< מִשְׁלֵי 29 >
אִ֣ישׁ תּ֭וֹכָחוֹת מַקְשֶׁה־עֹ֑רֶף פֶּ֥תַע יִ֝שָּׁבֵ֗ר וְאֵ֣ין מַרְפֵּֽא׃ | 1 |
वह, जिसे बार-बार डांट पड़ती रहती है, फिर भी अपना हठ नहीं छोड़ता, उस पर विनाश अचानक रूप से टूट पड़ेगा और वह पुनः उठ न सकेगा.
בִּרְב֣וֹת צַ֭דִּיקִים יִשְׂמַ֣ח הָעָ֑ם וּבִמְשֹׁ֥ל רָ֝שָׁ֗ע יֵאָ֥נַֽח עָֽם׃ | 2 |
जब खरे की संख्या में वृद्धि होती है, लोगों में हर्ष की लहर दौड़ जाती है; किंतु जब दुष्ट शासन करने लगते हैं, तब प्रजा कराहने लगती है.
אִֽישׁ־אֹהֵ֣ב חָ֭כְמָה יְשַׂמַּ֣ח אָבִ֑יו וְרֹעֶ֥ה ז֝וֹנ֗וֹת יְאַבֶּד־הֽוֹן׃ | 3 |
बुद्धि से प्रेम करनेवाला पुत्र अपने पिता के हर्ष का विषय होता है, किंतु जो वेश्याओं में संलिप्त रहता है वह अपनी संपत्ति उड़ाता जाता है.
מֶ֗לֶךְ בְּ֭מִשְׁפָּט יַעֲמִ֣יד אָ֑רֶץ וְאִ֖ישׁ תְּרוּמ֣וֹת יֶֽהֶרְסֶֽנָּה׃ | 4 |
न्याय्यता पर ही राजा अपने राष्ट्र का निर्माण करता है, किंतु वह, जो जनता को करो के बोझ से दबा देता है, राष्ट्र के विनाश को आमंत्रित करता है.
גֶּ֭בֶר מַחֲלִ֣יק עַל־רֵעֵ֑הוּ רֶ֝֗שֶׁת פּוֹרֵ֥שׂ עַל־פְּעָמָֽיו׃ | 5 |
जो अपने पड़ोसियों की चापलूसी करता है, वह अपने पड़ोसी के पैरों के लिए जाल बिछा रहा होता है.
בְּפֶ֤שַֽׁע אִ֣ישׁ רָ֣ע מוֹקֵ֑שׁ וְ֝צַדִּ֗יק יָר֥וּן וְשָׂמֵֽחַ׃ | 6 |
दुष्ट अपने ही अपराधों में उलझा रहता है, किंतु धर्मी सदैव उल्लसित हो गीत गाता रहता है.
יֹדֵ֣עַ צַ֭דִּיק דִּ֣ין דַּלִּ֑ים רָ֝שָׁ֗ע לֹא־יָבִ֥ין דָּֽעַת׃ | 7 |
धर्मी को सदैव निर्धन के अधिकारों का बोध रहता है, किंतु दुष्ट को इस विषय का ज्ञान ही नहीं होता.
אַנְשֵׁ֣י לָ֭צוֹן יָפִ֣יחוּ קִרְיָ֑ה וַ֝חֲכָמִ֗ים יָשִׁ֥יבוּ אָֽף׃ | 8 |
ठट्ठा करनेवाले नगर को अग्नि लगाते हैं, किंतु बुद्धिमान ही कोप को शांत करते हैं.
אִֽישׁ־חָכָ֗ם נִ֭שְׁפָּט אֶת־אִ֣ישׁ אֱוִ֑יל וְרָגַ֥ז וְ֝שָׂחַ֗ק וְאֵ֣ין נָֽחַת׃ | 9 |
यदि बुद्धिमान व्यक्ति किसी मूर्ख को न्यायालय ले जाता है, तो विवाद न तो शीघ्र क्रोधी होने से सुलझता है न ही हंसी में उड़ा देने से.
אַנְשֵׁ֣י דָ֭מִים יִשְׂנְאוּ־תָ֑ם וִֽ֝ישָׁרִ֗ים יְבַקְשׁ֥וּ נַפְשֽׁוֹ׃ | 10 |
खून के प्यासे हिंसक व्यक्ति खराई से घृणा करते हैं, वे धर्मी के प्राणों के प्यासे हो जाते हैं.
כָּל־ר֭וּחוֹ יוֹצִ֣יא כְסִ֑יל וְ֝חָכָ֗ם בְּאָח֥וֹר יְשַׁבְּחֶֽנָּה׃ | 11 |
क्रोध में मूर्ख व्यक्ति अनियंत्रित हो जाता है, किंतु बुद्धिमान संयमपूर्वक शांत बना रहता है.
מֹ֭שֵׁל מַקְשִׁ֣יב עַל־דְּבַר־שָׁ֑קֶר כָּֽל־מְשָׁרְתָ֥יו רְשָׁעִֽים׃ | 12 |
यदि शासक असत्य को सुनने लगता है, उसके सभी मंत्री कुटिल बन जाते हैं.
רָ֤שׁ וְאִ֣ישׁ תְּכָכִ֣ים נִפְגָּ֑שׁוּ מֵ֤אִיר־עֵינֵ֖י שְׁנֵיהֶ֣ם יְהוָֽה׃ | 13 |
अत्याचारी और निर्धन व्यक्ति में एक साम्य अवश्य है: दोनों ही को याहवेह ने दृष्टि प्रदान की है.
מֶ֤לֶךְ שׁוֹפֵ֣ט בֶּֽאֱמֶ֣ת דַּלִּ֑ים כִּ֝סְא֗וֹ לָעַ֥ד יִכּֽוֹן׃ | 14 |
यदि राजा पूर्ण खराई में निर्धन का न्याय करता है, उसका सिंहासन स्थायी रहता है.
שֵׁ֣בֶט וְ֭תוֹכַחַת יִתֵּ֣ן חָכְמָ֑ה וְנַ֥עַר מְ֝שֻׁלָּ֗ח מֵבִ֥ישׁ אִמּֽוֹ׃ | 15 |
ज्ञानोदय के साधन हैं डांट और छड़ी, किंतु जिस बालक पर ये प्रयुक्त न हुए हों, वह माता की लज्जा का कारण हो जाता है.
בִּרְב֣וֹת רְ֭שָׁעִים יִרְבֶּה־פָּ֑שַׁע וְ֝צַדִּיקִ֗ים בְּֽמַפַּלְתָּ֥ם יִרְאֽוּ׃ | 16 |
दुष्टों की संख्या में वृद्धि अपराध दर में वृद्धि करती है, किंतु धर्मी उनके पतन के दर्शक होते हैं.
יַסֵּ֣ר בִּ֭נְךָ וִֽינִיחֶ֑ךָ וְיִתֵּ֖ן מַעֲדַנִּ֣ים לְנַפְשֶֽׁךָ׃ פ | 17 |
अपने पुत्र को अनुशासन में रखो कि तुम्हारा भविष्य सुखद हो; वही तुम्हारे हृदय को आनंदित रखेगा.
בְּאֵ֣ין חָ֭זוֹן יִפָּ֣רַֽע עָ֑ם וְשֹׁמֵ֖ר תּוֹרָ֣ה אַשְׁרֵֽהוּ׃ | 18 |
भविष्य के दर्शन के अभाव में लोग प्रतिबन्ध तोड़ फेंकते हैं; किंतु धन्य होता है वह, जो नियमों का पालन करता है.
בִּ֭דְבָרִים לֹא־יִוָּ֣סֶר עָ֑בֶד כִּֽי־יָ֝בִ֗ין וְאֵ֣ין מַעֲנֶֽה׃ | 19 |
सेवकों के अनुशासन के लिए मात्र शब्द निर्देश पर्याप्त नहीं होता; वे इसे समझ अवश्य लेंगे, किंतु इसका पालन नहीं करेंगे.
חָזִ֗יתָ אִ֭ישׁ אָ֣ץ בִּדְבָרָ֑יו תִּקְוָ֖ה לִכְסִ֣יל מִמֶּֽנּוּ׃ | 20 |
एक मूर्ख व्यक्ति से उस व्यक्ति की अपेक्षा अधिक आशा की जा सकती है, जो बिना विचार अपना मत दे देता है.
מְפַנֵּ֣ק מִנֹּ֣עַר עַבְדּ֑וֹ וְ֝אַחֲרִית֗וֹ יִהְיֶ֥ה מָנֽוֹן׃ | 21 |
यदि सेवक को बाल्यकाल से ही जो भी चाहे दिया जाए, तो अंततः वह घमंडी हो जाएगा.
אִֽישׁ־אַ֭ף יְגָרֶ֣ה מָד֑וֹן וּבַ֖עַל חֵמָ֣ה רַב־פָּֽשַׁע׃ | 22 |
शीघ्र क्रोधी व्यक्ति कलह करनेवाला होता है, और अनियंत्रित क्रोध का दास अनेक अपराध कर बैठता है.
גַּאֲוַ֣ת אָ֭דָם תַּשְׁפִּילֶ֑נּוּ וּשְׁפַל־ר֝֗וּחַ יִתְמֹ֥ךְ כָּבֽוֹד׃ | 23 |
अहंकार ही व्यक्ति के पतन का कारण होता है, किंतु वह, जो आत्मा में विनम्र है, सम्मानित किया जाता है.
חוֹלֵ֣ק עִם־גַּ֭נָּב שׂוֹנֵ֣א נַפְשׁ֑וֹ אָלָ֥ה יִ֝שְׁמַ֗ע וְלֹ֣א יַגִּֽיד׃ | 24 |
जो चोर का साथ देता है, वह अपने ही प्राणों का शत्रु होता है; वह न्यायालय में सबके द्वारा शापित किया जाता है, किंतु फिर भी सत्य प्रकट नहीं कर सकता.
חֶרְדַּ֣ת אָ֭דָם יִתֵּ֣ן מוֹקֵ֑שׁ וּבוֹטֵ֖חַ בַּיהוָ֣ה יְשֻׂגָּֽב׃ | 25 |
लोगों से भयभीत होना उलझन प्रमाणित होता है, किंतु जो कोई याहवेह पर भरोसा रखता है, सुरक्षित रहता है.
רַ֭בִּים מְבַקְשִׁ֣ים פְּנֵי־מוֹשֵׁ֑ל וּ֝מֵיְהוָ֗ה מִשְׁפַּט־אִֽישׁ׃ | 26 |
शासक के प्रिय पात्र सभी बनना चाहते हैं, किंतु वास्तविक न्याय याहवेह के द्वारा निष्पन्न होता है.
תּוֹעֲבַ֣ת צַ֭דִּיקִים אִ֣ישׁ עָ֑וֶל וְתוֹעֲבַ֖ת רָשָׁ֣ע יְשַׁר־דָּֽרֶךְ׃ פ | 27 |
अन्यायी खरे के लिए तुच्छ होते हैं; किंतु वह, जिसका चालचलन खरा है, दुष्टों के लिए तुच्छ होता है.