< תְהִלִּים 123 >
שִׁ֗יר הַֽמַּ֫עֲל֥וֹת אֵ֭לֶיךָ נָשָׂ֣אתִי אֶת־עֵינַ֑י הַ֝יֹּשְׁבִ֗י בַּשָּׁמָֽיִם׃ | 1 |
१यात्रा का गीत हे स्वर्ग में विराजमान मैं अपनी आँखें तेरी ओर उठाता हूँ!
הִנֵּ֨ה כְעֵינֵ֪י עֲבָדִ֡ים אֶל־יַ֤ד אֲֽדוֹנֵיהֶ֗ם כְּעֵינֵ֣י שִׁפְחָה֮ אֶל־יַ֪ד גְּבִ֫רְתָּ֥הּ כֵּ֣ן עֵ֭ינֵינוּ אֶל־יְהוָ֣ה אֱלֹהֵ֑ינוּ עַ֝֗ד שֶׁיְּחָנֵּֽנוּ׃ | 2 |
२देख, जैसे दासों की आँखें अपने स्वामियों के हाथ की ओर, और जैसे दासियों की आँखें अपनी स्वामिनी के हाथ की ओर लगी रहती है, वैसे ही हमारी आँखें हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर उस समय तक लगी रहेंगी, जब तक वह हम पर दया न करे।
חָנֵּ֣נוּ יְהוָ֣ה חָנֵּ֑נוּ כִּֽי־רַ֝֗ב שָׂבַ֥עְנוּ בֽוּז׃ | 3 |
३हम पर दया कर, हे यहोवा, हम पर कृपा कर, क्योंकि हम अपमान से बहुत ही भर गए हैं।
רַבַּת֮ שָֽׂבְעָה־לָּ֪הּ נַ֫פְשֵׁ֥נוּ הַלַּ֥עַג הַשַּׁאֲנַנִּ֑ים הַ֝בּ֗וּז לִגְאֵי יוֹנִים׃ | 4 |
४हमारा जीव सुखी लोगों के उपहास से, और अहंकारियों के अपमान से बहुत ही भर गया है।