< תְהִלִּים 46 >
לַמְנַצֵּ֥חַ לִבְנֵי־קֹ֑רַח עַֽל־עֲלָמ֥וֹת שִֽׁיר׃ אֱלֹהִ֣ים לָ֭נוּ מַחֲסֶ֣ה וָעֹ֑ז עֶזְרָ֥ה בְ֝צָר֗וֹת נִמְצָ֥א מְאֹֽד׃ | 1 |
ख़ुदावन्द हमारी पनाह और ताक़त है; मुसीबत में मुस्त'इद मददगार।
עַל־כֵּ֣ן לֹא־נִ֭ירָא בְּהָמִ֣יר אָ֑רֶץ וּבְמ֥וֹט הָ֝רִ֗ים בְּלֵ֣ב יַמִּֽים׃ | 2 |
इसलिए हम को कुछ ख़ौफ़ नहीं चाहे ज़मीन उलट जाए, और पहाड़ समुन्दर की तह में डाल दिए जाए
יֶהֱמ֣וּ יֶחְמְר֣וּ מֵימָ֑יו יִֽרְעֲשֽׁוּ־הָרִ֖ים בְּגַאֲוָת֣וֹ סֶֽלָה׃ | 3 |
चाहे उसका पानी शोर मचाए और तूफ़ानी हो, और पहाड़ उसकी लहरों से हिल जाएँ। सिलह
נָהָ֗ר פְּלָגָ֗יו יְשַׂמְּח֥וּ עִיר־אֱלֹהִ֑ים קְ֝דֹ֗שׁ מִשְׁכְּנֵ֥י עֶלְיֽוֹן׃ | 4 |
एक ऐसा दरिया है जिसकी शाख़ो से ख़ुदा के शहर को या'नी हक़ ता'ला के पाक घर को फ़रहत होती है।
אֱלֹהִ֣ים בְּ֭קִרְבָּהּ בַּל־תִּמּ֑וֹט יַעְזְרֶ֥הָ אֱ֝לֹהִ֗ים לִפְנ֥וֹת בֹּֽקֶר׃ | 5 |
ख़ुदा उसमें है, उसे कभी जुम्बिश न होगी; ख़ुदा सुबह सवेरे उसकी मदद करेगा।
הָמ֣וּ ג֭וֹיִם מָ֣טוּ מַמְלָכ֑וֹת נָתַ֥ן בְּ֝קוֹל֗וֹ תָּמ֥וּג אָֽרֶץ׃ | 6 |
क़ौमे झुंझलाई, सल्तनतों ने जुम्बिश खाई; वह बोल उठा, ज़मीन पिघल गई।
יְהוָ֣ה צְבָא֣וֹת עִמָּ֑נוּ מִשְׂגָּֽב־לָ֝נוּ אֱלֹהֵ֖י יַעֲקֹ֣ב סֶֽלָה׃ | 7 |
लश्करों का ख़ुदावन्द हमारे साथ है; या'क़ूब का ख़ुदा हमारी पनाह है (सिलाह)
לְֽכוּ־חֲ֭זוּ מִפְעֲל֣וֹת יְהוָ֑ה אֲשֶׁר־שָׂ֖ם שַׁמּ֣וֹת בָּאָֽרֶץ׃ | 8 |
आओ, ख़ुदावन्द के कामों को देखो, कि उसने ज़मीन पर क्या क्या वीरानियाँ की हैं।
מַשְׁבִּ֥ית מִלְחָמוֹת֮ עַד־קְצֵ֪ה הָ֫אָ֥רֶץ קֶ֣שֶׁת יְ֭שַׁבֵּר וְקִצֵּ֣ץ חֲנִ֑ית עֲ֝גָל֗וֹת יִשְׂרֹ֥ף בָּאֵֽשׁ׃ | 9 |
वह ज़मीन की इन्तिहा तक जंग बंद कराता है; वह कमान को तोड़ता, और नेज़े के टुकड़े कर डालता है। वह रथों को आग से जला देता है।
הַרְפּ֣וּ וּ֭דְעוּ כִּי־אָנֹכִ֣י אֱלֹהִ֑ים אָר֥וּם בַּ֝גּוֹיִ֗ם אָר֥וּם בָּאָֽרֶץ׃ | 10 |
“ख़ामोश हो जाओ, और जान लो कि मैं ख़ुदा हूँ। मैं क़ौमों के बीच सरबुलंद हूँगा। मैं सारी ज़मीन पर सरबुलंद हूँगा।”
יְהוָ֣ה צְבָא֣וֹת עִמָּ֑נוּ מִשְׂגָּֽב־לָ֝נוּ אֱלֹהֵ֖י יַעֲקֹ֣ב סֶֽלָה׃ | 11 |
लश्करों का ख़ुदावन्द हमारे साथ है; या'क़ूब का ख़ुदा हमारी पनाह है। (सिलाह)