< ירמיה 47 >

אֲשֶׁר הָיָה דְבַר־יְהוָה אֶל־יִרְמְיָהוּ הַנָּבִיא אֶל־פְּלִשְׁתִּים בְּטֶרֶם יַכֶּה פַרְעֹה אֶת־עַזָּֽה׃ 1
इसके पूर्व कि फ़रोह अज्जाह को पराजित करता, भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को फिलिस्तीनियों से संबंधित यह संदेश प्राप्‍त हुआ:
כֹּה ׀ אָמַר יְהוָה הִנֵּה־מַיִם עֹלִים מִצָּפוֹן וְהָיוּ לְנַחַל שׁוֹטֵף וְיִשְׁטְפוּ אֶרֶץ וּמְלוֹאָהּ עִיר וְיֹשְׁבֵי בָהּ וְזָֽעֲקוּ הָֽאָדָם וְהֵילִל כֹּל יוֹשֵׁב הָאָֽרֶץ׃ 2
यह याहवेह का संदेश है: “यह देखना कि उत्तर से जल स्तर ऊंचा होने लगेगा; और यह बढ़कर प्रचंड प्रवाह में परिवर्तित हो जाएगा. यह संपूर्ण भूमि को आच्छादित कर लेगा वह सब भी जो भूमि के ऊपर है, नगर को तथा नगरवासियों को भी. पुरुष चिल्लायेंगे; तथा देश का हर एक निवासी विलाप करेगा.
מִקּוֹל שַֽׁעֲטַת פַּרְסוֹת אַבִּירָיו מֵרַעַשׁ לְרִכְבּוֹ הֲמוֹן גַּלְגִּלָּיו לֹֽא־הִפְנוּ אָבוֹת אֶל־בָּנִים מֵֽרִפְיוֹן יָדָֽיִם׃ 3
घोड़ों की टापों की ध्वनि के कारण, उसके रथों की आवाज सुनकर, उनके पहियों की गड़गड़ाहट के कारण. पिता मुड़कर अपने बालकों को देखेंगे; क्योंकि उनके हाथ ढीले हो चुके हैं.
עַל־הַיּוֹם הַבָּא לִשְׁדוֹד אֶת־כָּל־פְּלִשְׁתִּים לְהַכְרִית לְצֹר וּלְצִידוֹן כֹּל שָׂרִיד עֹזֵר כִּֽי־שֹׁדֵד יְהוָה אֶת־פְּלִשְׁתִּים שְׁאֵרִית אִי כַפְתּֽוֹר׃ 4
यह इसलिये कि सारे फिलिस्तीनियों के विनाश का तथा सोर और सीदोन में हर एक शेष रह गए सहायक को नष्ट करने का दिन आया है. स्वयं याहवेह ही फिलिस्तीनियों तथा काफ़तोर के तटवर्ती क्षेत्रों के बचे हुए लोगों को नष्ट करने के लिए तैयार हैं.
בָּאָה קָרְחָה אֶל־עַזָּה נִדְמְתָה אַשְׁקְלוֹן שְׁאֵרִית עִמְקָם עַד־מָתַי תִּתְגּוֹדָֽדִי׃ 5
अज्जाह को सिर मुंडाना पड़ा है; अश्कलोन नष्ट किया जा चुका है. उनकी घाटी के बचे हुए लोगो, तुम कब तक अपनी देह को घायल करते रहोगे?
הוֹי חֶרֶב לַֽיהוָה עַד־אָנָה לֹא תִשְׁקֹטִי הֵאָֽסְפִי אַל־תַּעְרֵךְ הֵרָגְעִי וָדֹֽמִּי׃ 6
“‘आह, याहवेह की तलवार, और कब तक प्रतीक्षा की जाए तुम्हारे शांत होने की? अब तो अपनी म्यान में जा बैठो; विश्राम करो और चुपचाप रहो.’
אֵיךְ תִּשְׁקֹטִי וַֽיהוָה צִוָּה־לָהּ אֶֽל־אַשְׁקְלוֹן וְאֶל־חוֹף הַיָּם שָׁם יְעָדָֽהּ׃ 7
यह शांत रह भी कैसे सकती है जब इसे आदेश ही याहवेह ने दिया है, उसे अश्कलोन तथा समुद्रतट के क्षेत्रों के विरुद्ध ही नियत किया गया है?”

< ירמיה 47 >