< איוב 14 >
אָדָם יְלוּד אִשָּׁה קְצַר יָמִים וּֽשְׂבַֽע־רֹֽגֶז׃ | 1 |
१“मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्न होता है, उसके दिन थोड़े और दुःख भरे है।
כְּצִיץ יָצָא וַיִּמָּל וַיִּבְרַח כַּצֵּל וְלֹא יַעֲמֽוֹד׃ | 2 |
२वह फूल के समान खिलता, फिर तोड़ा जाता है; वह छाया की रीति पर ढल जाता, और कहीं ठहरता नहीं।
אַף־עַל־זֶה פָּקַחְתָּ עֵינֶךָ וְאֹתִי תָבִיא בְמִשְׁפָּט עִמָּֽךְ׃ | 3 |
३फिर क्या तू ऐसे पर दृष्टि लगाता है? क्या तू मुझे अपने साथ कचहरी में घसीटता है?
מִֽי־יִתֵּן טָהוֹר מִטָּמֵא לֹא אֶחָֽד׃ | 4 |
४अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।
אִם חֲרוּצִים ׀ יָמָיו מִֽסְפַּר־חֳדָשָׁיו אִתָּךְ חקו חֻקָּיו עָשִׂיתָ וְלֹא יַעֲבֽוֹר׃ | 5 |
५मनुष्य के दिन नियुक्त किए गए हैं, और उसके महीनों की गिनती तेरे पास लिखी है, और तूने उसके लिये ऐसा सीमा बाँधा है जिसे वह पार नहीं कर सकता,
שְׁעֵה מֵעָלָיו וְיֶחְדָּל עַד־יִרְצֶה כְּשָׂכִיר יוֹמֽוֹ׃ | 6 |
६इस कारण उससे अपना मुँह फेर ले, कि वह आराम करे, जब तक कि वह मजदूर के समान अपना दिन पूरा न कर ले।
כִּי יֵשׁ לָעֵץ תִּקְוָה אִֽם־יִכָּרֵת וְעוֹד יַחֲלִיף וְיֹֽנַקְתּוֹ לֹא תֶחְדָּֽל׃ | 7 |
७“वृक्ष के लिये तो आशा रहती है, कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तो भी फिर पनपेगा और उससे नर्म-नर्म डालियाँ निकलती ही रहेंगी।
אִם־יַזְקִין בָּאָרֶץ שָׁרְשׁוֹ וּבֶעָפָר יָמוּת גִּזְעֽוֹ׃ | 8 |
८चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए, और उसका ठूँठ मिट्टी में सूख भी जाए,
מֵרֵיחַ מַיִם יַפְרִחַ וְעָשָׂה קָצִיר כְּמוֹ־נָֽטַע׃ | 9 |
९तो भी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे के समान उससे शाखाएँ फूटेंगी।
וְגֶבֶר יָמוּת וַֽיֶּחֱלָשׁ וַיִּגְוַע אָדָם וְאַיּֽוֹ׃ | 10 |
१०परन्तु मनुष्य मर जाता, और पड़ा रहता है; जब उसका प्राण छूट गया, तब वह कहाँ रहा?
אָֽזְלוּ־מַיִם מִנִּי־יָם וְנָהָר יֶחֱרַב וְיָבֵֽשׁ׃ | 11 |
११जैसे नदी का जल घट जाता है, और जैसे महानद का जल सूखते-सूखते सूख जाता है,
וְאִישׁ שָׁכַב וְֽלֹא־יָקוּם עַד־בִּלְתִּי שָׁמַיִם לֹא יָקִיצוּ וְלֹֽא־יֵעֹרוּ מִשְּׁנָתָֽם׃ | 12 |
१२वैसे ही मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता; जब तक आकाश बना रहेगा तब तक वह न जागेगा, और न उसकी नींद टूटेगी।
מִי יִתֵּן ׀ בִּשְׁאוֹל תַּצְפִּנֵנִי תַּסְתִּירֵנִי עַד־שׁוּב אַפֶּךָ תָּשִׁית לִי חֹק וְתִזְכְּרֵֽנִי׃ (Sheol ) | 13 |
१३भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता, और जब तक तेरा कोप ठंडा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता, और मेरे लिये समय नियुक्त करके फिर मेरी सुधि लेता। (Sheol )
אִם־יָמוּת גֶּבֶר הֲיִחְיֶה כָּל־יְמֵי צְבָאִי אֲיַחֵל עַד־בּוֹא חֲלִיפָתִֽי׃ | 14 |
१४यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छुटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता।
תִּקְרָא וְאָנֹכִי אֶֽעֱנֶךָּ לְֽמַעֲשֵׂה יָדֶיךָ תִכְסֹֽף׃ | 15 |
१५तू मुझे पुकारता, और मैं उत्तर देता हूँ; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती है।
כִּֽי־עַתָּה צְעָדַי תִּסְפּוֹר לֹֽא־תִשְׁמוֹר עַל־חַטָּאתִֽי׃ | 16 |
१६परन्तु अब तू मेरे पग-पग को गिनता है, क्या तू मेरे पाप की ताक में लगा नहीं रहता?
חָתֻם בִּצְרוֹר פִּשְׁעִי וַתִּטְפֹּל עַל־עֲוֺנִֽי׃ | 17 |
१७मेरे अपराध छाप लगी हुई थैली में हैं, और तूने मेरे अधर्म को सी रखा है।
וְאוּלָם הַר־נוֹפֵל יִבּוֹל וְצוּר יֶעְתַּק מִמְּקֹמֽוֹ׃ | 18 |
१८“और निश्चय पहाड़ भी गिरते-गिरते नाश हो जाता है, और चट्टान अपने स्थान से हट जाती है;
אֲבָנִים ׀ שָׁחֲקוּ מַיִם תִּשְׁטֹֽף־סְפִיחֶיהָ עֲפַר־אָרֶץ וְתִקְוַת אֱנוֹשׁ הֶאֱבַֽדְתָּ׃ | 19 |
१९और पत्थर जल से घिस जाते हैं, और भूमि की धूलि उसकी बाढ़ से बहाई जाती है; उसी प्रकार तू मनुष्य की आशा को मिटा देता है।
תִּתְקְפֵהוּ לָנֶצַח וַֽיַּהֲלֹךְ מְשַׁנֶּה פָנָיו וַֽתְּשַׁלְּחֵֽהוּ׃ | 20 |
२०तू सदा उस पर प्रबल होता, और वह जाता रहता है; तू उसका चेहरा बिगाड़कर उसे निकाल देता है।
יִכְבְּדוּ בָנָיו וְלֹא יֵדָע וְיִצְעֲרוּ וְֽלֹא־יָבִין לָֽמוֹ׃ | 21 |
२१उसके पुत्रों की बड़ाई होती है, और यह उसे नहीं सूझता; और उनकी घटी होती है, परन्तु वह उनका हाल नहीं जानता।
אַךְ־בְּשָׂרוֹ עָלָיו יִכְאָב וְנַפְשׁוֹ עָלָיו תֶּאֱבָֽל׃ | 22 |
२२केवल उसकी अपनी देह को दुःख होता है; और केवल उसका अपना प्राण ही अन्दर ही अन्दर शोकित होता है।”