< תְהִלִּים 34 >

לְדָוִ֗ד בְּשַׁנּוֹת֣וֹ אֶת־טַ֭עְמוֹ לִפְנֵ֣י אֲבִימֶ֑לֶךְ וַֽ֝יְגָרֲשֵׁ֗הוּ וַיֵּלַֽךְ׃ אֲבָרֲכָ֣ה אֶת־יְהוָ֣ה בְּכָל־עֵ֑ת תָּ֝מִ֗יד תְּֽהִלָּת֥וֹ בְּפִֽי׃ 1
दाऊद का भजन जब वह अबीमेलेक के सामने बौरहा बना, और अबीमेलेक ने उसे निकाल दिया, और वह चला गया मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूँगा; उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुख से होती रहेगी।
בַּ֭יהוָה תִּתְהַלֵּ֣ל נַפְשִׁ֑י יִשְׁמְע֖וּ עֲנָוִ֣ים וְיִשְׂמָֽחוּ׃ 2
मैं यहोवा पर घमण्ड करूँगा; नम्र लोग यह सुनकर आनन्दित होंगे।
גַּדְּל֣וּ לַיהוָ֣ה אִתִּ֑י וּנְרוֹמְמָ֖ה שְׁמ֣וֹ יַחְדָּֽו׃ 3
मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें;
דָּרַ֣שְׁתִּי אֶת־יְהוָ֣ה וְעָנָ֑נִי וּמִכָּל־מְ֝גוּרוֹתַ֗י הִצִּילָֽנִי׃ 4
मैं यहोवा के पास गया, तब उसने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया।
הִבִּ֣יטוּ אֵלָ֣יו וְנָהָ֑רוּ וּ֝פְנֵיהֶ֗ם אַל־יֶחְפָּֽרוּ׃ 5
जिन्होंने उसकी ओर दृष्टि की, उन्होंने ज्योति पाई; और उनका मुँह कभी काला न होने पाया।
זֶ֤ה עָנִ֣י קָ֭רָא וַיהוָ֣ה שָׁמֵ֑עַ וּמִכָּל־צָ֝רוֹתָ֗יו הוֹשִׁיעֽוֹ׃ 6
इस दीन जन ने पुकारा तब यहोवा ने सुन लिया, और उसको उसके सब कष्टों से छुड़ा लिया।
חֹנֶ֤ה מַלְאַךְ־יְהוָ֓ה סָ֘בִ֤יב לִֽירֵאָ֗יו וַֽיְחַלְּצֵֽם׃ 7
यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है।
טַעֲמ֣וּ וּ֭רְאוּ כִּי־ט֣וֹב יְהוָ֑ה אַֽשְׁרֵ֥י הַ֝גֶּ֗בֶר יֶחֱסֶה־בּֽוֹ׃ 8
चखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो उसकी शरण लेता है।
יְר֣אוּ אֶת־יְהוָ֣ה קְדֹשָׁ֑יו כִּי־אֵ֥ין מַ֝חְס֗וֹר לִירֵאָֽיו׃ 9
हे यहोवा के पवित्र लोगों, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयों को किसी बात की घटी नहीं होती!
כְּ֭פִירִים רָשׁ֣וּ וְרָעֵ֑בוּ וְדֹרְשֵׁ֥י יְ֝הוָ֗ה לֹא־יַחְסְר֥וּ כָל־טֽוֹב׃ 10
१०जवान सिंहों को तो घटी होती और वे भूखे भी रह जाते हैं; परन्तु यहोवा के खोजियों को किसी भली वस्तु की घटी न होगी।
לְֽכוּ־בָ֭נִים שִׁמְעוּ־לִ֑י יִֽרְאַ֥ת יְ֝הוָ֗ה אֲלַמֶּדְכֶֽם׃ 11
११हे बच्चों, आओ मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊँगा।
מִֽי־הָ֭אִישׁ הֶחָפֵ֣ץ חַיִּ֑ים אֹהֵ֥ב יָ֝מִ֗ים לִרְא֥וֹת טֽוֹב׃ 12
१२वह कौन मनुष्य है जो जीवन की इच्छा रखता, और दीर्घायु चाहता है ताकि भलाई देखे?
נְצֹ֣ר לְשׁוֹנְךָ֣ מֵרָ֑ע וּ֝שְׂפָתֶ֗יךָ מִדַּבֵּ֥ר מִרְמָֽה׃ 13
१३अपनी जीभ को बुराई से रोक रख, और अपने मुँह की चौकसी कर कि उससे छल की बात न निकले।
ס֣וּר מֵ֭רָע וַעֲשֵׂה־ט֑וֹב בַּקֵּ֖שׁ שָׁל֣וֹם וְרָדְפֵֽהוּ׃ 14
१४बुराई को छोड़ और भलाई कर; मेल को ढूँढ़ और उसी का पीछा कर।
עֵינֵ֣י יְ֭הוָה אֶל־צַדִּיקִ֑ים וְ֝אָזְנָ֗יו אֶל־שַׁוְעָתָֽם׃ 15
१५यहोवा की आँखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दुहाई की ओर लगे रहते हैं।
פְּנֵ֣י יְ֭הוָה בְּעֹ֣שֵׂי רָ֑ע לְהַכְרִ֖ית מֵאֶ֣רֶץ זִכְרָֽם׃ 16
१६यहोवा बुराई करनेवालों के विमुख रहता है, ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले।
צָעֲק֣וּ וַיהוָ֣ה שָׁמֵ֑עַ וּמִכָּל־צָ֝רוֹתָ֗ם הִצִּילָֽם׃ 17
१७धर्मी दुहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उनको सब विपत्तियों से छुड़ाता है।
קָר֣וֹב יְ֭הוָה לְנִשְׁבְּרֵי־לֵ֑ב וְֽאֶת־דַּכְּאֵי־ר֥וּחַ יוֹשִֽׁיעַ׃ 18
१८यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।
רַ֭בּוֹת רָע֣וֹת צַדִּ֑יק וּ֝מִכֻּלָּ֗ם יַצִּילֶ֥נּוּ יְהוָֽה׃ 19
१९धर्मी पर बहुत सी विपत्तियाँ पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सबसे मुक्त करता है।
שֹׁמֵ֥ר כָּל־עַצְמוֹתָ֑יו אַחַ֥ת מֵ֝הֵ֗נָּה לֹ֣א נִשְׁבָּֽרָה׃ 20
२०वह उसकी हड्डी-हड्डी की रक्षा करता है; और उनमें से एक भी टूटने नहीं पाता।
תְּמוֹתֵ֣ת רָשָׁ֣ע רָעָ֑ה וְשֹׂנְאֵ֖י צַדִּ֣יק יֶאְשָֽׁמוּ׃ 21
२१दुष्ट अपनी बुराई के द्वारा मारा जाएगा; और धर्मी के बैरी दोषी ठहरेंगे।
פּוֹדֶ֣ה יְ֭הוָה נֶ֣פֶשׁ עֲבָדָ֑יו וְלֹ֥א יֶ֝אְשְׁמ֗וּ כָּֽל־הַחֹסִ֥ים בּֽוֹ׃ 22
२२यहोवा अपने दासों का प्राण मोल लेकर बचा लेता है; और जितने उसके शरणागत हैं उनमें से कोई भी दोषी न ठहरेगा।

< תְהִלִּים 34 >