< תְהִלִּים 144 >
לְדָוִ֨ד ׀ בָּ֘ר֤וּךְ יְהוָ֨ה ׀ צוּרִ֗י הַֽמְלַמֵּ֣ד יָדַ֣י לַקְרָ֑ב אֶ֝צְבְּעוֹתַ֗י לַמִּלְחָמָֽה׃ | 1 |
१दाऊद का भजन धन्य है यहोवा, जो मेरी चट्टान है, वह युद्ध के लिए मेरे हाथों को और लड़ाई के लिए मेरी उँगलियों को अभ्यास कराता है।
חַסְדִּ֥י וּמְצוּדָתִי֮ מִשְׂגַּבִּ֪י וּֽמְפַלְטִ֫י לִ֥י מָ֭גִנִּי וּב֣וֹ חָסִ֑יתִי הָרוֹדֵ֖ד עַמִּ֣י תַחְתָּֽי׃ | 2 |
२वह मेरे लिये करुणानिधान और गढ़, ऊँचा स्थान और छुड़ानेवाला है, वह मेरी ढाल और शरणस्थान है, जो जातियों को मेरे वश में कर देता है।
יְֽהוָ֗ה מָה־אָ֭דָם וַתֵּדָעֵ֑הוּ בֶּן־אֱ֝נ֗וֹשׁ וַֽתְּחַשְּׁבֵֽהוּ׃ | 3 |
३हे यहोवा, मनुष्य क्या है कि तू उसकी सुधि लेता है, या आदमी क्या है कि तू उसकी कुछ चिन्ता करता है?
אָ֭דָם לַהֶ֣בֶל דָּמָ֑ה יָ֝מָ֗יו כְּצֵ֣ל עוֹבֵֽר׃ | 4 |
४मनुष्य तो साँस के समान है; उसके दिन ढलती हुई छाया के समान हैं।
יְ֭הוָה הַט־שָׁמֶ֣יךָ וְתֵרֵ֑ד גַּ֖ע בֶּהָרִ֣ים וְֽיֶעֱשָֽׁנוּ׃ | 5 |
५हे यहोवा, अपने स्वर्ग को नीचा करके उतर आ! पहाड़ों को छू तब उनसे धुआँ उठेगा!
בְּר֣וֹק בָּ֭רָק וּתְפִיצֵ֑ם שְׁלַ֥ח חִ֝צֶּ֗יךָ וּתְהֻמֵּֽם׃ | 6 |
६बिजली कड़काकर उनको तितर-बितर कर दे, अपने तीर चलाकर उनको घबरा दे!
שְׁלַ֥ח יָדֶ֗יךָ מִמָּ֫ר֥וֹם פְּצֵ֣נִי וְ֭הַצִּילֵנִי מִמַּ֣יִם רַבִּ֑ים מִ֝יַּ֗ד בְּנֵ֣י נֵכָֽר׃ | 7 |
७अपना हाथ ऊपर से बढ़ाकर मुझे महासागर से उबार, अर्थात् परदेशियों के वश से छुड़ा।
אֲשֶׁ֣ר פִּ֭יהֶם דִּבֶּר־שָׁ֑וְא וִֽ֝ימִינָ֗ם יְמִ֣ין שָֽׁקֶר׃ | 8 |
८उनके मुँह से तो झूठी बातें निकलती हैं, और उनके दाहिने हाथ से धोखे के काम होते हैं।
אֱֽלֹהִ֗ים שִׁ֣יר חָ֭דָשׁ אָשִׁ֣ירָה לָּ֑ךְ בְּנֵ֥בֶל עָ֝שׂ֗וֹר אֲזַמְּרָה־לָּֽךְ׃ | 9 |
९हे परमेश्वर, मैं तेरी स्तुति का नया गीत गाऊँगा; मैं दस तारवाली सारंगी बजाकर तेरा भजन गाऊँगा।
הַנּוֹתֵ֥ן תְּשׁוּעָ֗ה לַמְּלָ֫כִ֥ים הַ֭פּוֹצֶה אֶת־דָּוִ֥ד עַבְדּ֗וֹ מֵחֶ֥רֶב רָעָֽה׃ | 10 |
१०तू राजाओं का उद्धार करता है, और अपने दास दाऊद को तलवार की मार से बचाता है।
פְּצֵ֥נִי וְהַצִּילֵנִי֮ מִיַּ֪ד בְּֽנֵי־נֵ֫כָ֥ר אֲשֶׁ֣ר פִּ֭יהֶם דִּבֶּר־שָׁ֑וְא וִֽ֝ימִינָ֗ם יְמִ֣ין שָֽׁקֶר׃ | 11 |
११मुझ को उबार और परदेशियों के वश से छुड़ा ले, जिनके मुँह से झूठी बातें निकलती हैं, और जिनका दाहिना हाथ झूठ का दाहिना हाथ है।
אֲשֶׁ֤ר בָּנֵ֨ינוּ ׀ כִּנְטִעִים֮ מְגֻדָּלִ֪ים בִּֽנְעוּרֵ֫יהֶ֥ם בְּנוֹתֵ֥ינוּ כְזָוִיֹּ֑ת מְ֝חֻטָּב֗וֹת תַּבְנִ֥ית הֵיכָֽל׃ | 12 |
१२हमारे बेटे जवानी के समय पौधों के समान बढ़े हुए हों, और हमारी बेटियाँ उन कोनेवाले खम्भों के समान हों, जो महल के लिये बनाए जाएँ;
מְזָוֵ֣ינוּ מְלֵאִים֮ מְפִיקִ֥ים מִזַּ֗ן אֶ֫ל־זַ֥ן צֹאונֵ֣נוּ מַ֭אֲלִיפוֹת מְרֻבָּב֗וֹת בְּחוּצוֹתֵֽינוּ׃ | 13 |
१३हमारे खत्ते भरे रहें, और उनमें भाँति-भाँति का अन्न रखा जाए, और हमारी भेड़-बकरियाँ हमारे मैदानों में हजारों हजार बच्चे जनें;
אַלּוּפֵ֗ינוּ מְֽסֻבָּ֫לִ֥ים אֵֽין־פֶּ֭רֶץ וְאֵ֣ין יוֹצֵ֑את וְאֵ֥ין צְ֝וָחָ֗ה בִּרְחֹבֹתֵֽינוּ׃ | 14 |
१४तब हमारे बैल खूब लदे हुए हों; हमें न विघ्न हो और न हमारा कहीं जाना हो, और न हमारे चौकों में रोना-पीटना हो,
אַשְׁרֵ֣י הָ֭עָם שֶׁכָּ֣כָה לּ֑וֹ אַֽשְׁרֵ֥י הָ֝עָ֗ם שֶׁיֲהוָ֥ה אֱלֹהָֽיו׃ | 15 |
१५तो इस दशा में जो राज्य हो वह क्या ही धन्य होगा! जिस राज्य का परमेश्वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य है!