< תְהִלִּים 80 >
לַמְנַצֵּ֥חַ אֶל־שֹׁשַׁנִּ֑ים עֵד֖וּת לְאָסָ֣ף מִזְמֽוֹר׃ רֹ֘עֵ֤ה יִשְׂרָאֵ֨ל ׀ הַאֲזִ֗ינָה נֹהֵ֣ג כַּצֹּ֣אן יוֹסֵ֑ף יֹשֵׁ֖ב הַכְּרוּבִ֣ים הוֹפִֽיעָה׃ | 1 |
ऐ इस्राईल के चौपान! तू जो ग़ल्ले की तरह यूसुफ़ को ले चलता है, कान लगा! तू जो करूबियों पर बैठा है, जलवागर हो!
לִפְנֵ֤י אֶפְרַ֨יִם ׀ וּבִנְיָ֘מִ֤ן וּמְנַשֶּׁ֗ה עוֹרְרָ֥ה אֶת־גְּבֽוּרָתֶ֑ךָ וּלְכָ֖ה לִישֻׁעָ֣תָה לָּֽנוּ׃ | 2 |
इफ़्राईम — ओ — बिनयमीन और मनस्सी के सामने अपनी कु़व्वत को बेदार कर, और हमें बचाने को आ!
אֱלֹהִ֥ים הֲשִׁיבֵ֑נוּ וְהָאֵ֥ר פָּ֝נֶ֗יךָ וְנִוָּשֵֽׁעָה׃ | 3 |
ऐ ख़ुदा, हम को बहाल कर; और अपना चेहरा चमका, तो हम बच जाएँगे।
יְהוָ֣ה אֱלֹהִ֣ים צְבָא֑וֹת עַד־מָתַ֥י עָ֝שַׁ֗נְתָּ בִּתְפִלַּ֥ת עַמֶּֽךָ׃ | 4 |
ऐ ख़ुदावन्द लश्करों के ख़ुदा, तू कब तक अपने लोगों की दुआ से नाराज़ रहेगा?
הֶ֭אֱכַלְתָּם לֶ֣חֶם דִּמְעָ֑ה וַ֝תַּשְׁקֵ֗מוֹ בִּדְמָע֥וֹת שָׁלִֽישׁ׃ | 5 |
तूने उनको आँसुओं की रोटी खिलाई, और पीने को कसरत से आँसू ही दिए।
תְּשִׂימֵ֣נוּ מָ֭דוֹן לִשְׁכֵנֵ֑ינוּ וְ֝אֹיְבֵ֗ינוּ יִלְעֲגוּ־לָֽמוֹ׃ | 6 |
तू हम को हमारे पड़ोसियों के लिए झगड़े का ज़रिए' बनाता है, और हमारे दुश्मन आपस में हँसते हैं।
אֱלֹהִ֣ים צְבָא֣וֹת הֲשִׁיבֵ֑נוּ וְהָאֵ֥ר פָּ֝נֶ֗יךָ וְנִוָּשֵֽׁעָה׃ | 7 |
ऐ लश्करों के ख़ुदा, हम को बहाल कर; और अपना चेहरा चमका, तो हम बच जाएँगे।
גֶּ֭פֶן מִמִּצְרַ֣יִם תַּסִּ֑יעַ תְּגָרֵ֥שׁ גּ֝וֹיִ֗ם וַתִּטָּעֶֽהָ׃ | 8 |
तू मिस्र से एक ताक लाया; तूने क़ौमों को ख़ारिज करके उसे लगाया।
פִּנִּ֥יתָ לְפָנֶ֑יהָ וַתַּשְׁרֵ֥שׁ שָׁ֝רָשֶׁ֗יהָ וַתְּמַלֵּא־אָֽרֶץ׃ | 9 |
तूने उसके लिए जगह तैयार की; उसने गहरी जड़ पकड़ी और ज़मीन को भर दिया।
כָּסּ֣וּ הָרִ֣ים צִלָּ֑הּ וַ֝עֲנָפֶ֗יהָ אַֽרְזֵי־אֵֽל׃ | 10 |
पहाड़ उसके साये में छिप गए, और उसकी डालियाँ ख़ुदा के देवदारों की तरह थीं।
תְּשַׁלַּ֣ח קְצִירֶ֣הָ עַד־יָ֑ם וְאֶל־נָ֝הָ֗ר יֽוֹנְקוֹתֶֽיהָ׃ | 11 |
उसने अपनी शाख़ समन्दर तक फैलाई, और अपनी टहनियाँ दरिया — ए — फरात तक।
לָ֭מָּה פָּרַ֣צְתָּ גְדֵרֶ֑יהָ וְ֝אָר֗וּהָ כָּל־עֹ֥בְרֵי דָֽרֶךְ׃ | 12 |
फिर तूने उसकी बाड़ों को क्यूँ तोड़ डाला, कि सब आने जाने वाले उसका फल तोड़ते हैं?
יְכַרְסְמֶ֣נָּֽה חֲזִ֣יר מִיָּ֑עַר וְזִ֖יז שָׂדַ֣י יִרְעֶֽנָּה׃ | 13 |
जंगली सूअर उसे बरबाद करता है, और जंगली जानवर उसे खा जातेहैं।
אֱלֹהִ֣ים צְבָאוֹת֮ שֽׁ֫וּב־נָ֥א הַבֵּ֣ט מִשָּׁמַ֣יִם וּרְאֵ֑ה וּ֝פְקֹ֗ד גֶּ֣פֶן זֹֽאת׃ | 14 |
ऐ लश्करों के ख़ुदा, हम तेरी मिन्नत करते हैं, फिर मुतक्ज्जिह हो! आसमान पर से निगाह कर और देख, और इस ताक की निगहबानी फ़रमा।
וְ֭כַנָּה אֲשֶׁר־נָטְעָ֣ה יְמִינֶ֑ךָ וְעַל־בֵּ֝֗ן אִמַּ֥צְתָּה לָּֽךְ׃ | 15 |
और उस पौदे की भी जिसे तेरे दहने हाथ ने लगाया है, और उस शाख़ की जिसे तूने अपने लिए मज़बूत किया है।
שְׂרֻפָ֣ה בָאֵ֣שׁ כְּסוּחָ֑ה מִגַּעֲרַ֖ת פָּנֶ֣יךָ יֹאבֵֽדוּ׃ | 16 |
यह आग से जली हुई है, यह कटी पड़ी है; वह तेरे मुँह की झिड़की से हलाक हो जाते हैं।
תְּֽהִי־יָ֭דְךָ עַל־אִ֣ישׁ יְמִינֶ֑ךָ עַל־בֶּן־אָ֝דָ֗ם אִמַּ֥צְתָּ לָּֽךְ׃ | 17 |
तेरा हाथ तेरी दहनी तरफ़ के इंसान पर हो, उस इब्न — ए — आदम पर जिसे तूने अपने लिए मज़बूत किया है।
וְלֹא־נָס֥וֹג מִמֶּ֑ךָּ תְּ֝חַיֵּ֗נוּ וּבְשִׁמְךָ֥ נִקְרָֽא׃ | 18 |
फिर हम तुझ से नाफ़रमान न होंगे: तू हम को फिर ज़िन्दा कर और हम तेरा नाम लिया करेंगे।
יְה֘וָ֤ה אֱלֹהִ֣ים צְבָא֣וֹת הֲשִׁיבֵ֑נוּ הָאֵ֥ר פָּ֝נֶ֗יךָ וְנִוָּשֵֽׁעָה׃ | 19 |
ऐ ख़ुदा वन्द लश्करों के ख़ुदा! हम को बहाल कर; अपना चेहरा चमका तो हम बच जाएँगे!