< תְהִלִּים 39 >

לַמְנַצֵּ֥חַ לִֽידוּת֗וּן מִזְמ֥וֹר לְדָוִֽד׃ אָמַ֗רְתִּי אֶֽשְׁמְרָ֣ה דְרָכַי֮ מֵחֲט֪וֹא בִלְשׁ֫וֹנִ֥י אֶשְׁמְרָ֥ה לְפִ֥י מַחְס֑וֹם בְּעֹ֖ד רָשָׁ֣ע לְנֶגְדִּֽי׃ 1
यदूतून प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन मैंने कहा, “मैं अपनी चाल चलन में चौकसी करूँगा, ताकि मेरी जीभ से पाप न हो; जब तक दुष्ट मेरे सामने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुँह बन्द किए रहूँगा।”
נֶאֱלַ֣מְתִּי ד֭וּמִיָּה הֶחֱשֵׁ֣יתִי מִטּ֑וֹב וּכְאֵבִ֥י נֶעְכָּֽר׃ 2
मैं मौन धारण कर गूँगा बन गया, और भलाई की ओर से भी चुप्पी साधे रहा; और मेरी पीड़ा बढ़ गई,
חַם־לִבִּ֨י ׀ בְּקִרְבִּ֗י בַּהֲגִיגִ֥י תִבְעַר־אֵ֑שׁ דִּ֝בַּ֗רְתִּי בִּלְשֽׁוֹנִי׃ 3
मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था। सोचते-सोचते आग भड़क उठी; तब मैं अपनी जीभ से बोल उठा;
הוֹדִ֘יעֵ֤נִי יְהוָ֨ה ׀ קִצִּ֗י וּמִדַּ֣ת יָמַ֣י מַה־הִ֑יא אֵ֝דְעָ֗ה מֶה־חָדֵ֥ל אָֽנִי׃ 4
“हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अन्त मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि कैसा अनित्य हूँ!
הִנֵּ֤ה טְפָח֨וֹת ׀ נָ֘תַ֤תָּה יָמַ֗י וְחֶלְדִּ֣י כְאַ֣יִן נֶגְדֶּ֑ךָ אַ֥ךְ כָּֽל־הֶ֥בֶל כָּל־אָ֝דָ֗ם נִצָּ֥ב סֶֽלָה׃ 5
देख, तूने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरा जीवनकाल तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं। सचमुच सब मनुष्य कैसे ही स्थिर क्यों न हों तो भी व्यर्थ ठहरे हैं। (सेला)
אַךְ־בְּצֶ֤לֶם ׀ יִֽתְהַלֶּךְ־אִ֗ישׁ אַךְ־הֶ֥בֶל יֶהֱמָי֑וּן יִ֝צְבֹּ֗ר וְֽלֹא־יֵדַ֥ע מִי־אֹסְפָֽם׃ 6
सचमुच मनुष्य छाया सा चलता फिरता है; सचमुच वे व्यर्थ घबराते हैं; वह धन का संचय तो करता है परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा!
וְעַתָּ֣ה מַה־קִּוִּ֣יתִי אֲדֹנָ֑י תּ֝וֹחַלְתִּ֗י לְךָ֣ הִֽיא׃ 7
“अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूँ? मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है।
מִכָּל־פְּשָׁעַ֥י הַצִּילֵ֑נִי חֶרְפַּ֥ת נָ֝בָ֗ל אַל־תְּשִׂימֵֽנִי׃ 8
मुझे मेरे सब अपराधों के बन्धन से छुड़ा ले। मूर्ख मेरी निन्दा न करने पाए।
נֶ֭אֱלַמְתִּי לֹ֣א אֶפְתַּח־פִּ֑י כִּ֖י אַתָּ֣ה עָשִֽׂיתָ׃ 9
मैं गूँगा बन गया और मुँह न खोला; क्योंकि यह काम तू ही ने किया है।
הָסֵ֣ר מֵעָלַ֣י נִגְעֶ֑ךָ מִתִּגְרַ֥ת יָ֝דְךָ֗ אֲנִ֣י כָלִֽיתִי׃ 10
१०तूने जो विपत्ति मुझ पर डाली है उसे मुझसे दूर कर दे, क्योंकि मैं तो तेरे हाथ की मार से भस्म हुआ जाता हूँ।
בְּֽתוֹכָ֘ח֤וֹת עַל־עָוֹ֨ן ׀ יִסַּ֬רְתָּ אִ֗ישׁ וַתֶּ֣מֶס כָּעָ֣שׁ חֲמוּד֑וֹ אַ֤ךְ הֶ֖בֶל כָּל־אָדָ֣ם סֶֽלָה׃ 11
११जब तू मनुष्य को अधर्म के कारण डाँट-डपटकर ताड़ना देता है; तब तू उसकी सामर्थ्य को पतंगे के समान नाश करता है; सचमुच सब मनुष्य वृथाभिमान करते हैं।
שִֽׁמְעָ֥ה־תְפִלָּתִ֨י ׀ יְהוָ֡ה וְשַׁוְעָתִ֨י ׀ הַאֲזִינָה֮ אֶֽל־דִּמְעָתִ֗י אַֽל־תֶּ֫חֱרַ֥שׁ כִּ֤י גֵ֣ר אָנֹכִ֣י עִמָּ֑ךְ תּ֝וֹשָׁ֗ב כְּכָל־אֲבוֹתָֽי׃ 12
१२“हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, और मेरी दुहाई पर कान लगा; मेरा रोना सुनकर शान्त न रह! क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री के समान रहता हूँ, और अपने सब पुरखाओं के समान परदेशी हूँ।
הָשַׁ֣ע מִמֶּ֣נִּי וְאַבְלִ֑יגָה בְּטֶ֖רֶם אֵלֵ֣ךְ וְאֵינֶֽנִּי׃ 13
१३आह! इससे पहले कि मैं यहाँ से चला जाऊँ और न रह जाऊँ, मुझे बचा ले जिससे मैं प्रदीप्त जीवन प्राप्त करूँ!”

< תְהִלִּים 39 >