָ׃ 6
जब मैं तेरे सब अहकाम का लिहाज़ रख्खूँगा, तो शर्मिन्दा न हूँगा।
אוֹדְךָ בְּיֹשֶׁר לֵבָב בְּלָמְדִי מִשְׁפְּטֵי צִדְקֶֽךָ׃ 7
जब मैं तेरी सदाक़त के अहकाम सीख लूँगा, तो सच्चे दिल से तेरा शुक्र अदा करूँगा।
אֶת־חֻקֶּיךָ אֶשְׁמֹר אַֽל־תַּעַזְבֵנִי עַד־מְאֹֽד׃ 8
मैं तेरे क़ानून मानूँगा; मुझे बिल्कुल छोड़ न दे! बेथ
בַּמֶּה יְזַכֶּה־נַּעַר אֶת־אָרְחוֹ לִשְׁמֹר כִּדְבָרֶֽךָ׃ 9
जवान अपने चाल चलन किस तरह पाक रख्खे? तेरे कलाम के मुताबिक़ उस पर निगाह रखने से।
בְּכָל־לִבִּי דְרַשְׁתִּיךָ אַל־תַּשְׁגֵּנִי מִמִּצְוֺתֶֽיךָ׃ 10
मैं पूरे दिल से तेरा तालिब हुआ हूँ: मुझे अपने फ़रमान से भटकने न दे।
בְּלִבִּי צָפַנְתִּי אִמְרָתֶךָ לְמַעַן לֹא אֶֽחֱטָא־לָֽךְ׃ 11
मैंने तेरे कलाम को अपने दिल में रख लिया है ताकि मैं तेरे ख़िलाफ़ गुनाह न करूँ।
בָּרוּךְ אַתָּה יְהוָה לַמְּדֵנִי חֻקֶּֽיךָ׃ 12
ऐ ख़ुदावन्द! तू मुबारक है; मुझे अपने क़ानून सिखा!
בִּשְׂפָתַי סִפַּרְתִּי כֹּל מִשְׁפְּטֵי־פִֽיךָ׃ 13
मैंने अपने लबों से, तेरे फ़रमूदा अहकाम को बयान किया।
בְּדֶרֶךְ עֵדְוֺתֶיךָ שַּׂשְׂתִּי כְּעַל כָּל־הֽוֹן׃ 14
मुझे तेरी शहादतों की राह से ऐसी ख़ुशी हुई, जैसी हर तरह की दौलत से होती है।
בְּפִקֻּדֶיךָ אָשִׂיחָה וְאַבִּיטָה אֹרְחֹתֶֽיךָ׃ 15
मैं तेरे क़वानीन पर ग़ौर करूँगा, और तेरी राहों का लिहाज़ रख्खूँगा।
בְּחֻקֹּתֶיךָ אֶֽשְׁתַּעֲשָׁע לֹא אֶשְׁכַּח דְּבָרֶֽךָ׃ 16
मैं तेरे क़ानून में मसरूर रहूँगा; मैं तेरे कलाम को न भूलूँगा। गिमेल
גְּמֹל עַֽל־עַבְדְּךָ אֶֽחְיֶה וְאֶשְׁמְרָה דְבָרֶֽךָ׃ 17
अपने बन्दे पर एहसान कर ताकि मैं जिन्दा रहूँ और तेरे कलाम को मानता रहूँ।
גַּל־עֵינַי וְאַבִּיטָה נִפְלָאוֹת מִתּוֹרָתֶֽךָ׃ 18
मेरी आँखे खोल दे, ताकि मैं तेरी शरीअत के 'अजायब देखूँ।
גֵּר אָנֹכִי בָאָרֶץ אַל־תַּסְתֵּר מִמֶּנִּי מִצְוֺתֶֽיךָ׃ 19
मैं ज़मीन पर मुसाफ़िर हूँ, अपने फ़रमान मुझ से छिपे न रख।
גָּרְסָה נַפְשִׁי לְתַאֲבָה אֶֽל־מִשְׁפָּטֶיךָ בְכָל־עֵֽת׃ 20
मेरा दिल तेरे अहकाम के इश्तियाक में, हर वक़्त तड़पता रहता है।
גָּעַרְתָּ זֵדִים אֲרוּרִים הַשֹּׁגִים מִמִּצְוֺתֶֽיךָ׃ 21
तूने उन मला'ऊन मग़रूरों को झिड़क दिया, जो तेरे फ़रमान से भटकते रहते हैं।
גַּל מֵֽעָלַי חֶרְפָּה וָבוּז כִּי עֵדֹתֶיךָ נָצָֽרְתִּי׃ 22
मलामत और हिक़ारत को मुझ से दूर कर दे, क्यूँकि मैंने तेरी शहादतें मानी हैं।
גַּם יָֽשְׁבוּ שָׂרִים בִּי נִדְבָּרוּ עַבְדְּךָ יָשִׂיחַ בְּחֻקֶּֽיךָ׃ 23
उमरा भी बैठकर मेरे ख़िलाफ़ बातें करते रहे, लेकिन तेरा बंदा तेरे क़ानून पर ध्यान लगाए रहा।
גַּֽם־עֵדֹתֶיךָ שַׁעֲשֻׁעָי אַנְשֵׁי עֲצָתִֽי׃ 24
तेरी शहादतें मुझे पसन्द, और मेरी मुशीर हैं। दाल्थ
דָּֽבְקָה לֶעָפָר נַפְשִׁי חַיֵּנִי כִּדְבָרֶֽךָ׃ 25
मेरी जान ख़ाक में मिल गई: तू अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।
דְּרָכַי סִפַּרְתִּי וַֽתַּעֲנֵנִי לַמְּדֵנִי חֻקֶּֽיךָ׃ 26
मैंने अपने चाल चलन का इज़हार किया और तूने मुझे जवाब दिया; मुझे अपने क़ानून की ता'लीम दे।
דֶּֽרֶךְ־פִּקּוּדֶיךָ הֲבִינֵנִי וְאָשִׂיחָה בְּנִפְלְאוֹתֶֽיךָ׃ 27
अपने क़वानीन की राह मुझे समझा दे, और मैं तेरे 'अजायब पर ध्यान करूँगा।
דָּלְפָה נַפְשִׁי מִתּוּגָה קַיְּמֵנִי כִּדְבָרֶֽךָ׃ 28
ग़म के मारे मेरी जान घुली जाती है; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ताक़त दे।
דֶּֽרֶךְ־שֶׁקֶר הָסֵר מִמֶּנִּי וְֽתוֹרָתְךָ חָנֵּֽנִי׃ 29
झूट की राह से मुझे दूर रख, और मुझे अपनी शरी'अत इनायत फ़रमा।
דֶּֽרֶךְ־אֱמוּנָה בָחָרְתִּי מִשְׁפָּטֶיךָ שִׁוִּֽיתִי׃ 30
मैंने वफ़ादारी की राह इख़्तियार की है, मैंने तेरे अहकाम अपने सामने रख्खे हैं।
דָּבַקְתִּי בְעֵֽדְוֺתֶיךָ יְהוָה אַל־תְּבִישֵֽׁנִי׃ 31
मैं तेरी शहादतों से लिपटा हुआ हूँ, ऐ ख़ुदावन्द! मुझे शर्मिन्दा न होने दे!
דֶּֽרֶךְ־מִצְוֺתֶיךָ אָרוּץ כִּי תַרְחִיב לִבִּֽי׃ 32
जब तू मेरा हौसला बढ़ाएगा, तो मैं तेरे फ़रमान की राह में दौड़ूँगा। हे
הוֹרֵנִי יְהוָה דֶּרֶךְ חֻקֶּיךָ וְאֶצְּרֶנָּה עֵֽקֶב׃ 33
ऐ ख़ुदावन्द, मुझे अपने क़ानून की राह बता, और मैं आख़िर तक उस पर चलूँगा।
הֲבִינֵנִי וְאֶצְּרָה תֽוֹרָתֶךָ וְאֶשְׁמְרֶנָּה בְכָל־לֵֽב׃ 34
मुझे समझ 'अता कर और मैं तेरी शरी'अत पर चलूँगा, बल्कि मैं पूरे दिल से उसको मानूँगा।
הַדְרִיכֵנִי בִּנְתִיב מִצְוֺתֶיךָ כִּי־בוֹ חָפָֽצְתִּי׃ 35
मुझे अपने फ़रमान की राह पर चला, क्यूँकि इसी में मेरी ख़ुशी है।
הַט־לִבִּי אֶל־עֵדְוֺתֶיךָ וְאַל אֶל־בָּֽצַע׃ 36
मेरे दिल की अपनी शहादतों की तरफ़ रुजू' दिला; न कि लालच की तरफ़।
הַעֲבֵר עֵינַי מֵרְאוֹת שָׁוְא בִּדְרָכֶךָ חַיֵּֽנִי׃ 37
मेरी आँखों को बेकारी पर नज़र करने से बाज़ रख, और मुझे अपनी राहों में ज़िन्दा कर।
הָקֵם לְעַבְדְּךָ אִמְרָתֶךָ אֲשֶׁר לְיִרְאָתֶֽךָ׃ 38
अपने बन्दे के लिए अपना वह क़ौल पूरा कर, जिस से तेरा खौफ़ पैदा होता है।
הַעֲבֵר חֶרְפָּתִי אֲשֶׁר יָגֹרְתִּי כִּי מִשְׁפָּטֶיךָ טוֹבִֽים׃ 39
मेरी मलामत को जिस से मैं डरता हूँ दूर कर दे; क्यूँकि तेरे अहकाम भले हैं।
הִנֵּה תָּאַבְתִּי לְפִקֻּדֶיךָ בְּצִדְקָתְךָ חַיֵּֽנִי׃ 40
देख, मैं तेरे क़वानीन का मुश्ताक़ रहा हूँ; मुझे अपनी सदाक़त से ज़िन्दा कर। वाव
וִֽיבֹאֻנִי חֲסָדֶךָ יְהוָה תְּשֽׁוּעָתְךָ כְּאִמְרָתֶֽךָ׃ 41
ऐ ख़ुदावन्द, तेरे क़ौल के मुताबिक़, तेरी शफ़क़त और तेरी नजात मुझे नसीब हों,
וְאֶֽעֱנֶה חֹרְפִי דָבָר כִּֽי־בָטַחְתִּי בִּדְבָרֶֽךָ׃ 42
तब मैं अपने मलामत करने वाले को जवाब दे सकूँगा, क्यूँकि मैं तेरे कलाम पर भरोसा रखता हूँ।
וְֽאַל־תַּצֵּל מִפִּי דְבַר־אֱמֶת עַד־מְאֹד כִּי לְמִשְׁפָּטֶךָ יִחָֽלְתִּי׃ 43
और हक़ बात को मेरे मुँह से हरगिज़ जुदा न होने दे, क्यूँकि मेरा भरोसा तेरे अहकाम पर है।
וְאֶשְׁמְרָה תוֹרָתְךָ תָמִיד לְעוֹלָם וָעֶֽד׃ 44
फिर मैं हमेशा से हमेशा तक, तेरी शरी'अत को मानता रहूँगा
וְאֶתְהַלְּכָה בָרְחָבָה כִּי פִקֻּדֶיךָ דָרָֽשְׁתִּי׃ 45
और मैं आज़ादी से चलूँगा, क्यूँकि मैं तेरे क़वानीन का तालिब रहा हूँ।
וַאֲדַבְּרָה בְעֵדֹתֶיךָ נֶגֶד מְלָכִים וְלֹא אֵבֽוֹשׁ׃ 46
मैं बादशाहों के सामने तेरी शहादतों का बयान करूँगा, और शर्मिन्दा न हूँगा।
וְאֶשְׁתַּֽעֲשַׁע בְּמִצְוֺתֶיךָ אֲשֶׁר אָהָֽבְתִּי׃ 47
तेरे फ़रमान मुझे अज़ीज़ हैं, मैं उनमें मसरूर रहूँगा।
וְאֶשָּֽׂא־כַפַּי אֶֽל־מִצְוֺתֶיךָ אֲשֶׁר אָהָבְתִּי וְאָשִׂיחָה בְחֻקֶּֽיךָ׃ 48
मैं अपने हाथ तेरे फ़रमान की तरफ़ जो मुझे 'अज़ीज़ है उठाऊँगा, और तेरे क़ानून पर ध्यान करूँगा। ज़ैन
זְכֹר־דָּבָר לְעַבְדֶּךָ עַל אֲשֶׁר יִֽחַלְתָּֽנִי׃ 49
जो कलाम तूने अपने बन्दे से किया उसे याद कर, क्यूँकि तूने मुझे उम्मीद दिलाई है।
זֹאת נֶחָמָתִי בְעָנְיִי כִּי אִמְרָתְךָ חִיָּֽתְנִי׃ 50
मेरी मुसीबत में यही मेरी तसल्ली है, कि तेरे कलाम ने मुझे ज़िन्दा किया
זֵדִים הֱלִיצֻנִי עַד־מְאֹד מִתּֽוֹרָתְךָ לֹא נָטִֽיתִי׃ 51
मग़रूरों ने मुझे बहुत ठठ्ठों में उड़ाया, तोभी मैंने तेरी शरी'अत से किनारा नहीं किया
זָכַרְתִּי מִשְׁפָּטֶיךָ מֵעוֹלָם ׀ יְהוָה וָֽאֶתְנֶחָֽם׃ 52
ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरे क़दीम अहकाम को याद करता, और इत्मीनान पाता रहा हूँ।
זַלְעָפָה אֲחָזַתְנִי מֵרְשָׁעִים עֹזְבֵי תּוֹרָתֶֽךָ׃ 53
उन शरीरों की वजह से जो तेरी शरी'अत को छोड़ देते हैं, मैं सख़्त ग़ुस्से में आ गया हूँ।
זְמִרוֹת הָֽיוּ־לִי חֻקֶּיךָ בְּבֵית מְגוּרָֽי׃ 54
मेरे मुसाफ़िर ख़ाने में, तेरे क़ानून मेरी हम्द रहे हैं।
זָכַרְתִּי בַלַּיְלָה שִׁמְךָ יְהוָה וָֽאֶשְׁמְרָה תּוֹרָתֶֽךָ׃ 55
ऐ ख़ुदावन्द, रात को मैंने तेरा नाम याद किया है, और तेरी शरी'अत पर 'अमल किया है।
זֹאת הָֽיְתָה־לִּי כִּי פִקֻּדֶיךָ נָצָֽרְתִּי׃ 56
यह मेरे लिए इसलिए हुआ, कि मैंने तेरे क़वानीन को माना। हेथ
חֶלְקִי יְהוָה אָמַרְתִּי לִשְׁמֹר דְּבָרֶֽיךָ׃ 57
ख़ुदावन्द मेरा बख़रा है; मैंने कहा है मैं तेरी बातें मानूँगा।
חִלִּיתִי פָנֶיךָ בְכָל־לֵב חָנֵּנִי כְּאִמְרָתֶֽךָ׃ 58
मैं पूरे दिल से तेरे करम का तलब गार हुआ; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझ पर रहम कर!
חִשַּׁבְתִּי דְרָכָי וָאָשִׁיבָה רַגְלַי אֶל־עֵדֹתֶֽיךָ׃ 59
मैंने अपनी राहों पर ग़ौर किया, और तेरी शहादतों की तरफ़ अपने कदम मोड़े।
חַשְׁתִּי וְלֹא הִתְמַהְמָהְתִּי לִשְׁמֹר מִצְוֺתֶֽיךָ׃ 60
मैंने तेरे फ़रमान मानने में, जल्दी की और देर न लगाई।
חֶבְלֵי רְשָׁעִים עִוְּדֻנִי תּֽוֹרָתְךָ לֹא שָׁכָֽחְתִּי׃ 61
शरीरों की रस्सियों ने मुझे जकड़ लिया, लेकिन मैं तेरी शरी'अत को न भूला।
חֲצֽוֹת־לַיְלָה אָקוּם לְהוֹדוֹת לָךְ עַל מִשְׁפְּטֵי צִדְקֶֽךָ׃ 62
तेरी सदाकत के अहकाम के लिए, मैं आधी रात को तेरा शुक्र करने को उठूँगा।
חָבֵר אָנִי לְכָל־אֲשֶׁר יְרֵאוּךָ וּלְשֹׁמְרֵי פִּקּוּדֶֽיךָ׃ 63
मैं उन सबका साथी हूँ जो तुझ से डरते हैं, और उनका जो तेरे क़वानीन को मानते हैं।
חַסְדְּךָ יְהוָה מָלְאָה הָאָרֶץ חֻקֶּיךָ לַמְּדֵֽנִי׃ 64
ऐ ख़ुदावन्द, ज़मीन तेरी शफ़क़त से मा'मूर है; मुझे अपने क़ानून सिखा! टेथ
טוֹב עָשִׂיתָ עִֽם־עַבְדְּךָ יְהוָה כִּדְבָרֶֽךָ׃ 65
ऐ ख़ुदावन्द! तूने अपने कलाम के मुताबिक़, अपने बन्दे के साथ भलाई की है।
טוּב טַעַם וָדַעַת לַמְּדֵנִי כִּי בְמִצְוֺתֶיךָ הֶאֱמָֽנְתִּי׃ 66
मुझे सही फ़र्क़ और 'अक़्ल सिखा, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान पर ईमान लाया हूँ।
טֶרֶם אֶעֱנֶה אֲנִי שֹׁגֵג וְעַתָּה אִמְרָתְךָ שָׁמָֽרְתִּי׃ 67
मैं मुसीबत उठाने से पहले गुमराह था; लेकिन अब तेरे कलाम को मानता हूँ।
טוֹב־אַתָּה וּמֵטִיב לַמְּדֵנִי חֻקֶּֽיךָ׃ 68
तू भला है और भलाई करता है; मुझे अपने क़ानून सिखा।
טָפְלוּ עָלַי שֶׁקֶר זֵדִים אֲנִי בְּכָל־לֵב ׀ אֱצֹּר פִּקּוּדֶֽיךָ׃ 69
मग़रूरों ने मुझ पर बहुतान बाँधा है; मैं पूरे दिल से तेरे क़वानीन को मानूँगा।
טָפַשׁ כַּחֵלֶב לִבָּם אֲנִי תּוֹרָתְךָ שִֽׁעֲשָֽׁעְתִּי׃ 70
उनके दिल चिकनाई से फ़र्बा हो गए, लेकिन मैं तेरी शरी'अत में मसरूर हूँ।
טֽוֹב־לִי כִֽי־עֻנֵּיתִי לְמַעַן אֶלְמַד חֻקֶּֽיךָ׃ 71
अच्छा हुआ कि मैंने मुसीबत उठाई, ताकि तेरे क़ानून सीख लूँ।
טֽוֹב־לִי תֽוֹרַת־פִּיךָ מֵאַלְפֵי זָהָב וָכָֽסֶף׃ 72
तेरे मुँह की शरी'अत मेरे लिए, सोने चाँदी के हज़ारों सिक्कों से बेहतर है। योध
יָדֶיךָ עָשׂוּנִי וַֽיְכוֹנְנוּנִי הֲבִינֵנִי וְאֶלְמְדָה מִצְוֺתֶֽיךָ׃ 73
तेरे हाथों ने मुझे बनाया और तरतीब दी; मुझे समझ 'अता कर ताकि तेरे फ़रमान सीख लें।
יְרֵאֶיךָ יִרְאוּנִי וְיִשְׂמָחוּ כִּי לִדְבָרְךָ יִחָֽלְתִּי׃ 74
तुझ से डरने वाले मुझे देख कर इसलिए कि मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है।
יָדַעְתִּי יְהוָה כִּי־צֶדֶק מִשְׁפָּטֶיךָ וֶאֱמוּנָה עִנִּיתָֽנִי׃ 75
ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे अहकाम की सदाक़त को जानता हूँ, और यह कि वफ़ादारी ही से तूने मुझे दुख; में डाला।
יְהִי־נָא חַסְדְּךָ לְנַחֲמֵנִי כְּאִמְרָתְךָ לְעַבְדֶּֽךָ׃ 76
उस कलाम के मुताबिक़ जो तूनेअपने बन्दे से किया, तेरी शफ़क़त मेरी तसल्ली का ज़रिया' हो।
יְבֹאוּנִי רַחֲמֶיךָ וְאֶֽחְיֶה כִּי־תֽוֹרָתְךָ שַֽׁעֲשֻׁעָֽי׃ 77
तेरी रहमत मुझे नसीब हो ताकि मैं ज़िन्दा रहूँ। क्यूँकि तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी है।
יֵבֹשׁוּ זֵדִים כִּי־שֶׁקֶר עִוְּתוּנִי אֲנִי אָשִׂיחַ בְּפִקּוּדֶֽיךָ׃ 78
मग़रूर शर्मिन्दा हों, क्यूँकि उन्होंने नाहक़ मुझे गिराया, लेकिन मैं तेरे क़वानीन पर ध्यान करूँगा।
יָשׁוּבוּ לִי יְרֵאֶיךָ וידעו וְיֹדְעֵי עֵדֹתֶֽיךָ׃ 79
तुझ से डरने वाले मेरी तरफ़ रुजू हों, तो वह तेरी शहादतों को जान लेंगे।
יְהִֽי־לִבִּי תָמִים בְּחֻקֶּיךָ לְמַעַן לֹא אֵבֽוֹשׁ׃ 80
मेरा दिल तेरे क़ानून मानने में कामिल रहे, ताकि मैं शर्मिन्दगी न उठाऊँ। क़ाफ
כָּלְתָה לִתְשׁוּעָתְךָ נַפְשִׁי לִדְבָרְךָ יִחָֽלְתִּי׃ 81
मेरी जान तेरी नजात के लिए बेताब है, लेकिन मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है।
כָּלוּ עֵינַי לְאִמְרָתֶךָ לֵאמֹר מָתַי תְּֽנַחֲמֵֽנִי׃ 82
तेरे कलाम के इन्तिज़ार में मेरी आँखें रह गई, मैं यही कहता रहा कि तू मुझे कब तसल्ली देगा?
כִּֽי־הָיִיתִי כְּנֹאד בְּקִיטוֹר חֻקֶּיךָ לֹא שָׁכָֽחְתִּי׃ 83
मैं उस मश्कीज़े की तरह हो गया जो धुएँ में हो, तोभी मैं तेरे क़ानून को नहीं भूलता।
כַּמָּה יְמֵֽי־עַבְדֶּךָ מָתַי תַּעֲשֶׂה בְרֹדְפַי מִשְׁפָּֽט׃ 84
तेरे बन्दे के दिन ही कितने हैं? तू मेरे सताने वालों पर कब फ़तवा देगा?
כָּֽרוּ־לִי זֵדִים שִׁיחוֹת אֲשֶׁר לֹא כְתוֹרָתֶֽךָ׃ 85
मग़रूरों ने जो तेरी शरी'अत के पैरौ नहीं, मेरे लिए गढ़े खोदे हैं।
כָּל־מִצְוֺתֶיךָ אֱמוּנָה שֶׁקֶר רְדָפוּנִי עָזְרֵֽנִי׃ 86
तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं: वह नाहक़ मुझे सताते हैं; तू मेरी मदद कर!
כִּמְעַט כִּלּוּנִי בָאָרֶץ וַאֲנִי לֹא־עָזַבְתִּי פִקֻּודֶֽיךָ׃ 87
उन्होंने मुझे ज़मीन पर से फ़नाकर ही डाला था, लेकिन मैंने तेरे कवानीन को न छोड़ा।
כְּחַסְדְּךָ חַיֵּנִי וְאֶשְׁמְרָה עֵדוּת פִּֽיךָ׃ 88
तू मुझे अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ ज़िन्दा कर, तो मैं तेरे मुँह की शहादत को मानूँगा। लामेध
לְעוֹלָם יְהוָה דְּבָרְךָ נִצָּב בַּשָּׁמָֽיִם׃ 89
ऐ ख़ुदावन्द! तेरा कलाम, आसमान पर हमेशा तक क़ाईम है।
לְדֹר וָדֹר אֱמֽוּנָתֶךָ כּוֹנַנְתָּ אֶרֶץ וַֽתַּעֲמֹֽד׃ 90
तेरी वफ़ादारी नसल दर नसल है; तूने ज़मीन को क़याम बख़्शा और वह क़ाईम है।
לְֽמִשְׁפָּטֶיךָ עָמְדוּ הַיּוֹם כִּי הַכֹּל עֲבָדֶֽיךָ׃ 91
वह आज तेरे अहकाम के मुताबिक़ क़ाईम हैं क्यूँकि सब चीजें तेरी ख़िदमत गुज़ार हैं।
לוּלֵי תוֹרָתְךָ שַׁעֲשֻׁעָי אָז אָבַדְתִּי בְעָנְיִֽי׃ 92
अगर तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी न होती, तो मैं अपनी मुसीबत में हलाक हो जाता।
לְעוֹלָם לֹא־אֶשְׁכַּח פִּקּוּדֶיךָ כִּי בָם חִיִּיתָֽנִי׃ 93
मैं तेरे क़वानीन को कभी न भूलूँगा, क्यूँकि तूने उन्ही के वसीले से मुझे ज़िन्दा किया है।
לְֽךָ־אֲנִי הוֹשִׁיעֵנִי כִּי פִקּוּדֶיךָ דָרָֽשְׁתִּי׃ 94
मैं तेरा ही हूँ मुझे बचा ले, क्यूँकि मैं तेरे क़वानीन का तालिब रहा हूँ।
לִי קִוּוּ רְשָׁעִים לְאַבְּדֵנִי עֵדֹתֶיךָ אֶתְבּוֹנָֽן׃ 95
शरीर मुझे हलाक करने को घात में लगे रहे, लेकिन मैं तेरी शहादतों पर ग़ौर करूँगा।
לְֽכָל תִּכְלָה רָאִיתִי קֵץ רְחָבָה מִצְוָתְךָ מְאֹֽד׃ 96
मैंने देखा कि हर कमाल की इन्तिहा है, लेकिन तेरा हुक्म बहुत वसी'अ है। मीम
מָֽה־אָהַבְתִּי תוֹרָתֶךָ כָּל־הַיּוֹם הִיא שִׂיחָתִֽי׃ 97
आह! मैं तेरी शरी'अत से कैसी मुहब्बत रखता हूँ, मुझे दिन भर उसी का ध्यान रहता है।
מֵאֹיְבַי תְּחַכְּמֵנִי מִצְוֺתֶךָ כִּי לְעוֹלָם הִיא־לִֽי׃ 98
तेरे फ़रमान मुझे मेरे दुश्मनों से ज़्यादा 'अक़्लमंद बनाते हैं, क्यूँकि वह हमेशा मेरे साथ हैं।
מִכָּל־מְלַמְּדַי הִשְׂכַּלְתִּי כִּי עֵדְוֺתֶיךָ שִׂיחָה לִֽֿי׃ 99
मैं अपने सब उस्तादों से 'अक़्लमंद हैं, क्यूँकि तेरी शहादतों पर मेरा ध्यान रहता है।
מִזְּקֵנִים אֶתְבּוֹנָן כִּי פִקּוּדֶיךָ נָצָֽרְתִּי׃ 100
मैं उम्र रसीदा लोगों से ज़्यादा समझ रखता हूँ क्यूँकि मैंने तेरे क़वानीन को माना है।
מִכָּל־אֹרַח רָע כָּלִאתִי רַגְלָי לְמַעַן אֶשְׁמֹר דְּבָרֶֽךָ׃ 101
मैंने हर बुरी राह से अपने क़दम रोक रख्खें हैं, ताकि तेरी शरी'अत पर 'अमल करूँ।
מִמִּשְׁפָּטֶיךָ לֹא־סָרְתִּי כִּֽי־אַתָּה הוֹרֵתָֽנִי׃ 102
मैंने तेरे अहकाम से किनारा नहीं किया, क्यूँकि तूने मुझे ता'लीम दी है।
מַה־נִּמְלְצוּ לְחִכִּי אִמְרָתֶךָ מִדְּבַשׁ לְפִֽי׃ 103
तेरी बातें मेरे लिए कैसी शीरीन हैं, वह मेरे मुँह को शहद से भी मीठी मा'लूम होती हैं!
מִפִּקּוּדֶיךָ אֶתְבּוֹנָן עַל־כֵּן שָׂנֵאתִי ׀ כָּל־אֹרַח שָֽׁקֶר׃ 104
तेरे क़वानीन से मुझे समझ हासिल होता है, इसलिए मुझे हर झूटी राह से नफ़रत है। नून
נֵר־לְרַגְלִי דְבָרֶךָ וְאוֹר לִנְתִיבָתִֽי׃ 105
तेरा कलाम मेरे क़दमों के लिए चराग़, और मेरी राह के लिए रोशनी है।
נִשְׁבַּעְתִּי וָאֲקַיֵּמָה לִשְׁמֹר מִשְׁפְּטֵי צִדְקֶֽךָ׃ 106
मैंने क़सम खाई है और उस पर क़ाईम हूँ, कि तेरी सदाक़त के अहकाम पर'अमल करूँगा।
נַעֲנֵיתִי עַד־מְאֹד יְהוָה חַיֵּנִי כִדְבָרֶֽךָ׃ 107
मैं बड़ी मुसीबत में हूँ। ऐ ख़ुदावन्द! अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।
נִדְבוֹת פִּי רְצֵה־נָא יְהוָה וּֽמִשְׁפָּטֶיךָ לַמְּדֵֽנִי׃ 108
ऐ ख़ुदावन्द, मेरे मुँह से रज़ा की क़ुर्बानियाँ क़ुबूल फ़रमा और मुझे अपने अहकाम की ता'लीम दे।
נַפְשִׁי בְכַפִּי תָמִיד וְתֽוֹרָתְךָ לֹא שָׁכָֽחְתִּי׃ 109
मेरी जान हमेशा हथेली पर है, तोभी मैं तेरी शरी'अत को नहीं भूलता।
נָתְנוּ רְשָׁעִים פַּח לִי וּמִפִּקּוּדֶיךָ לֹא תָעִֽיתִי׃ 110
शरीरों ने मेरे लिए फंदा लगाया है, तोभी मैं तेरे क़वानीन से नहीं भटका।
נָחַלְתִּי עֵדְוֺתֶיךָ לְעוֹלָם כִּֽי־שְׂשׂוֹן לִבִּי הֵֽמָּה׃ 111
मैंने तेरी शहादतों को अपनी हमेशा की मीरास बनाया है, क्यूँकि उनसे मेरे दिल को ख़ुशी होती है।
נָטִיתִי לִבִּי לַעֲשׂוֹת חֻקֶּיךָ לְעוֹלָם עֵֽקֶב׃ 112
मैंने हमेशा के लिए आख़िर तक, तेरे क़ानून मानने पर दिल लगाया है। सामेख
סֵעֲפִים שָׂנֵאתִי וְֽתוֹרָתְךָ אָהָֽבְתִּי׃ 113
मुझे दो दिलों से नफ़रत है, लेकिन तेरी शरी'अत से मुहब्बत रखता हूँ।
סִתְרִי וּמָגִנִּי אָתָּה לִדְבָרְךָ יִחָֽלְתִּי׃ 114
तू मेरे छिपने की जगह और मेरी ढाल है; मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है।
סֽוּרוּ־מִמֶּנִּי מְרֵעִים וְאֶצְּרָה מִצְוֺת אֱלֹהָֽי׃ 115
ऐ बदकिरदारो! मुझ से दूर हो जाओ, ताकि मैं अपने ख़ुदा के फ़रमान पर'अमल करूँ!
סָמְכֵנִי כְאִמְרָתְךָ וְאֶֽחְיֶה וְאַל־תְּבִישֵׁנִי מִשִּׂבְרִֽי׃ 116
तू अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे संभाल ताकि ज़िन्दा रहूँ, और मुझे अपने भरोसा से शर्मिन्दगी न उठाने दे।
סְעָדֵנִי וְאִוָּשֵׁעָה וְאֶשְׁעָה בְחֻקֶּיךָ תָמִֽיד׃ 117
मुझे संभाल और मैं सलामत रहूँगा, और हमेशा तेरे क़ानून का लिहाज़ रखूँगा।
סָלִיתָ כָּל־שׁוֹגִים מֵחֻקֶּיךָ כִּי־שֶׁקֶר תַּרְמִיתָֽם׃ 118
तूने उन सबको हक़ीर जाना है, जो तेरे क़ानून से भटक जाते हैं; क्यूँकि उनकी दग़ाबाज़ी 'बेकार है।
סִגִים הִשְׁבַּתָּ כָל־רִשְׁעֵי־אָרֶץ לָכֵן אָהַבְתִּי עֵדֹתֶֽיךָ׃ 119
तू ज़मीन के सब शरीरों को मैल की तरह छाँट देता है; इसलिए में तेरी शहादतों को 'अज़ीज़ रखता हूँ।
סָמַר מִפַּחְדְּךָ בְשָׂרִי וּֽמִמִּשְׁפָּטֶיךָ יָרֵֽאתִי׃ 120
मेरा जिस्म तेरे ख़ौफ़ से काँपता है, और मैं तेरे अहकाम से डरता हूँ। ऐन
עָשִׂיתִי מִשְׁפָּט וָצֶדֶק בַּל־תַּנִּיחֵנִי לְעֹֽשְׁקָֽי׃ 121
मैंने 'अद्ल और इन्साफ़ किया है; मुझे उनके हवाले न कर जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं।
עֲרֹב עַבְדְּךָ לְטוֹב אַֽל־יַעַשְׁקֻנִי זֵדִֽים׃ 122
भलाई के लिए अपने बन्दे का ज़ामिन हो, मग़रूर मुझ पर ज़ुल्म न करें।
עֵינַי כָּלוּ לִֽישׁוּעָתֶךָ וּלְאִמְרַת צִדְקֶֽךָ׃ 123
तेरी नजात और तेरी सदाक़त के कलाम के इन्तिज़ार में मेरी आँखें रह गई।
עֲשֵׂה עִם־עַבְדְּךָ כְחַסְדֶּךָ וְחֻקֶּיךָ לַמְּדֵֽנִי׃ 124
अपने बन्दे से अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ सुलूक कर, और मुझे अपने क़ानून सिखा।
עַבְדְּךָ־אָנִי הֲבִינֵנִי וְאֵדְעָה עֵדֹתֶֽיךָ׃ 125
मैं तेरा बन्दा हूँ! मुझ को समझ 'अता कर, ताकि तेरी शहादतों को समझ लूँ।
עֵת לַעֲשׂוֹת לַיהוָה הֵפֵרוּ תּוֹרָתֶֽךָ׃ 126
अब वक़्त आ गया, कि ख़ुदावन्द काम करे, क्यूँकि उन्होंने तेरी शरी'अत को बेकार कर दिया है।
עַל־כֵּן אָהַבְתִּי מִצְוֺתֶיךָ מִזָּהָב וּמִפָּֽז׃ 127
इसलिए मैं तेरे फ़रमान को सोने से बल्कि कुन्दन से भी ज़्यादा अज़ीज़ रखता हूँ।
עַל־כֵּן ׀ כָּל־פִּקּוּדֵי כֹל יִשָּׁרְתִּי כָּל־אֹרַח שֶׁקֶר שָׂנֵֽאתִי׃ 128
इसलिए मैं तेरे सब कवानीन को बरहक़ जानता हूँ, और हर झूटी राह से मुझे नफ़रत है। पे
פְּלָאוֹת עֵדְוֺתֶיךָ עַל־כֵּן נְצָרָתַם נַפְשִֽׁי׃ 129
तेरी शहादतें 'अजीब हैं, इसलिए मेरा दिल उनको मानता है।
פֵּתַח דְּבָרֶיךָ יָאִיר מֵבִין פְּתָיִֽים׃ 130
तेरी बातों की तशरीह नूर बख़्शती है, वह सादा दिलों को 'अक़्लमन्द बनाती है।
פִּֽי־פָעַרְתִּי וָאֶשְׁאָפָה כִּי לְמִצְוֺתֶיךָ יָאָֽבְתִּי׃ 131
मैं खू़ब मुँह खोलकर हाँपता रहा, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान का मुश्ताक़ था।
פְּנֵה־אֵלַי וְחָנֵּנִי כְּמִשְׁפָּט לְאֹהֲבֵי שְׁמֶֽךָ׃ 132
मेरी तरफ़ तवज्जुह कर और मुझ पर रहम फ़रमा, जैसा तेरे नाम से मुहब्बत रखने वालों का हक़ है।
פְּעָמַי הָכֵן בְּאִמְרָתֶךָ וְֽאַל־תַּשְׁלֶט־בִּי כָל־אָֽוֶן׃ 133
अपने कलाम में मेरी रहनुमाई कर, कोई बदकारी मुझ पर तसल्लुत न पाए।
פְּדֵנִי מֵעֹשֶׁק אָדָם וְאֶשְׁמְרָה פִּקּוּדֶֽיךָ׃ 134
इंसान के ज़ुल्म से मुझे छुड़ा ले, तो तेरे क़वानीन पर 'अमल करूँगा।
פָּנֶיךָ הָאֵר בְּעַבְדֶּךָ וְלַמְּדֵנִי אֶת־חֻקֶּֽיךָ׃ 135
अपना चेहरा अपने बन्दे पर जलवागर फ़रमा, और मुझे अपने क़ानून सिखा।
פַּלְגֵי־מַיִם יָרְדוּ עֵינָי עַל לֹא־שָׁמְרוּ תוֹרָתֶֽךָ׃ 136
मेरी आँखों से पानी के चश्मे जारी हैं, इसलिए कि लोग तेरी शरी'अत को नहीं मानते। सांदे
צַדִּיק אַתָּה יְהוָה וְיָשָׁר מִשְׁפָּטֶֽיךָ׃ 137
ऐ ख़ुदावन्द तू सादिक़ है, और तेरे अहकाम बरहक़ हैं।
צִוִּיתָ צֶדֶק עֵדֹתֶיךָ וֶֽאֱמוּנָה מְאֹֽד׃ 138
तूने सदाक़त और कमाल वफ़ादारी से, अपनी शहादतों को ज़ाहिर फ़रमाया है।
צִמְּתַתְנִי קִנְאָתִי כִּֽי־שָׁכְחוּ דְבָרֶיךָ צָרָֽי׃ 139
मेरी गै़रत मुझे खा गई, क्यूँकि मेरे मुख़ालिफ़ तेरी बातें भूल गए।
צְרוּפָה אִמְרָתְךָ מְאֹד וְֽעַבְדְּךָ אֲהֵבָֽהּ׃ 140
तेरा कलाम बिल्कुल ख़ालिस है, इसलिए तेरे बन्दे को उससे मुहब्बत है।
צָעִיר אָנֹכִי וְנִבְזֶה פִּקֻּדֶיךָ לֹא שָׁכָֽחְתִּי׃ 141
मैं अदना और हक़ीर हूँ, तौ भी मैं तेरे क़वानीन को नहीं भूलता।
צִדְקָתְךָ צֶדֶק לְעוֹלָם וְֽתוֹרָתְךָ אֱמֶֽת׃ 142
तेरी सदाक़त हमेशा की सदाक़त है, और तेरी शरी'अत बरहक़ है।
צַר־וּמָצוֹק מְצָאוּנִי מִצְוֺתֶיךָ שַׁעֲשֻׁעָֽי׃ 143
मैं तकलीफ़ और ऐज़ाब में मुब्तिला, हूँ तोभी तेरे फ़रमान मेरी ख़ुशनूदी हैं।
צֶדֶק עֵדְוֺתֶיךָ לְעוֹלָם הֲבִינֵנִי וְאֶחְיֶֽה׃ 144
तेरी शहादतें हमेशा रास्त हैं; मुझे समझ 'अता कर तो मैं ज़िन्दा रहूँगा। क़ाफ
קָרָאתִי בְכָל־לֵב עֲנֵנִי יְהוָה חֻקֶּיךָ אֶצֹּֽרָה׃ 145
मैं पूरे दिल से दुआ करता हूँ, ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जवाब दे। मैं तेरे क़ानून पर 'अमल करूँगा।
קְרָאתִיךָ הוֹשִׁיעֵנִי וְאֶשְׁמְרָה עֵדֹתֶֽיךָ׃ 146
मैंने तुझ से दुआ की है, मुझे बचा ले, और मैं तेरी शहादतों को मानूँगा।
קִדַּמְתִּי בַנֶּשֶׁף וָאֲשַׁוֵּעָה לדבריך לִדְבָרְךָ יִחָֽלְתִּי׃ 147
मैंने पौ फटने से पहले फ़रियाद की; मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है।
קִדְּמוּ עֵינַי אַשְׁמֻרוֹת לָשִׂיחַ בְּאִמְרָתֶֽךָ׃ 148
मेरी आँखें रात के हर पहर से पहले खुल गई, ताकि तेरे कलाम पर ध्यान करूँ।
קוֹלִי שִׁמְעָה כְחַסְדֶּךָ יְהוָה כְּֽמִשְׁפָּטֶךָ חַיֵּֽנִי׃ 149
अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मेरी फ़रियाद सुन: ऐ ख़ुदावन्द! अपने अहकाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।
קָרְבוּ רֹדְפֵי זִמָּה מִתּוֹרָתְךָ רָחָֽקוּ׃ 150
जो शरारत के दर पै रहते हैं, वह नज़दीक आ गए; वह तेरी शरी'अत से दूर हैं।
קָרוֹב אַתָּה יְהוָה וְֽכָל־מִצְוֺתֶיךָ אֱמֶֽת׃ 151
ऐ ख़ुदावन्द, तू नज़दीक है, और तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं।
קֶדֶם יָדַעְתִּי מֵעֵדֹתֶיךָ כִּי לְעוֹלָם יְסַדְתָּֽם׃ 152
तेरी शहादतों से मुझे क़दीम से मा'लूम हुआ, कि तूने उनको हमेशा के लिए क़ाईम किया है। रेश
רְאֵֽה־עָנְיִי וְחַלְּצֵנִי כִּי־תֽוֹרָתְךָ לֹא שָׁכָֽחְתִּי׃ 153
मेरी मुसीबत का ख़याल करऔर मुझे छुड़ा, क्यूँकि मैं तेरी शरी'अत को नहीं भूलता।
רִיבָה רִיבִי וּגְאָלֵנִי לְאִמְרָתְךָ חַיֵּֽנִי׃ 154
मेरी वकालत कर और मेरा फ़िदिया दे: अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।
רָחוֹק מֵרְשָׁעִים יְשׁוּעָה כִּֽי־חֻקֶּיךָ לֹא דָרָֽשׁוּ׃ 155
नजात शरीरों से दूर है, क्यूँकि वह तेरे क़ानून के तालिब नहीं हैं।
רַחֲמֶיךָ רַבִּים ׀ יְהוָה כְּֽמִשְׁפָּטֶיךָ חַיֵּֽנִי׃ 156
ऐ ख़ुदावन्द! तेरी रहमत बड़ी है; अपने अहकाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।
רַבִּים רֹדְפַי וְצָרָי מֵעֵדְוֺתֶיךָ לֹא נָטִֽיתִי׃ 157
मेरे सताने वाले और मुखालिफ़ बहुत हैं, तोभी मैंने तेरी शहादतों से किनारा न किया।
רָאִיתִי בֹגְדִים וָֽאֶתְקוֹטָטָה אֲשֶׁר אִמְרָתְךָ לֹא שָׁמָֽרוּ׃ 158
मैं दग़ाबाज़ों को देख कर मलूल हुआ, क्यूँकि वह तेरे कलाम को नहीं मानते।
רְאֵה כִּי־פִקּוּדֶיךָ אָהָבְתִּי יְהוָה כְּֽחַסְדְּךָ חַיֵּֽנִי׃ 159
ख़याल फ़रमा कि मुझे तेरे क़वानीन से कैसी मुहब्बत है! ऐ ख़ुदावन्द! अपनी शफ़क़त के मुताबिक मुझे ज़िन्दा कर।
רֹאשׁ־דְּבָרְךָ אֱמֶת וּלְעוֹלָם כָּל־מִשְׁפַּט צִדְקֶֽךָ׃ 160
तेरे कलाम का ख़ुलासा सच्चाई है, तेरी सदाक़त के कुल अहकाम हमेशा के हैं। शीन
שָׂרִים רְדָפוּנִי חִנָּם ומדבריך וּמִדְּבָרְךָ פָּחַד לִבִּֽי׃ 161
उमरा ने मुझे बे वजह सताया है, लेकिन मेरे दिल में तेरी बातों का ख़ौफ़ है।
שָׂשׂ אָנֹכִֽי עַל־אִמְרָתֶךָ כְּמוֹצֵא שָׁלָל רָֽב׃ 162
मैं बड़ी लूट पाने वाले की तरह, तेरे कलाम से ख़ुश हूँ।
שֶׁקֶר שָׂנֵאתִי וַאֲתַעֵבָה תּוֹרָתְךָ אָהָֽבְתִּי׃ 163
मुझे झूट से नफ़रत और कराहियत है, लेकिन तेरी शरी'अत से मुहब्बत है।
שֶׁבַע בַּיּוֹם הִלַּלְתִּיךָ עַל מִשְׁפְּטֵי צִדְקֶֽךָ׃ 164
मैं तेरी सदाक़त के अहकाम की वजह से, दिन में सात बार तेरी सिताइश करता हूँ।
שָׁלוֹם רָב לְאֹהֲבֵי תוֹרָתֶךָ וְאֵֽין־לָמוֹ מִכְשֽׁוֹל׃ 165
तेरी शरी'अत से मुहब्बत रखने वाले मुत्मइन हैं; उनके लिए ठोकर खाने का कोई मौक़ा' नहीं।
שִׂבַּרְתִּי לִֽישׁוּעָתְךָ יְהוָה וּֽמִצְוֺתֶיךָ עָשִֽׂיתִי׃ 166
ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरी नजात का उम्मीदवार रहा हूँ और तेरे फ़रमान बजा लाया हूँ।
שָֽׁמְרָה נַפְשִׁי עֵדֹתֶיךָ וָאֹהֲבֵם מְאֹֽד׃ 167
मेरी जान ने तेरी शहादतें मानी हैं, और वह मुझे बहुत 'अज़ीज़ हैं।
שָׁמַרְתִּי פִקּוּדֶיךָ וְעֵדֹתֶיךָ כִּי כָל־דְּרָכַי נֶגְדֶּֽךָ׃ 168
मैंने तेरे क़वानीन और शहादतों को माना है, क्यूँकि मेरे सब चाल चलन तेरे सामने हैं। ताव
תִּקְרַב רִנָּתִי לְפָנֶיךָ יְהוָה כִּדְבָרְךָ הֲבִינֵֽנִי׃ 169
ऐ ख़ुदावन्द! मेरी फ़रियाद तेरे सामने पहुँचे; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे समझ 'अता कर।
תָּבוֹא תְחִנָּתִי לְפָנֶיךָ כְּאִמְרָתְךָ הַצִּילֵֽנִי׃ 170
मेरी इल्तिजा तेरे सामने पहुँचे, अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे छुड़ा।
תַּבַּעְנָה שְׂפָתַי תְּהִלָּה כִּי תְלַמְּדֵנִי חֻקֶּֽיךָ׃ 171
मेरे लबों से तेरी सिताइश हो। क्यूँकि तू मुझे अपने क़ानून सिखाता है।
תַּעַן לְשׁוֹנִי אִמְרָתֶךָ כִּי כָל־מִצְוֺתֶיךָ צֶּֽדֶק׃ 172
मेरी ज़बान तेरे कलाम का हम्द गाए, क्यूँकि तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं।
תְּהִֽי־יָדְךָ לְעָזְרֵנִי כִּי פִקּוּדֶיךָ בָחָֽרְתִּי׃ 173
तेरा हाथ मेरी मदद को तैयार है क्यूँकि मैंने तेरे क़वानीन इख़्तियार, किए हैं।
תָּאַבְתִּי לִֽישׁוּעָתְךָ יְהוָה וְתֽוֹרָתְךָ שַׁעֲשֻׁעָֽי׃ 174
ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरी नजात का मुश्ताक़ रहा हूँ, और तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी है।
תְּֽחִי־נַפְשִׁי וּֽתְהַֽלְלֶךָּ וּֽמִשְׁפָּטֶךָ יַעֲזְרֻֽנִי׃ 175
मेरी जान ज़िन्दा रहे तो वह तेरी सिताइश करेगी, और तेरे अहकाम मेरी मदद करें।
תָּעִיתִי כְּשֶׂה אֹבֵד בַּקֵּשׁ עַבְדֶּךָ כִּי מִצְוֺתֶיךָ לֹא שָׁכָֽחְתִּי׃ 176
मैं खोई हुई भेड़ की तरह भटक गया हूँ अपने बन्दे की तलाश कर, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान को नहीं भूलता।

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